जो ऐतिहासिक महापुरुष हुये , जिन्हे देखा समझा गया उनकी संस्मरण और जनश्रुति के आधार हुबहू प्रतिमा बनी । प्रतिमा का अर्थ प्रति = उसी का ,उसका । मा = स्वरुप या आकृति । उसका स्वरुप यानि जेराक्स कापी समझिए । उनके प्रति आदर व सम्मान प्रगट किए गये ।
जो हुआ उनके स्वरुप का प्रतिमा बनी जैसे जो रहेगा उसका फोटो खिचाएगा उनकी मूर्ति आदि बनेगी ।
पर जो नहीं है मिथक और कहानियों में वर्णित हैं। उसका कैसे स्वरुप कैसी प्रतिमा और फिर उनकी कैसी पूजा अर्चन और उनसे भाग्योदय या मनवांछित फल की प्राप्ति कैसी ?
इस लिए संतो गुरुओ ने पौराणिक और मिथकीय देव देवियों की मूर्तियों की पूजा करने तीव्र विरोध किया ।और निराकार उपासना योग साधना सात्विक जीवन शैली और परस्पर प्रेम व सौहार्दपूर्ण पूर्ण रहनी बसनी को महत्वपूर्ण माना ।
कलान्तर उनके अनुयाई श्रद्धा वश उनकी रुप रंग कद काठी स्वरुप के आधार पर अपने संतो गुरुओ पथ प्रदर्शकों की प्रतिमाएँ , चित्र आदि बनाने लगे ।
अब वायु ,अग्नि ,पृथ्वी ,आकाश, जल देव -देवी या ऊषा , पशु मित्र, वन , नदी , पर्वत की मुनष्य जैसा आकृति वाले प्रतिमाएँ कैसी बनेगी? और बना भी लिए तो उनकी हास्यास्पद पूजा पाठ कैसे होगा ? पर होने लगा श्रद्धा भक्ति से बिना विवेक ज्ञान आदि के ।
फिर दौर आया राजा महराजाओ और औपनिवेशिक युद्ऒ का जो जीता ओ सिंकदर देव बने जो हारे वे गुलाम दास राक्षस शूद्र और अछूत हुए ।
इन्ही राजा राजकुमारो जो ऐश्वर्य मान देवता या ईश्वर हुए उन की मूर्तियाँ बनी कथा कहानिया और आरती भजन बने । गुलाम दास राक्षस शूद्रो अछूतो को निरंतर अपमानित और तिरस्कृत होना पड़ा । अब यही लोग आधे अधुरे पढ लिखकर फिर उन्ही मिथकीय कपोल कल्पित कथा पुराणो के परायण और अञध भक्ति मे डूब गये और उन्हे पूर्व जन्म का फल और कलियुग में नाम हरि सुमरन या ईश्वर भक्ति कल्याणकारक है कहके भक्ति भाव पूजा पाठ व्रत तीर्थ में झोक दिए गये। उन्ही का अंधानुकरण सर्वत्र जारी है।
क्योकि धर्म आस्था का मामला है। तर्क और शंकाए नहीं ञक्ति और अंध विश्वास ही चाहिए जो धर्म के फसलों के लिए खाद पानी होते हैं। जिससे वह लहलहाते है।
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