Sunday, October 30, 2022

राज्योत्सव भाषण

मान मंत्री जी का भाषण -

राज्योत्सव एंव अन्तराष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव 
        
    कार्यक्रम के  सम्मानीⁿ0य  मुख्य अतिथि   प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री  मान भूपेश बघेल जी एंव अध्यक्षता कर रहें सम्मानीय विधानसभा अध्यक्ष  मान. डॉ. चरणदास महंत जी अतिविशिष्ट  अतिथिगण छग शासन के  सम्मानीय मंत्री गण ,विधायक  गण , हमारे शासन- प्रशासन के समस्त अधिकारी -कर्मचारीगण  एंव उपस्थित समस्त प्रदेशवासियों को  राज्योत्सव परब की हार्दिक बधाई । 
     इस  पावन अवसर पर आयोजित  अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य समारोह में भाग ले रहे टोंगो ,मोजाम्बिक , मंगोलिया ,रुस,इंडोनेशिया ,मालदीव  इजिप्ट न्यूजीलैण्ड  और सर्बिया  इन नव  देश के प्रतिभागी गण एंव   देश के सभी प्रांत  व केन्द्र शासित प्रदेशों से आए लोक नर्तक दलों का हृदय से स्वागत  करता करते हुए उनका हार्दिक अभिनंदन करता हूं।
     उपस्थित विशाल जन समूह सहित प्रदेशवासियों को  राज्योत्सव 2022 की हार्दिक बधाई प्रेषित करता हूँ।
        चित्रोत्पला गंगा महानदी शिवनाथ ,इंद्रावती के  पावन जल से सींचित चालिस प्रतिशत भूभाग पर वनाच्छादित इस रत्नगर्भा छत्तीसगढ़ की स्थापना दिवस को हम लोगों ने  एक उत्सव के रुप में मनाते आ रहे हैं। जिसमें प्रदेश की ढाई करोड़ जनता के साथ साथ देश -विदेश के 1500 लोक कलाकार , अनेक  विशिष्ट विभूतियां एंव  कला साहित्य  संस्कृति के विशेषज्ञ और अतिविशिष्ट प्रबुद्ध जनों की सहभागिता का यह मणिकांचन त्रिदिवसीय महाआयोजन हैं। इनके साथ -साथ सभी जिला मुख्यालयों में भी राज्योत्सव मनाए जा रहे हैं-

जय छत्तीसगढ़ ओ मोर महतारी सुरुज जोत म करव आरती 
महानदी के पानी म चरण पखारव 
सफरी दूबराज के ओ भोग चढ़ावव 
ब इठार चंदन पिढुली म करव सिंगार 
जावय ज इसे बेटी ससुरार ...

      छत्तीसगढ़ महतारी  अपनी वैविध्यपूर्ण सांस्कृतिक चेतना के साथ धन धान्य एंव अनेक महत्वपूर्ण आधारभूत लौह अयस्क ,कोयला, बाक्साइट, चुना  पत्थर , सहित प्रचुर मात्रा मे स्वर्ण व हीरे आदि का भंडारण  के कारण चर्चित हैं।प्रदेश  देश - विदेश में धान का कटोरा के नाम से विख्यात है।  
    सादगी पूर्ण मेहनत कश व ईमानदारी से जीवन यापन करने वालों के लिए  " छत्तीसगढिया सब से  बढिया " का जो स्लोगन और असीस मिलता हैं। वह अत्यंत गौरवशाली हैं। 
    प्रदेश के उत्तर - दक्षिण में अवस्थित बस्तर और सरगुजा सूदूर वनाचंल में 41 तरह के जनजातियाँ निवास रत है जिनकी जनसंख्या लगभग 32 प्रतिशत है।  मध्य  छत्तीसगढ़ में ग्राम्य और नगरीकरण है ‌ इन तीनो परिक्षेत्र में भाषाई एंव सांस्कृतिक विविधताएं  प्रदेश का गौरव हैं। साथ ही भिलाई -कोरबा जैसे  औद्योगिक तीर्थ भूमि में देश भर के लोग निवासरत हैं जो लघु भारत के रुप में दर्शनीय हैं। 
   प्रदेश का गौरवशाली इतिहास अत्यंत समृद्ध हैं। पाषाण काल से लेकर रामायण महाभारत काल के  पुरावशेष विद्यमान हैं। दक्षिणापथ के नाम विख्यात यह भूमि आर्य और द्रविण संस्कृति का समागम स्थली हैं। इसलिए यहाँ दोनो संस्कृति का मिला जुला रुप दर्शनीय हैं। अनेक इतिहास प्रसिद्ध वंश जिसमें मौर्य , गुप्त ,सातवहन , सद् वाह ,  वाकाटक कलचुरि ,काकतीय ,गोड  जैसे राजवंशों का शासन रहा है। 
   भगवान राम का नौनिहाल माता  कौशल्या  जी का मायका इस दक्षिण कोशल प्रांत में वनवास के ११ वर्ष व्यतीत किए‌ तो वही कृष्ण  अर्जुन के साथ आरंग के राजा मोरध्वज के आतिथ्य प्राप्त किए। महात्मा बुद्ध का आगमन सिरपुर नरेश विजयस के कार्यकाल में हुआ था जहां उन्हे एक सहस्त्र कोषा वस्त्र भेंट किए गये।  सम्राट वृहदबल , महाशिवगुप्त बालार्जुन , बौद्ध भिक्षु  नागार्जुन आनंद प्रभु  इञद्रभूति , संत कबीर धर्मदास , गुरुनानक ,गुरुघासीदास वल्लभाचार्य एंव विवेकानंद जैसे युगपुरुषों का कर्मभूमि व जन्म भूमि हैं। 

     यहां पर प्राचीन बौद्ध विहार , बुद्ध प्रतिमाएं, ताला का रुद्र शिव , बारसुर ढोलकन पहाड़ बस्तर की गणेश प्रतिमाओं की ख्याति दुनियाभर में हैं। सिरपुर राजिम शिवरीनारायण गिरौदपुरी दामाखेड़ा ,मैनपाट, बस्तर दशहरा जगदलपुर में प्रतिवर्ष लाखों दर्शनार्थी आते हैं।  
       एशिया महाद्वीप का अकेला इंदिरा  संगीत एंव कला विश्वविद्यालय खैरागढ़ छत्तीसगढ़ की शान हैं। जहां देश -विदेश सेवा हजारों  विद्यार्थियों और कलावंत निकलते हैं।
            
    अंत में यही कहना चाहता हूँ कि प्रदेश विकास के मामले में सदैव अग्रणी रहे । जनता सुखी व समृद्धशाली रहे -

धान के कटोरा हर धान म छलकय 
फूलय फरय अउ अंजोर बगरावय ‌

हरेली

#anilbhatpahari  Happy Hareli 

हरेली तिहार के अघादेच बधाई हवय 

हरेली 

हर लेही  दु:ख असो हरेली 
‌नोहय चिटिक गोठ बरपेली 

जामत बोवत बरसिस  बादर 
सम्मत सोला आना ले आगर

जांगर टोर करेन जबर मतासी 
तभे लौहा झरिस रोपा-बियासी 

सइता राखव  अउ  धीर धरव 
देव धामी ल बने सुमरव बदव 

चढ़ावव चीला मचव सब गेड़ी 
हर  लेही  दु:ख  असो  हरेली 
         - डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

व्यसन मुक्त संस्कारवान समाज संरचना


संपादकीय - 
      व्यसन मुक्त संस्कारवान समाज संरचना हेतु अग्रसर 

   कृषि संस्कृति का महापर्व  सुरहुत्ती, देवारी और गोबरधन  फसल कटाई कर धान का खेतों से खलिहान व  घर में लाने का  उनके भव्यतम स्वागत करने का महोत्सव है । इस अवसर पर गाय बैल -भैसा जैसे पशुओं को खिचड़ी खिलाकर उत्सव मनाने का हैं। जिसे हर्षोल्लास पूर्वक मनाये हैं।
   अब दीपावली के बाद राज्य  में कृषक समुदाय धान की कटाई -मिसाई  करके मंडी व ग्रामीण बैंक जहां वे  कृषि कार्य के लिए ऋण लिए होते है को अदा कर शेष रुपये  लेने में जुट जाएन्गे। इस बार एक नवंबर से धान खरीदा आरंभ हो रहे हैं। 
  सतनामी समाज कृषक समाज है और  राज्य के विकास में अहम भूमिका निभाते आ रहें हैं। वे सभी बकाया ऋण वापस कर शेष धनराशि को वर्ष भर चलाने के लिए प्लानिंग कर ले और जरुरत के हिसाब से आहरण करें।
     प्रायः यह देखने में आता हैं कि  मातर मड़ ई और दिसंबर माह में जयंती पर खूलकर रुपये खर्च कर दिए जाते हैं कही -कही जुएं आदि के चलते आर्थिक संकट में घिरे रहते हैं। इनका परित्याग करना चाहिए। 
    वर्ष भर के लिए  बेहतर प्लानिंग कर मितव्ययता  अपनाएं तो कम में भी संतुष्ट और बेहतर जीवन जिए जा सकते हैं।
       
     प्रगतिशील सतनामी समाज अपनी सामाजिक व धार्मिक गतिविधियों को बेहतर करने तथा विभिन्न जिला ईकाइयों को सक्रिय करने में निरंतर लगे हुए हैं। इस कड़ी में विगत दिनों कोरबा एंव शक्ति जिला में दौरा कर कार्यक्रम व्यवस्थित किए गये ।तथा महासमुंद जिला का निर्वाचन शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुआ। सभी पदाधिकारी गणों को बधाई ।एंव यह अपेक्षा कि संगठन को सुचारु रुप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेंगे तथा जहां पर संकट व व्यवधान हो उन्हे संवैधानिक रुप से हल करने में त्वरित सहयोग व सलाह प्रदान करेंगे। 
    दिनांक 15 अक्टूबर को सभी उप समितियों के लिए मार्गदर्शिका तैयार की गई है उनपर अमल लाने गहनता से विचार विमर्श किए गये ।
     विगत दिनों छत्तीसगढ़ शासन ने अनुजाति विभाग को स्वतंत्र कर स्वागतेय कार्य किया  । ऐसा होने पर अब अनु जातियों के विकास हेतु पृथक बजट मिलेगा फलस्वरुप तेजी से कार्य हो सकेगा ।  राज्योत्सव के पूर्व ही अनु जाति आयोग के अध्यक्ष  पद पर समाज के सेवानिवृत्त  प्रशासनिक अधिकारी  वरिष्ठ समाजसेवी के पी खांडे जी एंव  सदस्यों  मे  श्रीराम पप्पु बघेल , संतोष सारथी , सुरेश पैगवार की नियुक्ति हर्ष दायक हैं।  सभी पदाधिकारियों को बधाई । 
       यह पत्रिका आप तक पहुचेगी तब तक लोगों के धान के पैसे आना शुरु हो जाएगा और मेले मड़ाई के साथ साथ गुरुघासीदास जयंती महोत्सवों  में मुक्त हस्त से खर्च करने की मनोवृत्ति भी जागृत हो जाएगा । 
   हमारा समाज उत्सव धर्मी समाज हैं और प्रायः भविष्य की अनावश्यक चिंता से मुक्त भी ।पर अब इस तरह की मनोवृत्ति में आवश्यक सुधार की अपेक्षा होना ही चाहिए।  जैसे शासन संस्थाएं अपना वर्ष भर की बजट बनाते हैं। और हर छोटी बड़ी आवश्यकता के लिए फंड रखते हैं। ठीक उसी तरह बच्चों के शिक्षा स्वास्थ्य खेती - बाड़ी और  घर के सदस्यों के लिए कपडे जेवर व कुछ महत्वपूर्ण शौक एंव सतनाम धर्म के महत्वपूर्ण कुछ धार्मिक स्थलों की यात्रा हेतु योजना जरुर बनावें। इससे परिवार के सभी सदस्यों के हित संवर्धन होगा और बेहतर जीवन निर्वाह भी । 
    शैन: शैन: बुरी  व्यसनों जुएं एंव  शराब गुड़ाखू , तंबाकू ,बीड़ी गुटका आदि से बचे । क्योंकि ग्रामीण जनता इनमें आकंठ डूबे हुए हैं। और यही   पारिवारिक कलह एंव शारीरिक दु:ख और मानसिक विकास के सबसे बड़ा बाधक तत्व हैं। 
     हमारे पदाधिकारियों एंव समाज सेवकों को इनके लिए जन जागरण अभियान चलाना पडेगा। इसके लिए सार्वजनिक  नैतिक शिक्षा ज्ञान के लिए सत्संग प्रवचन भजन पंथी आदि सांस्कृतिक आयोजन करवाना चाहिए । हर आठ दस गांवों के मध्य   जहां सतनाम भवन हो वहां पर उक्त आयोजन एंव  सार्वजनिक भोग भंडारा हो उनमें सेवादार व प्रबञध संचालन समिति गठित कर  सांस्कृतिक जागरण लाए जा सकते हैं। इसके द्वारा न ई पीढ़ी को संस्कार मिलेगा और बडे -बुजुर्गों की अनुभव सहभागिता से उन्हे प्रेरणा मिलेगा। युवा वर्ग अपनी आपार रचनात्मक और सकारात्मक शक्तियों को   इस तरह समाज की बेहतरी के लिए इस्तेमाल कर सकेगें।
    राज्योत्सव की हार्दिक बधाई सहित आगामी पवित्र दिसंबर  गुरुपर्व का माह की स्वागतार्थ मंगलकामनाएं ... जय सतनाम ।
    - डाॅ. अनिल भतपहरी      9617777514 
 ऊंजियार सदन सेंट जोसेफ़ टाउन  अमलीडीह रायपुर छ ग

Thursday, October 27, 2022

लघु कथा :थोड़े में बहुत

"थोड़े में बहुत "   

     पता नही क्यों.. समान विचार-धारा या मंतव्य रखने वालों के प्रति नेह होने लग जाते है। चाहे वह समलिंगी या विषमलिंगी हो।
   या ऐसा भी कह सकते है कि विचारधारा में लिंगभेद नही होते । मिलने पर सभी संगी हो जाते है । 
     हुआ युं कि अल सुबह बस में बैठते ही एक 6-7  साल की बालिका शनि देव की फोटो रखी, भिक्षाटन हेतु आई । बिना कुछ बोले चुपचाप यात्रियों के समक्ष  घुमाने लगी ... लोग यथाशक्ति रुपये देने लगे जैसे ही मेरे पास आई  मैने कहा - "स्कूल क्यो नही जाती ?"  पढ़ने के वक्त भीख !  सहयात्रियों की निगाहे चिरती - भेदती आड़ी -तिरछी होने लगे।
   वे भी बड़ी- बड़ी  आँखें तरेरती गुस्से से कुछ न बोली और पीछे सीट की ओर बढ़ गई ।
    थोड़ी देर पीछे दरवाजे से उतर ही रही थी कि हमने खिड़की से देखा कि उसकी माँ , बुआ या जो हो,  काले रंग की साड़ी मे सजी-धजी एक और शनि महराज को टोकनी नुमा कमंडल में रखी एक स्कुटर सवार से भिक्षा मांगने लगी.. वे तमतमाते कह रहे थे -"शर्म नही आती जवान होकर मांगती -फिरती हो !" 
गंदा काम करती हो ! 
बच्चों को पढ़ना -लिखना छुड़वाकर  उनसे भीख मंगवाती हो!
ओ कही -"अच्छा काम क्या है ? "
"परिश्रम !"
हाथ नचाती मोहक अंदाज से ओ कही-" ओय बाबू साहेब  इन्ने मे भी  बडे मिहनत लागे हाय !
  वो इस तरह के प्रश्नों से अभ्यस्त थी और जवाब देना जानती थी।
  वे मंद -मंद मुस्काने लगी..दान देना नइ देना मरजी आपका ,पर शनि महराज से तो तनिक खौप खावै साहेब जी !
   पल भर में  हमारा नेह उस अजनबी से  जुड़ गये ...और  बहुतों का नेह  पल भर में उस शनि पूजारन से ,जो काली रंग की साड़ी में बला की खूबसूरत   लग रही थी ।लोग कौतुहल व अन्य भाव से उनकी ओर दया तो नही पर मया वाली दृष्टि से टुकुर- टुकुर देखने लगे  .... दो -चार समर्थन में स्वर उठे -" यही लोग हमारी संस्कृति के रखवाले है,हमें उन्हे आदर देना चाहिए .... बस तो चल पड़ी पर ऐसा कहने वालों से हमारी बहस शुरु हो गये कि -"क्या ये लोग संस्कृति के संवाहक है और क्या इससे  देश  कीर्तिमान होन्गे?" .... वृतांत लंबी है पर इसे "थोड़े में बहुत "समझना ।
   -डां. अनिल भतपहरी 
       9617777514

Tuesday, October 25, 2022

सुरहुत्ती

सुरहुत्ती परब के बधाई 

।।सुरहुत्ती ।‌।

गज मोतियन  चउक  पुरव अंगना- दुवारी  
सज -धज के आत हवय अनपुरना कुंवारी
सोपा परत रतिहा हमर चुहुल-पुहुल पहाती
आये ये बेरा ह लागय आरुग अउ  ममहाती  
धरसत बरदी परघा लव लेत संझा - आरती 
दीया बार ओरी-ओर मानव  सुघ्घर सुरहुत्ती 
           
                - डाॅ. अनिल भतपहरी/ 9617777514

Saturday, October 22, 2022

छायावाद और मुकुटधर पांडे

छायावाद और मुकुटधर पांडेय 

    हिन्दी साहित्य में छायावाद का कालखंड अतिशय महत्वपूर्ण हैं। बिन इनके साहित्य का अध्ययन अध्यापन या विचार विमर्श संभव नही है।  सच कहे तो इस  कालखंड मे हिन्दी जिसे खड़ी बोली कहे जाते है और काव्य के लिए अनुपयुक्त वह धारणा बदली और हिन्दी भाषा प्रांजल और   काव्यमय हुई।   
        हालांकि कोमल कांत पदावलि और बढते संस्कृत निष्टता के चलते भाषा दुरुह जटिल हुई तथा कविता रहस्यमय होकर गुंफित भी हुई पर यह जटिलता ही भाषाई संरचना और भाव विन्यास को गहराई से समझने की व्यापाक दृष्टि भी प्रदान की।
    छायावाद मे जो पश्चिम की  मिस्टीसिज्म या रुमानियत और इस्लामिक सूफियाना फलसफा दिखता है उससे यह बेहद प्रभावी और वैश्विक स्तर पर चिन्हाकित भी की गई  ।
    इस छायावाद के प्रवर्तक कवियों मे छत्तीसगढ के रायगढ़ जिला के महानदी तटवर्ती बालपुर ग्रामवासी कविवर पं. मुकुटधर पांडे अग्रणी है। कुर्री के प्रति  काव्यांश का यह भाव देखिए जिसमेञ  छायावाद के विशेषताएं समाहित है-

 शून्य गगन में कौन सुनेगा तेरा विपुल विलाप ?
बता कौन सी व्यथा तुझे है , है किसका परिताप ?    (१ मुकुट धर पांडे व्यक्ति एंव रचना  - संपा महावीर अग्रवाल  पृ ४१०)
    यह प्रश्न वियोगी कवि  का प्रश्न है जिनकी उत्तर खोजा जाना शेष है।
   कविवर पंत जो छायावाद के बड़ा नाम है वो तो स्पष्ट कहा है -

वियोगी होगा पहला कवि आह से ऊपजी होगी गान ।
नैनो से उमड़ कर चुपचाप बही होगी कविता अनजान ।।   (२)

हालांकि छायावाद और उनके प्रवर्तक के नाम पर काफी प्रवाद है ।यह नाम साहित्य जगत  चल पड़ा पर किसने सबसे पहले उपयोग किया इन पर भी बहसे आज तक की जाती  हैं, फलस्वरुओ लोगों मतैक्य नहीं है।
    सन १९२० में ' श्री शारदा ' पत्रिका जबलपुर से निकलती थी उसमें ' हिन्दी कविता में छायावाद शीर्षक से एक लेख माला पंं. मुकुटधर पांडेय की छपी। उसके माध्यम से पहली बार " छायावाद " शब्द और छायावादी काव्यान्दोलन को लेकर प्रमाणिक तौर पर विस्तृत रुप से सामाग्री सामने आई। " इसी तरह हितकारिणी पत्रिका मे -"हिन्दी कविता में छायावाद " निकली।  ,( पृ3 वही पृ 438 )इस आधार पर  उन्हे छायावाद नाम देने वाले कहे जा सकते है।
     और तो कविवर पांडे जी  उस अज्ञात सत्ता और शहर का श्रोता बनकर हमारे समक्ष सुनाने आ जाते है - 
    सुना , स्वर्णमय भूमि वहां की मणिमय है आकाश ।
वहां न तम का नाम कहीं है, रहता  सदा प्रकाश ।।   ( ४ वही पृ ४११)

    बालपुर ग्राम मे निर्भय और निसंक निवासरत थे । भौतिक  अभावों के बीच प्राकृतिक संशाधनों और आत्मीय संपदा के वे मालगुजार थे फलस्वरुप ग्राम वैभव उनकी कविता द्रष्ट्व्य है - 

शांति पूर्ण लघु ग्राम बड़ा ही सुखमय होता भाई। 
देखों नगरों से भी बढ़कर इनकी शोभा अधिकाई ।। ( ५  वही  पृ ४१९ )
      मुकट धर पांडे जी की मूल्याकंन बच्चू जांजगिरी ने की फलस्वरुप उनकी  ख्याति चतुर्दिक फैली अन्यथा उनकी अवदान सुदूर छत्तीसगढ़ के होने के कारण विस्मृत कर दिए गये होते । बहरहाल यहां के साहित्यिकों का यह नैतिक दायित्व है कि यशस्वी रचनाकारों की ओर भी नजर इनायत कर लिया करें। पता नही हमारे बौद्धिकों / अध्येताओं, रचना धर्मियो  यहां तक आध्यापकों को भी यह लगता है कि बड़ा फलक और रचनाकार केवल  गंगा हिमालय के भूभाग मे गोया कि वही सौन्दर्य बिखरा हुआ है और कही नही फलस्वरुप वहां बडे और प्रवर्तक रचनाकार होन्गे। पं . मुकुटधर जी इस मिथक को तोड़ते है। और छोटे से ग्राम मे रहकर वे वैश्विक साहित्य रचते है - 
दीन - हीन के अश्रु नीर में 
पतितों की परिताप पीर में
संध्या के चंचल समीर में 
करता था तू गान 
देखा मैने यही मुक्ति थी 
यही भोग था यही मुक्ति थी 
घर मे ही सब योग - युक्ति थी 
घर ही था निर्वाण । ६ वही , पृ ४१४ 
    इस तरह देखे तो उनकी रचनाएं  भाव प्रवण और भाषा बहुत ही उत्कृष्ट हैं।  उनकी रचनाओं  छायावाद और स्वच्छंदता स्पष्ट दृष्टिगोचर होते है 
।    
    उनकी रचनाओं छत्तीसगढ़ी शब्द और यहां की साञस्कृतिक तत्व अनायस देखने मिल जाते है। उनकी चर्चित व प्रतिनिधी कविता कुर्री के प्रति एक तरह से प्रवासी पक्षी का समूह है जो दूर देश आते है। उनकी उच्चरित  ध्वनि के कारण यहां उसे कुर्री कहते है को लक्ष्य कर उन्होने अप्रतिम काव्य रचना की और वह छायावाद की कविता के रुप में स्वीकृत की गई ।कुर्री कहने मात्र से ही छत्तीसगढ प्रदर्शित हो जाते है। महाकवि कालिदास कृत मेघदूत का छत्तीसगढ़ी अनुवाद दर्शनीय है। उनकी अनुवाद कला और छत्तीसगढ़ी शब्द संयोजन बेहद सटीक है। इस अनुवाद से सहज पता चलता है कि छत्तीसगढ़ी अनन्य भावों अभिव्यक्त कर सकने असीम क्षमता संस्कृत सदृश्य रखती है। 
     
भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मनित पांडेय जी प्रदेश के गौरव है । वे आने  वाली न ई पीढी के मार्ग दर्शक हैं।
       उन्हे शत -शत नमन 
    डा. अनिल कुमार भतपहरी 
          ( 9617777514)
             सचिव 
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर

Monday, October 17, 2022

वन्या

#anilbhatpahari 

।।वन्या ।।

महुएं की फूल मानिंद 
टपकी है अभी -अभी 
ओस की बुंद ठहरी हैं‌
तृणनोक में अभी-अभी

अनछुआ आरुग सौन्दर्य 
पर कद्र नहीं जमाने को 
सुर्खाब़ के पर लग जाएन्गे 
लिखने वालों के अफ़साने को 

जिन्हे आता नही जीना 
वे मुग्ध है तरीके बताकर 
समझते इन्हें जाहिल-गंवार
अपढ़ - मूढ़ ,ग्रामीण- बेकार  

ये सितारेदार जो चमक रहे हैं
कलफ लगाएँ रंग- रोगन कर 
हक किसी दूसरे का छीन कर 
छल -छद्म , शोषण-दमन कर  

ब‌ने हुए है ये लोग शर्माएदार 
बे़दखल कर किए इन्हे बे़बस 
पर वे आपकी तरह नहीं हैं
हताश निराश और उदास 

आवश्यकता कम ,संतुष्ट सदा
 निश्चछल हांस-परिहास 
सीखे जीवन जीना इनसे 
चमके अँधेरे में सितारे सा उजास

स्वाभिमान और पुरुषार्थ की 
 दृष्टान्त  यह वन्या  
साहस और वीरता की 
प्रतिमूर्ति प्रणम्य वन कन्या 

 - डाॅ . अनिल भतपहरी / 9617777514

Sunday, October 16, 2022

मैं का मायाजाल

#anilbhatpahari 

।।मैं का मायाजाल ।।

मै की बिमारी फैले हैं
चारो तरफ चहूँ ओर 
मैं से हम, हम से मैं 
का हैं सब तरफ शोर 
आजकल का नहीं ,
यह रोग बहुत पुरानी हैं
मय दानव के मायाजाल से
भरी -पुरी कहानी हैं
मैं के कुनबे मिलकर
आपस में हम हुआ 
फिर जातिय संगठन
का उदय अहम हुआ 
मानवता पिसाती गई 
इनकी काली करतुत से 
तुष्ट भले वे हो अपनों में
पर मरते जन दारुण दु:ख से 
मैं के कारण ही सर्वत्र 
छल -छद्म  पलने लगा 
वर्ग संघर्ष शोषण दमन का
चक्र  चलने लगा 
उसी का विस्तार देखों
अब भी फल- फूल रहा 
पर उपदेश कुशल बहुतेरे 
प्राय:इन के ही उसुल रहा 

    -डॉ. अनिल भतपहरी, ९६१७७७७१५४
     सत श्री ऊंजियार सदन ,सेंट जोसेफ टाउन अमलीडीह रायपुर ‌छ ग.

डोंगरगढ महोत्सव

https://youtu.be/kadgexpuoK4

Friday, October 14, 2022

गुरुघासीदास फिल्म पटकथा - ४

*गुरु घासीदास फिल्म पटकथा*
            भाग चार -

पक्षी जीवन दान - दृश्य, खेल मैदान।
पात्र - भागचंद, सुकरीत, धनवा, अमरचंद, धजा दास,  सुमरन, बुधारू, घासी।

सुकरीत - मित्रों चलिए आज सब मिलकर गुल्ली - डंडा खेलते हैं।
अमरचंद - सुकरीत, सही बोल रहे हो। सब गुल्ली डंडा खेलें।
बुधारू - हां - हां चलिए, मैं डंडा, गुल्ली लेकर आता हूं। ( अपने घर से गुल्ली, डंडा लेकर आता है
सुकरीत - ( घासी की ओर देखकर) चलिए घासी आज मुझे हराकर दिखाना। 
घासी - मतलब मुझसे खेलने के पहले डरे हुए हैं।
सुकरीत - डर नहीं, चुनौती है।
घासी - चुनौती देना, अर्थात भीतर से हार स्वीकारना है।
( खेल मैदान में पहूंच कर धनवा गोल घेरा खींचता है, खेल शुरू करते हुए  सबसे पहले  बुधारू गुल्ली उचकाकर डंडा से मारता है। बारी - बारी सभी खेलने लगे)
घासी - मित्रों सबको खिलाड़ी भावना से खेलना है, कैसे अमरचंद ?
अमरचंद - हां, घासी, सत्य बोल रहे हो। (मित्रगण हामी भरते हैं)
धनवा - ( गुल्ली उचकाकर डंडा से मारते ही गुल्ली हवा में तैरते हुए  ऊंचाई म उड़ रही चिड़िया से टकराते ही चिड़िया नीचे गिर जाती है ) ओह् चिड़िया गुल्ली पड़ने से गिर गई।
(मित्रगण निकट जाकर देखते हैं गंभीर चोंट लगने से चिड़िया घायल अवस्था में तड़प रही है किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। बालक घासी उठाकर पेड़ के नीचे लाकर शीतल जल पीलाता है तथा घाव में औषधीय लगातें हैं थोड़ी देर में चिड़िया चेतनावस्था में आते ही फ़ुर्र हो जाता है। सभी बालक प्रसन्न होकर तालियां बजाते हैं)

       (बाड़ी का दृश्य)

प्रसंग - बालक घासीदास एवं अन्य बालवृंद, बुधारू को जीवन दान, पक्षी को जीवन दान, किशोरावस्था में नागर महिमा।
पात्र - घासीदास, बुधारू, धजा दास, सुकरीत, भुवन लाल, भागचंद, धनवा, गोपाल मरार, एवं ग्रामीण महिला, पुरुष।
वेशभूषा - घासी, भाल में तिलक, घुंघराले बाल, स्वेत वस्त्र, अन्य बच्चे भी ग्रामीण परिवेश में।

       (घासीदास अपने बाल सखाओं के साथ खेल - खेल में उपदेशासत्मक बातें कहतें हैं, अन्य बाल सखा उनके (घासी) का मजाक उड़ाते हैं तो कभी साथ में नहीं खेलने की बात कहते हैं। कभी मित्र मंडली का नायक बनातें हैं। खेल में हाथी, घोड़ा, गुल्ली डंडा आदि  खेलते हुए एक बालक गन्ना तोड़ कर खाने की इच्छा व्यक्त करता है)

धनवा - मित्रों देखो उस बाड़ी में (बाड़ी की ओर उंगली दिखाकर) रसदार गन्ना लगा है हम सबको चलना चाहिए,   गन्ना तोड़ने में मजा आएगा।
सुकरीत - मित्र का कथन उचित है, अवसर का लाभ लेना चाहिए। (जाने के उद्दत होते हैं)
घासीदास - सुनिए मित्र, यह काम मुझसे नही होगा, दूसरे का धन धुल के समान है।
बुधारू - नहीं हम लोग चोरी नहीं कर रहे हैं। बस गन्ना तोड़ कर खाएंगे।
घासी - दूसरे के धन या वस्तु पर लालच नहीं करना चाहिए।
सुमरन - घासी हे मित्र, चलना है तो चलिए, हम लोग जा रहे हैं।
बुधारू - मित्रों, घासी तो महात्मा बने फिरता है।
विशाल - चलिए घासी, बाद में उपदेश देना।
सुखलाल - हमने एक दिन गन्ना मांगे तो, खानदान को गिनाने लग गया। मांगने पर नहीं देते। चलो अब - ( बालकों का दल गन्ना बाड़ी में घेरा तोड़कर प्रवेश करते हैं बाहर से घासी खड़े - खड़े सब उपद्रव देख रहा है)
धजादास - ( घासी को दूर खड़ा देख कर गन्ना लाकर देता है) लो घासी गन्ना। (पकड़ा देते हैं)
बुधारू - (बाड़ी में मोटा गन्ना देखकर झुरमुट में पैर रखता है काला नाग पैर को डस देता है) ओह् बचाओ, स््स््सांप---! ( सभी मित्र बुधारू के पास आते हैं)
सुधेलाल - (बुधारू काफी डरा हुआ है, और पसीना - पसीना हो जाता है,  मित्रगण हवा देते हैं) डरो मत मित्र! अन्य मित्रों के सहयोग से बाड़ी से बाहर वृक्ष के नीचे लाकर लेटातें है)
घासी - ( बुधारू के पास आकर पूछने पर मित्र बताते हैं कि सांप डस दिया है बुधारू के सिर पर हाथ रख कर) डरना नहीं मित्र।
( चूंकि बालक घासी अपने दादा सगुन दास को उपचार करते देखा व समझा रहता है औषधियां और नाड़ी ज्ञान बाल अवस्था से रहता है उस ज्ञान परीक्षण का अवसर आ गया यह सोचकर औषधि से उपचार पर विचार करते हुए कुछ दूर झाड़ियों की ओर निकल जाते हैं)
धनवा - बुधारू-- बुधारू ( बेहोशी की स्थिति में, बुधारू को देख कर मित्रगण डर जातें हैं सर्प डसने की  घटना  सुन - सुनकर ग्रामीण आ रहे हैं अचेतना अवस्था में  बुधारू के मुख से झाग निकलता है)
      (किसान गोपाल मरार बाड़ी से गन्ना उजाड़ने की बात सुनकर आवेश में बड़बड़ाते आते हैं)
गोपाल किसान - (भीड़ को देखकर नजदीक पहुंच कर मूर्छित पड़े बुधारू को देखते ही तमतमाए चेहरा, उतर जाता है) क्या हुआ है ?
ग्रामीण - यह बुधराम का लड़का बुधारू है। इसे सर्प डस दिया है।
गोपाल किसान - (बुधारू के नाड़ी टटोलते हैं) लगता है इनकी सांस थम चुका है!
(भीड़ बुधारू को करूण निगाह से देख रहे हैं, संबंधी सिसकने लगतें हैं। भीड़ को चीरते हुए  बालक घासीदास, बुधारू के निकट  पहुंचते हैं।
घासी दास - ( बुधारू के नाड़ी छूते व  नेत्रों को खोलकर देखते हैं समझ गया जहर का प्रभाव इन्द्री तक होने से शरीर शून्य पड़ा है ) सत्पुरुष को स्मरण कर ढूंढ कर लाए औषधि से उपचार करते विष नाशक औषधि के रस को मुंह में डालते हैं, और जल के बूंदें डाल कर शेष जल को शरीर में छिड़कते व जड़ी को पत्थर से कुचकर डसे जगह घाव पर बांध देते हैं  थोड़ी देर में बुधारू के शरीर में हलचल होता है आंखे खुल जाती है फिर उठ बैठता है)
ग्रामीण  - देखकर सभी चकित रह जाते हैं घासी को  कोई अवतारी पुरुष कहता है, कोई धन्यवाद दें रहा हैं, गोपाल मरार धन्य हो लाल कहते घासी को गले लगा लेता है)

      खेत का दृश्य, नागर महिमा - 

(आषाढ़ मास की प्रारंभिक तिथि में वर्षा होते ही बीज, हल, बैल लेकर, गोपाल मरार अपने खेतीहर मजदूरों के साथ खेत की ओर प्रस्थान करते हैं। साथ में पूजा की सामग्री खेत में बली देने एक बकरा  बांध रखें हैं। मजदूरों के समुह में युवा घासी दास भी है )
गोपाल मरार - (अपने एक नौकर से)  चलिए पूजा, एवं बली देने की तैयारी करो। 
नौकर - हां ठीक है मालिक।
गोपाल मरार - जल्दी करो पूजा के बाद बकरे की बली चढ़ानी है।
घासी - (गोपाल मंडल से पूछते हैं)  बली  न देने पर क्या होता है?
गोपाल मरार - प्रथम बोंवाई और हल चलाने  पर बली देते हैं घासी, जिससे कोई अनहोनी न हो।
घासी - पहले कभी घटना घटी है?
गोपाल मरार - नहीं, परंतु परंपरा पूर्वजों से चली आ रही है।
घासी - कोई भी परंपरा को आंख बंद कर नहीं मानना चाहिए।
गोपाल मरार - पीढ़ी से चली आ रही परंपरा को छोड़ नहीं सकते।
घासी -  किन्तु गौंटिया, जीव हत्या करना पाप है।
गोपाल मरार  - बलि देने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। 
घासी - गौंटिया! विचार कीजिए, धरती का स्वाभाव है, बादल बरसते वनस्पतियां उग आती है।
गोपाल मरार - ( गोपाल को बात जंची नहीं )  हमारे कुलईष्ट को मनाना पड़ता है घासी! (नौकर से पूजा प्रारंभ करने का इशारा करते)
घासी - मेरी प्रार्थना है, मूक पशु पर दया कीजिए।
गोपाल - ठीक है, बलि नहीं दूंगा, अनहोनी पर जिम्मेदारी कौन होगा।
घासी - (आंतरिक मन से खुशी व्यक्त करते) मन से अनावश्यक भय निकाल दीजिए।
गोपाल - अच्छा फिर  पहले स्वयं बोंवाई करो।
घासी - आपका जो आदेश मंडल! (घासी! बोरा से एक टोकरी धान निकाल कर पांच एकड़ बाहरा डोली सींचते हैं जो पूरा होने के बाद टोकरी में बच भी जाता है। संदेह वश खेत के चारों ओर घूम कर देखते हैं सभी दिशा बीज बिखरा मिला। विस्मित भाव से अपने आप से कह रहा है  यह कैसे संभव है!)
नौकर - ( हल चलाना शुरू करते हैं) अर, अर - तता त।
( अड़ियल बैल चलने के बजाय बैठ जाता है नौकर  बैल को डंडे से मारता है फिर भी नहीं चलता)
गोपाल - अब देखो घासी, बलि देने से मना किया उसका परिणाम। रूठे ईष्ट देव बैल को चलने नहीं दे रहा है।
नौकर - ( उठाकर चलाने की कोशिश करता है और बैल को फिर मारता है ) उठ, तता, त, तता, त। (बैल नहीं उठा)

घासी - मत, मारो मत, मारो किसी भी  प्राणी को मारना पाप है।
नौकर - ( आक्रोशित होते ) अच्छा, फिर खेत पर हल चलाओ, उपदेश देते फिरते हो।
घासी - दीजिए, मुझे ( नथे हुए बैलों की दिशा बदल कर फ़िर नथता है, स्नेह से  सेवा, कर्म पूरा करो, मार क्यों खा रहे हो? कहते बैलों के पीठ सहलाते हैं  और हल का मुठ  पकड़ कर हांकने है) तता त, अर अर, अर ( दोनों बैल फर्राटा चलने लगा)
गोपाल मरार -  गोपाल मरार घासी को कोई अवतारी पुरुष मानकर मन ही मन नमन् करते हैं (सब आश्चर्य से देख रहे हैं,  यह चमत्कार कैसे हो रहा है? एक टोकरी धान, पांच एकड़ बाहरा डोली में बोना, अड़ियल बैल से हल चलाना, बुधारू का जीवन दान कहते, आपस में कानाफूसी हो रहें हैं) धन्य हो घासी! कोई लीला तो नहीं दिखा रहें हैं?


              अनिल जांगड़े 'गौंतरिहा'

मानक का आशय व महत्व

विश्व मानक दिवस की बधाई 

    मानक एक तरह से शुद्धता का प्रतीक  हैं। वस्तु हो या आचार - विचार इनमें शुद्धता हो, तो विकास के नये आयाम तय होने की बाते की जाती रही हैं। पर सवाल यह है कि वैश्वीकरण के इस दौर में जहां जलवायु तक ग्लोबल वार्मिंग के चलते बदल रहे हैं। रेगिस्तान में बारिश और सघन वनप्रांतर में सुखा पड़ रहे हैं। इन सबसे निपटने‌ हाई ब्रीड तकनीक से खाद्यान्न और मानव प्रजाति ,पशु पक्षी आदि  को बचाने अन्तर्जातिय विवाह, कृत्रिम गर्भाधान क्लोन आदि  की आवश्यकता हैं। अन्यथा शुद्धता के मोह में ऊपज और प्रजनन प्रभावित होने लगे है। फलस्वरुप शैन: शैन: विलुप्ति के कगार पर पहुंच रहे हैं। इनमें अनेक फसलें ,पशु पक्षी व मानव प्रजातियाँ भी हैं। 
     वर्तमान समय में  आचार - विचार , रहन- सहन, खान -पान भी बहु सांस्कृतिक रुप से निर्वहन किए जा रहे हैं। भाषाएँ भी अब सर्वाधिक मिश्रित स्वरुप में व्यवहृत हैं। इन सबमें मानक या  शुद्धता बनाए रखना  अब समीचीन नहीं हैं। बल्कि बातें लोगों को समझ में आए और  काम चलता रहे यह सर्वाधिक व्यवहृत होने लगे हैं।
                      हा हर किसी के प्रचलन में मानक तय करने होंगे जो प्रसंगानुकूल व समयानुकूल हो न कि जो अव्यावहारिक और लोगों को समझ में न आने वाली हो।
      मानक एक नियम मात्र है जिनके द्वारा व्यवस्था को कायम करने तय किये जाते हैं इस अर्थ में इनका व्यवहार अपेक्षित है न कि मात्र  शुद्धता के लिए। इसके लिए अब  समय और संशाधन नष्ट नहीं किए जा सकते - 
छत्तीसगढ़ी में शुद्धता से अधिक पावनता के लिए "आरुग"  शब्द हैं। पर वह भी दुनियां में कही नहीं हैं। एक मुग्धकारी पंथी गीत द्रष्ट्व्य है -

मैं कहवां ले लानव हो आरुग फूलवा 
बगिया के फूल ल भंवरा जुठारे हे 
गाय के गोरस ल बछरु  जुठारे हर 
नंदिया के पानी ल मछरी जुठारे हे 
कोठी के अन्न ल सुरही जुठारे हे 
मन के भाव हवय पबरित ओही ल चढावव ...

ऐसे ही अनेक शब्द और भाव तो  है  ( मानव की परिकल्पनाओं में है , उसे व्यक्तिगत अनुभूत हो सकता है ) पर वास्तव में वह कही नहीं हैं ,वे अस्तित्व विहिन है इस क्रम में अमृत ईश्वर स्वर्ग आदि हैं। पर इसे अर्जित करने की चाह लिए सदियों से मानव प्रजाति उत्कट यात्रा जारी हैं।   
            मन के भाव और समझ ही अत्युत्तम है। जिससे मानव जीवन का निर्वाह हो और उनके भूख चाहे पेट या मस्तिष्क का हो  उसे मिटाने अन्न हाइब्रिड तकनीक से अधिकाधिक मात्रा में ऊगाए और प्रभावी भावाभिव्यक्ति हेतु  अनेक भाषाओं के शब्दों का समन्वित स्वरुप व्यवहृत हो क्योंकि अव नेट मोबाईल जैसे उच्चतम तकनीक और अनेक सुविधाओं के चलते मनुष्य वैश्विक हो चूके हैं। आने वाली पीढ़ी और भी अधिक मेधा शक्ति सम्पन्न होन्गे उनकी अभिव्यक्ति और भी अधिक मुखर और  वृहत्तर होंगे फलस्वरुप वही भाषा  सर्वाधिक व्यवहृत  होंगे जो मानक और प्रभावी व सरल - सहज  होंगे । 
               - डाॅ. अनिल भतपहरी/ 96177514

Thursday, October 13, 2022

गुरुघासीदास फिल्म स्क्रीप्ट ४

*गुरु घासीदास फिल्म पटकथा*

      भाग चार। (बाड़ी का दृश्य)

प्रसंग - बालक घासीदास एवं अन्य बालवृंद, बुधारू को जीवन दान, पक्षी को जीवन दान, किशोरावस्था में नागर महिमा।
पात्र - घासीदास, बुधारू, वीर सिंग, शुकलाल, विशाल, समारू, गोपाल मरार, एवं ग्रामीण महिला, पुरुष।
वेशभूषा - घासी, भाल में तिलक, घुंघराले बाल, स्वेत वस्त्र, अन्य बच्चे भी ग्रामीण परिवेश में।

     (घासीदास अपने बाल सखाओं के साथ खेल - खेल में उपदेशासत्मक बातें कहतें हैं, अन्य बाल सखा उनके (घासी) का मजाक उड़ाते हैं तो कभी साथ में नहीं खेलने की बात कहते हैं। कभी मित्र मंडली का नायक बनातें हैं। खेल में हाथी, घोड़ा, गुल्ली डंडा आदि  खेलते हुए एक बालक गन्ना तोड़ कर खाने की इच्छा व्यक्त करता है)

विशाल - मित्रों देखो उस बाड़ी में (बाड़ी की ओर उंगली दिखाकर) रसदार गन्ना लगा है हम सबको चलना चाहिए,   गन्ना तोड़ने में मजा आएगा।
समारू - मित्र का कथन उचित है, अवसर का लाभ लेना चाहिए। (जाने के उद्दत होते हैं)
घासीदास - सुनिए मित्र, यह काम मुझसे नही होगा, दूसरे का धन धुल के समान है।
बुधारू - नहीं हम लोग चोरी नहीं कर रहे हैं। बस गन्ना तोड़ कर खाएंगे।
घासी - दूसरे के धन या वस्तु पर लालच नहीं करना चाहिए।
सुकलाल - घासी हे मित्र, चलना है तो चलिए, हम लोग जा रहे हैं।
बुधारू - मित्रों, घासी तो महात्मा बने फिरता है।
विशाल - चलिए घासी, बाद में उपदेश देना।
सुखलाल - हमने एक दिन गन्ना मांगे तो, खानदान को गिनाने लग गया। मांगने पर नहीं देते। चलो अब - ( बालकों का दल गन्ना बाड़ी में घेरा तोड़कर प्रवेश करते हैं बाहर से घासी खड़े - खड़े सब उपद्रव देख रहा है)
वीर सिंग - ( घासी को दूर खड़ा देख कर गन्ना लाकर देता है) लो घासी गन्ना। (पकड़ा देते हैं)
बुधारू - (बाड़ी में मोटा गन्ना देखकर झुरमुट में पैर रखता है काला नाग पैर को डस देता है) ओह् बचाओ, स््स््सांप---! ( सभी मित्र बुधारू के पास आते हैं)
वीर सिंग - (बुधारू काफी डरा हुआ है, और पसीना - पसीना हो जाता है,  मित्रगण हवा देते हैं) डरो मत मित्र! अन्य मित्रों के सहयोग से बाड़ी से बाहर वृक्ष के नीचे लाकर लेटातें है)
घासी - ( बुधारू के पास आकर पूछने पर मित्र बताते हैं कि सांप डस दिया है बुधारू के सिर पर हाथ रख कर) डरना नहीं मित्र।
( चूंकि बालक घासी अपने दादा सगुन दास को उपचार करते देखा व समझा रहता है औषधियां और नाड़ी ज्ञान बाल अवस्था से रहता है उस ज्ञान परीक्षण का अवसर आ गया यह सोचकर औषधि से उपचार पर विचार करते हुए कुछ दूर झाड़ियों की ओर निकल जाते हैं)
विशाल - बुधारू-- बुधारू ( बेहोशी की स्थिति में, बुधारू को देख कर मित्रगण डर जातें हैं सर्प डसने की  घटना  सुन - सुनकर ग्रामीण आ रहे हैं अचेतना अवस्था में  बुधारू के मुख से झाग निकलता है)
      (किसान गोपाल मरार बाड़ी से गन्ना उजाड़ने की बात सुनकर आवेश में बड़बड़ाते आते हैं)
गोपाल किसान - (भीड़ को देखकर नजदीक पहुंच कर मूर्छित पड़े बुधारू को देखते ही तमतमाए चेहरा, उतर जाता है) क्या हुआ है ?
ग्रामीण - यह बुधराम का लड़का बुधारू है। इसे सर्प डस दिया है।
गोपाल किसान - (बुधारू के नाड़ी टटोलते हैं) लगता है इनकी सांस थम चुका है!
(भीड़ बुधारू को करूण निगाह से देख रहे हैं, संबंधी सिसकने लगतें हैं। भीड़ को चीरते हुए  बालक घासीदास, बुधारू के निकट  पहुंचते हैं।
घासी दास - ( बुधारू के नाड़ी छूते व  नेत्रों को खोलकर देखते हैं समझ गया जहर का प्रभाव इन्द्री तक होने से शरीर शून्य पड़ा है ) सत्पुरुष को स्मरण कर ढूंढ कर लाए औषधि से उपचार करते विष नाशक औषधि के रस को मुंह में डालते हैं, और जल के बूंदें डाल  कर शेष जल को शरीर में छिड़कते हैं जड़ी को पत्थर से कुचकर डसे जगह पर बांध देते हैं  थोड़ी देर में बुधारू के शरीर में हलचल होता है आंखे खुल जाती है फिर उठ बैठता है)
ग्रामीण  - देखकर सभी चकित रह जाते हैं कोई अवतारी पुरुष कहता है, कोई धन्यवाद दें रहा हैं, धन्य हो लाल कहते गोपाल मरार घासी को गले लगा लेता है)

खेत का दृश्य, नागर महिमा - 
(आषाढ़ मास की प्रारंभिक तिथि में वर्षा होते ही बीज, हल, बैल लेकर, गोपाल मरार अपने खेतीहर मजदूरों के साथ खेत की ओर प्रस्थान करते हैं। साथ में पूजा की सामग्री खेत में बली देने एक बकरा  बांध रखें हैं। मजदूरों के समुह में युवा घासी दास भी है )
गोपाल मरार - (अपने एक नौकर से)  चलिए पूजा, एवं बली देने की तैयारी करो। 
नौकर - हां ठीक है मालिक।
गोपाल मरार - जल्दी करो पूजा के बाद बकरे की बली चढ़ानी है।
घासी - (गोपाल मंडल से पूछते हैं)  बली  न देने पर क्या होता है?
गोपाल मरार - प्रथम बोंवाई और हल चलाने  पर बली देते हैं घासी, जिससे कोई अनहोनी न हो।
घासी - पहले कभी घटना घटी है?
गोपाल मरार - नहीं, परंतु परंपरा पूर्वजों से चली आ रही है।
घासी - कोई भी परंपरा को आंख बंद कर नहीं मानना चाहिए।
गोपाल मरार - पीढ़ी से चली आ रही परंपरा को छोड़ नहीं सकते।
घासी -  किन्तु गौंटिया, जीव हत्या करना पाप है।
गोपाल मरार  - बलि देने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। 
घासी - गौंटिया! विचार कीजिए, धरती का स्वाभाव है, बादल बरसते वनस्पतियां उग आती है।
गोपाल मरार - ( गोपाल को बात जंची नहीं )  हमारे कुलईष्ट को मनाना पड़ता है घासी! (नौकर से पूजा प्रारंभ करने का इशारा करते)
घासी - मेरी प्रार्थना है, मूक पशु पर दया कीजिए।
गोपाल - ठीक है, बलि नहीं दूंगा, अनहोनी पर जिम्मेदारी कौन होगा।
घासी - (आंतरिक मन से खुशी व्यक्त करते) मन से अनावश्यक भय निकाल दीजिए।
गोपाल - अच्छा फिर  पहले स्वयं बोंवाई करो।
घासी - आपका जो आदेश मंडल! (घासी! बोरा से एक टोकरी धान निकाल कर पांच एकड़ बाहरा डोली सींचते हैं जो पूरा होने के बाद टोकरी में बच भी जाता है। संदेह वश खेत के चारों ओर घूम कर देखते हैं सभी दिशा बीज बिखरा मिला। विस्मित भाव से अपने आप से कह रहा है  यह कैसे संभव है!)
नौकर - ( हल चलाना शुरू करते हैं) अर, अर - तता त।
( अड़ियल बैल चलने के बजाय बैठ जाता है नौकर  बैल को डंडे से मारता है फिर भी नहीं चलता)
गोपाल - अब देखो घासी, बलि देने से मना किया उसका परिणाम। रूठे ईष्ट देव बैल को चलने नहीं दे रहा है।
नौकर - ( उठाकर चलाने की कोशिश करता है और बैल को फिर मारता है ) उठ, तता, त, तता, त। (बैल नहीं उठा)

घासी - मत, मारो मत, मारो किसी भी  प्राणी को मारना पाप है।
नौकर - ( आक्रोशित होते ) अच्छा, फिर खेत पर हल चलाओ, उपदेश देते फिरते हो।
घासी - दीजिए, मुझे ( नथे हुए बैलों की दिशा बदल कर फ़िर नथता है, स्नेह से  सेवा, कर्म पूरा करो, मार क्यों खा रहे हो? कहते बैलों के पीठ सहलाते हैं  और हल का मुठ  पकड़ कर हांकने है) तता त, अर अर, अर ( दोनों बैल फर्राटा चलने लगा)
गोपाल मरार -  गोपाल मरार घासी को कोई अवतारी पुरुष मानकर मन ही मन नमन् करते हैं (सब आश्चर्य से देख रहे हैं,  यह चमत्कार कैसे हो रहा है? एक टोकरी धान, पांच एकड़ बाहरा डोली में बोना, अड़ियल बैल से हल चलाना, बुधारू का जीवन दान कहते, आपस में कानाफूसी हो रहें हैं) धन्य हो घासी! कोई लीला तो नहीं दिखा रहें हैं?

                     अनिल जांगड़े 'गौंतरिहा'

Wednesday, October 12, 2022

कुवांर पुन्नी के बधाई

#anilbtapahari 

आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

     ।। कुंवार पुन्नी के बधई।।

फिटिक अंजोर चंदा के  होथंय दवई 
संग म मिंझार के  खा  लेबोन तस्मई
निक लागय गीत -भजन कथा कहई
सकलाये सब  लागमानी अंगना सुहई 
बने रहय  असीस  हे हमर गाँव- गंवई
जम्मों ल कुंवार पुन्नी के अघादेच बधई

           बिंदास कहे - डॉ. अनिल भतपहरी

गुरुघासीदास फिल्म स्क्रीप्ट ‌

प्रस्तावित गुरु घासीदास डाक्यूमेंट्री /फिल्म पटकथा लेखन 

सतनाम धर्म संस्कृति  भारतवर्ष  की  प्राचीन संस्कृति हैं‌। इनकी अवशेष हमें सिन्धु घाटी सभ्यता में दिग्दर्शन होते हैं। हालांकि उनकी लिपि पढ़ी नहीं ग ई हैं। और वह सभ्यता जमींदोज हो ग ई पर जो उत्खनन से बाहर निकले है उ‌न वस्तुएँ और तथ्यों का प्रचलन इसके अनुयायियों के जीवन वृत्त में सहज नज़र आते हैं। 
     अरावली पहाड़ी के तलहटी में अवस्थित नारनौल रेवाड़ी सतनामियों का  केन्द्र स्थल रहा है जो कि सिन्धु घाटी सभ्यता के निकटवर्ती परिक्षेत्र है ।  सतनामियों बसाहट पंजाब सिंध दिल्ली और मथुरा के आसपास रहा हैं।  1662 में सतनामियों के साथ मुगल सम्राट औरंगज़ेब का शाही सेना का भीषण  संग्राम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। 
     युद्धोपरान्त स्वाभिमानी वीर योद्धा सतनामियों का आव्रजन देश के अलग- अलग क्षेत्रों  में हुआ । एक परिवार मेदनीराय गोसाई के नेतृत्व में दक्षिण कौशल स्थित  सोनाखान रियासत के  सुकली  वन्य ग्राम में हुआ।  जहाँ पर वन घास काट कर गाँव बसाए गये और आबाद हुए।

         दृश्य - 1 
     कलान्तर में महंगूदास जी विवाह समीप ग्राम मड़वा के पुरैना परिवार जो रतनपुर राजा के नेगी थे के घर जन्मी कन्या अमरौतिन से हुआ - 

    इस प्रसंग को नाट्य रूपांतरण कर संवाद शैली में लिखें।

पात्र - मेदनीराय गोसाई पुत्र सगुनदास - पुत्र महंगूदास , अमरौतिन उनके पिता- माता और कुछ ग्रामीण 

प्रसंग - नवयुवक महंगूदास का लगन एंव  विवाह ....

      दृश्य - 2 

 अमरौतिन व महंगूदास दो पुत्र ननकू - मनकू जन्म के बाद अकाल के चलते  गिरौदपुरी के झलहा मंडल के यहाँ आकर रोजी- मजुरी करना ... और  यहाँ बालक घासीदास का जन्म ...

दृश्य - 3 

 अमरौतिन बिछोह और करुणा माता का आगमन 
पात्र - महगू अमरौतिन झलहा मंडल ग्रामीण स्त्री पुरुष एंव मंडल गोपाल मरार करुणा माता 



    दृश्य 4 - बाल  महिमा 

      बुधारु , समारु , समेदास , मोहन  एंव अन्य बालवृंद 
      
    गिल्ली डंडा खेल में घायल चिड़िया का उपचार , सर्पदंश बुधारु का उपचार ...किशोर उम्र में    नागर महिमा 


दृश्य - 5 विवाह 
 महगूदास करुणा माता ननकू मनकू घासी सफूरा अंजोरदास दोनो तरफ के ढेड़ा सुवासिन व अन्य बराती व घराती 

  दृश्य - 6 
      सुखमय वैवाहिक जीवन सहोद्रा माता जन्म अम्मरदास जन्म, बालकदास जन्म ,आगरदास जन्म ...
     अम्मरदास जी का बिछोह सफूरा का रुदन  व घासीदास का तीर्थाटन .

  दृश्य 7 

जगन्नाथपुरी सहित यात्रा
    यात्री दल और उनसे वार्तालाप 

 के धार्मिक स्थलों का दर्शन और गुरुघासीदास द्वारा सूक्ष्म निरीक्षण 

   दृश्य  8

- मंदिर. मंदिरवा म का करे जाबोन अपन घट के देव ल मनाइबोन  और सागर तट पर  ... मनखे ए पार के होय या ओ पार के करिया होय कि गोरिया मनखे मनखे एक बरोबर आय।
     अमृतवाणी कथन वापसी 
     
दृश्य  9 -
 चंद्रसेनी मंदिर में पशुबलि देखना और आक्रांत होना 

दृश्य - 10

  गुरुघासीदास जी की  तपस्या एंव सतनाम पंथ प्रवर्तन कीजिए उद्धोषणा ।

 दृश्य -11-
    तेलासी + भंडारपुरी आगमन और धर्मोपदेश व महल बाडा निर्माण 

     दृश्य 12  रामत रावटी 
 गुरुघासीदास द्वारा सतनामी पंथ का प्रचार - प्रसार हेतु महत्वपूर्ण रामत एंव चिरईपदर , दंतेवाड़ा कांकेर  पर रावटियां - एंव अमृतवाणी व धर्मोपदेश 
          
  दृश्य 13 -  रामत  रावटी 
पानाबरस  डोंगरगढ़ , भंवरदाह में धर्मोपदेश व सतनाम पंथ में दीक्षा  

14  रामत - रावटी 
     भोरमदेव रतनपुर एंव दल्हापहाड़ 
   इन रामत रावटी में पंथी गीत मंगल भजन एंव बोध कथाओं का प्रचलन ...

    दृश्य - 15 
      गुरु अम्मरदास व बालकदास का विवाह एंव अम्मरदास जी का तेलासी में महासंगम कर पंथ प्रवर्तन 

     दृश्य 16 
    अम्मरदास जी सतनाम पंथ प्रचार हेतु रामत यात्रा  एंव चटुआ घाट में समाधि 

       दृश्य - 17
        गुरु बालकदास का राज्याभिषेक व एंव समाजिक संगठन   हेतु साटीदार भंडारी व महंत पदो की व्यवस्था 

         दृश्य 18
     मोतीमहल भंडारपुरी का उद्धाटन  आखाड़ा एंव गुरुदर्शन मेला का प्रारंभ 

          दृश्य 19

  बोड़सरा बाड़ा से सतनाम पंथ का संचालन व सतनाम शोभयात्रा का प्रचलन 
           
            दृश्य 20

   गुरुघासीदास अंतिम धर्म दीक्षा उपदेश एंव अज्ञातवास हेतु  गिरौदपुरी के छातापहाड़  प्रयाण ... अन्तर्ध्यान  
      
            इस तरह गुरुघासीदास बाबा जी के 94 वर्षो की जीवन यात्रा के  प्रेरक प्रसंगों का फिल्मांकन कर सकते हैं। 
    प्रति एपिसोड 30 मिनट का होगा तो 10 घंटे का शानदार प्रेरक फिल्म या वृत्त चित्र बनाए जा सकते हैं। 

       - डा. अनिल कुमार भतपहरी

Tuesday, October 11, 2022

छायावाद और मुकुट धर पांडेय

छायावाद और मुकुटधर पांडेय 

    हिन्दी साहित्य में छायावाद का कालखंड अतिशय महत्वपूर्ण हैं। बिन इनके साहित्य का अध्ययन अध्यापन या विचार विमर्श संभव नही है।  सच कहे तो इस  कालखंड मे हिन्दी जिसे खड़ी बोली कहे जाते है और काव्य के लिए अनुपयुक्त वह धारणा बदली और हिन्दी भाषा प्रांजल और   काव्यमय हुई।   
        हालांकि कोमल कांत पदावलि और बढते संस्कृत निष्टता के चलते भाषा दुरुह जटिल हुई तथा कविता रहस्यमय होकर गुंफित भी हुई पर यह जटिलता ही भाषाई संरचना और भाव विन्यास को गहराई से समझने की व्यापाक दृष्टि भी प्रदान की।
    छायावाद मे जो पश्चिम की  मिस्टीसिज्म या रुमानियत और इस्लामिक सूफियाना फलसफा दिखता है उससे यह बेहद प्रभावी और वैश्विक स्तर पर चिन्हाकित भी की गई  ।
    इस छायावाद के प्रवर्तक कवियों मे छत्तीसगढ के रायगढ़ जिला के महानदी तटवर्ती बालपुर ग्रामवासी कविवर पं. मुकुटधर पांडे अग्रणी है। कुर्री के प्रति  काव्यांश का यह भाव देखिए जिसमेञ  छायावाद के विशेषताएं समाहित है-

 शून्य गगन में कौन सुनेगा तेरा विपुल विलाप ?
बता कौन सी व्यथा तुझे है , है किसका परिताप ?    (१ मुकुट धर पांडे व्यक्ति एंव रचना  - संपा महावीर अग्रवाल  पृ ४१०)
    यह प्रश्न वियोगी कवि  का प्रश्न है जिनकी उत्तर खोजा जाना शेष है।
   कविवर पंत जो छायावाद के बड़ा नाम है वो तो स्पष्ट कहा है -

वियोगी होगा पहला कवि आह से ऊपजी होगी गान ।
नैनो से उमड़ कर चुपचाप बही होगी कविता अनजान ।।   (२)

हालांकि छायावाद और उनके प्रवर्तक के नाम पर काफी प्रवाद है ।यह नाम साहित्य जगत  चल पड़ा पर किसने सबसे पहले उपयोग किया इन पर भी बहसे आज तक की जाती  हैं, फलस्वरुओ लोगों मतैक्य नहीं है।
    सन १९२० में ' श्री शारदा ' पत्रिका जबलपुर से निकलती थी उसमें ' हिन्दी कविता में छायावाद शीर्षक से एक लेख माला पंं. मुकुटधर पांडेय की छपी। उसके माध्यम से पहली बार " छायावाद " शब्द और छायावादी काव्यान्दोलन को लेकर प्रमाणिक तौर पर विस्तृत रुप से सामाग्री सामने आई। " इसी तरह हितकारिणी पत्रिका मे -"हिन्दी कविता में छायावाद " निकली।  ,( पृ3 वही पृ 438 )इस आधार पर  उन्हे छायावाद नाम देने वाले कहे जा सकते है।
     और तो कविवर पांडे जी  उस अज्ञात सत्ता और शहर का श्रोता बनकर हमारे समक्ष सुनाने आ जाते है - 
    सुना , स्वर्णमय भूमि वहां की मणिमय है आकाश ।
वहां न तम का नाम कहीं है, रहता  सदा प्रकाश ।।   ( ४ वही पृ ४११)

    बालपुर ग्राम मे निर्भय और निसंक निवासरत थे । भौतिक  अभावों के बीच प्राकृतिक संशाधनों और आत्मीय संपदा के वे मालगुजार थे फलस्वरुप ग्राम वैभव उनकी कविता द्रष्ट्व्य है - 

शांति पूर्ण लघु ग्राम बड़ा ही सुखमय होता भाई। 
देखों नगरों से भी बढ़कर इनकी शोभा अधिकाई ।। ( ५  वही  पृ ४१९ )
      मुकट धर पांडे जी की मूल्याकंन बच्चू जांजगिरी ने की फलस्वरुप उनकी  ख्याति चतुर्दिक फैली अन्यथा उनकी अवदान सुदूर छत्तीसगढ़ के होने के कारण विस्मृत कर दिए गये होते । बहरहाल यहां के साहित्यिकों का यह नैतिक दायित्व है कि यशस्वी रचनाकारों की ओर भी नजर इनायत कर लिया करें। पता नही हमारे बौद्धिकों / अध्येताओं, रचना धर्मियो  यहां तक आध्यापकों को भी यह लगता है कि बड़ा फलक और रचनाकार केवल  गंगा हिमालय के भूभाग मे गोया कि वही सौन्दर्य बिखरा हुआ है और कही नही फलस्वरुप वहां बडे और प्रवर्तक रचनाकार होन्गे। पं . मुकुटधर जी इस मिथक को तोड़ते है। और छोटे से ग्राम मे रहकर वे वैश्विक साहित्य रचते है - 
दीन - हीन के अश्रु नीर में 
पतितों की परिताप पीर में
संध्या के चंचल समीर में 
करता था तू गान 
देखा मैने यही मुक्ति थी 
यही भोग था यही मुक्ति थी 
घर मे ही सब योग - युक्ति थी 
घर ही था निर्वाण । ६ वही , पृ ४१४ 
    इस तरह देखे तो उनकी रचनाएं  भाव प्रवण और भाषा बहुत ही उत्कृष्ट हैं।  उनकी रचनाओं  छायावाद और स्वच्छंदता स्पष्ट दृष्टिगोचर होते है 
।    
    उनकी रचनाओं छत्तीसगढ़ी शब्द और यहां की साञस्कृतिक तत्व अनायस देखने मिल जाते है। उनकी चर्चित व प्रतिनिधी कविता कुर्री के प्रति एक तरह से प्रवासी पक्षी का समूह है जो दूर देश आते है। उनकी उच्चरित  ध्वनि के कारण यहां उसे कुर्री कहते है को लक्ष्य कर उन्होने अप्रतिम काव्य रचना की और वह छायावाद की कविता के रुप में स्वीकृत की गई ।कुर्री कहने मात्र से ही छत्तीसगढ प्रदर्शित हो जाते है। महाकवि कालिदास कृत मेघदूत का छत्तीसगढ़ी अनुवाद दर्शनीय है। उनकी अनुवाद कला और छत्तीसगढ़ी शब्द संयोजन बेहद सटीक है। इस अनुवाद से सहज पता चलता है कि छत्तीसगढ़ी अनन्य भावों अभिव्यक्त कर सकने असीम क्षमता संस्कृत सदृश्य रखती है। 
     
भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मनित पांडेय जी प्रदेश के गौरव है । वे आने  वाली न ई पीढी के मार्ग दर्शक हैं।
       उन्हे शत -शत नमन 
    डा. अनिल कुमार भतपहरी 
          ( 9617777514)
             सचिव 
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर

Friday, October 7, 2022

कर कठिन कार्य

आपके वास्ते छकड़ी हमरी  

       कर कठिन कार्य 

सरल तो है जीना और  मरना 
हरदम उनकी बातें क्यों करना 
यूं  ही  भटकते  वक्त  गुजारते
कथा-कहानियाँ सुनते- सुनाते 
कर कठिन कार्य गर पाए उपलब्धि  
सार जीवन का मिले सुख-समृद्धि
      
   -बिंदास कहे  डॉ.अनिल भतपहरी

Thursday, October 6, 2022

भंडारपुरी गुरुद्वारा का जीर्णोद्धार ‌

।।भंडारपुरी गुरुद्वारा का जीर्णोद्धार ‌ की घोषणा ।।

         सतनाम धर्म- संस्कृति के केन्द्र स्थल‌ भंडारपुरी में मोती महल गुरुद्वारा का जीर्णोद्धार विगत 25 वर्षो  अपूर्ण‌ अवस्था में स्थगित हैं। उसे पूर्ण कराने प्रदेश के यशस्वी  मुख्यमंत्री मान. भूपेश बघेल जी द्वारा घोषणा स्वागतेय हैं। इसकी पूर्णता होने पर प्रदेश की शान में एक और नगीना जड़ जाएगा। मेला प्रबंधन व आयोजन हेतु प्रतिवर्ष दस लाख की घोषणा भी सुखद हैं।
     ज्ञात हो कि इस चौखंडा  भव्यतम महल गुरुद्वारा एक रुपक और दृष्टान्त की तरह बना हुआ हैं। जिनके शिखर के कंगुरे पर तीन बंदर और गरजते शेर फड़ काढे नाग और सप्त चक्र और त्रिशरण त्रिशुल के साथ  सोने की कलश था।   विजया एकादशी (दशहरा के दूसरा दिन ) को लाखों जनसमूह की उपस्थिति में पालो चढाये जाते हैं। ।‌ (जो विगत ढाई दशक से बंद हैं,केवल जैतखाम में ही चढ़ाकर रस्म निभा पा रहे हैं)
     ज्ञात हो इस पावन गुरुद्वारा के  दर्शन मात्र से  अनेक तरह की ज्ञान बोध होता था। यह ईमारत पुरी दुनियां मेञ अनुपम और अकेला था। इसका निर्माण गुरुघासीदास जी निर्देशन में उनके मंझले पुत्र राजा गुरुबालकदास जी ने 1820-25 के बीच करवाएं थे। 
        आज  जीर्णोद्धार की घोषणा  समाचार (एफ बी  लाइव देख सुन कर )  पाकर   मन हृदय प्रफूल्लित हुआ।

    सौभाग्य से हमने अपने कैमरा से 1993 में इसकी फोटो खीचें थे ।उसे ही विगत अनेक वर्षों से सोशल मीडिया में वायरल करते आ रहे हैं। नई पीढ़ी के लिए ये चित्र ही धरोहर साक्ष्य हैं कि कैसा स्वरुप था। 
       ।।जय सतनाम जय छत्तीसगढ़  ।।

चित्र - १गुरुद्वारा का विहंगम दृश्य २ तीन बंदर व शेर वाला कंगुरा और शिखर  कलश । ३ नवभारत समाचार पत्र

Sunday, October 2, 2022

सतनाम धर्म का प्रतीक

विजयदशमी भंडारपुरी गुरुदर्शन मेला  6-2-2022 के अवसर पर -

           ।।सतनाम धर्म का प्रतीक ।।

     मोती महल गुरुद्वारा भंडारपुरी के मंदिर शिखर में स्थित 4 दिशाओं की कंगुरे ! तीन में बंदर  ( असत न देखो , असत न सुनो और असत न कहो भाव मुद्रा ) और एक में गरजता शेर । बीच में फन काढ़े हुए नाग ।
    दोनो तरफ सप्त + सप्त चक्र एंव त्रिशरण । सफेद पालो । यह सतनाम धर्म का प्रतीक चिन्ह हैं जिसकी जानकारियाँ समस्त मानव समाज को होना चाहिए। 
   क्योंकि इतने में ही बहुत कुछ सार तत्व समाया हुआ है। इनका सार्वजनिक प्रदर्शन बिना कुछ कहे देखने मात्र से जन मानस को समझ में आ जाया करते थे। इसलिए भंडारपुरी में प्रतिवर्ष विशालकाय गुरु दर्शन दसहरा मेला का आयोजन होता हैं। जिसमें  हाथी ,घोड़े , ऊंट  व पैदल  चतुरंगिणी जुलुस शोभायात्रा होते हैं। सामने पंथी  शस्त्र चालन अखाड़ा का प्रदर्शन होते हैं। यह मंजर सम्राट अशोक का राजसी दंसहरा का स्मरण कराता हैं।  ज्ञात हो कि कलिंग विजय अभियान सम्राट अशोक ने समीपस्थ महानदी तट पर विराजित राजधानी सिरपुर से किया था। 
भंडारपुरी वहाँ से मात्र 10 कि मी दूर हैं। और महानदी तट से लगा ग्राम जुनवानी में सिरपुर कालीन  प्राचीन बौद्धिष्ट राज प्रसाद के अनन्य सेनापति गणों भट्टप्रहरियों का निवास स्थान हैं। (जहां 5 ग्राम  सिरपुर ,उजितपुर, जुनवानी , बरछा और गोटीडीह आबाद थे। ऊंजियार भट्टप्रहरी ख्यातिनाम सामंत थे जिनके पास काली फर्श के विराट खदान थे ।इनका इस्तेमाल सिरपुर के  मंदिरों , बौद्ध विहारों  और  आसपास के सामंतों मालगुजारो गौटिया लोगों के घर राजप्रसाद आदि निर्मित हुए हैं। क्योंकि ऐसा पत्थर आसपास 50 किलोमीटर के दायरे पर अन्यत्र नहीं पाए जाते ।)
    इन सबका विशद व्याख्या करने से पता चलता हैं कि सतनाम पंथ और प्राचीन सहजयान के बीच अन्तर्संबंध हैं। अन्वेषकों को इस दिशा में कार्य करना चाहिए ।
    इसका निर्माण गुरुघासीदास ने अपने पुत्र‌ बालकदास के राजा बनने के बाद 1820-25 के बीच करवाएं। और सामने दो विशालकाय साजा और सरई  का जैतखाम चांद - सूरज नाम का गड़ाए। चांद सुरज शुभ्र ज्योत स्वरुप हैं। कुंडलिनी जागरण में भी वह उर्ध्वाधर लंबवत होते हैं। 

         इस सबका आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से अतिशय महत्व हैं। जब भी सतनाम धर्म में गुरुद्वारा / मंदिर  बने इस आकृति का प्रतिकृति जरुर बनवाए ।
         ।‌।जय सतनाम ।।
   टीप -अधिक जानकारी हेतु हमारा शोध प्रबंध पर आधारित ग्रंथ गुरुघासीदास और उनका सतनाम पंथ अमेजान ‌फिल्पकार्ट व गुगल प्ले स्टोर्स से मंगवाए । पढ़े और पढवाए।     
    डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Saturday, October 1, 2022

हरि हरि

हरि हरि ...

परोसी घर चुरे 
अदौरी बरी 
फोरन माहके  
अंगना दुवारी 
खाथे ओमन 
तरी- तरी 
ललचाथे अउ 
लुलवाथे बिचारी 
नोनी के दाई 
खावय खरी 
तब सुनावय 
खरी खरी
गोठ गज़ब   
6फरी फरी 
फेर का करि 
उसरय नहीं
बनाय बर बरी 
जींव फंसे 
जस मछरी गरी 
उबुक- चुबुक 
उपलाएं फोही 
अकबकावत  
धंधाय भीतरी 
ओती सब बरी 
बोले हरि हरि 
सत्ता सेती पाए  
सुख सरी 
जेकर नहीं 
कटे दु:ख भरी 
करो उदिम 
पावो सत्ता सुन्दरी 
खावो मन पसंद 
रोज तरकारी 
मगन गावो नाचो 
पीटत जम्मों तारी 
हमला का हे 
काकर जरी 
करे कोन खरखरी 
त कोन ल   
धरे तरमरी 
काकर खौरे 
खावत खरतरी 
खोटबोन पर्रा भर 
हमन अदौरी बरी 
मानिस ले दे के सुवारी 
मगन अनिल भतपहरी 
गावै भजन  हरि हरि ...

-डॉ. अनिल भतपहरी