।।ठठ्ठा ।।
तहु भल कहे गो
अउ बनेच ठठ्ठा मढ़ाएव
बेरा- बखत म सहाथे
फेर कुबेरा म करेजा चीरा जथे
असनेच झन हंसवाए करव
तरसत मनखे ल हंसवा के
भला काय मिलही
चाही जेला जेवन
ओला असवासन पोरसेच्च में
कइसे बनही
न तो पेट भरय न पुरखा तरय
भलुक तुम दुनों के खुडवा म
बनेच दौचाही
तुहर खुरखुंद चाहली म
फदक जाही
तीसर के नइये कहुंच आवा- जाही
तुहीच मन बांधे हव पारी
खेलत हव ओसरी पारी
खेलावत हव भारी
जुगाड़ चंद मन के अबड़ेच सुननेन मसखरी
हमन तो पीटते रह जथन तारी
लगथे हमन ओकरेच बर बने हन
कभु काल कोनो पाए ल उदुक
चिभोर देथव चाहली म
फदका देथव करथे उबुक- चुबुक
खेल तुहर गजब के हवे मदारी
फेर काबर दुच्छा हे हमर थारी
कोनो बतावव तो फरी फरी
ठठ्ठा झन तो मढ़ाव संगवारी
बिलखत मनखे ल हसवाए म
काय मिलही
हांसत गावत कहिके
हमर डहन ले उछिंद हो जथव
हमु मन हांस- हुसी के
खांस - खुसी के
तारी पीट -पाट के
का के खंगती हे?
उहु ल भुला जथन
रोनहुत -हांसी संधरा होय से
अलकरहा सटक जथन
-डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514
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