जनाब बाबू खान साहब
बालसमुंद स्थित गुरु घासीदास मंदिर के समीप पुष्पवाटिका के पास अपने धुन में बिधुन एक लंबा पतला सा अघेड़ पुरुष कुर्ता पैजामा और सलुखा पहिने राजपुरुष सा छवि वाले एक शख्स से मूलाकात हुई।
दुआ -सलाम के बाद , बात आगे बढ़ी । उनसे मिलने के पूर्व उनके नाम से परीचित था। क्योकि उनकी एक छोटी सी पुस्तिका गुरुघासीदास चरित की चर्चा से भी वाकिफ़ रहे हैं। पता चला कि यही जनाब " बाबू खान " हैं जो पलारी क्षेत्र की विभिन्न सूचनाओं एंव समस्याओं को नवभारत समाचार पत्र के माध्यम से उठाते रहे हैं।
शा कन्या महाविद्यालय पेड्रारोड से स्थानांतरण के बाद 10 जून 2000 को शा महाविद्यालय पलारी में कार्यभार ग्रहण कर हीरा सेठ व्यवसायी के घर किराये पर रहता था। और प्राय: आदतन शाम को भ्रमण हेतु नगर के सुप्रसिद्ध जलाशय जिसमें 8 वी सदी के प्राचीन सिद्धेश्वरनाथ मंदिर , राधा कृष्ण, सीता- राम एंव गुरुघासीदास मंदिर तथा द्वीप मे नव निर्मित शारदा मंदिर स्थापित हैं, जाया करता क्योकि यहां के महौल हमें प्रेरित करते और सृजन के कुछ सूत्र मिलते।
कमल पुष्प से अच्छादित अत्यंत मनोरम बालसमुंद पूरे प्रदेश भर में चर्चित हैं। यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन और गुरुघासीदास जयंती दिसबंर माह में मेले लगते हैं। आस-पास के हजारों श्रद्धालू एकत्र होते हैं। मेले के बाद रासेयो पलारी के छात्रों द्वारा मंदिर व मेला परिसर की साफ -सफाई नियमित गतिविधी कार्यक्रम में करते रहे हैं। एक तरह से बालसमुंद पलारी कालेज के रासेयो ईकाई का स्थाई परियोजना स्थल हैं । जहां पर 2003 से 2019 तक हमें कार्यक्रम अधिकारी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। साफ- सफाई , पौधारोपण , रोपित पौधे मे पानी तराई इत्यादि गतिविधियां हेतु महाविद्यालय के स्वयंसेवक जाते ही रहते थे।
बहरहाल बाबू खान साहब के आकर्षक व्यक्तित्व व सधे हुए धीर-गंभीर आवाज के हम कायल हो गये और उनकी शेरो- शायरी, गीत -ग़ज़ल के दीवाने भी। खान साहब एक तरह से सच्चे मानवतावादी इंसान थे। शा महाविद्यालय में प्राय: सभी साहित्यिक / सांस्कृतिक आयोजन में सहभागी होते और महाविद्यालयीन कार्यक्रमों के फोटोग्राफर /रिपोर्टर भी। हमारे सभी दस व सप्त दिवसीय रासेयो कैम्प पलारी के लगभग सभी बडे ग्रामों में उनकी कवि और रिसोर्स परसन के रुप मे दो तीन दिनों तक आम दरफ्त होते । वे इस तरह महाविद्यालयीन बच्चों के साथ धुल-मिल जाते। उनका स्नेह सदैव मिलते रहा हैं। वे महाविद्यालय मे आयोजित कार्यक्रमों में सहज ही उपलब्ध होते थें।
साहित्यिक मनीषी और प्रशासनिक अधिकारी डा देवधर महंत जी तब पलारी में तहसीलदार थे और उनसे हमारी मित्रता महाविद्यालय के ग्रंथपाल भट्ट जी माध्यम हुई ही थी कि समन्यय परिवार पलारी का गठन हुआ। उसमें बाबू खान , रामकुमार साहू , टेसूलाल धुरंधर , रामनारायण यादव , पोखनलाल ,पुरनलाल , नेहरुलाल , बाबुलाल गेंड्रे , रविशंकर चंद्राकर जैसे नवांकुर लोग सम्मलित रहें। प्राय: प्रत्येक गोष्ठी जो गायत्री मंदिर प्रांगण , मेरे निवास या रामकुमार साहू के निवास में होते और परिक्षेत्र मे साहित्यिक कारवां आगे बढ़ती गई ।
2004 में हमारे संपादन में पलारी क्षेत्र के होनहार कवियों की साझा संग्रह - "परसन " नामक स्मारिका प्रकाशित हुई। परिणाम स्वरुप बलौदाबाजार , महासमुन्द , भाटापारा नेवरा तिल्दा आरंग , खरोरा, सारागांव क्षेत्र के साहित्यकारों के बीच हमारे अंचल के साहित्यकारों का आव्रजन होने लगा। इसमे प्रमुखत: मीर अली मीर रामरुप वर्मा , संदीप पांडे , सुरेन्द्र शर्मा , हितेन्द्र ठाकुर , ताराचंद अग्रवाल , द्वारिका मंडल , डा आर एस जोशी , नरेन्द्र वर्मा , सुमन बाजपेई , सरिता तिवारी , दत्तात्रेय अग्निहोत्री , सालिकराम सेन , अनिल जांगड़े गौतरिहा , कृपाल पंजवाणी नेहरुलाल यादव ,डां. उमाकांत मिश्र , डां अनिल भतपहरी जैसे साहित्य प्रेमी साधक गणों ने साहित्य सुमन , समन्वय साहित्य परिवार व छत्तीसगढ़ी राजभाषा साहित्य समिति गठित कर विगत 20-25 वर्षों से इस ट्रांस महानदी परिक्षेत्र साहित्य की लौ जलाई जिससे नव पीढी आलोकित हैं।
उनमें खान साहब की गरिमामय उपस्थिति उनकी मां सरस्वती की वंदना, फिर उनके लोकप्रिय गीत जिसमे हमर गांव बलावत हवय.. और अनेक शेरो.- शायरी नज्म ग़ज़लो से महफिल में शमा बंध जाते। उनकी घोष स्वर के हम सभी दीवाने थे।
खान साहब सामाजिक सौहार्द्र के मिशाल थे वे जन्मजात कांग्रेसी थे लेकिन भाजपा के गढ़ और कर्णधार समझे जाने वाले बृजलाल वर्मा पूर्व केबिनेट मंत्री के गांव में हर वर्गों के बीच बेहद लोकप्रिय थें। सोसल मीडिया से पता चला कि खान साहब नही रहें। मन एकदम सा उदास हो गया और उनके साथ बिताये बेहतरीन लम्हों की याद में खो गये।
खान साहब का जाना परिक्षेत्र के अपूर्णीय क्षति हैं। साथ ही सामाजिक सौहार्द्र व गंगा जमुनी तहजीब के एक अध्याय का पटाक्षेप हैं। खान साहब के व्यक्तित्व व कृतित्व के ऊपर " स्मारिका " आदि का प्रकाशन अब वहां के साहित्यिक जनों की नैतिक दायित्व हैं। उक्त कार्य में जो भी सहयोग की अपेक्षा होगी करने सदैव तत्पर हैं।
पलारी - बलौदाबाजार अंचल के साहित्यिक बिरादरी द्वारा यह कार्य यदि भविष्य में संपादित होता है तो नि:संदेह खान साहब के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनकी मातमपुर्सी होगी। आजीवन क्वारे खान साहब सामाजिक साहित्यिक व अपनी पार्टीगत गतिविधियों सदैव सक्रिय थे। वे साफ- सुथरे छवि के मालिक और सादगी पूर्ण जीवन शैली के संवाहक थे।
इंशा अल्लाह ! खुदा उन्हे जन्नत बक्खे! और उनके कुनबा आबाद रखें।
- डां. अनिल भतपहरी / 9617777514
No comments:
Post a Comment