।।सित्तो भागमानी हन ।।
सीत बइरी अल्हन अघ्घन मं सुरुर-सुरुर चलय
तोर बिन संगी जीव हर धुकुर- धुकुर करय...
सुध -बिसुध रहिथे लाम्हे सुरता तोरेच डहन
जे गलीतय निकले ओती नैन टुकुर- टुकुर तकय...
कत्कोन बरजेव मन ल मया झन कर बिरान ल
बनजियबह यवह
वसीध नइबरयय न कभु एहर सिघियाय
टेड़गा जनम भर के ये पुंछी कुकुर हरय ...
गत थैबयनु
मीठ मंदरस जान अभरेटव दही कपसा कस
नंगत झावतबय,र अंगरेजी मिरचा कस चिरपुर हरय ...
सारा- सखी नइये सोचेंव रहु बनके घरजिहां
सास खोजत संतान बर बुढ़वा ससुर हरय ...
सुन्ता सुम्मत के बस्ती ये मया पिरित के गांव
फेर रोजेच संझा कइसन बिकट चुहुर परय ...
अब तक मनखे मन के दौचई मं मर-खप जातेंव
फूल-पान,फाफा-मिरगा,चिरई -चुरुगुन हवय...
सित्तो भागमानी हन कि अभी उजरे नइये जंगल
ओकरे सेती पवन पुरवाई फुरहुर-फुरहुर चलय...
- डाॅ. अनिल भतपहरी/
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