Monday, December 28, 2020

भंडारपुरी गुरुद्वारा का जीर्णोद्धार

#anilbtapahari 

।।सतनाम पंथ का विश्व प्रसिद्ध मोती महल गुरुद्वारा भंडारपुरी ।।

    इस भव्य स्मारक को गुरुघासीदास मंदिर के नाम से भी  जाने जाते हैं। इसे जीर्णोद्धार / नव निर्माण के नाम पर  तीन दशक पूर्व ढहा दिए गये हैं। वहाँ केवल ढाचा मात्र है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि  पुरी एक पीढ़ी इस गौरवशाली दृश्यांकन व दृष्टान्त से वंचित हैं । जब देश भर में महत्वपूर्ण स्मारकों का जीर्णोद्धार व अनेक नव आस्था के नवनिर्माण जारी हैं। तब इसके लिए 
 कुछ भी पहल या हलचल न होना बेहद चिन्तनीय हैं।  
    देश भर के लाखों- करोड़ों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र इस ऐतिहासिक ईमारत कब अपनी पूर्व स्वरुप में स्थापित होगा? इसका उत्तर संभवतः किसी के पास नहीं हैं। 
               ज्ञात हो कि इसका निर्माण १८२०-३० के बीच गुरुघासीदास के निर्देशन में राजा गुरुबालकदास ने एक दृष्टान्त के रुप में करवाया था ताकि इनके अवलोकन मात्र से सतनाम धर्म संस्कृति की जानकारी जन साधारण को हो सके।  यहाँ से ही पुरे छत्तीसगढ़ और उनके बाहर सतनाम पंथ का प्रचार -प्रसार हुआ। देश के कोने -कोने से श्रद्धालु यहाँ आते और मत्था टेक कर अपनी धार्मिक भावनाओं का इजहार करते थे ।अनुपम ज्ञान प्राप्त कर कृतार्थ होते थे। दूर से दर्शन मात्र से गुरु उपदेशना का भावबोध होता था।  शिखर के चारों कोने पर तीन बंदर और गरजते हुए शेर का शिल्पांकन से युक्त  चौखंडा महल का नीचे भाग तलघर था। संपूर्ण प्रखंड वास्तु व  काष्ठ कला की अनुपम कारीगरी रही हैं । यह मानव जीवन के चारो अवस्था का शानदार व्याख्या था।पुरातत्त्व की दृष्टिकोण से अतिशय महत्वपूर्ण इस ईमारत का राजनैतिक उठापटक ,शासन -प्रशासन की अनदेखी और उचित  प्रबंधन के अभाव में यह जमींदोज हो गया जो कि  अत्यन्त दयनीय व दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति हैं। 
           छत्तीसगढ़ी संस्कृति की अस्मिता और ‌पुरे विश्व के मानव समाज को मानवता का संदेश देने वाली इस भव्य ऐतिहासिक  ईमारत की हुबहु प्रतिरुप में निर्माण अत्यावश्यक है।   
                इस पावन कार्य हेतु  गुरुदर्शन मेला  मे लाखों दर्शनार्थियों की उपस्थिति में प्रबंधन मंडल की ओर से उचित व सार्थक पहल करते हुए नव निर्माण की घोषणा होनी चाहिए।  खास तौर पर अनेक सामाजिक व धार्मिक संगठन है जो सतनाम धर्म संस्कृति के पैरोकार समझते हैं उन्हे चाहिए कि केवल जनप्रतिनिधी एंव गुरुवंशज ही उनके लिए उत्तरदायी नहीं है बल्कि उनके साथ साथ जन समर्थन व सहयोग  कैसे एकजुट हो ? इन पर गंभीरतापूर्वक चिंतन मनन व सकरात्मक  कार्य करें।
         जय सतनाम 
               
          -डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Wednesday, December 16, 2020

काव्य प्रयोजन

मंय काबर लिखथंव ?

लिखत पढ़त मंहु हर आनमन कस अपन काव्य प्रयोजन ल फरिया के 2007 के मोर किताब के छपवा तको डरे रहेंव -

अर्थ नहीं धर्म नहीं 
आत्म प्रशंसा मेरी
नज़र में व्यर्थ सही
जो सच है उसे ढूंढने 
और कहने आया हूँ  
सोये रहोगे कब तक 
तुम्हें जगाने आया हूँ

‌फेर अब जाके पता चलिस 

कोनो जागय त 
झन  जागय 
फेर अपन ल 
जगाय के जुगत सेती 
लिखथंव -पढथंव
ताकि मय  सोय  
झन भुलाव रहंव...

Friday, December 11, 2020

गुरुबालकदास और वीर नारायन सिंह

छत्तीसगढ़ की अस्मिता और स्वाभिमान का प्रतीक   बालसखा द्वय - "वीर नारायन सिंह एंव राजा गुरु बालकदास" 

        म. प्र. के समय छत्तीसगढ़ राजनैतिक शक्ति के केन्द्र थे। पर विकास के नाम पर शोषित रहा है। सच कहें तो यह  उपनिवेश परिक्षेत्र जैसा ही रहा है। 
   90 विधायकों वाली यह क्षेत्र( अब राज्य )और उनके नेतृत्व बेहद प्रभावशाली रहा है। फलस्वरुप यहाँ से प्रथम सहित  अधिकांश  मुख्यमंत्री बने। क्योंकि अनु जाति /जनजाति के एकमुश्त ४० से ऊपर  विधायकों का समवेत समर्थन मिलता रहा। जो शेष म प्र के नेताओं के ऊपर भारी पड़ता था। उसका प्रत्यक्ष लाभ मिला ।पर दीप तले अंधेरा के भांति यह अंचल विकास से कोसों दूर रहे खासकर सांस्कृतिक पहचान भी शैन शैन छीण होते चले गये। पाठ्यक्रमों में भी यहाँ की इतिहास कला व सांस्कृतिक प्रतिमानों को स्थान नहीं मिला फलस्वरुप यहाँ की बौद्धिक संपदा भाषाई विकास  भी अपेक्षाकृत गौण होने लगा ।
             बावजूद यहाँ के समकालीन स्थानीय  नेतृत्व अनु जाति /जनजाति के नायकों को प्रतिष्ठित करने में कभी रुची नहीं लिए न इन वर्गों को गंभीरतापूर्वक लिए।
फलस्वरुप छत्तीसगढ़ से बाहर  म प्र का जो नेतृत्व हुआ वे जरुर दोनो समुदाय के नायकों को प्रतिष्ठित कर इन समुदाय को मुख्यधारा में लाने का उत्कृष्ट  कार्य किया।
       आजादी के बाद लगभग 40 सालों से उपेक्षित व जमींदोंज करने पर तुले  दो महानायक गुरुघासीदास और वीर नारायन सिंह को 80 के दशक में विध्यांचल परिक्षेत्र के  मुख्यमंत्री  कुंवर अर्जुन सिंह और उनके विश्वस्त इन वर्गों  मंत्रीमंडल के सदस्य  झुमुकलाल भेडिया -अरविंद नेताम  विजय गुरु ,बंशीलाल धृतलहरे और अजीत जोगी    जैसे लोगों के  अथक प्रयास से छत्तीसगढ़ की धरा में दोनो महामानव को सही सम्मान प्राप्त हो सका ।  उच्च स्तरीय नेता गण 18 दिसंबर जयंती में व्यस्त रहते और दूसरे दिन 19 दिसंबर को वीर नारायण सिंह के कार्यक्रम रहते। इस तरह दो दिवसीय  भव्यतम आयोजनों से एक वातावरण बना। इसी आयोजनों से  पृथक छत्तीसगढ़ की बातें होना आरम्भ हुआ।
    विश्वविद्यालय बांध जैसे बड़ी  प्रतिष्ठानों का नामकरण, जयंती पर  सार्वजनिक  अवकाश  और सामाजिक धार्मिक कार्यों में सहभागिता के कारण सही अर्थों में छत्तीसगढ़ी पना का अहसास जनमानस में गहराई से पनपा।
    पृथक छत्तीसगढ़ आन्दोलन के पृष्ठभूमि में भी गुरुघासीदास अभिमंत्रित वीर नारायन सिंह व राजा गुरु बालकदास के प्रदेय आन्दोलन और शहादत ही प्रमुख कारक रहें हैं। 
             इनके साथ साथ राजिम माता , कबीर पंथी धर्मदास पुत्र  चुरामणी नाम साहब , माता कर्मा , गुण्डाधुर , पं सुन्दरलाल शर्मा ,गुरुअगमदास , खुबचंद बघेल मिनीमाता मंत्री नकूल ढीढी , कंगलामांझी , प्रवीणचंद भंजदेव जैसे ऐतिहासिक महापुरुष हुए जो छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान व अस्मिता प्रतिष्ठित करने के प्रेरणा पुंज रहे हैं। वर्तमान में तेजी से विकसित समृद्धशाली छत्तीसगढ़ अप‌ने इ‌न सपूतों को पाकर  सदैव धन्य रहेन्गे।    
                जय छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ की अस्मिता और स्वाभिमान का प्रतीक   बालसखा द्वय - "वीर नारायन सिंह एंव राजा गुरु बालकदास" 

        म. प्र. के समय छत्तीसगढ़ राजनैतिक शक्ति के केन्द्र थे। पर विकास के नाम पर शोषित रहा है। सच कहें तो यह  उपनिवेश परिक्षेत्र जैसा ही रहा है। 
   90 विधायकों वाली यह क्षेत्र( अब राज्य )और उनके नेतृत्व बेहद प्रभावशाली रहा है। फलस्वरुप यहाँ से प्रथम सहित  अधिकांश  मुख्यमंत्री बने। क्योंकि अनु जाति /जनजाति के एकमुश्त ४० से ऊपर  विधायकों का समवेत समर्थन मिलता रहा। जो शेष म प्र के नेताओं के ऊपर भारी पड़ता था। उसका प्रत्यक्ष लाभ मिला ।पर दीप तले अंधेरा के भांति यह अंचल विकास से कोसों दूर रहे खासकर सांस्कृतिक पहचान भी शैन शैन छीण होते चले गये। पाठ्यक्रमों में भी यहाँ की इतिहास कला व सांस्कृतिक प्रतिमानों को स्थान नहीं मिला फलस्वरुप यहाँ की बौद्धिक संपदा भाषाई विकास  भी अपेक्षाकृत गौण होने लगा ।
             बावजूद यहाँ के समकालीन स्थानीय  नेतृत्व अनु जाति /जनजाति के नायकों को प्रतिष्ठित करने में कभी रुची नहीं लिए न इन वर्गों को गंभीरतापूर्वक लिए।
फलस्वरुप छत्तीसगढ़ से बाहर  म प्र का जो नेतृत्व हुआ वे जरुर दोनो समुदाय के नायकों को प्रतिष्ठित कर इन समुदाय को मुख्यधारा में लाने का उत्कृष्ट  कार्य किया।
       आजादी के बाद लगभग 40 सालों से उपेक्षित व जमींदोंज करने पर तुले  दो महानायक गुरुघासीदास और वीर नारायन सिंह को 80 के दशक में विध्यांचल परिक्षेत्र के  मुख्यमंत्री  कुंवर अर्जुन सिंह और उनके विश्वस्त इन वर्गों  मंत्रीमंडल के सदस्य  झुमुकलाल भेडिया -अरविंद नेताम  विजय गुरु ,बंशीलाल धृतलहरे और अजीत जोगी    जैसे लोगों के  अथक प्रयास से छत्तीसगढ़ की धरा में दोनो महामानव को सही सम्मान प्राप्त हो सका ।  उच्च स्तरीय नेता गण 18 दिसंबर जयंती में व्यस्त रहते और दूसरे दिन 19 दिसंबर को वीर नारायण सिंह के कार्यक्रम रहते। इस तरह दो दिवसीय  भव्यतम आयोजनों से एक वातावरण बना। इसी आयोजनों से  पृथक छत्तीसगढ़ की बातें होना आरम्भ हुआ।
    विश्वविद्यालय बांध जैसे बड़ी  प्रतिष्ठानों का नामकरण, जयंती पर  सार्वजनिक  अवकाश  और सामाजिक धार्मिक कार्यों में सहभागिता के कारण सही अर्थों में छत्तीसगढ़ी पना का अहसास जनमानस में गहराई से पनपा।
    पृथक छत्तीसगढ़ आन्दोलन के पृष्ठभूमि में भी गुरुघासीदास अभिमंत्रित वीर नारायन सिंह व राजा गुरु बालकदास के प्रदेय आन्दोलन और शहादत ही प्रमुख कारक रहें हैं। 
             इनके साथ साथ राजिम माता , कबीर पंथी धर्मदास पुत्र  चुरामणी नाम साहब , माता कर्मा , गुण्डाधुर , पं सुन्दरलाल शर्मा ,गुरुअगमदास , खुबचंद बघेल मिनीमाता मंत्री नकूल ढीढी , कंगलामांझी , प्रवीणचंद भंजदेव जैसे ऐतिहासिक महापुरुष हुए जो छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान व अस्मिता प्रतिष्ठित करने के प्रेरणा पुंज रहे हैं। वर्तमान में तेजी से विकसित समृद्धशाली छत्तीसगढ़ अप‌ने इ‌न सपूतों को पाकर  सदैव धन्य रहेन्गे।    
                जय छत्तीसगढ़

Wednesday, December 9, 2020

हमरो पुरखौती डेहरी ...

।।पुरखौती डेहरी ।।

हमरों पुरखौती डेहरी 
जुनवानी के घर भीतरी 
जतने पोटारे नतनिन नाती 
खेलय संग दादा -दादी 
कुलकत मन मगन भारी 
हमरों पुरखौती डेहरी 
कोठा डोला कुआं बारी 
रंग रंग फर फूल तरकारी 
सांझ बिहान गाय गोरु के रद्दा 
सकलाए माई पिला सुद्धा 
खेलय खावय नाचय कुदय 
मगन मन सबके खुशी अमावय 
घर परवार सब सुखी रहय 
अइसन साहेब से असीस मिलय 
मंगल गान जैतखाम के आरती 
आए हवय बेरा सुघ्घर ममहाती 
राहय सबर दिन अछाहित  
सुख सम्पत्ति फल  पावे मनवांछित 



 

कोरोना के संग जीना - मरना

।।कोरोना के संग जीना ।।

बात कुछ भी नहीं हैं पर यूं ही बात का बतड़ंग तो होते ही रहते हैं।
हमारी विविधतापूर्ण संस्कृति में जहां चार बर्तन रहन्गे, खड़खडाएन्गे ही ।अब यह आपके रेस्तराँ तो नहीं जहां फाइबर का बर्तन हो ,एक के ऊपर एक सटा हो पर कोई शोर- गुल नहीं बल्कि  निस्तब्धता रहें। और तो और  चुपचाप निर्वाह चलता रहें।
    आजकल लोग कांसा -पीतल तांबे ,स्टैनलैस स्टील रहे ही कहां प्लास्टिक व फाइबर के मानिंद होते जा रहे हैं।  युज एंड थ्रो  काम के बाद व्यर्थ ।
  नहीं तो पहले जिंदा हाथी के बाद मृत हाथी जैसे  बेशकीमती हो जाया करते थे वैसे हमारे यहाँ आदमी मरकर देवता ही हो जाते हैं।  इसलिए साधारण व्यक्ति को भी ब्रम्हलीन ,स्वर्गवासी ,सतलोकी कहकर सम्मानीत करते हैं। यदि वह विशिष्ट हो तो उसे अमर ही कर देते हैं। धातु का यही फायदा हैं। उसे गला- पिधला कर जो स्वरुप ढाल दो।पर दोने पत्तल टाइप प्लेटों को क्या करेन्गे?
    बहरहाल जब बातें  चली तो बता दूं। आज बेहद गर्मी हैं पीने का पानी तक  थर्मस नुमा बोतल में शाम तक पीने योग्य नहीं रहता। तो बाकी का क्या बिसात ।हां रोटिया और सब्जी रात की रहे तो दोपहर लंच तक लंच बाक्स में रखे ही सिंका जाता हैं ,गरमा- गरम ।
  तो इस तरह ताजी गरम  खाना और बायल पानी का लुफ्त भरी दोपहरी में पसीने से तर -बतर ले रहे हैं। 
        जब से वह मायका गई अकेले सुबह से घुसे रहो किचन में जली -अधजली जो भी बना जल्दबाजी ठूस- ठास कर जोर जार कर भागते आफिस आयो और ये डाय‌न कोरोना के चलते सेट्रल एसी और कूलर न चलाने का फरमान से गरम पंखे के थपेडे का सामना जैसलमेर की गर्म हवाओं जैसा अनुभव करते शासकीय दायित्व निर्वहन में मगन रहों। शाम घर जाते फिर गृहस्थी की घानी में जुत जाओ कोल्हू की तरह । मोबाइल में मगन बेटों से पानी मांगकर देख लो ! फौरन फिल्मी डायलाग सुनने मिलेगा - इस घर का रामु काका मै हू क्या ?
तो भैय्ये हमीं बन जाते हैं । आखिर सेवा ही सत्कार और राष्ट्र प्रेम हैं।  

बहरहाल आजकल राष्ट्र प्रेम यही समझे जाने लगे हैं कि जो शासन प्रशासन का आदेश है चुपचाप मान लो ।कही कुछ अवांछनीय लगा और टीप -टिप्पणियां कहे तो सीधा देशद्रोही ठहरा दिए जाएन्गे ।संकट काल हैं कुछ भी संकट आ धिरेन्गे।  अनचाहे मेहमान की तरह ।

   आजकल ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य का बुरा हाल हैं, इसलिए बीमार लोग शहरों में इलाज कराने आते हैं। और दूर दराज से रिश्ते निकाल आ धमकते हैं।
गृहलक्ष्मी का मायके का हुआ तो शुक्र है वह जो भी रहेगा  ,(काला कु...नहीं कह सकता नहीं तो वाणी दोष लगेगा ।
  खैर !ग्रामीण परिवेश का आदमी ले- दे कर कर्ज से एक दो कमरे शहर में बेहतर भविष्य के लिए बनवा लिए तो समझो कि रिश्तेदारों के लिए सराय हो गये।ऊपर से ससम्मान व्यवहार अलग से ।यदि खाने- पीने और व्यवहार व सेवा सत्कार आदि  में कही कुछ  कमी या खोट मिले तो आपका खैर नहीं सारी बिरादरी में नाक कटना तय हैं ।   परिवार वालों को शहर बसने शौक नहीं पालना चाहिए । यदि बस भी गये तो वह कहावत सुबह ए शाम आरती जैसा कान में गुंजते रहते हैं-" गीदड़ की मौत आती हैं तो वह शहर की ओर भागते हैं।"
   हां स्मृत हुआ कि कोरोना से बचने लोग सुरक्षित गांव तलाश रहे हैं। जो वर्षो गांव छोड़ चूके थे ओ लोग अपने जीर्ण -शीर्ण घर को मरम्मत करवा रहे हैं। और तो और जहां अदद बाथ रुम नहीं था वहाँ अब   कमोड टायलेट तक लगवा रहे हैं। 
   क्योकि शहर खासकर राजधानी जहां एम्स है और सारी दुनिया देख रही हैं कि यहाँ डाक्टर नहीं साक्षात् ईश्वर हैं। एक भी का एंट्री यहाँ से नहीं हुआ।सो बड़ी संख्या में मृत्यु दूत कोरोनो के नाम पर भेजे जा रहे हैं। जहां २०  मार्च से  २० म ई तक ६० ही थे आज २९ तक ३६० लोगों की बुकिंग हो गये हैं।
      अब महज ९-१० दिन में यह हाल है तो अब तीन माह बाद रोजी रोजगार से वंचित लोगों के जान से अधिक जहान प्यारा हो गया है। फलस्वरुप सप्ताह में ६ दिन  सुबह 7 से ,शाम 7 तक हर तरह की दूकाने खुलेन्गे ।

  अब श्लोगन बदल दिए गये हैं। बल्कि हर कोई को कंठस्थ करा दिए गये हैं कि" कोरोना के संग जीना हैं। "
       यार ये तो ठीक हैं पर तेरे संग जीना तेरे संग मरना की तर्ज पर क्यों इन्हे प्रचारित नहीं करते ?
"क्योंकि हम जैसे मोटे बुद्धि वालों को जीना तब तक समझ नहीं आते जब तक कोई सामने मर नहीं जाते ।"  सच में जब पुलिसिया ठुकाई नहीं होती तो कर्फ्यू यहाँ अकारण सक्सेस नहीं होता।इसलिए जब तक निराशा और खौप  का अंधेरा नहीं दिखाओं तब तक लोग "आशा की किरण" भरी टार्च खरीदते नहीं ।हमारे अग्रज परसाई जी ने इसे वर्षो हमें लिखित में बता दिए थे।
      तो जो है सो हैं अब भयानक संकट के कारण  जो दैनंदिनी में बदलाव आया और रेहड़ी, फेरी वाले रोजगार विहिन हुए उन्हे बचाने न चाहकर लाकडाउन में ढील दिए जा रहे हैं। सच तो है लोग घरों में भूखे न मरे इसलिए कमा कूद कर  खाते -पीते  सड़क पर मरे  आखिर मृत्यु भय से इस तरह उबरना तो हो ही जाएगा न ? यही निर्भय होना तो शास्त्र सम्मत वानप्रस्थ आश्रम का पुरुषार्थ हहै। निर्भय जीवन ...भले संक्रमित हो जाय। उनके इलाज कर लिए जाएन्गे  अन्यथा अस्पताल वाले  बैठे ठाले बाकी आफिस वालों की तरह लाकडाउन का मज़ा लेन्गे क्या ? ऐसा हो नही सकता ।  भले बचे न बचे पर बचाने का प्रयास चलता रहें। उम्मीद न छीजें।
     इस तरह हम लोग  अब इन तीन महिनों में आग लगने के बाद कुछ कुए खोद लिए  हैं।  और वेंटी लेटर सेनेटाइजर व माक्स आ गये।अन्यथा बैपारी भाऊ लोग तो शुरु को करोड़ो कमा दबा लिए ।
   अब देखो न उस दिन नमक नहीं कहके १० रु की  नमक को १०० में बेच दिए ।यह है हमारी कारोबारी जगत का कमाल।
बिहारी ने बकारी देत इन ब्यापारी की गुण का चित्रण किस खूबसूरती से किया हैं-
खुली अलक छूटी परत है बढ गये अधिक उदोतू।
बंक बकारी देत ज्यों दाम रुपैया होतु।।
  तो सारे अर्थशास्त्रियों को इसका मरम समझना चाहिए। 

  बहरहाल हमारे लिक्विड गोल्ड धार्मिक स्थलों के हार्ड गोल्ड से अधिक उपयोगी हुआ और बंद पड़ी इंजन पटरी में आ आए ।शराब अपने साथ बस रेल वायुयान तक चला दिए ...सुनने में आ रहा है कि  हमारे चरौटा भाजी की डिमांड अमेरिका में हो रहे हैं। सोमारु पुछ रहे थे कि भईया हमर मौहा लांदा बासी चटनी ल तको ले जाय हमन  कोरोना ल मतौना देके मार गिराबोन।
     ये दे उड़ीसा के पुजारी हर शास्त्रीय पद्धति ले  नरबलि देके कोरोना ल कसरहा कर दिस । अब परंपरावादी मन हुकरत भुकरत कोरोना हमर काय कर लिहि कहिके अटियाय ल धर लिस ।सिरतो कहत हव आचेच ले ४ था लाकडाउन ह  खतम हो गय। यानि शिथिल करके सामान्य धोषित कर दिए जा रहे हैं। जब एक केश था हम तीन महिने कैद थे घरों में अब ३६० केश है तो उनके ही तोड़ ३६० दिन छुट्टा घुमें फिरे खाए खेले कुदे नाचे ... कुछ दुरिया बनाकर मुखटोप लगाकर क्योकि अब कोरोना के संग जीना हैं।  जैसे जंगल में विषैले और हिंसक पशु पक्षी जीव जन्तु हैं उनके संग जीने और रहने के अभ्यस्त हमारे आदिवासियों की तरह ही निर्भय कोरोना के संग रहना होगा। हमें लगता है सवा अरब लोगों को महज ३ महिने में कोरोना के संग जी‌ना सीखा दिए गये हैं। ऐसे महान सिखावनहारों को नमन ।
    जय जय ...

-डॉ. अनिल भतपहरी 

Friday, December 4, 2020

छत्तीसगढ़ी राजभाषा उत्सव

*छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस उत्सव (छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर)*
----------------- ( महेन्द्र बघेल)
छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर मा छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर के तरफ ले पांच दिवसीय ( 26 नवम्बर ले 30 नवम्बर तक) साहित्यिक कार्यक्रम के आयोजन करे गीस। जिहां 26 नवंबर प्रथम दिवस मा *छत्तीसगढ़ के पुरोधा साहित्यकार के साहित्यिक अवदान* विषय मा आलेख आमंत्रित करे गे रहिस। ये विषय मा हमर पुरखा साहित्यकार मनके साहित्यिक अवदान ला रेखांकित करत बुधियार साहित्यकार मनके द्वारा सुग्घर जीवन वृतांत पटल मा प्रस्तुत करे गीस। ये पटल के एडमिन श्री अरूण कुमार निगम जी हर जनकवि कोदू राम दलित जी के उपर, दीदी सरला शर्मा हर डाॅ. पालेश्वर शर्मा के उपर, श्री गया प्रसाद साहू हर गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया के ऊपर, श्री अजय अमृतांशु हर सुशील यदु जी उपर, श्री ओमप्रकाश साहू हर पवन दीवान अउ विसंभर यादव मरहा के ऊपर अपन आलेख पटल मा रखिन।
हमर पुरखा साहित्यकार मनके वयक्तित्व अउ कृतित्व ला पढ़के अब्बड़ अकन नवा जानकारी मिलिस , छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रति उनकर समर्पण अउ संघर्ष हा नवा कलमकार मन बर प्रेरणास्पद ही नहीं अपितु अनुकरणीय भी हवय।
------
पांच दिवसीय आयोजन के क्रम मा दूसरैया दिन *छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के औचित्य* विषय उपर केन्द्रित मौलिक विचार ला पटल मा प्रस्तुत करे के अवसर प्रदान करे गीस।
ये विषय मा चर्चा होय के पहिली, पाछू दिन के मरहा जी वाले आलेख ला कोड करत श्री अजय अमृतांशु हर अपन संस्मरण साझा करिन।
तेकर बाद मा विषय ऊपर सबले पहिली दीदी सरला शर्मा के विचार आइस, ओमन छत्तीसगढ़ी साहित्य लेखन अउ स्कूली पाठ्यक्रम बर विस्तार पूर्वक चर्चा करत अपन सारगर्भित बात रखिन। अगले क्रम मा श्री चोवा राम वर्मा हर छत्तीसगढ़ी बर पुरोधा मन के संघर्ष अउ वर्तमान मा छत्तीसगढ़ी के दशा दिशा के ऊपर अपन विचार रखिन। इही बीच दीदी सरला शर्मा के विचार ला कोड करत तीन साहित्यकार मन के अभिमत पढ़े बर मिलिस।उन मा सर्वप्रथम डॉ विनोद वर्मा जी के समीक्षात्मक टिप्पणी आईस, उन मन कहिन छत्तीसगढ़ी के सुग्घर  भविष्य बर ये भाषा के मानकीकरण के अत्यंत आवश्यकता हवय। तत्पश्चात श्री अशोक तिवारी हर साहित्यकार मन के सतत संघर्ष अउ शासकीय उदासीनता ऊपर चिंता व्यक्त करिन। ओखर बाद श्री रामेश्वर गुप्ता हर अंग्रेजी स्कूल खुले ले छत्तीसगढ़ी कहीं नेपथ्य मा झन चले जाए कहिके अपन विचार रखिन। कुछ समय पश्चात आबंटित विषय मा श्री अनुज छत्तीसगढ़िया के विचार आईस, ओमन सकारात्मक भाव ले छत्तीसगढ़ी भाखा ल अपनाय बर कहिन।
तत्पश्चात डाॅ. विनोद वर्मा के टिप्पणी ऊपर प्रति टिप्पणी करत श्री रामनाथ साहू हर राजकाज अउ शिक्षा-दीक्षा के भाषा ऊपर अपन चिंता जाहिर करिन। विषय उपर श्री बल्दाऊ राम साहू अपन विचार व्यक्त करत कहिन कि छत्तीसगढ़ी मा अभी तक कोन कक्षा मा का पढ़ाय जाय उही च कार्ययोजना के इहाॅं लगभग अभाव हे।श्री पोखन लाल जायसवाल हर छत्तीसगढ़ी ला रोजगार मूलक भाषा बनाएं बर जोर दिन। श्री बलराम चंद्राकर हर राजभाषा आयोग के ऊपर प्रश्नचिन्ह उठावत कहिन कि येमन काबर उदासीन हवॅंय। अंत मा एडमिन श्री अरुण कुमार निगम हर अपन बात रखत कहिन कि सरकार संग हम सब ला छत्तीसगढ़ी भाषा बर आत्म समीक्षा और आत्म चिंतन के जरूरत हे।
येकरे साथ दूसरैया दिन के विषय काल के समापन होइस।
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आयोजन के तिसरैया दिन यानी छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस उत्सव 28 नवंबर के दिन *अवइया समय के छत्तीसगढ़ी* विषय ऊपर विचार आमंत्रित करे गिस । ये दिन पटल के लगभग सबो सक्रिय सदस्य मन बिहनिया च ले छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर मा बधाई अउ शुभकामना संदेश लगातार पठोवत रहिन। आबंटित विषय मा दो प्रबुद्ध साहित्यकार मन के विचार आइस सबसे पहली दीदी सरला शर्मा छत्तीसगढ़ी के व्याकरण पक्ष ला पोठ करे बर शानदार ढंग ले अपन विचार पटल मा रखत कहिन कि भाषा हर परिवर्तन शील सामाजिक सम्पत्ति आय तब छत्तीसगढ़ी ला पाठ्यक्रम मा 12. 72 % से  70.12 % तक पहुंचाना हमर लक्ष्य होना चाही। अभिव्यक्ति के अगला क्रम मा श्री सत्यधर बांधे हर अपन सुग्घर विचार रखिन।
 आज छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस उत्सव होय के कारण पूरक सामग्री के रूप मा श्री अजय अमृतांशु के द्वारा छत्तीसगढ़ी ला राज काज के भाषा बनाय बर अपन साहित्यिक संस्था अभिव्यक्ति डहर ले माननीय मुख्यमंत्री जी ला पठोय गय पत्र के जानकारी, वैभव प्रकाशन रायपुर के सहयोग ले आनलाइन  गोठबात के नेवता संग गुगल मीट के लिंक अउ छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग डहर ले कार्यक्रम के नेवता संग दीदी सुधा वर्मा ल सम्मानित करे संबंधित पत्र ला पटल मा साझा करे गिस।
येकरे संग तिसरइया दिन के आयोजन मा विराम लगिस।
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आयोजन के रूपरेखा अनुसार चौथइया दिन ला *तीसरइया दिन के आयोजन के रिपोर्टिंग* बर आरक्षित रखे गय रहिस।
सौभाग्य से छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के दिन साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय ई संगोष्ठी मा भाग लेहे के अवसर मिलिस।
दिनाॅंक 28 नवंबर 2020 के बिहनिया 11 बजे ले *छत्तीसगढ़ी, भाषा, संस्कृति अउ लोक साहित्य* विषय मा आयोजित ई संगोष्ठी हर माननीय कुलपति डॉ. केशरी लाल वर्मा के उपस्थिति मा पहुना डॉ. चितरंजन कर भाषाविद एवं साहित्यकार, डॉ. राजन यादव लोक साहित्य के मर्मज्ञ, डॉ. अनिल भतपहरी लोक साहित्यकार एवं श्री रामनाथ साहू उपन्यासकार मन के पहुनाई मा प्रारम्भ होइस।
सबले पहिली डॉ. स्मिता शर्मा हर कार्यक्रम के शुभारंभ विश्वविद्यालय के कुल गीत *सत्य शिव सुंदर से अभिमंत्रित सुहावन*, *ज्ञान का विज्ञान का यह तीर्थ पावन* ले करिन। फेर दीपमाला शर्मा व साथी मन छत्तीसगढ़ राज गीत *जै हो जै हो छत्तीसगढ़ मैया*  ले प्रारंभ करके *जतन करव भुइयां के संगी जतन करव,बही बना दिये रे बुंदेला, ओ गाड़ी वाले..पता ले जा रे, घोड़ा रोवय घोड़ेसारे मा* तक अपन सांगीतिक प्रस्तुति रखिन।
पहिली वक्ता के रूप मा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ केशरी लाल वर्मा हर कहिन कि छत्तीसगढ़ी के मान सम्मान अउ प्रगति हर ख़ुद के मान सम्मान अउ प्रगति आय। संस्कृति अउ लोक साहित्य के विकास कइसे होय येकर चर्चा के साथ, आगे येकर पठन पाठन के चर्चा भी आवश्यक हे।
  डाॅ. शैल शर्मा कार्यक्रम के संयोजक हर अपन वक्तव्य मा कहिन कि छत्तीसगढ़ मा बंधुत्व, एकता अउ प्रेम के अद्भुत परम्परा हर सामाजिक एकता के रीढ़ आय।
श्री रामनाथ साहू जी उपन्यासकार हर  *हीरू के कहनी* से लेकर *भुइया* उपन्यास के यात्रा वृत्तांत बतावत कहिन कि समग्र राष्ट्रीय चेतना से छत्तीसगढ़ हा अलग नइहे।
डॉ. अनिल भतपहरी हर छत्तीसगढ़ी के प्राचीन अउ अर्वाचीन स्वरूप के उपर चर्चा करत छत्तीसगढ़ ला आर्य ,अनार्य अउ द्रविड़ तीनों संस्कृति के समागम बताइन।
डॉ.राजन यादव लोक साहित्य के मर्मज्ञ हर छत्तीसगढ़ी लोकगीत के विशेषता ला बतावत कहिन कि पूर्व काल मा पर्यावरणीय अउ भौगोलिक अनुभव के फलस्वरूप लोकगीत के माध्यम से समाज ला शिक्षा मिलत‌‌‌ रहिस।अउ आघू कहिन कि आज हमला छत्तीसगढ़ी राजभाषा ला सिरिफ कागज मा नहीं सचमुच के राजभाषा बनाय बर परही।
अंतिम वक्ता के रूप मा भाषाविद डॉ चितरंजन कर हर अपन विचार व्यक्त करिन कि संवैधानिक ढांचा मा शामिल होय ले नहीं ओमा काम करे ले भाषा के गौरव बाढ़ही।ज्ञान अउ भाषा हर एक पन्ना के दू पृष्ठ आय, जेला अपन मातृभाषा नइ आवय ओला कोई भाषा नइ आवय।
ये कार्यक्रम के सह संयोजक डॉ मधुलता बारा हर आभार प्रकट करिन।
कार्यक्रम के सुचारू रूप से संचालन के दायित्व डॉ गिरिजा शंकर गौतम हर निभाइस।
अउ अंत मा भाषा एवं अध्ययनशाला पं रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर के तरफ ले, ई प्रमाण पत्र मिल सके कहिके कार्यक्रम मा शामिल होवइया छात्र, शोधार्थी, शिक्षक अउ साहित्यकार मन ले अपन फीडबैक फार्म ला भरे के अपील करें गइस।
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आयोजन के पांचवा दिन 30 नवंबर 2020 के *ऑनलाइन कवि गोष्ठी*  के कार्यक्रम रखे गिस।

आनलाइन कवि गोष्ठी के शुभारंभ वरिष्ठ कवि गया प्रसाद साहू के सुरमयी सांगीतिक वंदना अउ *तोला बंदव तोला बंदव, तोहिला बंदव* के साथ होइस, ओकर पश्चात क्रमश: मोहन कुमार निषाद लमती (घनाक्षरी) - *भाखा महतारी आय, मान सबो रखलव* , बोधन राम निषाद कवर्धा ( लावणी छंद) - *ये माटी मा हीरा मोती,ये माटी हा चंदन हे*,चोवा राम वर्मा बादल ( गीत) - *मन भीतरी मा जी कहुं घपटे हे अंधियार* , ज्ञानूदास मानिकपुरी कवर्धा ( छप्पय छंद)- *मुचमुच ले मुस्कान,कहर हिरदय मा ढाथे*, दिलीप कुमार वर्मा (छंद पकैया)- *छंद पकैया छंद पकैया,जाड़ा के दिन आगे।* दीदी आशा देशमुख (शक्ति छंद)- *मिंजाई चलत हे,बियारा भरे*, शशिभूषण सनेही (मनहरण घनाक्षरी)- *धरती ये माता मोर,भाग्य के विधाता मोर* , अजय अमृतांशु भाटापारा (बरवै छंद)- *येती वेती कचरा झन बगराव,कचरा वाले गाड़ी आगे जाव* ,अनुज यादव कोरबा(कविता)- *मॅंय भारत मां के बेटा*, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर ( लावणी छंद)- *अब का तीरथ बरत मॅंय जाहूॅं,बाॅंचे ये जिनगानी मा* , दीदी शोभा मोहन श्रीवास्तव (अंतस के गीत)- *गीत मोर मनखे के पीरा के सरेखा* , जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया ( गीत)- *धान लू मिंज के मॅंय,करजा छूट देहूॅं लाला*, जगदीश हीरा साहू भाटापारा (दोहा)- *छत्तीसगढ़िया मॅंय हरॅंव,बोल लगे ना लाज*, ओमप्रकाश साहू अंकुर सुरंगी (कविता)- *छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया*, एडमिन श्री अरूण कुमार निगम (घनाक्षरी छंद)- *शरद ला बिदा देके आय हे हेमंत रितु*, राजेश कुमार निषाद चपरीद (दोहा)- *महॅंगू के तॅंय लाल गा , बाबा घासीदास* बल्दाऊ राम साहू (गीत)-  *बड़े बिहनिया हासत कुलकत,सुरूज अब उगइया हे*  सूर्यकांत गुप्ता दुर्ग (गीतिका)- *मान हिंदी के हवय जस मोर भाखा के घलव* मनीराम साहू मितान कचलोन (घनाक्षरी)- *खाड़ा मास हाड़ा काट, मूड़ गाड़ा गाड़ा काट* , दीदी सुधा वर्मा ( कविता)- *नोनी तॅंय चिरई कस झन उड़िया*, रामनाथ साहू डभरा जाॅंजगीर ( नव ददरिया गीत)- *मोर पिंयर सैंया पार लगा दे मोर नैंया*, दीदी बसंती वर्मा बिलासपुर (अमृतध्वनि छंद)- *मन के पीरा ला का कहॅंव ,आय बिदा के बेर* , पोखन जायसवाल (मतगयंद सवैया)- *बाल सखा सब संग धरे अउ हाॅंसत कूदत आवय टोली* , महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव (गीतिका छंद)- *शोध होवत रात दिन जी,चाॅंद के अभियान बर*, दीदी केवरा यदु राजीम (ताटंक छंद)- *राजा दशरथ के ॲंगना मा खेले चारों भैया जी*, दीदी शशी साहू कोरबा (गीत)- *मउहा झरै, रात भर टुप टुप मउहा झरै*, मिलन मल्हरिया (अमृतध्वनि छंद)- *दुख ला सुख के संग मा,समय बाॅंध के लाय* , दीदी शकुन्तला तरार (मुक्तक)- *आने के दुख ला मिटा के देख लव*  के प्रस्तुति लगातार चलिस।
बुधियार साहित्यकार मन ले आशीर्वाद लेवत ये गोष्ठी मा सबों प्रतिभागी कवि मन समाज के सरोकार ला आवाज देवत अपन अपन बात कहिन।
येकरे साथ छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर के पाॅंच दिवसीय कार्यक्रम के समापन होइस।
*येमा कोई अतिशयोक्ति नइहे कि राज बने के पहली अउ बाद मा हमर पुरखा सियान मन छत्तीसगढ़ी भाखा के विकास अउ विस्तार बर कोई कसर नइ छोड़िन। नवा बुधियार अउ उर्जावान साहित्यकार मनके सकारात्मक योगदान ले आज वो संघर्ष  हर लगातार जारी हे , जे निश्चित रूप से लक्ष्य तक पहुंचे बर हौसला ला बढ़ाथे। तब हम कहि सकथन कि हम सब के साॅंझर मिंझर प्रयास अउ अधिकाधिक उपयोग ले छत्तीसगढ़ी हर कार्यालयीन / राज-काज के भाषा बन के रही।*

महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला राजनांदगांव

बेहद चिन्तनीय

बेहद चिन्तनीय !
देश पूंजीवाद और निजीकरण की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं उसी का यह दुष्प्रभाव हैं कि वर्तमान में चंद लोगों के पास देश की अकूत संपदा एकत्र हो रहे हैं। दर असल यह देश आरंभ से पूंजीवाद के गिरफ्त में रहे हैं। जिसकी लाठी उसकी भैंस यह तो रहा ही हैं। राजतंत्र इसलिए लाठियां सजाकर रखते और भैंस के साथ साथ  लठैत पालते थे।
बीच में अंग्रेज़ी सत्ता आई और भूमि का बन्दोबस्त करके राजा जमींदारों मालगुजारों के साथ  हलवाहों को भी भू स्वामी बनाकर एक सिस्टम दिए फलस्वरुप मध्यम वर्ग का उदय हुआ ।इनकी बड़ी आबादी हैं पर आजादी के बाद यह वोट के रुप में परिवर्तित हो गये । इनकी मत और वोट की सौदागरी के लिए इतना ही हिस्सेदारी दी ग ई कि  बमुश्किल गुजारा कर पा रहे हैं। जबकि कठोर परिश्रम के बावजूद करोड़ो   श्रमिक /निम्न वर्ग के लोगों का जीवन स्तर नारकीय हैं।   
       भारतीय समाज  के एक बड़ा तबका जो उक्त मध्यम वर्ग में वही हालात के मारे  धर्म -कर्म ,पूजा- पाठ में मगन ईश्वरीय कृपा  और "परलोक सुधारने "की चक्कर व चाह में भजन कीर्तन सत्संग प्रवचन सुनते  करते व्यतीत हो जाते हैं । फलस्वरुप न तो भगवान मिलते न अपेक्षित हाल मुकाम हैं। ऐसा लगता हैं कि इन्हे जानबूझकर इनमें उलझाया गया है। 
  भक्ति की मद  में डूबे और उन्मत्त परलोक सुधारने के चक्कर  अपना "इहलोक‌ बिगाड़" रहे  हैं!  
     जिस समुदाय का जितना बड़ा और लंबा धार्मिक आयोजन वह उतना कृपण व दयनीय व मजलूम ।
जैसे बस्तर में 71 दिवसीय रथयात्रा महोत्सव बेचारे केवल रोटी व लंगोटी के लिए संधर्ष रत है आधारभूत सुविधाएँ तो दूर की कौड़ी हैं।
    इसी तरह दो दो नवरात्रि हर महिना व्रत त्योहार उपवास नवधा व क ई दिनो तक की कथा  आयोजन  में सदियां बीत ग ई अबतक देव देवियों की कृपा की बरसात नहीं हुई।
        १५ दिनों तक जयंती  धूम और करोड़ों व्यय पर अपेक्षित मान सम्मान व आधारभूत आवश्यकता के लिए तरसते विराट सतनामी समाज । जिनके एक अदद फैक्ट्री व ५०-१०० लोगों को रोजगार दे सके ऐसा एक भी उद्योग नहीं न कोई प्रतिष्ठान हैं।

          धन्य हैं।

Thursday, December 3, 2020

चौंक चौराहें मोड़ पर ...

चौक चौराहे मोड़ पर ..

रविवार के बावजूद आज चुनावी ड्युटी के चलते आराम हराम हो गया और बोनस स्वरुप  रास्ते में बाल-बाल बचा! 
       हुआ युं कि वीकेन्ड अवकाश के आदत पड़ जाने से  एकाध धंटे बाद नींद खुली ।हड़बहाट में जल्दी निकले क्योकि  निर्वाचन  काल में  नौकरी करना नही बचाना जो पड़ता है। 
    बाहरहाल जैसे चौंक में मोटर साईकिल पहुंची कि स्मृत हुआ मोबाइल घर में छूट गये ... "दुब्बर बर दु असाढ़" जैसे स्थिति एक पहले से लेट दूसरे और भी लेट करने होन्गे !खाना पानी यहां तक परीचित से रुपये मिल भी सकते है पर मोबाइल  नही! और आज डिजिटल युग मे इनके बिना गुजारा मुश्किल ... लत आदि तो नही.. बल्कि पल -पल सुचनाओं के लिए यह आवश्यक है।
      वापस घर की ओर मुड़ना ही हुआ कि चौक में मंदिर के पास  एक घरघराती कार पीछे से टक्कर दे मारी  तिलक लगाए  हाथ में मौली सूत्र बांधे वह शख्स  धार्मिक और जल्दी में लगा .. और हम भी ... कहां-सुनी का समय ही कहा?  जो हुआ सो हुआ ! बस में बैठे मोबाइल के सिवा यदा -कदा ही यात्रियों में आज कल वार्तालाप हो पाते है डेली अप -डाउन वाले तो इनके चलते अब दुआ सलाम तक छोड़ दिए जिसे देखों सम खोए और इसी मे उलझे  है ... हम भी ।सफर काटने का यह नया और सर्वोत्तम तरीका भी तो है।
   अब रेल्वे ,बस स्टेण्ड मे पत्र- पत्रिकाएं की बुक स्टाल नही अपितु मोबाइल चार्जर ,इयर फोन  ,पावर बैंक  सेल्फी स्टीक मेमोरी कार्ड  की दुकानें सजे- धजे है।
      येशुदास की गोरी  तेरा गांव बड़ा प्यारा ... हो या चांद जैसे मुखड़े पे ... कितनी बार सुन लो मन नही अधाते ... और और सुनने का मन करता है ... इसलिए हर बस वाले जिनके पास स्टोरियों सिस्टम है जरुर बज जाते है । क्योकि बस ड्राइव्हर प्राय: मैच्योर ड्राइव्हर है और इस देश के मैच्योर लोग चाहे किसी कम्पनी या शासकीय  आफिस का डायरेक्टर हो या बस कंडक्टर सबको ७०-८० के दशक का फिल्मी गीत ही प्रिय है। हां यदा -कदा लोक गीत गर्मी में बारिश की फुहार की मानिन्द या ठंड मे चुभती -चिरती हवा में गर्म झोंके सा बज उठते है। एक परीचित के ड्राइव्हर को चंदैनी गोंदा के गीत रखने कहा ... पर राजधानी के बस ड्राइव्हर व कंडेक्टर छत्तीसगढिया नही है और डायरेक्टर का तो होने का सवाल पैदा नही होता।  गर भूले भटके हो गये तो छत्तीसगढी गीत गुनगुनाने की भूल मात्र से देहाती हो जाएन्गे। वैसे डायरेक्टर कला प्रेमी हो गये तो प्रशासन कैसे कर पाएन्गे। उन्हे जानबुझ कठोर और चेहरे पर गंभीरता तो लादना है ताकि जीनियस और धीर गंभीर लगते भले घर जाकर वह जो हो जाय।
बहरहाल  ये लोग छत्तीसगढिया सवारी से  उनके गंतव्य के किराया लेने और स्टेशनों के नाम याद कर लिये  पक्के छत्तीसगढ़िया जैसे दाई -माई गोठिया ले पर है यु पी बिहारी  और यहां रोपा बिसाई निंदाई छोड़ सब काम करने में माहिर हैं। यदि इनके भी मसीन आ जाए तो काम करते पर प्रातिंक नजर आएन्गे और चौरे पर तास फेटते माखुर गुटका के पीक थूकते या भट्टी से लड़भडाते आते छत्तीसगढ़िया दिखेन्गे।
   बहर हाल आजकल कठोर अकुशल श्रमिक छत्तीसगढ़िया है और वे केवल लेवर गिरी के लिए बना है जान पड़ते है। दीवाली व चुनाव समीप आने से देश भर के शहरों में राजमिस्त्री लेवर व  ईट भठ्ठे में ईट बनाते परिवार उछाहित झुंड के झुंड बाल- बच्चों सहित लौट रहे है।इनकी भीड़ व आव्रजन-पलायन देखा तो वह मंजर याद आने लगे जब हम कोसरंगी हाईस्कूल में पढ़ रहे थे।तब एक रात्रि खरोरा से आगे पेंड्रावन जलाशय के समीप पाइटेक इंजीनियरिंग  कालेज के पास पर सिमेन्ट से भरा ट्रक और उन पर बैठ कर जीविकोपार्जन हेतु पलायन करते मजदूर सहित  रात्रि में  मुरामोड़ पर उलट गये और४-६  लोग दब कर मर गये व  गंभीर रुप से धायल हो गये । दूसरे दिन  राजदूत से तीन सवारी हम मित्रगण यहां वह मंजर देखने आए ट्रक उलटा पड़ा और सिमेन्ट की बोरियां यत्र- तत्र बिखरे खुन से सने मिले ।लोमहर्षक दृश्य देख हृदय द्रवित हो गये।कुछ दिन बाद वहां मंदिर बन गये हर नवरात्रि व अवसर पर जोत जवारा भजन पूजन चलने लगा  वह शक्ती पीठ जैसे चर्चित होने लगे मनोकामना कलशों की संख्या बढ़ती जा रही है। आज उसी मोड़ पर बस पहुचते ही अचानक जोर से ब्रेक पड़ा । और  खड़े हुए यात्री गण एक दूसरे पर लद भिड़ गये।बैठे हुए लोग सामने सीट से टकराए ... मेरा तो ऊपरी ओठ सामने सीट मे लगे हाथ रखने के हत्थे से टकरा चोटिल हो गये .रुमाल से खून पोंछा ..नीचे गिरे मोबाइल उठाया और  फ्रंट कैमरे से देखा  सूज गये है दर्द से हाल-बेहाल रविवार है और नौकरी बचाना है और लोगों को गंतव्य की ओर जाना है। यह नौबत तब आया जब एक मोटर साईकिल चालक मंदिर के आगे हेंडिल छोड़  हाथ जोडने लगे  व लड़खड़ाकर गिर गये उसे बचाने बस चालक ब्रेक लगाए  ओ गाडी वाला चमत्कार मान और लेट गये ।बस ड्राइव्हर व पीड़ित यात्रियों का समवेत स्वर  उसे गालियों का आशीष देते आगे बढ़ गये ।
     हर गली चौक- चौराहे ,तिराहे मोड़ पर धार्मिक स्थलों की निर्माण और जनमानस की उनपर आस्था , वाहन चालकों का हैंडिल छोड़कर दोनो हाथ से प्रणाम व  पल भर आंखे बंद कर ध्यान भक्ति  कौन सी नवीन भक्ति अराधना की  विधी है!  जिससे अराध्य की कृपा मिलते है? यह जरुर धर्म अध्यात्म व दर्शन साहित्य जगत में अन्वेषण का विषय है।और यातायात विभाग वालों की कैसी रहमों- करम है नमकयह भी विचारणीय है ।
      लोग कहते है कि सड़क किनारे शराब दूकान के कारण दुर्धटनाएं धटती है ,आज हमे लगा वह जो हो पर इन सड़कों के किनारे ,मोड़,चौक- चराहों पर शेष भाग -३ 
लोग कहते है कि सड़क किनारे शराब दूकान के कारण दुर्धटनाएं धटती है ,आज हमे लगा वह जो हो पर इन सड़कों के किनारे ,मोड़,चौक- चराहों पर धार्मिक जगहों के कारण बड़ी -बड़ी दुर्धटनाएं धट रही  वह क्यो लोगों को नजर नही आते ? 
  धार्मिक कार वाले से बच कर बस में बैठ हुए मोटर साइकिल वाले की अन्यय भक्ति से धायल अनिल सच में विवश और बेबश है कि इन सबका क्या किया जाय 
      -डा. अनिल भतपहरी

Tuesday, December 1, 2020

रामनामी प्रथा और उनकी वर्तमान दशा

छत्तीसगढ़ में सतनामियों के बीच सतनाम के जगह रामराम सुमरने की प्रथा १९०० के आसपास शुरु हुआ ।
युं कहे सतनाम जागरण को छत्तीसगढ़ के उत्तर पूर्वी भाग में फैलने से बचाने और हिन्दूत्व विचारधारा को थोपने की  सडयंत्र के तहत हुआ।
यदि यह रामनाम भक्ति वाला मामला होता तो सारे हिन्दू जातियाँ जो परंपरागत राम भक्त हैं। वे लोग भी रामनाम गुदवाते। परन्तु ऐसा एक भी उदाहण नहीं हैं। रामनामियों से छुआछूत व भेदभाव करते हैं। इस तरह बेचारे रामनामी न हिन्दू हुए और न सतनामी ।बल्कि रामनाम और सतनाम के दो पाटन के बीच पीसते रहे हैं। इसलिए यह समाज बेहद पिछड़े व निर्धन लोग हैं। सतनाम‌ से दुराव के बाद  हिदुत्व की दुत्कार से रामराम को ही सतनाम के समकक्ष मानकर  निर्गुण निराकार दर्शन विकसित कर लिए पर भक्ति राम और रामचरित मानस का ही चलने लगा। इस बीच में इन्हें जाति प्रमाण पत्र बनाने और शासन की सुविधाओं का अपेक्षित  लाभ भी नहीं मिल पा रहे थे। 
         गिरौदपुरी के समीप ही शिवरीनारायण के आसपास  ग्रामों से हुआ। गौटिया / मालगुजार  परशुराम भतपहरी जो हमारे ही गोत्रज हैं इनके प्रमुख सूत्रधार रहे हैं।   फलस्वरुप यह परिक्षेत्र सतनाम जागरण से वंचित हो गये ।

     बहरहाल अब रामनामी महज ३०० - ४०० के आसपास ही बच गये हैं। न ई पीढ़ी इस परंपरा से काफी दूर हैं। 
        हिन्दूत्व संरक्षण वर्गों द्वारा इस प्रथा को बढावा देने  इनके प्रमुख लोगों को  रामनामी मेला लगाने सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं।  फलस्वरुप दो बार मेला लगाए जाने लगे हैं।
     विगत कुछ वर्षों से  सतनामी व रामनामी  के एकीकरण के लिए धार्मिक व सांस्कृतिक रुप से प्रयास हुए । मुझे भी उक्त आयोजन में सम्मलित होने का आमंत्रण मिला । रामनामी  आचार्यों से हमारी मेल मुलाकात व संक्षिप्त चर्चाएँ हुई । वे लोग शर्मिंदगी भी प्रकट किए और कुछ तो मरने तक इन्हे न उतार सकने की मजबूरी दशा को व्यक्त किए ।
          एक आयोजन में  प्रमुख मुखिया व आचार्यों ने घोषणा किया  कि एक भतपहरी भारद्वाज के चलागन को दूसरे भतपहरी भारद्वाज के संबोधन से समापन करेन्गे ।
            "जब तक जीयत हन एकर भार ल सहिबोन नवा पीढ़ी ज इसन करय।"
   चिन्ता प्रकट किए कि कुछ सत्ता पद प्रभाव  लोलुप और चालाक लोग अब कपड़े पर रामनामी ओढ़कर भजन मेला करने का ढोंग कर रहें हैं ।इन को बंद कराना चाहिए।