Wednesday, April 10, 2019

जीवन

"जीवन "
वन मे जी उसे कहते है जीवन
पर  विकल वहा सभी हैं बेमन
व्याकूल वन में भटकते वन्यप्राणी
पीने को न मिले  एक बुन्द पानी
चले  गांव जहां मिल जाय जिनगानी
पर भैय्ये यहां जीवन ही हैं  हलकानी
तो चले शहर चलकर देख ले
उखडती हुई  कुछ सांसे बचा ले ....

पर क्या शहरों में जीवन बचा है
मरने के कगार पर वह खडा है
तब से यह कहावत हुआ चरितार्थ
जब मौत समीप हो तो आते शहर की याद

(आज प्रात: सोनारदेवरी पलारी में प्यासे भालू भटकते आकर बेर पेड में चढ गये उसी से प्रेरित चंद पंक्ति)
- डा. अनिल भतपहरी
प्राध्यापक ,
शा बृजलाल वर्मा महा पलारी

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