सतनाम धर्म संस्कृति में गुरु घासीदास द्वारा प्रवर्तित
गुरु अम्मरदास जन्मदिन गुरु पूर्णिमा पर -
।।अइटका -परब मेला तेलासी ।।
सतनाम धर्म के प्रवर्तक गुरु घासीदास बाबा के ज्येष्ठ पुत्र गुरु अम्मरदास जी का जन्म असाढ़ पुन्नी को गिरौदपुरी मे हुआ।वे बाल्यकाल से ही अपने पिता के सदृश्य विलछण. और तेजस्वी थे। अत्यन्त प्रतिभाशाली अम्मरदास जी ७-८ वर्ष के उम्र मे अपनी माता सफूरा के साथ जलाऊ लकडी लाने वन गये।एकाएक वे वन मे खो गये।किवदन्ती है कि उन्हे शेर उठाकर ले गये।आज भी शेर पन्जा मन्दिर गिरौदपुरी मे स्थित है।जहा सतपुरष या कोई महान योगी या साधक के भी चरणचिन्ह है कहते है वह शेर पर सवार योग्य बालक के तलाश मे आये और बालक अम्मरदास को अपने साथ बिठाकर गहन वन मे चले गये। सफुरा और उनके साथ गई ग्राम्य महिलायें ढूंढती रही पर बालक नही मिले।
पुत्र वियोग से व्याकुल बेसुध हो गई ।
वही तेजस्वी बालक १५ -१६वर्ष बाद २१-२२ वर्ष के उम्र मे साधू वेष मे ग्राम तेलासी मे रामत करते गुरु दम्पत्ति को छिन्दहा तालाब पार मे मिले।
तब गुरु अम्मरदास अपनी योग साधना की सिद्धी उपरान्त अपने माता-पिता को तलाशते हुये तेलासी पहुचे थे।
ग्राम तेलासी पुत्र मिलन जगह होने के कारण सद्गुरु को बडा प्रिय लगा।और वे यहा रमण करने लगे।
गुरु दम्पति की ख्याति उनके योग साधना और अनेक दिव्य औषधियों से असाध्य रोगो के उपचार आदि से सर्वत्र फैलने लगे।दूर -दूर से लोग उनके दर्शन और अपनी दु:ख -पीड़ा के निदान के लिये आने लगे।
उपकृत श्रद्धालुओ द्वारा भेट स्वरूप भूमि अन्न आदि के संरक्षण हेतु तेलासी भन्डार मे बस गये।कलान्तर मे इन दोनो जगहों पर भव्य बाड़ा, मोती महल व गढी किला नुमा परकोटा बनवाये गये।जो सतनाम धर्म का ऐतिहासिक स्मारक है।
गुरु अम्मरदास जी तेलासी वासियों के लिये अत्यधिक प्रिय रहे है।कहते है एक व्यक्ति मान्साहार हेतु कपड़े मे लपेटकर मांस ले जा रहे थे।लोग शिकायत किये।गुरु अम्मरदास ने योग बल से लोगो की दृष्टि बदले और जब पोटली खोले तो वह नाड़ियल प्रसाद के रुप मे लोगो को दिखाई दिये ।सभी चमत्कृत हो गुरु चरण मे नत हो क्षमा -याचना किये। गुरु कृपा से अभिभूत तेलासी व अनेक ग्राम के लोग सतनाम दीक्षा लेकर सतनामी बने। यहाँ महासंगम हुआ।
और उन सभी वर्गो ,जातियो को गुरु घासीदास ने गुरु अम्मरदास के जन्म दिन गुरु पूर्णिमा को तस्मई- चीला बनवाकर एक परात या बर्तन से बटवाये।यही" अइटका " है।इसके लिये विधान बनाये।बहते जलधारा से चावल दूध घी गुड़ और मेवा डालकर सात्विक तस्मई ( खीर )बनाकर परस्पर बाटकर खाना।सत्सन्ग प्रवचन सुनना, पन्थी नृत्य मन्गल करना यहां तक कि सतनाम संस्कृति से संदर्भित लीला व नाट्य मंचन तक होते रहे हैं।यह तेलासी सहित आसपास के कई ग्रामो मे तब से प्रचलन मे है।
सफूरा माता की अनुनय- विनय और बडे़ के रहते छोटे भाई विवाह कैसे करे के चलते न चाहते प्रतापपुर मे अन्गारमति से अम्मरदास जी का विवाह हुआ।गौना लाए पर वे ब्रम्हचर्य का ही अनुपालन करते रहे और सतनाम की आध्यात्मिक गुरु के रुप मे ख्यातिनाम हुए।
ब्रम्हचारिणी अन्गारमति भी साध्वी जीवन अन्गीकृत की । आगे चलकर माता प्रतापपुरहीन के नाम से विख्यात हुई ।आज उनकी शैय्या दर्शनीय है।
गुरु बालक दास सेत सुमन घोडे़ मे सेत वसन धारण कर चलते और लोगो मे सतनाम की अलख जगाते।पन्थी मन्गल भजन सत्सन्ग का प्रचलन समाज मे गुरु अम्मरदास जी ने किया।
एक दिन शिवनाथ नदी के तट पर चटुआ घाट के समीप मनोरम स्थल पर अपने अनुयायियों को सतनाम समाधि का रहस्य बताते अउठ दिन (साढे तीन दिन )की भू समाधि मे चले गये।
आसपास से बहुत से लोग आ गये।उन भीड़ मे कुछ विरोधी कहने लगे वो मृत हो गये है।उन्हे बाहर लाओ ।अनुयायी भीड़ के आगे बेबस अधुरी साधाना मे उन्हें वापस तन्द्रा मे लाने लगे।पर गुरु नही जगे।
अन्तत: उन्हे पूर्ण समाधि दे दी गई ।
जनश्रूति है जब गुरु की समाधि अवधि पूरी हुई तो लोग देखे कि एक ज्योति पुन्ज समाधि को चीरती ऊर्ध्वगामी आकाश मे विलीन हो गई ।
कई वर्षों के अन्तराल मे समीपस्थ ग्राम हरिनभठ्ठा के मालगुजारी आधार दास सोनवानी अपने पुत्र मनोकामना पूर्ण होने पर गुरु अम्मरदास के समाधि मे भव्य मन्दिर बनवाये।
आज यह सतनामिओ को का प्रमुख धाम है जहां पर पौष - छेरछेरा पुन्नी को विशालकाय मेला गुरु के पुण्य स्मरण मे लगते आ रहे है।
सतनाम आध्यात्मिक चेतना और साहित्य के प्रणेता गुरु अम्मरदास अम्मर रहे।
टीप - सतनाम अइटका परब प्रथम सार्वजनिक आयोजन हैं। कृपया इस पावन पर्व का सार्वजनिक आयोजन अपने अपने ग्राम मुहल्ले व जैतखाम परिसर पर करें। और तस्म ई बनाकार सत्संग प्रवचन व मंगल पंथी आदि का आयोजन करें।
जय सतनाम।
गुरु पूर्णिमा की मंगलमय मंगलकामनाएं
डाॅ. अनिल कुमार भतपहरी
9617777514
सचिव
सतनाम साहित्य प्रकोष्ठ
प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज
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