।।छत्तीसगढ़ी के सरुप ।।
भाषा के ऊपर बिचार करब म ये तो डगडग ले चिनहउ हवे कि जुन्ना जनपदीय भाषा जेमा छत्तीसगढ़ी,गोंडी , कोसली, मागधी , मैथिली, अवधि ,बघेलखंडी अउ नवा सिरजे "हिन्दी "यानि की १८५७ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जेन ल स्थानीय राज -राजवाड़ा मन के जेमा (छत्तीसगढ़ के वीर नारायण सिंग अउ राजा गुरु बालकदास तको रहिन वीर नरायण सिंग ल १८५७ मं दोषी करार के तोप से उडा दिन अउ जन नायक श्रद्धा के पात्र राजा गुरुबालकदास ल सडयंत्र पूर्वक भोजन करते १८६० में हत्या करवा दिए गये ) कुछेक सभिमानी राजा अउ ओकर सामंत मन सिपचाय रहिन ओमा भारतीय जनपदीय भाषा अउ उर्दू के बड सुघ्घर समन्वय रहिन जेन " ल हिन्दवी कहे जाय उही ल हिन्दुस्तानी तको कहे जाय " उकर भाषा अउ आन आन जगा के लोगन के संपर्क भाषा के रुप म सिरजे "हिन्दी " के मूल उद्गम भाषा पाली अउ प्राकृत आय । अउ उर्दू अरबी- फारसी के तको शब्द मिंझरे हवय।
छत्तीसगढ़ मं तो जतका जुन्ना शिलालेख हवे उनमन पाली भाषा के ब्राम्ही लिपि म हवय। फेर छत्तीसगढ़िया रचनाकार मन ओ लिपि अउ भाषा के कभु खियाल न इ करिस तेन पाय के सबकुछ छुटतेच गय । लेकिन धियान से उच्चरित ध्वनि ल देखहु त छत्तीसगढ़ी गोड़ी कोसली ह पाली अउ प्राकृत के कत्कोन शब्द निमगा ब उरत चले आत हवय।
पाली भाषा राजभाषा के संगे संग जनभाषा रहिस। जोन राजा बोलय ओला परजा समझय अउ जोन ल परजा बोलय ओला राजा ते पाय के प्राचीन भारत के श्रमण संस्कृति हर विश्व विख्यात रहिन तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला जैसे विश्वविख्यात प्रतिष्ठा न रहिन जिहां हजारों साहित्यिक दार्शनिक नीतिपरक और राजकीय सामरिक धातु कार्मिक यांत्रिकी वैद्यकीय के अध्ययन अध्यापन होवय । नालंदा के ग्रंथागार के जलाय के आगी महिनो न इ बुझाय सके रहिन सोचोव कतेक साहित्यिक पांडुलिपियाँ नष्ट कर दे गिस!
अउ त अउ लगभग ६-८ सदी के जतका खडहर ( पुरा अवशेष ) हवय जेमा सिरपुर राजिम मल्हार तम्माण डमरु तरीधाट गुंजी में मिले शिलालेख के भाषा पाली अउ लिपि ब्राम्ही हवय । ओमा बहुत भारी ज्ञान विज्ञान के बात हवय ओला सामने लाने के जरुरत हवे।
हमर साहित्यकार कलाकार मन ल चाही कि अपन जगा मिले जिनिस के मूल तत्व के स्थापना बर मिहनत करय। तब मौलिकता आही।
नहीं त अधिकतर छत्तीसगढ़ी साहित्य हर आन प्रांत के पटन्तर लगथय।
छत्तीसगढ़ी हिन्दी अउ पाली के बीच जो संबंध हवे उन हर खाल्हे लिखाय हवय-
पाली छत्तीसगढ़ी हिन्दी
अग्गि आगी आग
मनख्ख मनखे मानव
दुक्ख दुख दु: ख
सुरज. सुरुज सूरज
इस्सर इसर ईश्वर
खन्ध. खांध. कंधा
अमिय. अमरित. अमृत
अक्खर. आखर. अक्षर
इत्यादि
धियान से देखव हमर छत्तीसगढ़ी पाली के संग कतेक सुघ्घर मिलथे जब शब्द मिलथे त कला संस्कृति क इसे न इ मिलही ? ओ भुले बिसरे गाथा वृतांत. इतिहास ल खोजे ल परही।
असल में विगत २-३ सौ साल से हमन जब से स्कूली शिक्षा आय हे तब ले हिन्दी भाषी क्षेत्र खासकर उ प्र ,म प्र बिहार अउ सीमावर्ती गैर हिन्दी भाषा के लेखक कवि के रचना ल ही पढ- लिख समझ के उही मं रच -खप गय हन। छत्तीसगढ़ी ल हिन्दी के बोली समझ लिन ते पाय के भी कभु इहा के जिनिस पाठ्यक्रम म न इ संघरिस । संगे संग हमन अपन तीर- तखार के जतनाय जिनिस डहन न सुर ले सकत हन ल शोर -संदेश । फलस्वरूप मूल छत्तीसगढ़ी भाषा अउ संस्कृति डहन ले उदासिन होके न ओकर लेखन कर सकेन न संरक्षण संवर्धन । सिरतो कहे तो कोनो गंभीरतापूर्वक प्रयास तको नइ होय पाइन। थोर बहुत होय हवे ओहर छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी जनता म तको बने ढंग ले प्रचारित प्रसारित न इ होय पाइन। अलग छत्तीसगढ़ बने के पहिली बड़ दयनीय दशा रहिन पढ़े -लिखे छत्तीसगढ़ी परिवार जोन शहर म बसिन उकर घर म तको छत्तीसगढ़ी के उपयोग थिरके लगिन ।जबकि ओही मन सजोर रहिन । ओमन बौरतिन त ओकर देखा -सीखी बनेच गहदतिन फेर उकरेच अनुसरन म गाँव म तको पढे लिखे मन अपन अपन घर म छत्तीसगढ़ी के उपयोग करे बर कनुवाय घर लिन ।
एक हिसाब से देखे जाय त न राज संरक्षण मिलिस न कभु राजकाज होइस अउ त अउ पोथी ,पतरा, किताब बनिस न छपिस । छिटपुट ह अपवाद आय।
रमैन महाभारत वेद पुरान के अतिरिक्त कत्कोन अउ जिनिस हवय । ओकर पढे़ से जुड़ाव ओकर सिरजे जगा अउ भाषा बोली बर तो होइस फेर अपन जगा भाषा बोली के प्रति उदासिनता अउ अनभिज्ञता आय ल धर लिन। जबकि आपार पाली साहित्य ,सिद्ध साहित्य व संतो की निर्गुण बानी मन के पांडुलिपि हवय अउ प्रकाशित ग्रंथ पुस्तक तको हवय। अलेख अवस्था में हजारो लोक मंत्र मन बैगा, गुनिया, सिद्ध ,साधु -संत मन कना मुखाग्र कंठस्थ रहय अउ अभी तक ओ चलागन पाठ -पीढा ले दे के रुप मं चले आत हे । उन सब ल न पढे के ,न खोजे अउ समझे के न सख नइये न जोम हे ।ते पाय के हमर समृद्धशाली ऐतिहासिक गौरव के संगे -संग हमर अति प्राचीन छत्तीसगढ़ी भाषा के सही अउ ठोस स्थापना नइ कर सकत हवन। जबकि छत्तीसगढ़ी लोक गीत लोककथा अउ जनश्रुति मं हमर अबड़ सुघ्घर संस्कृति कला इतिहास के जानकारी जतनाय हवय ।फेर उन ल तियाग के औपनिवेशिक रुप से आजादी के बाद से, अब तक शिक्षा म हिन्दी संस्कृत अउ अंग्रेजी माध्यम होय के कारण या कहे छत्तीसगढ़ ह मध्यप्रदेश मे संधरे रहे से अध्ययन -अध्यापन म हिन्दी अंग्रेजी संस्कृत त्रिभाषा फार्मूला ही रहिस अउ इहां के मातृ भाषा छत्तीसगढी ल बोली समझ के जाने- अनजाने मे अनदेखई कर दे गिस ।परिणाम सरुप उत्तर भारतीय संस्कृत निष्ठ भाषा के शिकार होत चले आत हन। हिन्दी के उर्दू और देशज सरुप तको आजकल नंदावत चले जात हे। अमीर खुसरो से ले के प्रेमचंद तक जोन हिन्दी रहिस आज तिरियाय हवय।
सच कहे त छत्तीसगढ़ मे आज ले भी संस्कृत निष्ठ हिन्दी जोन क्लिष्ट हे तेकर चलन बिल्कुल नइये। सरल -सहज सरुप तीन चार अक्षर के मेल से बने लालित्य पूर्ण भावप्रवण शब्द छत्तीसगढ़ी म मिलथे जोन पाली प्राकृत के विशेषता रहीन ओ ज्यो के त्यो छत्तीसगढ़ी मं देखे जा सकत हे। एक हिसाब से देखे जाय त गांव- गंवई मं तो हिन्दी बोलइ ल "हमेरी" झाड़त हे कहे जाथे अउ अंग्रेजी तो कोनो भुल के तको नइ गोठियाय सकय। काबर कि जीभेच नइ लहुटय अंगरेज जमाना के कत्कोन मूल अंगरेजी शब्द रेडिया, सइकिल ,इसकुल ,मोटर कंडिल, बकसा , छत्तीसगढ़ी पुट दे के ज्यों के त्यों बौरात चले आत हे।
पांच आखर के शब्द ठीक बोले नी जा सके । समरसता ल समर +सता कहे जाथे । अउ त अउ मोर सरनेम के पंचाक्षरी भट्टप्रहरी संयुक्ताक्षर के साफ उच्चारन ध्वनि नइये ओहर भतपहरी सहज उच्चारन ध्वनि म व्यवहृत हवय। प्रहर ल पहर ही कहे जा सकथे अउ त अउ भगवान मन के नांव -विष्णु ल तको बिसनू कहे जाथे, ब्रम्हा ल बरम्हा ,कार्तिकेय ल कातिक कहे जाथे उवा उवा...
त हमर सुधि पाठक साहितकार, कलाकार अउ गुनवंता मन सो गिलौली हवे कि अपन मूल छत्तीसगढ़ी भाषा अउ संस्कृति के संगे संग ओकर सह भाषा अउ बोली जेमा प्रमुखतः गोड़ी हल्बी भतरा सादरी कुडुख सहित लरिया , खल्टाही ,बैगानी, कलंगा ,भूलिया , बिंझवारी मन के उपर धियान केन्द्रित करके सच्चाई के स्थापना कर में अपन बल -बुद्धि लगावय त छत्तीसगढ़ी सहित छत्तीसगढ़ के तको भला होही अउ फरिल जस तको एकर साधक मन ल मिलही । शासन- प्रशासन ल तको जुन्नटहा अउ जतनाय जिनिस मन ल खोजवाय- छपवाय के उदिम करना चाही। एक अलग प्रभाग गठन करके छत्तीसगढ़ी मूल संस्कृति के संरक्षण बर ठोस उपाय करे के जरुरत हवय ।
।।जय छत्तीसगढ़ी जय जय छत्तीसगढ़ ।।
-डाॅ. अनिल कुमार भतपहरी
सचिव
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग
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