Friday, September 9, 2022

अजीबोगरीब विकास

#anilbhatpahari  
        
          ।।अजीबोगरीब विकास ।।

      शाकाहारी - मांसाहारी,  सगुणोपासक - निर्गुणोपासक , सवर्ण - अवर्ण , कर्मचारी -व्यापारी  ये लोग एक-दूसरे के  पूरक होकर भी वैचारिक रुप से परस्पर घोर विरोधी व प्रतिद्वंद्वी होते हैं। कभी साथ निबाह नहीं करते । ऐसे ही पृथक स्वभाव के कारण वृत्ति और प्रवृत्ति बनी फलस्वरुप समाज में जात -पात ऊँच- नीच बना ।

   आजकल  शहरों में जैन -मारवाड़ियों ,  मुस्लिम- फारसियों, कथित उच्च कुलीन संभ्रांतों   का अलग -अलग कालोनी और मल्टी स्टोरी फ़्लैट बन रहे हैं। कुछेक वर्षो में देखना उनके अनुकरण से नीचे स्तर पर भी  अपनी अपनी जातियों और समान  वृत्ति+ प्रवृत्ति वालो की कालोनी व फ्लैट्स  बनने लगेगे। गांवों में तो जातियों की पारा बस्ती वाली नालियां बजबजा रही ,अब वह सडांध नगरों -शहरों में भी  बुरी तरह फैल रहे हैं। 
   वर्तमान दौर तथाकथित उच्च शिक्षित पढे- लिखे कथित आधुनिक विचार वानों के चलते और भी खतरनाक स्थिति में जा रहे हैं।  देश की संप्रभुता और आय पर महज 5% जनसंख्या का 70% एकाधिकार ‌हैl तेजी से  अमीर - गरीब , वर्गीय भेद की खाई भयंकर रुप से बढ़ते जा रहें हैं।  
        व्यवसायिक रुप से कालोनाइजर / शा गृह निर्माण एंजेसिया  भी विभेदकारी  आवास और विज्ञापन से उक्त अमानवीय बसाहट को बढावा दे रहे हैं। भला  ये अजीबोगरीब विकास हम में कौन सा सुख- शांति  और  सूकून देगी ? क्या यही राष्ट्र निर्माण है ? यदि यही हाल रहा , तब समरस और समृद्धशाली भारत वर्ष की परिकल्पना कैसे साकार होन्गे? इन सबका समाधान तलाशना चाहिए।

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