#anilbhatpahari
आशीष ,भाग्य और कर्म
आशीष लेना और देना मानवीय प्रवृत्तियाँ हैं।
घर -परिवार में भी बडे-बुजुर्गों से आशीष लिए जाते हैं।
छत्तीसगढ़ी में इसे असीस कहते हैं। इसी तरह संत महात्मा गुरु शिक्षक आदि से प्रणाम के उपरान्त उनसे मिलने वाली मंगलकामनाएं ही दुवाएं हैं।
उपर्युक्त आशीष व मंगलकामनाओं के विपरीत गालियां दुत्कार या श्राप हैं। इसे कुमंगल और भर्त्सना निंदा आदि भी कह सकते हैं। किसी के दिल दु:खाने या प्रताड़ित व अपमानित करने से जो बद् दुवाएं मिलती हैं। चाहे सामने या पीठ पीछे हो वह तो और भी धातक होते हैं।
बाहरहाल अच्छे और बुरे कर्मों के द्वारा ही यह व्यक्ति को गुण- दोष के आधार पर यब सब मिलते हैं।
रही बात देव- धामी, तीर्थ व्रत मंदिर मूर्ति या खेत खलिहान नदी नाले पहाड़ आदि इन सबमें आस्था होने के कारण इनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। और उनसे आशीष लिए जाते हैं। मंगलकामनाएं की चाह रखते हैं। उनसे त्वरित आशीष मिलता हैं ऐसा प्रत्यक्ष दिखता तो नहीं पर शांत चित्त हो धैर्य रखने से जरुर ध्येय की प्रतिपूर्ति होती हैं । इससे सकरात्मक व रचनात्मक कार्यों के तन मन हृदय बुद्धि साथ होते हैं। फलस्वरूप आशातीत सफलताएँ मिलती हैं। इसलिए इन सबका जीवन संघर्ष में अतिशय महत्व हैं।
लेकिन विचारणीय तथ्य यह है कि "केवल आशीष मागने से ही जीवन चलेगा यह सोचना ठीक वैसा ही व्यर्थ हैं जैसे खेत के सामने खड़ा होकर प्रणाम कर बिना जोते- बोए दो गाड़ा धान देने की प्रार्थना करना और फलीभूत की चाह रख कर इसी विश्वास में अकर्मण्य बनकर रहना
। इसी तरह तीर्थ -व्रत ,मंदिर -मूर्ति आदि में बिना सद्कर्म व सद्चरित्र के कल्याण की कामना करना व्यर्थ हैं।"
इसलिए भाग्य चमत्कार आदि से श्रेष्ठतम कर्म को माना गया है। व्यक्ति को चाहिए कि सदैव सद्कर्म करते रहना चाहिए। उनके पीछे- पीछे ही भाग्योदय होगा और मनवांछित फल की प्राप्ति होगी ।फिर अपने परिजनों के साथ अपने खेत जंगल पहाड़ नदी वहाँ स्थापित अपने ईष्ट के स्थल ,प्रतिमा आदि में कृतज्ञता ज्ञापित कर सकते हैं। सार्वजनिक उत्सव मना सकते हैं।
No comments:
Post a Comment