Friday, December 10, 2021

शहीद वीर नारायण सिंह‌

#anilbhatpahari 
10 दिसंबर पुण्यतिथि पर 

शहीद वीर नारायण सिंह 

समकालीन छत्तीसगढ़ को अंग्रेजी सत्ता के संरक्षण में देशी महाजनों,सेठ, साहूकारों  की  चुंगुल और लूट -शोषण से  बचाने सुदूर वनांचल मे सोनाखान नामक ग्राम  से एक क्रांति ज्वाला प्रज्ज्वलित हुई जिसे दुनियां शहीद वीर नारायण सिंह के नाम जानती हैं।
      यशस्वी पिता राजा रामराय का यह तेजस्वी पुत्र महान आध्यात्मिक संत  गुरुघासीदास से अभिमंत्रित थे। समव्यस्क  गुरु पुत्र राजा बालकदास  से उनकी  गहरी मित्रता रही ।फलस्वरुप ट्रांस महानदी क्षेत्र मे यह दोनो रण बांकुरे जन जागरण चलाकर अभूतपूर्व कार्य किए । जो युगो- युगो तक  स्मृत रहेन्गे और जनमानस को प्रेरित करते रहेन्गे ।इन दोनो महानायकों के ऊपर विराट लेखन की संभावनाएं हैं।
   वे दोनो ने मिलकर अंग्रेजो के ईसाईकरण और सेठ साहूकार मालगुजारों की आतंक से बचाने सफल हुए।

      वीर नारायण सिंह का जन्म गिरौदपुरी पहाड़ी के नीचे तलहटी पर सोनाखान नामक ग्राम मे बिंझवार जमींदार रामराय के घर  1795  में हुआ। 1830 में रामराय की मृत्यु के उपरान्त 35 वर्ष की आयु मे वे सोनाखान जमींदारी का प्रशासन संभाला ।  वे  अत्यंत साहसी और पराक्रमी थे । वे भोली -भली  दु: खी पीड़ित जनता के सहायतार्थ सदैव तत्पर रहते थे।यह गुण उन्हे समीप ही गुरुघासीदास की आध्यात्मिक सत्संग प्रवचन से अर्जित हुआ। ज‌न कल्याण ही सच्चा नारायण सेवा और पूजा है यह पाठ वे बाल्यकाल से ही सीख चूका था।
        1856 मे भीषण आकाल पड़ा जनता भूख से त्राहि -त्राहि करने लगी  कही से भी कोई आपूर्ति नही था। ऐसे मे कसडोल के माखन नाम का एक  अन्न व्यापारी भारी मात्रा मे धान जमा कर मुनाफा कमाने के फिराक मे थें। उनसे उन्होने प्रजा हितार्थ अनाज मांगे  पर नही दिया गया। तब वे उनके जीवन बचाने अपने कुछ विसवस्त सहयोगियों के साथ धावा बोलकर धान की बोरियां उठवा लिए।
   व्यापारी ने रायपुर स्थित कमीश्नर स्मिथ से शिकायत किए।
उन पर डैकती का मुकदमा लगा कर जेल भेज दिए। रायपुर सेंट्रल जेल मे उन्हे देश मे चल रहे अंग्रेजों की  शोषण दमन और क्रुरताओं से संदर्भित जानकारियां    स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से मिली जिसे उपद्रवी व आतंकी कहे जाते थें। वीर नारायण सिंह बेहद उद्वेलित हो  क्रांति की मार्ग पर चलने और देश तथा व्यक्ति स्वतंत्रता को अर्जित करने जेल मे  मंझला नामक एक सहयोगी से जेल में बंद होकर मरने से अच्छा  ब्रिटिश सरकार की जंजीर तोड़ उन्हे देश से खदेड़ने की प्रण लेकर  जेल से फरार हो गये। और अपने बाल मित्र राजा गुरु बालकदास के गढी भंडारपुरी -  मे जाकर मिले। वहां उन्हे गुरुघासीदास का आशीष मिला और मित्र का अपनापन उसे समीपस्थ ग्राम जुनवानी मे सत‌नाम सेना के प्रमुख ऊंजियार दास के संरक्षण मे  बैलगाड़ी से भेज दिए। और  संदेश वाहक को सोनाखान खबर कर दिए गये।नारायण सिंह एक रात्रि विश्राम कर अपने गांव सोनाखान जाने तैयार हुए तो उसे 
महानदी पार करवाकर उनके लोगो से मिलवाए । वे  सोनाखान चले गये। 
    वहां जाकर उन्होने हर सतनाम सेना के अनुकरण करते प्रत्येक घर से एक एक युवाओं को एकत्र कर 500 लोगो की फौज बनाए और उन्हे  युद्ध कला सिखाने पहल किए । सतनाम सेना के खडैत जो आखाड़ा  कला में सिद्धहस्त थे उन्हे अपने बाल सखा गुरुबालकदास से कहकर आमंत्रित किए।  जुनवानी तेलासी   अमसेना बोदा मोहान के  15-20 प्रशिक्षित लड़ाके तलवार  तब्बल भाला  बर्छी आदि चलाने की प्रशिक्षण देने लगे।  इस तरह वनांचल मे अंग्रजी सत्ता और देशी महाजनो मालगुजारों के आतंक से निपटने की जोर -शोर से तैयारी होने लगे।
       इस तरह सीधा- सीधा ब्रिटिश सत्ता से विद्रोह की बिगुल फूंक दिया गया! यह सोनाखान विद्रोह के नाम से इतिहास मे  दर्ज होकर विख्यात हो गया है-

स्मिथ सेना लेके घेरिन सोना खान जमींदारी ल 
सिहगढ़ भ इगे सिंहखान 
फेर सोनाखान तपे आगी मं ।

  इस तरह बांस और घांस से घिरे जंगल को  अंग्रेज फागुन -जेठ के बीच हुए संग्राम मे आग लगाकर घेर लिए ।
कुर्रुपाठ छोड़ सरदारन संग 
सोनाखान के जंगल म
डेरा डारिन नारायेन सिंग 
साजा कौउहा  के बंजर म। 

अंग्रेज उनकी जगह बदलते और छापामार शैली से परेशान हो गये 
    अंतत: सडयंत्र और छल कपट कर कैप्टन स्मिथ ने सैनिकों की टुकड़ी लेकर सोनाखान को घेर लिया। पर कुछ हासिल नही हुआ। फिर उनके बहनोई देवरी के  जमींदार साय जी को अपने पक्ष मे मिलाया उन्होने उसे  कुर्रुपाट पहाड़ी मे होने और वहां से गोरिल्ला युद्ध की तैयारी मे रत बताए । उनके बताए अनुसार  जब  नारायणसिंह देवी पूजा के गये थे  तभी वहां से उन्हे  गिरफ्तार कर लिए गये -

देवरी के जमींदार दोगला 
बहनोई बीर नारायेन के 
लगा दिहिस बाढ़े बिपत म 
काम करिस कुकटायन के 

        फिर रायपुर स्थित जेल मे वीरनारायण सिंह को बञद कर दिए बिना कोई अदालती मुकदमा चलाए कही उनके सैनिक जेल पर हमला कर न छुड़ा ले 10 दिसबंर 1857 को तोप से उड़ा दिए । उनकी देह भी उनके परिजनो को नही सौपे ।
    इस तरह गरीबो मजलुमों के मसीहा वीर नारायण सिंह स्वाभिमान और स्वतञत्रता के लिए बलि वेदी पर न्योछावर हो गये। (और ठीक तीन साल बाद 28 मार्च  1860 को‌ राजा गुरुबालकदास को भोजन करते समय सडयंत्र पूर्वक हत्या कर दिए गये।) 
   उनकी शहादत से परिक्षेत्र मे शोक व्याप्त हो गये । 
 वीर नारायण सिह समाज राज और देश के लिए  शहादत देकर अमर हो गये । आज उनकी शहादत दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते भाव भीनी श्रद्धांजलि देते है। 
      

          जय सेवा जय सतनाम  जय वीर नारायण । जय छत्तीसगढ़ ।

टीप - फिल्मकार मधुकर कदम जी निर्मित फिल्म " शहीद  वीर नारायण सिंह  " का प्रोमो‌ पर संस्कृति मंत्री संग ।

No comments:

Post a Comment