Tuesday, January 4, 2022

पंथी गीत

छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य :पंथी गीत  मे युवाओं की भूमिका  


छत्तीसगढ में लोक साहित्य अत्यंत समृद्ध है। वाचिक परंपरा मे यहां अनेक लोक गाथाओं के साथ साथ स्वतंत्र रुप से अनेक तरह के गीत मधुरतम  लोक घुन  यहां तक कि शास्त्रीय रागों पर आधारित धुनों पर मिलते  है। या कहे इन लोक धुनों मे शास्त्रीय रागों के लक्षण मिल जाया करते है। कभी कभी ऐसा लगता है कि लोक गीतों मे जो स्वर या धुन है उन्हे परिष्कृत कर शोधित कर अनेक राग रागिनियों का आविष्कार उन्हे शास्त्रीय रुप दिए गये हैं।
    बहरहाल लोक रुची अत्यंत कलामय और परिष्कृत है उन्हे धर्म मत पंथ व्रत त्योहार आदि से जोड़कर उन्हे विशिष्ट स्वरुप प्रदान  कर दिए गये हैं।
   यहां हम सतनाम पंथ में प्रचलित विश्व विख्यात पंथी नृत्य और गीत पर संक्षिप्त रुप से विचार करते हैं। पंथी गीतों की विराट संसार है विगत ढाई सौ वर्षो से यह  अनवरत  परिष्कृत परिशोधित होते हुए वर्तमान मे बेहद प्रभावशाली स्वरुप मे प्रचलित हैं। 
    पंथी गीत अपने नामानुरुप सतनाम पंथ से संबंधित धार्मिक और आध्यात्मिक गीत है जिनके भाव अत्यंत मुग्धकारी और दार्शनिक तत्वों से परिपूर्ण कालजयी स्वरुप मे मिलते है यह चिंतन मनन की उच्चतम भाव भूमि पर सृजित जान पड़ता है साथ ही सरल सहज मनोद्गार भी व्यक्त हैं। सतनाम पञथ के प्रवर्तक गुरुघासीदास चरित भी इनमें द्रष्ट्व्य हैं-
   कर्मा बने हे किसान धर्मा बोवत हवे धान 
सतनाम के नंगरिहा चले खेत जोते ल ...
  गुरुघासीदास ने अपने लाखों अनुयाइयों को जो दिव्य वार्ता gaspal सुनाई ,उसी की प्रतिध्वनि काव्योक्ति के माध्यम से या उधृत करने के निमित्त गीतों के रुप मे अनायस लोककंठों से प्रस्फूटित हुई।
   गुरुघासीदास के अभ्युदय के पूर्व भी इस समुदाय मे कबीर रैदास  नानक  धर्मदास  जगजीवन साहेब आदि के  माध्यम से सत्संग भजन कीर्तन व निर्गुण भजन प्रचलन मे रहे हैं। बौद्ध धर्म के सहजयान और सिद्धो  नाथों की वाणी भी लोक कंठ मे विद्यमान थे। वे सब पंथी गीत मंगल भजन और साधु अखाड़ा के रुप मे गुरुघासीदास के रामत रावटी मे प्रस्तुत होने लगी। अनेक काव्यात्मक प्रतिभा से युक्त अनुयाई जन जो स्मृति मे थे उन्हे और स्वत: नये पद रचनाए कर प्रस्तुत करने लगे । गुरु पुत्र अम्मरदास जी योगदान स्तुत्य है। जिन्होने गुरुघासीदास के उपदेशना के पूर्व इन पंथी व मंगल भजनों द्वारा उपस्थित जनों को ज्ञान और मनोरंजन के साथ एकत्र किए रहते । तत्पश्चात गुरु जी उन्हे अपनी मघुर वचनों से कृतार्थ करते ।
   इस तरह  हजारों की संख्या मे पंथी गीत अनेक जगहों मे प्रचलित होने लगी।  निर्गुण भजन गायन की परंपरा यहां जन्म और मृत्यु के समय प्राचीन समय से रहा है। इनमे नाथ सिद्ध परंपरा के वाणियों और महायानी  सहजयानी बौद्ध भिक्षुओ की वाणियों का समावेश रहे हैं।पंथी गीतों  और मंगल भजनों मे हमे इन सबकी प्रतिध्वनि दृष्टिगोचर होते हैं। डा आइ आर सोनवानी ने पंथी गीत नृत्य का उद्गम विकास और लोक चेतना में उद्धृत किया है - " धार्मिक सामाजिक प्रपंच के खिलाफ बाबाजी का प्रवचन है। कु व्यवस्था के प्रति सुधार क्रांति उनके उपदेश हैं। सत्य की खोज साधना सतनाम का प्रचार गुरुबाबा का कर्मयोग हैं। इन्ही संदेशों को लोग तन्मयता से सुनते  / सुनाते भावों के श्रद्धापूर्ण  अभिव्यक्ति में लय एंव गान का स्फूटन अनायस ही हो जाता हैं।" 
    यही स्वभाविक प्रवृत्ति मनोद्गार पंथी गीतों के आरंभ का मूल हैं। जिसमें गुरुबाबा जी के वचनो कार्यो तथा उनके प्रति आस्था व श्रद्धा सतनाम  संकीर्तन का विषय हो गया । पंथी गीतों का गायन स्थापित हुआ। उनके संपूर्ण जीवन दर्शन उनकी महिमा का बखान उनके परिजनों का प्रदेय और परित्याग पंथी गीतों वर्णित होने लगा। 
   सतनाम एक बीज है संत हृदय सो खेत 
अधर नागर चलाइया सद्गुरु साहेब सेत ...
   सतनाम बीज मंत्र है और संतो का हृदय खेत है जहां अधर होठ रुपी नागर से सतनाम गुरु साहेब घासीदास सतनाम बीज मंत्रो संतो के हृदय रुपी खेत मे अधर रुपी हल चलाकर बो रहे है। यह रुपक उन्हे श्रेष्ठतम और अलौकिक व आध्यसत्मिक  कृषक के रुप मे प्रतिष्ठित करते हैं।
   पंथी मे विराट भाव का सम्यक दर्शन होते है।यहां केवल गुरु चरित और धार्मिक / आध्यसत्मिक  ही नही बल्कि अनेक चुनौतियों द्वञद्वों के मध्य सुगमता पूर्वक जीवन निर्वाह की उपाय का  भी वर्णन मिलता हैं। 
   अहो बबा कौन रहनि मय रहि हभ बतादे गुरु मोर ..
जग अंधियार सुझय नही कोई ठौर 
किंजरत बुलत लागि मति अति ठीक ठोर 
बिकट बियावन बस्ती न ठोर 
लाम्हे सुरतिया सतनाम डोर ...

प्रारंभ मे बैठकर ताली बजाकर समुह स्वर मे गाते /  संत व दर्शक  झोकते इस तरह एक कंठ से दूसरे कंठ तक इनके माध्यम से गुरु वाणी हस्तांरित होने लगे। इसमे नृत्य लाधव व मुद्रा नही था।
जब इसमे वाद्य यंत्र मृदंग झांझ मंजीरे हुड़का इकतारा चिकारा खंजेरी सम्मलित होने लगे तो मनभावन प्रस्तुतियां और नृत्यादि भी होने लगे। फिर इनमे साधकों की नृत्य पिरामीड और हैरत अंगेज प्रदर्शन और तीव्र गति ने ऐसी कीर्तिमान रचा कि पंथीगीत और नृत्य विश्व की सर्वाधिक तेज गति के रुप मे चिन्हाकित हुई। 
   पंथी के अनेक अध्येता विद्वानों और अन्य प्रांतिक लोककलाकारों  भी पंथी नर्तको की चपलता और अनुशासन तथा तीव्र गति से मुद्रा परिवर्तन को देख उनकी अन्तर्दृष्टि और अंतर्शक्ति से साक्षात्कार कर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। पंथी गीत आम जनमानस के गीत है इनके माध्यम से वह आनंदित और अक्षय उर्जा से परिपूर्ण हो सात्विक जीवन शैली मे प्रवृत्त होते हैं। पंथी के सर्जक साधक गायक सभी के अन्तर्मन उज्जवल होते है और दर्शको के मन मे भी सकरात्मक और सात्विक भाव का संचरण होते हैं। श्रद्धा भक्ति और शक्ति का अनोखा समन्वय भाव हमे पंथी गीत व नृत्य मे परिलक्षित होते हैं।
     पंथी चीर नवीन या सदैव प्रासंगिक भावो से युक्त है संसार की वैभव व नश्वर भाव का सुन्दर समन्वय है इनपर अनेक तरह के अन्वेषण की आपार संभावनाएं विद्यमान है। अनेक विश्वविद्यालयों  में  इन पर शोध कार्य भी जारी है जो कि इनकी महत्ता को प्रतिष्ठापित कराते हैं।

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