Monday, August 10, 2020

मज़ा और सज़ा

।।मज़ा और सज़ा ।।

कहते हैं वो कि उनकी ,मज़ा ही मज़ा हैं
पर सच कहे ज़िन्दगी, सज़ा ही सज़ा हैं

 दिखने लगा सब साफ़, चढ़कर ऊँचाई 
आए हाथ  दूर सब ,तन्हाई ही सज़ा हैं 

यकीन है दूर कर लेगें ,उनकी नाराज़गी 
हर अदा पर उनकी, दिल अपनी रज़ा हैं

उसे पता है कि ये ,आदमी है बेवकूफ़ 
पर न जाने क्युं, उनसे ही वफ़ा हैं

झुके थे सज़दे में तभी ख़बर आया 
आ रही ओ इस तरफ़ हो गई कज़ा हैं 

जैसा भी है अब तो मस्ती में मलंग है 
 आने से उनकी अब तो रंगीन ही फिज़ा हैं
  -डाॅ. अनिल भतपहरी

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