Tuesday, January 24, 2023

प्रेम गीत

प्रेम गीत 

जी हां 
यह कहना 
दर्प होगा
कि तुम्हारी 
दुनिया हूँ 
पर सच हैं
कि तुम 
मेरी दुनियां
बन रही हो 
इस तरह से 
आबाद हुई 
दुनियां को 
ये दुनियादार 
उजाड़ते क्यो हैं
विश्वास में 
विष धोलते क्यो हैं 
ये मत सम्प्रदाय 
चलाते क्यो हैं
बनकर मठाधीश 
दूसरों की मठ 
उजाड़ते क्यो हैं 
प्रेम में पहरा 
लगाते क्यो हैं 
जात-पात का सेहरा 
सजाते क्यो हैं

   - डॉ. अनिल भतपहरी /9617777514

Monday, January 23, 2023

लोक साहित्य सम्मेलन 2023

लोक साहित्य सम्मेलन 2023 

छत्तीसगढ़ शासन के निर्देशानुसार  संस्कृति एंव राजभाषा विभाग के अन्तर्गत छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा 28,29 एंव 30 जनवरी 2023  को राज्य स्तरीय लोक साहित्य सम्मेलन   का आयोजन किया जा रहा हैं। इस महती आयोजन के प्रतिभागी गण एंव सहभागिता निभा रहे सभी विद्वत साहित्यकारों का हार्दिक अभिनंदन करते हैं। 
     उक्त त्रिदिवसीय कार्यक्रम को 6 सत्रों में विभाजित किया गया हैं । जिसके सत्राध्यक्ष एंव संचालक वरिष्ठ व ख्यातिनाम साहित्यकार रहेंगे। इसका  निर्धारण उच्च स्तरीय समिति द्वारा किया गया हैं।

किसी भी प्रदेश का अपना समृद्ध सांस्कृतिक परिदृश्य और उन्ही के अनुरुप लोक साहित्य जनमानस में परिव्याप्त रहते हैं। जिनके द्वारा जन साधारण विषम परिस्थितियों में भी संघर्षरत होकर भी  सुखमय जीवन जीते हैं।  लोक साहित्य में जो आदर्श की परिकल्पना होते हैं ,उन्हे साकार करने और धारण कर आचरणरत होते हैं,इसलिए लोक साहित्य का अतिशय महत्व हैं। वे जन मन को  क्रियाशील ,नैतिक और सभ्य  नागरिक बनाते हैं। ऐसे  प्रेरक लोक साहित्य का संरक्षण, संवर्धन एंव उपार्जन ही इस तरह के आयोजन का ध्येय है। 
             छत्तीसगढ़ शासन के निर्देशानुसार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ने प्रदेश मे प्रचलित भाषाओं के लोक साहित्य और उनकी प्रदेय पर त्रिदिवसीय लोक साहित्य  सम्मेलन  आयोजन कर युवाओं की सम्बद्धता, उनकी भूमिका पर विचार करते उन्हे जोड़ने की उपक्रम किया जा रहा  है । इस तरह  प्रदेश की सांस्कृतिक व साहित्यिक चेतना का उचित मूल्यांकन कर उन्हें नई दिशा की ओर अग्रसर किया जा सके। 
         छत्तीसगढ़ी राजभाषा सहित प्रदेश मे प्रचलित गोंडी, भतरी, हल्बी, दोरली ,सादरी कुडुख, लरिया, सरगुजिहा इत्यादि जन भाषाओं और उनमें निहित लोक साहित्य का भी, उचित संरक्षण व संवर्धन में नई पीढ़ी को प्रवृत्त करा सकें। ताकि प्रदेश का सांस्कृतिक व साहित्यिक वैभव अक्षुण्य रहें।

 प्रतिभागी  साहित्यकारों / विचारकों से आग्रह किया गया था कि निर्धारित सत्र एंव विषयानुरुप आलेख उपलब्ध कराने पर उन्हें  स्मारिका (सोवनियर )  प्रकाशित कर सहभागिता निभा रहे  सभी  साहित्यकारों को उपलब्ध किया जा सके। ताकि  आयोजन के प्रयोजन से भलिभांति अवगत हो सके।
                लोक साहित्य सम्मेलन 2023 के सहभागी एंव  सहभागिता निभा रहे सभी प्रबुद्ध जनों को हार्दिक बधाई एंव नव वर्ष की मंगलकामनाएं ...

       डाॅ. अनिल कुमार भतपहरी 
                       सचिव 
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर

Wednesday, January 11, 2023

तय बारे बर आए बबा

तारे बर आए गुरु मनखे जोनी ल तय तारे बर आए 
 बारे बर आए बाबा सत के जोती ल तय बारे बर आए ...

धरम धरती म रहिस अधरम के डेरा 
जात -पात ऊच- नीच छुआछूत  घनेरा 
समता के मंदरस झारे  बर आए बाबा ...

करमकांड छोडा के बबा  कराये सद बेवहार 
सतनाम पंथ चलाके करे जग के उद्धार 
हंसा  उबारे बर आए बाबा भटकत हंसा उबारे बर आए ....

Sunday, January 8, 2023

मामा भांचा

"ममा -भांचा" 

छत्तीसगढ़ म ममा -भांचा बड़ पावन रिस्ता आय । बुढ़वा ममा अपन दुधमुहां भाजा के तको पांव छु के  अपन ल धन्य मानथे। बहिनी के बेटा -बेटी ल भांचा -भांची कहे जाथे ।रिस्ता नता मं ये भगवान गुरु के बाद तीसर स्थान म रखे गय हे। जेन ल दान -दछिणा  दे  के पुन सकेले जाथे। छत्तीसगढियां  मन ल कोनो ममा तो कहि दय - ओखर ऊपर  सबकुछ निछावर कर देथे ! अइसे अवधट  दानी छत्तीसगढिया ममा मन होथे।  मथुरा के कंश -कृष्ण वाले उत्तर भारतीय  संस्कृति के इहा कोन्हो प्रचलन नइये ।
    तेहि पाय के कत्कोन चालाक पर प्रांतिक मनसे मन छत्तीसगढ़ियां मन ल अबड़ेच " मामू "बना के ओखर सरी जिनिस ल ऐन केन प्नंरकरेन नगा के नंगरा करत हवे। ते पाय इकर मन  रवती उखड़त  हवे । 
   जेकर डेरौठी मं आसरा मांग के रहिन ..कोचियाई करिन एती -ओती ,तीन- पाच करके सेठ साहूकार लहुटगिन । 
    आजकल जेन डहन देख  इही मन पागा बांधे हवे अउ धोतीवाला मन मुड़ उघरा किंजरत हे । ये कइसे अर्थव्यवस्था हवे ? का खेती के ये अवगुन हे कि कभु खेतीहर किसान के दिन न इ बहुरय? एखर बर बड़ जोखा मढ़ाय ल परही।
       खैर कहे जाथे कि ये छत्तीसगढ़ ह जुन्ना समे दक्षिणापथ  के नांव ले जाने जाय। आर्य अउ द्रविड़ संस्कृति के समागम भुंइय्या आय। कोसल के राजा कौशल्य के बेटी कौशल्या संग रघुवंशी राजा के बेटा दसरथ के संग बिहाव होईस ओकर बेटा परतापी रामचंद्र होईस । यही रामचंद्र ल ओकर मोसी दाई कैकेयी हर अपन बेटा भरत ल राजा बनवाय के सेती वनवास निकलवा देथे ।त रामचंद्र ल गंगा नहाक के अपन ममा गांव म आके रहे लगथे। ओकर संग वोकर महतारी कौशिल्या काबर न ई आइस जरुर ये गुनान के गोठ हो सकते । फेर राम लछिमन अउ सीता तीनो परानी इहा ग्यारह साल रहिथे ... सीता ल रावन हर के ले जथे राम अपन ममा मन ल सकेल ऐताचारी रावन ल मार सीता ल मुक्ताथे अउ जनमानस म रच बस के राजा से भगवान बन जाथे ।
ए तरा से  भगवान के  भांचा होव ई  के वृतांत बड़ सुहावन हे।राम नता म भांचा होइस ते पाय के भांचा के नता ह छत्तीसगढ म  भगवान सरीख माने गउने जाथे।
      आज मोटर म चढेव त दु बुढ़वा संग भेट होइस । दुनो झन नता म  ममा- भांचा आय ।दुनो के ऊपर ७०-८० ले कमती नइ रहिस।
   ममा ह अपन भांचा के भरे बस म  दुनो पांव ल पखारत पैलगी करिस अपन पंछा म पाव पोछिस ।उकर ये करतब- भाव ल देख हमरो मन मगन अउ पावन होगे ।
     कतेक आत्मीय व मयारुक नता ये । बात चले लगिस ... ममा कहिस तोर हाथ पच अमरित पी लेतेव  भांचा . त मोर साध के सधौरा पुर जतिस ... ये अस्पताल म भर्ती रहेव थोरिक बने लागिस त छुट्टी कराके घर जात हंव .... 
          भांजा थोरिक टन्नक रहिस कथे - ले अभी ल तय मरना सोरियात हवस ।नाती -नतुरा के बर -बिहाव तो कर ले छंती देख तोपाबे ...कहिके कठ्ठल के हांस लगिस ।
     ओहर मोला बड़ मजकहा लगिस .... दुनो खुल- खुल हांसे लगिस अउ बस म चढ़े दैनिक यात्री जेमा सरकारी कर्मचारी, स्कूल के सर , मैडम जोन अलग अलग स्कूल आफिस म बुता करथे दुनो के निश्छल बेवहार व बताचिता देख अपन अपन मोबाइल डहन ले थोरिक अनचेतहा होगिस .... मय तो मोकाय दुनो ल देखते रहिगेंव । बैमार ममा के चेहरा म ओ जीये के उजास बगरत देख अस्सी साल के  बैमारी से उठे सियान के मुख मंडल मं सुख भाव बगरगिस .... बड़ उछाहित उन मन गोठियात जात हवे ..अउ.. मोर छत्तीसगढी सबद के कोठी ल भरत जात हवय .... 
       -डॉ. अनिल भतपहरी/ 9617777514
       सतश्री ऊंजियार सदन सेंट जोसेफ टाऊन अमलीडीह रायपुर 

Thursday, January 5, 2023

यश की माया

#anilbhatpahari 

।।यश की माया ।।

तुमने ही उन्हें 
इतना महान बनाया 
कि कद से बड़ा 
हुआ उनका साया 
रहा ओ तुम्हारे जैसा 
पर बन सकते नहीं
कभी  उनके जैसा 
अब तो उसे तुम 
ढो रहे हो बोझ की तरह 
अजीर्ण अपच 
पुरातन सोच की तरह 
उन्मत्त हो जानकर भी 
अब कुछ कर नहीं सकते 
नव कलेवर देंगे  
पर केंचुल उतर नहीं सकते
समय और वर्ष यूं बीत जाते 
मुठ्ठी की रेत की तरह 
फसल उगे न पके  
उजड़ जाते खेत की तरह 
तुम्हरा विश्वास 
तुम्हारा आस 
तुम्हें जिताएगा 
गर करो हटकर कोई खास 
कद से बड़ा होगा तेरा साया 
बातों को मेरी समझना 
यह भी हैं यश की माया 

    - डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514 

         31-12-2022  शनिवार संध्या 7 बजे 
 

चित्र : महानदी तट धमनी दहरा, छायांकन :मनोज वर्मा

Tuesday, January 3, 2023

कविता की सोता फूटती हैं

#anilbhatpahari 

।।कविता की सोता फूटती हैं ।।

कहने से समझ आए 
ऐसी बात ही नहीं 
जो समझ नहीं आए 
उसे कहना ही नहीं 
इस तरह कही -अनकही में
बातें निकल ही जाती हैं
वे कहां आती कहां जाती हैं
यह तो पता नहीं 
पर मन में तो वही बसती हैं 
जो दिल से निकलती
या दिल में  रहती हैं
जैसे मच्छी जल में रहती हैं
पंछी गगन विचरती हैं
फूल पें तितली मंडराती हैं
शरद में शीत झरती हैं
बसंत में मीत के कंठ से 
प्रेम गीत गुंजती  हैं
और बारिस में
नदियों पर नाव चलती हैं 
चकित अनिल के जेहन से  
अनायस कविता की सोता फूटती हैं   

     डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Monday, January 2, 2023

मनखे मनखे एक

#anilbhatpahari 
गुरुपर्व माह पर :  "प्रसंग मनखे मनखे एक "

।।मानव प्रजाति मे जन्मना जातियाँ वर्ण नहीं हैं ।।
 

वर्ण या जातिय विधान कृत्रिम हैं। इसे वृत्ति के आधार पर शास्त्र और शास्त्रकारों ने रुढ़ किया। फलस्वरुप इस महादेश का दुर्दशा हुआ । जिसके कारण आज पर्यन्त अनेक तरह के संकट और विपन्नताओं को भोगते आ  रहे हैं। 
    जातिय द्वंद्व सदैव गृहयुद्ध सा रहा हैं जिन्हें नियंत्रित करने  देश की अकूत संपदा और समय नष्ट हो रहे  हैं। यदि ऐसा न करे तो  देश अनेक भागों में विभक्त हो सकते हैं। समय -समय पर उग्र आन्दोलन आदि उसी का परिणाम हैं। अब  तो इस आधार पर संवैधानिक रुप से प्रदत्त आरक्षण से पुरा समाज जागरुक सचेत और  उद्वेलित भी  होने लगे हैं। 
      देश में ऐसा संक्रमण काल चल रहा है कि बिना बाहरी आक्रमण शत्रुता के राष्ट्र प्रेम के नाम पर राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता जारी  है । और पार्टीगत परस्पर लोग एक- दूसरे की  राष्ट्र भक्ति पर संदेह पैदा करने लगे हैं।  ऐसे में जातिय दर्प और उनसे ऊपजे दलीय आन्दोलनों से राष्ट्र की अखंडता बाधित होने के कगार पर खड़ा प्रतीत होने लगता हैं। ऊपर से नीम पर  करेले चढ़ा    तथाकथित शास्त्रिय जातिय दर्प की  बातें जहाँ हर कोई एक दूसरे से ऊंचा और  अन्य को नीचा दिखाने की  होड़ मे लगा हुआ है।
         भट्टप्रहरियों ने सदैव कल्याणकारी कार्य और सत्य  के लिए विषपान करते रहे हैं। पुरखे सद्वाह ( पालि )  सतवहन ( संस्कृत) महात्मा बुद्ध , नागार्जुन महाप्रभु  और आनंद प्रभु को अपने राजधानी सिरपुर और महानदी के दोआब में बसाए और इन अभ्यागतों को आमंत्रित कर आर्यो के साथ " मणिकांचन संस्कृति"  प्रशस्त किए । पर वे आव्रजक ,घुमंतु ,आर्य  लोग स्थानीय जन के सादगी और समर्पण को सदैव छलित किए। औपनिवेशीकरण कर उन पर राज करने की सडयंत्र किए गये । यहाँ तक उनके पुरो/ नगरों  को उनके अधिपति इंद्र  ने  नष्ट किए फलतः वे पुरो  को  नष्ट करने वाले  पुरंदर  कहाए । यहाँ तक कि  शास्त्रादि रचकर  कर्मकाञड रच उन्हे भाग्य- भगवान के अधीन कर  पूर्वजन्म का फल भोगने उनकी नियति बना दिए गये। धरा को नर्क बनाकर कल्पित  स्वर्ग या परलोक पाने की मिथकीय पौराणिक  कहानियाँ गढ़े गये। अपढ और आम जनता श्रद्वानवत होकर शिरोधार्य किए । जबकि  उन्हें दास ,दस्यु  ,शूद्र ,असुर यहाँ तक राक्षस तक कहें।
   इन्हें बुद्ध कबीर रैदास  नानक गुरुघासीदास जैसे  संतो और गुरुओं  ने एकत्र कर उनमें आत्म विश्वास का संचार किया ।  समृद्धशाली राष्ट्र के मुख्यधारा में लाए और उन्हें जीवन के परम सुख और शांति के पाठ पढाने सद्  मार्ग प्रशस्त किए । 
                 जय सतनाम 

       डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514