प्रेम गीत
जी हां
यह कहना
दर्प होगा
कि तुम्हारी
दुनिया हूँ
पर सच हैं
कि तुम
मेरी दुनियां
बन रही हो
इस तरह से
आबाद हुई
दुनियां को
ये दुनियादार
उजाड़ते क्यो हैं
विश्वास में
विष धोलते क्यो हैं
ये मत सम्प्रदाय
चलाते क्यो हैं
बनकर मठाधीश
दूसरों की मठ
उजाड़ते क्यो हैं
प्रेम में पहरा
लगाते क्यो हैं
जात-पात का सेहरा
सजाते क्यो हैं
- डॉ. अनिल भतपहरी /9617777514
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