Wednesday, October 18, 2023

सिरपुर का पुरा वैभव

#anilbhatpahari 

।। सिरपुर का पुरा वैभव ।।

        सिरपुर मुगल काल तक आबाद था । वहां उत्खनन से प्राप्त चांदी  के  सिक्के औरंगजेब ने  ढ़लवाए थे। जिसे  मथुरा -नारनौल परिक्षेत्र  के सतनामियो ने औरंगजेब से युद्ध  के बाद 1662 के आसपास  लाए। सिरपुर परिक्षेत्र महानदी के इर्द - गिर्द सतनामियों की  बसाहट हुई। वे लोग अपने साथ लेकर यहां आये , ऐसा प्रथम द्रष्टया लगता हैं।  
        रुपया को महिलाएं गले में  हार आभूषण‌ की मानिंद पहनती भी रही है।यह प्रथा अब भी है, उक्त आभूषण का नाम रुपिया ही है , का दास्तान बता भी रहे हैं । 
   यानि कि छटवीं सदी से लेकर मुगलकालीन 16 वी सदी तक एक हजार साल का उन्नत सभ्यता का केन्द्र सिरपुर समकालीन छत्तीसगढ़ की वैभव का जीवन्त दस्तावेज़ हैं। जिसे जानना -समझना और उन तथ्यों‌ पर लेखन की आपार संभावनाएं  विद्यमान हैं। बौद्ध धम्म के सहजयानियो , सत्यवंत प्रजाति  की सतवाहनो या  सद्वाहों और वर्तमान सतनामियों की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं में जो एकरुपता या सम्यता दिखाई पड़ती है।वह अनेक विषयों के लिए अन्वेषण का मार्ग प्रशस्त करती हैं । 
      आध्यापकों , अन्वेषकों , इतिहासकारों और साहित्यकारों को  इन पर गंभीरता पूर्वक  कार्य करना चाहिये ताकि  छत्तीसगढ़ की स्वर्णिम कालखंड और पुरा वैभव व सांस्कृतिक प्रतिमानों  से देश और दुनिया  अवगत हो सकें  ।

ज्ञात हो कि आरंभ से लेकर अठ्ठारहवीं सदी तक सिरपुर आबाद था जहां पर विजयस इंद्रभूति महाशिवगुप्त बालार्जुन  सम्राट हुये । बुद्ध नागार्जुन आनंद प्रभु महंत अंजोरदास जैसे शास्ता व धम्मादेशक हुये। अंजोरदास की पुत्री का विवाह गुरुघासीदास से हुआ । 5 कि मी दूर ही सुप्रसिद्ध तेलासी बाड़ा  एंव मोती महल गुरुद्वारा भंडारपुरी अवस्थित हैं। यह परिक्षेत्र शैव शाक्त बुद्ध जैन व सतनाम पंथ का समन्वय अंचल भी रहा हैं। राजभाषा पालि और छत्तीसगढ़ी के शब्द और उच्चारण इस अंचल में देखे- सुने जा सकते हैं।
   

   - डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

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