Monday, December 9, 2019

गुरु अगमदास गोसाई

🙏जगत गुरु अगमदास जी🙏

जीवन परिचय- गुरू घासीदास बाबा जी से गुरू आगरदास (तृतीयपुत्र) श्री गुरूआगरदास से गुरू अगरमन दास, श्री गुरू अगरमनदास जी व कनुका माता से चौथा वंशज गुरू अगमदास जी का जन्म ग्राम तेलासी में सन् 1895 को हुआ था । गुरूगोसाई अगमदास जी का जीवन चरित्र समस्त मानव समाज के लिए प्रेरणादायी है। गुरूगोसाई का प्रथम विवाह पूर्णिमामाता 1915, द्वितियविवाह सुमरितमाता 1927,तृतीय विवाह ममतामयी मिनीमाता 1932 व चतुर्थ विवाह रतिराम मालगुजार की सुपुत्री करूणामाता के साथ 1935 में हुआ था। गुरूगोसाई ने चार विवाह वंश विस्तार समस्या (पुर्व पत्नीयों के निसंतान होने )के चलते किया। काफी लंबे समय के अंतराल के बाद सतपुरूष गुरू घासीदास बाबा के असीम कृपा आशीर्वाद के फलस्वरूप गुरूगोसाई अगमदासजी व राज राजेश्वरी करूणामाता के गोद में सत्यांश का विजयगुरू उर्फ अग्रनामदास जी के रूप में इस धरती में अवतरण हुआ।

सामाजिक कार्यो में सहयोग - गुरू अगमदास जी अपनें पिता श्री गुरू अगरमनदास जी के सामाजिक राजनैतिक व समाजोत्थान के कार्यो में सहयोग के साथ ही समकालिन ब्रिटिश शासन, तथा सामंतवादियों के जुल्म अत्याचार के खिलाफ सतनामी समाज के युवाओं को जोड़कर सतनामी सेना को मजबुती प्रदान किया गया। एवं अपनें पिता के निर्देशानुसार समाज के योग्य मेहनती व विवेकी लोगों की सुचीबद्व विवरण तैयार कर 108 मंहतों की नियुक्ति प्रदान कर उन्हे सामाजिक व्यवस्था संचालन व कर्तव्य पद पालन की जिम्मेदारी दिया गया। साथ ही कण्ठी जनेऊ और चंदन तिलक सतनामियों की पहचान है,सफेद झण्डा समाज की शान है को गुरूगोसाई अगमदास जी ने चरितार्थ किया।

समाज संचालन व राऊटी -  गुरू अगरमनदास जी की सतलोक गमन के पश्चात समाज संचालन/पथप्रर्दशन की संपूर्ण जिम्मेदारी जुलाई 1923 से गुरू अगमदास जी के उपर आ गया। गुरूगोसाई अगमदास जी पदग्रहण के बाद ही भण्डारपुरी में सतनामी समाज के राजमंहतो भण्डारीयों, छड़ीदारो, राजनैतिक, सामाजिक कार्यकताओं के साथ सभी सतनामधर्म के अनुयायीयों की विशाल आमसभा का आयोजन कर पूर्व गुरूओं के अधुरे सभी कार्यो को पुरा करनें के अलावा समाज के विकास हेतु अनेको निर्णय लिए गये। कुछ दिन बाद राऊटी में गुरूगोसाई अगमदास जी ममतामयी मिनीमाता को साथ लेकर समाज को संगठित करनें सफेद ध्वजा अपने गाड़ी में बांधकर सभी राजमंहत प्रमुख रूप से राजमंहत रतिराम, दिवान नरभूवनलाल, भूजबलमंहत, भण्डारीयों, छड़ीदारो, राजनैतिक, सामाजिक कार्यकताओं को साथ लेकर राजनैतिक एवं सामाजिक कार्यदशा सुधार करनें, शासन प्रशासन से सभी स्तर पर अधिकार पाने व दिलाने का संवैधानिक कार्य किया गया।

गौहत्या बंद व कानपुर में गुरूगोसाई सम्मान - गुरूघासीदास बाबा जी के जीवन आदर्शों को आत्मसात कर गुरू अगमदासजी ने सतनाम धर्म के व्यापक विस्तार एवं कुरितियों के दमन करनें में अभूतपूर्व योगदान दिया, गुरू अगमदास जी अपने साथ नई नियुक्ति हुए राजमंहत नयनदास सहित 108 मंहतों को लेकर गोहत्या कर रहे अंग्रेज शासन के विरूद्व जनआंदोलन किया तथा कोर्ट में केस दायर किए गया, विरोध को दबाने की मंशा से अंग्रेजी शासन के द्वारा राजमंहत नयनदास सहित अनेको गौ भक्तों को जेल में बंद कर दिये। इसके पश्चात सतनामी समाज और उग्र  करनें लगा,लम्बी पेशी चलने के बाद केस को जीत गया और आदेश लिखा लिया कि जहा जहा पर सतनामी समाज के लोगों का निवास स्थान है, वहा कोई कसाई खाना नही होगा। इस प्रस्ताव को अंग्रेज शासन नें सन् 1922 में स्वीकार किया। उसके बाद भी कलकत्ता के बुचड़खाना संचालको के द्वारा बलौदाबाजार तहसील के ग्राम करमण्डीह व ढाबाडीह में कसाईखाना खोल रखा था इन कसाईखानों में रोजाना हजारो की सख्या में गौवध किया जाता था जिसका गुरू अगमदास जी ने पुरजोर विरोध कर बुचड़खानों को हमेशा के लिए बंद करवाया। सन् 1924 को कानपुर में आयोजित कांग्रेस राष्टीय महासभा में देश के महानतम विभूतियो पंडित मदनमोहन मालवीय,लाला लाजपतराय,मोतिलाल नेहरू,डाॅ. मूजय ने गुरू अगमदास जी का सम्मान कर जनेऊ भेट कर गुरूगोसाई नाम से अलंकृत कर गुरूगोसाई अगमदास को केवल सतनामधर्म ही नही वरण सभी वर्ग के लोगो का गुरूगोसाई, समाज सुधारक व गौ माता का सच्चा सपूत कहा जाता है।

सतनामी जाति की मान्यता - गुरू अगमदास जी ने ही सतनामी समाज से संबधित सज्जनों को सतनामी नाम से सम्मान पुर्वक संबोधन,जानने,पहचान हेतु सी.पी.बरार तत्कालीन के गर्वनर को सन् 1924 पत्र लिखा था जिसे गर्वनर स्वीकार करते हुए 1926 में सतनामी जाति / सतनाम समुदाय के मान्यता पर महत्वपूर्ण आदेश जारी किया तथा कानूनी वैधता मिलने से सतनाम धर्म के मानने वाले लोगों को अपनी जाति सतनामी नाम का पहचान मिला। गुरूगोसाई अगमदास जी के द्वारा सवैधानिक रूप से कराये गये कार्यो में यह कार्य समाज को एक सुत्र में बाधने के लिए महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुआ।

मान. सांसद की उपाधी - गुरूगोसाई अगमदास जी गुरू घासीदास बाबा जी के बतलाये हुए विचारो का अनुशरण करते हुए सत्य, दया, धर्म, करुणा,प्रेम परोपकारी गुण के साथ स्वाभीमान की भाव को बनाये रखा, छत्तीसगढ़ सहित पुरे मघ्य भारत में गुरूगोसाई की ख्यााति एक प्रखर आंदोलनकारी,समाजसुधारक के रूप में फैली। 1923 में अंग्रेज शासन के खिलाफ झण्डा सत्याग्रह आंदोलन नागपुर में पं.सुन्दरलालषर्मा, पं.रविशंकर शुक्ल व ठाकुर प्यारेलालसिह के साथ संयुक्त नेतृत्व किया। गुरू अगमदास जी सर्वसमाज को साथ लेकर जनजागृति व सामाजिक समानता की स्थापना हेतु राष्ट्रीय स्तर पर जन आंदोलन कर अपने सतनाम उद्देश्य योजना में सफलता हाषिल किया। तत्कालिन ब्रिटिश षासन गुरूगोसाई के नेतृत्व क्षमता व उत्कृष्ट प्रदर्शन तथा लोगो का अपार जनसमर्थन देख सन् 1925 में सी.पी. बरार कौशिल के अंग्रेज शासन काल में मान. सांसद की उपाधी प्रदान किया। गुरू बालकदास जी को राजा की उपाधी के बाद ब्रिटिश शासन काल में ही गुरू अगमदास जी को मान. सांसद की उपाधी मिलना सतनामधर्म के अनुयायीओं के लिए ऐतिहासिक पल रहा।

मानवकल्याण - गुरूगोसाई अगमदास जी ने अपंग,अनाथ बेसहारा, महिला और बच्चों के कल्याण हेतु निज खर्चो से अनेको आश्रम, सेवाकेन्द्रो की स्थापना कर उनकी भोजन, कपड़ा, शिक्षा, आवास के अन्य बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध करवाया। इसके साथ ही सन् 1924 से लेकर 1938 तक देश की स्वतंत्रता, सामंति शोषण का विरोध व औद्यौगिक श्रमिकों के हित के लिए छत्तीसगढ़ मध्यप्रांत के अलावा पुरे देश भर में चल रहे द्वितीय,तृतीय किसानों श्रमिको व मजदूरों के आंदोलनो में भाग लेकर आंदोलन को मुखर नेतृत्व दिया । उस समय काल में विविध वर्गो के आंदोलनकारियो जिनमे प्रमुख रूप से श्रमिक व सहकारिता के सुत्रधार ठाकुरसाहब, पं.सुंदरलाल शर्मा, बाबू छोटेलाल,नत्थूराम (धमतरी), नरसिंहअग्रवाल, सरयूप्रसाद अग्रवाल, वासुदेव देशमुख, पं.रत्नाकर झा (दुर्ग) सहित अनेको नेतृत्वकर्ताओ के साथ किसानो का लगातार प्रर्दशन व धरना का लाभ यह हुआ कि शासन ने ग्रामिणों के निस्तारी अधिकार को एक सीमा में स्वीकार किया और इस संबध में कानून निर्माण की प्रक्रिया आरम्भ हुई व आगे चलकर निस्तार नियम बनाए गये।

सामाजिक संविधान का विस्तार - गुरूगोसाई अगमदास जी ने बलिदानी राजागुरू बालक दास जी के द्वारा बनाये सामाजिक नियमों /सतनामधर्म के संविधान को पुनः विस्तार करते हुए मानव समाज के सर्वागीण विकास हेतु सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक, शिक्षा,स्वालम्बी,न्याय व्यवस्था,जातिमिलावा सहित अन्य जन कल्याण कार्यो के पालन /संचालन का विस्तार किया। जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी सतनामी समाज के द्वारा अंगीकार कर सभी क्षेत्रो में विकास की गाथा सतनामी समाज के साथ ही सर्वसमाज के लिए आज भी पथ प्रदर्शक है, जो संक्षिप्त सात सुत्र निम्न है-

1.सामाजिक नियम - परम पुज्य गुरू घासीदास बाबा जी के सतनाम धर्म के राह पर चलना,बाबा जी के जीवनचरित्र, संदेश, विचार,वाणी का जीवन में अनुशरण कर गुरू प्रधान सतानामी समाज के मुलमंत्र “मनखे मनखे एक समान व सत्य ही मानव का आभूषण है“ को चिरकाल तक अस्त्वि में बनाये रखना प्रत्येक सतनामधर्म के अनुयायियों की जिम्मेदारी है, क्योकि सतपुरष के विधाननुसार समाज में कोई वर्ण व्यवस्था नही है, गुरू बाबा घासीदास जी के प्रति आस्था तथा सतनामधर्म को तन,मन व कर्म पूर्वक जीवन में अपनाने वाले कोई भी जाति/धर्म के लोग सतनामी समाज में शामिल किया जा सकता है। लोग अपने स्वार्थ के चलते उच्च-निच छोटा-बड़ा का भेदभाव बनाये है।
2.आर्थिक - समाज के लोगो को मुल रूप से खेती के साथ बखरी,बाग,बगीचा,गौपालन व व्यपार कर स्वालम्बी बने,अनावशयक खर्च न करे, छोटी छोटी बचत करने तथा व्यपार व्यवसाय करने से आपकी अर्थ व्यवस्था में सुधार आयेगा। अर्थ व्यवस्था की मजबूती से दैनिक जीवन में सभी जरूरत की आवश्यक है वस्तु, पदार्थ, मकान,जमीन आदि के पुर्ती में आसानी होगी। समाज के संपन्न लोगों को जरूरतमंद गरीब, दीन-दुखियो,लाचार-बिमार तथा अपंगों की तन मन व धन से मदद करे जिससे परिवार व समाज विकास में आपका महत्वपूर्ण भूमिका का सम्मान सदैव बना रहेगा। क्योकि बिना अर्थ मजबुती के लोग / समाज की सेवा करने अथवा जीवन जीनें में अनेको कठिनाईयो का सामना करना पड़ता है।
3.राजनैतिक - सतनामी अपनी गुरू,समाज,और धर्म के प्रति अटूट श्रद्वा के कारण ही समय कालीन शासको के गलत नियमो के खिलाॅफत,मानव व पशुओं पर जूल्म अत्याचार तथा अपने स्वाभिमान की रक्षा के साथ अपने संवैधानिक अधिकारो को पाने के लिए राजनिति में सहभागिता लेना अति आवश्यक है। क्योकि संवैधानिक कई मानव अधिकारो की प्राप्ति हमें धर्मगुरूओं के कुशल राजनिति नेतृत्व के चलते मिला है। समाज के सार्वजनिक विकास हुए तथा अधिक से अधिक लोग राजनिति के चलतें अनेको उच्चे पदों पर निर्वाचित / मनोनित हुए। बिना किसी को नुकसान पहुुचाये समाज व देशहीत में राजनैतिक जीवन से समाज के साथ क्षेत्र व देष का चहुमुखी विकास होता है।
4.धार्मिक,सांस्कृतिक व नैतिक - भारतवर्ष धर्मो का भण्डार है, जिसमे हिन्दू सनातन, इस्लाम, सिख, बौद्व जैन, इसाई व सतनामधर्म प्रमुख है, सब धर्मो में अलग अलग संस्कृति का समावेश है,जिसमें अर्थ,धर्म,कर्म व मोक्ष का प्रमुख स्थान है। इन्ही में सतनामधर्म जो कि हिन्दू धर्म में ( संविधान के आरक्षण का अधिकार नियम के चलते ) समाहित होने के बावजूद अपना स्वतंत्र वजूद है, सतनामधर्म एक जाति या समुदाय के लिए नही वरण समस्त मानव व प्राणी जीव जगत के लिए है जिसका.धार्मिक,सांस्कृतिक व नैतिक नियम कल्याणकारी सादा जीवन उच्चविचार के है सतनामधर्म सभी धर्मो का सार है। गुरू घासीदास बाबा जी के समय से लेकर वर्तमान समयकाल के सभी गुरू वंशजों के जीवनी सदेंश,विचार व किये गये कार्यो से मिली सतनाम संस्कृति - सत्य, प्रेम, सौहाद्र, अहिंसा, समानता, दया व उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। जिसमे सतनाम सांस्कृतिक विरासत,पवित्र जैतखाम, विशाल गुरूद्वारा, गुरूदर्शनन मेला, सुख-दुख जीवन के रिति-रिवाज, व्यक्तिगत व सामाजिक नियम, पंथी गीत, नृत्य, व्रत, गुरूपर्वो, त्योहारों व मेलों की परंपरा है जो अनवरत पूरे वर्ष चलती रहती है, गुरूगद्वीनसीन गुरूद्वारा सतनामी समाज की सामाजिक,धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियों के मुल केन्द्र है जो सतनामधर्म के अनुयायियों में आस्था व विश्वाश का प्रतिक है। सतनाम के धरोहरो को समृद्व करनें की नैतिक जिम्मेदारी प्रत्येक सतनामी समाज जनों की है।
5.शिक्षा - सामंतवादी वर्ण व्यवस्था,जमीदारी प्रथा के चलते समाज के अधिकांश लोग शिक्षा से वंचित देख जगतगुरू अगमदास जी नें समाज के विकास व अधिकार की प्राप्ति के लिए शिक्षा को अत्यंत महत्वपूर्ण बतलाया तथा जगतगुरू जी तत्कालिन ब्रिटिश शासन व कांग्रेस संगठन को पत्राचार कर देश भर के संचालित शिक्षण संस्थानों में समाज के सभी बालक,बालिका व युवाओं को शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रयास किया एवं अंग्रेजी हुकुमत से अनुमति मिलने पर समाज जनों तक संदेश पहुचाने जन जागरूकता अभियान चलाया। शहरो में अच्छी शिक्षा के लिए सुदुर अंचल में रहने वाले गांव के सामाजिक बच्चों को आश्रमो/अपने निवास में आश्रय प्रदान कर समाज को शिक्षित किया। क्योकि शिक्षा प्राप्ति से समाज के लोगों की प्राकृतिक, भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक जीवन में सुधार व समृद्वि तथा योगयतानुसार निजि या शासन के विभिन्न पदो/अधिकार को प्राप्त कर सकते है। सतनामी समाज के शिक्षा नियम में मातापिता - सतनाम संस्कार, शिक्षक- अध्यापन बौधिक विकास व धर्मगुरू - जीवन का महत्व व कर्तव्य का बोध कराता है।
6.स्वालम्बन - समाज के लोगो को अपनी यहा उपलब्ध संसाधनो व वित्तीय वयवस्था के अनुसार कृषि, बाड़ी, फुलवारी, व्यवसाय, तकनिकी कार्य, लघु या कुटीर उघोग लगाने के साथ ही गौ पालन के कार्य को करने कहा गया जिससे समाज में स्वालम्बन आये व धन कमाने के साथ ही समाज के साथ अन्य लोगो को भी रोजगार मिल सकेगा। जगतगुरू अगमदासजी के बतलाये स्वरोजगार के मार्ग पर चलते हुए सतनामी समाज के लोग देखते ही देखते अपनी हिम्मत व मेहनत से सैकड़ो एकड़ कृषि जमीन के मालिक व बड़ी सख्या में मालगुजार बन गये थे । समाज जन अपना योग्यता व क्षमतानुसार शासन के योजनाओं का लाभ लेते हुए छोटी बड़ी परियोजनाओं का सफल संचालन से श्रेष्ठ कार्य कुशलता का प्रर्दषन कर धन व सम्मान अर्जित कर सकता है।
7. न्याय व्यवस्था - जगतगुरू अगमदास जी भारत के संविधान निर्माण समिति के अहम सदस्य थे। राष्ट्रीय स्तर से लेकर अतिंम छोर में बसे गाव स्तर के समाजिक न्यायायिक कार्य हेतु गुरू गदद्वीनसीन जगतगुरू अगमदास जी नें सतनामी समाज के लिए भी सामाजिक लोगो के जाने / अंजाने सभी प्रकार के निजि, पारीवारिक, सामाजिक, आर्थिक, परीस्थैतिक, अपराध, प्रसशनीय कार्य सहित अन्य समस्याओं के समाधान,दण्ड,माफी व पुरस्कार हेतु ग्राम स्तर पर समाज, पंचकमेटी, छड़ीदार व भण्डारी /अठगंवा स्तर पर समाज,पंचकमेटी,छड़ीदार भण्डारी व मंहत / जिला स्तर पर समाज पंचकमेंटी, छड़ीदार, भण्डारी,मंहत व जिलामंहत /राजस्तर पर समाज पंचकमेंटी,छड़ीदार, भण्डारी, मंहत,जिलामंहत व राजमंहत आदि की नियुक्ति किया तथा न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ कर पिडि़त को न्याय दिलाने तथा अपराध को रोकने निति बनाई गई। ग्राम,अठगंवा,जिला,राज्य व राष्ट्रीय स्तर के बैठको या सभा पर किसी भी पक्ष या विपक्ष के समस्या/ समाधान / फैसला पर विवाद या संतुष्टी नही होने की स्थिति में जगतगुरू गुरूगद्द्वीनसीन सतनामी समाज के द्वारा दिये जाने वाले निर्णय अतिंम व सर्वमान्य होगा।

गिरौदपुरीधाम में गुरूदर्शन मेला का शुभारंभ (सन्1935) - जगतगुरू अगमदास जी सतनामधर्म व सतनामी समाज के पुज्यनीय प्रथम प्रणेता गुरू घासीदास बाबा जी के वाणी,विचार,संदेश तप,सतकार्यो व संतजीवन की यषकिर्ती को संसार में प्रकाशवान करने, गुरूदर्शन का लाभ मिले साथ ही सामाजिक,धार्मिक व संस्कृति प्रचार प्रसार हो समाज के लोगों में सतनाम संस्कार का संचार हो तथा समाज में एकता सदैव बना रहे,जगतगुरू अगमदास जी ने पावन तपोभूमि गिरौदपुरीधाम में सन् 1935 को गुरूदर्शन मेंला का शुभारंभ किया। गुरूदर्शन मेंला कार्यक्रम में सभी राजमंहतो के साथ सतनामधर्म के समाज जनों ने हजारो की सख्या शामिल होकर सतनामधर्म के ऐतिहासिक पल के साक्षी बने।

गिरौदपुरीधाम का विकास में जगतगुरू के योगदान - गिरौदपुरीधाम का मेंला का संचालन गुरूगद्द्वीनसीन, गुरू घासीदास बाबा जी के चौथा वंशज उत्तराधिकारी जगतगुरू अगमदास जी ने सन् 1935 से 1952 तक किया तत्पश्चात ममतामयी मिनीमाता व राजराजेष्वरी करूणा माता संयुक्त रूप से सन् 1960 तक गुरूदर्शन मेंला में संतो की बढ़ती हुई सख्या को देखते हुए उनके लिए समुचित व्यवस्था जैसे पानी, सड़क, बिजली, स्वास्थ्य,आवास आदि मुलभूत सुविधाओं को लेकर 1976 में गुरू व राजमहंतो एवं समाज के द्वारा मेंला में शासन की सहयोग की आवश्यकता महसूस की गई। तत्कालीन म.प्र.शासन के द्वारा समाज के आग्रह को स्वीकार करने के पश्चात राज्यपाल के आदेशानुसार सन् 1976 में ही  गुरू घासीदास मेंला व्यवस्था समिति का गठन कर लिया गया। समिति में राजमंहतो व सर्ववर्गीय सदस्यों की नियुक्ति की गई।समिति का सयोंजक कलेक्टर, नामिनि स्थानीय अधिकारी को बनाया गया। आज वर्तमान में गुरू  घासीदास बाबा जी के चौथा वंशज गुरूगोसाई अगमदास जी के सुपुत्र जगतगुरू विजयकुमार जी मेंला समिति के अध्यक्ष है। जिनके मार्गदर्शन में गिरौदपुरीधाम का मेंला निरंतर व्यवस्थित व विकास की ओर आगे बढ़ते अग्रसर है।

अगमधाम खडुवापुरी का निर्माण - जगतगुरू अगमदास जी सतनामी समाज /सतनामधर्म के विकास हेतु चारों दिशाओं में राऊटी दौरा करने से सतनाम धर्म पर जनमानस का विश्वाश को जीतने में अधिक सफलता पायी और अन्य समुदाय के लोगो का झुकाव सतनामधर्म में बिना किसी भेदभाव के साथ हुआ। जगतगुरू अगमदास जी ने सन् 1925 / 1937 में खडुवा ग्राम को खरीदा और क्वार दषमी के रोज संतसमाज की मौजूदगी में गुरूदर्शन मेंला लगाकर सतनाम धर्म के विधि -विधान अनुसार पवित्र जैतखाम गड़ाकर गुरूगद्वी स्थल का निर्माण किया गया। तब से लेकर आज भी प्रतिवर्ष विजयदषमी के दिन गुरूगद्वी स्थल अगमधाम खडुवापुरी में तीन द्विवसीय गुरूदर्शन झाकी, गुुरूगद्वीस्थल, समाधीस्थल, गुरूद्वारा के साथ में जगतगुरू विजयकुमार जी, जगतगुरू रूद्रकुमार जी, अपने लाखो संतो को दर्शन व आशीष प्रदान करते है। और अपार जनसमूह को गुरू उपदेश सतनाम वाणी से जगत के संतों को जीवन व कर्तव्य पालन का बोध कराते है।

जगतगुरू की उपाधी सन् 1935 - हिन्दू समाज के माथे पर लगा अस्पृष्यता का कलंख को धोने व एकता को बचाने महात्मागांधी के द्वारा पूरे भारत भर में लगातार नौ महिने का दौरा करने के बाद भी धर्मातरण के सर्मथन व विरोध करने वालों का दो गुट बन गया एक गुट दलित महार समुदाय के डाॅ.बी.आर.अम्बेडकर येवला अमहदाबाद के सम्मेलन अक्टूबर 1935 में करीब 7 हजार दलितमहार को साथ लेकर बौद्वधर्म में धर्मातरण कर लिया। जबकि दुसरा गुट सतनामी समाज सतनाम धर्म के जगतगुरू अगमदास जी सतनाम धर्म के अधीन  संवैधानिक,सामाजिक,आर्थिक, एवं राजनैतिक क्षेत्रो में सतनाम धर्म व समाज का वर्ग आरक्षण लाभ, विकास हेतु हिन्दूधर्म में यथावत रहे,धर्मांतरण नही किये जगतगुरू के द्वारा लिए गये फैसले का सतनाम धर्म के अलावा अन्य धर्म के लाखो लोगो द्वारा समर्थन/स्वीकारिता की चलते हिन्दूधर्म के लोगों का धर्मान्तरण / हिन्दूधर्म का विभाजन रूका। उक्त कार्य के लिए हिन्दू महासभा द्वारा महाराष्ट्र में 18 दिसंबर 1935 गुरूगोसाई अगमदास जी को हिन्दूधर्म के सर्वोच्च पदवी जगतगुरू की उपाधी से नवाजा गया।

संविधान निर्माण समिति के सदस्य 1947- जगतगुरू अगमदास जी के राष्टीय कृषक आंदोलन,नशामुक्ति,मानवउत्थान,
स्वदेशी और स्वतंत्रता के आंदोलन में सहभागिता तथा समाज में व्यापत रूढिवाद, अंधविस्वास, अस्पृष्यता, कुरीतियां, गौवध बंद कराना, मानव समाज का विकास व भेदभाव को दुर करने में किया। जगतगुरू अगमदास जी को जुलाई 1947 को कांग्रेस के सर्मथन से भारत के संविधान निर्माण समिति में शामिल किया गया। जगतगुरू नें समाज के सभी मौलिक व संवैधानिक अधिकार पर के नियम कानून बनवाया जिससे सभी समाज के लोगो को विना किसी भेदभाव के शिक्षा, नौकरी,स्वरोजगार व न्याय मिले तथा सम्मान के साथ जीवनयापन कर सके।

स्वतंत्र भारत के प्रथम चुनाव 1951 में निर्वाचित सांसद - जगतगुरू अगमदास जी स्वतंत्र भारत के प्रथम आम लोक सभा चुनाव में मध्यप्रदेश राज्य के बिलासपुर दुर्ग रायपुर सामान्य सीट से चुनाव लड़कर लोकसभा क्रमांक 3 से कांग्रेस पार्टी से निर्वाचित होकर 1951 में सांसद बने। शासन से समन्वय बनाकर समाज के लोगो का निजि व सार्वजनिक जीवन को मुल विकास की धारा में जोड़ने अनेको लोक कल्याणकारी योजनाओं को प्रस्तावित/समर्थन कर नियम बनवाया।

जगतगुरू अगमदास जी सत में विलिन होना - गुरू गोसाई अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा व मानव उत्थान में लगा दिया। जगतगुरू जीवन भर सतनामी समाज के लोगो को सामाजिक, राजनैतिक व शासन-प्रशासन से सभी दर्जो पर अधिकार को पाने व दिलाने के लिए लगे रहे,सन् 1952 में जगतगुरू गोसाई अगमदास जी सत में विलिन हो गया। जगतगुरू की सत में विलिन होने की खबर पाते ही पूरा मानव समाज शोकमय हो गया। जगतगुरू अपने पीछे सत्यांषु युवराज जगतगुरू विजयकुमार (पुत्र) ममतामयी मिनिमाता व राजराजेशवरी करूणामाता (दोनो पत्नि) के साथ विशाल सतनामी समाज के अनुयायियों को छोड़ चला गया। जगतगुरू अगमदास जी द्वारा राज्य की उन्नति,जगतकल्याण,सामाजिक आंदोलनो के नेतृत्वकर्ता और सतनाम धर्म को अजर अमर बनाने तथा राष्टीय कृषक आंदोलन, नशामुक्ति, दलित उत्थान, स्वदेशी और स्वतंत्रता के आंदोलन में सहभागिता तथा समाज में व्यापत रूढिवाद, अंधविस्वास, अस्पृष्यता, कुरीतियां, गौवध बंद कराना व भेदभाव को दुर करने में किया गये प्रयास एवं लाखो लोगो द्वारा आपके नेतृत्व की स्वीकारिता के चलते के चारो दिशा में आपका कार्य प्रयास अनंतकाल तक याद किये जायेगे।

सत-सत नमन💐साहेब गुरु सतनाम🙏
स्रोत www.gagatgurusatnamdharm.com
सनत सतनामी,सतनामी एवं सतनाम धर्म विकास परिषद।

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