Thursday, October 10, 2024

। जातपात अंधविश्वास ही क्या धर्म का आधार हैं।।


भारतीय समाज वर्ण जाति गोत्र इत्यादि मे विभक्त हैं। अनेक प्राचीन ग्रंथों में इनका जिक्र हैं।
डोम चमार चांडाल 
जे वर्णधाम तेली कुम्हारा.
स्व पच किरात कोल कलवारा कह जातिगत निंदा भी की गई हैं पर देखिए यही लोग ही ध्वजवाहक हैं।

जाति भास्कर 
जाति रहस्य 
मनुस्मृति 
छुआछूत 
मुलाकरम 
गंगावतरण प्रथम संतान को गंगा में प्रवाहित करना 
सतीप्रथा 
विधवाओ का परित्याग या मथुरा वृंदावन भेजना 
देवदासियां 
रथयात्रा में कुचल कर मरना 
काशी करवट लेना 
नरबलि 
पशुबली 
डोला उतराई 
घोड़ी मे शुद्रो/दलितों को न चढ़ने देना 
गुरुकुल में शिक्षा न देना 
और लार्ड मैकाले के स्कूल शिक्षा लागू होने के पूर्व और उसके बाद भी दशकों तक निरक्षर भारत का होना।

जैसे अनेक कुरीतिया क्या अंग्रेजो का देन हैं?
हर समस्या के लिए अंग्रेज के ऊपर दोष मढ़ना क्या उचित हैं वे नहीं आते तो इस देश का क्या हाल बेहाल रहता? ये जो सिस्टम चल रहा हैं रेल सड़क शिक्षा स्वास्थ्य आदि आधारभूत चीजे हैं हैं उन्ही लोगों के देन हैं। बहुसंख्यक समाज का कुछ भला होते दिख रहा हैं वह भारतीय संविधान के कारण हैं। यह न भूलिए
 कथित दिव्यास्त्रों वाले देश में घोर निरक्षरता मे क्यों साक्षरता अभियान चला ? 
गर्भवती सीता का शक के चलते परित्याग 
महारानी दौपदी को जुवे मे हरना और भरे दरबार एक अबला रजस्वला का चीर हरण करना कौन सी महानता और गर्व करने का प्रसंग हैं? सोचिए जब देवी स्वरूपों की यह निरीह दशा थी तब जन नारियों की कैसी नरकीय दशा रही होगी?
   आज भी शाम 6 के बाद अकेली लडकी घर से बाहर नहीं निकल सकती कौन सा यत्र नार्यस्तु पूज्यते तंत्र रमंते देवता कह दंभ हैं? निर्भया, मणिपुर और डा मैडम का रेप जैसे रोज घटने वाली कुसंस्कृति से भरा अमानवीय बर्बरताये क्या अंग्रेज पोषित हैं कि सामंतवाद अभिजात्य और घृणित जातिवाद जो शास्त्र पोषित हैं का कारनामा हैं?
     केवल आवाज तेज करने चीखने चिल्लाने और चंद एक दो उदाहरण या सुदामा ब्राह्मण के पैर पखारने या किसी नाईन द्वारा महावार लगाने चमारीन के द्वारा नाल कटवाने से समानता नहीं थी न सम्मान था।
     काव्यों की चमत्कारिक कारिक वर्णन को इतिहास न समझे।
देश की अकूत संपदा पर 15% अभिजात्य लोगों का अधिपत्य आरंभ से पूंजीवादी देश राजाओं मालगुजारो जमींदारो आजादी के बाद कथित उच्च वर्गो के नेतृत्व शासन प्रशासन और कलेजियम मीडिया आदि मे इन्ही लोगों का अधिपत्य और 65से 70% ग्रामीण परिश्रमी जनता का शोषण इनपर राज क्या नजर नहीं आते?
दुनिया अंतरिक्ष और ग्रहों तक जा रहे हैं यह नवग्रह शांति पाठ और छल्ले धारण करने और एक दूसरे के घर तक जा नही पा रहे एक दूसरे का छुआ नहीं खा रहे।
दलितों के कितने होटल रेस्तरां है? ग्रामीण कस्बों में किसी दलित शासकीय सेवकों को किराए का घर तक नहीं मिलता।
21 सदी के 25 वे वर्ष तक जात पात धर्म कर्मकांड ढोंग पाखंड चल रहा हैं। कोरोना ने सारे धर्मस्थल के पट बंद कर दिए बावजूद देश मे अस्पताल नहीं बड़ी बड़ी धर्मस्थान बन रहे हैं। चमत्कार ढोंग पाखंड और बाबागिरी बढ़ते जा रहे हैं।
भीषण बेरोजगारी हैं और हम स्व यशगान कर रहे हैं कि स्वान गान कर रहे हैं।
पूरे देश मे जातपात धर्म और भेदभाव प्रतिद्वंदिता बढ़ते जा रहे हैं।
तब ऐसे मे समृद्ध राष्ट्र कैसे बनाएंगे केवल पुरातन पंथी और व्यर्थ पोंगापंथ से काम नहीं चलेगा।

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