#anilbhatpahari
।।समानता की सुसंस्कृति ।।
सत्य और प्रेम सनातन हैं
वैसे फरेब और नफ़रत भी
तो सनातन ही हैं
उनकी सहचरी की तरह
ठीक उजाला -अंधेरा
या कहे,
दिन और रात की तरह
सुख और दु:ख
धूप और छांह की तरह
तब उनकी दुहाई क्यों
वहाँ जाने की ढिठाई क्यो
क्योंकि यह तो
सदा से सर्वत्र हैं
हां सत्य , प्रेम
उजाला, छांह
और सुख ही
क्षरित होते रहे हैं
तुम्हारे प्रबंधन से
चिंतन मनन सृजन से
तो मिथ्या और धृणा
अंधेरा और फरेब
दु:ख और नफ़रत
ही फैले हुए है
तुम्हारे धर्म संस्कृति में
राष्ट्र की नीति में...
चाहते हो अगर अमन
तो सुधारों धर्म संस्कृति
और राष्ट्र की नीति
कलुष हो चुके राजनीति
व्याप्त हो रहे विकृति को
मिटाओ विभेदकारी कृति को
स्थापित करो
समानता की सुसंस्कृति को
क्योंकि समानता ही संवाहक हैं
सनातन की
आरंभ से ही विद्यमान
करती आई गुणगान
शाश्वत पुरातन की
- डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514
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