"ममा -भांचा"
छत्तीसगढ़ म ममा -भांचा बड़ पावन रिस्ता आय । बुढ़वा ममा अपन दुधमुहां भाजा के तको पांव छु के अपन ल धन्य मानथे। बहिनी के बेटा -बेटी ल भांचा -भांची कहे जाथे ।रिस्ता नता मं ये भगवान गुरु के बाद तीसर स्थान म रखे गय हे। जेन ल दान -दछिणा दे के पुन सकेले जाथे। छत्तीसगढियां मन ल कोनो ममा तो कहि दय - ओखर ऊपर सबकुछ निछावर कर देथे ! अइसे अवधट दानी छत्तीसगढिया ममा मन होथे। मथुरा के कंश -कृष्ण वाले उत्तर भारतीय संस्कृति के इहा कोन्हो प्रचलन नइये ।
तेहि पाय के कत्कोन चालाक पर प्रांतिक मनसे मन छत्तीसगढ़ियां मन ल अबड़ेच " मामू "बना के ओखर सरी जिनिस ल ऐन केन प्नंरकरेन नगा के नंगरा करत हवे। ते पाय इकर मन रवती उखड़त हवे ।
जेकर डेरौठी मं आसरा मांग के रहिन ..कोचियाई करिन एती -ओती ,तीन- पाच करके सेठ साहूकार लहुटगिन ।
आजकल जेन डहन देख इही मन पागा बांधे हवे अउ धोतीवाला मन मुड़ उघरा किंजरत हे । ये कइसे अर्थव्यवस्था हवे ? का खेती के ये अवगुन हे कि कभु खेतीहर किसान के दिन न इ बहुरय? एखर बर बड़ जोखा मढ़ाय ल परही।
खैर कहे जाथे कि ये छत्तीसगढ़ ह जुन्ना समे दक्षिणापथ के नांव ले जाने जाय। आर्य अउ द्रविड़ संस्कृति के समागम भुंइय्या आय। कोसल के राजा कौशल्य के बेटी कौशल्या संग रघुवंशी राजा के बेटा दसरथ के संग बिहाव होईस ओकर बेटा परतापी रामचंद्र होईस । यही रामचंद्र ल ओकर मोसी दाई कैकेयी हर अपन बेटा भरत ल राजा बनवाय के सेती वनवास निकलवा देथे ।त रामचंद्र ल गंगा नहाक के अपन ममा गांव म आके रहे लगथे। ओकर संग वोकर महतारी कौशिल्या काबर न ई आइस जरुर ये गुनान के गोठ हो सकते । फेर राम लछिमन अउ सीता तीनो परानी इहा ग्यारह साल रहिथे ... सीता ल रावन हर के ले जथे राम अपन ममा मन ल सकेल ऐताचारी रावन ल मार सीता ल मुक्ताथे अउ जनमानस म रच बस के राजा से भगवान बन जाथे ।
ए तरा से भगवान के भांचा होव ई के वृतांत बड़ सुहावन हे।राम नता म भांचा होइस ते पाय के भांचा के नता ह छत्तीसगढ म भगवान सरीख माने गउने जाथे।
आज मोटर म चढेव त दु बुढ़वा संग भेट होइस । दुनो झन नता म ममा- भांचा आय ।दुनो के ऊपर ७०-८० ले कमती नइ रहिस।
ममा ह अपन भांचा के भरे बस म दुनो पांव ल पखारत पैलगी करिस अपन पंछा म पाव पोछिस ।उकर ये करतब- भाव ल देख हमरो मन मगन अउ पावन होगे ।
कतेक आत्मीय व मयारुक नता ये । बात चले लगिस ... ममा कहिस तोर हाथ पच अमरित पी लेतेव भांचा . त मोर साध के सधौरा पुर जतिस ... ये अस्पताल म भर्ती रहेव थोरिक बने लागिस त छुट्टी कराके घर जात हंव ....
भांजा थोरिक टन्नक रहिस कथे - ले अभी ल तय मरना सोरियात हवस ।नाती -नतुरा के बर -बिहाव तो कर ले छंती देख तोपाबे ...कहिके कठ्ठल के हांस लगिस ।
ओहर मोला बड़ मजकहा लगिस .... दुनो खुल- खुल हांसे लगिस अउ बस म चढ़े दैनिक यात्री जेमा सरकारी कर्मचारी, स्कूल के सर , मैडम जोन अलग अलग स्कूल आफिस म बुता करथे दुनो के निश्छल बेवहार व बताचिता देख अपन अपन मोबाइल डहन ले थोरिक अनचेतहा होगिस .... मय तो मोकाय दुनो ल देखते रहिगेंव । बैमार ममा के चेहरा म ओ जीये के उजास बगरत देख अस्सी साल के बैमारी से उठे सियान के मुख मंडल मं सुख भाव बगरगिस .... बड़ उछाहित उन मन गोठियात जात हवे ..अउ.. मोर छत्तीसगढी सबद के कोठी ल भरत जात हवय ....
-डॉ. अनिल भतपहरी/ 9617777514
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