Tuesday, March 21, 2023

राष्ट्र प्रेम नवगीत

राष्ट्रप्रेम हेतु नवगीत 

मन में बसा हैं उसे 
चौंक-चौराहें पर बसा रहा 
जहाँ सुकून होते 
वहाँ रोज दंगा करा रहा 

करते खून श्रद्धा का 
हर बार भड़काकर भावना 
मंदिर-मस्जिद का खेला  
बिगाड़ते ये सद्भावना 

जाति धर्म सम्प्रदाय 
में बाटकर 
कर रहे हैं  राज 
तुम्हारे वोट पाकर 

कला संस्कृति तीज त्योहार 
मेले मड़ई हाट बाजार 
कपडे लत्ते चांऊर दार 
इसमें ही उलझाकर 

साध रहे हैं ये  स्वार्थ 
तुम्हे उल्लू बनाकर
तुम्हारा जंगल तुम्हारी जमीन  
तेरे कच्चे माल पर उनकी मशीन 

बैंक तुम्हारा पैसा तुम्हारा 
सत्ता से मिलकर सेंध मारा 
उद्योग धंधे छद्म कारोबार 
से कमाकर लाखों हजार 

देश की अकूत संपदा लेकर फरार 
छोड़ रहे देश ये नव धनाड्य हर बार 
होते जाते  क्यो इन के संग सरकार 
चुनते हो हरदम क्यों ऐसी सरकार 

अब तो जगों देशप्रेमियों 
अपना होश  सम्हालों 
जाति धर्म में बटो नहीं 
बटते देश को सम्हालों 
 
गर मतभेद रहा तो भी
कभी  मनभेद न करो 
छोड़कर पूर्वाग्रह सभी 
राष्ट्र हेतु सब एक रहो

    - डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

No comments:

Post a Comment