सुरुज
ये जुड़जुड़हा टुरा
सुरुज हर
कलेचुप आथे
कांपत ठुठरत
अल्लर चले जाथे
दिन भर बिचारा
अघातेच सिहरथे
ले दे के उथे
मनटुटहा किंदरथे
अउ झटकुन बुड़थे
बिक्कट रहिस उतअइल
होगे हवय निच्चट सरु
ओढे हे बादर के कथरी
होत हे बिचारा बर बड़ गरु
ओकर बरन देख के
लगथे करलई
उतर गे रउती
कहां गय ओकर तपई
सब दिन बरोबर रहय नहीं
काकरो अतंलग चलय नहीं
सबके दिन बहुरथे
बेरा ह बड़का ये
अनिल कहिथे
तौनो हर ठउका हे
-डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514
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