Thursday, April 11, 2019

जुगुलदास उर्फ चोर चरणदास

"जुगुलदास सतनामी उर्फ चरणदास चोर "
    विश्वविख्यात  छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य चरणदास चोर जिसे कई विद्वान  गुजराती लेखक विजयदान देथा कृत चोर-चोर कहानी से प्रेरित मानते हैं ।अभी -अभी‌ किशोर साहू सम्मान हेतु विख्यात फिल्मकार श्याम बेनेगल ने भी पद्मविभूषण हबीब तनवीर को उसी कहानी के बारे में बताने का जिक्र किया। इस तरह यह तेजी से विगत कुछ वर्षों से स्थापित होते जा रहे हैं कि चरणदासचोर गैर छत्तीसगढ़ी कथानक हैं।
      बाहरहाल यह देथा की काल्पनिक  कहानी से प्रेरित हो तो सकते हैं। पर छत्तीसगढ़ का जीवन्त पात्र जिनके सभी कारनामे यथावत इस नाटक में हैं। उस जुगुलदास सतनामी के संदर्भ में जानकारी देना इस आलेख का मुल प्रयोजन है।
        हमारे शिक्षक  पिताश्री सतलोकी सुकालदास भतपहरी बहुमुखी प्रतिभा के धनि थे और अपने स्कूल में अन्य सहयोगी शिक्षक और छात्रों को लेकर शौकिया अभिनय व  रंगमंच करते थे ।चरणदास चोर को वे तनवीर  साहब से अलग हर साल ८-१० बार १९७५-९५ तक रचते रहे। और  नये नये प्रयोग करते रहे । हमलोग बचपन से उनमें रमे रहे। उजागर रतन एंव गुरुबाबा जिसे साधु कहे गये का रोल हम निभाते रहे। पिताजी चरणदास  चोर बनकर  -पैलगी गुरुबबा कहते ....और हम  जीयत राह बेटा अम्मर राह कहते तो बाप बेटे की इस संवाद से दर्शकों में एक अलग समा बंधता ।  जब चरणदास को भाले से छेदकर मारने वाली करुण दृश्य आते तो लगभग सिहरते हुए कह ता - जीयत राह ....... बेटा ...... अम्म र .....राह तो दर्शक दहाड मार रोने लगते ..... महिलाओं की दशा दर्शनीय होते !  खैर करुणा और  संवेदना का वह मंजर हमने आजतक कही नहीं देखा न जिया ।
       एक बार धीवरा खरोरा में १९८२-८३ में टेडेसरा की नाच पार्टी चरणदास चोर गम्मत लेकर आए उसे देखने गये।स्वर्णकुमार वैद्य जो उसके संचालक थे ने चरणदास के संदर्भ में जानकारियाँ देने लगे कि यह जुगुलदास सतनामी के जीवनी से गढे गये लकनाट्य हैं। वे देशी राबिनहुड थे और धनिको से उनके धन  को लूटकर गरीबो मे  में बाटते थे। सतनामी धर्मगुरु से दीछा लेकर आजीवन सत्य को धारण कर ऐसा ही जनकल्याण करते रहे।
    यह बचपन की सुनी बाते जेहन में रहा। आगे जब जब इस पर चर्चा होते हम सविनम्र स्वर्णकुमार वैद्य जी के धीवरा मे कही बाते दुहराते। पर कोई साछ्य नहीं जुटा पाए न जुटाने की जहमत उठाए। हमने हबीबतनवीर व उनके कलाकार मंडली गोविन्द निर्मलकर आदि से डोंगरगढ के कार्यशाला में  १९९४ मे सी डी डोन्गरे स्टेशन मास्टर   के मार्फत मिले  जो कभी हबीब साहब के अजीज थे।पर इस संदर्भ में कोई जिक्र नहीं किए क्योकि तब यह बात ही नहीं था। और हम चरणदास को जुगुलदास की ही कथा समझते रहे।
पर विगत कुछ वर्षो से यह बात तेजी से फैलती जा रही हैं कि चरणदासचोर की कथानक गैर छत्तीसगढ़ी हैं। और यहां के जनजीवन से कोई वास्ता नहीं । तब हमारे बालपन से बसे वह बात भीतर भीतर मथने लगा कि ऐसे कैसे जुगुलदास को दफ्न कर दे।
   तब हमारी अपनी और सबकी मीडिया सोशल‌ मीडिया में इसे पोष्ट किया।सौभाग्यवश राजनांदगांव फरहद निवासी वरिष्ठ  कलाकार सेवानिवृत्त  व्याख्याता व रचनाकार डा दादूलाल जोशी सप्रमाण  कहे कि उनके पिता श्री जो सनाड्य व सम्मानिय रहे से मिलने जुगुलदास आया करते थे ।वे निर्धनो में अत्यन्त लोकप्रिय रहे। वे भी स्वीकृति दिए की जुगुलदास ही चरणदास रचने के प्रेरणा पुरुष थे। इस तथ्य को यहां के लोगों को भलीभांति समझना चाहिए। हबीब साहब को‌ कोई मौखिक में जुगुलदास के संदर्भ में बाताए भी होन्गे।जैसे बहादुर कलारिन, हिडमा और अन्य ऐतिहासिक पात्रों के संदर्भ में बताए और वह मंच में सजीव हो उठे।
     बाहरहाल जुगुलदास रायपुरा डौडी के निवासी थे और अपने आसपास राबिनहुड छवि के कारण जनमानस में लोकप्रिय रहे।और जीते जी किवदन्ती हो गये। उन्हे जनमानस जाने समझे और अन्वेषक इस दिशा  में गहनता से काम करे ऐसी आपेछा हैं।

      जय छत्तीसगढ़
डा. अनिल भतपहरी

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