।।सादगी और गरिमामय गुरुघासीदास जयंती का आयोजन ।।
मनखे मनखे एक जैसे अप्रतिम संदेश देकर विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाने वाले विश्वगुरु घासीदास की पावन जयंती अघ्घन पूर्णिमा , तदनुसार 18 दिसंबर की तैयारी मे उनके अनुयायी बड़ी ही श्रद्धा और हर्षोल्लास से जुटे हुए है। आयोजन समितियों की बैठकों और महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों / टेट पंडाल ,माइक- लाइट वालों को बुकिंग करने की तैयारी भी यद्ध स्तर पर चल रहे हैं।
कृषक समाज अमुमन फसल कट जाने/ बिक जाने के बाद इस जयंती महोत्सव को पूरे एक पखवाडे तक हर्षोल्लास से मनाने और खुलकर खर्च करने की प्रवृत्ति विगत सौ 80-90 साल की परंपरा है। उसके पूर्व बहुत ही सादगी पूर्ण रोठ तस्म ई और निशाना मे पालो चढ़ाकर मनाने की प्रथा रही है।
हालांकि बड़ा और भव्य आयोजन से गुरुघासीदास जयंती की प्रसिद्धी बढ़ी और लोगों मे परस्पर मेलजोल भी होने लगा । परन्तु इसके साथ- साथ नाच पेखन ,लोकमंच आदि की प्रस्तुतियों से गरिमा में गिरावटे आई और अनेक बुराई पनपी खासकर जयंती - मड़ ई साथ होने पर जुआ मद्यपान जैसे कुरीति आई । और व्यर्थ खर्च और मनोरंजन के नाम पर फूहड़ पन प्रस्तुतियों से हमारी श्रेष्ठतम संस्कृति प्रदूषित भी होने लगी। अति सर्वत्र वर्ज्येत तो होते ही है फलस्वरुप एक दिन या महज 18- 25 दिसंबर तक एक सप्ताह आयोजन करने की बाते होने लगी । समाज के अधिकतर विद्वान तो केवल 18 दिसंबर को ही मनाने पर जोर देते है। पर एक दूसरे के आयोजन मे सम्मलित होने की चाह के कारण यह महिनों विस्तारित हो गये।
बहरहाल समाज मे जयंती के अतिरिक्त अब गुरुगद्दी पूजा महोत्सव और सतनामायण / सत्संग और अन्य गुरुओं की जयंती / पुण्यतिथि आदि का भी प्रचलन होने के कारण धीरे -धीरे जयंती का दायरा सिमट रहे है। यह शुरुआत अच्छा भी है परन्तु जयंती की भव्यता शोभायत्रा और रात्रि बडे सांस्कृतिक आयोजन से समाज की संपदा का अपव्यय हो रहा है। इस संपदा को शिक्षा रोजगार और जरुरत मंदो के हितार्थ लगना था ,वह नाच -गाने और प्रदर्शन मे हो रहे है। उनके नियंत्रण हेतु सचेत होने की आवश्यकता हैं। हमारे विचारकों /साहित्यकारों को इस तथ्य को प्रचारित - प्रसारित करना चाहिए।
अतएव जयंती आयोजक मंडल भी ज्ञानवर्धक कार्यक्रम आयोजित करें।नाच पेखन और अश्लील फूहड़ गीत /नृत्यादि वाले लोक कला मंचो / आर्केट्रा आदि का आयोजन गुरुघासीदास जयंती जैसे पावन और विजनरी महोत्सव में न करें। कलाकार भी मर्यादित रहें तथा जयंती जैसे पावन महोत्सव की गरिमा का ध्यान रखें।
नवरात्रि के जगराता मे कोई मंच से ददरिया गाते है क्या ? नही । तब गुरुघासीदास के जयंती पर ददरिया गाने का क्या औचित्य है ? इस बात को जरुर ध्यान मे रखे ।फरमाइश आते भी हो तो उसे सम्मान पूर्वक मना कर दें।
आयोजक और सहभागिता निभाते हमारे अतिथि और कलाकारों को जयंती की पवित्रता और गरिमा का ख्याल जरुर करना चाहिए।
धन्यवाद
।।जय सतनाम ।।
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