Tuesday, March 28, 2023

लड़की

८ मार्च महिला दिवस पर...हमारी  वर्षो पूर्व  लिखी कविता द्रष्टव्य है -  
 
"लड़की"

महुंए की फूल है 
न जाने कब टपक पड़े 
ख़ानाबदोश है 
कब कहां डेरा पड़े
सच कहें तो
शीशी है इत्र की 
ढीली हुई डांट 
कि गंधाती उड़ पड़े 
दहलीज़ फांदते ही 
ऊग आतें हैं 
असंख्य पर 
उड़ना चाहती हैं
वह भी 
स्वच्छंद आकाश पर 
पर ,पर कतर दी जाती हैं
कहकर कि तुम 
घर की इज्जत हो 
तुम्हारे बाहर जाने से
किसी से युं ही
हस बोल लेने से 
या किसी को शक्ल 
दिखा / दिख जाने मात्र से  
वह चली जाएगी 
जिसे पुरखों ने 
वर्षों प्रखर पराक्रम से 
अर्जित किया हैं
भले पुरुष 
और उनके परिवार
उसे भुनाते समृद्ध हो
किसी के इज्ज़त  
से खेलते रहे 
मान मर्दन कर 
अट्टहास करते रहें
पौरुष प्रदर्शन कर
उपहास करते रहे
हास परिहास करते रहे
ऊपर से यह सुक्ति 
गजब की यह युक्ति 
बिन राग रति रंग के 
भव में बुड़े
और संग इनके 
भव से तरें  
पाते पुरुष मुक्ति 
नरक द्वार से 
गूंजते सुदूर कही 
यत्र नार्यस्तु पुज्यंते  
रमन्ते तत्र देवता  !
तब मासूम सा 
एक सवाल 
कि देवी कैसे,
और कहां रमती है? 
तलाशती फिरती
सकल ब्रम्हाण्ड 
जारी है यात्रा
दहलीज़ भीतर  
मुगालते में बाहर 
खाट पर बैठें 
लटकते ताले सदृश्य 
कठोर पुरुष 
भले वे हो लुंज -पूंज
घुत्त नशे में 
या हो अशक्त 
वृद्धा कोई जो 
कोमलांगी तो है 
पर ओढ़े हुए पौरुष
ढ़ोते हुए भार 
कठोर- कुरुप 
बेचारी लड़की
औरत बेचारी 
बेचारी नारी ..!!!!

पिता ,पति- पुत्र 
के अधीन सदा 
नारी तेरी अधीनता 
रही है मर्यादा 
और यही है 
नारी की अस्मिता 
नारी की गौरव गान 
बालबिल कुरान गीता
गाई गयी असीम महिमा 
पर कहीं न कहीं 
है एक घड़ा रीता 
तलाशती स्वयं अपनों में 
अपनी ही अस्मिता 
द्रौपदी रुक्मणी राधा 
सीता अहिल्या सूर्पनखा   
लोई आमिन यशोधरा 
मरियम रजिया सफरा 
बेटी बहु बहन बन कर मां 
हुआ जग में न्यारा ...

- डा. अनिल भतपहरी

चित्र -जीवन संगिनी श्रीमती अनीता भतपहरी (उसे ही समर्पित यह कविता । )

नायाब कला

#anilbhatpahari 

।।नायाब कला ।।

ठहरता कहां मन ये देख लो भला 
कसे जाते फब्तियां कहकर मनचला...

दाग से ही खूबसूरत हुआ है चंद्रमा 
बेदाग देखने पर ये लगता कैसे  भला ...

अक्सर नाम वाला होता है बदनाम यहाँ 
बेनामी  कभी बदनाम हुआ हैं  भला...

ज़रुरी नहीं कि हर बात उनसे कही जाय
पता है आती नहीं हमें छुपाने की कला ...

हरदम बढ़ाते साहस कर हौसला अफ़जाई
मुफ़ीद हैं प्यारे पाई हैं क्या नायाब कला ...

     - डाॅ. अनिल भतपहरी/ 9617777514

Wednesday, March 22, 2023

जस गीत - 4

नवरात्रि म मातृका वंदना 

ये माटी मोर दाई तोला बंदव बारंबार 
ये धरती महारानी तोला बंदव बारंबार   
तोर महिमा हवय अपरंपार ओ...

डीह डोंगर जंगल झाडी  
अउ नंदिया म निरमल पानी 
देबी-देवता  संत गुरु -ज्ञानी 
कत्कोन लेइन अवतार ओ ...  
 
तोर कोरा म उपजेन बाढ़ेन 
अउ पायेन मया दुलार 
रतन पदारथ गरभ म भरे हे 
उपजाथस अन्न हजार ...

तोर अंगना -डेहरी म हरहिंछा   
खेलन अउ सुख पावन 
तोर परतापे अम्मट बिच्छल 
जिनगी के डोंगा नाहकय पार ...

     - डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Tuesday, March 21, 2023

राष्ट्र प्रेम नवगीत

राष्ट्रप्रेम हेतु नवगीत 

मन में बसा हैं उसे 
चौंक-चौराहें पर बसा रहा 
जहाँ सुकून होते 
वहाँ रोज दंगा करा रहा 

करते खून श्रद्धा का 
हर बार भड़काकर भावना 
मंदिर-मस्जिद का खेला  
बिगाड़ते ये सद्भावना 

जाति धर्म सम्प्रदाय 
में बाटकर 
कर रहे हैं  राज 
तुम्हारे वोट पाकर 

कला संस्कृति तीज त्योहार 
मेले मड़ई हाट बाजार 
कपडे लत्ते चांऊर दार 
इसमें ही उलझाकर 

साध रहे हैं ये  स्वार्थ 
तुम्हे उल्लू बनाकर
तुम्हारा जंगल तुम्हारी जमीन  
तेरे कच्चे माल पर उनकी मशीन 

बैंक तुम्हारा पैसा तुम्हारा 
सत्ता से मिलकर सेंध मारा 
उद्योग धंधे छद्म कारोबार 
से कमाकर लाखों हजार 

देश की अकूत संपदा लेकर फरार 
छोड़ रहे देश ये नव धनाड्य हर बार 
होते जाते  क्यो इन के संग सरकार 
चुनते हो हरदम क्यों ऐसी सरकार 

अब तो जगों देशप्रेमियों 
अपना होश  सम्हालों 
जाति धर्म में बटो नहीं 
बटते देश को सम्हालों 
 
गर मतभेद रहा तो भी
कभी  मनभेद न करो 
छोड़कर पूर्वाग्रह सभी 
राष्ट्र हेतु सब एक रहो

    - डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Thursday, March 16, 2023

राष्ट्र हेतु नवगीत

राष्ट्रप्रेम हेतु नवगीत 

मन में बसा हैं उसे 
चौंक-चौराहें पर बसा रहा 
जहाँ सुकून होते 
वहाँ रोज दंगा करा रहा 

करते खून श्रद्धा का 
हर बार भड़काकर भावना 
मंदिर-मस्जिद का खेला  
बिगाड़ते ये सद्भावना 

जाति धर्म सम्प्रदाय 
में बाटकर 
कर रहे हैं  राज 
तुम्हारे वोट पाकर 

कला संस्कृति तीज त्योहार 
मेले मड़ई हाट बाजार 
कपडे लत्ते चांऊर दार 
इसमें ही उलझाकर 

साध रहे हैं ये  स्वार्थ 
तुम्हे उल्लू बनाकर
तुम्हारा जंगल तुम्हारी जमीन  
तेरे कच्चे माल पर उनकी मशीन 

बैंक तुम्हारा पैसा तुम्हारा 
सत्ता से मिलकर सेंध मारा 
उद्योग धंधे छद्म कारोबार 
से कमाकर लाखों हजार 

देश की अकूत संपदा लेकर फरार 
छोड़ रहे देश ये नव धनाड्य हर बार 
होते जाते  क्यो इन के संग सरकार 
चुनते हो हरदम क्यों ऐसी सरकार 

अब तो जगों देशप्रेमियों 
अपना होश  सम्हालों 
जाति धर्म में बटो नहीं 
बटते देश को सम्हालों 
 
गर मतभेद रहा तो भी
कभी  मनभेद न करो 
छोड़कर पूर्वाग्रह सभी 
राष्ट्र हेतु सब एक रहो

    - डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Sunday, March 12, 2023

मंत्री जी का बजट पर अभिभाषण

बजट पर धन्यवाद ज्ञापन ‌


हमारी सरकार की यह अंतिम‌ बजट पर मुझे धन्यवाद ज्ञापन करने आमंत्रित किए हैं उनके लिए  मान अध्यक्ष महोदय के प्रति आभार प्रकट करता हूं। सदन के नेता मान  भूपेश बघेल मुख्यमंत्री छ ग शासन । एंव विपक्ष के नेता मान चंदेल जी सहित हमारे मंत्री मंडल के सदस्य गण, मान  संसदीय सचिव गण , एंव मान विधायक गण जय जोहार जय छत्तीसगढ़ ।
    यह बजट छत्तीसगढ़ को विकास की शिखर तक पहुँचाने की एक सरग निसैनी यानि सीढी की तरह है। कोरोना काल के भीषण संकट और केन्द्र से अपेक्षित सहयोग  न मिलने तथा जीएसटी की हमारे हक अधिकार की  राशि से वंचित होने के बावजूद हमलोग विगत चार साल से  जनमानस के कल्याणकारी योजनाओं को सीमित संसाधन से  प्रतिपूर्ति करते आ रहे हैं। यह अवसर हमें हमारी छत्तीसगढ़ महतारी के ऊपजाऊ धरती  और ये प्रकृति के सहयोग से धान की  बम्फर उत्पाद  साथ ही प्रचुर मात्रा मे वनोपज और विभिन्न भूगर्भीय  खनिज पदार्थों  से सुख पूर्वक जीवन व्यतित करने का सौभाग्य  मिला है। प्रकृति की  कृपा के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करना हमारा नैतिक दायित्व हैं। 
   जब से हमारे मुखिया मान भूपेश बघेल जी प्रदेश का कमान सम्हाला हैं। सर्वत्र अमन चैन हैं। और अनेक नव निर्माण जारी हैं। राज्य की इस अवस्था को देख मुझे  स्मृत हो रहा है -

हरसत बरसत सब लखै करसत लखै न कोय ।
तुलसी प्रजा सुभाग से भूप भानु सम होय ।।

   संत बाबा तुलसीदास की उक्ति वर्तमान छत्तीसगढ़ में शत प्रतिशत सही है।  हालांकि यह लोक तंत्र हैं पर जो राजकीय व्यवस्था की उन्नत परिकल्पना की ग ई उनका चरितार्थ  माता कौशल्या के मायका और भगवान राम के ननिहाल छत्तीसगढ़ की धरा पर मान मुख्यमंत्री जी जन कल्याणकारी योजना - नरवा गरुवा घुरुवा बारी लाकर किया ।
  क्योकि  हमारा प्रदेश ग्राम्य व  कृषि प्रधान  राज्य हैं। यहाँ यही चारों चीजों ही आधारभूत तत्व हैं जिनके जतन से सहज ही समृद्धि लायी जा सकती है। और विगत 4 वर्षों में समृद्धशाली छत्तीसगढ़ का दिग्दर्शन हुआ भी है। चाहे राज्योत्सव हो, अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतिस्पर्धा का आयोजन हो अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी  नृत्य महोत्सव हो , मैनपाट महोत्सव , राजिम पुन्नी मेला , रामायण प्रतियोगिता और कौशल्या धाम सहित राम वन गमन पथ का विकास और इन जगहों के आयोजन में  देश -विदेश से  खीचें आते पर्यटक हो । यहां की कला संस्कृति और भाषा बोली  के  उन्नयन से प्रदेश का गौरव देश- दुनिया में  सर्वत्र विस्तारित हुआ है।

     धान के कटोरा हर धान म छलकय ।
  फरय फूलय अउ अंजोर बगरावय ।।

      सरकार की आपार लोकप्रियता समय- समय पर हुये उपचुनाव में प्राप्त जनादेश में भी परिलक्षित हुई हैं। प्रदेश में नक्सल गतिविधियां थमी रही और कोई  बड़ी अप्रिय स्थिति निर्मित नहीं हुआ ।यह देश दुनिया भली भांति देख समझ रहा है। 
   ग्रामीण विकास के साथ साथ नगरी विकास का कीर्तिमान लगातार राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत होने से स्थापित हुआ है। 
   पिछले चार साल में धान की खरीदी का सीधे किसानों के खाते पर नकद और समय समय पर बोनस राशि जमा होने से  यहाँ कभी आर्थिक संकट नहीं आया । आम लोग खुशहाल हैं। कर्मचारी अधिकारी व्यापारी खुश है। प्रदेश सर्वत्र खुशहाली दर्शनीय हैं। मेले- हाट- बजार  खेल - तमाशा,  शादी ब्याह तीज त्योहार सब में रौनक आया हैं ।
   कोरोनाकाल के चलते नीजि क्षेत्र में अवसर घटे तथा  प्रदेश के नवयुवकों में व्याप्त बेरोजगारी को दूर करने युक्तियुक्त आरक्षण की प्रस्ताव पास कर मान राज्यपाल के पास लंबित हैं जैसे ही हस्ताक्षर होगा तत्काल बड़ी संख्या में  विभिन्न विभागों शास सेवाओं के अवसर मिलेंगे।

        उम्मीद ही नहीं पूर्णतः विश्वास हैं कि सत्र समाप्ति तक कोई सुनियोजित हल मिलेगा ।
     सर्वत्र विकास सबका विकास हमारी सरकार की मूल सिद्धान्त हैं। और इस पर हम लोग काम कर रहे हैं। भूपेश है तो भरोसा है , कका जिन्दा है जैसे जनप्रिय नारा  जनता से स्वस्फूर्त गढे हैं जो कि लोकप्रियता की पराकाष्ठा हैं।

  उड़ना है स्वच्छंद तो खुला आकाश चाहिए
  होना है सफल तो जरा सा आत्म विश्वास चाहिए

  हमारी सरकार और कांग्रेस पार्टी  में जरा सा नहीं बल्कि भरा- पुरा लबालब आत्म विश्वास हैं। अभी अभी राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ जिसमें हमारे शीर्ष नेतृत्व सम्मलित होकर जो यहाँ की विकास की गञगा देखे वह देश भर में छत्तीसगढ़ माडल के रुप में चर्चित हो रहे हैं। जिनका अनुशरण अन्य जगहों पर होना निश्चित हैं।
   हाल ही मान मुख्यमंत्री जी ने जो दीर्घकालिक प्रभाव वाली दूरदर्शी बजट प्रस्तुत किया हैं। वह प्रदेश को नव कलेवर प्रदान करेगा । यह बजट अब तक के विकास के सारे कीर्तिमान तोड़कर रखेगा ऐसा उम्मीद हैं। 

उड़ान पंख से नहीं  हमारी हौसलों से हुई  हैं ।
चहुमुखी विकास भूपेश के  दूरदर्शी फैसलों से हुई  हैं।।

    जय  जोहार जय छत्तीसगढ़ जय भारत

Friday, March 10, 2023

हड्डी की जीभ नहीं कि न फिसलें का लिंक‌

#anilbhatpahari 

।।हड्डी की जीभ नहीं कि न फिसलें ।।

अपनी प्रति अमेजान ,फिल्पकार्ट , गूगल प्ले से   मगाइयें - या   ईबुक फाम में उपलब्ध डाउनलोड कर प्रिंट करवाइये और नववर्ष में नव अनुभूतियों से जुड़िए ...

।।हड्डी की जीभ नहीं कि न फिसलें ।।

https://play.google.com/store/books/details?id=4CKkEAAAQBAJ

कल तुम्हे ईश्वर बनना हैं , राम की सद्गति , वहम , युद्ध , सड़क, काव्यार्पण  सुनकर असआर मेरी, कविता  इस तरह विविधतापूर्ण 71 कविताए और उनपर खूबसूरत पेंटिग्स ।

 मानवता ,समानता,  और सामाजिक सौहार्द्र के लिए आधुनिकतम विचारों से युक्त  विमर्श करती डॉ. अनिल भतपहरी की कविताएं और लतिका वैष्णव की  खूबसूरत  चित्रों की जुगलबंदी ।
एक अभिनव प्रयोग ...

Wednesday, March 8, 2023

लड़की

८ मार्च महिला दिवस पर...हमारी  वर्षो पूर्व  लिखी कविता द्रष्टव्य है -  
 
"लड़की"

महुंए की फूल है 
न जाने कब टपक पड़े 
ख़ानाबदोश है 
कब कहां डेरा पड़े
सच कहें तो
शीशी है इत्र की 
ढीली हुई डांट 
कि गंधाती उड़ पड़े 
दहलीज़ फांदते ही 
ऊग आतें हैं 
असंख्य पर 
उड़ना चाहती हैं
वह भी 
स्वच्छंद आकाश पर 
पर ,पर कतर दी जाती हैं
कहकर कि तुम 
घर की इज्जत हो 
तुम्हारे बाहर जाने से
किसी से युं ही
हस बोल लेने से 
या किसी को शक्ल 
दिखा / दिख जाने मात्र से  
वह चली जाएगी 
जिसे पुरखों ने 
वर्षों प्रखर पराक्रम से 
अर्जित किया हैं
भले पुरुष 
और उनके परिवार
उसे भुनाते समृद्ध हो
किसी के इज्ज़त  
से खेलते रहे 
मान मर्दन कर 
अट्टहास करते रहें
पौरुष प्रदर्शन कर
उपहास करते रहे
हास परिहास करते रहे
ऊपर से यह सुक्ति 
गजब की यह युक्ति 
बिन राग रति रंग के 
भव में बुड़े
और संग इनके 
भव से तरें  
पाते पुरुष मुक्ति 
नरक द्वार से 
गूंजते सुदूर कही 
यत्र नार्यस्तु पुज्यंते  
रमन्ते तत्र देवता  !
तब मासूम सा 
एक सवाल 
कि देवी कैसे,
और कहां रमती है? 
तलाशती फिरती
सकल ब्रम्हाण्ड 
जारी है यात्रा
दहलीज़ भीतर  
मुगालते में बाहर 
खाट पर बैठें 
लटकते ताले सदृश्य 
कठोर पुरुष 
भले वे हो लुंज -पूंज
घुत्त नशे में 
या हो अशक्त 
वृद्धा कोई जो 
कोमलांगी तो है 
पर ओढ़े हुए पौरुष
ढ़ोते हुए भार 
कठोर- कुरुप 
बेचारी लड़की
औरत बेचारी 
बेचारी नारी ..!!!!

पिता ,पति- पुत्र 
के अधीन सदा 
नारी तेरी अधीनता 
रही है मर्यादा 
और यही है 
नारी की अस्मिता 
नारी की गौरव गान 
बालबिल कुरान गीता
गाई गयी असीम महिमा 
पर कहीं न कहीं 
है एक घड़ा रीता 
तलाशती स्वयं अपनों में 
अपनी ही अस्मिता 
द्रौपदी रुक्मणी राधा 
सीता अहिल्या सूर्पनखा   
लोई आमिन यशोधरा 
मरियम रजिया सफरा 
बेटी बहु बहन बन कर मां 
हुआ जग में न्यारा ...

- डा. अनिल भतपहरी

चित्र -जीवन संगिनी श्रीमती अनीता भतपहरी (उसे ही समर्पित यह कविता । )

Tuesday, March 7, 2023

गुरुघासीदास और उनका सतनाम पंथ का लिंक

।।गुरु घासीदास और उनका सतनाम पंथ ।।

हमारी पी-एच.डी. शोध प्रबंध पर आधारिक अकादिमक‌ ग्रंथ 380 पृष्ठ 
  ( दुर्लभ फोटोग्राफ्स और दस्तावेज़ो के साक्ष्य के साथ) 

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