पद्म पुरस्कार सतनामी प्रतिभाओ को क्यो नही?
विश्वविख्यात भरथरी गायिका अपनी विलछण प्रतिभा के चलते १८ देशों मे प्रस्तुतिया देकर छत्तीसगढी संस्कृति की सुरभि को सर्वत्र विस्तारित की ।बावजूद वह गुमनामी और उपेछित जीवन जी।साथ ही उनके अंदर यह मलाल रही कि साधनहिन हो अपनी स्वप्न पूर्ण नही कर पाई। उन्हे कोई अपेछित सम्मान नही मिली और यु ही चल बसी । ऐसे ही समाज के अनेक विलछण प्रतिभाए अपना सारा जीवन साहित्य कला और किसी अन्य विधा पर जिससे सहज उन्हे पद्म पुरस्कार मिल सकते थे जानबूझ कर वंचित रखे गये। ऐसे लोगो की सूची लम्बी है पर चंद नाम जिसे सभी भलीभांति जानते समझते है ।आज प्रसंगवश हमे न चाहते हुए लिखना पड रहा है कि यदि तथाकथित संस्कृति प्रेमी इन कला धर्मी लोगो के नाम न जाने पहचाने तो लानत है उन्हे कि विराट ४० लाख समुदाय के प्रति उनकी दृष्टिकोण क्या है? सोच और समझ क्या है?
छत्तीसगढी संस्कृति साहित्य के ध्वज वाहको मे
महाकवि मनोहरदास नृसिंह , छत्तीसगढी रचनाकार गंगाराम शिवारे , कवि व कलाकार पं साखाराम बधेल , पंथी नर्तक देवादास बंजारे , सतनाम संकीर्तन कार व रंगकर्मी सुकालदास भतपहरी , रचनाकार सुखरुप्रसाद बंजारे , नाट्यमंच के अद्वितीय कलाकार महंत - दीवान, दानी- दरुवन ,चम्पा-बरसन, महाकवि पं सुकुल धृतलहरे ,नकेशरलाल टंडन ,नम्मूराम मनहर , प्रथम महिला पंथी नर्तकी व गायिका तोरनबाई लछ्मी बाई जुगाबाई अब सुरुजबाई खांडे जैसी कलावन्त साधक साधिकाए ..सतनामी समाज ही नही छत्तीसगढी संस्कृति के जगमगाते नछत्र रहे।पर उनकी आभा को काले चश्मे पहने लोग कभी देख ही नही पाए ।
प्रसिद्धी पर मुफलिसी और जानबूझकर अवहेलना के शिकार ये लोग बिना किसी चाह यहा तक यश व सम्मान को भी ताक रख केवल सतनाम का गुणगान करते स्वात: सुखाय सदृश्य आजीवन साधते रहे।और यु ही बिना किसी शिकायत आदि से अपना काम करके प्रयाण कर गये।
कही यही हश्र हमारे इन साधको कलावन्तों - मानदास टंडन ९५ वर्ष चिकारा व खडेसाज व सतलोकी भजन के सिद्धहस्त कलाकार ,लतमारदास चंदैनी , तुलाराम टंडन गोपीचंद गाथा गायक , पं कपिल धृतलहरे हुडका इकतारा चौका पंडित , पंथी पंडवानी गायिका ऊषा बारले ,पंथी पुरानिक चेलक , समेशास्त्री देवी, शांति चेलक सहित गोरेलाल बर्मन दिलीप लहरिया द्वारिका बर्मन रामविलास खुन्टे दिलीप बंजारे यशवन्त सतनामी सरीखे प्रतिभावान ५० वर्ष पूर्ण कर चुके विगत ३० वर्षो से जनमानस को अपनी कला से सम्मोहित मनोरंजित और गुरु उपदेश व भारतीय कला संस्कृति को प्रचारित प्रसारित करते आ रहे है ये साधक कलावन्त और वरिष्ठ महाकवि रचना कार साधु बुलनदास डा शंकरलाल टोडर सर्वोतम स्वरुप मंगत रविन्द्र हरप्रसाद निडर डा जे आर महिलांग डा दादूलाल जोशी , भाऊराम धृतलहरे डा जे सोनी जैसे लोग भी उपेछा और अवहेलना की सडयंत्र से कही गुमनाम न हो जाय .. ...... शासन प्रशासन मे बैठे लोगो को सतनामियो के प्रति अनाग्रह दुराग्रह त्यागकर इस समाज के विभूतियों का भी यदाकदा यथोचित सम्मान देकर पद्म सम्मान के लिए नामांकित करते संतुस्ति करना चाहिए, प्रदान कराने उचित प्रयास होनी चाहिए।
डा. अनिल भतपहरी
रायपुर ,छत्तीसगढ
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