Tuesday, July 15, 2025

चंदन के सुगंध

चंदन के सुगंध बगरइया चंदन गुरुजी के गीत कविता के महमइ

जइसन नाव तइसन गुन के धनी गाँव गवई  में गुजर बसर करत लोक जीवन के सुघरई अउ महमइ सकेलत गोकुल प्रसाद बंजारे "चंदन "  गुरुजी हर बड़ गुणवंता शिक्षक आय। तेकरे सेती उन ल हमर देश के राष्ट्रपति जी से सम्मान मिले हवय । ये तरा से उन मन समाज अउ के राज के रतन आय।  उनकर रचना हर  संदेश परक श्लोगन सरीख हवे _

लाज सरम ल छोड़ अपन ।
मन के कुंठा ल तोड़ अपन ।।

कहत जनचेतना के संचार करथय। सरल सहज संत सुभाव  वाले गुरुजी हर लोक चितेर कवि अउ गीतकार घलो आय। ओमन साहित्यिक सांस्कृतिक आयोजन में सरलग आवत जावत रहिथे।ते पाय के बदलत जमाना अउ फैशन के हिहाव उकर शब्द चित्र ल थोरकिन देखव- 

निकले हवय जींस पैंट पहिन 
चप्पल अउ पनही
हमर खेती खार काम म
ओ कइसन बनही 

कहत  ओमन प्रकृति अउ प्रवृति के ऊपर  पोठलगहा सवाल उचाथे.

प्रकृति के बात आइस तब उकर 
सुघराई गाँव खेत_ खार  हर जगा बगरे हे कवि देख मोकाय बानी लिखथे- 

लाली गुलाली परसा फुलगे
दुल्हिन संग म करसा खुलगे
अउ आघु 
आमा मउरे कहर महर महके 
कोन हर  कति डहर लहके 


कहत मनसे, जीव जन्तु  के ऊपर परत प्रभाव ल लिखथे.

 ओमन अपन अन्तः करण म उमड़त भाव ल आखर म भर के गीत कविता के पाग म बांध के लोगन के आगु मयारुक  ढंग से सस्वर सुने म बड़ मीठ बिहतरा लाडू  खाय कस मन अघा जथे.अइसन सुग्घर  उनकर छत्तीसगढ़ी  रचना संसार हवे-

राजभाषा बनगे बोली छत्तीसगढ़ी  जी 
इही  म होही  सरकारी लिखा पढ़ी जी 
हमर पुरखा मन के सपना होगे सकार ग
गाँव गली खोर बगरही  मया पीरित  दुलार ग 
चलव बिना डरे झिझके दरबार चढ़ी जी  

    उनकर करु -कसा भाव तको मंदरस कस मीठ हवे. काबर कि गुरु बाबा कहें हे -"मंदरस के सुवाद ल जान डरे त सब ल जान डरे " 
गुरु बाबा के परम् भक्त चंदन जी हर गुरु भाव अउ असीस उत्तराधिकारी हवय तेन पाय के उकर काव्य म सबोझन बर मंगलकामना करत उदगरित होय हवे -

कभु लबारी झन मार बेटा न चुगरी न चारी.
सुख-दुःख म तय हासत रहिबे 
जइसे सुरुज चंदा उजियारी.

शिक्षा अउ साक्षरता संबंधी कतकोन रचना हवे फेर बंजारे चंदन गुरुजी के भाव सबले अलगेच हवे - 
मोर कहु हो जातिस बहिनी आखर संग मितानी.
मुड़ ऊचा के महूँ रेंगतेंव गुनतेंव आनी बानी 

शिक्षा पाए ले कइसे समझ आथे अउ उनकर परभाव कतेक होथे एकर सुग्घर वर्णन हवे.
उनकर गीत कविता हर शिल्प विधान के दृष्टि ले भले कमती हो सकत हे काबर कि उन आखर- मतरा के गुना -भाग मे उलझें नइहे भलुक उकर जाला -बंधना ल हवा कस झकोरत अउ भाव जगत ल नदिया कस धार फिजोवत  ममहावत बोहथे - 

सुख म हो खर्चा त बने दिन पहाथे
नंदिया म ख़ुशी के ग जिनगी ह नहाथे 
सब आजेच उड़ाहु तब काली कइसे आही.
आफत अउ बिपत ले भला कोन बचाही.
जइसे सरल-सुगम फेर प्रभावी डाड़ हर सुरता राखे के लाइक हे.
गाँव खेती बारी तीज त्यौहार धरम  करम मेला मड़ई  शिक्षा, साक्षरता, स्वास्थ्य ग्रामीण प्रशासन जइसे विषय के ऊपर उकर लेखन अउ शब्द चयन मन बड़ सेहरौनिक हवे. सच मे ओकर रचना संसार मे जाय ले,  कवि संग साघरों करें ले चंदन के पावन महमही जनाथे.ते पाय के उनमन मोरे महसूस करें भाव ल लेके अपन कविता गीत संग्रह के नाव चंदन के सुगंध नाव धरे बर झटकुन सहमत होगिन.
   ऐ रचना बर चंदन गुरुजी ल बधाई देवत आस करत हवन कि येला छत्तीसगढ़ी संसार मे एक मन आगर सुवागत करें जाही.अउ पाठक शिक्षक शोधार्थी मन बर उपयोगी होही.

जय जोहार, जय छत्तीसगढ़

प्रो. डॉ.अनिल कुमार भतपहरी ( 9617777514)
प्राध्यापक हिंदी 
उच्च शिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़ शासन

Wednesday, July 9, 2025

बलि प्रथा

सम्राट अशोक के बौद्ध अपनाते ही भारत वर्ष सहित उनके आधिपत्य क्षेत्रों के प्रजाओ का धर्म भी बौद्ध धर्म हो गया।  फलस्वरुप उन सभी जगहों पर बौद्ध स्थापत्य के अवशेष विद्यमान है।
   सम्राट अशोक के नाती वृहदत्त की हत्या कर पुष्प मित्र शुंग ने बौद्ध शासन का तख्ता पलट कर  मनुस्मृति लागू किया और उन्हीं के अनुरुप असमानता युक्त वर्ण व्यवस्था जाति प्रथा कठोरता से लागू हुआ। अनेक पुराण शास्त्र रचे गए।  शंकराचार्य आए और मठ मंदिर बने इस तरह  भारत अस्तित्वमान हुआ। भेदभाव जन्य और देशी रियासतों की परस्पर प्रतिद्वंदिता ने विदेशी आक्रांताओं खासकर मुगल पठान आकर सत्तासीन हुए फिर अंग्रेजों की बारी आई। इस हजारों साल की दसता भुगतने विवश हुए। इसके प्रमुख कारण अमानवीय वर्ण/ जाति व्यवस्था ही है। विदेशी शासको के दरबार में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य प्रभावशाली पदों पर रहे और इस कुप्रथा को यथावत कायम रखें।  जबकि प्राचीन बौद्धों को चौथे वर्ण शूद्र घोषित कर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किए गए। इन पर मुस्लिम शासकों और मुगलो ने हस्तक्षेप नहीं किया लेकिन आधुनिक शिक्षा और वेतन भोगी अंग्रेज अधिकारियों ने अनेक आदिम बर्बर प्रथाओ को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसलिए भी अंग्रेजों की हस्तक्षेप से बचने कुछेक राजघराने उच्च वर्गीय लोगो ने विद्रोह किया। कालांतर में  आम जनमानस  शूद्रों के जुड़ने के बाद हिन्दू धर्म का कांसेप्ट लाया गया । हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग कांग्रेस की अगुवाई से वह स्वतंत्रता आंदोलन में बदल गया। अंततः आजादी मिली पर धर्म के कारण दो देश बने परन्तु मानव समुदाय में भेदभाव आज पर्यंत खत्म नहीं हुआ बल्कि वोट बैंक के रुप में लामबंद हो गए।
  बौद्ध धर्म के अनुयाई चौथे वर्ण के शूद्र घोषित कर दिए और उनकी 6हजार जाति उपजाति बनाकर जाति भास्कर रचकर तीन वर्ण के लोग देश की संप्रभुता पर एकाधिकार कर लिए। यह रोचक दास्तान है और उसे जानने समझने के लिए हर जाति वंश लोक में चलने वाली प्रथाएं हैं।
लोक पर्व हैं। आपने जो बलि प्रथा का जिक्र किया वह सामाजिकता और उस समय की सामूहिकता को व्यक्त करते हैं न कि गैर बराबरी बर्बर व्यवस्था को ।
यह महात्मा बुद्ध की मानवता और समानता पर आधारित धम्म का ही प्रभाव है न कि वेद शास्त्र पुराण आधारित वर्ण जाति व्यवस्था। इनका जमींदोज हो जाना ही बेहतर हैं। तभी राष्ट्र समृद्ध और अक्षुण्ण बना रहेगा।

 वैदिक सभ्यता की यज्ञ बलि प्रथा से युक्त थे गोमेघ यज्ञ, अश्व मेघ यज्ञ नरमेघ यज्ञ इत्यादि थे।
इसलिए "वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति" कहकर बलि प्रथा को महिमा मंडित किए गए। राजा से लेकर पुरोहित तक बलि के मांस खाते और मदिरा पान कर उन्मत्त रहते थे। इसलिए भी यज्ञों का प्रतिरोध होने लगा था।
सभी समाज में बलि प्रथा रहा हैं। संतो गुरुओं के कारण बलि प्रथा बंद हुई।

Thursday, July 3, 2025

सेक्युलर यानि धर्म पंथ संप्रदाय निरपेक्ष

#anilbhattcg 

समसामयिक 

सेक्युलर यानि धर्म/ पंथ/संप्रदाय निरपेक्ष 

शासन और प्रशासन किसी भी धर्म,पंथ, संप्रदाय को बढ़ावा नहीं देगा और न ही उनके आधार पर चलेगा । बल्कि संविधान सम्मत चलेगा। संविधान देश के नागरिकों के लिए उपयोगी या अनुपयोगी हैं  के ऊपर संसद में परिचर्चा के उपरांत बहुमत के आधार पर लोक कल्याणार्थ संशोधनीय होगा।
   मनुष्य और समाज का मौलिक अधिकार है कि वह अपनी पसंद या विरासत से धर्म पंथ संप्रदाय चयन कर सकता हैं। परन्तु शासन /प्रशासन का नहीं। यह सामान्य सा अर्थ हैं। 
  धर्म निरपेक्ष या सेक्युलर का यह अर्थ कदापि नहीं कि वह धर्म पंथ संप्रदाय आदि का विरोधी होगा बल्कि वह उनसे निर्लिप्त/ तटस्थ होगा और किसी एक को बढ़ावा नहीं देगा और न किसी दूसरे का प्रतिरोध करेगा। विशाल जनसंख्या,बहु धर्मी/विविधता पूर्ण जीवन शैली वाली इस उपमहाद्वीय महादेश में  निरपेक्ष का आशय तटस्थ भाव हैं। शासन_ प्रशासन धार्मिक मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा। व्यक्ति और समुदाय स्वतंत्र हैं उन्हें धार्मिक आज़ादी मिली हुई हैं। 
    पार्टियां शासन _प्रशासन नहीं हैं ,उनकी अपनी धर्म /पंथ /संप्रदाय हो सकते हैं । परन्तु यदि वह सत्तारूढ़ हुई तो कतई सत्ता किसी धर्म पंथ संप्रदाय को बढ़ावा नहीं देगा। बल्कि संविधान के अनुरुप ही अपनी कार्ययोजना बनाकर जनता के कल्याणार्थ काम करेगी। 
     जय संविधान _जय भारत

Monday, June 23, 2025

जात पात

कुछ समय से नहीं बल्कि जब से मनुष्य को वर्ण जाति  गोत्र आदि में बाटी गई और उन्हें शास्त्र सम्मत घोषित किए गए तब से कहते आ रहें हैं।  सर्वाधिक पढ़े सुने जाने वाले मानस में स्पष्ट लिखा है _

जे वर्णाधम तेली कुम्हारा,स्वपच किरात कोल कलवारा ।
ये जातियां चारों वर्ण से भी अधम हैं यानि अंतिम वर्ण शूद्र से भी नीचे। फिर भी यही समुदाय इसे भजन बनाकर नाच गा रहे हैं उन्हें न अर्थ की समझ न भाव की। ऊपर से अपनी गाढ़ी कमाई दान दक्षिणा चढ़ावे में लूटा रहे हैं 

इस तरह के अनेक उदाहरण ऋचा श्लोक दोहा चौपाई के रुप में कई ग्रंथों में उपलब्ध हैं।फिर भी इन्हीं उत्पीड़ित जातियों को वह अत्यंत प्रिय हैं।  यही तबका सर आंखों में बिठाए हुए हैं।
         हिंदू धर्म में जन्मना जातपात और उनमें अमानवीय उच्च नीच भेदभाव के जनक उनके कथित शास्त्र और धर्मग्रंथ हैं। उसे ही आदर्श बनाकर ढोते आ रहें है। 
यदि देश में समानता और समरसता चाहिए तो इन में लिखी गई आपत्तिजन्य अग्राह्य चीजों को विलोपित करें या प्रतिबंधित। जब संविधान संशोधित हो सकते हैं तब तत्कालीन परिस्थिति को देखते लिखी गई पुस्तकें क्यों नहीं?आखिर किसी भी मानव समुदाय को कोई दूसरा मानव समुदाय केवल उनकी जाति के आधार पर सार्वजनिक रुप से भेदभाव करें और इसके केन्द्र में ऐसे पुस्तक जो धर्मग्रंथ के रुप में जाने समझे जाते हो।  उनका परित्याग आवश्यक हैं। इनके लिए जनांदोलन और व्यापक मांग बहुसंख्यक शूद्र वर्ण के लोगों को करना चाहिए जिसमें 6000से अधिक जातियां हैं और उन्हें गाहे बगाहे उनकी हैसियत बताएं जाते हैं। आखिर चंद लोगों में ऐसा करने का दुस्साहस आते कहा से हैं? आप जैसे विचारक कथाकारों को तो गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिए। बल्कि काल्पनिक और मिथकीय चीजों में समय नष्ट करने के बजाय अपनी वॉक कला और प्रभाव को सामाजिक क्रांति में लगानी चाहिए।
मानव मानव एक समान जात पात का मिटे निशान मिशन में काम करना चाहिए। भेदभाव को बढ़ावा देने वाली शक्ति और तत्वों से संघर्ष करना चाहिए।

Friday, June 13, 2025

जाति न पूछो

#anilbhattcg 

सद्गुरु कबीर जयंती पर 

"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।" 

भारतीय समाज वर्ण जाति व्यवस्था से युक्त हैं ।भले यहां साधु यानि सज्जन, ज्ञानी,सिद्ध लोगों की जाति नहीं पूछने की कबीर साहब की नसीहत हैं। परंतु बिना जाति पूछे दो अनजान लोगो के बीच न जान पहचान  होते न ही लोकाचार!  शादी ब्याह और जीवन निर्वाह तक भी नहीं होते। लेकिन इसी जातिप्रथा और वर्ण व्यवस्था के कारण सदियों से दमन शोषण भी जारी हैं। 
   आजादी के 75 वर्ष बीत जाने और प्रभावी संविधान के बाद भी जाति से उत्पीड़ित वर्ग के हितार्थ उन्हें लाभान्वित करने जाति जनगणना हो रहे हैं इससे अपेक्षित बदलाव की संभावना हैं। नि:संदेह साधु से ज्ञान ही पूछिए पर मतदाता और हितग्राहियों से जाति पूछना ही पड़ेगा तभी तो उनके ऊपर न्याय कर पाएंगे क्योंकि अब तक जाति न पूछने के कारण कोई दूसरा उसका लाभ लेते आ रहे हैं। 

तो भैये कबीर साहब से बिना क्षमा याचना किए कि उनकी बातें शत प्रतिशत सत्य हैं ,हम ज्ञानियों से जाति नहीं पूछेंगे बल्कि  जाति विहीन समुदाय की ओर अग्रसर हैं। लेकिन जो जाति के नाम पर छल प्रपंच करके किसी के हक अधिकार को छीन रहे हैं।  कोई जाति के दर्प में तो कोई शर्म से जीते आ रहे हैं। जन्मना जाति गत उच्च नीच की खाई बनी हुई है। भेदभाव परिव्यप्त हैं ऐसे में समानता लाने कुछ दशकों तक प्रयोग करके नवाचार करे और जाति जनगणना कर ले कोई हर्ज नहीं। देर आए दूरस्थ आए टाइप इस कार्य का स्वागत होना चाहिए।
  सद्गुरु कबीर जयंती की हार्दिक बधाई।
            सत कबीर,सतनाम

Sunday, June 8, 2025

डॉ अनिल भतपहरी सचिव राजभाषा आयोग

डॉ अनिल कुमार भतपहरी सहायक संचालक उच्च शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़ शासन को  सचिव,छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग  के पद पर  संस्कृति विभाग में तीन वर्षों की प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ किया गया था।
इन तीन वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने कोरोना काल में लगभग हाशिए पर चले आयोग को पुनर्स्थापित किया। हालांकि इस दौरान राजभाषा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की मनोनयन नहीं हुआ। परन्तु वे राज्य के साहित्यकारों कलाकारों प्राध्यापको ,के साथ और मंत्री जनप्रतिनिधि एवं विभाग के अधिकारी से समन्वय बनाकर जो भाषाई और साहित्यिक क्षेत्र में कार्य किया वह महत्वपूर्ण और रेखांकित करने योग्य हैं।

खासतौर पर आयोग का कार्य को प्रमुखता से तीन भागों में विभाजित कर एक्शन प्लान बनाया और उसे जिला समन्वयकों की उपस्थिति में चरणबद्ध तरीके से  शेड्यूल के अनुसार संस्कृति मंत्री  और संचालक के संज्ञान  में  कार्यालय स्थापना दिवस 14 अगस्त 2022 अनुमोदित करवाकर प्रकाशन प्रशिक्षण और आयोजन का त्रिस्तरीय कार्यक्रम का पूरा ढांचा तैयार किया गया।

1आयोजन: 

 फिर तत्क्षण सुदूर जशपुर से बीजापुर और रायगढ़ से डोंगरगढ़ तक राज्य के सुदूर सीमावर्ती क्षेत्र से लेकर मध्य भाग में खासकर  जशपुर, रायगढ़, बीजापुर, अंबिकापुर बालोद, महासमुंद, जगदलपुर जिला संभाग स्तरीय  साहित्यकार सम्मेलन कराया। गया जिसमें संबंधित जिला/संभाग के अधिकतर साहित्यकारों ने स्वस्फूर्त भाग लिया और उनमें नवीन उत्साह का संचार हुआ। विशिष्ट कार्य किए हुए वरिष्ठ साहित्यकारों को आयोजन में सम्मान करवाकर उन्हे विशिष्ट महत्ता प्रदान किए।

A त्रिदिवसीय राज्यस्तरीय सम्मेलन 
जनजातीय भाषा एवं साहित्य के विविध आयाम शहीद स्मारक भवन रायपुर 2021

B त्रिदिवसीय लोक साहित्य समारोह साइंस कॉलेज रायपुर 20 22

C सातवें प्रांतीय सम्मेलन होटल इंटरनेशनल बेबीलोन रायपुर 2023
   
उक्त तीनो राजकीय सम्मेलन में 1500 साहित्यकारों की गरिमामय उपस्थिति रही हैं। यह तीनो कार्यक्रम अत्यंत सफल और लोकप्रिय रहा। इनके स्मारिका भी प्रकाशित किए गए है।

2प्रकाशन:

   छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास और संवर्धन हेतु उन्होंने राज्य के लगभग 100 से अधिक साहित्यकारों की पुस्तक को संवाद से प्रकाशित करवाकर और उन्हें राज्य के जिला ग्रन्थालय और महाविद्यालय में निःशुल्क भेजकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। इस तरह छत्तीसगढ़ी पुस्तक राज्य के प्रायः सभी जिला ग्रंथालयों में उपलब्ध हुआ। इसके साथ ही उन्होंने। राजभाषा आयोग के गतिविधि और राज्य के सभी बोली भाषा को प्रश्रय देने हेतु त्रैमासिक " सुरहुत्ती" नामक संग्रहणीय पत्रिका आरम्भ हुई जो आगे चलकर शोध कार्य के लिए महत्वपूर्ण होगी।

3प्रशिक्षण:
आयोग के उक्त दो महत्वपूर्ण कार्यों के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी को राजकाज में व्यवहृत करने हेतु जिला मुख्यालय के अधिकारी कर्मचारी एवं महानदी भवन मंत्रालय एवं संचालनालय  इंद्रावती भवन में चरण बद्ध तरीके से प्रतिवर्ष प्रशिक्षित किया गया। जिसके अधिकारी कर्मचारी की उपस्थिती एवं उत्साह महत्वपूर्ण रहा। राजनांदगांव , बेमेतरा, बालोद, कोंडागांव, मानपुर मोहला। कांकेर जैसे जिला में अधिकारी कर्मचारी को प्रशिक्षित किया गया।

4   सम्मान: 
राज्य स्तरीय मुख्यमंत्री सम्मान छत्तीसगढ़ी भाषा के साथ अन्य राजकीय भाषा बोली सदरी लरिया कुड़ुख हलबी भतरी गोंडी आदि विकास और साहित्य सृजन हेतु महत्वपूर्ण साहित्यकारों को मान मुख्यमंत्री के हाथों उनके निवास पर सम्मानित किए गए।
राजकीय रामायण समारोह में छत्तीसगढ़ी और राज्य के अन्य भाषा बोली में लिखे गए रामकथा के महाकवियों और साहित्यकारों का राजकीय सम्मान आयोग के सौजन्य से संस्कृति विभाग द्वारा किया गया।

5मानक शब्दकोश एवं व्याकरण निर्माण समिति का गठन 

राज्य के विभिन्न लब्ध प्रतिष्ठित 12 सदस्यीय भाषा विंदो और साहित्यकारों की समिति बनाई गई और 13 13 अक्षरों को बताकर वृहत्तर शब्दकोश निर्माण कराए जा रहे है। प्रथम चरण पूर्ण हो चुका है और पांडुलिपि प्राप्त हो गई है जिसका टाइपिंग भी आरम्भ हो चुका है। 
जब मानक शब्दकोश और वृहत्तर व्याकरण बन जाएगा तब नियमानुसार आठवीं अनुसूची में छत्तीसगढ़ी को शामिल करने की दावा भाषा निदेशालय में प्रस्तुत किया जा सकेगा। इन सबके लिए पहली बार गंभीरतापूर्वक कार्य किया गया। और उसके अपेक्षित परिणाम आने लगा भी था।छत्तीसगढ़ी पहले से अधिक शहरी और शैक्षिक संस्थानों और कार्यालयों में व्यवहृत होने लगें हैं। 


इस तरह तीन वर्षों के कार्यकाल उपलब्धि से भरा रहा।

Saturday, June 7, 2025

सत्यदर्शन

रविवारीय चिंतन  

    ।।सत्यदर्शन ।।
        
   प्राण तत्व को आत्मा और उसे परमात्मा का अंश तथा वे  जहाँ से वह आते हैं उसे परलोक स्वर्ग जन्नत हैवन आदि कहे गये हैं। इस हिसाब से जहां आत्मा की बात हुई कि वह आत्मवादी दर्शन में यानि कि ईश्वरवाद के अन्तर्गत हो जाते हैं।
       अनात्मवाद में आत्मा जैसी किसी चीज पर यकीन नहीं करते और वे अनीश्वरवाद में आते हैं।
मनुष्य या प्राणियों में जीवन होते हैं। ये जीव या प्राण हैं ,इसे ही आत्मवादी आत्मा कहकर तमाम मायाजाल फैलाए हुए है। इसी में प्राय: लोग उलझे हुए है जबकि वह ऐसा है नही, यह सब कल्पना मात्र है । यह प्राण या जीव  संयोग से उत्पन्न व क्षय होते हैं। इनका अस्तित्व देह से है ,इनसे परे इनका कोई अस्तित्व नहीं  है। 
      धर्म, मत ,पंथ, दर्शन मान्यताएँ प्राणियों अर्थात् जीव धारी देह के लिए हैं  खासकर मानव  प्रजाति के लिए  ।जिनके मन और मस्तिष्क होते हैं  जो सोचते विचारते है न कि‌ निर्जीव या विदेह के लिए ( इसमें पशु पक्षी को भी रखे जा सकते हैं बावजूद उनमें किंचित मात्र गुण धर्म होते हैं)। न ही जीव या प्राण के लिए, क्योंकि यह तो एक तरह से  ऊर्जा या  अदृश्य यौगिक तत्व है। जो अदृश्य अकर्ता व निरपेक्ष या तटस्थ पदार्थ की तरह है। पर इसी के नाम पर अनेक तरह के भ्रम फैला हुआ। व्यक्ति कितने भ्रमित है देह की जतन चिंता छोड़ प्राण जीव या कथित आत्मा और उनके स्वामी परमात्मा की सिद्धि  के क्या क्या उद्यम नहीं करते और   संग साथ रहने वाले देहधारियों से वैमनष्य पालता हैं। वर्चस्व के युद्ध लड़ता हैं मार-काट हिंसा फैलाते हैं। धर्म के लिए अधर्म करते हैं। सच कहे तो धर्म मत पंथ रिलिजन आदि अपनी अपनी प्रणालियों और पद्धतियों के लिए वचनबद्ध होते हैं। फलस्वरुप किसी दूसरी प्रणाली पद्धति के प्रखर विरोधी और द्वेषी हो जाते हैं।
   और सब होता है ईश्वर के नाम पर जिनका कही वजूद है भी या नहीं आज तक अज्ञेय है । इसलिए बुद्ध से लेकर गुरुघासीदास  जैसे प्रज्ञावान महापुरुषो ने उस कल्पित ईश्वर आत्मा परमात्मा उनके लोक परलोक  आदि के लिए भक्ति, उपासना, पूजा- कर्मकांड में फसे उलझे लोगों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के प्रति यहाँ तक पशु -पक्षी, वृक्ष आदि जीवधारियों के प्रति  प्रेम, परोपकार सद्भाव, सौहार्द जैसे सद्गुणों के व्यवहार करने की अप्रतिम सीख दी हैं। दोनो का दर्शन वास्तविक और सत्य है इसलिए इनके दर्शन को सत्य दर्शन या सच्चनाम / सतनाम दर्शन कहे जाते हैं।
    बुद्ध को उनके अनुयाई  सचलोचन या सच्चनाम  कहते हैं जबकि गुरुघासीदास को "सतनाम सद्गुरु" कहते हैं। 
    
                 

                                          -डाॅ. अनिल भतपहरी