"यथास्थिति से मुक्ति की युक्ति "
शी़रत न दिखती
न पकड़ में आती
तब भला
कैसे उसे चमकाएं
किसे रिझानें सजाएं
लोग चेहरे के पीछे
लगे हुए हैं
इसलिये भी
कई चेहरे लिए
घुमने होते हैं
पल-पल परिवर्तित
इस दौर में
कोई एक ही चीज से
एक ही गेटअप से
कैसे निर्वाह कर सकते हैं
कपड़े जूते चश्में
घड़ी मोबाइल कलमें
जब नहीं एक
तब चेहरे कैसे
होन्गे भला एक
वह भी नेक !
फिर एक चीज से
आएगी नहीं उबकाई
कैसे चलेगा
बताओं मेरे भाई
केवल खाने के लिए ही नहीं
हर चींज के लिए
लोग जायके बदल रहे हैं
चंचल मन कब से
मचल रहे हैं
आखिर रुढ़ता-मूढ़ता को
क्यो ढ़ोतें रहेन्गे
कह सनातन स्थिति
जीवन हैं छण भंगुर
पुनश्च आने का
सवाल नहीं लंगूर
तब कोई क्यों
रखेन्गे यथास्थिति
कैसी मिथकीय अभिव्यक्ति
सहेजे बनाकर संपत्ति
यही सबसे बड़ी विपत्ति
पाने इनसें मुक्ति
करें संधान
हैं जेंहन में युक्ति....!!!
-डा. अनिल भतपहरी
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