#anilbhattcg
।।सामयिक विमर्श ।।
निजीकरण और ठेका प्रणाली से देश की अकूत संपदा को राजतंत्र की तरह लूटा जा रहा हैं। पहले राजा -प्रजा था अब मालिक -नौकर. ऐसा लगता है कि इन नये नवेलों मालिकों के इशारे पर तीनों पालिकाएं चल रही हैं।
दूर -दूर तक इनके उन्मूलन का कोई सोच नही ।उल्टा सार्वजनिक उपक्रमों में बड़े पदो पर बैठे उच्च वर्गीय लोग कमीशन खोरी कर बीमारु उद्योग बना रहे है !फिर बहाना- बाजी कर उसे निजीकरण कर दिये जा रहे हैं।यह खेल विगत दो तीन दशकों से जारी है ।इसलिए भी सकल जनसंख्या की बमुश्किल 20% आबादी नियमित आय वर्ग मे आज तक सम्मलित नही हैं। कोई भूखे से न मर जाय इसलिए मुफ्त राशन बाटने की योजनाए चला रहे हैं। जो कि अव्यवहारिक हैं। क्या ऐसे ही आत्मनिर्भर भारत बनेगा ? आय का स्तर में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है जो इस महादेश के लिए उचित नही हैं।
निम्न मध्यम वर्ग के युवाओं की बेरोजगारी और ऊपर से खाली दिमाग शैतान घर टाईप इनकी फौज खड़ी हो गई ।उसे कह रहे है "रोजगार मत मांगो , बल्कि रोजगार दो।"पर किसे दे ,क्या दे यही उसे पता नही। स्वरोजगार के महकमे और बाजार में चंद लोगों की कब्जा है वहां आसानी से प्रवेश नही है । इन्ही लोगो की हाथ में देश की आर्थिक तंत्र है ।
फलस्वरुप दिशाहीन युवा वर्ग और बेरोजगारों को धार्मिक रैली शोभायात्रा पर लगा दिये गये हैं। कथावाचकों की बाढ़ सी आ गई है । जहां -तहां देखो भोग -भंडारा ब्लेक मनी का वारा न्यारा। भीड़ का नेतृत्व कर आयोजक लोक नेतृत्व की ओर आ रहे हैं।
एक समय महाविद्यालय की छात्रसंघ नेतृत्व की नर्सरी थे अब कथा आयोजन , व्रत त्योहार शोभायात्रा जुलुस आदि के आयोजन नर्सरी में बदल गये हैं।जहां से छुटभैये नेता आ रहे हैं। और वही लोग एक -दूसरे के आयोजन को सही- गलत ठहराकर गला -काट प्रतिस्पर्धा कराते आम जनता को आस्था -श्रद्धा के नाम पर लामबंद कराते वोट बैंक भी बना रहे हैं। जिससे देश मे रह रहे अनेक धर्म मत मजहब पंथ रिलिजन के लोग परस्पर द्वेषी होते जा रहे हैं।यह राष्ट्र के लिए घातक हैं।
सबसे बुरी बात तो नव धनाड्यो द्वारा शहरों में कालोनी कल्चर है जहां अपने अपने समुदाय , खान -पान की स्तर देख प्लाट और फ्लेट्स बेचे जा रहे हैं ।जो आदिम बर्बर जाति वाद का ही नव वर्जन हैं। इस सब पर प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है।
जब किसी एक धर्म की बातें ज्यादा की जाएगी किसी जाति को अधिक महत्व व बढावा मिलेगा तो स्वभाविक है दूसरे धर्म जाति के लोगों में वैमष्यता आकर ही रहेगी ।पशु पंछी , कीट पतंगों को छेड़ते है तो वे प्रतिकार करते है तब किसी मनुष्य को छेड़ेगें को बवाल छिड़ेगा ही। धीरे धीरे देश के अनेक भागों से वर्ग संघर्ष साम्प्रदायिक तनाव की आये दिन खबरें बेचैन करने वाली हैं ।
ऊपर से मासुम सैलानियों के ऊपर धर्म आदि पूछ कर कायराना आतंकी हमला और उनका कनेक्शन सीमा पार से होना बहुत ही निन्दनीय है। इसका तो मुंह तोड़ जवाब हमारी सेना देगी .परन्तु ऐसे गमगीन महौल में देशवासियों के मध्य ही साम्प्रदायिक तनाव का फैलना और एक -दूसरे को शक- सुबहा से देखना ! उसके लिए मिडिया जगत के माध्यम से प्रायोजित महौल बनाना क्या सही है? ऐसे मे कैसे मिडिया को चतुर्थ स्तंभ कहां जाय भला ?