Monday, November 23, 2020

सहोद्रा माता झांपी दर्शन मेला

सतनाम धर्म संस्कृति के नव प्रवर्तन पर्व - 
"सहोद्रामाता झांपी दर्शन मेला "डुम्हा भंडारपुरी फागुन पूर्णिमा की हार्दिक बधाई .....

सहोद्रा माता की झांपी दर्शन मेला डुम्हा भंडारपुरी 
                  २१ मार्च २०१९ 

   गुरुघासीदास की सुपुत्री सहोद्रामाता की झांपी जो (उनके गृहग्राम कुटेला बाद मे डूम्हा मे )उनके परिजन दीवान परिवार के पास संरछित है। उसमे गुरु घासीदास द्वारा व्यवहृत की ग ई सामाग्री संचित है जिसमे चरणपादुका , कंठी और सोटा सम्मलित है।ध्यान दे उनमे जनेऊ आदि नही है। उसे प्रत्येक वर्ष होली के दिन विधिवत पूजा अर्चना कर सफेद वस्त्र से बांधकर पलटे जाते है। जैसे गद्दी व नाडियल पलटते है।
      इसे देखने दूर दूर से कुछ विशिष्ट श्रद्धालू आते है।खासकर बोडसरा परिछेत्र जो सहोद्रामाता की ससुराल परिछेत्र है ,उधर के लोग अधिकतर आते है।
        आने वाला समय मे डुम्हा ग्राम मेले  के रुप मे परिणित हो सकते है ,जहां बडी संख्या मे लोग बाबा जी की  उक्त पवित्र अवशेष के दर्शनार्थ आयेन्गे।
            हमारी तो यह दि‌ली चाह है कि डुम्हा मे गद्दी सोटा और कंठी माला के लिए भव्य स्मारक बने और दीवान परिवार उनके संरछक सेवादार रहे।
    साथ ही साथ गुरु बाबा घासी दास द्वारा  सतनाम धर्म प्रचार हेतु  लगाए गये ९ रावटी स्थल - चिर ई पहर ,दंतेवाडा , कांकेर ,पानाबरस , डोंगरगढ ,भंवरदाह ,भोरमदेव ,रतनपुर और दल्हा पहाड मे भी स्मारक बने एंव कंठी माला के एक एक मनके को रजत या स्वर्ण मंजुषा मे रखकर स्थापित व  संरछित करे।
  यह धार्मिक योजना बडी ही महत्वाकांछी योजना है। इनके लिए समाज के सभी वर्ग खासकर गुरु परिवार दीवान परिवार साधु संत महंत भंडारी साटीदार अधिकारी कर्मचारी गण से प्रतिनिधी मंडल बनावे एंव उक्त निर्माण एंव संबंधित जगहो के विकास व वहां मेले संगत पंगत अंगत की सतनामी सांस्कृतिक अनुष्ठान आरंभ करावे। 

तब जाकर सतनाम धर्म के मार्ग प्रशस्त होन्गे।
    धर्म और धार्मिक आयोजन ही जनमानस मे सांस्कृति एकता स्थापित कर सकते है।और परस्पर मेलजोल से संगठन और संगठन से ही शक्ति ।शक्ति से हस्ती और हस्ती से युक्ति युक्ति से मुक्ति......!.
 धार्मिक आयोजन ही मुक्ति के प्रथम सोपान है। दुर्भाग्यवश समाज मे सिवाय जंयती और मेले के अतिरिक्त कुछ हुआ ही नही न ढंग से कुछ हो पा रहे है...... इस दिशा मे प्रग्यावानों को गंभीरता पूर्वक विचार विमर्श करना चाहिए ।

      इस फागुन पूर्णिमा को इच्छुक श्रद्धालू गण डुम्हा भंडारपुरी जाकर माता सहोद्रा की झांपी में यत्नपूर्वक रखे  सद्गुरु घासीदास की सोंटा चरण पादुका कंठीमाला एंव अंग वस्त्र का पावन दर्शन लाभ कर सकते है। 

गांव वालों सहित समस्त  संत महंत दीवान परिवार के साथ मेला लगाने की गुरुवंशजो की मार्गदर्शन लेकर  सार्थक पहल कर सकते है‌। सतनाम धर्म- संस्कृति में यह मेला अभिनव पहल होगा। इससे जनमानस का  नैतिक उत्थान सहित सर्वांगीण विकास के मार्ग प्रशस्त होन्गे।
        सतनाम 
डा अनिल भतपहरी

         चित्र - तपोभूमि गिरौदपुरी के मुख्यमंदिर औंरा धौरा वृछ के समीप तेंदूवृछ के तले हम तीनो भाई अनिल‌ सुनील सुशील

Friday, November 20, 2020

।।देवारी ।।

#anilbhatpahari 
लोक पर्व 

।।त्रिदिवसीय भव्यतम देवारी और उनका महत्व ।।

कृषि संस्कृति का यह महा पर्व "देवारी"   जिसे हिन्दी में  छत्तीसगढ़ की  दीवाली  " कहते  हैं। यह तीन दिन तक आयोजित होते हैं। शेष भारत से यहाँ की संस्कृति बिल्कुल अलग तरह की हैं। बल्कि सैंधव आर्य और द्रविड़ संस्कृति का समागम होने से यहाँ मिश्रित संस्कृति तो झलकती हैं। पर  "देवारी परब" में ओ यहाँ की मूल या ओरिजन संस्कृति है वह स्पष्ट नजर आते हैं। संक्षिप्त में देखे ती‌न दिन तक चलने वाली यह लोक पर्व कैसे सौख्य व सम भावना का पर्व है। 

१ .सुरहुत्ती  

   प्रथम दि‌न को  सुरहुत्ती कहते हैं।  सुर + आहुति = सुरहुत्ती बना है। इसका अर्थ हुआ देवताओं की आहुति यानि  देवताओं को आव्हान / निमंत्रण  इस दिन ग्राम में स्थित सभी ग्राम देव धामी जिनमें प्रमुखतः ठाकुर देव (बड़ादेव या महादेव भी  कहते  हैं।) महामाई, शीतला, ठेंघा देव , माचादेव, जराही ,बराही , भैसासुर ,  ध्रुआ देव (उत्ती), करियादेव (बुड़ती )  कोठार देव , गोठान देव मेड़ो देव, डीह- डोंगरदई , भंडार देव रक्सेल देव,में घरो घर दीप चढाते हैं। इस दिन नये चावल के आटे से फरा चुकिया बनाए जाते हैं। चुकिया में तेल बाती से दीया और मिट्टी का दीया यह दोनो दीया इन देव धामी में  चढ़ाते हैं। इस दिन रात्रि में अनेक जगहों पर कोठार देव में पशुधन की संरक्षण  ठाकुर देव में सफेद  मुर्गा या सफेद बकरा की बलि दिये जाते हैं।
आजकल बलि न देकर उसे चढाकर छोड़ देते हैं । मुर्गे को कोई खा जाता है। पर बकरा शान से गांव में घुमते रहते हैं। इसे "ठाकुर देव का बोकरा " कहते है।
           
(कोई वंश परिवार फरा- चुकिया  डेवठन के दिन चढाते हैं। इसके पीछे का कारण यह होगा कि उनके घर धान की कटाई पूर्ण  नही हुआ होगा। हमारे घर डेवठन को फरा चुकिया बनाकर चुकिया की दीया इन ग्राम देवता में चढाते हैं। तब तक कोई नये चावल की फरा चुकिया खाने वर्जित रहते हैं।)
२ देवारी 
दूसरा दिन  देवारी होते हैं  देवारू का अर्थ है  देव + ओरी = देवताओ का ओरी इस दिन सारे देव गण  हमारे पशु धन के साथ आते हैं। उन सबकी द्वाराचार कर अभिनंदन स्वागत करते हैं।   
 खास तौर पर कोठा देव के द्वार सजाते हैं। राउताइन मुख्य द्वार या कोठे की द्वार पर घी और रंग से सुन्दर " छापन " लगाकर सजाते हैं।  गोबर के आसन पर कलश स्थापित कर नादी से चारो दिशाओं के लिए चार बाती जलाते हैं। और सिलयारी चिड़चिडा व गेंदाफूल  खोसते हैं। आम पत्ता केला पत्ता से  आंगन और द्वार में तोरण सजाते हैं। 
     गृह स्वामी उपवास रहते हैं  और  रोठ पकाते है उसे गुड़ और घी मे शानकर कोठार देव में चढाते है। इधर महिलाएँ भी उपवास रहकर  विभिन्न व्यंजन अरिसा सोहारी  चीला खुरमी बड़ा आदि बनाती है और कोचई  जिमीकांदा मखना की  मिश्रित सब्जी बनाते हैं। उसे भात में सान कर पशुधन को  खिचड़ी खिलाते  हैं ।
      इसके बाद घरोघर परस्पर भोजन के आते जाते हैं। और शाम को साहड़ा देव में  "गोबरधन " खुंदाते है ।उस गोबरधन को बडे बुजुर्गों को तिलक लगाते उनके आशीष पाते हुए घर के  "माई कोठी "में थाप देते हैं। 
  
    मातर 
  

देवारी के दूसरा दिन मातर होते हैं। मतलब आज मातर हैं। मातर मात + अर = मा की आरती यानि मातृ पूजा ।
  इस दिन मातृका शक्ति खासकर भूमि और गाय / भैंस की विशेष पूजा होती है। गाय भू के प्रतीक भी हैं। गांव के गोठान पर मातर जगाए जाते हैं। जहां ऊची व समतल भूमि होते हैं। उसे साफ कर गोबर से लीपते और चावल आटे की सफेद चौक पुरकर मातृका पूजन कर  सफेद ध्वज (पालो ) की खाम गड़ाते है जिसे "दमदमा" कहते हैं।  
    फिर अनेक धरों से  देवी- देवताओं की धजा सजाकर मातृ देवी के दरबार में नाचते गाते परघा कर शौर्य पराक्रम दिखाते हुए स्थापित करते हैं। इसे ही  "मातर जगाना " कहते हैं। 
    भू देवी की प्रतीक दुधारु गाय और भैंसी की पूजा की जाती है।उसे सोह ई पहिनाते है । उनके सींग पर मखना तुमा फेकते है और कौतुहल खेल करते हैं। ऐसा कर इन दुधारु गाय भैस को भूदेवी समान महत्व देते हैं क्योंकि इनसे भी  लालन पोषण पालन. होते हैं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।

    इस दिन और पर्व को राउत समाज बड़े उत्साह से मनाते हैं। वे लोग सज -संवर  कर अखाड़ा  काछन और मातर  नृत्य करते हैं। पालो या  ध्वजा को मड़ई  भी कहते । महिलाएँ सज धज कर सुआ नृत्य करती है। पुरा गांव मातर की महोत्सव में मग्न हो जाते हैं।उपस्थित लोगों को दूध  ,मीठी दही ‌-मही पिलाए जाते हैं। 

    इस तरह सुरहुत्ती को देवताओं की आहुति  यानि आहुत कर आव्हान आमंत्रण होते हैं। दीप चढाते है  यह  सुरहुत्ती कहलाते हैं। दूसरे दिन देवाताओं की विशेष पूजा वार का दिन होते हैं। यही देवारी हैं। और तीसरा दिन मातृ शक्ति भूदेवी और पशुधन की श्रृंगार व पूजा होते हैं। यह मातर कहलाते हैं। 
     इस तरह भव्यतम व गरिमा मय वर्ष का सबसे बड़ा महापर्व देवारी का समापन हो जाता है। 
  इस दरम्यान  घरो की सफाई रंग रोगन ,नये वस्त्र, गहने, बर्तन  मिठाई ,व्यंजन ,खिलौने ,पटाखे आदि पर दिल खोलकर खर्च करते हैं। आर्थिक कारोबार का यह महापर्व है फलस्वरुप वणिक वर्गों द्वारा इसे लक्ष्मी पूजा कहे जाने लगे हैं।
       इन सबमें कुछ अति उत्साही जन  जुआ शराब मांस आदि  भी व्यवहार  करते   हैं। यह इस पर्व का स्याह पक्ष है पर इससे क्या ? 
स्याह और धवल यह जीवन का  दो अभिन्न पक्ष जो हैं। और इनसे जीवन संपूर्ण होते हैं।पर्व हमे स्याह पक्ष से परिष्कार कर धवल पक्ष को अर्जित करने का भाव बोध कराते हैं। 
       
      -डाॅ. अनिल कुमार भतपहरी / 9617777514 

    सत श्री ऊंजियार सदन अमलीडीह रायपुर (जुनवानी) छत्तीसगढ़

रामनामियों की दशा और दिशा

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।।रामनामियों की दशा और दिशा  ।।
सतनाम संस्कृति के एक अंग रामनामी में  सतनाम‌ के स्थान पर हृदय मन में रमने वाले निर्गुण  रामनाम को सुमरने और धारण करने की प्रथा (गुरुघासीदास के पुत्र  गुरुबालकदास के शहादत 1860 के बाद )  1890 के आसपास  चल पड़ा । इसको दशरथ सुत  अयोध्या के राजा श्रीराम की भक्ति  समझ कर मूल्यांकन करने की अजीब परिपाटी विकसित हो गई है।
      और तो और  महज इसलिए श्रीराम को रोम -रोम में  बसा लेने की ऐतिहासिक साक्ष्य के रुप में इन रामनामियों को प्रस्तुत किए जा रहे हैं।जबकि इनके साथ  कथित रामभक्त सदैव दोयम दर्जे और भेदभाव करते रहे हैं। अब मौका है कि इन्हे केवल मुख्यधारा ही नही बल्कि रामाश्रय आधारित हिन्दूत्व में इन्हे  सर्वोपरि स्थान दें। क्योकि इस क्षेत्र में कोसिर नामक ग्राम है जिसे श्री राम के माता कौशल्या की मायका समझे जाते है।छत्तीसगढ़ में राम को भांजा मानकर उस रिश्ते को  पूजने की परंपरा है ,तथा कुछेक संस्थाएं एंव उनके प्रतिबद्ध  लेखकगण  इन्हे रामायण कालीन संस्कृति होने की बातें सिद्ध करने में लगे  हुए हैं। 
   बहरहाल यह  कौतुहल व अन्वेषण का विषय हो सकते है । पर उनकी दयनीय दशा और सामाजिक वर्जनाओं का दंश झेलते इनकी हालात पर भी दृष्टिपात होनी चाहिए  
     अन्यथा यह रामनामी प्रथा एकाद दशक बाद 2030-40 तक विलिन हो जाएन्गे।
         केवल 150 के आसपास बुजुर्ग बचे है , कुछ संस्थाए संरक्षण के नाम पर अनुदान या सहयोग देकर इनकी वार्षिक भजन मेला को प्रोत्साहन दे रहे है ।तथा इन्ही में से कुछ लोलुप वर्ग कपड़े मे रामनामी ओढ़कर धनार्जन व जीवकोपार्जन  करने की माध्यम बना लिए है।
     ऐसी जानकारियां समय समय पर उन लोगों से मिलती रहती हैं।
      विगत कुछ वर्षों से इन्हे अनु जाति वर्ग का जाति प्रमाण पत्र बनवाने में भी परेशानियां उठाने पड़ते है। फलस्वरुप शासकीय योजनाओं के लाभ से वंचित रहे ।तथा हिन्दूओ से दुराव और सतनामियों से भी अलगाव का दंश भी झेलते आ रहे थे।परन्तु 1984बसपा के अभ्युदय के बाद इनके युवा वर्गों में सतनाम संस्कृति और बौद्ध धर्म के प्रति रुझान जागृत हुए ।इस तरह देखे तो अब पहले से बेहद सजग और विकास की ओर अग्रसर यह रामनामी परिक्षेत्र है।

Thursday, November 19, 2020

संविधान पवित्र ग्रंथ हैं

।। डां. अंबेडकर कृत हमारा संविधान  ही पवित्र ग्रंथ हैं।।

     धर्म ,पंथ ,मत ,वाद और उनसे अभिप्रेरित राजनीति    से केवल हम किसी पर विचार लाद सकते है उन्हे बंधन में ला सकते है यहां तक उनके भौतिक सुविधाओ को बढा सकते हैं। परिक्षेत्र, राज्य व देश का  विकास भी कर सकते हैं। पर मानव को सुख और स्वतंत्रता नही दे सकते। 
        सुख और स्वतंत्रता  के लिए समानता पर आधारित  साहित्य  परिपक्व  ज्ञान -विज्ञान सम्मत  विचार  उन्नत दर्शन व कलाए चाहिए ।साथ ही  उनके प्रभावी क्रिन्यावयन भी। पश्चात्य जगत इन्हे अर्जित कर रहे है और भारतीय प्राचीन सांमती बर्बर व्यवस्था को ढोने इसलिए बाध्य किए जा रहे है कि वे हमारे विरासत है। संस्कृति और पुरातन प्रेम  के कारण इस तरह के विचार अग्राह्य हो जाते है।  आज भी हम जात- पात, मंदिर- मस्जिद ,पूजा -पाठ अराधना व इबादत आदि  से उबर नही सके हैं।  बल्कि यह धारणा बना रखे हैं कि इसी में सुख और कल्याण हैं। मानव  बरगद की लाह की तरह कुछ आधुनिक होते तो है पर एक ऊचाई पर पहुंच वापस जमीदोंज हो जाते हैं। बस बरगद को सजीव रखे है बिना किसी उपयोग के वह न इमारती लकड़ी है न औषधि न जलाऊ भी ।क्योकि हमने उसे पवित्र. मानकर केवल पुजनीय बना रखे हैं ।
मानव स्वतंत्रता और उनकी मान -सम्मान सहित कल्याण की कामना  संविधान में निहित हैं।
     दर असल  हमारा संविधान  वृहत्तर भाव को अपने में समाहित किए धर्मनिरपेक्ष है और मानव के हितार्थ ही सृजित हैं। अब तो यह बातें सुप्रिम कोर्ट के न्यायाधीश  तक कह रहे है कि संविधान सबसे पवित्र ग्रंथ हैं।

Wednesday, November 18, 2020

गुरुघासीदास जयंती शोभायात्रा

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गुरुघासीदास जयंती पूर्व शोभायात्रा 16 दिसंबर 1995 की  विज्ञापन ।

इसमें जो चित्र हैं वह गुरुघासीदास का आशीर्वाद ( अभय ) मुद्रा में मेरे द्वारा महाविद्यालय में अध्ययन के समय  पायलेट पेंन से भूगोल के  पेट्रिकल्स कापी के सफेद पेपर पर सन १९९० को बनाया चित्र है। जिसे फ्रेमित कर नीचे पांजीनाम मंत्र लिखा था। और कमरा नंं 7 जहां मै रहता था  में यत्नपूर्वक संजोकर रखा था। यह चित्र शोभायात्रा के पूर्व ही मेरे आलेख में समाचार पत्रों पर यदा कदा प्रकाशित होते रहा है।
           बहरहाल 25 वर्ष पूर्व गुरुघासीदास छात्रावास आमापारा के हम छात्रावासी छात्रों के साथ मान. नरसिंग मंडल जी के नेतृत्व में प्रारंभ किए गये शोभायात्रा  वर्तमान में जयंती पूर्व  एक विशिष्ट प्रथा के रुप में प्रचलन में आ चूका हैं। यह  स्वर्णिम व सुखद पल हैं। 
       ज्ञात हो कि छात्रावास के अस्तित्व में आते ही हमलोग १९९० से ही जयंती आयोजित करते और अमीनपारा छात्रावास आमापारा छात्रावास में संयुक्त आयोजन करते मान कन्हैयालाल कोसरिया पूर्व मंत्री और अधीक्षक रामाधार बंजारे जी के निर्देशन में उत्साह पूर्वक भाग लेते संगोष्ठी कराते उस कार्यक्रम का संचालन सौभाग्य वश मुझे करने का अवसर मिलता रहा है।
   हमलोग समाज के प्रबुद्ध  लोगों को आमंत्रित करते उनके संदेश व मोटिवेशनल व्याख्यान श्रवण करते जिसमें प्रमुखतः कन्हैयालाल कोसरिया पूर्व मंत्री रेशमलाल जांगडे पूर्व सांसद  , एड मनोहर लाल भतपहरी डा अम्बेडकर के सहयोगी प्रसिद्ध आर पी आई लीडर  , केयुर भूषण पूर्व सांसद,  रामाधार बंजारे अधीक्षक ,एम आर जोल्हे जज , महिलकर जी जज , प्रों मीना बंजारे , बी आर बंजारे  बैक अधिकारी , श्री एस डी भतपहरी प्राचार्य , नरसिंह मंडल  पूर्व अध्यक्ष म प्र राज परिवहन निगम , के पी खांडे डिप्टी कलेक्टर , श्री पी आर गहिने प्राचार्य बी एड कालेज , देवादास बंजारे  प्रसिद्ध पंथी नर्तक  राम प्रसाद कोसरिया , सुशील यदु , इत्यादि कवि गण अलग अलग वर्षों सम्मलित होते थे। आयोजन में तत्कालीन महापौर पार्षद आदि जनप्रतिनिधी भी आमंत्रित किए जाते रहे हैं।
       इस तरह एक दिन कार्यक्रम में ही  शोभायात्रा करने का विचार आया । और आगामी वर्ष वह प्रारंभ हुआ।
    शोभायात्रा की यह २५ वां वर्ष हैं। हम सभी सौभाग्यशाली है कि उक्त गरिमामय आयोजन के साक्षी व सूत्रधार रहे हैं। हमलोगों को  मान नरसिंह मंडल जी जैसे कुशल नेतृत्व कर्ता व मार्ग द्रष्टा मिला। उनकी पहल से राजधानी रायपुर में  अलग अलग जगहों पर निवासरत सतनामियों से संपर्क हुआ ।समाज प्रमुखो साटीदार भंडारियों एंव जन सामान्य को जोड़कर  सप्त ध्वज वाहक सहित भव्यतम पंथी अखाडा  झांकी जुलुश आतिशबाजी निकाले ।
           आज यह चित्र मेरे एफ बी वाल में उभरा तो हर्षित होकर हमारे सुधि पाठकों के जानकारी के लिए पुनश्च पोष्ट किया ....
     जय सतनाम 
-डाॅ. अनिल भतपहरी  / 9617777514

चित्र- १ विज्ञापन १९९५
         २ मूल चित्र 
          ३ गुरुघासीदास जयंती समारोह गुरुघासीदास छात्रावास आमापारा रायपुर  १९९२  जिसमें मान नरसिंह‌ मंडल जी की अध्यक्षता  में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इसी कार्यक्रम में शोभायात्रा का प्रस्ताव हुआ और इस तरह समाज में यह प्रचलन में आया।

Monday, November 16, 2020

देवारी

#anilbhatpahari 
लोक पर्व 

।।त्रिदिवसीय भव्यतम देवारी और उनका महत्व ।।

कृषि संस्कृति का यह महा पर्व "देवारी"   जिसे हिन्दी में  छत्तीसगढ़ की  दीवाली  " कहते  हैं। यह तीन दिन तक आयोजित होते हैं। शेष भारत से यहाँ की संस्कृति बिल्कुल अलग तरह की हैं। बल्कि सैंधव आर्य और द्रविड़ संस्कृति का समागम होने से यहाँ मिश्रित संस्कृति तो झलकती हैं। पर  "देवारी परब" में ओ यहाँ की मूल या ओरिजन संस्कृति है वह स्पष्ट नजर आते हैं। संक्षिप्त में देखे ती‌न दिन तक चलने वाली यह लोक पर्व कैसे सौख्य व सम भावना का पर्व है। 

१ .सुरहुत्ती  

   प्रथम दि‌न को  सुरहुत्ती कहते हैं।  सुर + आहुति = सुरहुत्ती बना है। इसका अर्थ हुआ देवताओं की आहुति यानि  देवताओं को आव्हान / निमंत्रण  इस दिन ग्राम में स्थित सभी ग्राम देव धामी जिनमें प्रमुखतः ठाकुर देव (बड़ादेव या महादेव भी  कहते  हैं।) महामाई, शीतला, ठेंघा देव , माचादेव, जराही ,बराही , भैसासुर ,  ध्रुआ देव (उत्ती), करियादेव (बुड़ती )  कोठार देव , गोठान देव मेड़ो देव, डीह- डोंगरदई , भंडार देव रक्सेल देव,में घरो घर दीप चढाते हैं। इस दिन नये चावल के आटे से फरा चुकिया बनाए जाते हैं। चुकिया में तेल बाती से दीया और मिट्टी का दीया यह दोनो दीया इन देव धामी में  चढ़ाते हैं। इस दिन रात्रि में अनेक जगहों पर कोठार देव में पशुधन की संरक्षण  ठाकुर देव में सफेद  मुर्गा या सफेद बकरा की बलि दिये जाते हैं।
आजकल बलि न देकर उसे चढाकर छोड़ देते हैं । मुर्गे को कोई खा जाता है। पर बकरा शान से गांव में घुमते रहते हैं। इसे "ठाकुर देव का बोकरा " कहते है।
           
(कोई वंश परिवार फरा- चुकिया  डेवठन के दिन चढाते हैं। इसके पीछे का कारण यह होगा कि उनके घर धान की कटाई पूर्ण  नही हुआ होगा। हमारे घर डेवठन को फरा चुकिया बनाकर चुकिया की दीया इन ग्राम देवता में चढाते हैं। तब तक कोई नये चावल की फरा चुकिया खाने वर्जित रहते हैं।)
२ देवारी 
दूसरा दिन  देवारी होते हैं  देवारू का अर्थ है  देव + ओरी = देवताओ का ओरी इस दिन सारे देव गण  हमारे पशु धन के साथ आते हैं। उन सबकी द्वाराचार कर अभिनंदन स्वागत करते हैं।   
 खास तौर पर कोठा देव के द्वार सजाते हैं। राउताइन मुख्य द्वार या कोठे की द्वार पर घी और रंग से सुन्दर " छापन " लगाकर सजाते हैं।  गोबर के आसन पर कलश स्थापित कर नादी से चारो दिशाओं के लिए चार बाती जलाते हैं। और सिलयारी चिड़चिडा व गेंदाफूल  खोसते हैं। आम पत्ता केला पत्ता से  आंगन और द्वार में तोरण सजाते हैं। 
     गृह स्वामी उपवास रहते हैं  और  रोठ पकाते है उसे गुड़ और घी मे शानकर कोठार देव में चढाते है। इधर महिलाएँ भी उपवास रहकर  विभिन्न व्यंजन अरिसा सोहारी  चीला खुरमी बड़ा आदि बनाती है और कोचई  जिमीकांदा मखना की  मिश्रित सब्जी बनाते हैं। उसे भात में सान कर पशुधन को  खिचड़ी खिलाते  हैं ।
      इसके बाद घरोघर परस्पर भोजन के आते जाते हैं। और शाम को साहड़ा देव में  "गोबरधन " खुंदाते है ।उस गोबरधन को बडे बुजुर्गों को तिलक लगाते उनके आशीष पाते हुए घर के  "माई कोठी "में थाप देते हैं। 
  
    मातर 
  

देवारी के दूसरा दिन मातर होते हैं। मतलब आज मातर हैं। मातर मात + अर = मा की आरती यानि मातृ पूजा ।
  इस दिन मातृका शक्ति खासकर भूमि और गाय / भैंस की विशेष पूजा होती है। गाय भू के प्रतीक भी हैं। गांव के गोठान पर मातर जगाए जाते हैं। जहां ऊची व समतल भूमि होते हैं। उसे साफ कर गोबर से लीपते और चावल आटे की सफेद चौक पुरकर मातृका पूजन कर  सफेद ध्वज (पालो ) की खाम गड़ाते है जिसे "दमदमा" कहते हैं।  
    फिर अनेक धरों से  देवी- देवताओं की धजा सजाकर मातृ देवी के दरबार में नाचते गाते परघा कर शौर्य पराक्रम दिखाते हुए स्थापित करते हैं। इसे ही  "मातर जगाना " कहते हैं। 
    भू देवी की प्रतीक दुधारु गाय और भैंसी की पूजा की जाती है।उसे सोह ई पहिनाते है । उनके सींग पर मखना तुमा फेकते है और कौतुहल खेल करते हैं। ऐसा कर इन दुधारु गाय भैस को भूदेवी समान महत्व देते हैं क्योंकि इनसे भी  लालन पोषण पालन. होते हैं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।

    इस दिन और पर्व को राउत समाज बड़े उत्साह से मनाते हैं। वे लोग सज -संवर  कर अखाड़ा  काछन और मातर  नृत्य करते हैं। पालो या  ध्वजा को मड़ई  भी कहते । महिलाएँ सज धज कर सुआ नृत्य करती है। पुरा गांव मातर की महोत्सव में मग्न हो जाते हैं।उपस्थित लोगों को दूध  ,मीठी दही ‌-मही पिलाए जाते हैं। 

    इस तरह सुरहुत्ती को देवताओं की आहुति  यानि आहुत कर आव्हान आमंत्रण होते हैं। दीप चढाते है  यह  सुरहुत्ती कहलाते हैं। दूसरे दिन देवाताओं की विशेष पूजा वार का दिन होते हैं। यही देवारी हैं। और तीसरा दिन मातृ शक्ति भूदेवी और पशुधन की श्रृंगार व पूजा होते हैं। यह मातर कहलाते हैं। 
     इस तरह भव्यतम व गरिमा मय वर्ष का सबसे बड़ा महापर्व देवारी का समापन हो जाता है। 
  इस दरम्यान  घरो की सफाई रंग रोगन ,नये वस्त्र, गहने, बर्तन  मिठाई ,व्यंजन ,खिलौने ,पटाखे आदि पर दिल खोलकर खर्च करते हैं। आर्थिक कारोबार का यह महापर्व है फलस्वरुप वणिक वर्गों द्वारा इसे लक्ष्मी पूजा कहे जाने लगे हैं।
       इन सबमें कुछ अति उत्साही जन  जुआ शराब मांस आदि  भी व्यवहार  करते   हैं। यह इस पर्व का स्याह पक्ष है पर इससे क्या ? 
स्याह और धवल यह जीवन का  दो अभिन्न पक्ष जो हैं। और इनसे जीवन संपूर्ण होते हैं।पर्व हमे स्याह पक्ष से परिष्कार कर धवल पक्ष को अर्जित करने का भाव बोध कराते हैं। 
       
      -डाॅ. अनिल कुमार भतपहरी / 9617777514 

    सत श्री ऊंजियार सदन अमलीडीह रायपुर (जुनवानी) छत्तीसगढ़

Friday, November 13, 2020

पंथी गीत का हिन्दी अंग्रेज़ी अनुवाद

छत्तीसगढ़ी  क्लासिक गीत/ कविता की श्रेणी में रामनाथ साहू जी प्राचीन और आधुनिक रचनाकारों की रचनाओं को हिन्दी और अंग्रेजी में शब्दा/ भावानुवाद कर रहे हैं। 
इस अनुक्रम में  आज हमारी 30-32 वर्ष पूर्व  लिखी बहुचर्चित / बहुप्रसारित पंथी गीत- "तोला नेवता हे आबे गुरु घासीदास" जो कि सतनाम संकीर्तन  केसेट २००२  दूरदर्शन २०१०-११  एंव अनेक लोक मंच में  अनेक गायकों द्वारा प्रस्तुति दी जाती  रही है। उसी गीत का रामनाथ साहू जी द्वारा किए गये भावानुवाद द्रष्टव्य हैं-

     तोला नेवता हे आबे गुरुघासीदास 

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*मंगल पंथी गीत*
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*डॉ.अनिल भतपहरी*

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साखी-
सत  फूल धरती फूलय, 
सुरुज फूलय  अगास ।
कंवल फूल मन सागर फूले,
जिहाँ खेले गुरु घासीदास ।।

तोला नेवता हे आबे गुरु घासीदास
हमर       गांव     म         मंगल हे
आबे        आबे       गुरु घासीदास
जुनवानी       गांव    मं    जयंती हे...

करिया करिया बादर छाए हवय
घपटे            हे         अंधियार
मनखे ल मनखे       मानय नही
घोर                       अत्याचार।
बगरादे बबा सत के परकास...

दुनों आंखी    हवय फेर 
होगे         मनखे अंधरा
मोह माया मं मगन होके
पूजय       लोहा पथरा
सिरजादे मनखे मन के हिरदे मं धाम...

आगी लगगे चारो    मुड़ा मं
जरगे                 ये संसार
आके अमरित चुहा दे बाबा
कर दे               ग  उद्धार
विनय करत हवन हमन बारंबार ...

***

***
 *मंगल पंथी गीत*
- *डॉ.अनिल भतपहरी*

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साखी-

सत्य कुसुम से कुसुमित अवनि
सूर्य प्रफुल्लित   इस अम्बर पर
कमल मुकुलित  हुए वारिधि में
क्रीडारत    जहाँ  गुरुघासीदास ।।

तुझे निमंत्रण तुझे      आमंत्रण
आना मेरे ग्राम    गुरु घासीदास
मंगल है              हमारे ग्राम में
बाबा      जुनवानी जरूर आना
हमारे           गांव   में जयंती है...

काले -काले    बादल       छाये   
घनघोर    तिमिर    आच्छादित
मनुष्य   मनुष्य का सत्कार नही
करता, करता भर वहअत्याचार
बाबा    ऐसे में     तुम्हें करना है 
सत्य   का      आलोक प्रसारित...

चक्षु युगल     रखता     मानव पर
अन्तश्चक्षु                 विहीन वह
माया महाठगिनी के     वश होकर
पूजने चला लौह प्रस्तर खण्ड सब
बाबा      ऐसे    तुम्हे   सिरजना है
मनुष्यों के   हृदय में  तुम्हारा धाम...

दिग दिगंत          व्यापे वैश्वानर
जगती यह    जलकर खाक हुई 
नवप्राण फूंकने तुम्हे आना     है
करना    है     सबका      उद्धार
बाबा तुम्हे  तो यह  करना ही है
यही     विनती        है बारम्बार...

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 ***

*The Mangal panthi Carol*
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Sakhi-

The truth is blessed on this Good Earth . The sun rises like a big blooming flower in the sky. The lotus bloom in the mighty sea. All these are the good play area of Guru Ghasidas.

O my great guru ! You are cordially invited to my town. The big gala -The Mangal is upcoming soon.
Junvani -My town is hosting the jubilee celebration.

The dense clouds accumulated well covering even the last ray of light. Man doesn't respect the man, he commits only a gross torture.
Baba you have to shine the sun of the  holy truth...!

Man haves both the eyes, but he is the ultimate blind.
Only allured by the illusions and fantasy. Always busy worshiping the false things.
Baba, please build your holy abode in the heart of such misers.

The whole world is under fire
All got turned to ash.
Please come here and serve the nectar ! You are our truly saviour.
This is what I am craving for.

*Dr. Anil Bhatpahari*

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धन्यवाद साहू जी

Sunday, November 8, 2020

सुरता लक्ष्मण मस्तुरिया

#anilbtapahari

आज लक्ष्मण मस्तुरिया के पुण्य तिथि में -

सुरता - 

"लक्ष्मण  मस्तुरिया के संग "

        छत्तीसगढ़ी साहित्य/ गीत के स्वनाम धन्य सिरजन हार मधुर कंठ के धनि गायक भैया लक्ष्मण मस्तुरिया जी के सानिध्य लाभ हम ला  पढ़त घानी से  मिलत आत रहिन । ओ मन बड़ धीर- गंभीर, अल्प अउ मृदुभाषी रहिन ।

    मोला सुरता आत हे जब उनकर सो पहली मिलन भेटन होइस सन १९९०-९१ (फरफेक्ट सन तिथि के सुरता आत निये ) मं जब गुरुघासीदास छात्रावास आमापारा (१९८८-९३ )मं रहिके पढत रहेंव। मंत्री कन्हैयालाल कोसरिया जी के  सुपुत्र कवि और शिक्षक  रामप्रसाद  कोसरिया जी सुशील यदु के संग संझौती मोला खोजत छात्रावास मं आइस। अउ एक संगोष्ठी म आय बर नेवतिन अउ अपन समिति के कार्यकारिणी मं जोड़िन । ओ समे मय छिटपुट छपे धर ले रहेंव। दस रुपया चंदा तको देव अउ उनमन रसीद देइन ।ओला भी बहुत दिन तक जतनाय रखे रहेव हो सकथे कोनो किताब या डायरी घरखन रखाय होही।
ओ कार्यक्रम मं बडे -बडे मुड़का  जेन मं हरिठाकुर ,केयुर भूषण, लक्षमण मस्तुरिया ,रामेश्वर शर्मा , चेतन भारती, निकुम जी, शाद भंडारवी ,जागेश्वर प्रसाद सरिख छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी   आन्दोलन के सुत्रधार मन सकलाय रहिन ...लक्ष्मण मस्तुरिया जी के  बड़ सुघ्घर गीत सुन अउ दरस पाके मन कुलकत बड़  अछाहित होगे... जेन ल सुन के बाढे रहेन अउ जेकर गीत के प्रशंसक बाबु जी रहिन ओकर कुछ प्रसिद्ध  गीत के तर्ज के पेरोडी म उन मनभावन गीत लिखय यानि की मय पिता जी से एम्प्रेस रहेंव अउ पिता जी लक्ष्मन मस्तुरिया जी से ... उन ल साक्षात् देखेंव ... एक घाव यकीन तको न ई होत रहिन ... सच कहिबे त ओकर गीत अउ ओकर स्वर बचपन से मन मं रचे- बसे रहिन ... थोर- थीर मय हारमोनियम अउ बाबु जी  बासुरी में ओकर अउ केदार यादव के  गीत के धुन ल कभु कभु सौकिया गावन - फिटिक अंजोरी या तुक के मारे रे नैना बजावन तको घर मं  तीर तखार के मन सुने बर जुरिया तको जय।
 खैर मय डरावत लजावत अपन आरती नुमा  जय छत्तीसगढ़ गीत  पढे़व अउ सियनहा मन के असीम मया दुलार पाएंव। तंहा ले छप ई संग गोष्ठी मं अवई -जवई सुरु होगे!.छत्तीसगढी सेवक के अखंड धरना वर्तमान गुरुघासीदास नगर घड़ी चौक तीर चलय ओमा तको संघरन ।
     रायपुर मं मय  १९९४ तक रहेंव ये समे छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के जुराव मं, कवि गोष्ठी मं, संघरव सहपाठी चंद्रशेखर वर्मा चकोर  दुनो आवन -जावन अउ सुशील भोले जी तको संग साथ में रहय ...!
               जब भैया जी समवेत शिखर के छत्तीसगढ़ी कालम लोक सुधा के संपादन करत रहिन राजकुमार कालेज तीर  त मोर एक गीत "मन के दीया ल बार" छापिन ।मय विवेकानन्द आश्रम के वाचनालय मं छपे देखेंव ..त मन बड़ बिधुन हो गय ... बने चारों खुंट दीया के डिजाइन देके प्रमुखता से ओ गीत ल छापे रहिन ... मय तुरते प्रेस गयेंव । भैया जी उहचे बैठे देख अपन परिचय देवत कहे प्रणाम आदरणीय मै ... जानथंव भाई तोर अउ रचना मन ल छापे हन ... आज तोर मन के दीया बार छपे हे   ब इठ । उनमन आदर से बिठाइस अउ पेपर मंगा के देइस । आज ले ओ पेपर बिना कटिंग किए जतनाय रखाय हवे ... थोरिक रचना कर्म छत्तीसगढ़ी गीत साहित्य पढ ई- लिख ई के बात होईस। संगे संग  छत्तीसगढ़ी पन अउ शोषण अउ अलग राज खातिर लेख लिखव  कहिन ओ समे जादा लेखन न इ चलत रहिन ...
  ओकर अउ जागेश्वर जी  से प्रेरित होके "अलग राज भाव भूमि अउ भाखा" १९९३ में लिखेंव जोन दो तीन पत्र पत्रिका मं छपिस ।ओ लेख सेती छत्तीसगढ़ी साधक  गुणी जन के असीस पाए रहेंव, ओ लेख में अकारे कि सन २००० मं अलग राज बन जाही । ... (एक दु अभिन्न मित्र मन जोन लेख पढे अउ सुरता राखे रहिस बधाई देवत कहि‌ "बज्र भटरी अकार ये भाई, सच होगे।")
     
मय प्रणाम करके कोनो देव धामी सो मिले कस उछाहित छात्रावास आगेंव ।  साथी मन ल बताएव तो ओ मन खुश होगे ... परतीत करे न इ धरत रहिस ... काबर लक्ष्मण  मस्तुरिया जी  ह हमन के जेहन मं  स्टार दर्जा बना डरे रहिस ... सिरतोन उन आपार लोकप्रिय रहिस अउ अभी भी हवय ।
        पेट बिकाली नौकरी म पेंड्रारोड पलारी बलौदाबाजार  किंजरत रायपुर मय २०१३ मं आएव। कुछ महिना बाद  धीरे -धीरे फेर साहित्यिक सभा सुसाटी मं आए गये घर लेंव।.  सुशील भोले जी ह  खुबचंद जयंती म नेवतिन ,त मय उछाहित गयेव ।उहा भैया जी मुख्य अतिथि रहिन आदरणीय शंकुनतला तरार जी के अध्यक्ष ता रहिन अउ कोंटा कांटा म ब इठ के सुन इया अनिल बपुरा ल नेवताय पहुना के न इ हबरे ले औचक विशिष्ट अतिथि  बना देगिस ...  मय अकस्मात मिले ये सम्मान से अकचका गेंव ..भैया जी समनान्तर बैठे के सौभाग्य मिलिस.. ..तहां  फेर सुरु होइस मघुर गीत कविता के दौर... मस्तुरिया जी ल  कतको सुन ले मन न इ अघाय ...
   उनमन अपन नवा किताब सांवरी मोला सप्रेम भेंट करिन।

  अइसे लगिस कि आज देवता के परसाद मिलगे !  बरसत पानी अउ ओकर मया दुलार के छिंटा म भिंजत अपन कुरिया रतिहा  लहुटेंव ।
    लक्ष्मण भैया जी के  अंतिम दरस नइ हो सकिन काबर कि जरुरी मिंटीग मंत्रालय म रहिन ... कभु -कभु कर्तव्य हर येकरे सेती मया दुलार ल भारी पर जथे !ओकर जग मं सघरेंव अउ दूधाधारी मठ के सत्संग भवन म सादर श्रद्धांजलि दे के आएंव ओकर गीत ल हारमोनियम के लहरा देव बिकट बेर तक गाते रहेंव ... ओ सच में कहे त हमन के अंतस मं बसे हय ओ कहु गे नइये ।
    यही अमरत्व भाव आय जेकर पात्र बिरले ह होथे।
       भैया जी सादर नमन 
विनम्र श्रद्धांजलि ...

-डाॅ. अनिल भतपहरी

पुरौनी -

    लक्ष्मण मस्तुरिया  के  व्यक्तित्व के अनेक आयाम रहिन उन मन बाजा रुजी गीत भजन म ही नही भलुक अकादमिक काम करे बर तको उमिहाय रहिन  अउ शोधार्थी बन के काम सुरु तको करे रहिस होही बात  
 १९९३ के आय मय अपन   पीएचडी करे बर डॉ देव कुमार जैन से मिलेव संग म चित्तरंजन कर सर तको बैठे रहिन .. . जवाहर मार्केट के कैमरा कार्नर म त उन कहिन गोष्ठी संगोष्ठी और छपने -सपने वाले लोग पीएचडी करने में सुस्त रहते हो जी ... देखो लक्ष्मण मस्तुरिया करुंगा कहे और अभी तक टापिक व  सिनाप्सीस का अता पता नहीं ! कही आपका भी ऐसा हाल न हो जाय ।
  कर सर मोला गुरु भाई कहिके आत्मीय संबोधित करिन ...जबकि उनमन मोर श्रद्धेय गुरुवर आय। मोर विषय -"  निर्गुण संत साहित्य में गुरुघासीदास के योगदान "  रहिस अउ मय ये बुता म लगे रहेंव ‌

    इही वर्तालाप मं पता चलिन मस्तुरिया जी भी पीएचडी करत हे ... एक बार ओकर से भेंट होइस त कहेव क इसे भैया  जैन सर ह सोरियात रहिस ... मोर संग रहे इंजी उमाशंकर धृतलहरे कहिस -"मस्तुरिया जी ऊपर लोगन पीएचडी करही " 
   मय कहे तोर मुंह मं घी शक्कर भाई ... मस्तुरिया जी .. बेफिकर अउ थोरिक हुर्रियात कहिस - अरे का का कहत हव भ इया ये ऊमर म अब कहा के... अउ कलेचुप होगे भीतरे भीतर हंसत  बानी कहे कहिस .. मसानबाडा ल बने लिखे अनिल छप गे हवे ले जा हमन लोकसुधा के अंक धर के  अउ प्रणाम करके लहुट गेयन ।

-डॉ. अनिल भतपहरी

Wednesday, November 4, 2020

सुरता डाॅ नरेन्द्र देव वर्मा

#anilbtapahari
 सुरता 
          मोला गुरु बनई लेते / सुबह की तलाश 

        डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा

बड़ अजब संजोग हो जथे या जेहन मं रहे, बात हर कब क इसे उपला जथे? कहे नी जा सकय !
     बात  कोसरंगी हाई स्कूल में पढ़त घानी ८४-८५  के  आसपास कर आय २६ जनवरी के उपलक्ष्य मं दो दिन स्कूल मं उत्सव होवय बाबु जी के नवरंग नाट्यकला के बैनर मं हमन आनी -बानी के नाटक खेलन ...   मोला गुरु बनई लेते नाटक मं चेला के रोल करत रहेंव। बाद में गुरु ल कहिथंव चेला बनाय बर तोला उसरय नहीं अउ बड़ कठिन काम ये त मोला गुरु बना लेते ... ओला अइसे कहना रहिस कि पब्लिक ल हांसी आना रहिस १० वीं  पढ़त लयकुशहा म ओ फिलिंग आत न ई रहिस ... बाबु जी हर एक्टिंग के संगे संग डायलाग बोले तरिका अउ ऐसे शब्द ल उच्चारित करय कि रिहर्सल मं जतका रहेन अउ जगुरुजी  मन ब इठे सुनय त हर बेर  कठ्ठल  जय । गणित वाला  गुप्ता सर डरावन काबर ओला कभु हांसत न इ देखे रहेन ... ओ रिहर्सल देखे आय रहिस  भारी जुवर ले सुरता कर के हांसय । नाटक तो ज इसे त इसे खेलेन फेर ओकर डर सिरागय। अउ बाबु जी जोन सबकुछ ल इका मन संग मिलके लइका होके सिखावय तभो ले  ओकर डर हर बाढ़गे ।
    भारी अनुशासन प्रिय अउ सम्मानीय  प्रचार्य /शिक्षक रहिन । विद्यार्थी शिक्षक अउ गांव के पंच सरपंच सबो मान देवय ।
      १९८७ में  दुर्गा महाविद्यालय रायपुर में पढ़त, श्री राम पुस्तक प्रतिष्ठान सत्ती बाजार ले कापी अउ आधा कीमत में सेकेन्ड हेंड किताब लेवन । ओकर संचालक सियनहा बबा संग बनेच घुलमिल गे रहेन । साहित्य के प्रति अनुराग अउ कालेज मे हिन्दी साहित्य पढथे जान के  एक दिन बता- चिता मं बताइस कि छत्तीसगढ़ कालेज में ओकर सुपुत्र डाॅ नरेन्द्र देव वर्मा हिन्दी के प्रोफेसर रहिन ... ओकर लिखे  उपन्यास "सुबह की तलाश " के एक प्रति देवत कहिस येला आधा कीमत म लेजा पढबे । मय ओ  किताब ल पढेव त पढिते रहिंगेंव ... रायपुर के मुरमी भाठा खारुन नंदिया  अउ सरोना तरिया के महादेव  के बड़ सुघ्घर वर्णन... हमन ओती इतवार के किंदरे जान किताब मं वर्णित दृश्य डग डग ले दिखय ... पहली बेर किताब मं अपन आसपास संउहात बरबन पढ़के मन अघा गय ... सोचेव असनेच महु लिखहू। "कब होही बिहान"  जइसे शब्द   घेरी बेरी मन मथय ... बाद मं मोर ए शीर्षक के किताब छपिस ... आदरणीय केयुर भूषण हर ये शीर्षक के उछाहित होके अपन मन के सम्मति लिखिस अउ आद रामेश्वर वैष्णव जी ह वैभव प्रकाशन मं सुधीर भैया संग बैठ के फरमाइश करके दो चार कविता सस्वर सुनिस अउ शबासी दिस ... कब होही बिहान में लगथे "सुबह की तलाश"  की  ध्वनि अनुगुंजित हो रहे हो।
 ओ संग्रह ल बहुत सेहराय गिस ३-४ जगा समीक्षा छपिस सुधा दीदी ह "मन में गुथाय मोती कस गीत " कहिके साहित्याकाश में  कहां से कहां पहुंचा दिस अइसे मोला लगे धरिस ... मय बड़ भागमानी हव ये सेहरौनिक ज्ञानी गुणी मन सो मिलिस हिरदय से आभार ...ले देख बात कहां ले कहां फलंगे ...
     मय धनीराम बबा जी कना जाके कहेव सुबह की तलाश  बहुत सुन्दर उपन्यास हे त ओ बताइस ओहर बढिया नाटक तको लिखय बहुचर्चित नाटक "मोला गुरु बनई लेते "  नाम सुने है ?
   मय दंग रहिगेंव ... सच कहे त ये नाटक के चेला पात्र मय  बचपन में स्कूली जीवन में करे रहेव फेर हमन ओकर रचयिता ल जानत न इ रहेन न जाने के कोशिश करे रहेन ।  अरपा पैरी गीत के रचनाकार भी हरय ... अब तो ओकर स्मारिका निकले रहिस जेमा डॉ नरेन्द्र देव वर्मा के जीवन वृत्त अउ रचना कर्म ल संजोय रहिस ... श्री राम पुस्तकालय से ही पढे के मौका मिलिस अउ बहुत कुछ जानबा होईस।
     मोला गुरु ब नइ लेते ल पिता जी हर अइसे टच दे रहिस कि बिल्कुल गम्मत लगय  अउ अपन डहन ले तको संवाद जोड़ लेत रहेन  ज इसे  बिस अमृत, परीक्षा बुद्धुराम जइसे पारंपरिक प्रहसन मन मे   करन।
    
(बडे नाटक म चांदी के पहाड़, एक मुठा माटी के असर इया  , संगत राह के फूल जइसे बाबु के लिखे नाटक अउ चरनदास चोर के मंचन करन  जेमा ५-६ गीत रहय । हमर नवरंग नाट्यकला  मंच हर दरभंगा बिहार के  पैटर्न या प्रेरित १९७५- १९९३ तक चलिस अउ अबड़ मजा करेन । )
      त डाॅ नरेन्द्र वर्मा के अबड सुरता करय धनीराम बबा हर ओकर एक बेटा विवेकानन्द  आश्रम में रहय स्वामी आत्मानंद जेकर दरस अउ कभु कभु दुआ सलाम हो जय काबर हमन पेपर पत्रिका पढे अक्सर आश्रम जावन ... एक दू बेर  मंदिर में रामकृष्ण के प्रतीमा के आधु बुद्ध पुरुष समझ ध्यान तको करे के परयास करन ... खासकर मंदिर गुलाब जल अउ संगमरमर के ठंडाई तरपौरी में ले ये के सौक से जावन .. त स्वामी जी के दरस हो जय।
            सुबह की तलाश मोला गुरु बनइ लेते  अउ राज गीत अरपा पैरी के धार सब क्लासिक रचना होगे हवय।
   उकर छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के इतिहास अउ काल विभाजन जैसे अद्वितीय कार्य हर  रामचंद्र शुक्ल के " हिन्दी साहित्य का  इतिहास "  के बरोबर हवय ।
         अइसे स्वनाम धन्य वर्मा जी हर कम समय में भारतेन्दु सरीख हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ल समरिद्ध करिन ओकर  सेती उन सदैव ज्वाजल्यमान नक्षत्र सरीख छत्तीसगढ़ी साहित्याकाश मं जगमगात रही हमन सही पथिक मन ल दिशा बोध करात रही।
आज जयंती मं उन ल परनाम हे ।
      जय छत्तीसगढ़ 

डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Monday, November 2, 2020

वाड्गमय

" वांग्मय"
   
वेद उपनिषद 
पुराणादि  
मानव मेधा की 
अनुपम ऊपज  है
स्मृति योग मीमांसाएं  
विविध विचारों से संवृत 
भारतीय वांग्मय है
 राज्य विस्तार की
रोचक  दास्तान 
है वाल्मिकी कृत
रामायण 
जहां प्रजातियों का
समागम और संधर्ष है 
मनभावन 
मन की अन्तर्द्वंद्व का
शानदार विचार- विमर्श है 
एक्शन इमोशन थ्रीलर 
रहस्य रोमांच का दास्तान 
महाभारत व्यास मंडल 
रचयिताओं का 
है अनोखा वृतान्त 
"अत्तदीपोभव" की 
महिमा त्रिपिटक गाती है
बीजक की साखी तो 
ज्ञान की आँखी है 
संत-गुरु की वाणी ही
असल  मानव का धन है 
गुरुग्रंथ साहिब निर्वाणग्रंथ
और सतनमायन है 
विषैले मानस सागर में 
चुहते ये अमृत बुन्द है 
उद्गाता /श्रोता के लिए 
 विविध रत्न भरे समुन्द है

  ।‌।सत श्री सतनाम ।।

-डा. अनिल भतपहरी
 9617777514

चित्र- ऊंजियार सदन के आंगन में सजी  रंगोली