#anilbhatpahari
।।कविता की सोता फूटती हैं ।।
कहने से समझ आए
ऐसी बात ही नहीं
जो समझ नहीं आए
उसे कहना ही नहीं
इस तरह कही -अनकही में
बातें निकल ही जाती हैं
वे कहां आती कहां जाती हैं
यह तो पता नहीं
पर मन में तो वही बसती हैं
जो दिल से निकलती
या दिल में रहती हैं
जैसे मच्छी जल में रहती हैं
पंछी गगन विचरती हैं
फूल पें तितली मंडराती हैं
शरद में शीत झरती हैं
बसंत में मीत के कंठ से
प्रेम गीत गुंजती हैं
और बारिस में
नदियों पर नाव चलती हैं
चकित अनिल के जेहन से
अनायस कविता की सोता फूटती हैं
डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514
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