।।नदियों और वनों को बचाइये ।।
ग्लोबल वार्मिंग और प्राकृतिक संपदा के अंधाधुंध दोहन से मौसम चक्र में अप्रत्याशित परिवर्तन होने लगा हैं। फलस्वरुप पृथ्वी की पारिस्थितिकी और यहां रहे जीव जन्तु उनके जीवन निर्वाह के तत्व बड़ी तेजी से क्षरित होते जा रहे हैं। इन सबका स्पष्ट प्रभाव मानव जीवन में पड़ने लगा हैं। समय रहते इन सब बदलाव के प्रति सचेत होने की आवश्यकता हैं। पृथ्वी सम्मेलन में इन सब पर गहनता से विचार करने के तीन दशक बीत जाने और विशेषज्ञों द्वारा निरंतर सचेत करने के बावजूद अपेक्षित सतर्कता शासन प्रशासन एंव जन मानस द्वारा नही किया जाना बेहद चिंतनीय हैं।
संतुलित विकास की बाते होते रहने के बाद भी गंभीरता पूर्वक इस दिशा में कार्य नही हो पा रहा हैं। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि छत्तीसगढ़ की जीवन दायिनी महानदी सुख रही हैं । विशेषज्ञ कह रहे हैं कि आगामी 10 वर्षों में उचित प्रबंधन न हो तो भयावह स्थिति निर्मित हो सकती हैं।
महानदी समूचा छत्तीसगढ़ की अंत: जल प्रवाह की वाहिका हैं इनकी सहायक नदियों में खारुन ,शिवनाथ सेतगंगा ,आगर ,अरपा , जोग, हसदेव केलो हैं। महानदी सदानीरा रहेगी तो इन नदियों का जलभराव और भूगर्भ जल स्त्रोत कायम रहेगा ।अन्यथा यह पुरी भूगर्भिक जल स्त्रोत को खीच कर सुखा सकती हैं।
जल बिन सर्वत्र त्राहिमाम / कोहराम मच जाएगा ।अभी भी वक्त है वर्षा जल को प्रति दस किमी में स्टाप डेम /एनीकेट बनाकर रोका जाय। नदी तट पर हवा से नमी अवशोषित कर जड़ से जल विसर्जित करने वाले पेड़- पौधे का रोपण कर के प्रभावी संरक्षण भी कर सकते हैं। साथ ही उद्गम सिहावा से लेकर हीराकुंड तक कृषि मत्स्य पालन , वाटर गेम आदि से रोजी- रोजगार , नदियों के दोनो ओर यातायात और धार्मिक सांस्कृतिक मेले यात्रा द्वारा महानदी व अन्य नदी तट को प्रदेश की समृद्धि के कारक के रुप में विकसित किया जा सकता हैं।
न कि यहां की बेश कीमती जैव विविधता से युक्त वनों हसदेव जंगल , बार अभ्यारण , गुरुघासीदास अभ्यारण , उदंति , कांगेर वेली जैसे प्राणवायु देने वाली वनप्रांतर को उजाड़कर कर , यहां निहित अमूल्य खनिजों का दोहन कर इस शस्य श्यामला भूमि को मरुस्थल बनाकर और नदियों को मारकर महज कुछेक वर्षों के लिए आर्थिक लाभ उठाने का उद्यम किए जाय। अन्य समृद्ध राज्यों और नव धनाड्यों के उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराया जाय ।
बल्कि ग्लोबल वार्मिग के चलते हो रहे मौसम परिवर्तन और वर्षा न होने के कारण मानवता की रक्षा के लिए वनों , नदियों और प्राकृतिक जल स्त्रोतों को बचाना हमारी पहली प्राथमिकता क्योकि यह रहेगा तो हम सब रहेंगें।
धन्यवाद
- डा. अनिल कुमार भतपहरी
( 9617777514 )
सचिव
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर
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