#anilbhatpahari
।।अजीबोगरीब विकास ।।
शाकाहारी - मांसाहारी, सगुणोपासक - निर्गुणोपासक , सवर्ण - अवर्ण , कर्मचारी -व्यापारी ये लोग एक-दूसरे के पूरक होकर भी वैचारिक रुप से परस्पर घोर विरोधी व प्रतिद्वंद्वी होते हैं। कभी साथ निबाह नहीं करते । ऐसे ही पृथक स्वभाव के कारण वृत्ति और प्रवृत्ति बनी फलस्वरुप समाज में जात -पात ऊँच- नीच बना ।
आजकल शहरों में जैन -मारवाड़ियों , मुस्लिम- फारसियों, कथित उच्च कुलीन संभ्रांतों का अलग -अलग कालोनी और मल्टी स्टोरी फ़्लैट बन रहे हैं। कुछेक वर्षो में देखना उनके अनुकरण से नीचे स्तर पर भी अपनी अपनी जातियों और समान वृत्ति+ प्रवृत्ति वालो की कालोनी व फ्लैट्स बनने लगेगे। गांवों में तो जातियों की पारा बस्ती वाली नालियां बजबजा रही ,अब वह सडांध नगरों -शहरों में भी बुरी तरह फैल रहे हैं।
वर्तमान दौर तथाकथित उच्च शिक्षित पढे- लिखे कथित आधुनिक विचार वानों के चलते और भी खतरनाक स्थिति में जा रहे हैं। देश की संप्रभुता और आय पर महज 5% जनसंख्या का 70% एकाधिकार हैl तेजी से अमीर - गरीब , वर्गीय भेद की खाई भयंकर रुप से बढ़ते जा रहें हैं।
व्यवसायिक रुप से कालोनाइजर / शा गृह निर्माण एंजेसिया भी विभेदकारी आवास और विज्ञापन से उक्त अमानवीय बसाहट को बढावा दे रहे हैं। भला ये अजीबोगरीब विकास हम में कौन सा सुख- शांति और सूकून देगी ? क्या यही राष्ट्र निर्माण है ? यदि यही हाल रहा , तब समरस और समृद्धशाली भारत वर्ष की परिकल्पना कैसे साकार होन्गे? इन सबका समाधान तलाशना चाहिए।
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