Wednesday, February 15, 2023

प्रेम

।।प्रेम ।‌।

हो प्रेम जहाँ ‌
धर्म,जाति 
भाषा, कला
संस्कृति की 
क्या काम वहाँ
प्रेम नहीं जहाँ
धर्म ,जाति 
भाषा ,कला 
संस्कृति कहाँ 
यहाँ तक 
समाज, साहित्य 
इतिहास ,भूगोल 
राजनीति नहीं 
विधी ,वाणिज्य 
गणित ,बाटनी 
रसायन भौतिकी भी नहीं 
जीव- जन्तु में प्रेम नहीं तो 
कोई विषय नहीं 
स्कूल- कालेज 
शिक्षक- छात्र 
पात्र -अपात्र 
मातु -पिता 
भाई बंधु परिवार 
गाँव घर बार 
देश - परदेश 
हाट- बाजार 
ये सारे कारोबार 
द्वेष- द्वंद्व 
फरेब - नफरत 
मानव मन का 
फितरत 
कुछ भी नहीं 
प्रेम बिन 
कटे कैसे 
पल छिन 
जो भी जितना भी 
भरा है सद्भाव 
अपना कह सकने की भाव 
वह सब आया हैं प्रेम से 
तुम उगाओ फसल 
अलगाव की 
घृणा नफरत भेदभाव की 
सत्ता के लिए वोट की 
ज़ख्म गहरी चोट की 
परवाह नहीं 
भले एक-दूसरे की 
कोई चाह नहीं 
पर प्रेम प्रवाहित हैं 
सरिता की तरह
उजास है तमस में
उगते सविता की तरह 
हर होठ में थिरकते 
गीत -कविता की तरह 
लोग सुनते- समझते हैं
मस्त गाते और थिरकते हैं
लिया हैं जन्म तो
मौज से जीते हुए मरते हैं 
सच कहे तो  प्रेम  
जन्म- मरन में  हैं 
हंसी-खुशी ,रुदन में हैं 
हर रंग में रंगा हुआ 
इस जीवन में हैं 

- डॉ. अनिल भतपहरी   
    15-2-23 रात्रि 1-37  (रायपुर - बिलासपुर के मध्य  सफर के दरम्यान )

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