Sunday, June 2, 2019

७ छकड़ी

[5/21, 15:26] Dr anilbhatpahari: ।।सीख ।।
हदरते मन को दे दिलाशा ।
मिलेगी मंजिल टूटे न आशा ।।
लछ्य एक नही न राहें है एक।
पल- पल परिवर्तित राह अनेक ।।
हौसला बस चलने का हो हरदम।
विफलताओं से कभी न हारे हम।।
करे चयन उसे जो हो रुचिकर  आसान।
रहे उनपर भले थोड़ी -बहुत कमान।।
करते निरंतर अभ्यास लगे रहे सो जाने ।
पुरखो की यह सीख मन वचन कर्म से माने ।।
        -डा. अनिल भतपहरी
[5/22, 12:16] Dr anilbhatpahari: खिलतें है अक्स़र बे मौसम
कोई उसे दिवानगी कहें
या कहे इन्कलाब
कोई फूल को फूल तो नही
पर खामखां कहते रहते है 
कमल नरगिस या गुलाब ...
[5/22, 13:19] Dr anilbhatpahari: आपके वास्ते छकड़ी हमरी

कहने के पूर्व  कुछ कार्य
कर ही लिया जाय।
तभी चंद बातें  लोगों की
समझ में आय।।
लोगों की समझ मेंआय
और हो सार्थक प्रयोजन।
नही तो बीत जाते  सत्र
और चलते रहते आयोजन ।।
दीप जलाना चाहिए सदा
दिन ढ़लने  के पूर्व।
ऐसे  ही कुछ तैय्यारी  हो                         अक्सर कहने के पूर्व ।।

   कहें बिंदास - डा. अनिल भतपहरी
[5/24, 11:44] Dr anilbhatpahari: कैसे कहे संग चलने जब राह न हो न मंजिल ।
ऐसे ही कटते जा रहे है दिन बड़ी मुश्किल‌ ।।
कोई न हमराह सच्चा न कोई है संगदिल ।
देखा दुनिया को हरकोई निकले तंगदिल ।।
मीत सी लगती पर है वे जालिम कातिल ।
इस तरह से है वो मेरी जिन्दगी में शामिल ।।
[5/28, 15:34] Dr anilbhatpahari: गल कंठी माला माथ तिलक
चंदन
सत्तागी कांधे पर विराजे सेत
वसन
व्यवहार पावन सदा उत्तम आचरण
संत हैं सतनामी सुखद इनके दर्शन
               - डा. अनिल भतपहरी
[5/29, 16:28] Dr anilbhatpahari: आपके वास्ते छकड़ी हमरी

वो है चिन्तातुर दो जून की रोटी के लिए
वे भी है चिन्तातुर अपनी लगोटी के लिए
एक ये जो है चिन्तातुर अपनी चोटी के लिए
पर क्यों नही कोई चिन्तातुर देश-माटी के लिए
भाषा कला संस्कृति मनोहर थाती के लिए
मरने-मिटने पर उतारु क्यो छद्म धर्म पंथ जाति के लिए ...

   कहें बिंदास- डां अनिल भतपहरी
[5/30, 23:38] Dr anilbhatpahari: आपके वास्ते छकड़ी हमरी
    ।। बातें।।

बातें होनी चाहिए पर वे कुछ भी न हो
बे सिर-पैर की बातों से बतड़ग भी न हो
मौन से मुखर होता है अच्छा  चलो माना
पर इससे‌ ही  मुसीबत का  हुआ   आना
करें सोच- समझकर बातें तब सुलझे समस्याएं
अक्सर बड़बोले पन से उत्पन्न होते विषमताएं 
   कहें बिंदास - डा.अनिल भतपहरी

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