सतनाम- साहित्य एक परिचय
गुरुघासीदास द्वारा सतनाम -पंथ प्रवर्तन के साथ सप्त सिद्धान्त ,४२ अमृतवाणी, २७ मुक्तक ९ रावटी व अनगिनत उपदेश दृष्टान्त - अनुयायियों के सम्मुख अपने श्री मुख से नि:सृत किये ।वही उनके विशिष्ट शिष्यों के कंठ में विराजमान हुए ।तथा गुरुमुखी परंपरा के अनुरुप देश के अनेक भागों में निरन्तर प्रचार प्रसार किए वही सब पंथी गीत मंगल भजन चौका आरती गीत व लयात्मक उक्तियों और बोध व दृष्टान्त कथाओ के रुप में सतनाम साहित्य धारा जनमानस में अजस्र रुप से प्रवाहित होने लगी। कलान्तर में यह लिपिबद्ध होकर सर्व मंगल कामना से युक्त छत्तीसगढ़ी में शिष्ट साहित्य के रुप में चिन्हांकित हुई ।इन्हें अन्य भाषाओँ में लाकर व्यक्ति स्वतंत्रता और स्वाभिमान की महक को सर्वत्र महसूस कराने की आवश्यकता हैं। क्योंकि अठारहवीं सदी में भारतीय नवजागरण का जो स्वर उभरे उनमें सतनाम साहित्य ही स्वर सर्वाधिक मुखर रहे हैं-
मंदिरवा मं का करे ज इबोन
अपन घट के देव ल मनइबोन
कह जो जनजागरण की बाते कहीं गई वह अप्रतिम हैं।
जनमानस में भाग्य भगवान के प्रति अनास्था रुढ- मूढ प्रवृत्तियाँ और इनके नाम पर सामंत पंडे पुजारी व सुविधाभोगियों के विरुद्ध जो प्रतिरोधक चीजें आई उनमें इसी सतनाम साहित्य और गुरुघासीदास उनके पुत्रों एंव संत-महंत द्वारा चलाए सतनाम जागरण अभियान की भूमिका महत्वपूर्ण रहा हैं। इसका प्रभाव अब भी कायम हैं। बल्कि ज्यो ज्यो समाज शिक्षित होते जा रहे गुरु की वाणी और उपदेश त्यो त्यो साफ साफ समझ आते जा रहे हैं ।
गुरुघासीदास के समकालीन मेजर पी वान्स एग्नु द्वारा सुबे के प्रतिवेदन में गुरुघासीदास के प्रभाव परिलक्षित होते हैं। उनके अन्तर्ध्यान 1850 के दो दशक बाद 1868-70 मे विभिन्न अंग्रेज लेखक व अधिकारी जिनमे मि चिशोल्म ब्रिग्स हैविट बेगलर लोर जैसे डेढ़ दर्जन लेखक अधिकारी गुरुघासीदास के सतनाम जागरण अभियान और उनकी उपदेश शिक्षा से समाज में जो प्रभाव पड़ा पर सूचनात्मक आलेख प्राप्त होते हैं।
प्रदेश में सर्व शिक्षा के तहत साक्षरता आई तब अनुआईयों में कंठ दर कंठ वाचिक परंपरा मे आई । गुरु की अमृतवाणियां, उपदेश आदि लिपिबद्ध होने लगे। पंथ की वाणी ही पंथी गीत के रुप में कठस्थ रहे ।यही सतनाम साहित्य के रुप में ख्यातिनाम हैं।
जो कि सर्व मंगल कामना से युक्त मानवता की यश गाती हुई अमृतवर्षा करती लोक मंगल की कामना लेकर प्रस्फुटित है । जहां न दंभ न दर्प अपितु संसार की छण भंगुरता जीवन की नश्वरता माया के विस्तार और अनेक भ्रामक व मिथकीय स्थापनों व सडयंत्रों से बचाकर सत्य को उद्घाटित करती सरल- सहज जीवन निर्वाह के सुन्दर उपाय हैं।
सतनाम - पंथ ( धर्म ) से संदर्भित प्रकाशित रचनाओं व रचनाकारों का उल्लेख निम्नांकित हैं-
प्रबंध काव्य/ महाकाव्यात्मक स्वरुप
१ गुरुघासीदास चरित - पं सुखीदास
२ सतनामी महापुराण - पं सुन्दरलाल शर्मा १९०७
३ सतनाम - सागर - संत सतनाम दास १९२८
४ गुरुघासीदास नामायण - मनोहरदास नृसिंह १९६८
५अथ गुरुघासीदास सत्यायण - पं सखाराम बधेल ( १९७५)
६ सतनाम पोथी - सामायण - पं सुकुल दास धृतलहरे ( १९८९ )
७ गुरुबाबा घासीदास लीला - सुखरु प्रसाद बंजारे
८सतनाम धर्म ग्रंथ सतसागर - नम्मूराम मनहर २००४
९सत्यवंश सतनाम धर्म ग्रंथ - राजमहंत नंकेसर लाल टंडन २००४
१० श्री प्रभातसागर - डा मंगत रविन्द्र
११सतनाम पोथी २०१२
१२सतनाम सरित प्रवाह - डा अनिल भतपहरी अप्रकाशित पांडुलिपि में
खंडकाव्य -
१ सतनाम खंडकाव्य - डा मेधनाथ कन्नौजे
२ गुरुअम्मरदास जी - नम्मूराम मनहर
३ राजा गुरुबालकदास - नम्मुराम मनहर
४ सतनाम- संकीर्तन सुकाल दास भतपहरी
५ गुरु उपकार , गुरु उपकार - साधु बुलनदास
१९९२-९३
६ गुरुघासीदास सतवाणी - पुरानिक चेलक
७ गुरु घासीदास आरती संग्रह - नम्मुराम मनहर
८ मंगल भजन संग्रह - पं सखाराम बघेल
गुरुघासीदास पंथी मंगल - मनोहर दास नृसिंह
९ गुरुघासीदास चौका मंगल आरती
१० एक था सतनामी भाग १-२-३ पुरानिक चेलक
सहित अनेक पंथी मंगल भजन चौका आरती संग्रह प्रकाशित है।
गद्यात्मक सतनाम साहित्य -
१ सतनामी और सतनाम आंदोलन- डा शंकरलाल टोडर
२ सतनाम - दर्शन - इंजी टी आर खूंटे
३ गुरुघासीदास अमृतवाणी मुक्तक व रावटी - राजमहंत नयनदास कुर्रे
४गुरुघासीदास संधर्ष समन्वय व सिद्धांत - डां . हीरालाल शुक्ल
५ सतनाम के अनुयाई - डा जे आर सोनी
६ परम पूज्य गुरुघासीदास जी सद्ग्यान
७ सतनाम की दार्शनिक पृष्ठभूमि - डा जे आर सोनी
८ सतनाम पोथी - डा जे आर सोनी
९ सतनाम रहस्य - डा जे आर सोनी
१० गुरुघासीदास की देन - श्रीकांत दूबे
११ छत्तीसगढ़ राज्य और सतनामी समाज
१२ राजा गुरुबालकदास - नम्मुराम मनहर
१३ गुरुघासीदास लीला - बाबू खान
१४ पंथीगीत और राष्ट्रीय चेतना - डा जे आर सोनी
१५ सतनाम दर्शन भाग एक व दो - भाऊराम धृतलहरे
१६ पांखी -- सेवकराम बांधे
सहित अनेक स्वतंत्र पुस्तकें
१७ गुरुघासीदास और उनका सतनाम आन्दोलन - साधु सर्वोत्तम साहेब
१८ छत्तीसगढ़ में सतनाम आन्दोलन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण - प्रो पी डी सोनकर
१९ गुरुघासीदास का सतनाम आन्दोलन एक जनक्रांति - डा. दादूलाल जोशी
२० छत्तीसगढ़ के निर्गुण संत साहित्य में गुरुघासीदास का योगदान - डा अनिल कुमार भतपहरी ( शोध प्रबंध )
पत्र/ पत्रिका -
सत्यध्वज -
संपादक दादूलाल जोशी
सत्यालोक - डी एल दिव्यकार
सतनाम - संदेश - डा अनिल भतपहरी
सत्यदर्शन - घनारा म ढिन्ढे
सत्यदर्शन - डा आई आर सोनवानी
सत्यकिरण
सत्यसंदेश
जयसतनाम - प्रो पी डी सोनकर व देवचंद बंजारे
सतनाम पत्रिका १-१४ अंक संपादन - नम्मुराम मनहर
इस तरह देखे तो छत्तीसगढ़ी और हिन्दी में सतनाम धर्म संस्कृति और गुरुघासीदास चरित तथा सतनामी समाज के प्रमुख व प्रभावशाली व्यक्तित्व के ऊपर लेखन एक व्यक्ति स्वतंत्रता और सत्य निष्ठा पर आधारित सर्व कल्याण की मंगलकामनाएं करते लौकिक रुप से ऐतिहासिक उपलब्धि और घटनाओं का दस्तावेजी करण हैं।
इन सबके अनुशीलन से समकालीन छत्तीसगढ़ का वास्तविक रुप से दिग्दर्शन किया जा सकता हैं। इनके आधार पर कलान्तर में और भी प्रभावशाली साहित्य सृजन की आपार संभावनाएँ है। अनेक विश्वविद्यालय सतनाम साहित्य के ऊपर अनुसंधान कार्य को प्रोत्साहित भी कर रहे जिससे शोधकर्ताओं ने इस पर गंभीरतापूर्वक कार्य कर अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर कर रहे हैं। जो कि प्रशंसनीय हैं।
- डा. अनिल कुमार भतपहरी
सहायक संचालक उच्च शिक्षा विभाग रायपुर छत्तीसगढ़ शासन छ ग
सर, सतनाम पोथी को ऑनलाईन download kaise kare
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