दृष्टिकोण -
भूख -स्वाद एंव मत -पंथ यह दोनो अलग -अलग चीजें हैं परन्तु अनावश्यक ढ़ग से इसे एक -दूसरे से जोड़कर देखने की अजीब परिपाटी विकसित हैं। व्रत, उपवास आदि कर भूखे रहकर ही धार्मिक होने का भ्रम फैला हुआ है। यदि यह सच है या हो सकता है,तो देश में करोड़ो रोज फाके में जी रहे हैं फिर उन मजलूमों से बड़ा धार्मिक कौन होगा?
बहरहाल अन्न त्याग या उपवास है तब ही धार्मिक व आस्था वान हैं। यदि भूख बर्दाश्त नहीं सकते तो समझो आप धार्मिक नही, आस्थावान नही । बल्कि अधार्मिक और अनास्था के हिमायती हो ।इसी प्रकार यदि मांसाहारी हो तो कुछ पंथ / धर्म के हिसाब से पक्का पापी हो और नरकगामी हो। इस तरह से देखें तो जब तक आप भूखे हैं, उपवास व्रत रखे है तब तक धार्मिक है और जब छक कर खा -पी रहे हैं तो आप भक्त नही हो सकते ।
इसी तरह मांसाहारी या व्यसनी व्यक्ति अपना गर्दन काट कर रख दे तब भी वह कुछ मत पंथ के हिसाब सच्चा धार्मिक नही । और जो मांसाहारी व व्यसनी है, बलि और कुर्बानी हर वर्ष बिना नागा किए देते हैं। तभी वह परम भक्त व प्यारे दुलारे है ऐसी भी मान्यताएं है।
इस तरह देखे तो बड़ा अजीबोगरीब रीति मत प्रणाली का प्रचलन धर्म पंथ मत में चल रहा है। दूसरी ओर स्वाद ऐच्छिक आनंद और रुचि का विषय है।यह कतई सार्वजनिक मत पंथ के अनुरुप हो नहीं सकते । ऐसा कहने व तर्क करने वाले इन धार्मिक पदाधिकारियों और उनके नियम अधिनियम की धज्जियां उड़ाने वाले काफिर व नास्तिक मूर्ख और दुष्ट हैं। पृथ्वी पर भार हैं।
व्यवस्था के लिए प्रणेता या प्रबंधक नियम आदि बनाते हैं। पर नियम आदि स्वच्छंद मनोवृत्ति वाले मनुष्य को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर सकते ।इसलिए हर पंथ मत सम्प्रदाय मजहब रिलिजन में सिद्धान्त और लोक व्यवहार में जमीन आसमान का फर्क देखने मिलता हैं। इसके मतलब अनुयाई आस्था वान है या नहीं हैं यह व्यर्थ का प्रलाप हैं। हृदय मन बुद्धि की शुचिता और निष्ठा ही लोककल्याणार्थ पंथों मतों मजहबों के अनुकूल होना चाहिए। जैसा खाए अन्न वैसा बने होवे मन की तुकबंदी भी मुहवारा नुमा लोकप्रिय हैं। इसे परम सत्य मानने या समझने की परिपाटी भी चल पड़ा हैं।
दुनिया में लोगों की भूख मिटाने की कयावद के चलते हरित क्रांति श्वेत क्रंति आदि चल पड़ा फलस्वरुप अनाज सब्जियां पशु पक्षी मछलियाँ झिंगा आदि का बम्फर पैदावर और सहज -सुलभ उपलब्धता हेतु विपणन व्यवस्था किए जा रहे हैं। इन सबके लिए अलग मंत्रालय और पुरी अमला हैं। इन जगहों पर काम करने वाले भी हमारे उपदेशकों व धार्मिक ग्रंथों के अनुसार दो नावों में सवार शाकाहार का पालन करते शराब उत्पाद / खपत बढाने व मत्स्याखेट कराने, पोल्ट्री बकरे सुअर पालन व्यवसाय को सफल करने पूजा पाठ करते अपने अराध्य के समक्ष मिन्नत मांगते नजर आते हैं।
लेखक को उड़ीसा के चंद्रभागा तट पर मछुवारों की बस्ती में स्थित शिव मंदिर में नित्य भाग गांजा शराब पीकर उन्मत्त मछुवारों की खंजेरी भजन और पहिली खेप की मछलियाँ सर पर औरतों को ताजी मछलियाँ धान की बालियां सदृश्य अपने अराध्य में श्रद्धापूर्वक चढ़ाती दर्शन हुआ हैं।
ऐसे में कट्टरपंथी धार्मिक संगठन पदाधिकारियों व भक्त जनों की महफिल व उनकी सत्संग- प्रवचन ,भाव -भजन , जुलूस- शोभायात्रा आदि से अधिक धार्मिक व आध्यात्मिक वातावरण मुझे कर्मरत आम जन जीवन में जो परस्पर प्रेम भाव से जीवन यापन कर रहे हैं में झलकता हैं।
-डा. अनिल भतपहरी , 9617777514
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