विश्व मानक दिवस की बधाई
मानक एक तरह से शुद्धता का प्रतीक हैं। वस्तु हो या आचार - विचार इनमें शुद्धता हो, तो विकास के नये आयाम तय होने की बाते की जाती रही हैं। पर सवाल यह है कि वैश्वीकरण के इस दौर में जहां जलवायु तक ग्लोबल वार्मिंग के चलते बदल रहे हैं। रेगिस्तान में बारिश और सघन वनप्रांतर में सुखा पड़ रहे हैं। इन सबसे निपटने हाई ब्रीड तकनीक से खाद्यान्न और मानव प्रजाति ,पशु पक्षी आदि को बचाने अन्तर्जातिय विवाह, कृत्रिम गर्भाधान क्लोन आदि की आवश्यकता हैं। अन्यथा शुद्धता के मोह में ऊपज और प्रजनन प्रभावित होने लगे है। फलस्वरुप शैन: शैन: विलुप्ति के कगार पर पहुंच रहे हैं। इनमें अनेक फसलें ,पशु पक्षी व मानव प्रजातियाँ भी हैं।
वर्तमान समय में आचार - विचार , रहन- सहन, खान -पान भी बहु सांस्कृतिक रुप से निर्वहन किए जा रहे हैं। भाषाएँ भी अब सर्वाधिक मिश्रित स्वरुप में व्यवहृत हैं। इन सबमें मानक या शुद्धता बनाए रखना अब समीचीन नहीं हैं। बल्कि बातें लोगों को समझ में आए और काम चलता रहे यह सर्वाधिक व्यवहृत होने लगे हैं।
हा हर किसी के प्रचलन में मानक तय करने होंगे जो प्रसंगानुकूल व समयानुकूल हो न कि जो अव्यावहारिक और लोगों को समझ में न आने वाली हो।
मानक एक नियम मात्र है जिनके द्वारा व्यवस्था को कायम करने तय किये जाते हैं इस अर्थ में इनका व्यवहार अपेक्षित है न कि मात्र शुद्धता के लिए। इसके लिए अब समय और संशाधन नष्ट नहीं किए जा सकते -
छत्तीसगढ़ी में शुद्धता से अधिक पावनता के लिए "आरुग" शब्द हैं। पर वह भी दुनियां में कही नहीं हैं। एक मुग्धकारी पंथी गीत द्रष्ट्व्य है -
मैं कहवां ले लानव हो आरुग फूलवा
बगिया के फूल ल भंवरा जुठारे हे
गाय के गोरस ल बछरु जुठारे हर
नंदिया के पानी ल मछरी जुठारे हे
कोठी के अन्न ल सुरही जुठारे हे
मन के भाव हवय पबरित ओही ल चढावव ...
ऐसे ही अनेक शब्द और भाव तो है ( मानव की परिकल्पनाओं में है , उसे व्यक्तिगत अनुभूत हो सकता है ) पर वास्तव में वह कही नहीं हैं ,वे अस्तित्व विहिन है इस क्रम में अमृत ईश्वर स्वर्ग आदि हैं। पर इसे अर्जित करने की चाह लिए सदियों से मानव प्रजाति उत्कट यात्रा जारी हैं।
मन के भाव और समझ ही अत्युत्तम है। जिससे मानव जीवन का निर्वाह हो और उनके भूख चाहे पेट या मस्तिष्क का हो उसे मिटाने अन्न हाइब्रिड तकनीक से अधिकाधिक मात्रा में ऊगाए और प्रभावी भावाभिव्यक्ति हेतु अनेक भाषाओं के शब्दों का समन्वित स्वरुप व्यवहृत हो क्योंकि अव नेट मोबाईल जैसे उच्चतम तकनीक और अनेक सुविधाओं के चलते मनुष्य वैश्विक हो चूके हैं। आने वाली पीढ़ी और भी अधिक मेधा शक्ति सम्पन्न होन्गे उनकी अभिव्यक्ति और भी अधिक मुखर और वृहत्तर होंगे फलस्वरुप वही भाषा सर्वाधिक व्यवहृत होंगे जो मानक और प्रभावी व सरल - सहज होंगे ।
- डाॅ. अनिल भतपहरी/ 96177514
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