Tuesday, April 9, 2019

वेद वादी / प्रतिवादी

[05/01 9:30 AM] Dr. anil bhatpahari: वेद असमानता के उदगाता है जबकि समानता वादी वेद विरोधी।
   तथाकथित सनातन संस्कृति भेदभाव पर आधारित वेदोन्मुखि हैं।
और वे उसे ब्रम्ह कृत मान कर जीव को कई योनियो में भटकाते हुए मोक्ष के लिए प्रयासरत भगवत कृपा हेतु कई कर्म कांड में लिप्त करते हैं।
जबकि  समानता वाली संत संस्कृति में  मानव को  सदगुणों को धारित कर समाज सापेक्ष सदाचरण करते हुए
    जीते जी परमपद या निर्वाण की प्राप्ति की सीख  हैं।
  पहले वाला  जीव या मनुष्य  एक स्वार्थी प्राणी  हैं जो भगवान की कृपा पाने उनकी भक्ति में लीन आसपास की (इहलोक की ) कोई परवाह नही करते और कल्पित परलोक  सुधारने में लगे हैं।
      दूसरा मनुष्य ईस्वर कर्मकांड  आदि से दूर संतो गुरुओ की सिख से  सदगुणों को धारण किये  सापेक्ष व्यवहार करते  धरा को  ही स्वर्ग बनाने में रत लोगों के बीच लोकप्रिय हो उच्च पद प्राप्त करते हैं। उनकी यह उपललब्धि ही परमपद हैं।
        यही जीते जी निर्वाण की अवस्था हैं।
      असमानता की गठरी सर पर रखे
एक  जीव कल्पित लाख चौरासी योनि  भटकते तथाकथित  स्वर्ग में जगह पाने में लगे  हैं।   
तो दूसरा जीव समानता की झोली फैलाये अलख जगाते लोंगो के दिलो में बसते जा रहे हैं।
      अब तमाम असमानताए सृजित करते  स्वर्गवासी होना ज्यदा अच्छा हैं कि समानता के एक सिपाही बन लोगो के के हृदयवासी  होना ?
     दिनों विकल्प हैं चयन आपको करना हैं।
       💐सत श्री  सतनाम💐
[05/01 4:01 PM] Dr. anil bhatpahari: एक दृष्टान्त जो हमे अच्छा और इस ग्रुप के लिए प्रासंगिक लगा। सीधे उन्हें पेस्ट करते हैं। अज्ञात लेखक बधाई के पात्र हैं-"एक दिन पंडित को प्यास लगी, संयोगवश घर
में पानी नही था इसलिए उसकी पत्नी पडोस से
पानी ले आई I पानी पीकर पंडित ने पूछा....
पंडित - कहाँ से लायी हो बहुत ठंडा पानी है I
पत्नी - पडोस के कुम्हार के घर से I (पंडित ने
यह सुनकर लोटा फैंक दिया और उसके तेवर
चढ़ गए वह जोर जोर से चीखने लगा )
पंडित - अरी तूने तो मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया,
कुंभार ( शुद्र ) के घर का पानी पिला दिया।
पत्नी भय से थर-थर कांपने लगी, उसने
पण्डित से माफ़ी मांग ली I
पत्नी - अब ऐसी भूल नही होगी। शाम को
पण्डित जब खाना खाने बैठा तो घरमे खानेके
लिए
कुछ नहीं था.
पंडित - रोटी नहीं बनाई. भाजी
नहीं बनाई.
पत्नी - बनायी तो थी लेकिन अनाज पैदा
करनेवाला कुणबी(शुद्र) था.
और जिस कढ़ाई में बनाया था वो लोहार (शुद्र)
के घर से आई थी। सब फेक दिया.
पण्डित - तू पगली है क्या कही अनाज और
कढ़ाई में भी छुत होती है? यह कह कर पण्डित
बोला की पानी तो ले आओ I
पत्नी - पानी तो नही है जीI
पण्डित - घड़े कहाँ गए हैI
पत्नी - वो तो मेने फैंक दिए क्योंकि कुम्हार के
हाथ से बने थेI पंडित बोला दूध ही ले आओ वही
पीलूँगा I
पत्नी - दूध भी फैंक दिया जी क्योंकि गाय को
जिस नौकर ने दुहा था वो तो नीची (शुद्र) जाति
से था न I
पंडित- हद कर दी तूने तो यह भी नही जानती
की दूध में छूत नही लगती है I
पत्नी-यह कैसी छूत है जी जो पानी में तो लगती
है, परन्तु दूध में नही लगती। पंडित के मन में
आया कि दीवार से सर फोड़ ले। गुर्रा कर बोला
- तूने मुझे चौपट कर दिया है जा अब आंगन में
खाट डाल दे मुझे अब नींद आ रही है I
पत्नी- खाट! उसे तो मैने तोड़ कर फैंक दिया है
क्योंकि उसे शुद्र (सुतार ) जात वाले ने बनाया
था.
पंडित चीखा - ओ फुलो का हार लाओ भगवन
को चढ़ाऊंगा ताकि तेरी अक्ल ठिकाने आये.
पत्नी- फेक दिया उसे माली(शुद्र)
जाती ने बनाया था.
पंडित चीखा- सब में आग लगा दो, घर में कुछ
बचा भी हैं या नहीं.
पत्नी - हाँ यह घर बचा है, इसे अभी तोडना
बाकी है क्योंकि इसे भी तो पिछड़ी जाति के
मजदूरों ने बनाया है I पंडित के पास कोई जबाब
नही था .उसकी अक्ल तो ठिकाने आयी
बाकी लोगोकी भी आ जायेगी सिर्फ
इस कहानी आगे फॉरवर्ड करो हो सके देश मे
जाती वाद खत्म हो जाय"
        जातिविहीन भारत के बढ़ते कदम और आप सब का सुस्वागतम। जय भारत।
[05/01 6:19 PM] Dr PR Gritlhare: जाति विहीन भारत का परिदृश्य कैसा रहा होगा।
कैसा हो गया।
कैसा होगा?
[05/01 9:13 PM] Dr. anil bhatpahari: वेदों के पूर्व इस महा देश में न कोई वर्ण थे न कोई जातिया। बावजूद  अन्य जगहों से उन्नत सभ्यता रही। सिन्धुघाटी के समकालीन अनेक सभ्यताए  थे। इनका अवशेष देश के अनेक स्थलों पर विद्यमान हैं।
      आज इन्ही असमानता व् जातिवादी व्यवस्था के चलते भारत अकूत नैसर्गिक सम्पदा और विराट मानवीय श्रम  के बावजूद आज स्थित अत्यंत दयनीय हैं। अजन्मा बच्चा 4 हजार से अधिक के कर्ज में डूबे हुए हैं।60%से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे निरक्षर व् अल्प साक्षर हैं। सपेरो पंडे पुजारियो नट मदारियों के देश की दयनीय दशा सर्वत्र द्रष्टव्य हैं। चंद मुट्ठी भर लोग करीब 15%आज उन्नत हैं और 85% दलित कृपण लोग जिल्लत की जिन्दगी जीने विवश हैं।
       यही  तथाकथित सनातन संस्कृति के जो असमानता पर आधारित हैं कि दुष्कृति हैं।
       आइये समानता स्थापित करने  जातियता की दीवार को तोड़ सदियों से जनमानस के बीच पल रहे  असमानता  को  हिन्द महासागर के अतल गहराई में डूबा दे।तभी यह महादेश  पूर्ववत वैभव से युक्त होंगे।  जय भारत ।

No comments:

Post a Comment