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पटवा
कृषको के लिए अत्यंत उपयोगी पटवा का पौधा मुख्यत: रस्सी बनाने के काम आते हैं। पर इनके कोमल पत्ते की स्वादिष्ट सब्जी बनती हैं और फल की चटनी।
यह दो प्रकार के होते है पटवा और अमारी पटवा
अमारी पटवा भाजी को खटाई के लिए उपयोग कर अन्य सब्जियों के साथ मिक्स कर चटपटे और स्वादिष्ट तरकरिया बनाई जाती हैं।
दही मही, इमली की पत्ती कुरमा, आम का चूर्ण अमचूर अमारी, करौंदा आदि खटाई के लिए हमारे दैनदिनी खानपान में सम्मिलित हैं।इससे विटामिन सी सहित अनेक खनिज और पोषण तत्व प्राप्त करते हैं।
खट्टी और चिपचिपी इसमें धनिया मिर्च लहसुन मिलाकर सील बट्टे से पीसकर चटनी बनाई जाती हैं। इनकी कोमल पत्ते की चने या राहर दाल के सब्जी या केवल सुखी सब्जी बनाई जाती हैं।
आकाशवाणी के पुराना चिकारा वादक गायक कलाकार मानदास टंडन जी स्वर में पटवा भाजी अमर हो गए _
पटवा भाजी बासी मे गजब सुहाथे ...
पटवा से अमारी पटवा ज्यादा खट्टी होती हैं और उनकी रस्सी नहीं बनती।
पटवा को सडाकर ढेरा आट कर रस्सी डोर आदि मजबूत रस्सी बनाई जाती हैं_
मेरी एक वर्षा गीत मे यह जिक्र हैं
हरियर बन दुबी ह गहीदे सरग अमरन लागे
परछी में बईठ बाबा हर ढेरा ल आटन लागे ..
मोटे पटवा रस्सी डोर से बाल्टी बांधकर कुएं से पानी खींचने धान की बीड़ा को गाड़ी में भरकर डोर से बांधकर लाने के काम आते हैं।धान दलहन तिलहन फसलों की बोरा की सिलाई हेतु पतली सुतली या लकड़ी अन्य आवश्यक वस्तुएं गाड़ी में भर बांध कर लाने ले जाने के काम आते हैं।
पटवा से रस्सी निकालने के बाद सफेद संडऊवा काड़ी बचते हैं उसका उपयोग ठंड सुबह सुबह चूल्हा जलाने चाय बनाने या भुर्री तापने के काम आते हैं।
लक्ष्मण मस्तुरिया, भैय्यालाल हेड़ाऊ कविता वासनिक की लोकप्रिय होली गीत _
गोरी के कनिहा संडऊवा के काड़ी
गोरी के आंखी गोटा रन के बाटी ...
विवाह के समय तेल चढ़ाई रस्म मे संडऊवा काड़ी से चूलमाट के दिन दूल्हा दुल्हन को उनके सर पे रखकर नीचे मां की हथेली होते हैं ऊपर से कई जगह बड़ी दीदी, फुफू चाची मामी आदि उंगली लगाती हैं और ऊपर अंजरी रोटी फसाकर घी या अलसी का तेल टपकाते हैं। मां हथेली में उसे एकत्र कर दूल्हा_ दुल्हन को पिलाती हैं और कहती हैं कि चाटना मत नहीं तो आने वाले बच्चे तोतले हो जायेंगे। बड़ी बुजुर्ग महिलाएं गीत गाती हैं _
जुनवानी ले निकले पथर फोर केकरा, रयपुर ले निकले रेल
हमरो गोसाईं बबा के दूई झन बेटवा, पहिने सोनहा जनेव।
मेरे साथ विवाह में यह रस्म हुआ हैं । तो इस तरह हमारे खानपान हमारे उपयोग और गीत भजनों हमारे रीति रिवाज रस्मों में पटवा और उसकी पत्ते की भाजी फल और रस्सी तथा संडउवा का समावेश हैं।
ऐसा कोई बाड़ी या ब्यारा नही जहां बारिश में पटवा न बोते हों। यह हमारे कृषि संस्कृति के अभिन्न अंग हैं।
हालांकि अब नायलोन रस्सी आने से और ट्रैक्टर हार्वेस्टर आ जाने से यह सब विलुप्ति की कगार में हैं।
फिर भी यदा_ कदा दिख जाते हैं।
आज सोसल मीडिया में झारखंड की लोकप्रिय खाद्य वस्तु के रुप में आए पोस्ट देख कर मुझे लगा कि यह केवल खाद्य ही नहीं हमारी संस्कृति और रस्मों रिवाज़ के भी अभिन्न अंग हैं इसलिए लिखना हुआ।
डॉ. अनिल भतपहरी/ 9617777514
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