Wednesday, January 30, 2019

सतनामियों वर्तमान में राजनैतिक दशा और स्थिति

गांधीजी जी के पुण्यतिथि के बहाने सतनामियों की स्थिति पर  विमर्श "

        गांधी जी छत्तीसगढ १९२१-२५ के बीच  ३ बार आए ! वे रायपुर स्थित सतनाम पंथ की ३  बाड़ा गुढियारी ,मांगडा बाडा जवाहरनगर और पंडरी बाडा   जहा से नेहरु के सचिव बाबा रामचंद्र रहकर स्वतंत्रता आन्दोलन को गतिमान करते रहे की जानकारी लेते रहे।
तब सामाजिक रुप से सतनामी छत्तीसगढ मे प्रभावी थे भले उनसे सामूहिक रुप से सवर्ण तबका अस्पृश्य भाव रखते पर ग्रामीण जन्य मे ओबीसी समाज के समकछ है।‌और परस्पर एक दूसरे से गोत्र फिरके आदि चलते भी इन सबमे भेदभाव व ऊचनीच व संग साथ भोजन शादी ब्याह तक नही थे।
       वे  बलौबाजार गये तो भंडारपुरी  खपरी सतनाम तीर्थ के मध्य भैसा बस स्टेण्ड  से गुजरे ।उनके स्वागतार्थ सतनामी समुदाय पलक पांवडे बिछाए । जो बेहद सात्विक व संत प्रकृति जे श्वेत वसन धारी समूह थे।और उनसे अस्पृश्यता का व्यवहार होते रहे। वे लोग मिलकर यह सब अवगत भी कराए ।
भंडारपुरी मोती महल गुरुद्वारा जिसकी निर्माण १८३० के आसपास है के शिखर मे  तीन बंदर है से प्रेरित हुए।संभवत: बिना कुछ कहे इनसे सत्य की संदेश सहज रुप से देने की कला से अवगत हुए हो।संभवत: इसलिए ही वे यहां से जाने बाद वे अपने साथ तीन बंदर रखना आरंभ किए । साथ ही आगे चलकर उसी सतनाम की महत्ता से अभीभूत सत्याग्रह चलाए। क्योकि सतनाम मर्मांतक पीड़ा को सहने की नैतिक साहस प्रदान करते है।और यह सब तथ्य सतनामियों और उनके गुरुओ से मिलकर वे भलिभांति जाने समझे।
      गांधी जी स्वयं लखनऊ अधिवेशन मे सतनामियों को आमंत्रित किए ।वे  ७२ सतनामी संत गुरु महंत के प्रतिनिधी मंडल से मिले मध्यस्थ थे पंडित सुन्दरलाल शर्मा जी जो १९०७-८ मे ही गुरुघासीदास व सतनाम की महत्ता को समझकर सतनामी पुराण नामक काव्य रचना कर चुके थे।
      बाहरहाल आजादी के आन्दोलन मे सर्वाधिक सक्रिय सतनामी ही रहे और अनगिनत लोग जेल गये यातनाएं सहे।आज भी किसी समुदाय मे सबसे अधिक सतनामियो का ही रिकार्ड स्वतंत्रता संग्राम मे अंकित है।
गांधी व कांग्रेस के जुडे रहे इसी दरम्यान आजादी के आसपास मोहभंग की अवस्था  डा अम्बेडकर की सक्रियता और उनके प्रभाव मे शेड्युलकास्ट व  आर पी आई  से भी कुछ लोग जुडे ।
         यह १९२०-५६  तक ३६  वर्ष का कालखंड सतनामियों की राजनैतिक सूझबुझ और सामाजिक क्रांति के लिए किए गये कार्य का  बेहतरीन कालखंड है जब भारतीय राजनीति के दो धारा एक जो गांधीवाद था और दूसरा अंबेडकरवाद था के मध्य संयोजन संतुलन व समन्वय का रहा।
      आज उस समय के इतनी समझ और प्रखरता से जुडे यह समुदाय आज भी हाशिए पर है और संधर्षरत है ।आज भी कोई बडा और सर्व स्वीकृत नाम नही है जो प्रदेश व देश मे चर्चित नही तब वाकिय मे हमारी  राजनैतिक प्रतिबद्धता  और योगदान के ऊपर हमे गहराई से विचार करने होन्गे ऐसा क्यो हुआ?
       क्या सबसे बडा समुदाय जो गुरुबाबा जी नाम पर एक है  छग मे ५० सीट पर  हस्तछेप रखते है तब क्यो कर लोग उपेछित करते रहे है?  जबकि एकता और संधर्ष के लिए अन्य समाज सतनामी के उदाहरण देकर आज उनसे ही अधिक ताकतवर होते जा रहे है।
    क्या भटकाव के लिए यह विचारधाराए है जिन्हे धारण कर सतनामी लगातार भटकते आ रहे है? इन प्रश्न के उत्तर तलाशने होन्गे ?
तो क्या गांधी अंबेडकर हमारे लिए अभिशप्त सा रहा कि हेडगेवार वाली विचार धारा के चंगुल मे कुछ लोग विगत १०-१५ वर्षो से जकडे  कथित  सनातन व हिन्दुत्व से जकडे रहे। जिन्हे तिलांजलि देकर गुरुघासीदास ने सतनाम का प्रवर्तन किया। या डा अम्बेडकर के उस ग्यानवादी बौद्ध धम्म  को समझ न पाने या अपनी संस्कृति के विरुद्ध जान उनसे समन्वय नही कर सके।
      बाहरहाल हमे ऐसा लगता है कि गांधीवाद  जिनके धूर विरोधी अंबेडकर वाद रहे है और तो और  हेडगेवारवाद जो गाधी के बधिक भी रहे है  (दोष लगा है  कि वे इस्लाम व पाक समर्थक थे ! क्या यह सच है कि अस्पृश्य समुदाय को जागृत कर उनसे समभाव पैदा  करनर से नराजगी का दुर्दान्त प्रभाव था  )।  केवल राजनैतिक वाद है और समाज या धर्म से इन वादो का कोई लेना देना नही है।
    अत: जिस दिन वोट डालना और सरकारे बनाना हो तब इनका मतलब है बाकि सभी अपनी धर्म व मान्यताओं मे ही  उलझे रहो । यथास्थिति वाद को बनाए रखो और जो है उसमे संतुष्ट रहो।
    पर यह भी नही इन तीनो वाद से भिन्न अंबेडकर वाद है पर कथित अंबेडकरवादी उसे उसे सत्ता की चाबी पाने की तरह इस्तेमाल करने लगे है। इसलिए आजकल इन सारे विपरित धाराओ मे सत्ता सुख हेतु गठजोड जारी है।जो सछम होन्गे उन्हे उखाडने बाकी दो धाराए युति करते रहेन्गे । पर सवाल यह है कि राजनैतिक रुप से सक्रिय इन धाराओ से बचकर कैसे धर्म धम्म पंथ की महत्ता कायम रखे ? आज यही महत्वपूर्ण है।हालांकि कुछ लोग धर्म को गौण व अस्तित्व विहिन मानने लगे है।पर भारत मे यह सब होने मे सदियां लग जाएगी ऐसा हमे लगता है।
     शायद इसलिए गांधी अंबेडकर व हेडगेवार  धार्मिक‌ अधिक लगते है अपेछाकृत राजनीतिग्य के। इसलिए एक बौद्ध धम्म के हो गये और वे दोनो विपरित विचार के बावजूद सनातनी होकर रह गये । क्या बौद्ध सतनामी और तमाम ग्यान संत गुरु मुखी समाज जो उसी  सनातनता से उत्पिडित है जो ईश्वरान्मुख न होकर गुरुमुख  समुदाय है। जो बुद्ध कबीर नानक रैदास गुरुघासीदास के अनुयाई व सतनाम के अनुगामी है ।परस्पर मिलकर उस सनातन के समछ मजबूती खडा नही हो सकते ।केवल सामाजिक रुप से ही नही बल्कि राजनैतिक व आर्थिक रुप से भी।
            हमे इन सब पर गंभीरतापूर्वक विचार करने होन्गे। क्योकि आप टुकडो मे बटे रहकर कुछ नही कर सकते । क्योकि वे आपके विचार दर्शन और आइडिया लेकर आपको ही अपने फांस कर उलझा सकते है और उलझते ही आ रहे है।

Monday, January 28, 2019

संत सर्वोतमस्वरुप‌

सतनाम धर्म संस्कृति में  साहित्य सृजन का समय चल रहा है।  सुखद समाचार हैं कि साधु सर्वोत्तम स्वरुप साहेब कृत "गुरुघासीदास और उनका सतनाम आन्दोलन " ग्रंथ प्रकाशित हुई है जो कि संत जी के अनवरत परिभ्रमण  धार्मिक साहित्य अध्ययन और सत्संग से बहुश्रुत अनुभव से ग्यानार्जन द्वारा  यह  सहज सरल व सुबोध प्रवचन शैली में बडी ही  रोचक ढंग से सृजित हैं।
  गुरुघासीदास के जन्म तप एंव संधर्ष के साथ- साथ  जनमानस में सतनाम के प्रचार- प्रसार सहित अनेक ज्वलंत मुद्दो और धार्मिक सामाजिक भ्रम रुढि आदि के  विरुद्ध चेतना और प्रेरणा परक विश्लेषण इस ग्रंथ में  हैं। वेद पुराण  रामायण महाभारत  एंव बीजक आदि ग्रंथों के प्रेरक उदाहरणों व प्रसंगों के उल्लेख करते हुए 
  २७५ पृष्ठों पर विस्तारित  ग्रंथ  केवल पठनीय ही नही संग्रहणीय हैं।
    हमारा यह सौभाग्य हैं कि छात्र जीवन से ही साधू सर्वोतम स्वरुप साहेब का सानिध्य व आशीष मिलते रहा है। जब वे हर्षित होकर सूचित किए कि दो पुस्तकें प्रकाशित हुई है- पहला विरक्त संत अमरदास और दूसरा  गुरुघासीदास और उनका सतनाम आन्दोलन तो हमे रहा नही गया और दोनो पुस्तकें प्राप्त कर सचमुच ऐसा लगा कि हमारे ग्यानकोष मंजूषा में दो अनमोल रत्न का भंडारण हो गया।
    संत सर्वोत्तम स्वरुप साहेब निरोगी व दीर्धायु हो और वे समाज के छुधित मेधा को अपनी साधना और सृजन से तृप्त करते रहे।
   
  उन्हें और उनकी साधना व उद्यम को प्रणाम
        जय सतनाम
  डा. अनिल कुमार भतपहरी

Friday, January 25, 2019

चटुआ धाम

गुरु अम्मरदास जी गुरुघासीदास के ज्येष्ठ पुत्र है।वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे तथा ध्यान योग समाधि में निष्णान्त थे।
    गुरुघासीदास के अमृतवाणी उपदेश और सतनाम- दर्शन को जनमानस में पंथी गीत व मंगल भजन के रुप मे लयात्मक रुप देकर जनमानस के कंठाहार बनाए।
   जनश्रुति है कि वे सतनाम पंथ के प्रचार हेतु शिवनाथ नदी के उसपार अपने ससुराल प्रतापपुर  परिछेत्र  सफेद रंग के  हंसालीली घोड़ा से जा रहे थे।सिमगा से आगे चटुआ धाट के समीप इमली पेड़ के झुरमुट के समीप  वे साधनारत हो गये।उनके दर्शनार्थ आसपास से जनसमूह उमड़ने लगे।
      वे अनुआई को साढ़े तीन दिन की शव समाधि लेने की इच्छा व्यक्त किए और समाधिस्थ हो गये।  चारों ओर से  बेकाबू भीड़ दर्शनार्थ उमड पड़े । सतनामियों की एकजुटता और संगठन से घबराकर कुछ सडयंत्री व द्वेषी जन लोगों में भ्रम फैलाने लगे कि लाश में प्राण नही है और इसमें जीव आ नही सकते ।इसके क्रियाकर्म कर दो । जनमानस भजन कीर्तन करते रहे एक दिन बीत दो दिन बीत शव मे चेतना आई नही ।सतनाम द्वेषी लोग
लोग भ्रम फैलाते रहे अंतत: तीसरे दिन शव को दफना दिए गये। पर कुछ भक्त वही बैठे शोकमग्न थे।
साढ़े तीन दिन बाद शाम को  प्राण ज्योति स्वरुप आई शव की चारो ओर परिक्रमा की और शव में सुरंग सा हो गये जलधारा फूट पड़ी । प्रत्यछ दर्शी रोते बिलखते वापस आ गये ।
  यह धटना १८४५ को पौष पुर्णिमा को हुआ। गुरुघासीदास भी अपने तेजस्वी पुत्र के वियोग से विह्वल  व अनमना होते रहे ।अंतत: एकान्तवास के लिए प्रयाण कर गये।
    कलान्तर मे हरिनभठ्ठा के मालगुजार आधारदास सोनवानी जी ने उक्त समाधि स्थल मे १९०२ के आसपास भव्य मंदिर बनवाए ।और शिल्पकार समकालीन समय मे अन्यत्र हिन्दू मंदिरों के अनुशरण करते कुछ विवादस्पद शिल्प बनाए .... जो वर्तमान मे  अप्रसांगिक है।‌ उन्हे हटाने की निरन्तर मांग हो रही है।परन्तु प्रबंधक लोग विरासत और प्राचीन कलाकृति के नाम पर अनिर्णय की स्थिति में है।
         निराकार उपसना में साकार स्वरुप का कोई प्रयोजन नही ।अतएव उचित  निराकरण के लिए सार्थक पहल होनी चाहिए।
     वहां से लगा जैतखाम के शिखर पर सत्यपुरुष व सत्यावती का शिल्पांकन किए गये है।जो और भी सतनाम संस्कृति में अग्राह्य है।

             ।‌सतनाम ।।

श्रेय: श्रेया: पर्व

बौद्ध धम्म  के महायान का महापर्व श्रेय:श्रेया: पर्व जिसे छत्तीसगढ़ ई में  "छेरछेरा" कहते हैं।  राजकुमार  सिद्धार्थ बुद्धत्व प्राप्ति( वैसाख पूर्णिमा)  के बाद  पौष पूर्णिमा  को  भिछाटन करते दान लिए और दाता को श्रेय: श्रेय: कह उनकी मंगलकामनाएं की।उन्हे स्मृत करने यह महापर्व का आयोजन विगत ढाई हजार वर्षों से अनवरत चला आ रहा हैं। इस पर्व में सभी दान लेने और देने वाले हो परस्पर एक दूसरे का मंगल कामनाएं करते है। यह समानता स्थापित करने  तथा जाने अनजाने में अभिमान / दर्प  हरण का महापर्व है।
   दछिण कौशल की राजधानी सिरपुर  महायान शाखा के प्रमुख केन्द्र थे यहाँ उनके  प्रवर्तक नागार्जुन व आनंद प्रभु द्वारा संचालित विश्वविद्यालय से प्रतिवर्ष प्रबुद्ध वर्ग निकल कर समाज को संचालित किया करते थे।
आज भी सिरपुर के इर्दगिर्द बसे जनमानस छेरछेरा के दिन सिरपुर जाकर उन आश्रय चैत्य विहार मठ मंदिरों के  प्रस्तर प्रतिमाओं  में कच्चा चावल समर्पित कर अपनी दानवृत्ति को प्रदर्शित करते श्रेयवान हो कृतार्थ होते है।
मानव जीवन के लिए  अत्यावश्यक अन्नदान का यह पर्व सतनाम संस्कृति में गुरु अम्मरदास का समाधिस्थ होकर जनमानस के कल्याण हेतु आत्मसमर्पण का भी महोत्सव  हैं।जिनके स्मृति में समाधि स्थल शिवनाथ नदी के तट सिमगा के समीप चटुआधाट  एंव रायपुर के समीप बराडेरा धाम में प्रतिवर्ष भव्य मेला लगते हैं। जहाँ  लाखों श्रद्धालू गण  आकर श्रेयवान होते हैं।
    भारत में डा अम्बेडकर के पुरुषार्थ व  सद्प्रयास से पुनश्च बौद्ध ( सत्व ) धम्म का प्रवर्तन हुआ। और इसी  सत्व ( बौद्ध ) धम्म से ही  विकसित  अनेक ग्यान व निर्गुण  संत मत पंथ के अनुयाई अपनी खोई हुई वैभव मान प्रतिष्ठा अर्जित करने प्रयासरत हैं। इसी कडी में बौद्ध नगरी में अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध ( सत्व)  महोत्सव का आयोजन स्तुत्य प्रयास है।

    ।।सच्चनाम सतनाम सत्यनाम सतिनाम सत्तनाम शतनाम सत श्री सतनाम ।।

Monday, January 21, 2019

महानदी धाटी का विकास

"महानदी जलसंवर्धन और उनसे सर्वांगीण  विकास" 

         चित्रोत्पल्ला गंगा मां महानदी जो सदानीरा थी और प्राचीन समय में सागर से लेकर बारुका गरियाबंद तक जलपोत चला करते आवागमन व व्यापार के कार्य होते थे। सिरपुर के समीप बड़ा बंदरगाह जिसमे बड़ी जहाज मालपुरी मोहान तक आते और हमारे ग्राम जुनवानी  गिधपुरी नगर से रायपुर राज  में व्यापार होते ।शिवरीनारायण से  रतनपुर राज के  सुदुरवर्ती छेत्रों मे आवश्यक सामाग्री पहुचाई व लाई जाती रही है। दूसरे तट बल्दाकछार व सिरपुर से महासमुन्द सरायपाली होकर उड़ीसा  तक आवश्यक वस्तुए पहुचाई जाती ।फलस्वरुप   इनके तट पर ही राजिम  आरंग गढ़सिवनी सिरपुर धमनी दंतरेगी शिवरीनारायण  लवन खरौद चंद्रपुर जैसे  बड़ी बड़ी नगरी का विकास हुआ। महानदी तट पर स्थित  सिरपुर तो राजधानी ही रही जो देश विदेश से जलमार्ग से जुडे हुए थे।जहा व्यापार शिछा  ग्यान कला का विकास हुआ ।और देश विदेश तक कीर्ति रही।
        परन्तु काल चक्र और शासन प्रशासन के उपेछा के चलते आज महानदी सूख चुकी है।सभी  प्राचीन व वैभवशाली नगरी उजड़ चुकी है। सांस्कृतिक वैभव का ह्रास हो चुका है। चारो ओर समकालीन वैभव के गीत गाते प्रस्तर मूर्तिया भग्नावशेष के रुप मे अस्फूट गान करते रहे है।जिनके न सुधि श्रोता है न पाठक न जिग्यासु।
        राज्य के अभ्युदय के बाद एक तरह से इन ऐतिहासिक जगहों से प्राचीन वैभव को परीचित कराने के नाम पर हास्यास्पद ढंग से बारह वर्षो मे लगने वाली कुंभ के नाम पर प्रतिवर्ष कुंभ का  आयोजन राजिम जहां तीन नदियों का संगम है में  धूमधाम से करने लगे। और करोड़ो के मूरम इट गिट्टी सिमेन्ट डाले जाने लगे ।अस्थाई निवास हेतु लकड़ी सीट चादरे बिछाई जाने लगी और १५ दिन बाद उन सामाग्रियों को वही  बीच नदी के रेत मे बेतरतीब छोड़ दिए जाते ।
       फलस्वरुप महानदी में रेत की जगह मुरम गिट्टी सिमेन्ट या ठोस पदार्थ के भराव से  जल स्रोत  सुखने   लगे।राजिम के इर्दगिर्द विगत पन्द्रह वर्ष में  महानदी में मैदानी  झाडियां यथा बेशरम बबुल बेर ऊगने लगे  है।  महानदी  भाठा में बदलने लगा था फलस्वरुप प्रकृति प्रेमियों ने महानदी  बचाओ अभियान भी चलने लगा है। विगत क ई वर्षों से सोशल मीडिया में हम स्वत: इनपर लिखते जनजागरण करते रहे है।राजिम व छेत्र वासी क ई साहित्यिक व सांस्कृतिक लोगो से इसी के चलते जान पहचान बनी ।
बाहरहाल हर बार मेले में बांध से पानी छोड़कर कृत्रिम कुंड बनाकर पर प्रांत से आयातित लोगो से कथित शाही स्नान व नैवेद्य के नाम पर तेल घी दूध शहद आदि व  फूल  फल धूप दीप नाडियल रेशे  पन्नी कचड़े डाले जाते रहे व करवाए जाते थे जो कि आस्था के नाम पर औपनिवेषिक  सांस्कृतिक‌ आयोजन रहा।  इसके नाम पर  प्रदेश की निर्धन जनता की करोड़ो रुपये  की बंदरबाट चलने लगा ।
  प्रदेश के साधु -संत का  कही कोई पूछ परख नही था। भूखे साधु के ऊपर रोटी चोरी का आरोप लगाकर  छत्तीसगढ की अस्मिता का उपहास उड़ाए गये थे।
बाहरहाल पानी इस बार रबी फसल के लिए दी जाएगी ।  ऐसी शासन द्वारा धोषणा हुई है।जिससे  जनको जीवन दान देने "अमृत तुल्य फसलें उगेन्गे" व लाखों के पेट भरेन्गे ।प्रदेश आत्मनिर्भर होगा और लाखो कृषक को रोजगार मिलेन्गे।
     महानदी मे  अब मुरम- सिमेन्ट नही पटेन्गे ।और यहां की  पावन संस्कृति अविरल महानदी सदृश्य प्रवाहमान हो‌न्गे ऐसी उम्मीद है।
हर १०-१५ कि‌मी मे एनीकेट बने और दोनो तट के दोनो ओर जल श्रोत बढेन्गे कृषि बाड़ी व मत्स्यखेट बढ़ेन्गे  आवागमन भी सुगम होगा।
    धमतरी से रायगढ़ तक जलमार्ग विकसित हो  जिससे  दोनो ओर जनजीवन समृद्ध होन्गे यह  प्रदेश का सबसे बड़ा सौभाग्य होगा । और शैन: शैन: इन प्राचीन महानदी धाटी का पुनर्निमाण होगा।सांस्कृतिक उत्कर्ष होन्गे
हमारी पूर्वजों की आत्माएं प्रशन्न होगी।और जहां कही देवता होन्गे फूल बरसाएन्गे ।सर्वत्र खुशयाली आएन्गे। महानदी की पावन धारा ही अमृतधारा मे परिणीत होन्गे।
   उ प्र बिहार म प्र की तरह जैसे गंगा पूजा , नर्मदा परिक्रमा की परंपरा है उसी तरह महानदी आराधना व परिक्रमा की प्रवृत्ति विकसित होनी चाहिए। इसके लिए  शासन -प्रशासन व जनमानस मिलकर इमानदारी से पहल करे।बल्कि महानदी  धाटी विकास विभाग बने या इनके लिए अलग से मंत्रालय गठित हो।
     राजकीय संरछण व निर्देशन में महानदी के उद्गम सिहावा से लेकर उडीसा प्रवेश  बालपुर उड़ीसा  तक  महानदी परिक्रमा यात्रा हेतु ५०-१०० सदस्यीय शोध अध्ययन दल सभी छेत्र के जानकार लोगों का गठन होना चाहिए । उनके परिभ्रमण रिपोर्ट या प्रतिवेदन के आधार पर क्रमश: विकास के लिए  शासन सार्थक पहल करे। ताकि हमारे प्राचीन वैभव का पुनर्स्थापना हो सके। छत्तीसगढ अन्न धन  ग्यान कला कौशल में समृद्ध हो।

       ।। जय महानदी - जय छत्तीसगढ ।।
       
         -डा. अनिल भतपहरी

चित्र - महानदी तट की संस्कृति पर हमारी कहानी संग्रह पानव पिरित के लहरा पुस्तक  का आवरण चित्र ।
व सिरपुर स्थित विश्वप्रसिद्ध लछ्मणदेवाला , बुद्वविहार व गुरुघासीदास के स्वरेखांकन ।

डेढ होशियारी

आपके वास्ते छकड़ी हमरी

सरल बातें समझते नही कोई  इस जटिलता की दौर में।
डेढ़ होशियारी दिखाते फिरते चहुं ओर आज की दौर में।।
ऊपर चमक-दमक भरे है  पर भीतर खोखले होते लोग ।
चहकते मिलते महफिलों में पर वे  एकांत में शोक-रोग।।
उनकी न कोई पुछ-परख है जो है सहज- सरल व नेक ।।
कैसी दोमुंही हो चली जिन्दगी  हैं बाहर- भीतर भरे भेद।।

कहें बिंदास -डा. अनिल भतपहरी

Sunday, January 13, 2019

बातें है बातों में‌ क्या ?

बातें है बातों में क्या ?

इसके बावजूद भी लोग बातों से ही परस्पर जुड़े  है और बात है तभी सब साथ है।बातें किसी से बंद कर देखे ... वह तो खार खाए बैठे है आपसे अनबोलना होने।
    लोग बात -बात पर ही बनते बिगड़ते है। और बातें ही है जो जोडते और तोड़ते है। इसलिए बातों को युं ही नजर अंदाज न करे  यह कहकर कि "बातों में क्या है?
     बातों में ही सबकूछ है ।वर्तमान  सरकार बातें न होने और मौन रहने के प्रतिरोध में बम्फर जीत से सत्तासीन हुई। इसलिए बातें करते रहने की अखिल भारतीय व्यवस्था किए है ।और हर हफ्ते मन की बातें "राष्ट्रीय प्रवचन " बन चूके है। राष्ट्रीय गान की जमाने लद गये अब हर तरफ राष्ट्रीय प्रवचन की धूम मची है।और जनता उसमें निमग्न है।
    कहते है पहले रामायण आते देश भर की सड़के कर्फ्यु लगने सा  वीरान हो जाते ,जहां से चोरी डकैती व स्मगलिंग की समाने आते- जाते । आजकल स्कूल पंचायत व सरकारी दफ्तरों में राष्ट्रीय प्रवचन श्रवण कराने रेडियों टी वी की व्यवस्था कराने और उन पर करोडो धपला करने का  प्रसार भारती का नायाब खेल हुआ।और इस तरह वे मरणासन्न अवस्था से उबरे ।फिर भी दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसे सफेद हाथी सैकडो चैनल व एफ एम के बीच कैसे जिन्दा है या जिन्दा रखे गये अन्वेषण का विषय हो सकते है।
     बाहरहाल बातों ही बातों मे बात चली तो बातें कहां से कहां पहुंच गई ।लोग कितने बातुनी होते है कि बातों की बतड़ग करने या फिर अपनी बातें मनवाकर ही दम लेते है।या फिर दम तोड़ देते है। दम तोड़ने वाले तो बहुधा कम ही होते है अक्सर  बतक्कड़  लोग हार नही मानते और मान भी लिए तो स्वीकारते नही। फिर भी लोग क्योकर यह कहते फिरते है कि सोनार की सौ और लोहार एक ।
कुछ अल्पभाषी बतक्कड़ो को अपनी एक बात  से लोहार जैसे बड़ा धन चलाकर सोनार की सौ टकटकी हथौड़ी की चोट से अधिक संधातक प्रहार कर लेते है।
    आजकल यही होने लगा है जो पछ में वह हजार जुबान चलाते सबको अपनी मनवाने बड़बड़ा रहे है और जो विपछ में है वह एक ही बाते कह रहा है हटाओं और बदलों ।
     सुनने में आया है कि अमेरिका में एक ही बात से परिवर्तन आया "वी केन चेंज "  यही सूत्र वाक्य की आजकल सबसे अधिक प्रभावशाली युवा वर्गों में है " हमें बदलाव चाहिए " यह वे चाहते है जो अपेछाकृत उपकृत नही है या एक सा रुटीन लाईफ से बोरिंग होने लगते है ।वही हवा पानी बदलने सैर सपाटे कर बदलाव चाहते है। जब आदमी हर दीपावली में घर की रंग रोगन बदलते है तब सरकारे कैसे नही बदलती यह जरुर विचारणीय है।हमारे लोग आस्थावान व रुढ़ीवादी होते है। किसी के त्याग बलिदान को किसी वैभव ऐश्वर्य को परंपरागत ढंग से ढ़ोते रहते है वे भला क्या बदलाव चाहेन्गे ये लोग यथास्थिति वादी होते है और कल्पित सुख की आस मे "जो रचि राखा राम जी" की धून में बिधुन दास मलूक की पंछी व  अजगर की तरह  मुफत की दार-भात खाते पड़े रहते है । वे सबके दाता राम कह मंजीरें बजाते संकीर्तन में मगन है ।ऐसे लोग
और ऐसी प्रवृत्तियां हर शासक वर्ग पैदा करते है। यही उनकी सत्ता में बने रहने का रामबाण अचुक औषधि है।
     अजकल  जनता  को सब्जबाग और सपने दिखाने की कवायद दोनो - तीनो तरफ है । आश्वासनों का दस्तावेजीकरण करने  संकल्प पत्र ,धोषणा पत्र दृष्टिपत्र ,शपथपत्रों की बाढ़ सी आई हुई है।आखिरकर ऐसा करके ही तो उनसे मत व समर्थन लिए जाते है ।
    बाहरहाल यह अमेरिका नही जहां द्विदलीय  प्रणाली हो यहां तो बहुदलीय और निर्दलीय है ऐसे बतक्कड़ो की बन आई है।फिर यह विशिष्ट अनुभव देशवासियों का है कि मौनीबाबा की तपस्या वही भंग कर सकता है जो जबर गोठकार हो ।जहां चुप-चुपाई हो वहां  चुटुर -पुटुर मनोरंजन का साधन हो जाते है।मौन से उबे जनता मन की प्रवचन से मगन हुए ।पर जल्द ही अब  प्रवचन की अतिरंजन  और उनके शासकीय प्रसारण ही जन के अवचेतन मन में परिवर्तन की पवन बहाने लगे है।  इस बात को बतक्कड़ लोग जगह -जगह बताने लगे है अब देखते है कि उनकी बातों का असर कितना असरदार होते है।
       वैसे एक पुरानी फिल्मी गीत ही सबके सपने चुर चुर करने में काफी है पता नही इसको लोग आजकल क्यो नही बजाते या सुनते ।मेरा तो मन करता है कि मै भी एक बड़ा सा डी. जे. सांउड सिस्टम लगाऊ और रफी साहब की दिलकश आवाज को लाऊड में बजाऊ .... कस्मे वादे प्यार वफा सब बातें है बातों में क्या ?
         पर भाई अनबोलना रहने और गूंगा होने से अच्छा है कि अच्छे दिन आने वाले वाले की सब्जबाग में ही टहले घूमें या खाली -पीली  टहल टुहुल करने और अतिरंजना पूर्ण कानफोडू प्रवचन से ऊबे लोगों को परिवर्तन के लिए प्रेरित करने वालों की सुने या फिर उन्हे चुने जो अबतक अपनी बारी के इंतजार में ऐसे सपने दिखाते रहे है जो कथित दोनो राष्ट्रीय दल न देख - दिखा सकते न कर सकते!
      तो बतक्कड़ों की बातों में फंसने  तैय्यार तो रहों कि क्या पता कौन सी बातें आपकी बातों से मेल खाते बातों ही बातों में बात बन जाए !!
    डा अनिल भतपहरी