#anilbhatpahari
।।युद्ध ।।
हम सभी लड़ तो रहें हैं
परस्पर एक-दूसरे से
विचारों और मान्यताओं
के लिए तो कभी रोजी-रोटी
और मान- सम्मान के लिए
देश -राज के साथ- साथ
मन बुद्धि के लिए
तब दो देशों का लड़ना
कितना बुरा हैं?
इनकी सरहदों के मध्य
कितना धुंध कोहरा हैं?
महामारी से लड़ते हुए
बेबस जन को बचाना है
न कि निरीह मानवता को
सरहदों के वास्ते कुचलना है
अगर मनुष्य न रहे तो
काहे और कैसा देश
असल मे राष्ट्र बहाना है
ये तथाकथित लड़ाके
गर लड़े भ्रष्टाचार गरीबी से
गैरों से नही करीबी से
धर्म जाति की कुचक्र से
नशे की दुष्चक्र से
तभी बहादुरी है
अन्यथा गोले बारुद से
नीरिह जनता को
यांत्रिक शक्ति से मारना
सिवाय कायरता के कुछ नही हैं
यह केवल नरसंहार है
क्रूर सामूहिक हत्या है
वर्चस्व के लिए केवल सडयंत्र है
छद्म सफलता के कुत्सित तंत्र हैं
सत्ता के लिए ही आयुध हैं
वह जो सत्ता को समझे तुच्छ
युद्ध के खिलाफ़ होते बुद्ध
बल है यदि और कुछ करना है
मन करता है युद्ध लड़ना ही है
तो लड़ो व्याप्त अनेक संताप से
शोषण जुल्म और घृणित पाप से
जीतों उन्हे और बनो विजेता
धन्य तुम और पुरी मानवता
लिखी जाएगी युगों तक कविता...
-डा. अनिल भतपहरी
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