Tuesday, December 28, 2021

तन के तिजउरी म

तन के तिजौरी  म मन के  मन   भर रतन भरे हे 
साधु अउ चोर किंदरत हे खोर सबके नंजर गड़े हे
एला क इसे बचाव उन ल  कइसे भरमाव 
कोनो उक्ति बताव .. कोनो मुक्ति देखाव .....

जब ले चढ़े हे ये बइरी जवानी 
जी के जंजाल बड़ हलकानी 
कोनो तो एकर जुगती मढ़ाव ...

गहना गढ़ाय न दान-पुन  जाय 
धरखन काकर कहे कछु न उपाय 
बिन बउरे जिनिस माहंगी फेकाय ...

खिरत हे उमर पैरावट कस रतन गंजाय 
मय  मुरख एला  सकेंव  न  भंजाय 
जांगर थकत हे कोनो रद्दा मुक्ति के बताव 

सत श्री सतनाम 
डाॅ. अनिल भतपहरी

Thursday, December 23, 2021

सादगी और गरिमामय गुरुघासीदास जयंती का आयोजन

।।सादगी और गरिमामय  गुरुघासीदास जयंती का आयोजन ।।

      मनखे मनखे एक जैसे अप्रतिम संदेश देकर  विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाने वाले विश्वगुरु घासीदास की पावन जयंती अघ्घन पूर्णिमा , तदनुसार 18 दिसंबर की तैयारी मे उनके अनुयायी बड़ी ही श्रद्धा और हर्षोल्लास से जुटे हुए है। आयोजन समितियों की बैठकों और महोत्सव में सांस्कृतिक‌ कार्यक्रमों / टेट पंडाल ,माइक- लाइट वालों को बुकिंग करने की तैयारी भी यद्ध स्तर पर चल रहे हैं। 
    कृषक समाज  अमुमन फसल कट जाने/ बिक जाने के बाद इस जयंती  महोत्सव को पूरे एक पखवाडे तक हर्षोल्लास से मनाने और खुलकर खर्च करने  की प्रवृत्ति  विगत सौ 80-90 साल की परंपरा है। उसके पूर्व बहुत ही सादगी पूर्ण रोठ तस्म ई और निशाना मे पालो चढ़ाकर मनाने की प्रथा रही है। 
          हालांकि बड़ा और भव्य आयोजन से गुरुघासीदास जयंती की  प्रसिद्धी बढ़ी और लोगों मे परस्पर मेलजोल भी होने लगा ।  परन्तु इसके साथ- साथ नाच पेखन ,लोकमंच आदि की प्रस्तुतियों से गरिमा में गिरावटे आई और अनेक बुराई पनपी खासकर जयंती - मड़ ई साथ होने पर जुआ मद्यपान जैसे कुरीति आई ।  और व्यर्थ खर्च और मनोरंजन के नाम पर फूहड़ पन प्रस्तुतियों से हमारी श्रेष्ठतम संस्कृति प्रदूषित भी होने लगी। अति सर्वत्र वर्ज्येत तो होते ही है फलस्वरुप एक दिन या महज 18- 25 दिसंबर  तक एक सप्ताह आयोजन करने की बाते होने लगी । समाज के अधिकतर  विद्वान तो केवल 18 दिसंबर को ही मनाने पर जोर देते है। पर एक दूसरे के आयोजन मे सम्मलित होने की चाह के कारण यह महिनों विस्तारित हो गये। 
    बहरहाल समाज मे जयंती के अतिरिक्त अब गुरुगद्दी पूजा महोत्सव और सतनामायण / सत्संग और अन्य गुरुओं की जयंती / पुण्यतिथि  आदि का भी प्रचलन होने के कारण धीरे -धीरे जयंती का दायरा सिमट रहे है। यह शुरुआत अच्छा भी है परन्तु जयंती की भव्यता शोभायत्रा और रात्रि बडे सांस्कृतिक आयोजन से समाज की संपदा का अपव्यय हो रहा है। इस संपदा को शिक्षा  रोजगार और जरुरत मंदो के हितार्थ लगना था ,वह नाच -गाने और प्रदर्शन मे हो रहे है। उनके नियंत्रण हेतु सचेत होने की आवश्यकता हैं। हमारे  विचारकों /साहित्यकारों को इस तथ्य को प्रचारित - प्रसारित करना चाहिए।
         अतएव जयंती आयोजक मंडल भी ज्ञानवर्धक कार्यक्रम आयोजित करें।नाच पेखन और अश्लील फूहड़  गीत /नृत्यादि   वाले लोक कला मंचो / आर्केट्रा आदि का आयोजन  गुरुघासीदास जयंती जैसे पावन और विजनरी महोत्सव में न करें। कलाकार भी मर्यादित रहें तथा जयंती जैसे पावन महोत्सव की गरिमा का ध्यान रखें।
    नवरात्रि के जगराता मे कोई मंच से ददरिया गाते है क्या ? नही । तब गुरुघासीदास के जयंती पर ददरिया गाने का क्या औचित्य है ? इस बात को जरुर ध्यान मे रखे ।फरमाइश आते भी हो तो उसे सम्मान पूर्वक मना कर दें।
                आयोजक और सहभागिता निभाते हमारे अतिथि और कलाकारों को जयंती की पवित्रता और गरिमा का ख्याल जरुर करना चाहिए। 
      धन्यवाद    

                ।।जय सतनाम ।।

ददरिया

#anilbhatpahari 

।।ददरिया ।।

बानी वाले अस त बड़  गुठिया ले  

दगा झन देबे का ग किरिया खा ले... 

किरिया खाथव बानी वाला मय 

दगा नइतो  देवव का ओ किरिया खाथंव ...

नंदियां भीतरी के  झुंझकुर  झांहू 

तय अगोरत रहिबे संगी खचित आहू...

गंधेसर बबा म नरियर चघाबोन 

डंडासरन पैलगी  असीस पाबोन ...

नवा रे लुगरा अउ धोती नवा दशी 

ये  जिनगी ह बितय राजी- खुशी 

 चित्र -जुनवानी घाट महानदी गंधेश्वर मंदिर प्रांगण सिरपुर से ।

Wednesday, December 22, 2021

संगी तोर मया

#anilbhatpahari 

आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

संगी तोर मया 

संगी तोर मया ह लागे गोरसी के आंच असन
अरझे अंतस भीतरी कमचिल के फांस असन 
पलपला म उसने देह तोर शंकर कांदा असन 
बोली बतरस लसलस ले अमली लाटा असन
सुख -दु:ख बटागे सित्तो बोइर अउ चार असन 
धरखन एक दुसर बर काड़ अउ मियार असन

   - बिंदास कहे अनिल भतपहरी

चित्र - धनेश साहू

Friday, December 10, 2021

शहीद वीर नारायण सिंह‌

#anilbhatpahari 
10 दिसंबर पुण्यतिथि पर 

शहीद वीर नारायण सिंह 

समकालीन छत्तीसगढ़ को अंग्रेजी सत्ता के संरक्षण में देशी महाजनों,सेठ, साहूकारों  की  चुंगुल और लूट -शोषण से  बचाने सुदूर वनांचल मे सोनाखान नामक ग्राम  से एक क्रांति ज्वाला प्रज्ज्वलित हुई जिसे दुनियां शहीद वीर नारायण सिंह के नाम जानती हैं।
      यशस्वी पिता राजा रामराय का यह तेजस्वी पुत्र महान आध्यात्मिक संत  गुरुघासीदास से अभिमंत्रित थे। समव्यस्क  गुरु पुत्र राजा बालकदास  से उनकी  गहरी मित्रता रही ।फलस्वरुप ट्रांस महानदी क्षेत्र मे यह दोनो रण बांकुरे जन जागरण चलाकर अभूतपूर्व कार्य किए । जो युगो- युगो तक  स्मृत रहेन्गे और जनमानस को प्रेरित करते रहेन्गे ।इन दोनो महानायकों के ऊपर विराट लेखन की संभावनाएं हैं।
   वे दोनो ने मिलकर अंग्रेजो के ईसाईकरण और सेठ साहूकार मालगुजारों की आतंक से बचाने सफल हुए।

      वीर नारायण सिंह का जन्म गिरौदपुरी पहाड़ी के नीचे तलहटी पर सोनाखान नामक ग्राम मे बिंझवार जमींदार रामराय के घर  1795  में हुआ। 1830 में रामराय की मृत्यु के उपरान्त 35 वर्ष की आयु मे वे सोनाखान जमींदारी का प्रशासन संभाला ।  वे  अत्यंत साहसी और पराक्रमी थे । वे भोली -भली  दु: खी पीड़ित जनता के सहायतार्थ सदैव तत्पर रहते थे।यह गुण उन्हे समीप ही गुरुघासीदास की आध्यात्मिक सत्संग प्रवचन से अर्जित हुआ। ज‌न कल्याण ही सच्चा नारायण सेवा और पूजा है यह पाठ वे बाल्यकाल से ही सीख चूका था।
        1856 मे भीषण आकाल पड़ा जनता भूख से त्राहि -त्राहि करने लगी  कही से भी कोई आपूर्ति नही था। ऐसे मे कसडोल के माखन नाम का एक  अन्न व्यापारी भारी मात्रा मे धान जमा कर मुनाफा कमाने के फिराक मे थें। उनसे उन्होने प्रजा हितार्थ अनाज मांगे  पर नही दिया गया। तब वे उनके जीवन बचाने अपने कुछ विसवस्त सहयोगियों के साथ धावा बोलकर धान की बोरियां उठवा लिए।
   व्यापारी ने रायपुर स्थित कमीश्नर स्मिथ से शिकायत किए।
उन पर डैकती का मुकदमा लगा कर जेल भेज दिए। रायपुर सेंट्रल जेल मे उन्हे देश मे चल रहे अंग्रेजों की  शोषण दमन और क्रुरताओं से संदर्भित जानकारियां    स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से मिली जिसे उपद्रवी व आतंकी कहे जाते थें। वीर नारायण सिंह बेहद उद्वेलित हो  क्रांति की मार्ग पर चलने और देश तथा व्यक्ति स्वतंत्रता को अर्जित करने जेल मे  मंझला नामक एक सहयोगी से जेल में बंद होकर मरने से अच्छा  ब्रिटिश सरकार की जंजीर तोड़ उन्हे देश से खदेड़ने की प्रण लेकर  जेल से फरार हो गये। और अपने बाल मित्र राजा गुरु बालकदास के गढी भंडारपुरी -  मे जाकर मिले। वहां उन्हे गुरुघासीदास का आशीष मिला और मित्र का अपनापन उसे समीपस्थ ग्राम जुनवानी मे सत‌नाम सेना के प्रमुख ऊंजियार दास के संरक्षण मे  बैलगाड़ी से भेज दिए। और  संदेश वाहक को सोनाखान खबर कर दिए गये।नारायण सिंह एक रात्रि विश्राम कर अपने गांव सोनाखान जाने तैयार हुए तो उसे 
महानदी पार करवाकर उनके लोगो से मिलवाए । वे  सोनाखान चले गये। 
    वहां जाकर उन्होने हर सतनाम सेना के अनुकरण करते प्रत्येक घर से एक एक युवाओं को एकत्र कर 500 लोगो की फौज बनाए और उन्हे  युद्ध कला सिखाने पहल किए । सतनाम सेना के खडैत जो आखाड़ा  कला में सिद्धहस्त थे उन्हे अपने बाल सखा गुरुबालकदास से कहकर आमंत्रित किए।  जुनवानी तेलासी   अमसेना बोदा मोहान के  15-20 प्रशिक्षित लड़ाके तलवार  तब्बल भाला  बर्छी आदि चलाने की प्रशिक्षण देने लगे।  इस तरह वनांचल मे अंग्रजी सत्ता और देशी महाजनो मालगुजारों के आतंक से निपटने की जोर -शोर से तैयारी होने लगे।
       इस तरह सीधा- सीधा ब्रिटिश सत्ता से विद्रोह की बिगुल फूंक दिया गया! यह सोनाखान विद्रोह के नाम से इतिहास मे  दर्ज होकर विख्यात हो गया है-

स्मिथ सेना लेके घेरिन सोना खान जमींदारी ल 
सिहगढ़ भ इगे सिंहखान 
फेर सोनाखान तपे आगी मं ।

  इस तरह बांस और घांस से घिरे जंगल को  अंग्रेज फागुन -जेठ के बीच हुए संग्राम मे आग लगाकर घेर लिए ।
कुर्रुपाठ छोड़ सरदारन संग 
सोनाखान के जंगल म
डेरा डारिन नारायेन सिंग 
साजा कौउहा  के बंजर म। 

अंग्रेज उनकी जगह बदलते और छापामार शैली से परेशान हो गये 
    अंतत: सडयंत्र और छल कपट कर कैप्टन स्मिथ ने सैनिकों की टुकड़ी लेकर सोनाखान को घेर लिया। पर कुछ हासिल नही हुआ। फिर उनके बहनोई देवरी के  जमींदार साय जी को अपने पक्ष मे मिलाया उन्होने उसे  कुर्रुपाट पहाड़ी मे होने और वहां से गोरिल्ला युद्ध की तैयारी मे रत बताए । उनके बताए अनुसार  जब  नारायणसिंह देवी पूजा के गये थे  तभी वहां से उन्हे  गिरफ्तार कर लिए गये -

देवरी के जमींदार दोगला 
बहनोई बीर नारायेन के 
लगा दिहिस बाढ़े बिपत म 
काम करिस कुकटायन के 

        फिर रायपुर स्थित जेल मे वीरनारायण सिंह को बञद कर दिए बिना कोई अदालती मुकदमा चलाए कही उनके सैनिक जेल पर हमला कर न छुड़ा ले 10 दिसबंर 1857 को तोप से उड़ा दिए । उनकी देह भी उनके परिजनो को नही सौपे ।
    इस तरह गरीबो मजलुमों के मसीहा वीर नारायण सिंह स्वाभिमान और स्वतञत्रता के लिए बलि वेदी पर न्योछावर हो गये। (और ठीक तीन साल बाद 28 मार्च  1860 को‌ राजा गुरुबालकदास को भोजन करते समय सडयंत्र पूर्वक हत्या कर दिए गये।) 
   उनकी शहादत से परिक्षेत्र मे शोक व्याप्त हो गये । 
 वीर नारायण सिह समाज राज और देश के लिए  शहादत देकर अमर हो गये । आज उनकी शहादत दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते भाव भीनी श्रद्धांजलि देते है। 
      

          जय सेवा जय सतनाम  जय वीर नारायण । जय छत्तीसगढ़ ।

टीप - फिल्मकार मधुकर कदम जी निर्मित फिल्म " शहीद  वीर नारायण सिंह  " का प्रोमो‌ पर संस्कृति मंत्री संग ।

Sunday, December 5, 2021

सुरता के चंदन के रचयिता हरि ठाकुर‌

सुरता के चंदन के रचयिता : हरि ठाकुर 

बादर ह गंजा गे रुई के पहाड़ असन 

संस्मरण -

सुरता के चंदन के  ऊगाने (रचयिता ) वाला आद हरि ठाकुर जी 

तब बात 1989-90 की है जब मै गुरुघासीदास छात्रावास आमापारा रायपुर मे रहते दुर्गा महाविद्यालय मे बीए अंतिम का छात्र था। साहित्यिक अभिरुची के चलते सामने ही आर डी तिवारी स्कूल , सोहागा मंदिर प्रांगण आंनद वाचनालय कंकाली पारा उनके प्रेस , वेदमती धर्मशाला सोनकर पारा या शिकारपुरी धर्मशाला या फिर गांधी प्रतिमा उद्यान ब्राह्मण पारा चौक छत्तीसगढी समाज  के भवन हांडी पारा  मे हरिठाकुर , केयुर भूषण ,  आचार्य सरयुकांत झा , डा मन्नूलाल यदु , जागेश्वर प्रसाद , शिव कुमार निकुंज , डा राजेन्द्र सोनी , रामेश्वर शर्मा बलिराम पांडे , उदयभान चौहान चेतन भारती और हमारे  स्वतंत्रता संग्राम सेनानियो मे मोतीलाल त्रिपाठी , धनिराम वर्मा कमलनारायण शर्मा  आदि । इन सबको एकत्र करने का काम सशील यदु ,रामप्रसाद कोसरिया  करते और हमलोग उनके सहयोग जिसमे चंद्रशेखर चकोर ( सहपाठी ) राजेन्द्र चौहान  साथ होते जिसे उन  जैसे  प्रखर प्रतिभाओ का सानिध्य लाभ मिला। 
  उनके लगातार आयोजनो के श्रोता या दरी उठाने बिछाने बैनर पोष्टर फोल्डर बाटने के काम करते रहे।एवज मे कभी कभी काव्यपाठ करने का अवसर मिल जाया करते थे। छिटपुट उन कार्यक्रमों के रिपोर्टिंग पेपर मे आते।जिनकी विज्ञप्ति देने  सुशील भैया मेरे छात्रावास के रुम मे आते और छोड़ कर स्कूल जाते जिसे मै प्रेस मे दे आता।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियो मे मोतीलाल त्रिपाठी , धनिराम वर्मा कमलनारायण शर्मा ‌ डेरहाराम धृतलहरे महादेव   इत्यादियों को एकत्र करने का काम सशील यदु ,रामप्रसाद कोसरिया  करते और हमलोग उनके सहयोग जिसमे चंद्रशेखर चकोर ( सहपाठी )  सुशील वर्मा ,राजेन्द्र चौहान जैसे प्रतिभाओ का सानिध्य लाभ मिला।
  उनके लगातार आयोजनो के श्रोता या दरी उठाने बिछाने बैनर पोष्टर फोल्डर बाटने के काम करते रहे।एवज मे कभी कभी काव्यपाठ करने का अवसर मिल जाया करते थे। छिटपुट उन कार्यक्रमों के रिपोर्टिंग पेपर मे आते।जिनकी विज्ञप्ति देने  सुशील भैया मेरे छात्रावास के रुम मे आते और छोड़ कर स्कूल जाते जिसे मै प्रेस मे दे आता।

   बहरहाल  एक कवि संगोष्ठी के बाद  उनकी एक कविता की पंक्ति मे मेरा मासुम सा हस्तक्षेप नुमा आग्रह था -  "बादर हर  गंजा गे रुई के पहाड़ असन के जगा 
बादर हर गंजा गे पोनी के पहाड़ असन .... हर जादा शोभाय मान होही ।" 
      उन मन बड़ गहिर गंभीर सुभाव के रहिन अउ हमन ओकर तीर गोठियाय बर तको झिझकन ... वोहर कहिस बने कहत हस बाबू  अउ मोला गौर से देखन लगिस मय झेंप गेंव ।मोर संग उमाशंकर अउ मनराखन रहिन  ।  अभी उमा भाई हर  इंजीनियर हवे ।अउ तरुण छत्तीसगढ म काम करत मनराखन हर आजकल  अपन गांव म खेती किसानी म मंगन हवे।
         हरि ठाकुर के सुरता के चंदन हर आजो ले गजबेच ममहावत हवय।

    डा. अनिल भतपहरी