Monday, January 2, 2023

मनखे मनखे एक

#anilbhatpahari 
गुरुपर्व माह पर :  "प्रसंग मनखे मनखे एक "

।।मानव प्रजाति मे जन्मना जातियाँ वर्ण नहीं हैं ।।
 

वर्ण या जातिय विधान कृत्रिम हैं। इसे वृत्ति के आधार पर शास्त्र और शास्त्रकारों ने रुढ़ किया। फलस्वरुप इस महादेश का दुर्दशा हुआ । जिसके कारण आज पर्यन्त अनेक तरह के संकट और विपन्नताओं को भोगते आ  रहे हैं। 
    जातिय द्वंद्व सदैव गृहयुद्ध सा रहा हैं जिन्हें नियंत्रित करने  देश की अकूत संपदा और समय नष्ट हो रहे  हैं। यदि ऐसा न करे तो  देश अनेक भागों में विभक्त हो सकते हैं। समय -समय पर उग्र आन्दोलन आदि उसी का परिणाम हैं। अब  तो इस आधार पर संवैधानिक रुप से प्रदत्त आरक्षण से पुरा समाज जागरुक सचेत और  उद्वेलित भी  होने लगे हैं। 
      देश में ऐसा संक्रमण काल चल रहा है कि बिना बाहरी आक्रमण शत्रुता के राष्ट्र प्रेम के नाम पर राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता जारी  है । और पार्टीगत परस्पर लोग एक- दूसरे की  राष्ट्र भक्ति पर संदेह पैदा करने लगे हैं।  ऐसे में जातिय दर्प और उनसे ऊपजे दलीय आन्दोलनों से राष्ट्र की अखंडता बाधित होने के कगार पर खड़ा प्रतीत होने लगता हैं। ऊपर से नीम पर  करेले चढ़ा    तथाकथित शास्त्रिय जातिय दर्प की  बातें जहाँ हर कोई एक दूसरे से ऊंचा और  अन्य को नीचा दिखाने की  होड़ मे लगा हुआ है।
         भट्टप्रहरियों ने सदैव कल्याणकारी कार्य और सत्य  के लिए विषपान करते रहे हैं। पुरखे सद्वाह ( पालि )  सतवहन ( संस्कृत) महात्मा बुद्ध , नागार्जुन महाप्रभु  और आनंद प्रभु को अपने राजधानी सिरपुर और महानदी के दोआब में बसाए और इन अभ्यागतों को आमंत्रित कर आर्यो के साथ " मणिकांचन संस्कृति"  प्रशस्त किए । पर वे आव्रजक ,घुमंतु ,आर्य  लोग स्थानीय जन के सादगी और समर्पण को सदैव छलित किए। औपनिवेशीकरण कर उन पर राज करने की सडयंत्र किए गये । यहाँ तक उनके पुरो/ नगरों  को उनके अधिपति इंद्र  ने  नष्ट किए फलतः वे पुरो  को  नष्ट करने वाले  पुरंदर  कहाए । यहाँ तक कि  शास्त्रादि रचकर  कर्मकाञड रच उन्हे भाग्य- भगवान के अधीन कर  पूर्वजन्म का फल भोगने उनकी नियति बना दिए गये। धरा को नर्क बनाकर कल्पित  स्वर्ग या परलोक पाने की मिथकीय पौराणिक  कहानियाँ गढ़े गये। अपढ और आम जनता श्रद्वानवत होकर शिरोधार्य किए । जबकि  उन्हें दास ,दस्यु  ,शूद्र ,असुर यहाँ तक राक्षस तक कहें।
   इन्हें बुद्ध कबीर रैदास  नानक गुरुघासीदास जैसे  संतो और गुरुओं  ने एकत्र कर उनमें आत्म विश्वास का संचार किया ।  समृद्धशाली राष्ट्र के मुख्यधारा में लाए और उन्हें जीवन के परम सुख और शांति के पाठ पढाने सद्  मार्ग प्रशस्त किए । 
                 जय सतनाम 

       डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514

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