Wednesday, April 30, 2025

सामयिक विमर्श

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         ।।सामयिक  विमर्श  ।।

निजीकरण और ठेका प्रणाली से  देश की अकूत संपदा को राजतंत्र की तरह लूटा जा रहा हैं। पहले राजा -प्रजा था अब मालिक -नौकर. ऐसा लगता है कि इन नये नवेलों मालिकों के इशारे पर तीनों पालिकाएं‌  चल रही हैं।  
   दूर -दूर तक इनके उन्मूलन का कोई सोच नही ।उल्टा सार्वजनिक उपक्रमों में बड़े पदो पर बैठे उच्च वर्गीय लोग कमीशन खोरी कर बीमारु उद्योग बना रहे है !फिर बहाना- बाजी कर उसे निजीकरण कर दिये जा रहे हैं।‌यह खेल विगत दो तीन दशकों से जारी है ।इसलिए भी सकल जनसंख्या की बमुश्किल  20% आबादी नियमित आय वर्ग मे आज तक सम्मलित नही हैं। कोई  भूखे से न  मर जाय  इसलिए  मुफ्त राशन बाटने की योजनाए चला रहे हैं। जो कि अव्यवहारिक हैं। क्या ऐसे ही आत्मनिर्भर भारत बनेगा ? आय का स्तर में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है जो इस महादेश के लिए उचित नही हैं।
  निम्न मध्यम वर्ग के युवाओं की बेरोजगारी और  ऊपर से खाली दिमाग शैतान घर टाईप  इनकी  फौज खड़ी हो गई ।उसे कह रहे है  "रोजगार मत मांगो , बल्कि  रोजगार  दो।"पर किसे दे ,क्या दे यही उसे पता नही। स्वरोजगार के महकमे और बाजार में चंद लोगों की कब्जा है वहां आसानी से प्रवेश नही है । इन्ही लोगो की हाथ में देश की  आर्थिक तंत्र है । 
     फलस्वरुप दिशाहीन युवा वर्ग और बेरोजगारों को धार्मिक रैली शोभायात्रा पर लगा दिये गये हैं‌। कथावाचकों की बाढ़ सी आ गई है ।  जहां -तहां देखो भोग -भंडारा ब्लेक मनी का वारा न्यारा। भीड़ का नेतृत्व कर आयोजक लोक नेतृत्व की ओर आ रहे हैं।  

  एक समय महाविद्यालय की छात्रसंघ नेतृत्व की नर्सरी थे अब कथा आयोजन , व्रत त्योहार शोभायात्रा जुलुस आदि के  आयोजन नर्सरी  में बदल गये हैं।जहां से छुटभैये नेता आ  रहे हैं। और वही लोग एक -दूसरे के आयोजन को सही- गलत ठहराकर गला -काट प्रतिस्पर्धा कराते आम जनता को आस्था -श्रद्धा के नाम पर लामबंद कराते वोट बैंक भी बना रहे हैं। जिससे देश मे रह रहे अनेक धर्म  मत मजहब पंथ रिलिजन के लोग परस्पर द्वेषी होते जा रहे हैं।यह राष्ट्र ‌के लिए घातक हैं। 

  सबसे बुरी बात तो नव धनाड्यो द्वारा शहरों में कालोनी कल्चर है जहां अपने अपने समुदाय , खान -पान की स्तर देख प्लाट और फ्लेट्स बेचे जा रहे हैं ।जो आदिम बर्बर जाति वाद का ही नव वर्जन हैं। इस सब पर प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है।
                जब किसी एक धर्म की बातें ज्यादा की जाएगी किसी जाति को अधिक महत्व व बढावा मिलेगा तो स्वभाविक है दूसरे धर्म जाति के लोगों में वैमष्यता आकर ही रहेगी ।पशु पंछी , कीट पतंगों को छेड़ते है तो वे प्रतिकार करते है तब किसी मनुष्य को छेड़ेगें को बवाल छिड़ेगा ही। धीरे धीरे देश के अनेक भागों से वर्ग संघर्ष साम्प्रदायिक तनाव की आये दिन खबरें बेचैन करने वाली हैं । 
        ऊपर से  मासुम सैलानियों  के ऊपर  धर्म आदि पूछ कर कायराना आतंकी हमला और उनका कनेक्शन सीमा पार से होना बहुत ही निन्दनीय है। इसका तो मुंह तोड़ जवाब हमारी सेना देगी .परन्तु  ऐसे गमगीन महौल में देशवासियों के मध्य ही साम्प्रदायिक तनाव का फैलना और एक -दूसरे को शक- सुबहा से देखना ! उसके लिए मिडिया जगत के माध्यम से प्रायोजित महौल बनाना क्या सही है? ऐसे मे कैसे  मिडिया को चतुर्थ स्तंभ कहां जाय भला ?

Thursday, April 24, 2025

वतन पर मिटने के आदि है लोग

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वतन पर मिटने के आदि हैं लोग 

जिन्दगी के भाग-दौड़ से 
थके-ऊबे लोग 

जीवन संघर्ष में उतरने को
व्याकूल लोग 

आते हैं हसीं वादियों में बिताने 
सुकूं के कुछ पल लोग 

इनके बदौलत ही जीवन जीते 
यहां हसी-खुशी लोग 

पर किसी को अमन पसंद नही 
है कैसे कायर लोग 

गर साहस हो तो आओ सामने 
पीठ पीछे करते फायर  लोग 

दूध से जला छाछ फूंक न सका  
बेफिक्र गफलत में रहे लोग 

व्यर्थ नही जाएगी जन की कुर्बानियां 
वतन पर मिटने के आदि हैं लोग 

मत भूलों कि वार नही होगा 
अपने आकाओ के गोद में बैठे लोग 

कुछ चूहे घुसे है बिल मे कब तक 
किंग कोबरा छोड़ दिये है लोग 

हमाम में सब नंगे कह रहो मुगालते में 
यहां तो नागाओं का फौज पाले है लोग 

- डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Friday, April 18, 2025

सतनामियो की प्रवृत्ति और उनसे व्यवहार

सतनामियों की प्रवृत्ति और उनसे हुए व्यवहार 

सतनामियों में ऋषि गौत्र, उनके अनुरुप जीवन वृत्त, कृषि संस्कृति,गोपालन आज पर्यन्त जारी हैं.महाभारत कालीन 
कुछ प्रथाएँ जैसे युद्धअभ्यास, द्युत क्रीड़ा,रहस, पंड़वानी पंथी नृत्य मलखम नाचा  मनोरंजनार्थ प्रचलित हैं. सत्य के प्रति अटूट आस्था और   किसी भी बुराइयों और कुप्रथाओ के विरुद्ध  जन जागरण  आंदोलन में उत्साह पूर्वक भाग लेना मूल प्रवृतियाँ हैं.

भारत वर्ष में प्रथम गौ रक्षा आंदोलन सतनाम पंथ के चतुर्थ उत्तराधिकारी  गुरुअगमदास गोसाई और महंत नयनदास महिलाँग के नेतृत्व में 1915 से चला. तब लम्बे संघर्ष और आंदोलन से ब्रिटिश बुचड़ खाना कर्मनडीह ढाबाडीह बलौदाबाज़ार छत्तीसगढ़ बंद हुआ.
सतनामी कृषक और गोपालक समुदाय हैं. घी के व्यवसाय करने वाले घृतलहरे गौत्र धारी ऋषि घृत मंद परम्परा से मेदीनीराय गोसाई मथुरा क्षेत्र के वासी थे. औरंगजेब से संघर्ष उपरांत वे 1662 में छतीसगढ़ में आ गए. फिर तीन पीढ़ी बाद 1756 में गुरुघासीदास का अवतरण हुआ.

कुछेक ऋषि गौत्र दर्शनीय हैं -

भारद्वाज - भट्ट, भतपहरी, भारती
मरकंडेय - मारकंडे, माहिलकर, महिलांग 
टंडन - टांडे 
जन्मादग्नि - जांगिड़ जांगड़े 
अंगिरा-  ओगर,अजगल्ले 
परासर - पात्रे 
कणव - कुर्रे करसाइल कुरि 
चतुरवेदानी सोनवानी इत्यादि....
      बहरहाल छत्तीसगढ़ में सतनामी बड़े जोत वाले कृषक हैं. और सैकड़ो जमींदारी मंडल गौटियां रहे हैं. मैदानी क्षेत्र में कुर्मी तेली और सतनामी ही बड़े भू स्वामी हैं. बाकी सेवादार पौनी पसारी जातियाँ इनके अधीन जीवन यापन करने वाले समुदाय हैं.परन्तु एक जगह एक भाषा एक संस्कृति के बाद भी इनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार से ऐसा लगता हैं कि ऐ लोग मुग़ल बादशाह औरंगजेब से संघर्ष कर आव्र जित समुदाय हैं. शाही फरमान कि सतनामियों को चुन चुन कर ख़त्म कर दिया जाय उनके वजूद को नेस्तनाबूत कर दिया के चलते भयवश असैनिक व सीधे  लोग इस समुदाय से दूरी बना लिए. जिसे  देखकर अन्य प्रान्त से लाये बसाए  मालगुज़ार,पंडित और व्यापारी लोग जो शहरों  में रहे वही लोग इनसे जानबूझकर दूरी बनवाये ताकि फुट डालो राज करो की नीति से वे लाभ उठा सके.
गुरुघासीदास के सतनाम पंथ और उनसे हुए  जन जागरण से लोग प्रभावित  हो बड़ी तेजी से धर्ममांतरित   हुए तो उसे रोकने भी अस्पृश्यता व्यवहार करने लगे. इसे देख अनु जाति वर्ग में सम्मलित किये गए.
अन्यथा डा अम्बेडकर लिखित पुस्तक " अछूत कौन और कैसे? में  जितने भी प्रमुख बिंदु दिए हैं उनमे एक लक्षण भी सतनामियों में नहीं मिलते -
अछूत होने के कारण 
1 अस्वच्छ पेशा होना - सतनामी बड़े कृषक और तेली कुर्मी से होड़ लेता हुआ. कृषि कार्य अस्वच्छ पेशा नहीं हैं.
3 गाँव से बाहर  दक्षिण दिशा में निवास होना, कच्चे मकान या झोफड़ी-   सतनामियों के प्रायः बाड़ा नुमा बड़े  पटाउहा वाला दो तल्ला घर, कुआ बाड़ी,बारी ब्यारा कोठार युक्त घर. बीच गाँव में घर या पूर्व दिशा में बसाहट हैं.
4 गाय बैल पशुधन नहीं. सतनामी बड़े गोपालक हैं उनके घर राउत और पहटिया लगते हैं.बकरी मुर्गी पालन जैसे कोई कार्य आज भी नहीं हैं.
5 गोमांसाहार - सतनामी प्रायः शाकाहारी हैं वे मांस क्या उनके साहिनाव तक को नहीं खाने वाले समुदाय हैं. नारनौल मथुरा क्षेत्र से आयतीत समुदाय दूध दही घी  उत्पादक खाने और बेचने वाले समुदाय हैं.
6भूमिहीन - यह बड़े कृषि जोत वाले हैं मालगुजार मंडल गौटिया होते हैं. पौनी पसारी जातियों राउत लोहार कुम्हार चमार ( मोची मेहर  ) के पालक हैं.
7 कुरूप / निर्धन असभ्य - सतनामी सर्वांग सुंदर दर्शनीय, सम्पन्न भिक्षावृत्ति से रहित परिश्रमी समुदाय हैं.

 तो फिर अस्पृश्य होने का कारण क्या हैं?
1 ब्राह्मण वाद को नहीं मानना 
2 मूर्तिपूजा नहीं करना 
3 शाक्त मत का प्रबल विरोध 
4 बलि प्रथा का विरोध 
5सभी  अछूत सछूत जातियों के  साथ सम व्यवहार और उसे अपने में मिला लेना.
6 गुरुप्रथा 
7 कठोर परिश्रम और स्वालंबी होना.

इन सब तथ्य के बावजूद सतनामियों के साथ कुछ अन्य प्रान्त से आये और नगरीकरण होने से बसे लोगों ने मैदानी क्षेत्र में साथ साथ बसे तेली कुर्मी लोधी अघरिया जातियों के प्रतिद्वन्दी बना दिए ताकि इनमे सामाजिक धार्मिक एकीकरण न हो सके और इनके बीच पलने वाले सेवादार जातियाँ नाई, धोबी, राउत, मोची मेहर  मेहतर गाड़ा लोहार कुम्हार कहार मरार आदि भी अपने अपने ठाकुरों अर्थात भू स्वामी किसानों के बीच बटा रहे.
आजादी के पूर्व और बाद में बड़े ग्रामो क़सबो शहरों में बसे  व्यापारी  मारवाड़ी, गुजरती मराठी सिंधी,पंजाबी और सरयूपारी  ब्राह्मण आदि लोगों ने किराना, और जरुरत की चीजें बेचने दुकान खोले और महाजनी देशी बैकर बनकर आर्थिक शोषण किये वही लोग तेजी से धनाढ्य हो लघु और बड़े उद्योग लगाकर  पुरी तरह छत्तीसगढ़ की  आर्थिक तंत्र पर नियंत्रण कर लिए गए. तथा सामाजिक धार्मिक  एवं राजनैतिक रुप से पुरी छत्तीसगढी जनता पर राज करने लगे.
आदिवासी बहुल राज्य भी बास्तर सरगुजा क्षेत्र में गोड़ कंवर बिंझवार भुजियाँ मुरिया माड़िया उरांव पहाड़ी कोरबा बैगा भैंना के रुप में सांस्कृतिक रुप से विभाजित और अंग्रेजो द्वारा ईसाई धर्ममांतरित हो परस्पर बटे हुए हैं. इन पर भी पर प्रांतिक लोगों का नियंत्रण हैं. और वे शहरी लोग अपनी लाभ के लिए एकजुट होकर छत्तीसगढी समुदाय को बाटकर शक्तिहीन कर उस पर राज कर रहे हैं. उनकी अपनी बोली भाषा कला संस्कृति और स्वायत्ता पर नियंत्रण हो चूका हैं.

शेष आगामी अंक में

संपादकीय म ई 2025

संपादकीय ....

सतनाम धार्मिक स्थलों-बाड़ो का रखरखाव व प्रबंधन  हेतु "सतनाम संपदा समिति" का गठन  हो ! 


अप्रेल का महिना सतनाम धर्म- संस्कृति में महत्वपूर्ण माह है। 
इस माह में  राजा गुरु बालकदास जी के कर्मभूमि बोड़सरा धाम मेला का महिना हैं। जहां शौर्य पराक्रम के साथ -साथ श्रद्धा भक्ति  के लिये भी जाने जाते हैं। ज्ञात हो कि शिवनाथ नदी के उस पार रतनपुर राज्य में  बिल्हा तहसील जिला बिलासपुर में कुआ बोड़सरा धाम स्थापित है। जहां से रतनपुर राज के सतनामी समाज जुड़े हुये थे और वहां से समाज का संचालन होते थे। सुप्रसिद्ध तेलासी बाड़ा जैसे ही हुबहु यह महत्वपुर्ण  निर्माण है। 

 भीषण अकाल के समय गुरु वंशज समाज हितार्थ जमीन बाड़ा आदि को गिरवी रखे।
 तत्कालीन महाजनों का हड़प नीति और चक्रवृद्धि ब्याज ,मुड़कट्टी बाढ़ही डेढ़ही से अनेक मालगुजार मन्डल गौटिया और कृषक अपनी भूमि और गांव से बेदखल हो गये या संपदा और मिल्कियत को मुकता नही सकने की लज्जा या हिकारत से छोड़ दिये । फलस्वरुप शहरों में बसे अंग्रेजी सत्ता से संरक्षित गैर प्रांतिक मूल के  व्यापारी / ठेकेदारों ने मिली भगत कर उन्हे कुर्क नीलाम करवाकर या चुपचाप कागच पत्र बनवाकर या कूट रचकर हथिया लिये ।

 जिसमे तेलासी बाड़ा , बोड़सरा बाड़ा , रायपुर स्थित गुढियारी  रायपुर के साहेब बाड़ा, जवाहर नगर के मांगड़ा बाड़ा मोवा बाड़ा  प्रमुख है। इनमे मोवा के गुरुबाड़ा को छोड़ शेष गिरवी में डूब गये ।
    मोवा बाड़ा में गुरु अगमदास गोसाई  मिनीमाता जी रहती थी और स्वतंत्रता आन्दोलन को संचालित करती थी।जहां पर प नेहरु के विश्वस्त बाबा रामचंद्र रहते थे और यहां की जानकारी और रणनीति बनाते थे। वर्तमान मे विजय गुरु / रुद्रगुरु साहेब लोगो का निवास स्थल हैं।

उनमे सबसे चर्चित  तेलासी बाड़ा मुक्ति आन्दोलन देश भर में चर्चित रहा । गुरु आसकरनदास साहेब एंव राजमहंत नैनदास कुर्रे के नेतृत्व में 103 सत्याग्रहियों की तीन दिनों की जेल यात्रा से प्रदेश का महौल गर्मा गया और देश भर मे चर्चा हुई । फलस्वरुप तत्कालीन मुख्यमंत्री  मोतीलाल वोरा की सरकार ने सभी सत्या ग्रहियों को 6- 10  अप्रेल 1986  को   नि: शर्त रिहा कर तेलासी बाड़ा को  गणेशमल लुंकड़  जैन से 27 अप्रेल को  मुक्त करवा कर समाज को सुपुर्द किया ।तब से इसी तिथि को तेलासी बाड़ा मुक्ति दिवस मेला धूमधाम से मनाये जाते हैं। पर बाड़ा खंडहर हो कभी भी जमींदोज हो सकता है। इनके पुनर्निर्माण की नितांत आवश्यकता हैं। 
इसी तरह बोड़सरा बाड़ा की मुक्ति आन्दोलन कई दशकों से जारी है पर मामला न्यायालय में लंबित होने से  आज पर्यन्त लाखों श्रद्धालुओं को बाड़ा का दर्शन नही हो पाता। यह दु:खद  है हालांकि बाड़ा मे विगत कई दशको से कोई नही रहते और खंडहर सा जीर्ण - शीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है। 

बोड़सरा गांव में  नाले के पास मैदान में  मन्दिर व जैतखाम और सतनाम भवन बना हुआ है ,वहां प्रतिवर्ष   चैत्र शुक्ल पंचमी से सप्तमी ( 2-4 अप्रेल  )को त्रिदिवसीय विशालकाय मेला  भरता है जो कि गरिमामय  सम्पन्न हुआ।‌
गुरुघासीदास जयंती समारोह के प्रवर्तक मंत्री  नकूल देव ढ़ीढ़ी  जयंती  12 अप्रेल को  उत्साह एंव धुमधाम से मनाई गई । महासमुन्द ,भोरिंग , बैहार आरंग सहित क ई जगहों पर जयंती आयोजन की खबरें हैं। 
  इसी तरह  आमापारा में सतनामी समाज को आबंटित भूमि जिसमें छात्रावास आश्रम और धर्मशाला बनना था वहां पता नही तत्कालीन प्रबंधक समिति अध्यक्ष कन्हैलाला कोसरिया , रामाधार बंजारे  आदि ने बिल्डर्स विमल जैन से मिलकर किस सेवा शर्त द्वारा व्यवसायिक परिसर गुरुघासीदास प्लाजा 5 मंजिला भव्यतम  निर्माण करवाया ।दुकाने बाट या बेच दी गई । करोड़ो की संपदा से समाज और होनहार छात्रों का भला होता वह आज चंद लोगो के पास जा रहे है। वर्तमान प्रंबधक लोग महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब कर दिये गये है  या न्यायालय में विचाराधीन है इस तरह की भ्रामक जानकारियां देते है या वास्तविक तथ्य छुपाते है जबकि निर्माण 30 से अधिक हो चुके है परन्तु आज तक समाज को बिल्डर  जैन द्वारा सुपुर्द ही नही किया हैं  कितने वर्ष के लीज है यह भी सार्वजनिक नही करते । जो कि चिंतनीय है। समाज के प्रभावशाली लोगो को प्लाजा मुक्ति हेतु अभियान चलाना चाहिये ।कही यह भी बोड़सरा बाड़ा जैसा न हो जाय । अब समय आ गया है कि सतनाम धर्म स्थलों और बाड़ो के रख रखाव और संरक्षण के लिये  "सतनाम संपदा  समिति"  गठित किया जाय ।जैसे वक्फ और मठ मंदिरों की संपदा के लिए संस्थान गठित हैं। ताकि वहां पर  सतनाम धर्म  संस्कृति से संदर्भित विविध आयोजन सम्पन्न किया जा सकें। दान दाताओं द्वारा उचित फोरम या संस्थान नही होने से दुसरे धर्मों के मठ - मन्दिर या धर्म स्थल  में दान करते हैं  (जैसे बोईरडीह पलारी का  एक‌ निसंतान कृषक  अपनी पुरी खेत दुधाधारी मठ को चढा दिये।) वह यहां कर सकें और उनका सही ।उपयोग होते देख समझ सकें। उनके बुढापा में संस्थान में काम भी आ सकें।

    संविधान निर्माता और आधुनिक भारत के शिल्पी भारत रत्न डा अम्बेडकर  की 14 अप्रेल को जयंती मनाकर उनके प्रदेय को स्मृत किया गया। 

समाज में सार्वजिक रुप से आदर्श विवाह और युवक युवती परिचय सम्मेलन का दौर चल ही रहा है  इसमें न्युनतम आय वर्ग के लोग सक्रियतापूर्वक मजबुरी या जरुरत के हिसाब से सक्रिय है आयोजक वर्ग सम्पन्न और नौकरी व्यवसायी व समाज सेवक साधन सम्पन्न वर्ग है ।परन्तु इस आदर्श विवाह मे उनके परिजनों की सहभागिता नही होती जबकि इसमे भी साधन सम्पन्न वर्ग सम्मिलित होकर गरिमामय और भव्य रुप दे सकते है इस दिशा में सार्थक पहल होनी चाहिये।
     महाविद्यालयीन / स्कूली छात्रों का परीक्षा  परिणाम और प्रवेश और हमारे कृषक बन्धुओं का खरीफ फसल हेतु खाद- बीज  कृषि यंत्र क्रय हेतु  ग्रामीण या अन्य बैकों से ऋण आदि की प्रक्रिया जारी है ।सामर्थ्य अनुसार खर्च करे और जरुरत पड़े तो ऋण ले ।नशा , जुआ और व्यर्थ शान प्रदर्शन की होड़ से बचे और सादगीपुर्ण मितव्ययता से जीवन निर्वहन करें इस अपील के साथ अभी यदा कदा सतनाम सद्ग्रंथ , सतनामायन , आयोजन भी 3-5-7 दिवसीय हो रहें है। अभी अभी खबर आई कि सतनाम भवन भिलाई में त्रिदिवसीय आवासीय  सतनाम सत्संग आयोजन दि ..... से हो रहें हैं।
 इस तरह ग्रीष्मकालीन समय का सार्थक सदुपयोग कर रहे संत समाज को यह अंक सादर समर्पित हैं। पढ़े- पढावे और समाज विकास हेतु सार्थक परिचार्चाए करें  संस्थानों को यथायोग्य आर्थिक सहयोग दे ताकि बेहतरीन आयोजन होते रहें। जितना आयोजन होगा समाज सुसंगठित और सुव्यवस्थित होगा। 
जय सतनाम 
डा. अनिल भतपहरी / 9617777514
प्रबंध संपादक 
सतनाम संदेश 
सतनाम भवन न्यू राजेन्द्र नगर रायपुर छत्तीसगढ़

Tuesday, April 15, 2025

बोरे बासी

बोरे बासी 


ठंडा मतलब बोरे बासी ये डायलाग सनीमा के नोहाय भलुक सिरतोन आए। ते पाए के जुड़ के दिन मे बासी नई खाय जाय अऊ गरमी के दिन होय या असाढ या कुंवार कुहकुही होय आम जनमानस बिकटेच बासी दमोरथे। 
      सैकमा भर बासी बोकेव
      खांध म कांदी के कावर बोहेव 
आवत हव छिरहा खार ला 
 आगोर लेबे साजा रवार मे 

  यह बासी का ही असर है की दो बोझा कांदी  जो बहुत ही वजनी होते हैं को दोपहर लहकते धूप मे भी ददरिया गाते सपरिहा घर आते हैं। बासी की  ठंडक ताशीर के कारण ही यह डायलॉग लोगों के सर चढ़ कर बोला।
   बहर हाल बासी चावल उत्पादक राज्यों की सबेरे की लोकप्रिय खाद्य सामग्री हैं। नाम भले बासी हैं पर यह हिंदी की बासी वाली शब्द के विपरीत हैं। बचे हुए अनुपयोगी वस्तु बासी या बेकार हैं। इसे प्रायः  पशुओं को खिलाए जाते हैं ।
  जबकि बासी को  ताजे गरम भात  में पानी डालकर बनाएं जाते हैं। जिसे एक आधे घंटे के भीतर खाए जाते  यह बोरे हैं। और सुबह के लिए ज्यादा मात्रा में चावल बनाकर भात में पानी डालकर सुबह सुबह खाए जाते हैं।  यह केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि सभी चावल उत्पादक राज्यों की सबसे लोकप्रिय खाद्य पदार्थों में शुमार हैं।
   हालाकि आधुनिक जीवन और पाश्चात्य खानपान तथा शासकीय नौकरी और एकल परिवार के चलते बासी बनाकर खाने की प्रवृत्ति शहरों और नौकरी व्यवसाई समाज में खात्मे की ओर हैं। जबकि बासी सही पोषण देने वाले पारंपरिक और वातावरण के हिसाब अनुकूल खाद्य पदार्थ हैं।
      बर्गर पिज्जा सेडविच मैदा को सड़कर खमन उगाकर ब्रेड बनाते है। मोमोज मे भी मैदा है उसमें गर्म तासीर की साग या चिकन मटन डाल कर कुशली जैसे बनाए जाते है यह ठंड पदेश की खाद्य हैं साथही साथ  गर्म प्रदेशों की इडली डोसा ढोकला थेपला जैसे दक्षिण और पश्चिमी इलाके/ राज्यों के खाद्य पदार्थ जिसे सडकार बनाएं व खाएं जाते हैं।
   लेकिन मध्य छत्तीसगढ़ जहा धान की बम्फर खेती हैं चावल आधारित ताजी खाना खाना खाए जाने की विशिष्ट परंपरा हैं। यहां अनाज को बिना सडाये या कहें खमन उठाए खाने की परंपरा हैं।
    बासी को मंडल गौटिया सहित राजा भी शौक से खाते थे। बासी खाने की बटकी होते थे।
कहीं कही सकीमा भी कहते है जिसमें बासी रखे जाते है 
एक लोकप्रिय ददरिया हैं 
बटकी मा बासी आय चुटकी मा नून 
मैं गावत हव ददरिया तय कान दे के सुन 

  क्योंकि ऐसा ही समझकर इसकी अनादर व हिकारत किए जाने लगे हैं। जबकि यह मल्टी विटामिन से युक्त सुपर फूड हैं।  इसे अनेक संस्थान द्वारा प्रमाणित भी किए गए हैं। बीपी गैस यहां तक कि सुपाच्य होने से शुगर के लिए भी उपयुक्त माना गया हैं।
   अपेक्षाकृत शारीरिक परिश्रम न करने वाले लोग बासी की महत्ता से अनभिज्ञ हैं। फिर इनसे समय संसाधन की बचत भी तो हैं। कभी कभी कम चावल की भात मे पानी छाछ दही डालकर भी अतिरिक्त लोगों की क्षुधा मिटाई जा सकती हैं।
   तो इस तरह से किसी भी राज्य देश खान पान रहन सहन के ऊपर हिकारत या उपेक्षा भाव नहीं रखना चाहिए। क्योंकि सबकी अपनी अपनी दार भात, साग भाजी, खाई खजेना, हाट बाजार, खेती बाड़ी, कपड़ा लता, गहना गोठी, चूरी चाकी, छठी बर बिहाव मरनी हरनी गीत भजन नाचा लेखन , हंसी मजाक कू काहिनी होथे जोन संस्कृति के अभिन्न अंग हे। इन्हीं के भरोसे अभाव मय जीवन मे सभाव भरते  लोग जीवन निर्वहन करते आ रहें हैं।
  बासी बिकती नही और यह व्यवसायिक नही है इसलिए मिलावट से कोसों दूर हैं।शायद इसलिए पौष्टिक हैं। जिस दिन यह बिकने लगेगी शायद तब उनकी गुणवत्ता पर प्रश्न उठेगी। इसे तो बस घर मे बनाव  खाव और ज्यादा हुवा तो अपने साथ टिफिन मे अपने कार्य स्थल खेत बाड़ी आफिस दुकान ले जावे। व्यस्त मस्त और स्वस्थ रहे। जय छत्तीसगढ़ जय भारत

Monday, April 14, 2025

गुलमोहर का पेड़

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गुलमोहर का पेड़ 

हबीब तनवीर साहब के अभिन्न मित्र सेवानिवृत स्टेशन मास्टर सी एल डोंगरे साहब की संस्मरणात्मक एवं मार्मिक आलेख गुलमोहर का पेड़ कृषक युग / सबेरा संकेत के दीपावली विशेषांक 1994  मे प्रकाशित और चर्चित हुई. वो मेरे पास ज़चवाने लाये थे मैंने व्यवस्थित कर उन्हें पत्रकार मित्र नयन जनबंधु को दिया था.उसी अंक में मेरी कविता "प्रणय "प्रकाशित हुई थी. सच में 30-32  वर्ष  वह आलेख कथेतर साहित्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं.
डोंगरे साहब बांसुरी बजाते थे और छिटपुट लिखते भी थे पर वे प्रकाशन और प्रचार -प्रसार सें कोसो दूर थे. बहुत ही विनम्र और तनवीर जी के प्रशंसक थे.वे उनकी अंग्रेजी में लिखी अंतर्देशी पत्र दिखाते कहते कि साहब जैसा कोई नहीं. सच में हमलोग "जिन लाहौर नहीं देख्या कुछ नहीं देखा  " देखने रंग मंदिर रायपुर आये पर वापसी में कार पर सवार हबीब को देख लौट आये ट्रेन लेट हो जाने सें मंच का लाहौर नहीं देख पाए और पचपन के कगार पर हैं  अबतक पासपोर्ट भी नहीं बनवा सकें हैं. ससुरी किस्मत में विदेश जात्रा का जोग ही नहीं हैं का? 

बहरहाल डोंगरगढ के छोटी बमलेश्वरी मंदिर के आगे पहाड़ की तलहटी में एक आश्रमनुमा प्रांगण हैं जहाँ तनवीर साहब अपने नाटकों का रिहर्सल करते थे. रेलवे टिकट, होटल इस जगह के चयन सें लेकर भोजनादि के प्रबंध डोंगरे साहब के साथ डोंगरगढ इप्टा के  मनोजगुप्ता आदि मित्रगण करते थे.मैं भी उसमें सम्मलित हो जाता और फिर घंटो हबीब साहब के सानिध्य पाते उनके कलाकारों सें बातचीत और रोचक संस्मरण भी सुनते. मैने हबीब साहब को बताया कि हमलोग भी पिता श्री सुकालदास भतपहरी गुरुजी के निर्देशन में चोहल चरनदास चोर खेलते हैं. वे पाईप पीते कहें अच्छा अच्छा... आप क्या बनते थे जी पहले  उजागर ?  ये कैसा पात्र.? जी यह निर्धन भूखऊ के  बालक.का नाम ... स्टोरी अलग हैं? जी हाँ...कई दृश्य हैं दरभंगा बिहार वाली लीला टाइप... तब तक गोविन्द निर्मलकर जी आये साहब सें कुछ कहें क्योंकि वो सिटी तरफ जा रहें थे... उसके बाद चेला अब गुरु. अच्छा चरनदास कौन प्ले करता हैं? जी पिता श्री...अच्छा अच्छा..अभी भी शो करते हैं जी अब प्रायः बंद हो गये....करो चालू करो कई चीजें हैं उनपर काम करों...और वे व्यस्त हो गये.

कार्यशाला स्थल के किनारे साजिदों ने.हारमोनियम ढोलक के थाप दिए तो  खनकती सुर और नृत्य  पूनम की  - "देखो आज बन की रानी कहाँ सोई हैं"... गूंज उठी...रात्रि के 8 बजने वाले थे. बायसान हार्न दंडामि माड़िया की नृत्य अभ्यास और बांस वादन के साथ सफ़ेद कुर्ते पजामे में  झूमते तनवीर को उनकी अधेड श्रीमती, बुजुर्ग डोंगरे साहब और यह नवयुवक अनिल हसरत भरी निगाह सें देख रहें थे जैसे कोई सुरलोक में देव या गंधर्व थिरक रहें हैं!  स्याह रंग में लिपटा माँ बम्लेश्वरी पहाड़ की गोद में ठीक हजारों वर्ष पूर्व "सीता बेंगरा" जैसे  प्राचीन "नाट्य शाला " साकार हो उठी हो.
.   अब तो वह सब  देव सदृश्य कलावंत नहीं रहें पर जो हैं और थिएटर प्रेमी हैं उनकी खातिर डोंगरगढ़ की वह सुरम्य स्थली जिस जगह  पद्मविभूषण हबीब तनवीर साहब कई -कई दिन नाटकों के रिहर्सल में बीताते उसे स्मारक के रुप में सरकार प्रतिष्ठित करें.और उनके  प्रिय एवं अभिन्न मित्र सी एल डोंगरे साहब के गुलमोहर का पेड़ जरुर रोपित कर उक्त सुरम्य स्थल को रंग जगत के लिए संरक्षित करें.
.   
- डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514

Monday, April 7, 2025

हस्तक्षेप

सड़क उकरेच ददा के 
जेमन उहचे डेरा डारे हे 
नाचत -कूदत रइथे
जुलुस तिहार मनाथे  

हम तो उहि दिन 
जेवनी ले डेरी गयेन
त मोटर म 
रेतावत बाचेन

का कहँव ये दे 
पुलुस धर लिस
रुपया पैसा नोहर हे
तभेच तो बेडागेन

हमन मनसे नोहन 
जिनावर संग राहत
सित्तो जंगल म 
जिनावर होगेन...

सुनब म आथे 
संसद सड़क होगे 
अउ सड़क संसद 
फेर हमन कहुँचों
हबरे नई सकन 

आजकल तो सर्कस 
घलाव नंदागे 
मोगली टार्जन
चेंदरु तको हजागे

येती पंडुम ओती बम 
रिलो बार उजरगे
आँगा कछान
जात्रा मड़ई झरगे

पहाड़ ओदरत हे
जंगल उजरत हे 
अगास म मैना नहीं
लोहा चिरई उड़त हे.


धर्म नहीं पंथ ही उत्कृष्ट और व्यवहारिक हैं.

#anilbhattcg 

धर्म नहीं पंथ ही व्यवहारिक और सर्वोत्कृष्ट है.
आजकल  हिन्दू मुस्लिम बौद्ध ईसाई धर्म के स्थान पर मानव धर्म की बातें की जा रही है. जो कि
किसी के साथ " धर्म " शब्द लगना अव्यवहारिक है. 

.   असल में  भारतवर्ष में  व्यक्ति के लिए "धर्म " कभी रहा ही नहीं वह शैव शाक्त वैष्णव  जैन,बौद्ध  धम्म,मत पंथ ही था जिसे 100-150 वर्ष ही हुए है भारतीयों के लिए  (बौद्ध धर्म को क्योंकि यह देश में जमीदोज हो चूका था इसलिए इसे छोड़कर डॉ अम्बेडकर नें उसे 1956 में पुन:प्रवर्तन किया) सभी मत पंथ आदि जिसमें आदिवासी भी हैं को सामूहिक रुप सें "हिन्दू "कहें गये और उसे ही धर्म मान लिए गये !  जबकि  हिन्दू शब्द स्थान बोधक हैं  यह शब्द किसी भारतीय  भाषा में भी नहीं हैं न ही धर्मशात्र में  हैं. मुस्लिम मजहब हैं,ईसाई रिलीजन हैं.

.  खैर बात  धर्म शब्द की हैं जैसे धर्म किसी वस्तु या व्यक्ति या प्राणी में मिलने वाली  गुण- अवगुण प्रवृत्ति उदा. पानी का शीतल, आग का तपिश, हवा का बहना, धातु का कठोर,शेर का हिंसक मांसाहारी , गाय शाकाहारी, सांप का विषैले होना आदि है जिसे वह अपने में धारित कर रखा है वहीं उनका धर्म हैं . इस तरह यह मनोवृत्ति सूचक धर्म शब्द, पंथ के आगे का हैं या एक धर्म में अनेक मत पंथ की बातें तो और भी अधिक अव्यवहारिक व अप्रसांगिक हैं.तो स्थान बोधक हिन्दू हिन्दूस्तनी भारतीय  या अमेरिकी या पाकिस्तानी धर्म कैसे हो जाएगा? 

असल में समुदाय के मत मजहब पंथ  रिलीजन प्रणाली पद्धति लिखित /अलिखित होते है जिसके अनुरुप जीवन निर्वाह किए जाते है.यह परिवर्तनीय और ऐक्छिक भी है.
नाहक धर्म जो गुण अवगुण आदि को इन के साथ मिलाकर भ्रम फैलाये गये है. धर्म शब्द को व्यक्ति के सामूहिक पहचान के प्रयोग में लाना ही नहीं चाहिए इसे प्रतिबंधित भी कर देना चाहिए.क्या गाय हाथी शेर चींटी मछली चिड़िया जैसे प्राणी और पेड़ फूल टेबल टीवी मोबाईल कार बाइक आदि का कोई  मत पंथ  है? नहीं उनके गुण होते जिसे वह धारित किए होते है.ठीक मनुष्य भी अच्छे बुरे गुण को अन्य प्राणियों की तरह धारित करते है. तो नीरा मनुष्य नामक प्राणी का धर्म हिन्दू मुस्लिम सीख ईसाई आदि क्यों? 
.   हाँ वह समूह में रहता है तो उस समूह समुदाय का मत पंथ मजहब रिलीजन जरुर होते है. उसे ही हम उक्त नाम सें और उनकी कुछेक क्रियाये वेशभूषा आदि सें पहचाने जाते है.बाहरहाल मत पंथ भी गुरु घासीदास जी के कथनानुसार होना चाहिए -

"अवैया ल रोकन नहीं जवाइयां ल टोकन नहीं."

जबरिया किसी पर  मत पंथ विचार को थोपने और जो है उसे जबरिया उनमें बांध कर रखने की आवश्यकता भी नहीं. क्योंकि यही सब चीजें ही सारी फसाद की जड़ है.
परम सत्य ही इस तरह भ्रम जाल और अज्ञानता रूपी तमम को काट कर  ज्ञान का आलोक फैलाते है.

. इस तरह विचार करें तो मनुष्य के लिए  धर्म सें अधिक  पंथ ही उत्कृष्ट और व्यवहारिक है.जो सतत प्रवाह मान और जीवंत या बुद्ध की वाणी में कहें तो " एतो धम्मों ( पंथ  )  सन्नतनो " है. अर्थात जीवन जीने यह धम्म या मार्ग सनातन हैं.
.    सनातन शब्द यहॉं विशेषण हैं जो धम्म मत पंथ की विशेषता को व्यक्त करते हैं. अतः ज्ञानियों प्रज्ञावानो विचारकों को चाहिए कि देश और समाज  में  पंथ मत और धर्म की वास्तविकता को जनमानस को अवगत करावें और उन्हें अनेक तरह के भ्रम और सड्यंत्र सें सावधान भी करावें. ताकि इस उपमहाद्वीपिय महादेश मे विविधतापूर्ण संस्कृति अक्षुण बनी रहें और परस्पर सदभाव और सौहार्द सें अमन चैन क़ायम रहें.

. डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514

Saturday, April 5, 2025

सतनाम सदग्रन्थ का आयोजन

संपादकीय 

सतनाम सदग्रन्थ का आयोजन और उनका सामाजिक प्रभाव 

 सतनाम धर्म संस्कृति एक तरह सें उत्सव धर्मी संस्कृति हैं.जहाँ वर्ष भर कार्यक्रम चलते रहतें हैं.मानव समुदाय में जो विषमताएं  और अभाव ग्रस्त जीवन हैं उनमें  यही सांस्कृतिक आयोजन की समता और सभाव को भरता हैं फलस्वरूप सुखी और संतोषप्रद जीवन जी पाते हैं.
सोचिये आज सें 50-60 वर्ष पूर्व कितनी असुविधाएं और कष्टमय जीवन रहा फिर भी हमारे परिजन बिना बिजली सड़क स्कूल अस्पताल नदी में नाव के सहारे जीवन व्यतीत किया. इन सबके पीछे गाँव -गाँव में गठित बाल समाज,  तीन तरिया भजन, निर्गुण भजन,  पंथी दल, चौका आरती,पंडवानी,रहस बेड़ा, सतनाम संकीर्तन, गुरु घासीलीला मंडली, आल्हा, भरथरी, गोपीचंद,ढोला मारु जैसे गीत भजन गाथा गायन का अनुष्ठानिक और मनोरंजनिक कार्यक्रम रहा हैं.
 खेतों खलिहानों  के  कठोर श्रम को हरने शारीरिक और मानसिक पीड़ा का शमन करने इस तरह के आयोजन करते थे. तब समाज सुगठित और संत,महंत पंच पटेल न्याय कर लेते थे. पुलिस थाने कोर्ट कचहरी का हस्तक्षेप नग्नय या कम था.  आपराधिक प्रवृत्तियाँ जुआ शारब   नशे पान मांसाहार जैसे व्यसनों सें  समाज कोसो दूर होते थे. और यदि किसी के प्रति जानबा होते तो दण्डित होते थे.अनेक ऐसे महंत गुरु थे जिनका प्रभाव  व्यापक स्तर पर था.नैतिक स्तर बहुत ही उच्च होते.सादा विचार और उच्च जीवन ही जीवन का ध्येय था.परन्तु आज गाँवों में यह सब बुराइयां जड़ जमा चूके हैं. और लोगों का जीवन स्तर रूपये कमाने और पर्याप्त आय के बाद भी निम्नतर होते जा रहें हैं.टीवी वीडियो के आने ख़ासकर मोबाईल आने सें सांस्कृतिक आयोजन लगभग खत्म सा हो गये. गाँवो का सामाजिक उत्सव और आयोजन खात्मे की ओर हैं.अब उँगुली में गिने जाने वाले गाँव बचे हैं जहाँ पंथी दल या कोई कला मंडली होंगे.लगभग सभी चीजें व्यवसायिक हो चले हैं और सेवा समर्पण कम होने लगे हैं. 
 एक समय शहर धोखा धड़ी चोरी उठाई गिरी छल प्रपंच के अड्डे थे वह सुविधाओं और सुकून का जगह बन गये हैं.ऐसा क्यों हुआ? इन पर विचार करने की जरुरत हैं.लोग अपना  एकड़ में खेत बेचकर शहरों में 500/700 फ़ीट का लाखों में घर खरीद कर फ्लेट लेकर ख़ुशी और समृद्धि की मृग मरिचिका तलाशते शहरों,क़स्बों में भटक रहें हैं.शिक्षा स्वास्थ्य के निजीकरण हो जाने और प्रतिस्पर्धा के युग हो जाने सें अंधी दौड़ में सब शामिल हो बिना मंजिल तय किए भाग रहें हैं.
.  ऐसे में विगत कुछ वर्षों सें समाज में सदग्रंथ आयोजन सतसंग प्रवचन का 3-5-7  दिवसीय सुविधाजनक आयोजन समाज को पुनः सामाजिक उत्सव की ओर ले जाने और नई पीढ़ी के लोगों में सामाजिक और धार्मिक भावनाओं का बीजारोपण करने का उपक्रम अत्यंत सराहनीय हैं.
समाज में राजनैतिक चेतना गुरुघासीदास के समय सें ही रहा जब उन्होंने अपने सुपुत्र गुरु बालकदास को राजा बनवाया.अनेक संत -महंत को जमींदारी मिली. कलांन्तर उन्ही महंतों में सें 72 संत महंत गुरुआगमदास और राजमहंत नयनदास महिलाँग के नेतृत्व में 1915 में गोरक्षा आंदोलन चलाकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. दूसरी ओर मन्त्री नकुल ढीढी एवं महंत नंदूनारायण भतपहरी मिलकर गुरु घासीदास जयंती के माध्यम सें सामाजिक क्रांति की शंखनाद  अनगिनत लोग जेल की यन्त्रणा सहे और आत्म न्योछावर किए.फलस्वरूप देश को आजादी मिली. शिक्षा और रोजी रोजगार मिले शहरों में बसते गये सत्ता में थोड़ी बहुत सहभागिता मिली. पद -प्रतिष्ठा का मोह बढ़ा तो अनेक दलों में बिखराव होने लगे.  फिर  सचेतक समाज नेतृत्व शून्य हो राजनैतिक रुप सें इस्तेमाल होने लगा.  लोगों में राजनैतिक चेतना बढ़ती हुई दीखता तो हैं पर यह दिशाहीन हैं.इसके कारण बड़ी तेजी सें समाजिक ताने- बाने बिखरते जा रहें हैं. सांस्कृतिक चेतना की दिशा में काम नहीं हो पाने सें नैतिक स्तर में गिरावट आना शुरु हुआ. अतः उन्हें रोकने और नई पीढ़ी को दिशाबोध करने कराने हेतु सदग्रंथ समारोह, सांस्कृतिक जागरण और बौद्धिक क्रांति लाने की दिशा में क्रन्तिकारी पहल हैं.
विचारवान लेखक कवि कलाकारों का साझा सम्मेलन और उनके सम्बोधन प्रबोधन काव्य प्रस्तुतियाँ विचार विमर्श इत्यादि आगे चलकर समाज में नई इबारत लिखेगा ऐसी उम्मीद हैं.इसलिए इस तरह के आयोजन सर्वत्र हो इस दिशा पर हमारे आयोजकों, संगठनों और राजनायिको को सार्थक पहल करना चाहिए. 

असम प्रान्त में मिनीमाता जन्म स्थल चिकनी पथार, दौलगांव में नवनिर्मित मिनीमाता स्मृति भवन के लोकार्पण पर एक वृहत राष्ट्रीय सतनामी सम्मेलन सम्पन्न हुआ.
3 एवं 5 दिवसीय सदग्रंथ आयोजन का सिलसिला भी खरोरा,रहंगी सहित पलारी बलौदाबाजार सहित अनेक क्षेत्रो में हो रहें हैं समाज प्रमुखो और महापुरुषों की जयंती समारोह भी हो रहें हैं.बोडसरा धाम मेला गरिमामय सम्पन्न हुआ.  सतनामी समाज में बलौदाबाजार जिला एक तरह गुरु घासीदास धाम यानि बाबाधाम के नाम विगत कई सालों सें लोगों के जुबान में चढ़ चूका हैं वह नाम शीघ्र शासन प्रशासन के जुबान सें उच्चरित होंगे और इस तरह के रचनात्मक आयोजन  शासन प्रशासन के सहयोग सें समाज को नई दिशा मिलेगी और सुनियोजित ढंग सें  नशा  मांसाहार और साम्प्रदायिक गतिविधियों में हमारे युवजनो की बढ़ती रुझान या इस्तेमाल को यथा संभव रोक पाएंगे इस उम्मीद के साथ यह अंक समाज को सादर सम्पर्पित हैं.

जय सतनाम 

डॉ अनिल कुमार भतपहरी / 9617777514
ऊँजियार सदन अमलीडीह रायपुर छत्तीसगढ़