Sunday, December 25, 2022

सुरुज

सुरुज 

ये जुड़जुड़हा टुरा 
सुरुज हर 
कलेचुप आथे 
कांपत ठुठरत 
अल्लर चले जाथे
दिन भर बिचारा
अघातेच सिहरथे 
ले दे के उथे 
मनटुटहा किंदरथे 
अउ झटकुन बुड़थे 
बिक्कट रहिस उतअइल 
होगे हवय निच्चट सरु 
ओढे हे बादर के कथरी  
होत हे बिचारा बर बड़ गरु 
ओकर बरन देख के 
लगथे करलई 
उतर गे रउती 
कहां गय ओकर तपई 
सब दिन बरोबर रहय नहीं 
काकरो अतंलग चलय नहीं 
सबके दिन बहुरथे 
बेरा ह बड़का ये 
अनिल कहिथे 
 तौनो हर  ठउका हे  

-डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Saturday, December 17, 2022

सिरजन

#anilbhatpahari 

   सिरजन 

जउन हर जीत लेथे  मन 
ओहर होथे बिकट मगन  
जउन करथे मन समर्पन 
उहु गाथे मगन गीत-भजन
जब मिलथे एक दुसर ले मन  
तभेच  होथे सुघ्घर सिरजन  

      -डाॅ. अनिल भतपहरी /९६१७७७७५१४

Monday, December 12, 2022

करे श्रेष्ठ सृजन

#anilbhatpahari 

एक मंचीय तुकबंदी कविता 

   ।। करे श्रेष्ठ नव सृजन ।।

अतीत उज्ज्वल रहा तो वर्तमान क्यो अंघेरा हैं

आत्म मुग्धता के चलते कोहरा बड़ा  घनेरा है

चंद लोगों के ऐश्वर्य  गान से कब तक  मोहित रहे 

गिरेबान झांक देखे सब मन विष्णन तन लोहित रहे 

घरा पर उन्ही का स्वर्ग जो इस धरा को नर्क किए 

अपने स्वार्थ के चलते सुन्दर देश का बेड़ा गर्क किए 

महादेश में गर्व से अधिक शर्म करने का भी दास्ता हैं

इसलिए तो यहाँ सबकी अलग अलग मंजिल रास्ता हैं

महल मंदिर  के सिवा जन मन का अवशेष क्या है?

राजा रानियो के सनक से सिवा और विशेष क्या है?

आजादी के बाद   आई  समृद्धि यह संविधान  से है 

फिर भी संशय उन्हें जो मोहित पुरा छद्म यशगान से है

 कुछ गिरोह फिराक में लगे हैं बदलने संविधान को 

दिए जा रहे हैं बढ़ावा  कल्पित मिथकीय यश गान को 

कितनी कुरीतियों अमानवीय बर्बरपन का दंश रहा 

जिनकी लाठी उनकी भैस कबीलाई संस्कृति का अंश रहा 

चंद उंगुली में गिने उनसे कुछ होने वाला नहीं ‌है

अधनंगे भूखे जन जीवन सहज एक निवाला नहीं हैं 

संप्रभूता को भोगते जो कैद कर रखा हैं  उजास  को 

प्रवक्ता बना फिरता हैं जो उपलब्धि माने निज विकास को

आत्ममुग्धता से बाहर निकल कर आओं करे  कुछ चिंतन मनन 

स्वर्ग मोक्ष सतलोक परलोक से उबर कर प्यारे करे  श्रेष्ठ नव  सृजन 

         - डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Thursday, December 8, 2022

सतनामियों अहिरों में अन्तर्संबंध

अहिरों  और सतनामियों में अन्तर्संबंध 


छत्तीसगढ़ की ढाई करोड़ जनसंख्या  में 10-12% सतनामियों की आबादी हैं।  शेष अन्य  धर्म /जातियाँ  है जिसमें प्रमुखतः आदिवासी , हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं। इसमें अनु जाति वर्ग की जातियाँ  मोची , मेहर ,महरा,  गाड़ा   घसिया आदि 4-6% लोग है । जबकि इसी वर्ग मे सतनामी आते है। इस तरह  भारतीय संविधान में अनुसूचित जाति की श्रेणी  में 14-16% लोग आबद्ध है। 

हालाँकि ब्रिटिश काल में सतनाम एक स्वतंत्र रिलिज़न था। और उनके पर्व तीज त्योहार मान्यताएँ आदि हिन्दू धर्म से अलग तरह के हैं। इसलिए इन्हें पृथक मान्यताएँ दिया गया था। 
        अतएव इस आधार पर और तथाकथित अभिजात्यों के दुर्व्यवहार से पृथक धर्म हेतु संघर्षरत हैं।

   जबकि  1918-20 के सतनामी -हिन्दू महासभा का 
गठन कर सामाजिक टकराहट को  रोकने की दिशा में प्रयास हुआ  था।अनेक तरह के रचनात्मक कार्यक्रम के लिए 1921 में  सतनामी आश्रम रायपुर की स्थापना हुई।  इनके माध्यम से इन  दोनो संस्कृति व समुदाय में परस्पर सौहार्दपूर्ण परिस्थितियाँ निर्मित हो यह भी एक प्रमुख कारण रहा हैं।  इसी बीच देश में आज़ादी की लड़ाई तेज हुई और गाँधी जी का अभ्युदय हुआ । वे छत्तीसगढ़ में तीन प्रमुख घटना व कारण हेतु सघन दौरा हेतु आए -
  पहला - कंडेल नहर सत्याग्रह  , धमतरी 
 दूसरा - जंगल सत्याग्रह  तमोरा महासमुंद 
तीसरा - गोवध आन्दोलन  ढाबाडीह , करमनडीह  बलौदाबाजार । 
     इनमें धमतरी और बलौदाबाजार का दौरा महात्मागांधी जी ने किया और तात्कालीन समय में यहाँ के सत्याग्रह व जनान्दोलन से बहुत गहराई से प्रभावित हुआ। वे सतनामियों के धर्म गुरु अगमदास गुरु गोसाई व  72  संत -महंत से मिले और उन्हें बधाई देते राष्ट्रीय आन्दोलन में साथ/ सहयोग  देने अपील किए ।फलस्वरुप छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सतनामियों में मिलते हैं। 

   1915 में सलौनी बलौदाबाजार के सतनामी   राज महंत नयनदास महिलांग जी राष्ट्रीय परिदृश्य पर  गोवध आन्दोलन के प्रणेता थे। उन्होंने  इसके लिए सतत संघर्ष किए उनके अनन्य सहयोगी पलारी निवासी मदन ठेठवार जी थे। जो यादव समाज का प्रतिनिधित्व किया करता था। 
ब्रिटिश सरकार बांबे से कलकत्ता रेल्वे लाईन में निपनिया स्टेशन मांस निर्यात के बनाया था । और इनके आसपास दो बड़ा मवेशी बाजार थे एक बलौदाबाजार और दूसरा किरवई  बाजार । यहाँ कृषक छोटे पशु बछवा  पाडा व बांझ गाय भैसी या बच्चे न जन्मती बुढ़ी गाये व भैसं बेच देते थे। उन्हें  करमनडीह ढाबाडीह कसाई खाना ले जाते। और माञस निपनिया स्टेशन से रेल द्वारा बांबे कलकत्ता मद्रास आदि पहुचाए जाते । महानदी व शिवनाथ कछार की पशुधन का इस तरह इस्तेमाल होते थे ।
   उन्हें रोकने महंत नयनदास महिलांग पर्चे छपवाकर बाटते कि जो गाय - भैसी  बेचेगा  वो अपने वृद्ध   मा छोटी  बहन बेचेगा और जो बैल व भैसा वो  वृद्ध पिता व सगा भाई को ।  यह मार्मिक अपील से सामाज को गहराई से प्रभावित किया और भीषण आन्दोलन का स्वरुप लिया ‌ । फलस्वरुप ब्रिटिश  सरकार ने  दोनो जगहों से बुचड़खाना हटाए गये।
    उस समय पंथी गीत गाए जाते -
 झन मारो कसैया
 मै गैया हव जी
 मत मारो कसैया ...

 

    इन दोनों की युति ने अभूतपूर्व कार्य किया फलस्वरुप गांधी जी इनके कार्यों से प्रभावित होकर पलारी बलौदाबार परिक्षेत्र का दौरा किया । जिसके कारण सामाजिक सद्भाव कायम हुआ। 
    
  कृषक समुदाय सतनामी समाज गोपालक समाज है । और उनमें गोधन के प्रति बेहद लगाव व आस्था हैं। उसे वह सम्पदा के रुप में मानते हैं। उस गोधन के चरवाहे और सेवादार तथा उनके बनिस्बत आजीविका चलाने वाले रावत यदु वंशी समाज सतनामियों के बेहद निकट हैं। 
    असल में सतनामियों और अहिरों (यादवो) के बीच का संबंध उनके मूल उद्गम क्षेत्र नारनौल  अरावली के तराई से लेकर मथुरा यमुना नदी कछार तक की बसाहट   से संदर्भित जान पड़ता है।
    ब्रज क्षेत्र मथुरा में यदुवंशियों का जमघट व सघन बसाहट हैं। इसी क्षेत्र में भगवान कृष्ण का अवतरण व पालन पोषण मथुरा व  गोकुल गाँव में हुआ।  फलस्वरुप उनके प्रति भाव भक्ति यादव व सतनामियों में समान रुप से देखे जा सकते हैं।
   सतनामियों में श्री कृष्ण चरित रहस  और पंडवानी गायन की परंपरा है। इन कलाओं को  ये  लोग अपने साथ लेकर छत्तीसगढ़ में  1662 के मुगलकालीन सतनामी विद्रोह के पश्चात   आव्रजन किए ।
    तत्कालीन मुगल बादशाह  औरंगजेब का शाही फरमान था कि सतनामियों का नामों निशां मिटाकर उन्हे नेस्तानाबूत कर दिया । क्योंकि वे उनके भाई और मुगल वारिश दारा शिकोह के सहयोगी सतनामियों को मिटा देना चाहते थे। दारा शिकोह को सतनामियों का सादगी पूर्ण जीवन वृत्त और  निराकार निर्गुण भक्ति  भाते थे। और अनेक संत महंत से उनकी आत्मीय संबंध थे। 
     सतनामियों की जीवटता व साहस और दाराशिकोह से मित्रता खटकने लगे फलस्वरुप सतनामियों से भीषण संग्राम कर 5000 लोगो का कत्लेआम करवा दिए और नारनौल से बच्चे बुढे महिलाओं को  निर्वासित करने मजबूर किए ... फलस्वरुप देश के आंतरिक भागो में सतनामी बिखर गये।
     मथुरा क्षेत्र के सतनामी छत्तीसगढ़ में ब्रज की संस्कृति और कृष्ण भक्ति लेकर आए। 
  उनके पारंपरिक पंथी गीतों में कृष्ण भक्ति द्रष्टव्य हैं -

ए पार गोकुला अउ ओ पार मथुरा 
 बीच में जमुना के धारा के हो ललना 
सन्ना न रे नन्ना नन्ना हो लालना 
सन्ना न रे नन्ना नन्ना हो लालना 
खेले बर आए हे खेलाए बर आए हे 
खेलत खेलत जग मोहे हो ललना ...

छत्तीसगढ़ में आव्रजित समुदाय को  झरिया और कोसरिया दो भागो मे बाटा गया है । जो यहाँ आबाद है।  शाब्दिक रुप से झरिया का आशय झारखंड होकर आए और कोसरिया मतलब प्राचीन कोसल वासी । दूसरा जो झाड़ जंगल उजाड़ कर बसा वो झरिया हुआ। और जो पूर्व से बसा रहा कोसरिया । कोसरिया झरिया के अपेक्षा प्रतिष्ठित हैं। 
  यह दो  समुदाय  सभी जातियों में मिलते हैं। इन दोनो वर्गों से  सतनामियों का समागम हुआ। 
     झरिया और कोसरिया परिश्रमी समुदाय खासकर हिन्दू धर्म के शूद्र ओबीसी कहे जाने वाले समुदाय में खासकर रावत , नाई , धोबी , कुम्हार ,लोहार , तेली , कुर्मि आदि में पाए जाते हैं।  
      सतनामियों के छत्तीसगढ़ आगमन 1662  और 143  वर्ष बीत जाने के बाद 1795 में    गुरुघासीदास ने सतनाम पंथ का पुन: प्रवर्तन  किया ।और अपने सरल सहज धार्मिक / आध्यात्मिक सिद्धान्त से यहाँ के जनता जो प्रभावित कर सतनाम पंथ में दीक्षित किया ।इसमें सर्वाधिक अहीर और तेली समुदाय सम्मलित हुए तथा लगभग 65 जातियाँ सतनामी बने । सतनाम पंथ में  तेजी से धर्मांतरित  हो जनता को रोकने का षडयंत्र भी हुए और  सतनामियों को बहिष्कृत कर उनसे भेदभाव व अस्पृश्यता का व्यवहार किए जाने लगे। फलस्वरुप धर्मातंरण   थम सा गया।और सात्विक व आचार विचार में परिष्कृत समुदाय आश्चर्यजनक ढंग से अस्पृश्य कहलाने लगे। उनके साथ संघर्ष हेतु अहिरों को ही सामने लाए गये ।फलत: अनेक ग्रामों व जगहों पर दोनो के मध्य झड़पे भी होने लगे थे।
    
बहरहाल  देखे तो छत्तीसगढ़ की सर जमीं में सर्वप्रथम जातिविहिन समुदाय का संगठन  सतनाम पंथ अस्तित्व में आया। जिसमे कोई चमत्कारिक ईश्वर मंदिर मूर्ति आदि की पूजा नही अपितु परस्पर प्रेम सौहार्द से एक दूसरे से व्यवहार करना था। सत्य के प्रति अटूट निष्ठा रखते परिश्रम पूर्वक सादगी पूर्ण जीवन निर्वहन करने का व्यवहारिक सूत्र गुरुघासीदास ने दिया। जो हर परिश्रमी समाज के लिए ग्राह्य था।
     सतनामियों और अहिरों में बहुत सा गोत्र समान हैं। इससे ऐसा लगता हैं। कि यह पहले एक ही परिवार के सदस्य थे। गोपालक समाज होने से इनके गुरु को गोसाई कहे जाते थे। गुरुओं के गोत्र घृतलहरे हैं। जो धृत के अधिपति होते थे। और गात भैंस पालक थे। इनके घर चरवाहे अहिर होते थे। फलस्वरुप गांव गांव में दोनो समुदाय में सौहार्दपूर्ण परिस्थितियाँ  बना हुआ हैं। हालांकि बीच बीच में विध्न संतोषियो द्वारा इन दोनो वीरोचित भाव वाले स्वाभिमानी समाज को परस्पर संघर्ष करने उकसाते भी रहे हैं। पर जल्द ही इनमें मैत्रीपूर्ण भाव स्थापित हो गये हैं। और अब समन्वय भाव से  रहते आ रहे हैं।

  दोनो समुदाय में कुछ ऐसे गोत्र हैं। जो एक समान है -  सोनवानी , कोसरिया , गायकवाड़ , रौतिया , बंधैया , छंदैया  , महिषा,  भैसवार , करसायल सोनवानी  पहटिया ,पटैला ।
    इस तरह हम देखते हैं कि सतनामियों और अहिरों में प्राचीनकाल से ही अन्तर्संबंध स्थापित हैं। और यह संबंध अत्यंत प्रागढ़ हैं। मीत -मितानी सहिनाव और अन्तर्राजातीय विवाह से रिश्ते नाते भी स्थापित हैं।  
      छत्तीसगढ़ में रावत और सतनामी की भाषा और संस्कृति एक सा है गोत्र और कुल देवता एक सा ही रहा होगा । कृष्ण और गुरुबालकदास की एक दिन जयंती  होते है। घूमधाम से उत्सव मनाए जाते हैं।  
 कृष्ण की बहन और गुरुपुत्री राजा गुरुबालकदास की बहन सुभद्रा एक सा ही नाम हैं। और दोनों पूज्यनीय हैं।
   इस तरह  देखे तो ऐतिहासिक सामाजिक राजनैतिक व सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अहीरों और सतनामियों  में बहुत ही समन्वय भाव द्रष्टव्य हैं। दोनो समुदाय की नृत्य कला शौर्य व भक्ति नीति व कर्तव्य से परिपूर्ण हैं। जिसके आधार पर सांस्कृतिक तथ्य और  परिस्थितियाँ  अधिकांशतः  परिपूर्ण  हैं। 

     जय छत्तीसगढ़ ...

   डा. अनिल कुमार भतपहरी 
     ( 9617777514 )
    सी- ११/ ९०७७ 
   सत श्री ऊंजियार सदन 
 सेंट जोसेफ टाऊन , अमलीडीह रायपुर छ

Saturday, November 19, 2022

पुरुष दिवस पर

#anilbtapahari 

पुरुष दिवस पर 

मर्द को दर्द होता नहीं 
इस जुम़ला को 
गधे की तरह ढोता 
पुरुष का रुदन
मित्र या प्रेमिका समझती हैं
प्राय: पत्नी नहीं
कभी- कभी इसे 
उनकें बहाना / स्वांग  तक 
समझ लिए जाते हैं
 मां को तो अच्छा ही लगता है 
कि बेटा अब भी बच्चा है 
और रो भी सकता हैं
 बहनें गुस्से में रहती हैं 
कि भाभी के कारण यह दशा हैं
पर सवाल यह हैं 
कि अच्छे मित्र और प्रेमिका 
हर किसी के भाग्य में
 होता कहां हैं 
बेबस पुरुष भीड़ में 
औरतों की तरह फूट -फूट कर 
रोता कहां हैं 

     ।।पुरुष दिवस की बधाई ।।
  19 -11-2022

Wednesday, November 2, 2022

फिल्म बाबी का फैशन

#anilbhatpahari 

       राजकपूर निर्देशित और ऋषि / डिंपल अभिनीत  फिल्म बाबी का क्रेज ऐसा था कि नवयुवकों  और किशोरों  के जुबान पर ..." मै शायर तो नही मगर ए हसीं जब से देखा तुझको मुझको शायरी आ गई ...गुंजने लगा था । 
    मेरे लिए यह सौभाग्य रहा कि  किशोर वय में पिता श्री के स्नेह के चलते  टेलर से बाबी कट बकरम वाले कालर का आर्डर से चटक कलर हाफ शर्ट और सफेद रंग का बेलबाटम वाली फूल  पैंट  बनवाए थे ।हालांकि फैशन शहर से गांव आने मे टाईम लगता है  पर हम जैसे अर्ध शहरी/ ग्रामीण  लोग ही तो इनके संवाहक है । गांवों के बाजार मे डिंपल पाउडर  और बादल छाप स्नो भी लड़कियों मे खूब बिकते। कभी -कभी हम लोग भी खरीद कर लगाते ।  अनेक बाल मित्रों मे एक जो हम लोगों से शरीर में  बड़ा पर बुद्धि में छोटा या कहे कमजोर या मंद टाईप का  था। वे मजाकिए भी बहुत थे और उनके हर चीज को कहने ढंग थोड़ा अलग टाईप का था । 
     एक दिन डिपंल पाऊडर लगाए लड़कियों के झुंड गुजरते देख कहे - "बड़ ममहात हे कहर म नाक तको फूट जाही"  ... उनकी यह बातें उस समय हमें भी समझ नही आया और इस बात पर खूब चर्चाएं हुई।  ... कुछ सयाने लोगों तक बात गई कि कहर से नाक कैसे फूटेंगे ? उन में  से  दो चार मनचलों का जवाब  यहां अवर्णनीय हैं। पर यह समझ में आया कि इत्र या खुश्बु सम्मोहन  या रिझाने के वास्ते लगाए जाते हैं। और रात मे तो भूत -प्रेत जिन्न तक लगाने वाले के पास  आ जाते हैं। तो जिन्दा हाड़ मांस के आदमी का क्या बिसात । 
          सच मे , उस दिन के बाद  डिंपल का सुंगध   जब जब सुंधने मिलता तो डिंपल कपाड़िया गुजर रही है ऐसा लगता और कभी -कभी   मन मे धबराहट/ बैचैनी होने लगते कि कही हम लोग कही खीचां  तो नही  जाएगें ...भूत -प्रेत ,जिन्न की तरह ।
      
      फैशन की उस दौर 1981 मे सातवीं पढते बाबी कट शर्ट पहिनने  और सफेद बेमबाटम फूल पैंट भी यदा - कदा  और शेर -ओ- शायरी करने शौक चर्राने लगा था ! शायद तभी से अक्षर जोड़ने की कलाए विकसित होने लगे ।
हां बेलबाटम में स्टील का रिंग लगाकर  ट्रींग ट्रींग घंटी बजाकर दोनो हाथ छोड़कर  सायकल चलाने का अपना एक अलग ही मजा था। 
    हालांकि कभी- कभार गिर पड़ते थे  और बेलबाटम चैन पर फंस कर गंदे भी हो जाते  पर  रानी पाल लगाकर चमका लेते थे और लोहे की इस्त्री  मे कोयला डाल आयरन करना सीख भी गये थे । यह सब तिकड़म उस मज़ा के सामने ए सब कुछ नहीं हैं।
    
    वह भी क्या दौर था यार ... बेफ्रिक और बिंदास अहा ! जिन्दगी ।

याद ए बचपन

#anilbhatpahari 

       राजकपूर निर्देशित और ऋषि / डिंपल अभिनीत  फिल्म बाबी का क्रेज ऐसा था कि नवयुवकों  और किशोरों  के जुबान पर ..." मै शायर तो नही मगर ए हसीं जब से देखा तुझको मुझको शायरी आ गई ...गुंजने लगा था । 
    मेरे लिए यह सौभाग्य रहा कि  किशोर वय में पिता श्री के स्नेह के चलते  टेलर से बाबी कट बकरम वाले कालर का आर्डर से चटक कलर हाफ शर्ट और सफेद रंग का बेलबाटम वाली फूल  पैंट  बनवाए थे ।हालांकि फैशन शहर से गांव आने मे टाईम लगता है  पर हम जैसे अर्ध शहरी/ ग्रामीण  लोग ही तो इनके संवाहक है । गांवों के बाजार मे डिंपल पाउडर  और बादल छाप स्नो भी लड़कियों मे खूब बिकते। कभी -कभी हम लोग भी खरीद कर लगाते ।  अनेक बाल मित्रों मे एक जो हम लोगों से शरीर में  बड़ा पर बुद्धि में छोटा या कहे कमजोर या मंद टाईप का  था। वे मजाकिए भी बहुत थे और उनके हर चीज को कहने ढंग थोड़ा अलग टाईप का था । 
     एक दिन डिपंल पाऊडर लगाए लड़कियों के झुंड गुजरते देख कहे - "बड़ ममहात हे कहर म नाक तको फूट जाही"  ... उनकी यह बातें उस समय हमें भी समझ नही आया और इस बात पर खूब चर्चाएं हुई।  ... कुछ सयाने लोगों तक बात गई कि कहर से नाक कैसे फूटेंगे ? उन में  से  दो चार मनचलों का जवाब  यहां अवर्णनीय हैं। पर यह समझ में आया कि इत्र या खुश्बु सम्मोहन  या रिझाने के वास्ते लगाए जाते हैं। और रात मे तो भूत -प्रेत जिन्न तक लगाने वाले के पास  आ जाते हैं। तो जिन्दा हाड़ मांस के आदमी का क्या बिसात । 
          सच मे , उस दिन के बाद  डिंपल का सुंगध   जब जब सुंधने मिलता तो डिंपल कपाड़िया गुजर रही है ऐसा लगता और कभी -कभी   मन मे धबराहट/ बैचैनी होने लगते कि कही हम लोग कही खीचां  तो नही  जाएगें ...भूत -प्रेत ,जिन्न की तरह ।
      
      फैशन की उस दौर 1981 मे सातवीं पढते बाबी कट शर्ट पहिनने  और सफेद बेमबाटम फूल पैंट भी यदा - कदा  और शेर -ओ- शायरी करने शौक चर्राने लगा था ! शायद तभी से अक्षर जोड़ने की कलाए विकसित होने लगे ।
हां बेलबाटम में स्टील का रिंग लगाकर  ट्रींग ट्रींग घंटी बजाकर दोनो हाथ छोड़कर  सायकल चलाने का अपना एक अलग ही मजा था। 
    हालांकि कभी- कभार गिर पड़ते थे  और बेलबाटम चैन पर फंस कर गंदे भी हो जाते  पर  रानी पाल लगाकर चमका लेते थे और लोहे की इस्त्री  मे कोयला डाल आयरन करना सीख भी गये थे । यह सब तिकड़म उस मज़ा के सामने ए सब कुछ नहीं हैं।
    
    वह भी क्या दौर था यार ... बेफ्रिक और बिंदास अहा ! जिन्दगी ।

Sunday, October 30, 2022

राज्योत्सव भाषण

मान मंत्री जी का भाषण -

राज्योत्सव एंव अन्तराष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव 
        
    कार्यक्रम के  सम्मानीⁿ0य  मुख्य अतिथि   प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री  मान भूपेश बघेल जी एंव अध्यक्षता कर रहें सम्मानीय विधानसभा अध्यक्ष  मान. डॉ. चरणदास महंत जी अतिविशिष्ट  अतिथिगण छग शासन के  सम्मानीय मंत्री गण ,विधायक  गण , हमारे शासन- प्रशासन के समस्त अधिकारी -कर्मचारीगण  एंव उपस्थित समस्त प्रदेशवासियों को  राज्योत्सव परब की हार्दिक बधाई । 
     इस  पावन अवसर पर आयोजित  अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य समारोह में भाग ले रहे टोंगो ,मोजाम्बिक , मंगोलिया ,रुस,इंडोनेशिया ,मालदीव  इजिप्ट न्यूजीलैण्ड  और सर्बिया  इन नव  देश के प्रतिभागी गण एंव   देश के सभी प्रांत  व केन्द्र शासित प्रदेशों से आए लोक नर्तक दलों का हृदय से स्वागत  करता करते हुए उनका हार्दिक अभिनंदन करता हूं।
     उपस्थित विशाल जन समूह सहित प्रदेशवासियों को  राज्योत्सव 2022 की हार्दिक बधाई प्रेषित करता हूँ।
        चित्रोत्पला गंगा महानदी शिवनाथ ,इंद्रावती के  पावन जल से सींचित चालिस प्रतिशत भूभाग पर वनाच्छादित इस रत्नगर्भा छत्तीसगढ़ की स्थापना दिवस को हम लोगों ने  एक उत्सव के रुप में मनाते आ रहे हैं। जिसमें प्रदेश की ढाई करोड़ जनता के साथ साथ देश -विदेश के 1500 लोक कलाकार , अनेक  विशिष्ट विभूतियां एंव  कला साहित्य  संस्कृति के विशेषज्ञ और अतिविशिष्ट प्रबुद्ध जनों की सहभागिता का यह मणिकांचन त्रिदिवसीय महाआयोजन हैं। इनके साथ -साथ सभी जिला मुख्यालयों में भी राज्योत्सव मनाए जा रहे हैं-

जय छत्तीसगढ़ ओ मोर महतारी सुरुज जोत म करव आरती 
महानदी के पानी म चरण पखारव 
सफरी दूबराज के ओ भोग चढ़ावव 
ब इठार चंदन पिढुली म करव सिंगार 
जावय ज इसे बेटी ससुरार ...

      छत्तीसगढ़ महतारी  अपनी वैविध्यपूर्ण सांस्कृतिक चेतना के साथ धन धान्य एंव अनेक महत्वपूर्ण आधारभूत लौह अयस्क ,कोयला, बाक्साइट, चुना  पत्थर , सहित प्रचुर मात्रा मे स्वर्ण व हीरे आदि का भंडारण  के कारण चर्चित हैं।प्रदेश  देश - विदेश में धान का कटोरा के नाम से विख्यात है।  
    सादगी पूर्ण मेहनत कश व ईमानदारी से जीवन यापन करने वालों के लिए  " छत्तीसगढिया सब से  बढिया " का जो स्लोगन और असीस मिलता हैं। वह अत्यंत गौरवशाली हैं। 
    प्रदेश के उत्तर - दक्षिण में अवस्थित बस्तर और सरगुजा सूदूर वनाचंल में 41 तरह के जनजातियाँ निवास रत है जिनकी जनसंख्या लगभग 32 प्रतिशत है।  मध्य  छत्तीसगढ़ में ग्राम्य और नगरीकरण है ‌ इन तीनो परिक्षेत्र में भाषाई एंव सांस्कृतिक विविधताएं  प्रदेश का गौरव हैं। साथ ही भिलाई -कोरबा जैसे  औद्योगिक तीर्थ भूमि में देश भर के लोग निवासरत हैं जो लघु भारत के रुप में दर्शनीय हैं। 
   प्रदेश का गौरवशाली इतिहास अत्यंत समृद्ध हैं। पाषाण काल से लेकर रामायण महाभारत काल के  पुरावशेष विद्यमान हैं। दक्षिणापथ के नाम विख्यात यह भूमि आर्य और द्रविण संस्कृति का समागम स्थली हैं। इसलिए यहाँ दोनो संस्कृति का मिला जुला रुप दर्शनीय हैं। अनेक इतिहास प्रसिद्ध वंश जिसमें मौर्य , गुप्त ,सातवहन , सद् वाह ,  वाकाटक कलचुरि ,काकतीय ,गोड  जैसे राजवंशों का शासन रहा है। 
   भगवान राम का नौनिहाल माता  कौशल्या  जी का मायका इस दक्षिण कोशल प्रांत में वनवास के ११ वर्ष व्यतीत किए‌ तो वही कृष्ण  अर्जुन के साथ आरंग के राजा मोरध्वज के आतिथ्य प्राप्त किए। महात्मा बुद्ध का आगमन सिरपुर नरेश विजयस के कार्यकाल में हुआ था जहां उन्हे एक सहस्त्र कोषा वस्त्र भेंट किए गये।  सम्राट वृहदबल , महाशिवगुप्त बालार्जुन , बौद्ध भिक्षु  नागार्जुन आनंद प्रभु  इञद्रभूति , संत कबीर धर्मदास , गुरुनानक ,गुरुघासीदास वल्लभाचार्य एंव विवेकानंद जैसे युगपुरुषों का कर्मभूमि व जन्म भूमि हैं। 

     यहां पर प्राचीन बौद्ध विहार , बुद्ध प्रतिमाएं, ताला का रुद्र शिव , बारसुर ढोलकन पहाड़ बस्तर की गणेश प्रतिमाओं की ख्याति दुनियाभर में हैं। सिरपुर राजिम शिवरीनारायण गिरौदपुरी दामाखेड़ा ,मैनपाट, बस्तर दशहरा जगदलपुर में प्रतिवर्ष लाखों दर्शनार्थी आते हैं।  
       एशिया महाद्वीप का अकेला इंदिरा  संगीत एंव कला विश्वविद्यालय खैरागढ़ छत्तीसगढ़ की शान हैं। जहां देश -विदेश सेवा हजारों  विद्यार्थियों और कलावंत निकलते हैं।
            
    अंत में यही कहना चाहता हूँ कि प्रदेश विकास के मामले में सदैव अग्रणी रहे । जनता सुखी व समृद्धशाली रहे -

धान के कटोरा हर धान म छलकय 
फूलय फरय अउ अंजोर बगरावय ‌

हरेली

#anilbhatpahari  Happy Hareli 

हरेली तिहार के अघादेच बधाई हवय 

हरेली 

हर लेही  दु:ख असो हरेली 
‌नोहय चिटिक गोठ बरपेली 

जामत बोवत बरसिस  बादर 
सम्मत सोला आना ले आगर

जांगर टोर करेन जबर मतासी 
तभे लौहा झरिस रोपा-बियासी 

सइता राखव  अउ  धीर धरव 
देव धामी ल बने सुमरव बदव 

चढ़ावव चीला मचव सब गेड़ी 
हर  लेही  दु:ख  असो  हरेली 
         - डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

व्यसन मुक्त संस्कारवान समाज संरचना


संपादकीय - 
      व्यसन मुक्त संस्कारवान समाज संरचना हेतु अग्रसर 

   कृषि संस्कृति का महापर्व  सुरहुत्ती, देवारी और गोबरधन  फसल कटाई कर धान का खेतों से खलिहान व  घर में लाने का  उनके भव्यतम स्वागत करने का महोत्सव है । इस अवसर पर गाय बैल -भैसा जैसे पशुओं को खिचड़ी खिलाकर उत्सव मनाने का हैं। जिसे हर्षोल्लास पूर्वक मनाये हैं।
   अब दीपावली के बाद राज्य  में कृषक समुदाय धान की कटाई -मिसाई  करके मंडी व ग्रामीण बैंक जहां वे  कृषि कार्य के लिए ऋण लिए होते है को अदा कर शेष रुपये  लेने में जुट जाएन्गे। इस बार एक नवंबर से धान खरीदा आरंभ हो रहे हैं। 
  सतनामी समाज कृषक समाज है और  राज्य के विकास में अहम भूमिका निभाते आ रहें हैं। वे सभी बकाया ऋण वापस कर शेष धनराशि को वर्ष भर चलाने के लिए प्लानिंग कर ले और जरुरत के हिसाब से आहरण करें।
     प्रायः यह देखने में आता हैं कि  मातर मड़ ई और दिसंबर माह में जयंती पर खूलकर रुपये खर्च कर दिए जाते हैं कही -कही जुएं आदि के चलते आर्थिक संकट में घिरे रहते हैं। इनका परित्याग करना चाहिए। 
    वर्ष भर के लिए  बेहतर प्लानिंग कर मितव्ययता  अपनाएं तो कम में भी संतुष्ट और बेहतर जीवन जिए जा सकते हैं।
       
     प्रगतिशील सतनामी समाज अपनी सामाजिक व धार्मिक गतिविधियों को बेहतर करने तथा विभिन्न जिला ईकाइयों को सक्रिय करने में निरंतर लगे हुए हैं। इस कड़ी में विगत दिनों कोरबा एंव शक्ति जिला में दौरा कर कार्यक्रम व्यवस्थित किए गये ।तथा महासमुंद जिला का निर्वाचन शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुआ। सभी पदाधिकारी गणों को बधाई ।एंव यह अपेक्षा कि संगठन को सुचारु रुप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेंगे तथा जहां पर संकट व व्यवधान हो उन्हे संवैधानिक रुप से हल करने में त्वरित सहयोग व सलाह प्रदान करेंगे। 
    दिनांक 15 अक्टूबर को सभी उप समितियों के लिए मार्गदर्शिका तैयार की गई है उनपर अमल लाने गहनता से विचार विमर्श किए गये ।
     विगत दिनों छत्तीसगढ़ शासन ने अनुजाति विभाग को स्वतंत्र कर स्वागतेय कार्य किया  । ऐसा होने पर अब अनु जातियों के विकास हेतु पृथक बजट मिलेगा फलस्वरुप तेजी से कार्य हो सकेगा ।  राज्योत्सव के पूर्व ही अनु जाति आयोग के अध्यक्ष  पद पर समाज के सेवानिवृत्त  प्रशासनिक अधिकारी  वरिष्ठ समाजसेवी के पी खांडे जी एंव  सदस्यों  मे  श्रीराम पप्पु बघेल , संतोष सारथी , सुरेश पैगवार की नियुक्ति हर्ष दायक हैं।  सभी पदाधिकारियों को बधाई । 
       यह पत्रिका आप तक पहुचेगी तब तक लोगों के धान के पैसे आना शुरु हो जाएगा और मेले मड़ाई के साथ साथ गुरुघासीदास जयंती महोत्सवों  में मुक्त हस्त से खर्च करने की मनोवृत्ति भी जागृत हो जाएगा । 
   हमारा समाज उत्सव धर्मी समाज हैं और प्रायः भविष्य की अनावश्यक चिंता से मुक्त भी ।पर अब इस तरह की मनोवृत्ति में आवश्यक सुधार की अपेक्षा होना ही चाहिए।  जैसे शासन संस्थाएं अपना वर्ष भर की बजट बनाते हैं। और हर छोटी बड़ी आवश्यकता के लिए फंड रखते हैं। ठीक उसी तरह बच्चों के शिक्षा स्वास्थ्य खेती - बाड़ी और  घर के सदस्यों के लिए कपडे जेवर व कुछ महत्वपूर्ण शौक एंव सतनाम धर्म के महत्वपूर्ण कुछ धार्मिक स्थलों की यात्रा हेतु योजना जरुर बनावें। इससे परिवार के सभी सदस्यों के हित संवर्धन होगा और बेहतर जीवन निर्वाह भी । 
    शैन: शैन: बुरी  व्यसनों जुएं एंव  शराब गुड़ाखू , तंबाकू ,बीड़ी गुटका आदि से बचे । क्योंकि ग्रामीण जनता इनमें आकंठ डूबे हुए हैं। और यही   पारिवारिक कलह एंव शारीरिक दु:ख और मानसिक विकास के सबसे बड़ा बाधक तत्व हैं। 
     हमारे पदाधिकारियों एंव समाज सेवकों को इनके लिए जन जागरण अभियान चलाना पडेगा। इसके लिए सार्वजनिक  नैतिक शिक्षा ज्ञान के लिए सत्संग प्रवचन भजन पंथी आदि सांस्कृतिक आयोजन करवाना चाहिए । हर आठ दस गांवों के मध्य   जहां सतनाम भवन हो वहां पर उक्त आयोजन एंव  सार्वजनिक भोग भंडारा हो उनमें सेवादार व प्रबञध संचालन समिति गठित कर  सांस्कृतिक जागरण लाए जा सकते हैं। इसके द्वारा न ई पीढ़ी को संस्कार मिलेगा और बडे -बुजुर्गों की अनुभव सहभागिता से उन्हे प्रेरणा मिलेगा। युवा वर्ग अपनी आपार रचनात्मक और सकारात्मक शक्तियों को   इस तरह समाज की बेहतरी के लिए इस्तेमाल कर सकेगें।
    राज्योत्सव की हार्दिक बधाई सहित आगामी पवित्र दिसंबर  गुरुपर्व का माह की स्वागतार्थ मंगलकामनाएं ... जय सतनाम ।
    - डाॅ. अनिल भतपहरी      9617777514 
 ऊंजियार सदन सेंट जोसेफ़ टाउन  अमलीडीह रायपुर छ ग

Thursday, October 27, 2022

लघु कथा :थोड़े में बहुत

"थोड़े में बहुत "   

     पता नही क्यों.. समान विचार-धारा या मंतव्य रखने वालों के प्रति नेह होने लग जाते है। चाहे वह समलिंगी या विषमलिंगी हो।
   या ऐसा भी कह सकते है कि विचारधारा में लिंगभेद नही होते । मिलने पर सभी संगी हो जाते है । 
     हुआ युं कि अल सुबह बस में बैठते ही एक 6-7  साल की बालिका शनि देव की फोटो रखी, भिक्षाटन हेतु आई । बिना कुछ बोले चुपचाप यात्रियों के समक्ष  घुमाने लगी ... लोग यथाशक्ति रुपये देने लगे जैसे ही मेरे पास आई  मैने कहा - "स्कूल क्यो नही जाती ?"  पढ़ने के वक्त भीख !  सहयात्रियों की निगाहे चिरती - भेदती आड़ी -तिरछी होने लगे।
   वे भी बड़ी- बड़ी  आँखें तरेरती गुस्से से कुछ न बोली और पीछे सीट की ओर बढ़ गई ।
    थोड़ी देर पीछे दरवाजे से उतर ही रही थी कि हमने खिड़की से देखा कि उसकी माँ , बुआ या जो हो,  काले रंग की साड़ी मे सजी-धजी एक और शनि महराज को टोकनी नुमा कमंडल में रखी एक स्कुटर सवार से भिक्षा मांगने लगी.. वे तमतमाते कह रहे थे -"शर्म नही आती जवान होकर मांगती -फिरती हो !" 
गंदा काम करती हो ! 
बच्चों को पढ़ना -लिखना छुड़वाकर  उनसे भीख मंगवाती हो!
ओ कही -"अच्छा काम क्या है ? "
"परिश्रम !"
हाथ नचाती मोहक अंदाज से ओ कही-" ओय बाबू साहेब  इन्ने मे भी  बडे मिहनत लागे हाय !
  वो इस तरह के प्रश्नों से अभ्यस्त थी और जवाब देना जानती थी।
  वे मंद -मंद मुस्काने लगी..दान देना नइ देना मरजी आपका ,पर शनि महराज से तो तनिक खौप खावै साहेब जी !
   पल भर में  हमारा नेह उस अजनबी से  जुड़ गये ...और  बहुतों का नेह  पल भर में उस शनि पूजारन से ,जो काली रंग की साड़ी में बला की खूबसूरत   लग रही थी ।लोग कौतुहल व अन्य भाव से उनकी ओर दया तो नही पर मया वाली दृष्टि से टुकुर- टुकुर देखने लगे  .... दो -चार समर्थन में स्वर उठे -" यही लोग हमारी संस्कृति के रखवाले है,हमें उन्हे आदर देना चाहिए .... बस तो चल पड़ी पर ऐसा कहने वालों से हमारी बहस शुरु हो गये कि -"क्या ये लोग संस्कृति के संवाहक है और क्या इससे  देश  कीर्तिमान होन्गे?" .... वृतांत लंबी है पर इसे "थोड़े में बहुत "समझना ।
   -डां. अनिल भतपहरी 
       9617777514

Tuesday, October 25, 2022

सुरहुत्ती

सुरहुत्ती परब के बधाई 

।।सुरहुत्ती ।‌।

गज मोतियन  चउक  पुरव अंगना- दुवारी  
सज -धज के आत हवय अनपुरना कुंवारी
सोपा परत रतिहा हमर चुहुल-पुहुल पहाती
आये ये बेरा ह लागय आरुग अउ  ममहाती  
धरसत बरदी परघा लव लेत संझा - आरती 
दीया बार ओरी-ओर मानव  सुघ्घर सुरहुत्ती 
           
                - डाॅ. अनिल भतपहरी/ 9617777514

Saturday, October 22, 2022

छायावाद और मुकुटधर पांडे

छायावाद और मुकुटधर पांडेय 

    हिन्दी साहित्य में छायावाद का कालखंड अतिशय महत्वपूर्ण हैं। बिन इनके साहित्य का अध्ययन अध्यापन या विचार विमर्श संभव नही है।  सच कहे तो इस  कालखंड मे हिन्दी जिसे खड़ी बोली कहे जाते है और काव्य के लिए अनुपयुक्त वह धारणा बदली और हिन्दी भाषा प्रांजल और   काव्यमय हुई।   
        हालांकि कोमल कांत पदावलि और बढते संस्कृत निष्टता के चलते भाषा दुरुह जटिल हुई तथा कविता रहस्यमय होकर गुंफित भी हुई पर यह जटिलता ही भाषाई संरचना और भाव विन्यास को गहराई से समझने की व्यापाक दृष्टि भी प्रदान की।
    छायावाद मे जो पश्चिम की  मिस्टीसिज्म या रुमानियत और इस्लामिक सूफियाना फलसफा दिखता है उससे यह बेहद प्रभावी और वैश्विक स्तर पर चिन्हाकित भी की गई  ।
    इस छायावाद के प्रवर्तक कवियों मे छत्तीसगढ के रायगढ़ जिला के महानदी तटवर्ती बालपुर ग्रामवासी कविवर पं. मुकुटधर पांडे अग्रणी है। कुर्री के प्रति  काव्यांश का यह भाव देखिए जिसमेञ  छायावाद के विशेषताएं समाहित है-

 शून्य गगन में कौन सुनेगा तेरा विपुल विलाप ?
बता कौन सी व्यथा तुझे है , है किसका परिताप ?    (१ मुकुट धर पांडे व्यक्ति एंव रचना  - संपा महावीर अग्रवाल  पृ ४१०)
    यह प्रश्न वियोगी कवि  का प्रश्न है जिनकी उत्तर खोजा जाना शेष है।
   कविवर पंत जो छायावाद के बड़ा नाम है वो तो स्पष्ट कहा है -

वियोगी होगा पहला कवि आह से ऊपजी होगी गान ।
नैनो से उमड़ कर चुपचाप बही होगी कविता अनजान ।।   (२)

हालांकि छायावाद और उनके प्रवर्तक के नाम पर काफी प्रवाद है ।यह नाम साहित्य जगत  चल पड़ा पर किसने सबसे पहले उपयोग किया इन पर भी बहसे आज तक की जाती  हैं, फलस्वरुओ लोगों मतैक्य नहीं है।
    सन १९२० में ' श्री शारदा ' पत्रिका जबलपुर से निकलती थी उसमें ' हिन्दी कविता में छायावाद शीर्षक से एक लेख माला पंं. मुकुटधर पांडेय की छपी। उसके माध्यम से पहली बार " छायावाद " शब्द और छायावादी काव्यान्दोलन को लेकर प्रमाणिक तौर पर विस्तृत रुप से सामाग्री सामने आई। " इसी तरह हितकारिणी पत्रिका मे -"हिन्दी कविता में छायावाद " निकली।  ,( पृ3 वही पृ 438 )इस आधार पर  उन्हे छायावाद नाम देने वाले कहे जा सकते है।
     और तो कविवर पांडे जी  उस अज्ञात सत्ता और शहर का श्रोता बनकर हमारे समक्ष सुनाने आ जाते है - 
    सुना , स्वर्णमय भूमि वहां की मणिमय है आकाश ।
वहां न तम का नाम कहीं है, रहता  सदा प्रकाश ।।   ( ४ वही पृ ४११)

    बालपुर ग्राम मे निर्भय और निसंक निवासरत थे । भौतिक  अभावों के बीच प्राकृतिक संशाधनों और आत्मीय संपदा के वे मालगुजार थे फलस्वरुप ग्राम वैभव उनकी कविता द्रष्ट्व्य है - 

शांति पूर्ण लघु ग्राम बड़ा ही सुखमय होता भाई। 
देखों नगरों से भी बढ़कर इनकी शोभा अधिकाई ।। ( ५  वही  पृ ४१९ )
      मुकट धर पांडे जी की मूल्याकंन बच्चू जांजगिरी ने की फलस्वरुप उनकी  ख्याति चतुर्दिक फैली अन्यथा उनकी अवदान सुदूर छत्तीसगढ़ के होने के कारण विस्मृत कर दिए गये होते । बहरहाल यहां के साहित्यिकों का यह नैतिक दायित्व है कि यशस्वी रचनाकारों की ओर भी नजर इनायत कर लिया करें। पता नही हमारे बौद्धिकों / अध्येताओं, रचना धर्मियो  यहां तक आध्यापकों को भी यह लगता है कि बड़ा फलक और रचनाकार केवल  गंगा हिमालय के भूभाग मे गोया कि वही सौन्दर्य बिखरा हुआ है और कही नही फलस्वरुप वहां बडे और प्रवर्तक रचनाकार होन्गे। पं . मुकुटधर जी इस मिथक को तोड़ते है। और छोटे से ग्राम मे रहकर वे वैश्विक साहित्य रचते है - 
दीन - हीन के अश्रु नीर में 
पतितों की परिताप पीर में
संध्या के चंचल समीर में 
करता था तू गान 
देखा मैने यही मुक्ति थी 
यही भोग था यही मुक्ति थी 
घर मे ही सब योग - युक्ति थी 
घर ही था निर्वाण । ६ वही , पृ ४१४ 
    इस तरह देखे तो उनकी रचनाएं  भाव प्रवण और भाषा बहुत ही उत्कृष्ट हैं।  उनकी रचनाओं  छायावाद और स्वच्छंदता स्पष्ट दृष्टिगोचर होते है 
।    
    उनकी रचनाओं छत्तीसगढ़ी शब्द और यहां की साञस्कृतिक तत्व अनायस देखने मिल जाते है। उनकी चर्चित व प्रतिनिधी कविता कुर्री के प्रति एक तरह से प्रवासी पक्षी का समूह है जो दूर देश आते है। उनकी उच्चरित  ध्वनि के कारण यहां उसे कुर्री कहते है को लक्ष्य कर उन्होने अप्रतिम काव्य रचना की और वह छायावाद की कविता के रुप में स्वीकृत की गई ।कुर्री कहने मात्र से ही छत्तीसगढ प्रदर्शित हो जाते है। महाकवि कालिदास कृत मेघदूत का छत्तीसगढ़ी अनुवाद दर्शनीय है। उनकी अनुवाद कला और छत्तीसगढ़ी शब्द संयोजन बेहद सटीक है। इस अनुवाद से सहज पता चलता है कि छत्तीसगढ़ी अनन्य भावों अभिव्यक्त कर सकने असीम क्षमता संस्कृत सदृश्य रखती है। 
     
भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मनित पांडेय जी प्रदेश के गौरव है । वे आने  वाली न ई पीढी के मार्ग दर्शक हैं।
       उन्हे शत -शत नमन 
    डा. अनिल कुमार भतपहरी 
          ( 9617777514)
             सचिव 
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर

Monday, October 17, 2022

वन्या

#anilbhatpahari 

।।वन्या ।।

महुएं की फूल मानिंद 
टपकी है अभी -अभी 
ओस की बुंद ठहरी हैं‌
तृणनोक में अभी-अभी

अनछुआ आरुग सौन्दर्य 
पर कद्र नहीं जमाने को 
सुर्खाब़ के पर लग जाएन्गे 
लिखने वालों के अफ़साने को 

जिन्हे आता नही जीना 
वे मुग्ध है तरीके बताकर 
समझते इन्हें जाहिल-गंवार
अपढ़ - मूढ़ ,ग्रामीण- बेकार  

ये सितारेदार जो चमक रहे हैं
कलफ लगाएँ रंग- रोगन कर 
हक किसी दूसरे का छीन कर 
छल -छद्म , शोषण-दमन कर  

ब‌ने हुए है ये लोग शर्माएदार 
बे़दखल कर किए इन्हे बे़बस 
पर वे आपकी तरह नहीं हैं
हताश निराश और उदास 

आवश्यकता कम ,संतुष्ट सदा
 निश्चछल हांस-परिहास 
सीखे जीवन जीना इनसे 
चमके अँधेरे में सितारे सा उजास

स्वाभिमान और पुरुषार्थ की 
 दृष्टान्त  यह वन्या  
साहस और वीरता की 
प्रतिमूर्ति प्रणम्य वन कन्या 

 - डाॅ . अनिल भतपहरी / 9617777514

Sunday, October 16, 2022

मैं का मायाजाल

#anilbhatpahari 

।।मैं का मायाजाल ।।

मै की बिमारी फैले हैं
चारो तरफ चहूँ ओर 
मैं से हम, हम से मैं 
का हैं सब तरफ शोर 
आजकल का नहीं ,
यह रोग बहुत पुरानी हैं
मय दानव के मायाजाल से
भरी -पुरी कहानी हैं
मैं के कुनबे मिलकर
आपस में हम हुआ 
फिर जातिय संगठन
का उदय अहम हुआ 
मानवता पिसाती गई 
इनकी काली करतुत से 
तुष्ट भले वे हो अपनों में
पर मरते जन दारुण दु:ख से 
मैं के कारण ही सर्वत्र 
छल -छद्म  पलने लगा 
वर्ग संघर्ष शोषण दमन का
चक्र  चलने लगा 
उसी का विस्तार देखों
अब भी फल- फूल रहा 
पर उपदेश कुशल बहुतेरे 
प्राय:इन के ही उसुल रहा 

    -डॉ. अनिल भतपहरी, ९६१७७७७१५४
     सत श्री ऊंजियार सदन ,सेंट जोसेफ टाउन अमलीडीह रायपुर ‌छ ग.

डोंगरगढ महोत्सव

https://youtu.be/kadgexpuoK4

Friday, October 14, 2022

गुरुघासीदास फिल्म पटकथा - ४

*गुरु घासीदास फिल्म पटकथा*
            भाग चार -

पक्षी जीवन दान - दृश्य, खेल मैदान।
पात्र - भागचंद, सुकरीत, धनवा, अमरचंद, धजा दास,  सुमरन, बुधारू, घासी।

सुकरीत - मित्रों चलिए आज सब मिलकर गुल्ली - डंडा खेलते हैं।
अमरचंद - सुकरीत, सही बोल रहे हो। सब गुल्ली डंडा खेलें।
बुधारू - हां - हां चलिए, मैं डंडा, गुल्ली लेकर आता हूं। ( अपने घर से गुल्ली, डंडा लेकर आता है
सुकरीत - ( घासी की ओर देखकर) चलिए घासी आज मुझे हराकर दिखाना। 
घासी - मतलब मुझसे खेलने के पहले डरे हुए हैं।
सुकरीत - डर नहीं, चुनौती है।
घासी - चुनौती देना, अर्थात भीतर से हार स्वीकारना है।
( खेल मैदान में पहूंच कर धनवा गोल घेरा खींचता है, खेल शुरू करते हुए  सबसे पहले  बुधारू गुल्ली उचकाकर डंडा से मारता है। बारी - बारी सभी खेलने लगे)
घासी - मित्रों सबको खिलाड़ी भावना से खेलना है, कैसे अमरचंद ?
अमरचंद - हां, घासी, सत्य बोल रहे हो। (मित्रगण हामी भरते हैं)
धनवा - ( गुल्ली उचकाकर डंडा से मारते ही गुल्ली हवा में तैरते हुए  ऊंचाई म उड़ रही चिड़िया से टकराते ही चिड़िया नीचे गिर जाती है ) ओह् चिड़िया गुल्ली पड़ने से गिर गई।
(मित्रगण निकट जाकर देखते हैं गंभीर चोंट लगने से चिड़िया घायल अवस्था में तड़प रही है किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। बालक घासी उठाकर पेड़ के नीचे लाकर शीतल जल पीलाता है तथा घाव में औषधीय लगातें हैं थोड़ी देर में चिड़िया चेतनावस्था में आते ही फ़ुर्र हो जाता है। सभी बालक प्रसन्न होकर तालियां बजाते हैं)

       (बाड़ी का दृश्य)

प्रसंग - बालक घासीदास एवं अन्य बालवृंद, बुधारू को जीवन दान, पक्षी को जीवन दान, किशोरावस्था में नागर महिमा।
पात्र - घासीदास, बुधारू, धजा दास, सुकरीत, भुवन लाल, भागचंद, धनवा, गोपाल मरार, एवं ग्रामीण महिला, पुरुष।
वेशभूषा - घासी, भाल में तिलक, घुंघराले बाल, स्वेत वस्त्र, अन्य बच्चे भी ग्रामीण परिवेश में।

       (घासीदास अपने बाल सखाओं के साथ खेल - खेल में उपदेशासत्मक बातें कहतें हैं, अन्य बाल सखा उनके (घासी) का मजाक उड़ाते हैं तो कभी साथ में नहीं खेलने की बात कहते हैं। कभी मित्र मंडली का नायक बनातें हैं। खेल में हाथी, घोड़ा, गुल्ली डंडा आदि  खेलते हुए एक बालक गन्ना तोड़ कर खाने की इच्छा व्यक्त करता है)

धनवा - मित्रों देखो उस बाड़ी में (बाड़ी की ओर उंगली दिखाकर) रसदार गन्ना लगा है हम सबको चलना चाहिए,   गन्ना तोड़ने में मजा आएगा।
सुकरीत - मित्र का कथन उचित है, अवसर का लाभ लेना चाहिए। (जाने के उद्दत होते हैं)
घासीदास - सुनिए मित्र, यह काम मुझसे नही होगा, दूसरे का धन धुल के समान है।
बुधारू - नहीं हम लोग चोरी नहीं कर रहे हैं। बस गन्ना तोड़ कर खाएंगे।
घासी - दूसरे के धन या वस्तु पर लालच नहीं करना चाहिए।
सुमरन - घासी हे मित्र, चलना है तो चलिए, हम लोग जा रहे हैं।
बुधारू - मित्रों, घासी तो महात्मा बने फिरता है।
विशाल - चलिए घासी, बाद में उपदेश देना।
सुखलाल - हमने एक दिन गन्ना मांगे तो, खानदान को गिनाने लग गया। मांगने पर नहीं देते। चलो अब - ( बालकों का दल गन्ना बाड़ी में घेरा तोड़कर प्रवेश करते हैं बाहर से घासी खड़े - खड़े सब उपद्रव देख रहा है)
धजादास - ( घासी को दूर खड़ा देख कर गन्ना लाकर देता है) लो घासी गन्ना। (पकड़ा देते हैं)
बुधारू - (बाड़ी में मोटा गन्ना देखकर झुरमुट में पैर रखता है काला नाग पैर को डस देता है) ओह् बचाओ, स््स््सांप---! ( सभी मित्र बुधारू के पास आते हैं)
सुधेलाल - (बुधारू काफी डरा हुआ है, और पसीना - पसीना हो जाता है,  मित्रगण हवा देते हैं) डरो मत मित्र! अन्य मित्रों के सहयोग से बाड़ी से बाहर वृक्ष के नीचे लाकर लेटातें है)
घासी - ( बुधारू के पास आकर पूछने पर मित्र बताते हैं कि सांप डस दिया है बुधारू के सिर पर हाथ रख कर) डरना नहीं मित्र।
( चूंकि बालक घासी अपने दादा सगुन दास को उपचार करते देखा व समझा रहता है औषधियां और नाड़ी ज्ञान बाल अवस्था से रहता है उस ज्ञान परीक्षण का अवसर आ गया यह सोचकर औषधि से उपचार पर विचार करते हुए कुछ दूर झाड़ियों की ओर निकल जाते हैं)
धनवा - बुधारू-- बुधारू ( बेहोशी की स्थिति में, बुधारू को देख कर मित्रगण डर जातें हैं सर्प डसने की  घटना  सुन - सुनकर ग्रामीण आ रहे हैं अचेतना अवस्था में  बुधारू के मुख से झाग निकलता है)
      (किसान गोपाल मरार बाड़ी से गन्ना उजाड़ने की बात सुनकर आवेश में बड़बड़ाते आते हैं)
गोपाल किसान - (भीड़ को देखकर नजदीक पहुंच कर मूर्छित पड़े बुधारू को देखते ही तमतमाए चेहरा, उतर जाता है) क्या हुआ है ?
ग्रामीण - यह बुधराम का लड़का बुधारू है। इसे सर्प डस दिया है।
गोपाल किसान - (बुधारू के नाड़ी टटोलते हैं) लगता है इनकी सांस थम चुका है!
(भीड़ बुधारू को करूण निगाह से देख रहे हैं, संबंधी सिसकने लगतें हैं। भीड़ को चीरते हुए  बालक घासीदास, बुधारू के निकट  पहुंचते हैं।
घासी दास - ( बुधारू के नाड़ी छूते व  नेत्रों को खोलकर देखते हैं समझ गया जहर का प्रभाव इन्द्री तक होने से शरीर शून्य पड़ा है ) सत्पुरुष को स्मरण कर ढूंढ कर लाए औषधि से उपचार करते विष नाशक औषधि के रस को मुंह में डालते हैं, और जल के बूंदें डाल कर शेष जल को शरीर में छिड़कते व जड़ी को पत्थर से कुचकर डसे जगह घाव पर बांध देते हैं  थोड़ी देर में बुधारू के शरीर में हलचल होता है आंखे खुल जाती है फिर उठ बैठता है)
ग्रामीण  - देखकर सभी चकित रह जाते हैं घासी को  कोई अवतारी पुरुष कहता है, कोई धन्यवाद दें रहा हैं, गोपाल मरार धन्य हो लाल कहते घासी को गले लगा लेता है)

      खेत का दृश्य, नागर महिमा - 

(आषाढ़ मास की प्रारंभिक तिथि में वर्षा होते ही बीज, हल, बैल लेकर, गोपाल मरार अपने खेतीहर मजदूरों के साथ खेत की ओर प्रस्थान करते हैं। साथ में पूजा की सामग्री खेत में बली देने एक बकरा  बांध रखें हैं। मजदूरों के समुह में युवा घासी दास भी है )
गोपाल मरार - (अपने एक नौकर से)  चलिए पूजा, एवं बली देने की तैयारी करो। 
नौकर - हां ठीक है मालिक।
गोपाल मरार - जल्दी करो पूजा के बाद बकरे की बली चढ़ानी है।
घासी - (गोपाल मंडल से पूछते हैं)  बली  न देने पर क्या होता है?
गोपाल मरार - प्रथम बोंवाई और हल चलाने  पर बली देते हैं घासी, जिससे कोई अनहोनी न हो।
घासी - पहले कभी घटना घटी है?
गोपाल मरार - नहीं, परंतु परंपरा पूर्वजों से चली आ रही है।
घासी - कोई भी परंपरा को आंख बंद कर नहीं मानना चाहिए।
गोपाल मरार - पीढ़ी से चली आ रही परंपरा को छोड़ नहीं सकते।
घासी -  किन्तु गौंटिया, जीव हत्या करना पाप है।
गोपाल मरार  - बलि देने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। 
घासी - गौंटिया! विचार कीजिए, धरती का स्वाभाव है, बादल बरसते वनस्पतियां उग आती है।
गोपाल मरार - ( गोपाल को बात जंची नहीं )  हमारे कुलईष्ट को मनाना पड़ता है घासी! (नौकर से पूजा प्रारंभ करने का इशारा करते)
घासी - मेरी प्रार्थना है, मूक पशु पर दया कीजिए।
गोपाल - ठीक है, बलि नहीं दूंगा, अनहोनी पर जिम्मेदारी कौन होगा।
घासी - (आंतरिक मन से खुशी व्यक्त करते) मन से अनावश्यक भय निकाल दीजिए।
गोपाल - अच्छा फिर  पहले स्वयं बोंवाई करो।
घासी - आपका जो आदेश मंडल! (घासी! बोरा से एक टोकरी धान निकाल कर पांच एकड़ बाहरा डोली सींचते हैं जो पूरा होने के बाद टोकरी में बच भी जाता है। संदेह वश खेत के चारों ओर घूम कर देखते हैं सभी दिशा बीज बिखरा मिला। विस्मित भाव से अपने आप से कह रहा है  यह कैसे संभव है!)
नौकर - ( हल चलाना शुरू करते हैं) अर, अर - तता त।
( अड़ियल बैल चलने के बजाय बैठ जाता है नौकर  बैल को डंडे से मारता है फिर भी नहीं चलता)
गोपाल - अब देखो घासी, बलि देने से मना किया उसका परिणाम। रूठे ईष्ट देव बैल को चलने नहीं दे रहा है।
नौकर - ( उठाकर चलाने की कोशिश करता है और बैल को फिर मारता है ) उठ, तता, त, तता, त। (बैल नहीं उठा)

घासी - मत, मारो मत, मारो किसी भी  प्राणी को मारना पाप है।
नौकर - ( आक्रोशित होते ) अच्छा, फिर खेत पर हल चलाओ, उपदेश देते फिरते हो।
घासी - दीजिए, मुझे ( नथे हुए बैलों की दिशा बदल कर फ़िर नथता है, स्नेह से  सेवा, कर्म पूरा करो, मार क्यों खा रहे हो? कहते बैलों के पीठ सहलाते हैं  और हल का मुठ  पकड़ कर हांकने है) तता त, अर अर, अर ( दोनों बैल फर्राटा चलने लगा)
गोपाल मरार -  गोपाल मरार घासी को कोई अवतारी पुरुष मानकर मन ही मन नमन् करते हैं (सब आश्चर्य से देख रहे हैं,  यह चमत्कार कैसे हो रहा है? एक टोकरी धान, पांच एकड़ बाहरा डोली में बोना, अड़ियल बैल से हल चलाना, बुधारू का जीवन दान कहते, आपस में कानाफूसी हो रहें हैं) धन्य हो घासी! कोई लीला तो नहीं दिखा रहें हैं?


              अनिल जांगड़े 'गौंतरिहा'

मानक का आशय व महत्व

विश्व मानक दिवस की बधाई 

    मानक एक तरह से शुद्धता का प्रतीक  हैं। वस्तु हो या आचार - विचार इनमें शुद्धता हो, तो विकास के नये आयाम तय होने की बाते की जाती रही हैं। पर सवाल यह है कि वैश्वीकरण के इस दौर में जहां जलवायु तक ग्लोबल वार्मिंग के चलते बदल रहे हैं। रेगिस्तान में बारिश और सघन वनप्रांतर में सुखा पड़ रहे हैं। इन सबसे निपटने‌ हाई ब्रीड तकनीक से खाद्यान्न और मानव प्रजाति ,पशु पक्षी आदि  को बचाने अन्तर्जातिय विवाह, कृत्रिम गर्भाधान क्लोन आदि  की आवश्यकता हैं। अन्यथा शुद्धता के मोह में ऊपज और प्रजनन प्रभावित होने लगे है। फलस्वरुप शैन: शैन: विलुप्ति के कगार पर पहुंच रहे हैं। इनमें अनेक फसलें ,पशु पक्षी व मानव प्रजातियाँ भी हैं। 
     वर्तमान समय में  आचार - विचार , रहन- सहन, खान -पान भी बहु सांस्कृतिक रुप से निर्वहन किए जा रहे हैं। भाषाएँ भी अब सर्वाधिक मिश्रित स्वरुप में व्यवहृत हैं। इन सबमें मानक या  शुद्धता बनाए रखना  अब समीचीन नहीं हैं। बल्कि बातें लोगों को समझ में आए और  काम चलता रहे यह सर्वाधिक व्यवहृत होने लगे हैं।
                      हा हर किसी के प्रचलन में मानक तय करने होंगे जो प्रसंगानुकूल व समयानुकूल हो न कि जो अव्यावहारिक और लोगों को समझ में न आने वाली हो।
      मानक एक नियम मात्र है जिनके द्वारा व्यवस्था को कायम करने तय किये जाते हैं इस अर्थ में इनका व्यवहार अपेक्षित है न कि मात्र  शुद्धता के लिए। इसके लिए अब  समय और संशाधन नष्ट नहीं किए जा सकते - 
छत्तीसगढ़ी में शुद्धता से अधिक पावनता के लिए "आरुग"  शब्द हैं। पर वह भी दुनियां में कही नहीं हैं। एक मुग्धकारी पंथी गीत द्रष्ट्व्य है -

मैं कहवां ले लानव हो आरुग फूलवा 
बगिया के फूल ल भंवरा जुठारे हे 
गाय के गोरस ल बछरु  जुठारे हर 
नंदिया के पानी ल मछरी जुठारे हे 
कोठी के अन्न ल सुरही जुठारे हे 
मन के भाव हवय पबरित ओही ल चढावव ...

ऐसे ही अनेक शब्द और भाव तो  है  ( मानव की परिकल्पनाओं में है , उसे व्यक्तिगत अनुभूत हो सकता है ) पर वास्तव में वह कही नहीं हैं ,वे अस्तित्व विहिन है इस क्रम में अमृत ईश्वर स्वर्ग आदि हैं। पर इसे अर्जित करने की चाह लिए सदियों से मानव प्रजाति उत्कट यात्रा जारी हैं।   
            मन के भाव और समझ ही अत्युत्तम है। जिससे मानव जीवन का निर्वाह हो और उनके भूख चाहे पेट या मस्तिष्क का हो  उसे मिटाने अन्न हाइब्रिड तकनीक से अधिकाधिक मात्रा में ऊगाए और प्रभावी भावाभिव्यक्ति हेतु  अनेक भाषाओं के शब्दों का समन्वित स्वरुप व्यवहृत हो क्योंकि अव नेट मोबाईल जैसे उच्चतम तकनीक और अनेक सुविधाओं के चलते मनुष्य वैश्विक हो चूके हैं। आने वाली पीढ़ी और भी अधिक मेधा शक्ति सम्पन्न होन्गे उनकी अभिव्यक्ति और भी अधिक मुखर और  वृहत्तर होंगे फलस्वरुप वही भाषा  सर्वाधिक व्यवहृत  होंगे जो मानक और प्रभावी व सरल - सहज  होंगे । 
               - डाॅ. अनिल भतपहरी/ 96177514

Thursday, October 13, 2022

गुरुघासीदास फिल्म स्क्रीप्ट ४

*गुरु घासीदास फिल्म पटकथा*

      भाग चार। (बाड़ी का दृश्य)

प्रसंग - बालक घासीदास एवं अन्य बालवृंद, बुधारू को जीवन दान, पक्षी को जीवन दान, किशोरावस्था में नागर महिमा।
पात्र - घासीदास, बुधारू, वीर सिंग, शुकलाल, विशाल, समारू, गोपाल मरार, एवं ग्रामीण महिला, पुरुष।
वेशभूषा - घासी, भाल में तिलक, घुंघराले बाल, स्वेत वस्त्र, अन्य बच्चे भी ग्रामीण परिवेश में।

     (घासीदास अपने बाल सखाओं के साथ खेल - खेल में उपदेशासत्मक बातें कहतें हैं, अन्य बाल सखा उनके (घासी) का मजाक उड़ाते हैं तो कभी साथ में नहीं खेलने की बात कहते हैं। कभी मित्र मंडली का नायक बनातें हैं। खेल में हाथी, घोड़ा, गुल्ली डंडा आदि  खेलते हुए एक बालक गन्ना तोड़ कर खाने की इच्छा व्यक्त करता है)

विशाल - मित्रों देखो उस बाड़ी में (बाड़ी की ओर उंगली दिखाकर) रसदार गन्ना लगा है हम सबको चलना चाहिए,   गन्ना तोड़ने में मजा आएगा।
समारू - मित्र का कथन उचित है, अवसर का लाभ लेना चाहिए। (जाने के उद्दत होते हैं)
घासीदास - सुनिए मित्र, यह काम मुझसे नही होगा, दूसरे का धन धुल के समान है।
बुधारू - नहीं हम लोग चोरी नहीं कर रहे हैं। बस गन्ना तोड़ कर खाएंगे।
घासी - दूसरे के धन या वस्तु पर लालच नहीं करना चाहिए।
सुकलाल - घासी हे मित्र, चलना है तो चलिए, हम लोग जा रहे हैं।
बुधारू - मित्रों, घासी तो महात्मा बने फिरता है।
विशाल - चलिए घासी, बाद में उपदेश देना।
सुखलाल - हमने एक दिन गन्ना मांगे तो, खानदान को गिनाने लग गया। मांगने पर नहीं देते। चलो अब - ( बालकों का दल गन्ना बाड़ी में घेरा तोड़कर प्रवेश करते हैं बाहर से घासी खड़े - खड़े सब उपद्रव देख रहा है)
वीर सिंग - ( घासी को दूर खड़ा देख कर गन्ना लाकर देता है) लो घासी गन्ना। (पकड़ा देते हैं)
बुधारू - (बाड़ी में मोटा गन्ना देखकर झुरमुट में पैर रखता है काला नाग पैर को डस देता है) ओह् बचाओ, स््स््सांप---! ( सभी मित्र बुधारू के पास आते हैं)
वीर सिंग - (बुधारू काफी डरा हुआ है, और पसीना - पसीना हो जाता है,  मित्रगण हवा देते हैं) डरो मत मित्र! अन्य मित्रों के सहयोग से बाड़ी से बाहर वृक्ष के नीचे लाकर लेटातें है)
घासी - ( बुधारू के पास आकर पूछने पर मित्र बताते हैं कि सांप डस दिया है बुधारू के सिर पर हाथ रख कर) डरना नहीं मित्र।
( चूंकि बालक घासी अपने दादा सगुन दास को उपचार करते देखा व समझा रहता है औषधियां और नाड़ी ज्ञान बाल अवस्था से रहता है उस ज्ञान परीक्षण का अवसर आ गया यह सोचकर औषधि से उपचार पर विचार करते हुए कुछ दूर झाड़ियों की ओर निकल जाते हैं)
विशाल - बुधारू-- बुधारू ( बेहोशी की स्थिति में, बुधारू को देख कर मित्रगण डर जातें हैं सर्प डसने की  घटना  सुन - सुनकर ग्रामीण आ रहे हैं अचेतना अवस्था में  बुधारू के मुख से झाग निकलता है)
      (किसान गोपाल मरार बाड़ी से गन्ना उजाड़ने की बात सुनकर आवेश में बड़बड़ाते आते हैं)
गोपाल किसान - (भीड़ को देखकर नजदीक पहुंच कर मूर्छित पड़े बुधारू को देखते ही तमतमाए चेहरा, उतर जाता है) क्या हुआ है ?
ग्रामीण - यह बुधराम का लड़का बुधारू है। इसे सर्प डस दिया है।
गोपाल किसान - (बुधारू के नाड़ी टटोलते हैं) लगता है इनकी सांस थम चुका है!
(भीड़ बुधारू को करूण निगाह से देख रहे हैं, संबंधी सिसकने लगतें हैं। भीड़ को चीरते हुए  बालक घासीदास, बुधारू के निकट  पहुंचते हैं।
घासी दास - ( बुधारू के नाड़ी छूते व  नेत्रों को खोलकर देखते हैं समझ गया जहर का प्रभाव इन्द्री तक होने से शरीर शून्य पड़ा है ) सत्पुरुष को स्मरण कर ढूंढ कर लाए औषधि से उपचार करते विष नाशक औषधि के रस को मुंह में डालते हैं, और जल के बूंदें डाल  कर शेष जल को शरीर में छिड़कते हैं जड़ी को पत्थर से कुचकर डसे जगह पर बांध देते हैं  थोड़ी देर में बुधारू के शरीर में हलचल होता है आंखे खुल जाती है फिर उठ बैठता है)
ग्रामीण  - देखकर सभी चकित रह जाते हैं कोई अवतारी पुरुष कहता है, कोई धन्यवाद दें रहा हैं, धन्य हो लाल कहते गोपाल मरार घासी को गले लगा लेता है)

खेत का दृश्य, नागर महिमा - 
(आषाढ़ मास की प्रारंभिक तिथि में वर्षा होते ही बीज, हल, बैल लेकर, गोपाल मरार अपने खेतीहर मजदूरों के साथ खेत की ओर प्रस्थान करते हैं। साथ में पूजा की सामग्री खेत में बली देने एक बकरा  बांध रखें हैं। मजदूरों के समुह में युवा घासी दास भी है )
गोपाल मरार - (अपने एक नौकर से)  चलिए पूजा, एवं बली देने की तैयारी करो। 
नौकर - हां ठीक है मालिक।
गोपाल मरार - जल्दी करो पूजा के बाद बकरे की बली चढ़ानी है।
घासी - (गोपाल मंडल से पूछते हैं)  बली  न देने पर क्या होता है?
गोपाल मरार - प्रथम बोंवाई और हल चलाने  पर बली देते हैं घासी, जिससे कोई अनहोनी न हो।
घासी - पहले कभी घटना घटी है?
गोपाल मरार - नहीं, परंतु परंपरा पूर्वजों से चली आ रही है।
घासी - कोई भी परंपरा को आंख बंद कर नहीं मानना चाहिए।
गोपाल मरार - पीढ़ी से चली आ रही परंपरा को छोड़ नहीं सकते।
घासी -  किन्तु गौंटिया, जीव हत्या करना पाप है।
गोपाल मरार  - बलि देने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। 
घासी - गौंटिया! विचार कीजिए, धरती का स्वाभाव है, बादल बरसते वनस्पतियां उग आती है।
गोपाल मरार - ( गोपाल को बात जंची नहीं )  हमारे कुलईष्ट को मनाना पड़ता है घासी! (नौकर से पूजा प्रारंभ करने का इशारा करते)
घासी - मेरी प्रार्थना है, मूक पशु पर दया कीजिए।
गोपाल - ठीक है, बलि नहीं दूंगा, अनहोनी पर जिम्मेदारी कौन होगा।
घासी - (आंतरिक मन से खुशी व्यक्त करते) मन से अनावश्यक भय निकाल दीजिए।
गोपाल - अच्छा फिर  पहले स्वयं बोंवाई करो।
घासी - आपका जो आदेश मंडल! (घासी! बोरा से एक टोकरी धान निकाल कर पांच एकड़ बाहरा डोली सींचते हैं जो पूरा होने के बाद टोकरी में बच भी जाता है। संदेह वश खेत के चारों ओर घूम कर देखते हैं सभी दिशा बीज बिखरा मिला। विस्मित भाव से अपने आप से कह रहा है  यह कैसे संभव है!)
नौकर - ( हल चलाना शुरू करते हैं) अर, अर - तता त।
( अड़ियल बैल चलने के बजाय बैठ जाता है नौकर  बैल को डंडे से मारता है फिर भी नहीं चलता)
गोपाल - अब देखो घासी, बलि देने से मना किया उसका परिणाम। रूठे ईष्ट देव बैल को चलने नहीं दे रहा है।
नौकर - ( उठाकर चलाने की कोशिश करता है और बैल को फिर मारता है ) उठ, तता, त, तता, त। (बैल नहीं उठा)

घासी - मत, मारो मत, मारो किसी भी  प्राणी को मारना पाप है।
नौकर - ( आक्रोशित होते ) अच्छा, फिर खेत पर हल चलाओ, उपदेश देते फिरते हो।
घासी - दीजिए, मुझे ( नथे हुए बैलों की दिशा बदल कर फ़िर नथता है, स्नेह से  सेवा, कर्म पूरा करो, मार क्यों खा रहे हो? कहते बैलों के पीठ सहलाते हैं  और हल का मुठ  पकड़ कर हांकने है) तता त, अर अर, अर ( दोनों बैल फर्राटा चलने लगा)
गोपाल मरार -  गोपाल मरार घासी को कोई अवतारी पुरुष मानकर मन ही मन नमन् करते हैं (सब आश्चर्य से देख रहे हैं,  यह चमत्कार कैसे हो रहा है? एक टोकरी धान, पांच एकड़ बाहरा डोली में बोना, अड़ियल बैल से हल चलाना, बुधारू का जीवन दान कहते, आपस में कानाफूसी हो रहें हैं) धन्य हो घासी! कोई लीला तो नहीं दिखा रहें हैं?

                     अनिल जांगड़े 'गौंतरिहा'

Wednesday, October 12, 2022

कुवांर पुन्नी के बधाई

#anilbtapahari 

आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

     ।। कुंवार पुन्नी के बधई।।

फिटिक अंजोर चंदा के  होथंय दवई 
संग म मिंझार के  खा  लेबोन तस्मई
निक लागय गीत -भजन कथा कहई
सकलाये सब  लागमानी अंगना सुहई 
बने रहय  असीस  हे हमर गाँव- गंवई
जम्मों ल कुंवार पुन्नी के अघादेच बधई

           बिंदास कहे - डॉ. अनिल भतपहरी

गुरुघासीदास फिल्म स्क्रीप्ट ‌

प्रस्तावित गुरु घासीदास डाक्यूमेंट्री /फिल्म पटकथा लेखन 

सतनाम धर्म संस्कृति  भारतवर्ष  की  प्राचीन संस्कृति हैं‌। इनकी अवशेष हमें सिन्धु घाटी सभ्यता में दिग्दर्शन होते हैं। हालांकि उनकी लिपि पढ़ी नहीं ग ई हैं। और वह सभ्यता जमींदोज हो ग ई पर जो उत्खनन से बाहर निकले है उ‌न वस्तुएँ और तथ्यों का प्रचलन इसके अनुयायियों के जीवन वृत्त में सहज नज़र आते हैं। 
     अरावली पहाड़ी के तलहटी में अवस्थित नारनौल रेवाड़ी सतनामियों का  केन्द्र स्थल रहा है जो कि सिन्धु घाटी सभ्यता के निकटवर्ती परिक्षेत्र है ।  सतनामियों बसाहट पंजाब सिंध दिल्ली और मथुरा के आसपास रहा हैं।  1662 में सतनामियों के साथ मुगल सम्राट औरंगज़ेब का शाही सेना का भीषण  संग्राम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। 
     युद्धोपरान्त स्वाभिमानी वीर योद्धा सतनामियों का आव्रजन देश के अलग- अलग क्षेत्रों  में हुआ । एक परिवार मेदनीराय गोसाई के नेतृत्व में दक्षिण कौशल स्थित  सोनाखान रियासत के  सुकली  वन्य ग्राम में हुआ।  जहाँ पर वन घास काट कर गाँव बसाए गये और आबाद हुए।

         दृश्य - 1 
     कलान्तर में महंगूदास जी विवाह समीप ग्राम मड़वा के पुरैना परिवार जो रतनपुर राजा के नेगी थे के घर जन्मी कन्या अमरौतिन से हुआ - 

    इस प्रसंग को नाट्य रूपांतरण कर संवाद शैली में लिखें।

पात्र - मेदनीराय गोसाई पुत्र सगुनदास - पुत्र महंगूदास , अमरौतिन उनके पिता- माता और कुछ ग्रामीण 

प्रसंग - नवयुवक महंगूदास का लगन एंव  विवाह ....

      दृश्य - 2 

 अमरौतिन व महंगूदास दो पुत्र ननकू - मनकू जन्म के बाद अकाल के चलते  गिरौदपुरी के झलहा मंडल के यहाँ आकर रोजी- मजुरी करना ... और  यहाँ बालक घासीदास का जन्म ...

दृश्य - 3 

 अमरौतिन बिछोह और करुणा माता का आगमन 
पात्र - महगू अमरौतिन झलहा मंडल ग्रामीण स्त्री पुरुष एंव मंडल गोपाल मरार करुणा माता 



    दृश्य 4 - बाल  महिमा 

      बुधारु , समारु , समेदास , मोहन  एंव अन्य बालवृंद 
      
    गिल्ली डंडा खेल में घायल चिड़िया का उपचार , सर्पदंश बुधारु का उपचार ...किशोर उम्र में    नागर महिमा 


दृश्य - 5 विवाह 
 महगूदास करुणा माता ननकू मनकू घासी सफूरा अंजोरदास दोनो तरफ के ढेड़ा सुवासिन व अन्य बराती व घराती 

  दृश्य - 6 
      सुखमय वैवाहिक जीवन सहोद्रा माता जन्म अम्मरदास जन्म, बालकदास जन्म ,आगरदास जन्म ...
     अम्मरदास जी का बिछोह सफूरा का रुदन  व घासीदास का तीर्थाटन .

  दृश्य 7 

जगन्नाथपुरी सहित यात्रा
    यात्री दल और उनसे वार्तालाप 

 के धार्मिक स्थलों का दर्शन और गुरुघासीदास द्वारा सूक्ष्म निरीक्षण 

   दृश्य  8

- मंदिर. मंदिरवा म का करे जाबोन अपन घट के देव ल मनाइबोन  और सागर तट पर  ... मनखे ए पार के होय या ओ पार के करिया होय कि गोरिया मनखे मनखे एक बरोबर आय।
     अमृतवाणी कथन वापसी 
     
दृश्य  9 -
 चंद्रसेनी मंदिर में पशुबलि देखना और आक्रांत होना 

दृश्य - 10

  गुरुघासीदास जी की  तपस्या एंव सतनाम पंथ प्रवर्तन कीजिए उद्धोषणा ।

 दृश्य -11-
    तेलासी + भंडारपुरी आगमन और धर्मोपदेश व महल बाडा निर्माण 

     दृश्य 12  रामत रावटी 
 गुरुघासीदास द्वारा सतनामी पंथ का प्रचार - प्रसार हेतु महत्वपूर्ण रामत एंव चिरईपदर , दंतेवाड़ा कांकेर  पर रावटियां - एंव अमृतवाणी व धर्मोपदेश 
          
  दृश्य 13 -  रामत  रावटी 
पानाबरस  डोंगरगढ़ , भंवरदाह में धर्मोपदेश व सतनाम पंथ में दीक्षा  

14  रामत - रावटी 
     भोरमदेव रतनपुर एंव दल्हापहाड़ 
   इन रामत रावटी में पंथी गीत मंगल भजन एंव बोध कथाओं का प्रचलन ...

    दृश्य - 15 
      गुरु अम्मरदास व बालकदास का विवाह एंव अम्मरदास जी का तेलासी में महासंगम कर पंथ प्रवर्तन 

     दृश्य 16 
    अम्मरदास जी सतनाम पंथ प्रचार हेतु रामत यात्रा  एंव चटुआ घाट में समाधि 

       दृश्य - 17
        गुरु बालकदास का राज्याभिषेक व एंव समाजिक संगठन   हेतु साटीदार भंडारी व महंत पदो की व्यवस्था 

         दृश्य 18
     मोतीमहल भंडारपुरी का उद्धाटन  आखाड़ा एंव गुरुदर्शन मेला का प्रारंभ 

          दृश्य 19

  बोड़सरा बाड़ा से सतनाम पंथ का संचालन व सतनाम शोभयात्रा का प्रचलन 
           
            दृश्य 20

   गुरुघासीदास अंतिम धर्म दीक्षा उपदेश एंव अज्ञातवास हेतु  गिरौदपुरी के छातापहाड़  प्रयाण ... अन्तर्ध्यान  
      
            इस तरह गुरुघासीदास बाबा जी के 94 वर्षो की जीवन यात्रा के  प्रेरक प्रसंगों का फिल्मांकन कर सकते हैं। 
    प्रति एपिसोड 30 मिनट का होगा तो 10 घंटे का शानदार प्रेरक फिल्म या वृत्त चित्र बनाए जा सकते हैं। 

       - डा. अनिल कुमार भतपहरी

Tuesday, October 11, 2022

छायावाद और मुकुट धर पांडेय

छायावाद और मुकुटधर पांडेय 

    हिन्दी साहित्य में छायावाद का कालखंड अतिशय महत्वपूर्ण हैं। बिन इनके साहित्य का अध्ययन अध्यापन या विचार विमर्श संभव नही है।  सच कहे तो इस  कालखंड मे हिन्दी जिसे खड़ी बोली कहे जाते है और काव्य के लिए अनुपयुक्त वह धारणा बदली और हिन्दी भाषा प्रांजल और   काव्यमय हुई।   
        हालांकि कोमल कांत पदावलि और बढते संस्कृत निष्टता के चलते भाषा दुरुह जटिल हुई तथा कविता रहस्यमय होकर गुंफित भी हुई पर यह जटिलता ही भाषाई संरचना और भाव विन्यास को गहराई से समझने की व्यापाक दृष्टि भी प्रदान की।
    छायावाद मे जो पश्चिम की  मिस्टीसिज्म या रुमानियत और इस्लामिक सूफियाना फलसफा दिखता है उससे यह बेहद प्रभावी और वैश्विक स्तर पर चिन्हाकित भी की गई  ।
    इस छायावाद के प्रवर्तक कवियों मे छत्तीसगढ के रायगढ़ जिला के महानदी तटवर्ती बालपुर ग्रामवासी कविवर पं. मुकुटधर पांडे अग्रणी है। कुर्री के प्रति  काव्यांश का यह भाव देखिए जिसमेञ  छायावाद के विशेषताएं समाहित है-

 शून्य गगन में कौन सुनेगा तेरा विपुल विलाप ?
बता कौन सी व्यथा तुझे है , है किसका परिताप ?    (१ मुकुट धर पांडे व्यक्ति एंव रचना  - संपा महावीर अग्रवाल  पृ ४१०)
    यह प्रश्न वियोगी कवि  का प्रश्न है जिनकी उत्तर खोजा जाना शेष है।
   कविवर पंत जो छायावाद के बड़ा नाम है वो तो स्पष्ट कहा है -

वियोगी होगा पहला कवि आह से ऊपजी होगी गान ।
नैनो से उमड़ कर चुपचाप बही होगी कविता अनजान ।।   (२)

हालांकि छायावाद और उनके प्रवर्तक के नाम पर काफी प्रवाद है ।यह नाम साहित्य जगत  चल पड़ा पर किसने सबसे पहले उपयोग किया इन पर भी बहसे आज तक की जाती  हैं, फलस्वरुओ लोगों मतैक्य नहीं है।
    सन १९२० में ' श्री शारदा ' पत्रिका जबलपुर से निकलती थी उसमें ' हिन्दी कविता में छायावाद शीर्षक से एक लेख माला पंं. मुकुटधर पांडेय की छपी। उसके माध्यम से पहली बार " छायावाद " शब्द और छायावादी काव्यान्दोलन को लेकर प्रमाणिक तौर पर विस्तृत रुप से सामाग्री सामने आई। " इसी तरह हितकारिणी पत्रिका मे -"हिन्दी कविता में छायावाद " निकली।  ,( पृ3 वही पृ 438 )इस आधार पर  उन्हे छायावाद नाम देने वाले कहे जा सकते है।
     और तो कविवर पांडे जी  उस अज्ञात सत्ता और शहर का श्रोता बनकर हमारे समक्ष सुनाने आ जाते है - 
    सुना , स्वर्णमय भूमि वहां की मणिमय है आकाश ।
वहां न तम का नाम कहीं है, रहता  सदा प्रकाश ।।   ( ४ वही पृ ४११)

    बालपुर ग्राम मे निर्भय और निसंक निवासरत थे । भौतिक  अभावों के बीच प्राकृतिक संशाधनों और आत्मीय संपदा के वे मालगुजार थे फलस्वरुप ग्राम वैभव उनकी कविता द्रष्ट्व्य है - 

शांति पूर्ण लघु ग्राम बड़ा ही सुखमय होता भाई। 
देखों नगरों से भी बढ़कर इनकी शोभा अधिकाई ।। ( ५  वही  पृ ४१९ )
      मुकट धर पांडे जी की मूल्याकंन बच्चू जांजगिरी ने की फलस्वरुप उनकी  ख्याति चतुर्दिक फैली अन्यथा उनकी अवदान सुदूर छत्तीसगढ़ के होने के कारण विस्मृत कर दिए गये होते । बहरहाल यहां के साहित्यिकों का यह नैतिक दायित्व है कि यशस्वी रचनाकारों की ओर भी नजर इनायत कर लिया करें। पता नही हमारे बौद्धिकों / अध्येताओं, रचना धर्मियो  यहां तक आध्यापकों को भी यह लगता है कि बड़ा फलक और रचनाकार केवल  गंगा हिमालय के भूभाग मे गोया कि वही सौन्दर्य बिखरा हुआ है और कही नही फलस्वरुप वहां बडे और प्रवर्तक रचनाकार होन्गे। पं . मुकुटधर जी इस मिथक को तोड़ते है। और छोटे से ग्राम मे रहकर वे वैश्विक साहित्य रचते है - 
दीन - हीन के अश्रु नीर में 
पतितों की परिताप पीर में
संध्या के चंचल समीर में 
करता था तू गान 
देखा मैने यही मुक्ति थी 
यही भोग था यही मुक्ति थी 
घर मे ही सब योग - युक्ति थी 
घर ही था निर्वाण । ६ वही , पृ ४१४ 
    इस तरह देखे तो उनकी रचनाएं  भाव प्रवण और भाषा बहुत ही उत्कृष्ट हैं।  उनकी रचनाओं  छायावाद और स्वच्छंदता स्पष्ट दृष्टिगोचर होते है 
।    
    उनकी रचनाओं छत्तीसगढ़ी शब्द और यहां की साञस्कृतिक तत्व अनायस देखने मिल जाते है। उनकी चर्चित व प्रतिनिधी कविता कुर्री के प्रति एक तरह से प्रवासी पक्षी का समूह है जो दूर देश आते है। उनकी उच्चरित  ध्वनि के कारण यहां उसे कुर्री कहते है को लक्ष्य कर उन्होने अप्रतिम काव्य रचना की और वह छायावाद की कविता के रुप में स्वीकृत की गई ।कुर्री कहने मात्र से ही छत्तीसगढ प्रदर्शित हो जाते है। महाकवि कालिदास कृत मेघदूत का छत्तीसगढ़ी अनुवाद दर्शनीय है। उनकी अनुवाद कला और छत्तीसगढ़ी शब्द संयोजन बेहद सटीक है। इस अनुवाद से सहज पता चलता है कि छत्तीसगढ़ी अनन्य भावों अभिव्यक्त कर सकने असीम क्षमता संस्कृत सदृश्य रखती है। 
     
भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मनित पांडेय जी प्रदेश के गौरव है । वे आने  वाली न ई पीढी के मार्ग दर्शक हैं।
       उन्हे शत -शत नमन 
    डा. अनिल कुमार भतपहरी 
          ( 9617777514)
             सचिव 
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर

Friday, October 7, 2022

कर कठिन कार्य

आपके वास्ते छकड़ी हमरी  

       कर कठिन कार्य 

सरल तो है जीना और  मरना 
हरदम उनकी बातें क्यों करना 
यूं  ही  भटकते  वक्त  गुजारते
कथा-कहानियाँ सुनते- सुनाते 
कर कठिन कार्य गर पाए उपलब्धि  
सार जीवन का मिले सुख-समृद्धि
      
   -बिंदास कहे  डॉ.अनिल भतपहरी

Thursday, October 6, 2022

भंडारपुरी गुरुद्वारा का जीर्णोद्धार ‌

।।भंडारपुरी गुरुद्वारा का जीर्णोद्धार ‌ की घोषणा ।।

         सतनाम धर्म- संस्कृति के केन्द्र स्थल‌ भंडारपुरी में मोती महल गुरुद्वारा का जीर्णोद्धार विगत 25 वर्षो  अपूर्ण‌ अवस्था में स्थगित हैं। उसे पूर्ण कराने प्रदेश के यशस्वी  मुख्यमंत्री मान. भूपेश बघेल जी द्वारा घोषणा स्वागतेय हैं। इसकी पूर्णता होने पर प्रदेश की शान में एक और नगीना जड़ जाएगा। मेला प्रबंधन व आयोजन हेतु प्रतिवर्ष दस लाख की घोषणा भी सुखद हैं।
     ज्ञात हो कि इस चौखंडा  भव्यतम महल गुरुद्वारा एक रुपक और दृष्टान्त की तरह बना हुआ हैं। जिनके शिखर के कंगुरे पर तीन बंदर और गरजते शेर फड़ काढे नाग और सप्त चक्र और त्रिशरण त्रिशुल के साथ  सोने की कलश था।   विजया एकादशी (दशहरा के दूसरा दिन ) को लाखों जनसमूह की उपस्थिति में पालो चढाये जाते हैं। ।‌ (जो विगत ढाई दशक से बंद हैं,केवल जैतखाम में ही चढ़ाकर रस्म निभा पा रहे हैं)
     ज्ञात हो इस पावन गुरुद्वारा के  दर्शन मात्र से  अनेक तरह की ज्ञान बोध होता था। यह ईमारत पुरी दुनियां मेञ अनुपम और अकेला था। इसका निर्माण गुरुघासीदास जी निर्देशन में उनके मंझले पुत्र राजा गुरुबालकदास जी ने 1820-25 के बीच करवाएं थे। 
        आज  जीर्णोद्धार की घोषणा  समाचार (एफ बी  लाइव देख सुन कर )  पाकर   मन हृदय प्रफूल्लित हुआ।

    सौभाग्य से हमने अपने कैमरा से 1993 में इसकी फोटो खीचें थे ।उसे ही विगत अनेक वर्षों से सोशल मीडिया में वायरल करते आ रहे हैं। नई पीढ़ी के लिए ये चित्र ही धरोहर साक्ष्य हैं कि कैसा स्वरुप था। 
       ।।जय सतनाम जय छत्तीसगढ़  ।।

चित्र - १गुरुद्वारा का विहंगम दृश्य २ तीन बंदर व शेर वाला कंगुरा और शिखर  कलश । ३ नवभारत समाचार पत्र

Sunday, October 2, 2022

सतनाम धर्म का प्रतीक

विजयदशमी भंडारपुरी गुरुदर्शन मेला  6-2-2022 के अवसर पर -

           ।।सतनाम धर्म का प्रतीक ।।

     मोती महल गुरुद्वारा भंडारपुरी के मंदिर शिखर में स्थित 4 दिशाओं की कंगुरे ! तीन में बंदर  ( असत न देखो , असत न सुनो और असत न कहो भाव मुद्रा ) और एक में गरजता शेर । बीच में फन काढ़े हुए नाग ।
    दोनो तरफ सप्त + सप्त चक्र एंव त्रिशरण । सफेद पालो । यह सतनाम धर्म का प्रतीक चिन्ह हैं जिसकी जानकारियाँ समस्त मानव समाज को होना चाहिए। 
   क्योंकि इतने में ही बहुत कुछ सार तत्व समाया हुआ है। इनका सार्वजनिक प्रदर्शन बिना कुछ कहे देखने मात्र से जन मानस को समझ में आ जाया करते थे। इसलिए भंडारपुरी में प्रतिवर्ष विशालकाय गुरु दर्शन दसहरा मेला का आयोजन होता हैं। जिसमें  हाथी ,घोड़े , ऊंट  व पैदल  चतुरंगिणी जुलुस शोभायात्रा होते हैं। सामने पंथी  शस्त्र चालन अखाड़ा का प्रदर्शन होते हैं। यह मंजर सम्राट अशोक का राजसी दंसहरा का स्मरण कराता हैं।  ज्ञात हो कि कलिंग विजय अभियान सम्राट अशोक ने समीपस्थ महानदी तट पर विराजित राजधानी सिरपुर से किया था। 
भंडारपुरी वहाँ से मात्र 10 कि मी दूर हैं। और महानदी तट से लगा ग्राम जुनवानी में सिरपुर कालीन  प्राचीन बौद्धिष्ट राज प्रसाद के अनन्य सेनापति गणों भट्टप्रहरियों का निवास स्थान हैं। (जहां 5 ग्राम  सिरपुर ,उजितपुर, जुनवानी , बरछा और गोटीडीह आबाद थे। ऊंजियार भट्टप्रहरी ख्यातिनाम सामंत थे जिनके पास काली फर्श के विराट खदान थे ।इनका इस्तेमाल सिरपुर के  मंदिरों , बौद्ध विहारों  और  आसपास के सामंतों मालगुजारो गौटिया लोगों के घर राजप्रसाद आदि निर्मित हुए हैं। क्योंकि ऐसा पत्थर आसपास 50 किलोमीटर के दायरे पर अन्यत्र नहीं पाए जाते ।)
    इन सबका विशद व्याख्या करने से पता चलता हैं कि सतनाम पंथ और प्राचीन सहजयान के बीच अन्तर्संबंध हैं। अन्वेषकों को इस दिशा में कार्य करना चाहिए ।
    इसका निर्माण गुरुघासीदास ने अपने पुत्र‌ बालकदास के राजा बनने के बाद 1820-25 के बीच करवाएं। और सामने दो विशालकाय साजा और सरई  का जैतखाम चांद - सूरज नाम का गड़ाए। चांद सुरज शुभ्र ज्योत स्वरुप हैं। कुंडलिनी जागरण में भी वह उर्ध्वाधर लंबवत होते हैं। 

         इस सबका आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से अतिशय महत्व हैं। जब भी सतनाम धर्म में गुरुद्वारा / मंदिर  बने इस आकृति का प्रतिकृति जरुर बनवाए ।
         ।‌।जय सतनाम ।।
   टीप -अधिक जानकारी हेतु हमारा शोध प्रबंध पर आधारित ग्रंथ गुरुघासीदास और उनका सतनाम पंथ अमेजान ‌फिल्पकार्ट व गुगल प्ले स्टोर्स से मंगवाए । पढ़े और पढवाए।     
    डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Saturday, October 1, 2022

हरि हरि

हरि हरि ...

परोसी घर चुरे 
अदौरी बरी 
फोरन माहके  
अंगना दुवारी 
खाथे ओमन 
तरी- तरी 
ललचाथे अउ 
लुलवाथे बिचारी 
नोनी के दाई 
खावय खरी 
तब सुनावय 
खरी खरी
गोठ गज़ब   
6फरी फरी 
फेर का करि 
उसरय नहीं
बनाय बर बरी 
जींव फंसे 
जस मछरी गरी 
उबुक- चुबुक 
उपलाएं फोही 
अकबकावत  
धंधाय भीतरी 
ओती सब बरी 
बोले हरि हरि 
सत्ता सेती पाए  
सुख सरी 
जेकर नहीं 
कटे दु:ख भरी 
करो उदिम 
पावो सत्ता सुन्दरी 
खावो मन पसंद 
रोज तरकारी 
मगन गावो नाचो 
पीटत जम्मों तारी 
हमला का हे 
काकर जरी 
करे कोन खरखरी 
त कोन ल   
धरे तरमरी 
काकर खौरे 
खावत खरतरी 
खोटबोन पर्रा भर 
हमन अदौरी बरी 
मानिस ले दे के सुवारी 
मगन अनिल भतपहरी 
गावै भजन  हरि हरि ...

-डॉ. अनिल भतपहरी

Wednesday, September 28, 2022

झन नंदावय हमर कोलाबारी

#anilbhatpahri 

       झन नंदाय कोला बारी 

छत बारी मं घलव  फरत हे  तरकारी 
ऊपजाबोन चलव  साग-भाजी संगवारी 
झन नंदावय हमर कोला बारी 

खोचे बीजा तरोई के नार ह छछल गे 
ढेखरा म चघे सेमी हांसत हे कठल के
बिहने किंदर ले मगन  घीसत मुखारी ...

तुमा  फरे गोल-गोल मखना  चकरेठी 
जीभ लमा के कइसे बिजरावय बरबट्टी
आलू बरी  संग चुरय त हासय  कराही ...

लजाय बानी खडे हे पतरेंगी चुरचुटिया 
साजे  सवांगा  देख  कोंवर रमकेलिया 
रुप देख  मोहागे अनिल भतपहरी ...

भाटा -गोभी धनिया - मिरचा लाल बंगाला 
जोम जांगर बारो महिना उपजे भाजी पाला  
आनी- बानी के साग रांध मगन हे सुवारी ...

               - डा अनिल भतपहरी 

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Monday, September 26, 2022

सिकुन

जनश्रुति पर आधारित लोक कथा 

"सिकुन "

   गिरौदपुरी म तपसी संत के दरसन-परसन करे बर अड़ताफ ले मनसे  जोत्था -जोत्था आय लगिस । बड़ सरधा भक्ति ले औरा- धौरा तेंदू तीर मं सकलाय  मंगल -भजन करय ।खाल्हे चरणकुंड के जल में असनाद करय ।सुघ्घर जेवन बना के  गुरुबानी सुन बड़ किरतार्थ होय अउ अपन ल भागमानी मानय।
   जात्रा ल  लहुटत घानी बांस के पोंगरी मं चरणामृत अउ अमृत कुंड ले अमरित जल ले जय । चरणकुंड के जल ल खेत खार छिंचय अउ अमरित जल ल पुजा पाठ मं बउरय ।  
      बांस के पोंगरी बनाय  अउ बेचे सेती  बिंझवार -कंडरा मन ल रोजी- रोजगार तको  मिले घरलिस  चरिहा टुकना सुपा -झंउहा  त बनाबेच करय अउ तीर तखार हाट बजार म बेचत सौरी नारायण मेला मं महिना भर सीजन रहय ।  अब तो पोंगरी बनाय के नवा करोबार सुरु हो गय... लोगन तुमड़ी पानी के   जगा सुभिता पोंगरी पानी धर ले घर से बाहिर निकले लगिन ।  गुरुघासीदास  के सोर चारों- मुड़ा उड़े ल घरलिस ।लोगन मंदिर, देव -धामी अउ  पंडा -पुजारी डहन ले बिदर के गुरु शरण मं आए घरलिस । गुरुबाबा के जस देख- सुन के  पंडा -पुजारी मन किसकिसी मरे अउ ओकर डहन ले लोगन ल   बिदारे सेती तरा- तरा के उदिम करे घर लिस ।उनमन सोनखनिहा राजा ले पत्तो बनाके कहिस -"तोर राज मं देव धामी के निंदक शुद्र  साधु बने के ढोंग करत हे अउ तय चुप हस ।हमर धरम के ओहर नास करत हे मंदिर मुरती ल ओहर नदिया तरिया सरोवत हे।
अउ हमन हाथ मं धरे हाथ ब इठे हन ,अइसे क इसे चलही ! एक झन बुढवा पंडित बनेच फोरिया के कहे धर लिस -
"जप- तप करके कारी शक्ति साधे हवे ,अउ सत -सत करत हे!" 
  पंडा -पुजारी मन  घासीदास ल जदुहा- टोनहा कहे लगिस कि ओला तय रोक नही त हिन्दू धरम म परलय आ जाही !गुरुबबा के  दरस -परस बर  जवइय्या मन ले छुतिक -छुता करे लगिस। गांव ले भगाये लगिस  ,जात बहिर करे लगिस । बांस के पोगरी बनइय्या मन ल रोके सेती बांस के जंगल म दावा छोड़वा दे गिस जम्मा जंगल जरे -बरे लगिस ....!!
      
        बांस  अपन कुल के बिनास देख सुसकन लगिस । जोन गुरु बाबा के परतापे अपन भाग सेहरावत पावन होत रहिस लोगन के सरधा बनत रहिन आज जर- बर के धूर्रा लहुट गय ।
             उही बांस के नवतोम्हा काड़ी ल टोर सिकुन बनाय सेती कंडरा ले जय अउ नाऊ घर बेचय ।नाउ ह परसा पान म सिकुन भेद के  पतरी सिल के बेचय ।पतरी मं  पंगत ,बर -बिहाव ,छट्टी-बरही मं दार - भात  तस्मई मालपुवा परोसे जाय ।
     जेखर मनोकमना सिद्ध होय जेखर बदना फलित होय उनमन अपन सगा सोदर म  दूर्भत्ता भात खवाय अउ आनी -बानी के खाजी पतरी म परोसय ।
        राजा घर जस माढ़ीस ओहर देबी उपासक रहिस आठे के रतिहा  कारी बरई अउ छ: दत्ता पड़वा के बलि होइस। भोकरा-भात अउ मंद बांस के पोंगरी अउ सिकुन पतरी म परोसे  गिस बड़ मगन राज परिवार सिरहा, बैगा -पुजारी संग नाचे -कुदे बाना बिदरा छेदिस- भेदिस अउ  खाय बर टुट परगिस ....
    ये काय अनहोनी होगे! पतरी के सिकुन राजा के टोटा म अरझगे .....ओख ओख करत बोर्राय लगिस ... मुंह डहर ले गेजरा फेके घर लिस ।
        सांस नइ ले सकिस अउ थोरिक समे मं आखी के पुतरी लहुट गय .. चारो डहर देखो- देखो होगे ... राजा के सांस अटक गे.... अउ देखते -देखत मुरछुत होके गिरगय ... जलसा सभा सब उजरगे ।
       सांस थोर थिर चलत रहीस ..राजा के रानी  बेटा नाती मन . गाड़ी बैला म जोर के गिरौद के उही औरा -धौरा के धुनि तीर  ध्यान म मगन गुरुबाबा कना  ले गिस ।हाथ जोड़ गुरुबबा के पैलगी करिस ... बचा दे बबा तोर नाव जुग जुग ले अम्मर रही।
गुरुबबा बड़ दयालू रहिस अपन आखी खोल ... कंमडल के जल निकाल सतनाम सुमर के पिलाइस ... गल म फंसे सिकुन के फांस उलिस अउ नीचे लीला गिस ... सांस नली खुलिस अउ राजा  के चेत अउ सुध- बुध आय ल धरलिस ..राजा हर  डंडा शरण साहेब के शरण म गिर पडिस छिमा मांगत ... आप के अपमान करेव ओकर फल ल भुगतेव बबा जी छिमा करव । उन्मन अपन घर आते बर नेवतिन बबा जी ओकर नेवता ल झोकलिन सबो बिंझवार कुलकत लहुटगिन । 
‌‌‌‌
    ऐति बांस के अंशज सिकुन  अपन कुल धातक कना बदला चुको डरिस ।
‌‌‌‌दु बछर न इ बितिस सोना खान जंगल म बांस लहलहाय धरलिस ...कंडरा मन बनदेबी मं सरधा के फूल चढात बबा जी दरस करिन ... श्रद्धालू मन फेर बांस के पोंगरी म अमरित जल ले जे घर लिस ... गुरुबबा के जयकारा से सारा जंगल गुंजे लगिस ....
             डा- अनिल‌ भतपहरी 
  सी -११ ऊंजियार - सदन  सेंट जोसेफ टाऊन अमलीडीह रायपुर छ ग

Sunday, September 25, 2022

सुख के गांजव खरही

#anilbhatpahari 

आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

       ।।सुख के गांजव खरही ।।

जाय ल परही एकदिन सब ल ओसरी पारी 
कोनो खुंटा गाड़ के इंहा  रहय नही संगवारी 
रहय नही संगवारी तंय कर ले धरम- करम 
हरहिंछा जी ले झन राखो इरखा भेद-भरम 
सुघ्घर पहाव  जिनगी सुख के गांजव खरही 
ढ़रकत हे बेरा  इंहा अब उहां जाय ल परही

    बिंदास कहे - डा. अनिल भतपहरी

Wednesday, September 21, 2022

सात हाइकु

#anilbhatpahari 

समसामयिक सात हाइकु 

देखों तरक्की 
सबके मन भाई 
वा करिश्माई 

पशु कीमती  
इंसा हो गये सस्ती 
उजड़ी बस्ती 

टूटी झोफड़ी 
घूम गई खोपड़ी 
मुश्किल घड़ी 

ये हैं जंगल 
हो रहें हैं मंगल 
सब कुशल 

क्या कहने 
अरे वाह भतीजे 
आए हैं चीते

हैं अरबों के  
जय सरकारों के 
सुर्खी खब्रों के

चीता युग की 
या जंगल राज की  
हुआ वापसी 

- डा. अनिल भतपहरी

Friday, September 9, 2022

अजीबोगरीब विकास

#anilbhatpahari  
        
          ।।अजीबोगरीब विकास ।।

      शाकाहारी - मांसाहारी,  सगुणोपासक - निर्गुणोपासक , सवर्ण - अवर्ण , कर्मचारी -व्यापारी  ये लोग एक-दूसरे के  पूरक होकर भी वैचारिक रुप से परस्पर घोर विरोधी व प्रतिद्वंद्वी होते हैं। कभी साथ निबाह नहीं करते । ऐसे ही पृथक स्वभाव के कारण वृत्ति और प्रवृत्ति बनी फलस्वरुप समाज में जात -पात ऊँच- नीच बना ।

   आजकल  शहरों में जैन -मारवाड़ियों ,  मुस्लिम- फारसियों, कथित उच्च कुलीन संभ्रांतों   का अलग -अलग कालोनी और मल्टी स्टोरी फ़्लैट बन रहे हैं। कुछेक वर्षो में देखना उनके अनुकरण से नीचे स्तर पर भी  अपनी अपनी जातियों और समान  वृत्ति+ प्रवृत्ति वालो की कालोनी व फ्लैट्स  बनने लगेगे। गांवों में तो जातियों की पारा बस्ती वाली नालियां बजबजा रही ,अब वह सडांध नगरों -शहरों में भी  बुरी तरह फैल रहे हैं। 
   वर्तमान दौर तथाकथित उच्च शिक्षित पढे- लिखे कथित आधुनिक विचार वानों के चलते और भी खतरनाक स्थिति में जा रहे हैं।  देश की संप्रभुता और आय पर महज 5% जनसंख्या का 70% एकाधिकार ‌हैl तेजी से  अमीर - गरीब , वर्गीय भेद की खाई भयंकर रुप से बढ़ते जा रहें हैं।  
        व्यवसायिक रुप से कालोनाइजर / शा गृह निर्माण एंजेसिया  भी विभेदकारी  आवास और विज्ञापन से उक्त अमानवीय बसाहट को बढावा दे रहे हैं। भला  ये अजीबोगरीब विकास हम में कौन सा सुख- शांति  और  सूकून देगी ? क्या यही राष्ट्र निर्माण है ? यदि यही हाल रहा , तब समरस और समृद्धशाली भारत वर्ष की परिकल्पना कैसे साकार होन्गे? इन सबका समाधान तलाशना चाहिए।

Monday, September 5, 2022

गुरुकुल बनाम स्कूल

#anilbhatpahari     

 शिक्षक दिवस पर 

       गुरुकुल और स्कूल 

           आधुनिक शिक्षा  व ज्ञान - विज्ञान को कोसते और कल्पित या मिथकीय वर्णित आख्यानों के प्रति आसक्त जनों से विनम्रता पूर्वक आह्वान हैं कि गौरव गान के चक्कर में कही "दुधो गय, दोहनी गय न हो जाय।" 
  वैसे भी मोह विकार किसी व्याधि से कम नहीं है। प्राचीन गौरव गान एक तरह से "गवाय मछरी जांघ भर " जैसा ही तो हैं। इसलिए युक्ति युक्त समन्वय भाव सर्वोत्तम हैं। हमें उन्ही का अनुकरण करना चाहिए ।
    नई शिक्षा नीति स्वागतेय हैं पर उनका प्रबंधन नीजिकरण होने से पुनश्च वही मनमानियों का दौर आरंभ होने की आशंका हैं जहां प्रतिभाएं नहीं प्रिय जन गढे जाएन्गे । शिक्षक संचालक पूंजीपति ( राजा )  के गुलाम हो जाएन्गे फिर कृपण द्रोणाचार्य पुत्र मोह और राजाज्ञा से वशीभूत एकलव्य के जगह अर्जुन ही बनाएन्गे या कर्ण सदृश एन वक्त निस्सहाय मतिभ्रंम नौनिहाल निकलेंगे। निजी स्कूल विश्वविद्यालय में यह खूब फल - फूल रहा है। मोटी फीश व रकम द्वारा मेरिट मार्कसीट बनाए जा रहे हैं। घर बैठे आन लाइन  डिग्रियाँ मिल रही हैं। 

        सच कहे तो   प्राचीन गुरुकुल आम भारतीय के लिए अनुपयुक्त थे। चंद सामंत व सुविधा भोगी जन जिसे कथित उच्च कुलीन कहे जाते हैं वही वहाँ के बटुक छात्र हो सकते थे। उस पर भी   अनेक आचार्य गुरु आदि राजाज्ञा या जातिय दर्प वश   उनमें  भी भेदभाव करते रहे हैं।  कुछेक तो महागुरुघंटाल हुए भी  हैं। फलस्वरुप हजारों साल की दासता भोगने पड़े । उसका असर अब भी शेष हैं। 
  भले आधुनिक स्कूल में सर -मैडम कथित आचार्य , गुरु आदि परंपरा के वाहक न रहे हो पर  स्कूल से  ही विकास के सूत्र निकले हैं। लार्ड मैकाले के स्कूली शिक्षा महज ५० वर्षों में असर दिखाए फलतः उनकी  गुलाम बनाए रखने की सोच धरी की धरी रह गई । स्वतंत्रता हेतु क्रांति की मशालें उसी स्कूली शिक्षा से ही जली  जो कि ज्वाला में तब्दील होकर गुलामी की जंजीर को पिघला दी गई। लोग आजा़द हुए।
      धर्म -कर्म, वर्ण -भेद ,  जात - पात ,भाग्य- भगवान  स्वर्ग- मोक्ष वाली गुरुकुली शिक्षा से  मानसिक व धार्मिक गुलामी बुनी गई कमोबेश आज तक बरकरार हैं उसी में ही उलझे हुए हैं। 
          वर्तमान समय में ज्ञान विज्ञान के स्थान पर परंपरा और संस्कृति के नाम पर प्राचीन गुरुकुल परंपरा के यशगान करते उसी प्रणाली को लाने की बातें चलती हैं।
        ऐसे में यह विचारणीय हैं कि आधुनिक शिक्षा से शेष दुनियां  अंतरिक्ष में जा रहे  हैं। आधुनिकतम स्वास्थ्य सुविधाएँ विकसित कर रहे हैं। उत्कृष्ट वैचारिक व प्रवर्तनकारी साहित्य रच रहे हैं। शासन प्रशासन व न्याय आदि के लिए बेहतरीन शिक्षण संस्थान बना रहे  हैं। और इधर  गाय गंगा गोबर गोमुत्र पर रार मचाए बैठे हैं।
 वर्तमान में युरोप और पश्चिम जहां पर हैं इनके आसपास फटकने की चाह पैदा नही कर पा रहे हैं।
    इसलिए  उनके आकर्षण में हमारे होनहार प्रतिभावान युवा वर्ग  खीचें चले जा रहे हैं। तब हम क्या कर रहे हैं? और किस मोहाकर्षण में फंसे पड़े हैं। उलझे +भटके असमंजस सा  खड़े  हुए है? विचार करना ही होगा ।
      अन्यत्र विश्वविद्यालय हास्पिटल और रोजगार  के अनेक संस्थान बना रहे तो  यहां बड़ी व ऊची प्रतिमाएं खड़े कर के श्रेष्ठता की होड़ लिए ऐठे - बैठे  हैं। दनादन गगनचुम्बी प्रतिमाएँ पर्यटन के बहाने वोट बैंक के वास्ते खडे किए जा रहे हैं।
         इकबाल की कुछ बात की हस्ती मिटती नही हमारी   का आशय  कही उसी रुढ़ - मूढ़ परंपराए और मान्यताएँ तो नही हैं जिसे गंगा जल पिला कर पोल -पास रहे हैं। और कुछ न पाने की चाह लिए अजगर करे न चाकरी सबका दाता राम जपते कछुए की तरह ढ़ाल ओढे आवरण बद्ध छुपे हुए बैठे किसी प्रतिस्पर्धी खरगोश को गच्चा देने की चक्कर में या मुगालतें में हैं। इसलिए तो सर्वत्र साम्प्रदायिक उन्माद देश भर में नज़र आ रहे हैं। 
                 
             हमारे  प्रतिष्ठान  जाति मत संप्रदाय पंथ विहिन संपूर्ण मानव गढ़े जो देश को उन्नति की ओर अग्रसर करे न कि दंभ और दर्प पाल प्रभाव करने वाले सांप्रदायिक व्यक्ति निकाले । स्थानीय भाषा और लोक तत्व को समाविष्ट करते अत्याधुनिक शिक्षा प्रणाली और समदर्शी विद्ववत शिक्षक और छात्र ही स्वर्णिम भारत का निर्माण कर सकते हैं। जिसके अंत:करण  में कोई पूर्वाग्रह न हो ।

     ।।शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाई ।।

Saturday, September 3, 2022

गढ़ो का गढ़ : तेलासी गढ़

गढ़ों के गढ़ छत्तीसगढ़ : संदर्भ तेलासीगढ़ और रोहासी गढ़ 

भारत वर्ष के मध्य में अवस्थित छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कोशल या दक्षिणापथ भी रहा हैं। क्योकि यहां से ही दक्षिण भाग में प्रवेश करते है। आर्य  , द्रविण ,नाग ,सत्यवंत सहित अरण्य संस्कृतियों का  समागम होने से  स्थापत्य कला  में  भी उनके तत्वों  का प्रभाव  सस्पष्ट: परिलक्षित होते हैं।
      छत्तीसगढ़  किसी एक वंश या राजा के अधीन रहा हो और यहां की स्थापत्य  और कला संस्कृति में केवल उनका ही प्रभाव या वृतांत , लोक कथाओ या गाथाओं मे  मिलते हो, ऐसा भी नही हैं। क्योकिं यहां पर अनेक राजवंशों का शासन होने के बाद भी स्थानीय जनता में स्वायत्ता भाव सदा विद्यमान रहा है फलस्वरुप  प्रत्येक राजवंश  और उनके मातहत जमींदारों, मालगुजारो, गौटिया , मंडलों  का प्रभाव साफ -साफ नजर आते है।उनकी अपनी मान्यताओं के आधार पर  धर्म कला संस्कृति का प्रचार - प्रसार  भी सर्वत्र  द्रष्ट्व्य हैं।
      यहां पर तकरीबन 100 के आसपास भाषाएं और बोलियों का प्रचलन रहा हैं और उनमें परस्पर अन्तर्संबंध भी रहा है । इन भाषाओं में जन जीवन की संस्कृति का दिग्दर्शन होते हैं।इसके  साथ ही 42 - 45 गढ़ होने का  भी उल्लेख मिलता है ।परन्तु वर्तमान मे 36 गढ़ की सीमाओं का प्रदेश होने के कारण  ही  छत्तीसगढ़  नाम पड़ा है । इन गढ़ो की कलाए भाषाएं यहा तक रहन सहन इत्यादि मे भी कुछ न कुछ विविधताएं नज़र आते है।  गढ़ों की संख्या के अतिरिक्त प्रदेश के   नामकरण मे  चेदि वंश के राज के कारण चेदिस गढ़ जो बाद छत्तीसगढ़ हुआ और बिहार से मगध नरेश के  सैन्य से निष्कासित 36 कुरि वंश जिन्हे तिरस्कृत किए आकर  छत्तीसगढ़ में घर  बनाए और बस गये। जैसे बातों का भी उल्लेख मिलता हैं। परन्तु  यह मान्यता लगभग सर्वमान्य हो चली है कि शिवनाथ नदी के दोनो ओर  रायपुर राज में 18 गढ़ और रतनपुर राज मे 18 गढ़  होने कारण यह प्रदेश छत्तीसगढ़ के रुप मे अस्तित्वमान  रहा हैं। इनका उल्लेख रायपुर एंव बिलासपुर के जिला गजेटियरों में उक्त 36 गढ़ों की सूची दी ग ई हैं।
साहित्य मे छत्तीसगढ़ का नाम 1487 में खैरागढ़ के चारण कवि दलराम राव कविता मे मिलते है- 
लक्ष्मी निधि राय सुनो चित्त दै गढ़ छत्तीस मे न गढ़ैया रहीं।
    यहां की स्थापत्य पर नजर डाले तो जन जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव उस परिक्षेत्र की भूमि वहां  की जलवायु और  उसमें ऊगने वाली वनस्पत्तियां अन्नादि का होते हैं। छत्तीसगढ़ प्रमुखत: तीन भागो में विभक्त है जिसमे उत्तर में  सरगुजा का वनाच्छादित पठारी  भाग  मध्य  में ऊपजाऊ   मैदानी क्षेत्र और दक्षिण मे वनाच्छादित पहाड़ियों से धिरी हुई  बस्तर का पठारी क्षेत्र। यहां 40% अधिक वन्य क्षेत्र होने से औसत से अधिक बारिश वर्षाकाल मे होते है फलस्वरुप महानदी नर्मदा सोन शिवनाथ इंद्रावती जैसे नदियों का उद्गम है। वर्षा से बचने ढाल युक्त खपरैल से ओरवाती युक्त मकान बनाने की प्रथाए है। यदि मकान की छाजन देखे तो समझ मे आते है कि यहां की बनावट समुद्री तटवर्ती क्षेत्र जहां आए दिन बारिश होते रहते है से कम ढाल युक्त होते है फिर भी हमे बनावट मे सागर तटीय प्रदेश उडीसा आन्ध्रा केरल  महाराष्ट्र के घरो की तरह देखने मिलते हैं।
  महाराष्ट्र  विदर्भ पैटर्न का स्थापत्य  शिल्प यहां के अधिकतर बाडा हवेली और राजा / जमींदारों / मालगुजारों का घर आज भी  देखने को मिल जाते हैं।
 हालांकि शहरी क्षेत्रों मे उप बिहार म प्र राजस्थान गुजरात आदि  के व्यवसायी आव्रजन किए लोग बसे हुए है और घरो की  बनावटे  उसी तरह की विगत 2- 3 सौ वर्षो की   है  । परन्तु यहां की अधिकतर ग्रामों और सुदूर अंचलों के घरो बाडो और हवेलियो की बबनावट और स्थापत्य मे दक्षिण शैली का प्रभाव स्पष्टत: झलकते हैं।
    प्राचीन काल मे  एक गांव का मंडल  पांच गावों का  गौटिया आठ गांव का अठगंवा जहां मालगुजार होते थे  12 गांवो का बरहा  और अष्टादश गांव का जमींदार या या राज  गढ़ होते थे। यही से   राज का प्रचलन रहा है ।  इसलिए यहां  रायपुर राज धमधा राज खैरागढ़ राज ,लवन राज  पलारी राज कौडिया राज फुलझर राज जैसे अनेक  राज का प्रचलन रहा है  इसी तरह 16 गांवो की पाली भी प्रचलन मे रहे है। 
इनके अतिरिक्त  सघन बसाहट वाली  नगर या  बड़ा गांव  होते जहां जमींदार या राजा के निवास बनते जिसे गढ़ या गढ़ी कहे जाते हैं। इन गढ़ों का नाम गढ़ क्यो पड़ा यह भी रोचक दास्तान हैं।
      गढ़ - राजा/ जमींदार  के महल के चारो ओर जल दुर्ग होते थे और जल से सटा हुआ बाहरी और भीतरी हिस्सा दलदल होते थे जहां आक्रमण सैन्य दस्ता चाहे वह पैदल या घुड़वार  आदि हो दलदल में फंस जाते है। फिर उनपर तीर  भाले पत्थर  से प्रहार खदेड़े जाते थे और नगर और राजा व राज्य की सुरक्षा की जाती थी ।  यह  बेहद गहरी  खाइयां या गढिया  है जहां मिट्टी और जल का दलदल सुरक्षा गत कारणों से महत्वपूर्ण थे ।  इनके चारो ओर चार दरवाजा होते थे और उनके बाहर तालाब मैदान फिर आगे खेत और दादर यानि रम्य वन क्षेत्र फिर सघन वन एरिया । इस तरह की बनावट से युक्त गढ़ और उनके सामंत गढपति‌ होते रहे हैं। 
    छत्तीसगढ़ के अमेरा गढ़ मे स्थित अमेरा , पलारी, रोहासी ओड़ान, तेलासी ,  नामक प्राचीन जलदूर्ग से युक्त समृद्ध और बड़ा गांव है। इन ग्रामों के मध्य मे बड़ा सा विशालकाय बाड़ा बना हुआ हैं। जहां पर  महल दरबार और भंडार गृह  कोठार अन्नागार आंगतुक कक्ष कुआ बाड़ी  आदि व्यवस्थित रुप से निर्मित हैं।  जहां पर राजा जमींदार मालगुजार निवास करते थे और उनके मातहत लोग उस बाड़ा के चारो ओर बसे हुए होते थे। यह जलदुर्ग या गढ़ जंगली पशु और बाहरी लुटेरे या शत्रु से सुरक्षा के निमित्त होते थें। हर द्वार पर द्वार पाल या पहरेदार होते थें। साथ ही ग्राम रक्षक देवी देवताओ की स्थापना ही रहते है जिसमे ठाकुर देवता   महादेव,  महामाई ,शीतला ठेंगादेव ,करिया, ध्रुवा यहां तक कि रिक्षिन देव -देवी तो राक्षस या दानव के श्रेणी के होते उसकी भी पूजा की जाती रही हैं। 
    शिव विष्णु और शक्ति के उपासक मिलते थे साथ ही तंत्र मंत्र अनुष्ठान मे बैगा सिरहा भैरव डायन चूरेतिन-  परेतिन (चुडैल - प्रेतिन  ) मल्लिन भटनीन चटिया मटिया जैसे यक्ष यक्षिणी की पूजा की प्रथाए रही हैं। यह सब किसी पेड़ खोह पत्थर का तालाब नदी झील सरार  किनारे पर अनगढ़ पत्थर या लोहे या लकड़ी की बनी त्रिशुल ओखल सील आदि आकृति बनी हुई होती हैं। यहां के पुरावशेषो की और अब भी जो चीजे व्यवहृहत या इस्तेमाल हो रहे है का सुक्ष्म  अवलोकन से ज्ञात होता है कि हम इतनी प्राचीन विरासत के साथ जीते आ रहे हैं। यहां की प्रत्येक गढ़ महत्वपूर्ण है और उनसे संदर्भित प्रेरक गाथाए जिनमे प्रेम त्याग समर्पण जैसे उदात्य भाव समाहित है जो छत्तीसगढ के जन जीवन को और यहां सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तथ्यों को  समृद्ध करती हैं।
    जय छत्तीसगढ़

Tuesday, August 30, 2022

कर्म आशीष और भाग्य

#anilbhatpahari 
     
                आशीष ,भाग्य और कर्म 

        आशीष लेना और देना मानवीय प्रवृत्तियाँ हैं। 
 घर -परिवार में भी बडे-बुजुर्गों से आशीष लिए जाते हैं। 
   छत्तीसगढ़ी में इसे असीस कहते हैं। इसी तरह संत महात्मा गुरु शिक्षक आदि से  प्रणाम के उपरान्त  उनसे मिलने वाली  मंगलकामनाएं ही दुवाएं ‌हैं। 
    उपर्युक्त आशीष व मंगलकामनाओं के  विपरीत गालियां दुत्कार  या श्राप हैं। इसे कुमंगल और भर्त्सना निंदा आदि भी कह सकते हैं। किसी के दिल दु:खाने या प्रताड़ित व अपमानित करने से जो बद् दुवाएं मिलती हैं। चाहे सामने या पीठ पीछे हो  वह तो और भी धातक होते हैं।
    बाहरहाल अच्छे और बुरे कर्मों के द्वारा ही यह व्यक्ति को गुण- दोष के आधार पर  यब सब मिलते हैं।  
       रही बात देव- धामी, तीर्थ व्रत  मंदिर मूर्ति या खेत खलिहान नदी नाले पहाड़ आदि इन सबमें आस्था होने के कारण इनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। और उनसे  आशीष लिए जाते हैं। मंगलकामनाएं की चाह रखते हैं। उनसे त्वरित  आशीष मिलता हैं ऐसा प्रत्यक्ष दिखता तो नहीं पर शांत चित्त हो धैर्य रखने से जरुर ध्येय की प्रतिपूर्ति होती हैं  । इससे सकरात्मक व रचनात्मक कार्यों के तन मन हृदय बुद्धि साथ होते हैं। फलस्वरूप आशातीत सफलताएँ मिलती हैं। इसलिए इन सबका जीवन संघर्ष में अतिशय महत्व हैं।
       लेकि‌न विचारणीय तथ्य यह है कि "केवल आशीष मागने से ही जीवन चलेगा यह सोचना ठीक वैसा ही व्यर्थ हैं जैसे खेत के सामने खड़ा होकर प्रणाम कर बिना जोते- बोए दो गाड़ा धान देने की प्रार्थना करना और फलीभूत की चाह रख कर इसी  विश्वास में अकर्मण्य बनकर रहना 
  । इसी तरह  तीर्थ -व्रत ,मंदिर -मूर्ति आदि में बिना सद्कर्म व सद्चरित्र के कल्याण की कामना  करना व्यर्थ हैं।" 
     इसलिए भाग्य चमत्कार आदि से श्रेष्ठतम कर्म को माना गया है।  व्यक्ति को चाहिए कि सदैव सद्कर्म करते रहना चाहिए। उनके पीछे- पीछे ही भाग्योदय होगा और मनवांछित फल की प्राप्ति होगी ।फिर अपने  परिजनों के साथ अपने खेत जंगल पहाड़ नदी वहाँ स्थापित अपने ईष्ट के स्थल ,प्रतिमा आदि में कृतज्ञता ज्ञापित कर सकते हैं। सार्वजनिक उत्सव मना  सकते हैं।

Monday, August 29, 2022

गुरु अम्मरदास गुफा

गुरु अम्मरदास गुफा दलदली गिरौदपुरी 

     गुरुघासीदास के प्रथम पुत्र गुरु अम्मरदास जी का बिछोह  किशोरावस्था मे ही गया था।  जब वे  सफरा माता जी के  संग जलाऊ लकड़ी लेने गिरौदपुरी से लगा जंगल ( वर्तमान शेर पंजा मंदिर ) गये थे। 
    माता जी के आंखो के सामने ही एक शेर उठाकर ले गये। इस मर्मांतक दृश्य को देख माता जी भाव -विह्वल हो पछाड़ खाती, छाती पिटती रुदन करती रही ।ग्रामीण जन खोजते रहे पर कही कोई सूत्र मिला नहीं ... !

       कलान्तर में  युवावस्था में दाढ़ी- मुंछ  बढाये नवयुवक साधु पुरुष अपने गाँव   गिरौदपुरी  आये। ग्रामीणों से  पता चला कि उनके माता - पिता गाँव  छोड़कर चातर राज चले गये हैं। वे उन्हे तलाशते हुए तेलासीपुरी आये ।जहां  छिन्दहा तालाब पार में गुरु दम्पति सपरिवार रहकर जनमानस को उदेशनाएं व उपचार करते जीवन- निर्वहन कर रहे थे। 
               इस तरह अम्मरदास जी योग साधना में दक्ष होकर आना और अपने पिता गुरुघासीदास के सद्कार्य में लगकर सतनाम पंथ के प्रचार में लग गये। अपने बडे पुत्र के साथ मिलकर गुरुघासीदास ने तेलासी में ही निवास बनाया और आपार ख्याति से भव्यतम बाड़ा को अर्जित  कर सतनाम पंथ के आश्रम और प्रबंधन हेतु अम्मरदास को प्रभार सौपां।
     गुरु अम्मरदास जी ने  प्रतापपुर की अंगार मती से विवाह के बावजुद ब्रम्हचर्य का पालन करते हुए  सतनाम प्रचार करते  हुए चटुआ घाट में समाधि लेकर प्रयाण किया। अंगार मती भी साध्वी की तरह भंडारपुरी में रहकर सतनाम साधना करते जीवन व्यतीत की।
         कहते हैं अम्मरदास जी को शेर सुंदरवन ले गये और वहाँ किसी सहजयोगी से योग विद्या सीखकर जनमानस में सतनाम का अलख जगाते रहें। इस दरम्यान वे जिस गुफा मे साधना सिद्धी किये वह  अम्मरगुफा के नाम से विख्यात हैं। यहां आकर श्रद्धालु एंव दर्शनार्थियों को सुकून और शांति की अनुभूति होते हैं। सघन वन,दुर्गम पर्वतीय रास्ते से होते कष्टमय यात्रा कर यहाँ पहुँचना  होता हैं। 
          साधना गुफा स्थल का समुचित विकास व सुगम मार्ग बन जाने  से लाखों तीर्थ यात्रियों को लाभ मिलेंगे। 
       ।।जय सतनाम जय  गुरु अम्मरदास बाबा ।।

Thursday, August 25, 2022

हड्डी की जीभ नहीं कि न फिसले

[3/27/2020, 13:22] Anil Bhatpahari: प्रकृति तुम कितनी बेरहम हो‌

लातूर ,उस्मानाबाद 
तुम्हारें प्रति 
व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ
संवेदनाएं 
सांत्वना के शब्द 
किल्लारी के घाव को 
भर नहीं सकती 
पल‌ में प्रलय 
एकाएक उड़ गयें 
हाथो सें तोतें 
शताब्दी का महाविनाश सुन 
हृदय स्तब्ध 
मन द्रवित 
आवाक् ज़ुबान 
निरंतर बहते अश्रुधारा 
महाराष्ट्र को भिंगा नहीं सकते 
किस मुँह और हाथ से 
ईश्वर की प्रार्थना करु 
मृतकों की आत्मा को शांति दें
अर्सा बीत गये 
ईश्वर की मृत्यु हुए 
ऩीत्से की धोषणा के बाद 
न वे मंदिर में हैं न मस्जिद
 न मठ ,गिरिजा 
 न  ही गुरुद्वारे में
ईंट पत्थर का ढ़ाचा 
ध्वस्त हो गये 
उन्ही मलबे में 
दब गये आदमी
अपने-अपने 
अराध्यों के साथ 
हजारों- लाखों 
माल्थस की उलाहना 
काँटे सी चूभ गई  
प्रकृति तुम कितनी बेरहम हो 

- डां. अनिल भतपहरी / 9617777514

रचना काल -2-10-1993 शनिवार रात्रि 10-30 बजे  गुरुघासीदास छात्रावास आमापारा, रायपुर
[3/27/2020, 15:30] Anil Bhatpahari: "प्रयोजन‌"

मोक्ष नहीं धर्म नहीं अर्थ नहीं आत्म प्रशंसा मेरी नजर में व्यर्थ सही  
जो सत्य हैं उसे कहने आया हूँ 
तुम सोये रहोगे कब तक जगाने आया हूँ
[3/27/2020, 15:33] Anil Bhatpahari: छलनामृग 
यह जगरीति हैं छलनामृग 
करों तुम इन पर सर संधान 
सद्गुरु ने भेजा जग में 
देकर शबद बान 
देकर शबद बान बनाया 
माता -पिता  ने विवेकी 
कहे अनिल अशांत छलना 
यह जगरीति
[3/27/2020, 16:32] Anil Bhatpahari: कल तुम्हें ईश्वर बनना हैं

विनाश की विभीषिका से 
सशंकित 
रे मन 
अधीर न हो 
तुम्हें ज्ञात नहीं 
महाप्लावन में 
हज़रत नूंह
शेष था सत्यव्रत मनु 
लंका में विभीषण 
कुरुक्षेत्र में परीक्षित 
कितना सुन्दर मोहक‌
नई सृष्टि रचें
आदमी के प्रवृत्ति से 
डरकर
इंसान बनने की 
ललक त्यागकर 
भूल रहें हो 
कि तुम में  
विद्यमान ‌हैं इंसान 
ईश्वरत्व हैं भीतर हैं
कल तुम्हें ईश्वर बनना हैं
[3/27/2020, 17:07] Anil Bhatpahari: दो कुत्ते 

एक ही कुतिया से उत्पन्न‌
दो सुकुमार पिल्ले 
भारतीय समाज के 
दो घरों में पलें 
‌संस्कार के अनुरुप 
नामकरण हुआ 
डेविड और कल्लू 
*            *           *

डेविड रहता मालिक के साथ 
दिन भर होटल, कार -उद्यान में 
कल्लू भी अपने स्वामी  संग 
रहता खेत और खलिहान में
वे खाते ब्रेड बिस्कुट चपाती 
ये  खाते बासी, सुखी रोटी 
उनके दि‌न कटते ऐशो अराम से 
इनके भी गाते भजन सत राम के 
डेविड के मालिक ने 
दो नई फैक्ट्री लगवाए 
कल्लू के स्वामी ऋणमक्ति हेतु 
अपने दोनो खेत बेच आए 
उस दिन दोनों के लिए 
समान अवसर आया 
जलसा में  स्वादिष्ट 
भोजन भरपेट खाया 
व्यवसायी  सफलता के नाम‌
भव्यतम पार्टी दिया था
किसान भूमिहीन होकर 
ग़म से मर गया था 
एक की दावत 
दूसरें की पंगत 
कुत्ता भेद नहीं जानता 
क्या दावत और क्या पंगत ?
डेविड लकी हो 
हर जगह पुचकारा गया 
कल्लू लावारिस हो 
हर जगह से दुत्कारा गया 

   *              *            *
जीवन के मोड़ पर 
एक दोनो भाई मिलें‌
एक- दूसरे  के सेहत देख 
आश्चर्य चकित हुए 
डेविड ने कहां चलो मेरे साथ 
कल्लू ने कहां नहीं भाई करना माफ़
अभी मुझे बहुत सा कर्ज़ चुकाना हैं
मेरे स्वामी के खेत में बने 
फैक्ट्री के मालिक से निपटना है 
इतना सुन डेविड गुर्राया 
कहां क्या बकते हो 
इसे मेरे मालिक ने बनाया हैं 
दोनो एक ही मां के दूध पिये थे 
स्वामि भक्ति हेतु अपने 
जात पर उतर आये थे

*               *              *

लेकिन वाह रे आदमी 
तुम कब अपनी जात पर 
आओ गे 
एक- दूसरे पर छूरा भोंक 
कब तक रोज़  ऐश़ करोगे 
रोज़ दावत रोज़ पंगत 
कब तक कराओ गे 
और इस तरह श्रेष्ठतम 
होने का दंभ भरोगे 

*       *          *

कल्लू और डेविड की लाशें 
 इधर - उधर पड़ा था
दोनो को आपस में लड़ते  देख 
पागल कुत्ते समझ 
मार दिया गया था
[3/27/2020, 18:12] Anil Bhatpahari: ६ 
बस्तरिहा 
सभ्यता से निर्वासित 
सदियों से शोषित उपेक्षित 
जंगल पहाड़ों की कंदराओं में 
दुर्गम बीहड़ गुफ़ाओं में हव
आज भी आखेट युग के 
जीवन जीने बेबस 
ये माड़िया मुरिया  हल्बी 
गोड़  भुंजियां अबुझमाड़ी 
मस्त हैं अपने में 
कोई शिकायत नहीं हमसे 
सरल सहज प्रकृतस्थ जीवन 
सार्थकता वन में जी जीवन 
तेंदू चार करील लांदा 
कोदो कुटकी मड़िया सांवा 
मंद मउंहा सल्फी ताड़ी 
माखुर चोंगी और बिड़ी 
जात्रा हाट तीज त्योंहार 
थिरकते लयबद्ध  पांव  
ढ़ोल संग रात- रात भर 
लया चेलिक मुटियारी 
लइका जवान जम्मों 
 डोकरा अउ डोकरी 
नादकंठ से झरते जगार 
सजते नित मुरगा बजार 
लगते बाजी यह कौतुक खेल 
काटते हंसते जीवन जेल 
नहीं कोई टेंसन कितना सरल 
अधरों पर सदैव हंसी निश्छल 
गरीबी भुखमरी या प्रचंड बिमारी 
पेचिस दस्त मलेरिया या महामारी 
अधनंगे अभावग्रस्त जीवन जीते हैं 
पता नहीं ये क्यों इतना दर्द पीते हैं
अगर ये दर्द पीना छोड़ दे 
तो कल सभ्य हो जाएन्गे 
बिल्कुल शहर की तरह 
ये बातें गांठ जोड़ ले 
पर वे शहर नहीं 
सरग की तलाश में हैं 
सत्य प्रेम करुणा के 
उजास में हैं 
उन्मत्त बस्तरिया 
जय जय बस्तरिया ...
[3/28/2020, 13:16] Anil Bhatpahari: ७
बसंतगीत

आये आये सखि ऋतुराज बसंत 
झुमें सेमल झुमें पलाश 
उड़े महुयें कस गंध 

पंचम सुर में कोयल गाए 
मन मयुर सुन झुमर नाचे 
नस नस  में छाये उमंग 

बेला चमेली मिल करे श्रृंगार 
भंवर भृंग खग करत मनुहार 
कण - कण झंकृत प्रेम प्रसंग 

नवल किसलय कोमल गात 
चंद्रमुखी सम धवल प्रभात 
रति मदन का नित  संगम‌
[3/28/2020, 13:55] Anil Bhatpahari: ८

देश का क्या होगा ? 

 सेवानिवृत्त हो चुके दादा जी के
आँखों में चश्मा चढ़े मालूम नहीं
घर बैठें सूई- धागों से नित खेलते 
रंग-बिरंगें फूल चिड़िया बनातें हुए  
अपनी सद्गति का बाट जोह रहे हैं 
प्रेम सदभाव का मिश्री घोल रहे हैं
दूसरी ओर मैं सड़कों पर बेख़ौफ
निकल पड़ता हूँ कुछ लोगों के साथ  
लड़ाई रोज कभी पान वाले कभी खोमचे वाले से 
कभी स्वयंभू सज्जन बुद्धिजीवी से 
करते उदंड्ताएं गाली गलौच करीबी से 

क्योंकि देते हैं मुफत में  हरदम नसीहत 
सीखाते हैं सलीका व करते फजीहत 
उच्चादर्शों की कोरे उपदेश नहीं चाहिए 
 कोई सहानुभूति और आदेश नहीं चाहिए 
नहीं चाहिए उनके गौरव मय अतीत 
ऐसा कह जगाते हमारी जमीर 
नहीं चाहते गाहे बगाहे लड़ना झगड़ना 
फिर भी आदत हैं कि छुटती 
बात बात पर झगड़ा 
सिगरेट कभी पान-चाय गुटका 
*             *           *

पढ़ने के लिए पढ़ते हैं रोज अखबार 
पर हम पढ़ नहीं पाते समाचार 
दादा जी सुबह चाय पीते 
एक एक अक्षर को बांचते 
कहते हमारे घर से १०० गज दूर 
एक लड़की का शाम हो गया बल्ताकार 
उदंड लड़के मिकलर कर रहे
अत्याचार 
बाजा़र के निकट मंदिर के पीछे 
बड़ा  संघात हो गया 
मस्जिद के समीप गुरुद्वारा गली में 
दंगा फसाद हो गया 
समझ नहीं आता देश का क्या होगा ? 
ठंडी आह! के साथ कांपते हाथ से रखते अखबार 
विषाद से भरा उनके सुख सारे होते तार तार 
दादाजी को एक टक देखता हूँ 
और उसे चिन्ता मुक्त रखने  की 
कोशिश करता हूँ 
फल फूल दूध दवाई हर चीज प्रस्तुत करता हूँ
पर वे दिनोंदिन होते चिन्तातुर 
और हम सपरिवार व्याकूल 
चश्मा चढे आखों से वह सब पढ पाता हैं
पर  मै क्यों नहीं पढ पाता 
और क्यो नही  कह पाता
कि देश का क्या होगा ?
[3/28/2020, 17:58] Anil Bhatpahari: 9
आव्हान 

शस्य श्यामला वसुंधरा पर 
प्रज्ञा शील करुणा भूमि पर 
यह कैसी परिस्थिति वर्तमान 
अखिल विश्व मानव जननि‌ पर 

हैं वेदना अंत:करण में आपार 
देख सुन  कर स्थिति वर्तमान 
उद्वेलित करते मस्तिष्क को 
छीड़ा हृदय में घोर संग्राम‌

जाति धर्म भाषा की झगड़े 
नित हो रहे हैं देश में 
स्वार्थ और सम्प्रदाय का विष 
नित घुल रहा परिवेश में 

यही आपसी झगड़े का रुप 
हैं विश्व में अत्यंत विकराल 
रहा न  तीर -कमान  अब तो 
परमाणु शस्त्र धातक जैव हथियार

मानवता के ऊपर तांडव 
यह कैसा प्रलय मय सुर तान 
तब हृदय के कोने से ऊपजा 
यह मंगलमय जय गान 

आव्हान हे युवा शक्ति तुम्हें 
इन विपत्तियों के ख़िलाफ 
जिन कुरीतियों से यह वटवृक्ष 
जलकर हो रहा हैं ख़ाक 

फैलाना हैं  पुनः तुम्हें
सर्वत्र मानवता का संदेश 
राम-रहीम,बुद्ध-ईसा की वाणी से 
मिटा‌ना हैं यह सब क्लेश 

महागर्त में डूब रहे 
मानव को ऊपर लाना हैं
इन आँखों के अंधों को‌ 
प्रकाश तुम्हे दिखलाना हैं 

इन मूक बधिरों को 
राष्ट्र- प्रेम गीत सीखाना हैं
तभी हे हिन्द नवयुवक 
तुम्हारा सार्थक जीना हैं 

   -डा. अनिल‌ भतपहरी / 9617777514
[3/29/2020, 18:08] Anil Bhatpahari: 10 - 
  
"निरंतर"

प्रात: दैनिक कार्य  से निवृत 
स्नान ध्यान पूजा 
फिर अंगो में अत्तर लगा 
कर के पेट पूजा  
पापी पेट के लिए प्रस्थान 
संधर्ष आपाधापी रोज 
श्रृंगार करुणा कभी ओज 
नित उद्वेलित करते 
मन मतिष्क अंत:स्थान 
द्रवित प्रवाहित कराते 
मानव होने का अहसास 
फिर भी क्या हमारी 
पाशविकता में आया फर्क
कटुता मे मिठास 
या कुलुप में कुछ  उजास 
सोचो जरा क्या नहीं चाहते
करे /मिले लोगों से  सम्मान 
केवल मान भर नहीं 
बल्कि रोटी ,कपड़ा- मकान 
 सहजता से या किभी भी तरह 
प्रेम से हो या भय से 
पाने में प्रेम प्राय: चलता नहीं 
देश नफरतों और धृणा से भरा हैं 
इसलिए दिखाते हैं भयानकता 
और इसी के साया में 
रोज चलता हैं पेट 
भले किसी का कटे 
किसी का भरे 
इससे क्या ? 
हमारी रोजनामचा में 
आने न पाये कोई परिवर्तन 
बल्कि जो है उससे श्रेष्ठ 
हो सदैव नित्य नूतन 
स्वभाविक है, हम मानव हैं 
आखेट युग से अब तक 
विकास करते आए हैं
पता नहीं मनुष्य सिद्ध करने 
कितनों को पशु बनाए हैं 
या पशु  बने है
कल भी आज भी और कल ..  
जीवन वृत्त  है
चल रहा निरंतर 
घट रहा  सब भाव 
मानव के भीतर
[3/29/2020, 18:49] Anil Bhatpahari: 11

प्रतिक्रिया 

एक वर्ष और बीत गये 
मै मात्र गिनता रहता हूँ
एक तटस्थ दर्शक की तरह 
सिर्फ देखता रहता हूँ 
कि लोग आते हैं जाते हैं
अपनी प्रतिक्रिया सुना नहीं पाता 
आपके आना अच्छा लगा 
आपके जाना अच्छा लगा 
आपके कहना अच्छा लगा 
आपके करना अच्छा लगा 
उनकी वाणी सम्मोहित  
उनकी सुनाने की जिद  
से मिला नहीं अवसर 
कुछ कहने की 
युं बीतते रहा दिन महिने वर्ष 
उनके होते उत्कर्ष 
स्थगित अपने विमर्श 
ऐसे में कह ही नहीं सका  
कि बुरा वक्त बितते रहा 
अच्छे में अच्छा नहीं दिखना 
खुद की बेवकूफी हैं
हंसते हुओं में रोना 
कैसी नाइंसाफी हैं 
क्या करें न चाहते दबाए रहे 
भावनाओं को अपनी 
रेतते रहे गले रात- दिन 
विचारों की अपनी 
क्योंकि मेरी वाणी और भाषा 
अभिव्यक्त नहीं करती 
भावनाओं को 
और व्यवस्था प्रकट नहीं होने देती 
विचारों को 
अपनी भावनाओं को व्यक्त करने 
भटकटे अमूल्य समय नष्ट करता हूँ
विचारों को प्रगट करने 
सर्वत्र संशाधने तलाशता हूँ
देखते- देखते एक वर्ष और बीत गये 
कुछ न  लिपिबद्ध हुआ न व्यक्त 
महज भूमिका बांधते 
आलोचनाएँ करते 
कमियाँ निकालते 
कोरे कागज रचने से 
प्रयोजन क्या 
हजारों अखबारों 
के प्रकाशन से क्या 
सभी वर्ष बिताने के तथ्य 
जितने भी देखा पढ़ा सुना कथ्य 
पतन- महापतन 
ये मैं नहीं कहता 
संपादक कहलवाता हैं
फाड़ कर गले विपक्ष कहता हैं
स्तरहीन- दिशाहीन 
अनर्गल बातें प्रकाशित कर 
आरोपित -प्रक्षेपित कर 
वर्ष बीतने के कगार पर खड़ा 
कोई तो कोई  मिल ही जातें हैं  
कहने वाला 
कुछ न कुछ सटीक 
प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाला
[3/29/2020, 18:49] Anil Bhatpahari: 12
मानवता रोई हैं

अंग्रेजों की नीति 
राज करों डालकर फूट 
मस्जिद गया फूट 
मंदिर  गया  टूट 
लोगों में भय आतंका का 
तमस पुनः छा गया 
चुपचाप इतिहास 
अपने को दुहरा गया 
अफ़सोस कि अंग्रेजों के औलाद 
आजतक भारत नहीं छोड़ा हैं
ये दौड़ते-भागते दिखाते 
धडियाली आँसू  
उन्ही के छोड़ा अश्वमेघ
यज्ञ का घोड़ा हैं
इनके काले करतूत से 
मानवता रोई हैं
मां भारती पुनः 
लहुलुहान हुई हैं
जलियांवाला बाग
 फिर से धूं धूं जली हैं
 रामसेवा  के नाम पर 
 सर्वत्र कोहराम मची है
[3/31/2020, 10:57] Anil Bhatpahari: 13
बेबस 
चिलचिलाती मई  का धूप
पिघले तारकोल‌ सड़क के 
हाशिए पर 
जहां लाल मूरम बिछी हैं
चलकर नंगे पैर 
मैलें - कुचैलें फटे वस्त्र को 
देंह में चिपटाए 
कंधें पर एक बोरी लटकाएं 
तेरह चौदह बरस की छोकरी 
और पांत सात बरस का छोकरा 
आया कबाड़ी वाले के पास 
कहां सा'ब एक गिलास पानी 
क्या लाया ?
दो- चार बोतल , आध किलो टीन टप्पर 
तभी चहकती स्वर कानों घुली में घुली 
मालिक दो तीन  किलों  रद्दी  

बस ! 
पाव भर प्लास्टिक माई बाप , पानी ! 
दूर हट बे, जा प्याउ में जा 
वह लड़का चला गया 
कस्बा के एक मात्र 
दूषित तालाब की ओर 
क्योंकि वे प्याऊ से 
प्यासा दूत्कार पीकर 
आया हुआ था 
क्योंकि वह हराम का,
और न ही सुअर का बच्चा था 
बल्कि हम आप जैसे 
आदमी का बच्चा था।
 उधर उस छोकरी के लिए 
द्रवित दया उमड़ आए थे 
बेचारी मुग्धा मुग्ध 
गन्ने रस पी रही थी 
और निंगाहे ढूंढ रही थी 
छुपकर कोई पन्नी 
जिसमें बचाकर -भरकर 
ले जाती पियासे भाई के लिए ...
पर एकटक निगाहबान से 
विचलित छोकरी भीतर से 
दलहते जा रही थी 
बर्फ के गोले अंगारे सा 
गले में अटकते जा रही थी
मजबूर - बेबस ! 
पता नहीं कैसे
सांसे लिये जा रही थी ..
[4/2/2020, 08:53] Anil Bhatpahari: "वहम "

दिखता हैं पीठ 

हर किसी का 

पर चेहरा क्यु 

दिखता नहीं

हर किसी का 

लगे है लोग 

दर्पण दिखाने 

पर दिखता नही 

चेहरा किसी का 

खोट दर्पण में है 

या दिखाने वालों में 

या कही देखने वालों में 

क्योकि अब चेहरे  

कहां है ?

पीठ में बदल चुके हैं 

सारे जहां 

असानी से इसलिये 

हर कोई भोंक रहे है छूरे
 
लहुलुहान चेहरा नही 

पीठ हो रहे हैं जमुरे 

यह दौर स्कार्फों 

और मुखौटे का हैं

कहीं जाने का नहीं 

बस लौटने का हैं

जब ज़मीन पर नर्क हैं कायम
 
तब स्वर्ग पाने पाले क्युं वहम 

-डा. अनिल भतपहरी
[4/2/2020, 10:38] Anil Bhatpahari: ।।राम की सद्गति ।।

वन में वनवासियों के 
बीच रम कर ही
आर्यपुत्र राम हुए 
रहा साकेत में 
सत्ता-सिंहासन से
संशकित -भ्रमित
लांछित- निर्वासित
मंथरा -कैकेयी प्रफूल्लित  
सीता-शंबूक से उद्वेलित 
ब्राह्मण से हुआ छलित
उज्ज्वल गाथा 
हुआ कलंकित 
कांटों की ताज से 
मस्तक लोहित  
मर्यदाएं हुई खंडित 
नर श्रेष्ठ स्व अपमानित 
अंततः लिए सरयु में 
जल समाधि 
इस तरह हुआ 
पुरुषोत्तम की सद्गति
मिला रजक को‌ 
उनके उत्तरीय वसन 
किया ब्राह्मण ने
लेकर अकूत धन
राम का तर्पण

     -डां. अनिल भतपहरी
[4/3/2020, 15:11] Anil Bhatpahari: सुनसान होगे खोर गली कोरोना के सेती‌
भांय भांय लागे संगी चारों मुड़ा चारो कोती 

१ खोर किंदरा रहिस तेमन होगिन   घर खुसरा
 खोली मं धंधाय बहुमन होगिन मुड़ उधरा 
नता गोता सब धरे रहिगे परान बचा ले पहिली ...

रोजी रोजगार छुटगे संगी , छुटगे निशा पानी 
कत्कोन छुटगे बइमारी ,छुटगे सुजी पानी
[4/3/2020, 16:06] Anil Bhatpahari: सुनसान होगे खोर गली कोरोना के सेती‌
भांय भांय लागे संगी चारों मुड़ा चारो कोती 

१ खोर किंदरा रहिस तेमन होगिन   घर खुसरा
 खोली मं धंधाय बहुमन होगिन मुड़ उधरा 
नता गोता सब धरे रहिगे परान बचा ले पहिली ...

रोजी रोजगार छुटगे संगी , छुटगे निशा पानी 
नानमुन छुटगे बेमारी ,छुटगे सुजी पानी 
समे समे अब तो असनेच करे परही ...
[4/3/2020, 23:57] Anil Bhatpahari: 16
"यथास्थिति से मुक्ति की युक्ति  "

शी़रत न दिखती 
न पकड़ में आती 
तब भला  
कैसे उसे चमकाएं 
किसे रिझानें सजाएं
लोग चेहरे के पीछे 
लगे हुए हैं
इसलिये भी 
कई चेहरे लिए 
घुमने होते हैं
पल-पल परिवर्तित 
इस दौर में
कोई एक ही चीज  से 
एक ही गेटअप से 
कैसे निर्वाह कर सकते हैं
कपड़े जूते चश्में 
घड़ी मोबाइल कलमें
जब  नहीं एक
तब चेहरे कैसे 
होन्गे भला एक 
वह भी नेक !
फिर एक चीज से 
आएगी नहीं उबकाई 
कैसे चलेगा 
बताओं  मेरे भाई 
केवल खाने के लिए ही नहीं
हर चींज के लिए 
लोग जायके बदल रहे हैं
चंचल मन कब से 
मचल रहे हैं 
आखिर रुढ़ता-मूढ़ता को 
क्यो ढ़ोतें रहेन्गे 
कह सनातन स्थिति 
जीवन हैं छण भंगुर
पुनश्च आने का 
सवाल नहीं लंगूर 
तब कोई क्यों 
रखेन्गे यथास्थिति 
कैसी मिथकीय अभिव्यक्ति 
सहेजे बनाकर संपत्ति 
यही सबसे बड़ी विपत्ति 
पाने इ‌नसें मुक्ति 
करें संधान 
हैं जेंहन में युक्ति....!!!

-डा. अनिल भतपहरी

चित्र - महानदी तट मांघी पुन्नी मेला परिसर राजिम
[4/5/2020, 15:48] Anil Bhatpahari: लाली रे दुलहनियां के लाली रे चुनरिया 
लाल लाल मन होके गावे गीत ददरिया ...

हाथ मं मेहदी रचाए पांव मं महावर 
किंदर के आए अंगना मं जोही संग भांवर 
 कुलकत मन उड़े जस आगास म बदरिया ...

छुटत हे मइके अउ मया दुरिहावन लगाय 
कनेखी देखत पिया बड़ मनभावन लागय 
 हिरदे म उठत हवे  पिरित के लहरिया...

खन खन बाजे हाथ के चुरी छन छन रे पैजनियां 
सर सर उडे गोरी के अंचरा 
मोहे रे नथुनियां 
देखब म बड़ नीक लागे 
मोहिनी सुरतियां ...
[4/6/2020, 08:10] Anil Bhatpahari: 17

हिमाच्छादित पर्वत शिखर 
मेघ कुहरों में धसीं
प्रथम प्रिय दर्शन 
नववधु चंद्रमुखी 
पेड़- पौधे, पशु पंछी
चांद -तारे ,और सभी
उंघतें अनमने 
आहट मधुर स्पर्श कोमल 
ठंडी बहती आसक्त अनिल 
मौन आमंत्रण 
केवल मैं तन्हा वो
दिव्य प्रणय 
मिलन एक दूजे का 
साक्षी चीड़ -देवदार
पंछी घंटी और अज़ान
तुम लाख पुछों रहस्य
छुपाए रहेन्गे अंतस में
रे जिज्ञासु बन सैलानी 
चलें आओं कौशानी 
    -डां.अनिल भतपहरी
[4/6/2020, 10:01] Anil Bhatpahari: 18

"सड़क" 

मिट्टी -गिट्टी, मूरम -डामर
और लोहे- सीमेंट की  
 यह सड़क नहीं 
जो  गांव नगर देश को 
में जोड़े 
जिन पर  बैलगाड़ी
से लेकर रेलगाड़ी 
बेधड़क दौड़े 
सब तरह के आवागमन 
निर्बाध चले 
चलते  हैं जहां  मेधा 
जोड़ते हैं  जहां हृदय से हृदय 
मिलते हैं मन से मन 
काव्य नहीं उपनिवेश के लिए 
सुख और शांति के प्रांत में 
चाहते हो आना 
तो स्वागत हैं दू मन आगर 
कुछ पल बिताओं आकर 
सुलभ सुगम सहज हैं 
ये सड़क तुम्हारे लिए
[4/6/2020, 10:17] Anil Bhatpahari: 19

।।अकाल ।।

कालाहांडी सरगुजा 
और पलामू में 
एक एक दाने को 
तरसते- झगड़ते 
एक-एक  बच्चे
युवाओं वृद्धों को 
एक छण
जी पाने की आस 
निटोरते आकाश  
पटापट मरते 
नर कंकालों को डोलते 
मृत जानवरों के 
मांस को गिद्ध की तरह 
नोचते झपटते चीथते 
देखा हैं मैने 
पेटाग्नि बुझाने 
कुछ भी करने को तत्पर 
मौत के आलिंगन से 
बचे छटपटाते 
दर्द से कराहते 
लोग कह रहे हैं-
मार दो गोली 
गिरा दो बम 
अब और जीया नहीं जाता 
देख सून उनकें दर्द 
लगा ''पर्ल एस बक " जी उठी 
उनकी पात्र एकाएक 
नोबल पा गये 
जवाहर रोजगार 
लहुं पसीना बहाकर 
मुठ़ठी भर अन्न पाकर 
जी रहें हैं मूरख 
अगले इलेक्शन 
और नोबल के लिए ...
[4/6/2020, 11:16] Anil Bhatpahari: मोहिनी सुरतिया तोर  नैना मारे बान 
जीव होगे हलकान अउ छुटत हे
 परान‌
 नजर भर देखे नहीं ओ, न गुठियाए नहीं ओ ...

कोजनी का गलती होइस मोर से 
कइसे पिरित  रानी जागिस तोर से
कहना मोर चिटिक, पतियाये नहीं ओ ...

दुरिहावत हस त एक जिनिस बतादे 
झटकुन मर जांव अइसे लिगिरी लगा दे 

महुरा घोर के तय काबर पियाए नहीं हो ..
[4/9/2020, 07:52] Anil Bhatpahari: "जीवन "
वन मे जी उसे कहते है जीवन 
पर  विकल वहा सभी हैं बेमन 
व्याकूल वन में भटकते वन्यप्राणी 
पीने को न मिले  एक बुन्द पानी 
चले  गांव जहां मिल जाय जिनगानी
पर भैय्ये यहां जीवन ही हैं  हलकानी 
तो चले शहर चलकर देख ले 
उखडती हुई  कुछ सांसे बचा ले ....

पर क्या शहरों में जीवन बचा है
मरने के कगार पर वह खडा है
तब से यह कहावत हुआ चरितार्थ 
जब मौत समीप हो तो आते शहर की याद
 

 

(आज प्रात: सोनारदेवरी पलारी में प्यासे भालू भटकते आकर बेर पेड में चढ गये उसी से प्रेरित चंद पंक्ति) 
- डा. अनिल भतपहरी
प्राध्यापक ,
शा बृजलाल वर्मा महा पलारी
[4/9/2020, 08:26] Anil Bhatpahari: ।।मन रमता नहीं।। 

नगर की स्थिति ख़राब हैं
मन रमता नहीं

सड़कों पर लोग
 चल नहीं सकते 
बिजली खंबे की तरह
 खड़े पाकेटमार हैं
गाँव फ़रियाद लेकर 
शहर आ नहीं सकते 
जंजालों का यहाँ
नित नी बाहार हैं
अंदर से कुछ
बाहर से कुछ 
हर चेहरें पर 
पड़ी हुई नकाब़ हैं 
मां-बहनें इतिहास के 
पन्नों पर कैद 
नारी देह- पूजा 
 स्वागत -सत्कार 
निकल नहीं सकती 
वनिताएं अकेली 
यहाँ पर रोज  
बालात्कार हैं
इधर- उधर 
फिसलती आँखें
हरदम हवस मिटाने 
 बेताब हैं
चौंक- चौराहें पर 
खड़े होकर चिल्लाओं‌
सफेद बगुलों में
सारस कहां हैं
सप्रेम भेंट केले छिलके 
सड़े टमाटर- अंडे
सफेद पत्थरों में
पारस कहां हैं
सौं बातों की 
एक बात 
आपका विवेक भी 
लगता लाज़वाब हैं
अलविदा होते सभी 
रहता शेष कोई एक हैं
कहता वह पारखी 
यह तो हैं असली 
लेकिन स्वर्ण - छीर का 
वह मोहताज हैं
नियति अपनी -अपनी 
उनकें स्पर्श से खराब 
यह आफ़ताब हैं
विज्ञान विकास के साथ 
विनाश भी करा रहा हैं
कुछ पाने के लिए 
सर्वस्व खोने से अच्छा
दिल यह कह रहा हैं
अभिशप्त अभिजात्यों का 
विसर्जन कर
समता के मांदर बजाऊ
गीत नव सर्जन का गांऊ 
यही परमार्थ हैं...
मन रमता नहीं 
नगर की स्थिति खराब हैं

-डां. अनिल भतपहरी 

टीप- केडेट डायरी पृ क 43 रचनाकाल 28-9-1994
[4/9/2020, 09:18] Anil Bhatpahari: शिकारी और भिखारी 

तब पचासों चिड़ियों का झुंड 
फूर्र से उड़ गया 
मैंनें देखा उस अधनंगें
काले -कलुटे पारधी के बच्चे को
जा़ल समेटते , मन मसोसते 
कह रहा था 
बाबुजी चिड़िया फंसी तो शिकारी 
या नहीं भिखारी 
*             *           *
कुछ दिन हुए मैं इनके 
बस्ती में आया 
इसलिए कि यहाँ से 
शहर समीप हैं
और ग्रामीण सचिवालय भी 
बचपन से आदतन
मैं प्रकृति प्रेमी रहा हूँ
खीच लिया यह वन प्रांतर 
और नल सेप्टिक छोड़कर 
दिशा- मैदान जाता हूँ
लोटा लेकर 
तब स्मरण हो आतें हैं 
बचपन मेरा 
वन ग्राम में बीता 
पिताश्री के मास्टरी के संग
विरासत में मिला मुझे एकांत 
खूब दोहन किया 
चिंतन मनन अध्ययन किया 
*                *               *
कुंचालें भरती हिरणियों के झुंड 
सुमन -सौरभ  लुटाते भंवर वृंद 
कोंपल फूटते सल्फी 
बौराते चार आम्र मंजरी 
कुचियाएं महुए का गंघ 
रात रात भर बजते 
ढ़ोल- मंजीरे नाद कंठ 
उन्मुक्त विचरण 
अल्हड़ ग्राम बालाएं 
तीर धनुष से सजे-संवरे 
भुंजियां माड़ियां छोकरे 
थिरकते लया चेलिक के पांव 
आज भी आंखों में तैरते वह गांव 
आंचलिकता से सिक्त
शब्दों से मिला मुझे प्रसिद्धि 
किशोरावय से ही उपलब्धि 
मन दौड़ता हैं उन्ही के समीप 
शहरी मित्रों का उपहास 
कि आज तक मैं देहाती हूँ
तथाकथित प्रोगेसिंव 
नारी मुक्ति पर बीसियों पेज 
लिख मारने के बाद 
मांस मच्छी मंद 
बालाओं के संग
पंच मकार की अनुगामी 
रे अघोरी खल दुष्ट कामी 
साले कोरे बुद्धिजीवी 
बने हो इसलिये पड़ोसी 
*           *             *
 एक नर्स यहाँ रहने आई 
एकदम तन्हा 
पारधी के लड़के ने बताया 
बाबु जी बहुत अच्छी हैं
उनके तीतर-बटेर की तरह
लगने लगी स्वादिष्ट  
कभी-कभी तृप्ति की डकार सी 
आने लगी स्वप्नारिष्ट
उस दिन दौड़ते आया 
ये पत्तर दिए हैं आपको 
तब एक पल  लगा 
कि उस सुन्दर नर्स के आने से
मैं भी कही 
शिकारी से भिखारी न हो जाऊं
टूटी तन्द्रा देख पोष्ट लिफाफा 
पर थामते नर्स की थैला 
और पाकेट पर रखते पैसा 
लानी हैं गृहस्थी के सामान 
होते रहा खुश और हैरान 
इस तरह कैसे वो अपना बना ली 
अपने मरीज से मिलने 
नर्स रोज सपने में आने लगी  

    -डां. अनिल भतपहरी 

     रचनाकाल  सितबंर १९९४
[4/9/2020, 14:16] Anil Bhatpahari: एक नज़र 

ऐसा लगता हैं कि हम
फिर से  भिल्ल होन्गे 
महाभारत के एकलव्य की तरह तीर -कमान युक्त अधनंगे नहीं
न चिंपाजी ओरांग-उटांग की तरह   बिल्कुल नंगे भी नहीं 
बल्कि इक्कीसवीं सदी का सुटेट- बुटेट 
पर भीतर से एकदम  नंगे  होन्गे 
यह नगर जो चमक-दमक रहे हैं
ईट,कांक्रीट, लोहे का 
कट -कट जंगल होन्गे 
*             *           *
पल रहे जन वन में 
कईं हिंसक पशु 
जो आँखे नचाकर करते शिकार   करते समक्ष आड़े-तिरछे  वार 
लिचलीची शहदी वाणी में फांसकर 
मृगजन को कच्चे ही खाकर 
लेते नहीं डकार 
उस हिंसक के अगल-बगल 
दूम हिलाते कुत्ते की तरह 
उनके चमचें मिलेंगे 
हर महकमें गाँव-शहर 
चारों ओर अगल-बगल 
कही भी हो इधर- उधर 
राह चलते डगर -डगर 
कराते हत्या लूट बालात्कार 
चोरी डकैती काला बाज़ार 
इनकी यह सब आम पेशा हैं
गौतम गाँधी के देश ये सब कैसा हैं
*           *               * 
आज अर्धनग्न किशोर 
जो डूबे हैं पश्चिम की ऐश में 
सत्संग प्रवचन छोड़कर 
जुआ वेश्या की रेश में 
विकसित कुटिल दर्शन ने 
सिखाया इसे 
उन्मुक्त विहार 
समर्पण नहीं केवल आकर्षण 
इमकी ग्लेमर्श चकाचौंध ने 
परंपरा ही नहीं रिश्तों को तोड़ा 
नारी श्रद्धा नहीं 
नारी अबला नहीं 
नारी भोग्या नहीं 
नारी त्यजा नहीं 
नारी बला नहीं 
ना री सबला नहीं  
नारी सबका नर सबका
उन्मुक्तता का यह 
विकृत परिणाम 
कालाजार मलेरिया नहीं 
एड्स से करने लगी 
प्रकति संतुलन 
आधुनिकता की मोहफांस में
उलझा एक किशोर मन 
अंतस भीतर चोट पहुचता 
चारों ओर विकृत मानसिकता 
क्या यही हैं आधुनिकता 
जीवन मूल्यों की चहुंओर  रिक्तता
सभी को सब कूछ पता हैं
शर्मशार पडे  साधे हुए मौन 
हमाम में सब नंगे हैं 
कहे एक -दूसरे को कौन 
*           *              *              * 
ये विकसित भिल्ल ग्राम 
पतन होते नगर महानगर में 
डूब रही मानवता यहाँ 
इस मायावी सागर में 
आज वही नाव हैं वही पतवार 
वही सवार और वही खेवार  
जिसमें पार हो रहे हैं
हत्या लूट फरेब बालात्कार ...
[4/9/2020, 23:01] Anil Bhatpahari: गीत 

आखी मं गड़ मोर चढती जवानी 
बडे बडे पखरा होवय पानी पनी‌
राम ब इरी जवानी ...

बिहने खेत जाथव मंय बोह के नांगर 
बचावत   पनिहारिन मन सो  नजर 
छलक जाय राम उकर हवला के पानी... 

मंझनिया आथव ,खाथव पखाले बासी 
चउरा ल सुनाथे मुटियारिन के हांसी 
 मुचमुचहिन टुरी मन मारत हे छैलानी ...

संझाकन  सायकिल मं जाथव पलारी 
थेंकत कहिथय बइठा ले गा  सवारी 
देख गीत गावय ओमन आनी बानी ...
[4/10/2020, 07:45] Anil Bhatpahari: प्रतिक्रिया 

माली जानता हैं
ये डाली पर खिलें फूल‌
औरों के लिए हैं
फिर भी यत्नपूर्वक 
बड़ी लगन से जतन करता हैं
जहां भी जाएगा 
सुगंध ही फैलाएगी 
आत्म संतुष्टि मिलेगा मुझे 
पर निरुदेश्य 
कोई तोड़ता हैं
या टूटता हैं
तो हृदय में 
क्रोधमय पीड़ा का 
आविर्भाव होता हैं।
[4/10/2020, 07:49] Anil Bhatpahari: ।।भूख।। 
भूख से बिलबिलाते 
बच्चें को सुलाते 
चांद को दिखाते
मां लोरी सुनाते 
रोटी समझ 
खाऊंगा तांद को 
तंदुली लोटी हैं ओ 
बच्चें के तुतलाते 
जुबान मां को रुलाते
[4/10/2020, 08:05] Anil Bhatpahari: काव्यार्पण 
मेरी कलम की स्याही 
आँसू हैं जो टप टप चू कर 
काग़ज में कविता बनती हैं
मानवता एंव सत्यता पर 
फिसलते ये कलम 
सिर्फ़ विचार प्रगट करते हैं
मार्क्सवादियों की तरह 
आज हर कवि/ रचनाकार 
सिर्फ़ भावनाओं से शोषित हैं
और जो वाकिय में शोषित हैं
वे लिख नहीं सकते 
गा -बोल नही सकते  
ले देकर जीते हैं
अंत में मर खप जाते हैं
कार्ल मार्क्स और अंबेडकर की तरह 
ये कम्बख्त कविओं/ वक्ताओं
बहुत सम्मानित होते हैं
उनके वाणी 
महल ड्राइंगरुम में 
सरकारी सभागारों में 
कैद हो जाते हैं 
ठीक कीचड़ के कमल की तरह 
खूबसूरत मंदिर के 
खूबसूरत मूरत के 
खूबसूरत चरण में ...
[4/10/2020, 08:57] Anil Bhatpahari: सोच 
प्रतिक्रिया में 
गुस्से से बिफरती 
मुंगियां कह क्या सोच रही हैं 
मरद घुम फिर कर 
अपने जात पर उतर आते हैं
*             *     ‌‌‌‌‌        *
गाँव -कस्बा,शहर -महानगर 
स्त्री -पुरुष और उनके खिलौने बच्चें 
प्रजातंत्र में राजतंत्र का छौक 
से उत्पन्न  अराजकताएं 
असामाजिक अव्यवस्थाएं
पंगु होती  मानवता 
विकृत होती मानसिकता 
कीड़े -मकोड़े सदृश्य 
रेंगते आदमी का झुंड 
जीने के लिए संधर्ष 
करते होते खंड चूर्ण 
धूटन शीलन चौतरफा 
बड़ा ही चाक चौबंद 
ताकि चलता रहे राज 
ऐसा किए गये प्रबंध 
ऊब -चूब  करती जिनगानियां 
सुनो ऐसी में मनोहर कहानियां
कुछ माह  बिहारी के प्रेम में 
पगलायी गाँव शहर आई 
इसी बदबूदार झोपड़ पट्टी में 
पास ही धुंए उगलती फैक्ट्री में
रोजी के लिए देकर अर्जियां‌
करते रहे मुंगियां से मनमानियां‌
पर होने एकाएक छटनियां 
बढ़ने लगी परेशानियां ‌
रोजी क्या ठीक से रोटी तक  नहीं 
साथ लाएं रुपये जेवर 
पेट में समा गये 
पर यह क्या? मुंगिया के 
पेट बाहर निकलने लगे 
सोच गहन सोच 
पेट चलाने के लिए 
*           *          *

एक रात बिहारी
 बाहों में बाहें डाल 
प्रेमासिक्त बातें 
चुमकर मुंगियां के गाल 
कहां पेट शरीर हैं
क्यों न शरीर के लिए 
शरीर बेचकर 
पेट चलाया जाय 
शरीर बचाया जाय 
मुंगिया रो रही हैं
उनकी आँसू 
लोहे की तवा सा तप्त 
मरद पर टपक कर 
भाप हो रही रही हैं
[4/10/2020, 14:39] Anil Bhatpahari: टेबलेट्स 

प्रिय आत्मन्

 आरस्तु के गुरु प्लेटो साहित्य सृजन के खिलाफ थे। उन्होने राजाज्ञा जारी करवा दिया था कि जो व्यक्ति साहित्य (काव्य ) रचता है,उसे मृत्युदण्ड दिया जाय।
     उपर्युक्त फ़रमान के ख़िलाफ आरस्तु ने रचनाकारों एंव साहित्य के हित के लिए "विरेचन सिद्धान्त " का प्रतिपादन किया।
     विरेचन शब्द चिकित्सा शास्त्र से लिया गया है। जिसका अर्थ रेचक औषधि हैं, जिससे रोगी को स्वस्थ किया जाता हैं। यही katharsis method हैं।
         इस प्रकार हम देखते है कि कविता या साहित्य समाज में व्याप्त बुराईयों से लड़ने के लिए रामबाण दवा साबित हुआ हैं।
      वर्तमान में रोगग्रस्त भारत वर्ष  नामक मरीज के ईलाज हेतु हमने युनानी होम्योपैथिक , आयुर्वेद या ऐलिपैथ  को छोड़कर आरस्तु का विरेचन पैथ ( शुद्धता एंव पवित्रता  का मार्ग ) से करने का प्रयास किया हैं -
आश्वासन 
नेता का 
जनता से
हर इलेक्शन बाद 
भूल जाने के लिए 
प्रवचन 
संत का 
भक्तों से 
भक्तों ‌को नर्क में ढ़केल‌
स्वयं स्वर्ग में ऐश करने के लिए 
समाधान 
शंकाओं का 
संकट 
उत्पन्न करने के लिए 
प्रणय 
वर का वधु से 
दहेज न मिलने के बाद 
जलाने के लिए 
५ 
चयन 
बेरोजगारों का 
शादी कर 
बच्चे पैदाकर 
बेरोजगारी बढाने के लिए 

६ 
उत्पादन 
खाद्य सामग्रियों का 
अस्पताल में 
भीड़ बढ़ाने के लिए 
प्रकाशन 
समाचार पत्रों का 
चाय पीकर 
समोसा बांध 
घर ले जाने के लिए 

अध्ययन 
पुस्तकों का 
छात्रों से 
परीक्षोपरान्त 
भूल जाने के लिए 

क्रिन्यावयन 
सरकारी योजनाओं का 
वोट की फसल उगाने के लिए
[4/12/2020, 17:32] Anil Bhatpahari: जय हो जय नकूल मंत्री ढ़ीड़ही 
तोर पूजा करही पीढ़ही पीढ़ही 

गुरु बाबा के जयंती  निकाले 
नवा चलागन समाज म चलाये 
संगठित होही समाज हर  तभेच आधु बढ़ही ...

अंबेडकर संग मिलके तय  समाज ल जगाए 
 हक अउ अधिकार सेती  लडे बर सिखाए 
कानून के राज हवे , कहे काकरो बाप के नहीं ...

कत्कोन केश पेशी लडे गये  छत्तीसगढ बर जेल 
करे निछावर गौटियाई फेर जनता  लिए सकेल
करनी जबर तोर जुग जुग नांव अमर र इही ...
[4/13/2020, 15:32] Anil Bhatpahari: केडेट डायरी के पृष्ठ क्रमांक 65

बसंत के नाम पैगाम‌ 

ओ रहस्य बसंत 
तुम्हारा आना 
हमने नहीं जाना 
अख़बार के पृष्ठ 
न रंगीन थे न कविताएँ थीं
बागों में न फूल खिले 
पेड़ पर्वत नाले 
खेत और खलिहान 
सभी वीरान 
कहीं भी तेरी तरुणाईं नहीं 
जीने की हवस में 
सच!हमसें भूल हुई 
तुम्हारा स्वागत न कर सका 
आख़िर हम आदमी ही तो हैं
अपने में ही जीते हैं
एक बार सिर्फ एक बार 
हमें क्षमा कर दों 
प्लीज़!

डा. अनिल भतपहरी 
रचनाकाल 10-2-1991,रवि. रात्रि10-30
प्रकाशित - रौद्रमुखी स्वर ,आज की जनधारा एंव अन्य
[4/14/2020, 09:06] Anil Bhatpahari: ।।बसंत के नाम पैगाम 2।।

बसंत जी 
हमें हरियाली से क्या लेना 
हम सावन के अंधे नहीं ‌
तुम्हारें तरुणाई से क्या मोह 
हम इनके दिवाने नहीं 
हम तो आदमी हैं
प्रकृति से कटकर 
शेष प्राणियों से हटकर 
अपने में रमकर 
हम में नई चेतना आई हैं
यहीं स्वर्ग बनायेन्गे 
सुरा- सुंदरी से 
घर सजाएन्गे 
इसलिये तो  संधर्ष करते 
छीनते झपटते हैं 
जो नहीं हैं उसे पाने 
सामूहिक संग्राम  करते 
रक्त बहाये हैं
इंद्रासन बचाने के लिए 
क्या नहीं किए  
आखिर वे हमारे पूर्वज हैं
प्यारे बसंत
 हमारे ये संदेश ले जाना 
वापसी में उनके 
आशीर्वाद लेकर ही आना ...
[4/14/2020, 09:11] Anil Bhatpahari: फूल 

जीने की कला सीखें फूलों से 
काटों में रहकर वो मुस्कुराते है
गैरों  के लिए  ही तो जनमते हैं
दर्द ले अपना  सर्वस्व लुटाते हैं
फूल तुम महान हो 
तुमसे प्रफूल्लित सारा ब्रम्हाण्ड 
तुम्हें क्या दे सकते हैं अनिल 
सुमन तुम्हे सुमन समर्पण
[4/14/2020, 09:15] Anil Bhatpahari: भीख 
पेट- पीठ चिपकाए मांगता हैं भीख 
उखड़ते सांस बचाने के लिए 
पेट- पीठ तोंद फुलाये मांगता हैं भीख 
गद्दी में आराम फ़रमाने के लिए 
जीने की हवस में गरीब बिक जाते हैं
सत्ता पाकर नेता अपना औकात भूल जाते हैं
[4/14/2020, 09:18] Anil Bhatpahari: श्रम की मुस्कान 

लंबी अंतराल 
लाखों धाटा सहने के बाद 
कुछ लम्हा फायदे के मिलने पर 
एक छण उनके अधरों पर 
फैली थी एक मीठी मुस्कान 
विकृत दर्द रेखाओं के बीच 
कितना मनमोहक यह मुस्कान ...
[4/14/2020, 09:23] Anil Bhatpahari: ॐ नम: कविताम् 

         कहते है वाल्मीकि दस्यु थे ,कालिदास गवार चरवाहे तो तुलसी निरीह भिक्षुक व पत्नी पीड़ित। फाकामस्ती करते  कबीर, अपमान के विषपान कर  बेफिक्र रैदास, तो गांव- गांव सतनाम का अलख जगाते मनखे- मनखे एक कहते तमाम अवहेलना को नजर अंदाज करते  गुरुघासीदास ।
     परन्तु इन्ही लोगों के चलते दुनिया कुछ हद तक मानवीय हो सका ।काश ये नही होते तो शायद मानवता जमींदोज हो गये होते।
    भारतवर्ष के इन महान युगद्रष्टा महाकवियों को विश्व कविता दिवस पर सत -सत नमन ..कोटिश  प्रणाम 

 "कविता"
मरा- मरा जपते दस्यु वाल्मीकि 
रचे रामायण दी जन को नवदृष्टी 
जिस शाखा मे बैठे कालिदास
उसी को काटते रचे रघुवंशम् 
लिखे अभिज्ञान शाकुन्तलम्
फाकामस्ती करते गा उठे 
कबीर गीत ईमान का 
अपमान के विषपान कर रैदास
गाये गीत सबन के कल्यान का 
नगर वधु के प्रेम पर पगलाये सूर
कुल वधु से मागते रतिदान 
गाये अजब महारास का गान  
पत्नी की फटकार से फटे 
निरीह तुलसी का प्रेमल मान
फूट पड़े सोता मानस गान 
गुरुघासीदास  गांव- गांव रमते कहे 
मनखे मनखे एक समान 
इन सबसे धरा पर 
धन्य हुई मानवता
मानव मन की गुह्य गह्वर को
आलोकित करती आ रही कविता 

 -डा.अनिल भतपहरी 
🌲💐🌻🍁🌺🌸?🌹💐?🌴
[4/15/2020, 08:35] Anil Bhatpahari: भीख 

पेट -पीठ चिपकाए मांगता है भीख 
उखड़ते सांस बचाने के लिए 
पेट-पीठ तोंद फूलाए मांगता भीख 
सत्ता सुख पाने के लिए 
जीने की हवस में गरीब बिक जाते हैं
सत्ता पाकर नेता अपना औकात भूल जाते हैं
[4/15/2020, 08:38] Anil Bhatpahari: नसीब 
नौजवानों के
 सीने पर 
घाव बनाती 
आज वह 
परिस्थितियों में 
कैद छटपटाती 
उनकें पिताओं को 
हैं रिझाती 
इस समाज में 
रहने वालें 
अजीब हैं
दोनों के 
विचित्र नसीब हैं
[4/15/2020, 08:44] Anil Bhatpahari: फ़र्क

दूध शरीर को 
तंदरुस्त करता हैं
यह सोचकर 
गाँधी जी ने 
एक बकरी 
पाली थी 
आज गाँधीवादी 
तंदरुस्ती के लिए 
बकरी कटवाते हैं
बड़े चाव से खाते हैं
और हां 
दूध के लिए 
घर में 
भैंस पाल रखे हैं

कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत 16-6-1986  कोसरंगी में प्रणयन
[4/16/2020, 08:13] Anil Bhatpahari: कभी -कभी ऐसा लगता हैं ऐसी रचना अनायस कैसे  जेंहन में उतर आते हैं । द्रष्टव्य हैं-

बेरोज़गार 

वक़्त कें अँधेरें 
आलम में छा रहे थे 
परेशानियाँ लिए 
ठिठके- ठिठके 
आ रहे थे
शाम की गर्दिश में 
अचेत सा 
अदद आशियाना 
तलाशते हुए 
कई  दफ़्तरों के 
लगाते  चक्कर 
बेरोजगारी का 
गीत गाते हुए 
शाम के बाद
रात होगी 
सभी जानते हैं
परन्तु रात के बाद 
प्रात: न होगी 
केवल अकेला 
मानते हैं

            - डां. अनिल भतपहरी 
रचनाकाल -25-5-1986 कक्षा ग्यारहवीं , बासटाल रायपुर में ‌।
[4/16/2020, 14:46] Anil Bhatpahari: "मानव तेरा जय हो "

जय हो सदा मानव का  विजय हो 
ज्ञान विज्ञान की हर तरफ उदय हो 
करोना का यह कैसा  कहर 
वीरान  होते गांव कस्बा शहर 
चहुंओर हो रहे हैं हाहाकार 
स्तब्ध संस्थाएँ  और सरकार 
कोई आयोजन नही न हैं समारोह 
दुबके  अपने घरों में भयभीत लोग 
खाली चलती  बस ,रेल और विमान 
स्कूल कालेज वीरान  थिएटर और उद्यान
लगता हैं छिड़ चुका हैं विश्वयुद्ध 
संकट विकट चल गया  भयावह  आयुध
करोड़ों अरबों संपदा  की हो रही क्षति
बचने- बचाने  की कोई नहीं  हैं युक्ति 
ऊपर से प्रकृति का यह कैसा हैं तांडव 
बिन मौसम बरसात  होते विचित्र विप्लव 
फैलते वायरस इससे गुणात्मक‌ रुप‌
अब वर्ड फ्लू  का भी प्रकोप हो रहा संयुक्त 
हो रहे प्रकोप  हर तरफ भयंकर 
मचाए है प्रलय महामारी का रुप धरकर 
भीषण भय फैलाते अफवाहे  चहुं ओर हैं
देव धामी नबी संत गुरु हो रहे कमजोर हैं 
कोई न रहा अब देने मानव को आत्म संबल 
करे प्रार्थना किससे सभी हो रहे हैं निर्बल
मिट रही थी सदियों की अमानवीय प्रथाएँ
भेदभाव अस्पृश्यता जैसी  कुप्रथाएँ 
पुनश्च सजीव कर गई डायन करोना वायरस 
गले-हाथ मिलाकर होंगे कैसे अब हम  समरस  
जीत भी जाय पर भय रहेगी  कायम 
अभिशापित निगोड़ी करोना बेरहम 
क्षय हो तुम्हारा मानवता हो विजयी 
सुन लो अज्ञेय शक्ति अनिल की विनती 
जय हो सदा मानव का विजय हो 
ज्ञान-विज्ञान की हर तरफ उदय हो 
मिले कोई उपाय औषधियाँ विकसित हो टिकाएं
धैर्य  रखे सभी रहन सहन में स्वच्छता अपनाएं 
परस्पर मानव समुदाय रहे आपस में मिलकर 
महामारी से निपटे तृतीय विश्व युद्ध से जीतकर 

-डा.अनिल भतपहरी /9617777514
[4/17/2020, 10:35] Anil Bhatpahari: समानता 

लेखक कवि को 
मानता हूँ किसान 
किसान बंजर भूमि में 
अन्न ऊपजाता हैं
अथक श्रमकर 
कलमकर श्वेत कागज़ पर 
लिखता हैं साहित्य 
अथक श्रमकर 
कागज़ खेत हैं
कलम‌ हल 
विचार बीज 
लिखा हुआ सभी 
लेख कविताएँ 
मेहनत की फसल 
कवि-किसान दोनो को
समान स्नेह हैं
अपने-अपने पैदाइश 
अन्न पर 
एक मिटाते हैं 
तन की क्षुधा 
तो दूसरा मिटाते हैं 
मन की क्षुधा
[4/17/2020, 10:48] Anil Bhatpahari: विनय 

हृदय रुपी चमन में 
बेमतलब 
शब्द बीज 
पड़ा हुआ है
विचार रुपी
मेघजल से 
वह अंकुरित हो
आया हैं 
चिन्तन से
यह किसलय 
यौनावस्था में आ
खिल जातें हैं
अभिव्यक्ति इनकें
 सुगंध फैलाते हैं
विद्जन अनुग्रहित कर 
अवगत करावें 
क्या यह मोहक हैं
या केवल सम्मोहक हैं
[4/17/2020, 12:54] Anil Bhatpahari: सलाह  

सुविधाएँ भी 
उत्पन्न कराती हैं संकट
इसके पहले तो
थे नही कुछ झंझट 
हो गिरफ्त आदमी 
पराधीन हो गये 
सामर्थ्य होते भी 
बलहीन हो गये 
आत्मविश्वास भी 
छीना गया 
ये कैसा डर कर 
जीना हुआ 
एक पेट दो हाथ 
फिर काहे उदास 
अभावग्रस्त पुरखे 
सौ साल जीते थे 
कितने खुशहाल 
कष्टों को पीते थे 
उनके गीत संगीत 
उनकी कथा कहानी 
उनके शौर्य पराक्रम 
उनकी अमृत वाणी 
सोचों क्या ज़रा सा 
हमने ऐसा पाया 
संकट में धैर्य खोकर 
जार-जार आँसू बहाया 
उठो आगे बढ़ो 
करो प्रयाण हिम्मत से 
नायाब नया गढ़ो किस्मत से 
दास न बनो सुविधा के 
बल्कि दास रखों सुविधाओं को‌
मनोरंजन समझना मत‌‌ प्यारे 
 मेरी इ‌न कविताओं को‌...

     -डा. अनिल भतपहरी / 9617777514
[4/22/2020, 15:08] Anil Bhatpahari: बेटी के बिदा 

छोड़ चले मोर अंगना बेटी
मोर आँखी के तिसना ओ 
मोर आँखी के तिसना बेटी 
छोड़ चले मोर अंगना ओ 

सास ससुर के सेवा करबे 
हिरहंछा तय मन मं 
ननद जेठानी तोर संगवारी 
इहिबे मिलके संग मं
देवता असन तोर पति हे 
करबे अंतम मं ओ ...

मया ह दुरिहावत हवय 
आंखी ललियावत हे 
जायके बेरा होगे तोर त 
जिंवरा कइसे लागत हे 
आँसू के तय घुटका पीले 
मोर पिंजरा के मयना ओ ...

हांसत रोवत बेटी के बिदा 
सुनले मोर गोहार 
नयना बरसे रिमझिम सावन 
बहय मया के धार 
अंचरा भिंजय महतारी मन के 
कका बबा मन के नयना ओ ...

मया- पिरित के मोटरी बांधे 
आहु तोर दुवारी 
हांसत तोला देखंव बेटी 
जइसे रहय तोर घर देवारी 
सुख संपत्ति तोर घर मं बगरय 
ले ले मोर असीस ओ ...

    -डा. अनिल भतपहरी 

 रचना काल १९९०-९१ 


प्रकाशन - कब होही बिहान काव्य संग्रह 2007 में जतनाय हे।
[4/26/2020, 10:15] Anil Bhatpahari: ऐसे भी लोग 

ऐसे भी लोग 
रहते हैं जमीं पे 
निंदक को प्यारे
गुणी जनों के दुलारे 
हां में हां मिलाने वाले 
रहते हैं जमीं पे 
एकाएक दृढ़ 
पलभर में पिघल 
तलुवा चाटते 
मतलब के लिए 
नाक रगड़ने वाले 
रहते हैं जमीं पे 
छण में  तनता हैं 
युं ही सकुचाता हैं
पल में फैलता हैं 
स्वत: सिमटता हैं
सम‌प्रत्यावस्था गुणधारी
आकर्षक रुप मुग्धकारी  
रहते हैंजमीं पर 
इधर पलटते 
उधर पलटते 
अलट - पलट कर 
एक दूसरे को तोड़ते 
अपना उल्लू सीधा करते 
ऐसे सफलम लोग 
रहते हैं जमीं पर 
इतने कुशल अभिनेता 
किरदार में जान डाल दे 
अभिनय के बल पर 
जान लेने व देने वालें
रहते हैं जमीं पर 
ये तथाकथित सज्जन‌
अहिंसक बुद्धिजीवी 
कथित कल्याण कारक 
इन्हीं के बदौलत 
संप्रभुताओं को‌
भोगा जा रहा हैं सदा 
वाह क्या खूब इनकी अदा 
सच तो यह हैं
जब हो करोड़ों विष्णन 
मूढ़ क्षुधातुर और नग्न 
तब युं ही हो जाते अनावरण 
इन सभी का लोकार्पण 
धून और दीमक की तरह 
संचरे हैं सर्वत्र 
मिटाकर अस्तित्व किसी का  
हुआ हैं अस्तित्वान किसी के 
जी हां ऐसे लोग सम्मानित हैं
सदा इस जमीं पे 
रहते हैं आबाद 
ऐसे लोग इस जमीं पें  

-डा. अनिल भतपहरी 

रचनाकाल - ७-८-१९८५ 

केडेट डायरी पृ क्र ८७-८८
[5/1/2020, 08:40] Anil Bhatpahari: वाह ।

हमरे घर अउ हमरे छानी 
बेंदरा मनके देख करसतानी
चारों डहन इंकर उलानबाटी 
ओमन किंदरय पहिने टोपी
खाटी मन बर न मिले लगोटी  
उकर मालपुआ इकर खपुर्री रोटी  
काला सुनाबे गीत भजन कहानी
जम्मों तो लहुटगय अंधरी- कानी
[5/4/2020, 13:49] Anil Bhatpahari: आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

           " लिमउ "
गरमी मं लिमउ सक्कर पानी मिले  से  मन थिरा जथे 
कत्कोन झोला गे रहिबे पीते साठ
कुहकुही सिरा जथे 
दार- भात संग ससन भर खाले 
एखर अचार 
बिटामिन सी रसा मं भरे हवय एखर अपार 
तिहि पाय के अंगना मं लगावव लिमउ पौंधा 
ममहई अउ सुघरई संधरा पावव संगी ठौका 

 बिंदास कहें -डां. अनिल भतपहरी
[5/13/2020, 13:32] Anil Bhatpahari: आत्मनिर्भर शब्द है बड़ा सुहाना 
पर कैसे हो यह बिल्कुल न जाना 
बिल्कुल न जाना है सब अनजान 
संकट में फंसे हुए हैं सबके प्राण 
ऐसे में कोई लूटे नमक नहीं घर पर
बताओं ऐसे में कैसे हो आत्मनिर्भर
[5/13/2020, 13:38] Anil Bhatpahari: आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

       आत्मनिर्भर 

आत्मनिर्भर शब्द है बड़ा सुहाना 
पर कैसे हो यह बिल्कुल न जाना 
बिल्कुल न जाना है सब अनजान 
संकट में फंसे हुए हैं सबके प्राण 
ऐसे में कोई लूटे नमक नहीं घर पर
बताओं ऐसे में कैसे हो आत्मनिर्भर

बिंदास कहे डा अनिल भतपहरी
[5/28/2020, 14:02] Anil Bhatpahari: सतनाम-महामंत्र 

जो नर सुमरै नित सतनाम  
           जीयत पावै पद निरवान 
 जन्म धरै तो करो कर्म अच्छा 
      दु:ख न  पीरा हो जीवन सच्चा
खान-पान बेवहार हो पबरित
    अन खावै जल पीयय अमरित 
हिरदे सफ्फा मन रहे निश्चछल 
    तबहि पावै सुख सुन्दर सुफल 
सद्कर्म देव हिरदे मन धाम
        हिरदे भीतर बसै सतनाम
मान सम्मान सदा अजर-अमर 
       वंश विस्तार हो सेत -हरियर  
हंसा अकेला उड़ै सतलोक
    बहुरि न आवै कबहु मृतलोक 
जो नर सुमरै नित सतनाम 
     जीयत पावै पद निरवान ...
                 सतनाम
[5/30/2020, 22:06] Anil Bhatpahari: ।।जय जोगी ।।

माटी के बेटा जोगी  तय हर 
खाये  गोटी माटी 
गंगा अमली के बीजा अरझगे
होगे ओखी खोखी 
कलपय  लाखो‌ं नर‌ नारी 
धर धर रोवय छत्तीसगढ़ महतारी...
 
गांव गवई जंगल ले निकले 
 बनके तय ह हीरा 
चिन्हे तय जम्मों मनखे मनके 
 दु: ख अउ पीरा 
पोछे आंसू गरीबन के गुनवंता हस भारी ...

बने तय कप्तान कलेक्टर 
संसद अउ मुखमंत्री 
गरब न गुमान चिटिक तोर 
तय गरीबन के संगी 
जोर जुलुम बर टकराये बनके खाटी लोहाटी ...

तपोये तन मन ल करे 
पढ लिख के तप ल भारी  
अव्वल रहे सदा तय हर 
देखे किंदर दुनिया सारी  
मनवाए लोहा अचरुज देखे सब नर नारी ...

जय जोगी जय जोगी जय जोगी 
तोर परताप अचरुज हे  तोर  महिमा हे भारी ....

   डा. अनिल भतपहरी
[6/1/2020, 12:11] Anil Bhatpahari: ।।यक्ष प्रश्न ।।

एक हम हैं
जो तुम्हें बसाते हैं
अपने दिल में
एक तुम हो 
जो हमसें ही 
रहती मुश्किल में
बताओं अब 
तुम  या 
दिल बड़ा तुम्हारा 
कि हमारा 
तुम हो कि 
हम है प्यारा ?

-डा.अनिल भतपहरी
[6/18/2020, 16:35] Anil Bhatpahari: तेरी तरह कोई तो बसी हैं मेरे मन में 
पर क्यु कुछ खाली हैं मेरे जीवन में
आग लगी और पानी भी बरसा 

पर कुछ असर नहीं जलन-भींगन में 
ये मस्तानी शाम और रुहानी रातें

थकान मिटती नहीं कोई सींजन‌ में

अब तो तड़फ की लत ही लग गी

बिन इनके मज़ा क्या मेरे जीवन में  

     - डा अनिल भतपहरी
[6/19/2020, 13:44] Anil Bhatpahari: तेरा चेहरा है कि मयखाना मेरी आंख हैं कि शराबी 
डुबे हुए नशे में इनकी चाल बड़ी ही खराबी ...

न बुत परस्ती न सजदा न कोई इबादत 
इश्क-ए-आग की दरिया  में देखों इनकी बरबादी 

ओ बनाने लगे फ़िरके और ईजाद किए मज़हबें 
ये कैसा काफ़िर सज़दे करने लगे मज़हबी ...

लिखना- ए -तवारिख शागिर्द हैं अनिल 
ओ कलंदर हुए मस्त मौला हुश्न -ए नबी ...
[6/22/2020, 16:46] Anil Bhatpahari: जुबान तेरी मरदूद तीखी बहुत हैं 
तभी तो लब तेरे पानी पीती बहुत हैं

 बेफिक्र परिंदे उडे़ तो कैसे आसमां पे 
ये तीर -ए -नज़र आपकी तीखी बहुत हैं

उगलती हुई ज़हर बिताई उम्र -ए-तमाम 
इतनी कटुता लेकर क्यों कोई जीती बहुत हैं

रही अस्त -व्यस्त और पैंबद भरा जीवन 
ता उम्र लोगों की फटी सीती बहुत हैं। 

चलों यहाँ गुज़ारा नहीं बस्ती तंग दिलों की हैं
निकलेगी गाड़ी कैसी सकरी गली  बहुत हैं

     -डॉ. अनिल भतपहरी
[6/23/2020, 19:04] Dr.anilbhatpahari: काढ़े गये पैबंद हैं

बातों ही बातों में मुस्कुराना पसंद हैं।
तेरा युं ही हरदम मुस्कुराना पसंद हैं।
गर डूबे रहे रंज -ओ - ग़म की दरिया में
तो ख़ाक क्या जीवन में आनंद हैं 

तकलीफ़ किसे ,कहाँ नहीं है ऐ दोस्त 
हरदम रोते रहना भी क्या कोई ढंग हैं

एक पल सुख और एक पल दु:ख 
जिन्दगी के चादर में काढ़े गये पैबंद हैं।

  डाॅ. अनिल भतपहरी
[6/24/2020, 13:35] Anil Bhatpahari: कुछ तो हुआ है पर कुछ बोल नहीं सकता 
ये उम्र रफ्तां को‌ चाहकर रोक नहीं सकता 

जब से आई है जवानी और रंगीन लगे दुनियां
कोशिश लाख करे जमाना पर रोक नहीं सकता 

जैसा भी हो वो सच में लख़्त-ए- ज़िगर हैं
फितरत किसी को कही झोंक नहीं सकता 

माना बेमुरौव्वत हैं पर वे नुर-ए- नज़र हैं
ऐसों से वफ़ा का कभी सोच नहीं सकता 

इस तरह वार होने लगे हम पर चारों तरफ से 
खुद को ही बचाने कभी सोच नहीं सकता 

-डाॅ.अनिल भतपहरी
[6/26/2020, 16:32] Anil Bhatpahari: सुन कर अस़आर मेरी ओ तारिफ़ में कही 
दिल कत़र के लिखे है जो सीधे  दिल में लगी हैं

सच डूबाएं है ऩीब खुन-ए -ज़िगर में
तभी बिन रुके यह कागज़ में चली हैं

पढ़कर  हुई ख़राब अनिल अपनी भी हालात 
पल भर लगा कि अपनी बात चली हैं

हैरत है सभी कि मंजर लाल क्युं हुआ  
आँसू नहीं धर-धर लहु आँखों से बही हैं

      -डाॅ.अनिल भतपहरी
[6/27/2020, 09:03] Anil Bhatpahari: दौर-ए-ख़िलाफ़ हैं मुहब्बत की कुछ कह नहीं सकतें
उल्फ़त से भरी नगरी में अब कुछ पल‌ रह नहीं सकतें

शक-ए-सुबहा से होती है उनकी सुबह शुरु 
रात तक कुछ मिल सके यह कह नहीं सकते 

हर कोई लगाए हैं जाल फंसे उनके हिस्से का माल 
ये सब्र बगुला कैसे कब टूटे यह कह नहीं सकते 

 हर कोई एयार हैं दिल साफ़ नहीं किसी का 
ऐसे में कोई पीर बने यह कह नहीं सकते 

खत्म दौर हुआ नबियों का अब शोहदे ही गुलजार हैं
ऐसे में जन्नत कहीं और है यह कह नहीं सकते 
निकले ढूढ़ने बुरा पर बुराई ही सब ओर हैं 
कही गर अच्छाई मिले यह कह नही सकते 

लत तो लगी है रह सकते नहीं कोई इनके बिन 
हम इस दौर के नहीं ऐसा कह नहीं सकते

         -डॉ. अनिल भतपहरी /9617777514
[6/30/2020, 17:10] Anil Bhatpahari: तय हर मुस्काए त करेजा होगे चानी 
निकलत हे मुखले बोल बचन आनी-बानी 

पुछंता नहीं हमर रहेन परे अउ डरे 
देखे एक नंजर त होगेन भागमानी 

घुरवा कस हमरो भाग हर बहुरगे 
जब ले सुनेन मयारुक बचन बानी 

घाद सरु मनखे रहेन कोंदा अउ ब उला 
तोरे सेती पंचैती मं लागय चलन    सियानी

कर दे इसारा  लानबोन बरतिया बाजा 

तियार मटुक खापे  बइठे हन रानी 

डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514
[7/13/2020, 16:45] Dr.anilbhatpahari: सुनार की सौ टक टक लुहार की होते एक 
ऐसे ही संतो की बानी जे पड़त  कलेजे छेक...


काले हो या गोरे देश के हो या परदेश 
कहे गुरु घासीदास मनखे -मनखे एक

एक चाम एक मल मुतर 
कौन भला कौन मंदे 
उनके सब बंदे कहे नानक  नूर-ए- उपजे एक

माला फेरत जग हया गया न मन का फेर 
कबीर कहे मनका डारिके फेर मनके एक  

ऐसा राज चाहु मै मिले सबको  सम अन्न भाव 
कहे रैदास रहियो सदा मन चंगे एक 

जो तु तु मै मै करता फिरता मानुष मुरुख मन

कहत साई परसन होवै मालिक सबके एक
[8/10/2020, 16:31] Anil Bhatpahari: ।।मज़ा और सज़ा ।।

कहते हैं वो कि उनकी ,मज़ा ही मज़ा हैं
पर सच कहे ज़िन्दगी, सज़ा ही सज़ा हैं

 दिखने लगा सब साफ़, चढ़कर ऊँचाई 
आए हाथ  दूर सब ,तन्हाई ही सज़ा हैं 

यकीन है दूर कर लेगें ,उनकी नाराज़गी 
हर अदा पर उनकी, दिल अपनी रज़ा हैं

उसे पता है कि ये ,आदमी है बेवकूफ़ 
पर न जाने क्युं, उनसे ही वफ़ा हैं

झुके थे सज़दे में तभी ख़बर आया 
आ रही ओ इस तरफ़ हो गई कज़ा हैं 

जैसा भी है अब तो मस्ती में मलंग है 
 आने से उनकी अब तो रंगीन ही फिज़ा हैं
  -डाॅ. अनिल भतपहरी