Thursday, July 29, 2021

स इता

आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

।।सइता ।।

जउन होथय  सब बने  होथे  
नइ रुकय काकरो छेके- रोके 
एक के अलहन एक के मउका  
कहिन गोठ बउदा हर  ठउका  
होथय  सिरतोन  सफल तउन 
 अपन सइता ल रखथय जुन

बिंदास कहें-डॉ॰ अनिल भतपहरी

Thursday, July 22, 2021

अइटका परब मेला

सतनाम धर्म संस्कृति में गुरु घासीदास द्वारा प्रवर्तित 
       गुरु अम्मरदास  जन्मदिन  गुरु पूर्णिमा पर -  

          ।।अइटका -परब मेला तेलासी ।।
सतनाम धर्म के प्रवर्तक गुरु घासीदास बाबा  के ज्येष्ठ पुत्र गुरु अम्मरदास जी का जन्म असाढ़ पुन्नी को गिरौदपुरी मे हुआ।वे बाल्यकाल से ही अपने पिता के सदृश्य विलछण. और तेजस्वी  थे। अत्यन्त  प्रतिभाशाली अम्मरदास जी  ७-८ वर्ष के उम्र मे अपनी माता सफूरा के साथ जलाऊ लकडी लाने वन  गये।एकाएक वे वन मे खो गये।किवदन्ती है कि उन्हे शेर उठाकर ले गये।आज भी शेर पन्जा मन्दिर गिरौदपुरी मे स्थित है।जहा सतपुरष या कोई महान योगी या साधक  के भी चरणचिन्ह है कहते है वह शेर पर सवार योग्य बालक के तलाश मे आये और बालक  अम्मरदास को अपने साथ बिठाकर गहन वन मे  चले गये। सफुरा और उनके साथ गई ग्राम्य महिलायें ढूंढती रही पर बालक  नही मिले।
 पुत्र वियोग से व्याकुल बेसुध हो गई ।
     वही तेजस्वी बालक १५ -१६वर्ष बाद २१-२२ वर्ष के उम्र मे साधू वेष मे ग्राम तेलासी मे रामत करते गुरु दम्पत्ति को छिन्दहा तालाब पार मे  मिले।
      तब गुरु अम्मरदास अपनी योग साधना की सिद्धी उपरान्त अपने माता-पिता को तलाशते हुये तेलासी पहुचे थे।
       ग्राम तेलासी  पुत्र मिलन जगह होने के कारण सद्गुरु को बडा प्रिय लगा।और वे यहा रमण करने लगे।
      गुरु दम्पति  की ख्याति उनके योग साधना और अनेक दिव्य औषधियों  से असाध्य रोगो के उपचार आदि से सर्वत्र फैलने लगे।दूर -दूर से लोग उनके दर्शन और अपनी दु:ख -पीड़ा  के निदान के लिये आने लगे।
    उपकृत श्रद्धालुओ   द्वारा भेट स्वरूप भूमि अन्न आदि के संरक्षण हेतु तेलासी भन्डार मे बस गये।कलान्तर मे इन दोनो जगहों पर भव्य बाड़ा, मोती  महल व गढी किला नुमा परकोटा  बनवाये गये।जो  सतनाम धर्म का ऐतिहासिक स्मारक है।
         गुरु अम्मरदास जी  तेलासी वासियों के लिये अत्यधिक प्रिय रहे है।कहते है एक व्यक्ति मान्साहार हेतु कपड़े मे लपेटकर मांस ले जा रहे थे।लोग शिकायत किये।गुरु अम्मरदास ने योग बल से लोगो की दृष्टि बदले और जब पोटली खोले तो वह नाड़ियल प्रसाद के रुप मे लोगो को दिखाई दिये ।सभी चमत्कृत हो  गुरु चरण  मे नत हो  क्षमा -याचना किये। गुरु कृपा से अभिभूत तेलासी व अनेक ग्राम के लोग सतनाम दीक्षा लेकर सतनामी बने। यहाँ महासंगम हुआ।
       और उन सभी वर्गो ,जातियो को  गुरु घासीदास  ने गुरु अम्मरदास के जन्म दिन गुरु पूर्णिमा ‌को  तस्मई- चीला  बनवाकर एक परात या बर्तन से बटवाये।यही" अइटका " है।इसके लिये विधान बनाये।बहते जलधारा से चावल दूध घी  गुड़ और मेवा डालकर सात्विक तस्मई ( खीर )बनाकर परस्पर बाटकर खाना।सत्सन्ग प्रवचन सुनना, पन्थी  नृत्य मन्गल करना यहां तक कि‌ सतनाम संस्कृति से संदर्भित लीला व नाट्य मंचन तक होते  रहे हैं।यह तेलासी सहित आसपास के कई ग्रामो मे तब से प्रचलन मे है।
     सफूरा माता  की अनुनय- विनय और बडे़ के रहते छोटे भाई विवाह कैसे करे के चलते न चाहते   प्रतापपुर मे अन्गारमति से अम्मरदास जी का विवाह हुआ।गौना लाए पर वे ब्रम्हचर्य का ही अनुपालन करते रहे और  सतनाम की आध्यात्मिक गुरु के रुप मे ख्यातिनाम हुए।
        ब्रम्हचारिणी  अन्गारमति भी  साध्वी जीवन अन्गीकृत की । आगे चलकर  माता प्रतापपुरहीन के नाम से विख्यात हुई ।आज उनकी शैय्या दर्शनीय है।
    गुरु बालक दास सेत सुमन  घोडे़ मे सेत वसन धारण कर चलते और लोगो मे सतनाम की अलख जगाते।पन्थी मन्गल भजन सत्सन्ग का प्रचलन  समाज मे गुरु अम्मरदास जी ने किया।
       एक दिन शिवनाथ नदी के तट पर  चटुआ घाट के समीप मनोरम स्थल पर अपने अनुयायियों को सतनाम समाधि का रहस्य बताते  अउठ दिन (साढे तीन दिन  )की  भू समाधि मे चले गये। 
     आसपास से बहुत से लोग आ गये।उन भीड़ मे कुछ विरोधी कहने लगे वो मृत हो गये है।उन्हे बाहर लाओ ।अनुयायी भीड़ के आगे बेबस अधुरी साधाना मे उन्हें वापस तन्द्रा मे लाने लगे।पर गुरु नही जगे।
        अन्तत: उन्हे पूर्ण समाधि दे दी गई ।
      जनश्रूति है जब गुरु की समाधि अवधि पूरी हुई तो लोग  देखे कि एक ज्योति पुन्ज समाधि को चीरती ऊर्ध्वगामी आकाश मे विलीन हो गई ।
       कई वर्षों के अन्तराल मे समीपस्थ ग्राम हरिनभठ्ठा के मालगुजारी  आधार दास सोनवानी अपने पुत्र मनोकामना पूर्ण होने पर गुरु अम्मरदास के समाधि मे भव्य मन्दिर बनवाये।
         आज यह सतनामिओ को  का प्रमुख धाम है जहां पर पौष - छेरछेरा पुन्नी को विशालकाय मेला गुरु के पुण्य स्मरण मे लगते आ रहे है।
          सतनाम आध्यात्मिक चेतना और साहित्य के प्रणेता गुरु अम्मरदास अम्मर रहे।

टीप - सतनाम अइटका परब प्रथम सार्वजनिक आयोजन हैं। कृपया इस पावन पर्व का सार्वजनिक आयोजन अपने अपने ग्राम मुहल्ले व जैतखाम परिसर पर करें। और तस्म ई बनाकार सत्संग प्रवचन व मंगल पंथी आदि‌ का आयोजन करें।

              जय सतनाम।

गुरु पूर्णिमा की मंगलमय‌ मंगलकामनाएं 
 
     डाॅ. अनिल कुमार भतपहरी 
        9617777514 
             सचिव 
सतनाम साहित्य प्रकोष्ठ 
प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज

Friday, July 16, 2021

तन के तिजौरी मं

तन के तिजौरी  म मन के  मन   भर रतन भरे हे 
साधु अउ चोर किंदरत हे खोर सबके नंजर गड़े हे
एला क इसे बचाव उन ल  कइसे भरमाव 
कोनो उक्ति बताव .. कोनो मुक्ति देखाव .....

जब ले चढ़े हे ये बइरी जवानी 
जी के जंजाल बड़ हलकानी 
कोनो तो एकर जुगती मढ़ाव ...

गहना गढ़ाय न दान-पुन  जाय 
धरखन काकर कहे कछु न उपाय 
बिन बउरे जिनिस माहंगी फेकाय ...

खिरत हे उमर पैरावट कस रतन गंजाय 
मय  मुरख एला  सकेंव  न  भंजाय 
जांगर थकत हे कोनो रद्दा मुक्ति के बताव 

सत श्री सतनाम 
डाॅ. अनिल भतपहरी

Thursday, July 15, 2021

श्री सुकाल सदन

।।ठठ्ठा ।।

तहु भल कहे गो 
अउ बनेच ठठ्ठा मढ़ाएव  
बेरा- बखत म सहाथे 
फेर कुबेरा म करेजा चीरा जथे 
असनेच झन हंसवाए करव
तरसत मनखे ल हंसवा के 
भला काय मिलही 
चाही जेला जेवन  
ओला असवासन पोरसेच्च  में 
कइसे बनही  
न तो पेट भरय न पुरखा तरय 
भलुक तुम दुनों के खुडवा म
बनेच  दौचाही 
तुहर खुरखुंद चाहली म
फदक जाही 
तीसर के नइये कहुंच आवा- जाही 
तुहीच मन  बांधे हव पारी 
खेलत हव ओसरी पारी 
खेलावत हव भारी 
जुगाड़ चंद मन के अबड़ेच सुननेन मसखरी 
हमन तो  पीटते रह जथन तारी 
लगथे हमन ओकरेच बर बने हन 
कभु काल कोनो  पाए ल उदुक 
चिभोर देथव चाहली म
फदका देथव करथे उबुक- चुबुक 
खेल तुहर गजब के हवे मदारी 
फेर काबर दुच्छा हे हमर थारी 
को‌नो बतावव तो फरी फरी 
ठठ्ठा झन तो मढ़ाव संगवारी 
बिलखत मनखे ल हसवाए म
काय मिलही 
हांसत गावत कहिके 
हमर डहन ले उछिंद हो जथव  
हमु मन हांस- हुसी के
खांस - खुसी के  
तारी पीट -पाट के 
का के खंगती हे? 
उहु ल भुला जथन 
रोनहुत -हांसी संधरा होय से
अलकरहा  सटक जथन 

-डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

ठठ्ठा

।।ठठ्ठा ।।

तहु भल कहे गो 
अउ बनेच ठठ्ठा मढ़ाएव  
बेरा- बखत म सहाथे 
फेर कुबेरा म करेजा चीरा जथे 
असनेच झन हंसवाए करव
तरसत मनखे ल हंसवा के 
भला काय मिलही 
चाही जेला जेवन  
ओला असवासन पोरसेच्च  में 
कइसे बनही  
न तो पेट भरय न पुरखा तरय 
भलुक तुम दुनों के खुडवा म
बनेच  दौचाही 
तुहर खुरखुंद चाहली म
फदक जाही 
तीसर के नइये कहुंच आवा- जाही 
तुहीच मन  बांधे हव पारी 
खेलत हव ओसरी पारी 
खेलावत हव भारी 
जुगाड़ चंद मन के अबड़ेच सुननेन मसखरी 
हमन तो  पीटते रह जथन तारी 
लगथे हमन ओकरेच बर बने हन 
कभु काल कोनो  पाए ल उदुक 
चिभोर देथव चाहली म
फदका देथव करथे उबुक- चुबुक 
खेल तुहर गजब के हवे मदारी 
फेर काबर दुच्छा हे हमर थारी 
को‌नो बतावव तो फरी फरी 
ठठ्ठा झन तो मढ़ाव संगवारी 
बिलखत मनखे ल हसवाए म
काय मिलही 
हांसत गावत कहिके 
हमर डहन ले उछिंद हो जथव  
हमु मन हांस- हुसी के
खांस - खुसी के  
तारी पीट -पाट के 
का के खंगती हे? 
उहु ल भुला जथन 
रोनहुत -हांसी संधरा होय से
अलकरहा  सटक जथन 

-डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Saturday, July 10, 2021

लासा ले बतासा ले

आंखिन देखि अउ कान सुनि ...

।।लासा ले बतासा ले ।।

    अड़ताफ म नाम्ही गिधपुरी  बजार सम्मार के भराथे ।महानदी खड़ के ए पार चातर राज मं डोंगरदई बिराजमान हे ओकर असीस ले तइंहा पाहरों ले आबाद  ये डीह -डोंगर जस के तस हे। भले महाकोशल के राजधानी सिरपुर भठ गे । तभेच तो जुनवानी के भटपहरी मन ल  छरकथे  अउ अकारतेच रहिथे कि इकंर छइंया परही ल इहुचों भठ जाही । सिरपुर ल भठा के इहा माड़ा बनाय हवय येमन यहाँ तरा के गोठबात चलते रहिथंय।
       दुनो गाँव के सुनता अउ झगरही तको अड़ताफ म बजारेच बानी नाम्ही हवय।  एक खार अउ भाठा जुरेच हवय अब तो बस्ती तको जुरगे काबर कि कत्कोन बस्ती छोड़ के भाठा म बस गे। अब तो भाठा  देखे बर नोहर  हवय। न इते धाप भर भाठा म कोरिया दहिंगला चिकनी परसा अउ चार रवार रहिस महकत मनभावन वृदांवन सरीख जगा जिंहा बनकोयली पड़की सुआ सोलहई  ,नाकर ,सारस तीतुर ,मंजुर , मैना आबाद चिहुकत रहय। भठेलिया , हिरना, मिरगा, कोलिहा हुर्रा  गाहबर कभु कभु बरहा  किंदरय  बेंदरा मन रहय फेर गांव भीतर कभु न इ आत रहिन उकर खाय पीए के जिनिस से महानदी कछार भरे रहय। गांव के पतालु नरवा के कंछ बरोबर पानी सदा दिन बोहात रहय चितावर चुहरी अउ पताल फोड़ कुआ के भभका ठ उर ठउर म रहय। तेकर बीचों‌बीच गाड़ा रावन अउ धरसा संघरा परे रहय ओमा दु जगा अमली के बड़का रुख सुसताएं के ठउर रहिन गौतरिहां अउ बजरहा मन एक घन जुड़  छंइहा मं ब इठ मंझन के घाम घालय । एक सरवर पानी मं बुंद नइ टपकय ।तेन पाय के कभु -कभु देवार, मित्ता  भाट बसदेवा मन के डेरा तको बनय । मय तो सउहांत
लइकई देखे रहेंव अउ दु चार लबेदा मार गुड़ कस मीठ अमली चिचोरत मगन होय रहेंव। आजकल सब कटा गे अउ ओखर जगा फर्र्स बोड्डल के खदान खना गय। ऊपर मलबा म गंगा अमली लहालोट तको फरय अउ बोइर मन के रवार लग गे हवे ।जब ले सड़क बनिय तब ले  पथरा  किरचा /मलबा  के मारे  अउ ओमा बंबरी  बोइर के  झंझकुर होगे हवय । छेरका मन ओ डहन छेरी चरात आजो ले देख उ दे जथे। हां जेन पतालू नरवा  कछार म बंगलसुंधुल , शंख पुष्पी लाजवंती चरौटा मिंझरे  हरियर चारा उपजय अउ बाखा के आत ले गाय भैंसी चरय ओहर ममहौना दुध दही लेवना अउ घीव नंदा गय । हमन भागमानी रहेन कि बचपना म पीए खाए मिलय ।
   अब के दुध दही घीव  म ओ  सुवाद नीए  न ओ सुगंध ओ  गुण । शहर के मुर्रा गाय भैंस के दुध ल तो  बने हमर कुंआ के  पानी हवे। तिहार बार  गाँव जाथन त ओकरे पानी म गुजारा चलाथन भले बोर खना गे अउ नल लग गे हवे ।फेर आजो ले कुआँ  बउरावत हवे। 
हमर दादी सतवंतीन बतावय कि गाँव के मनसे मन चुहरी अउ चितावर के पानी पीयय ।कुआँ  के पानी कुआंसी लागथे कहिके ओगरत मीठ पानी अमरीत बरोबर पीयय अउ सौ बछर बिना दवाई -दारु के मगन जीयय। 
जब अकाल- दुकाल परिन त चितावर- चुहरी के ओगरा थिरके धरिस अउ दहरा म भंइस - भैंसा मन कब्जा लिन तभेच कुआँ के पानी के पुछ -परख बढे लगिन ! 

 छ: फुट्टा गोरिया- नरिया मुड़ भर लउठी धोवा के धोती अउ कोसा के कुरता म अल्फी डारे भजनहा बबा हर  देवता बरोबर दिखय त हमर चील गौटिया काहत लागय के बेटी सतवंतीन हर  तको  गल भर रुपया पुतरी बांह  म पहुँची , हाथ एठी , कनिहा मं करधन , पांव लच्छा,  पैरी  पहिने  कान मं सोन लुरकी ढार  मांग मं  सेंदुर भरे देबी मन सही खमसुरत रहिन । ओहर   कुलकत चरिहा म धान जोते सवारी गाड़ी मं  जावर -जोड़ी संघरा बजार जाय त देखनी उड़ जाय  बजार हर देवभूमि कस लगय। बाजर हर गजमज -गजमज करय। हमर भजनहा रामचरन बबा हर  जब ये धरसा मं नाहकय  अउ संग मं दादी रहय त  टेही मार ददरिया गाय धर लय - 
अकरस के नांगर  दबाए  नइ दबय 
तोर मोर ए मया हं मयारु छुपाए नइ छुपय ...
         भजनहा ह बया जय त ओला बरजत कहे - तोला लाज नी लागे का ?" कले  चुप्प नाहक ओती सियान सामरत मन आत होही ... कोरिया रवार के गमकत फूल कस उज्जर दादा- दादी के मया रहिन ... ओकर कहर -महर परिवार मं आजो ल बगरे हवय  ते पाय के आज कुछु काही लिख- पढ, गा -गु सकत हवन ...

×            ×              × 

           85-90 बछर के हमर दादी हमन ल जी जी अंतर मया करय अउ गोरसी ले के बरवट मं सींग दरवाजा मं सुतावय ... मोर बनेच सुरता हवे 1980 के बात आय तब घर म बिजली न इ लगे रहिस  कंडील हर  झिमिर झिमिर बरत रहिस ओला भुताय बर मोला कहिन कि आंखी हर कसुवात हे अउ अंजोर हर कम जादा होत हे जा फूक के भुता दे ... मय कहेंव  कहनि कबे तब ओहर झटकुन तियार होगे अउ  कहन लगिस एक शहर मं ... मय कहेव अपन गांव जगा के सुना तो ओ कहि स - एक घांव   गिधपुरी बजार मं बइला पसरा तीर  अमली ,मउहा , डोरी, लासा, बंबरी बीजा ,चार  -चिरौंजी , परसा फर  कोसा  बदलइया मन नून  बोरा धरे अउ  , बतासा - सोल काड़ी    बेचइया मन के तको पसरा लगय । धान कोचिया तको बोराबंदी लेवय या तीन गोड़िया आहड़ा म पथरा  के बोड्डल मं  धान तौलत बैपारी मन बइठे राहय ।  एक दूसर ल देख खी -खी ,खू -खू करय  मुस्काय अउ हमेरी झाड़य  ... ओमन जोर जोर से चिल्लाय -  
        "लासा ले 
          "बता साले "
     कोन्हो तिखारय त कहे घर लय लासा ले लव कहत हवन 
बतासा ले लेव कहत हवन कहिने बात ल संवारे धर लेय।  बड़ सोशन करय अउ मुड़ कट्टी बाढी देवय .. तिही पाय के शहर म उकर बड़े बडे घर हवेली बने घर लिस ... अउ एती धनहा मन म कतको खातु कचरा डार जांगर टोर गाड़ा भर धान न इ उतरय ...
भगवान हर किसान मन बर नथागय हे लगथे। ओहर गहिर गुनान म बुड़ जाय । अपन सियनहीन दाई के  एसन  दुख भरी गोठ सुन देख मय  बात ल आन डहन फलका देन अउ भजन सुनाय ल कहन त मगन मंगल भजन गाय घर लेवय ।सित्तो ल इका संग ल इका मिल जाय।  हमन ल अभागा बना के सन 1981 म दादी माँ सतवंतीन  सतलोक सिधार गिन।

×                ×                  × 

सच तो ये कि मस्तिया के  ओ बैपारी महाजन मब  नंदिया ओ पार के  आदिवासी मनसे ल लूटत -लाटत हवे ।  अउ  हा - हा -बक -बक करके मनसे मन के मान मर्दन करे के जोखा मं लगे तको राहय ... चोरी छिपे अफीम गांजा बेचय ...  मतलब बाजार ल अपराध के अड्डा बना दे रहय ये सहरिया मन ... तिहरहु बजार म त पाकिट‌मार तको हबर जाय मेला ठेला कस।

जंगलिहा मन  वनोपज जिनिस धर के आय कोन्हो मन कांख म कुकरी -कुकरा चपके बीड़ी -चोंगी पियत पटकू -पंछा पहिने उघरा आ जय । मंदहा गंजहा ,चोंगिहा मन सोझ्झे लुटा -लुटि के भी  मगन घर  लहुट जाय !


×                ×                 × 

       एक बेर छोटे बबा हर जोन सातवीं म प्रथम आय रहिन अउ अपन ढेड़सारा के संगत मं अम्बेडकर संग मिलके नेतागिरी करत रहिन - लासा ले बतासा ले कहत बैपारी मन सो  देखा साले कहत भिड़गे .... संग मं भरोस  ननकू तनगू तोरन  फत्ते अउ मनराखन तको रहिन ...बलोदिहा  सोनार दुकान म पलथी मारे  ब इढे सोभित बबा ल गम चलिस त अपन गोटानी धरे आ गय .. अब बरजे बुरजे लगिस  ओकर पाछु दलिप गौटिया आके चुप्प खड़े हो गय ।
      नवा नवा महंती पाए खरतर पढे लिखे नंदू के रुवाप अड़ताफ म फैले रहिस ... समाज सुधार के बुता ओकर जग जाहिर रहिस गुरुघासीदास जयंती के कर्णधार रहिन संगे संग जोर- जुलुम के खिलाफ लडई लड़त रहिन  ओहर जवनहा मन ल सकेल पलारी ,बलौदा, तिल्दा ,आरंग , खरोरा के  बैपारी -महाजन  मन के  शोषण के  विरुद्ध आंदोलन तको चलाय रहिन कि गरीब -गुरबा मनसे मन ल लूटत हवय।  सही दाम देव नइते बाजार बंद करवा दे जाही । "
    त  अंग्रेज सरकार के समे  ले  इलाहाबदिया पंडा ल मलगुजारी मं बइठारे  रहय ओमन के मनसे आके बनेच झगरही मता दिन... गदर मात गे रहिन -
   तोर गाँव के बजार नोहय असनेच करहू त गाँव म खुसरन
नइ देन ... ले दे के तोर भजनहा बबा हर बात संवारिन नइते बात पुलुस दरोगा तक चले जात रहिन ...बात आय -गय होगे । अउ महिनो बजार नइ भरिस ।  

×              ×                   × 
 तीसर महिना  एक  पलारी थाना म पदस्थ जोशी दरोगा हर घोड़ा साजे दो दौड़हार सिपाही संग  जुनवानी आइस ।अउ पतासाजी करिन ... ओहर इहा देवता सरीख मनखे के मान -गुण अउ बेवहार देख मोका गय । अउ सफा -सफी रिपोर्ट बनाइन । अउ कछु न इ होवय कहिके भरोसा देके अपन संग दौड़हार दू जवान संग वापिस चल दिन ।
ओ साल दोनो गांव के मेड़ो के खेत म धान तको न इले बोवाइस ।
   अउ त अउ अंग्रेज जमाना के इस्कूल म जुनवानी के लरिका मन के नांव तको कटा गय  हमर  बबा बिचारा मन  के पढ़ई -लिखई  छूटगे।  ओ पीढ़ी निरक्षर होगे ! 
   कई साल तक कटा -किटी  अउ इसगा -पारी चलिन ले -दे हालात समान्य होइस ।
   आजादी के बाद हमर ददा (जन्म १९४८ )- कका  मन के बखत  फेर स्कूल म भर्ती होना सुरु होइस ... त ओकरे परतापे ताऊ जी मन वकील अ बनगे  बाबु  ह प्रचार्य  बनगे अउ हमन   इहां तक हबर गेयन। नइते हमुमन खदान  मं पथरा ठठातेन या नांगर जोतत  गाँव म परे  डरे रहितेन।
       जब मय दसवीं म रहेंव त हमर छोटे दादा महंतबबा  के बेटा रयपुर वाले   वकील के  बडे  बेटा  बैंक  मनीज्जर  राजेन्द्र भैया के बिहाव  लंका दुरिहा  राजनांदगांव के डोंगरगांव बुलाक के गांव हैदलकोडो  में होइस। महु  बरतिया गे रहेव  बस मं। ओ गाँव मं जा के जानेन कि जोन हमर भौजी होवत हवय ओहर उही जोशी  दरोगा साहब के बेटी  नतनीन आय । जोन कभु घोड़ा चढ़के ब्रिटिश जमाना में जाँच पड़ताल करे जुनवानी आय रहिन ...  । का संजोग होथे अउ का  जोड़ी तय  हो जथे ... सब साहेब के किरपा हे। 
        सरलग ...

(टीप -वर्तमान म 65 वर्षीय भैया जी  सेवानिवृत्त  हवे अउ भौजी ह सतलोकी होगे हवय।)

लासा ले बतासा ले

आंखिन देखि अउ कान सुनि ...

।।लासा ले बतासा ले ।।

    अड़ताफ म नाम्ही गिधपुरी  बजार सम्मार के भराथे ।महानदी खड़ के ए पार चातर राज मं डोंगरदई बिराजमान हे ओकर असीस ले तइंहा पाहरों ले आबाद  ये डीह -डोंगर जस के तस हे। भले महाकोशल के राजधानी सिरपुर भठ गे । तभेच तो जुनवानी के भटपहरी मन ल  छरकथे  अउ अकारतेच रहिथे कि इकंर छइंया परही ल इहुचों भठ जाही । सिरपुर ल भठा के इहा माड़ा बनाय हवय येमन यहाँ तरा के गोठबात चलते रहिथंय।
       दुनो गाँव के सुनता अउ झगरही तको अड़ताफ म बजारेच बानी नाम्ही हवय।  एक खार अउ भाठा जुरेच हवय अब तो बस्ती तको जुरगे काबर कि कत्कोन बस्ती छोड़ के भाठा म बस गे। अब तो भाठा  देखे बर नोहर  हवय। न इते धाप भर भाठा म कोरिया दहिंगला चिकनी परसा अउ चार रवार रहिस महकत मनभावन वृदांवन सरीख जगा जिंहा बनकोयली पड़की सुआ सोलहई  ,नाकर ,सारस तीतुर ,मंजुर , मैना आबाद चिहुकत रहय। भठेलिया , हिरना, मिरगा, कोलिहा हुर्रा  गाहबर कभु कभु बरहा  किंदरय  बेंदरा मन रहय फेर गांव भीतर कभु न इ आत रहिन उकर खाय पीए के जिनिस से महानदी कछार भरे रहय। गांव के पतालु नरवा के कंछ बरोबर पानी सदा दिन बोहात रहय चितावर चुहरी अउ पताल फोड़ कुआ के भभका ठ उर ठउर म रहय। तेकर बीचों‌बीच गाड़ा रावन अउ धरसा संघरा परे रहय ओमा दु जगा अमली के बड़का रुख सुसताएं के ठउर रहिन गौतरिहां अउ बजरहा मन एक घन जुड़  छंइहा मं ब इठ मंझन के घाम घालय । एक सरवर पानी मं बुंद नइ टपकय ।तेन पाय के कभु -कभु देवार, मित्ता  भाट बसदेवा मन के डेरा तको बनय । मय तो सउहांत
लइकई देखे रहेंव अउ दु चार लबेदा मार गुड़ कस मीठ अमली चिचोरत मगन होय रहेंव। आजकल सब कटा गे अउ ओखर जगा फर्र्स बोड्डल के खदान खना गय। ऊपर मलबा म गंगा अमली लहालोट तको फरय अउ बोइर मन के रवार लग गे हवे ।जब ले सड़क बनिय तब ले  पथरा  किरचा /मलबा  के मारे  अउ ओमा बंबरी  बोइर के  झंझकुर होगे हवय । छेरका मन ओ डहन छेरी चरात आजो ले देख उ दे जथे। हां जेन पतालू नरवा  कछार म बंगलसुंधुल , शंख पुष्पी लाजवंती चरौटा मिंझरे  हरियर चारा उपजय अउ बाखा के आत ले गाय भैंसी चरय ओहर ममहौना दुध दही लेवना अउ घीव नंदा गय । हमन भागमानी रहेन कि बचपना म पीए खाए मिलय ।
   अब के दुध दही घीव  म ओ  सुवाद नीए  न ओ सुगंध ओ  गुण । शहर के मुर्रा गाय भैंस के दुध ल तो  बने हमर कुंआ के  पानी हवे। तिहार बार  गाँव जाथन त ओकरे पानी म गुजारा चलाथन भले बोर खना गे अउ नल लग गे हवे ।फेर आजो ले कुआँ  बउरावत हवे। 
हमर दादी सतवंतीन बतावय कि गाँव के मनसे मन चुहरी अउ चितावर के पानी पीयय ।कुआँ  के पानी कुआंसी लागथे कहिके ओगरत मीठ पानी अमरीत बरोबर पीयय अउ सौ बछर बिना दवाई -दारु के मगन जीयय। 
जब अकाल- दुकाल परिन त चितावर- चुहरी के ओगरा थिरके धरिस अउ दहरा म भंइस - भैंसा मन कब्जा लिन तभेच कुआँ के पानी के पुछ -परख बढे लगिन ! 

 छ: फुट्टा गोरिया- नरिया मुड़ भर लउठी धोवा के धोती अउ कोसा के कुरता म अल्फी डारे भजनहा बबा हर  देवता बरोबर दिखय त हमर चील गौटिया काहत लागय के बेटी सतवंतीन हर  तको  गल भर रुपया पुतरी बांह  म पहुँची , हाथ एठी , कनिहा मं करधन , पांव लच्छा,  पैरी  पहिने  कान मं सोन लुरकी ढार  मांग मं  सेंदुर भरे देबी मन सही खमसुरत रहिन । ओहर   कुलकत चरिहा म धान जोते सवारी गाड़ी मं  जावर -जोड़ी संघरा बजार जाय त देखनी उड़ जाय  बजार हर देवभूमि कस लगय। बाजर हर गजमज -गजमज करय। हमर भजनहा रामचरन बबा हर  जब ये धरसा मं नाहकय  अउ संग मं दादी रहय त  टेही मार ददरिया गाय धर लय - 
अकरस के नांगर  दबाए  नइ दबय 
तोर मोर ए मया हं मयारु छुपाए नइ छुपय ...
         भजनहा ह बया जय त ओला बरजत कहे - तोला लाज नी लागे का ?" कले  चुप्प नाहक ओती सियान सामरत मन आत होही ... कोरिया रवार के गमकत फूल कस उज्जर दादा- दादी के मया रहिन ... ओकर कहर -महर परिवार मं आजो ल बगरे हवय  ते पाय के आज कुछु काही लिख- पढ, गा -गु सकत हवन ...

×            ×              × 

           85-90 बछर के हमर दादी हमन ल जी जी अंतर मया करय अउ गोरसी ले के बरवट मं सींग दरवाजा मं सुतावय ... मोर बनेच सुरता हवे 1980 के बात आय तब घर म बिजली न इ लगे रहिस  कंडील हर  झिमिर झिमिर बरत रहिस ओला भुताय बर मोला कहिन कि आंखी हर कसुवात हे अउ अंजोर हर कम जादा होत हे जा फूक के भुता दे ... मय कहेंव  कहनि कबे तब ओहर झटकुन तियार होगे अउ  कहन लगिस एक शहर मं ... मय कहेव अपन गांव जगा के सुना तो ओ कहि स - एक घांव   गिधपुरी बजार मं बइला पसरा तीर  अमली ,मउहा , डोरी, लासा, बंबरी बीजा ,चार  -चिरौंजी , परसा फर  कोसा  बदलइया मन नून  बोरा धरे अउ  , बतासा - सोल काड़ी    बेचइया मन के तको पसरा लगय । धान कोचिया तको बोराबंदी लेवय या तीन गोड़िया आहड़ा म पथरा  के बोड्डल मं  धान तौलत बैपारी मन बइठे राहय ।  एक दूसर ल देख खी -खी ,खू -खू करय  मुस्काय अउ हमेरी झाड़य  ... ओमन जोर जोर से चिल्लाय -  
        "लासा ले 
          "बता साले "
     कोन्हो तिखारय त कहे घर लय लासा ले लव कहत हवन 
बतासा ले लेव कहत हवन कहिने बात ल संवारे धर लेय।  बड़ सोशन करय अउ मुड़ कट्टी बाढी देवय .. तिही पाय के शहर म उकर बड़े बडे घर हवेली बने घर लिस ... अउ एती धनहा मन म कतको खातु कचरा डार जांगर टोर गाड़ा भर धान न इ उतरय ...
भगवान हर किसान मन बर नथागय हे लगथे। ओहर गहिर गुनान म बुड़ जाय । अपन सियनहीन दाई के  एसन  दुख भरी गोठ सुन देख मय  बात ल आन डहन फलका देन अउ भजन सुनाय ल कहन त मगन मंगल भजन गाय घर लेवय ।सित्तो ल इका संग ल इका मिल जाय।  हमन ल अभागा बना के सन 1981 म दादी माँ सतवंतीन  सतलोक सिधार गिन।

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सच तो ये कि मस्तिया के  ओ बैपारी महाजन मब  नंदिया ओ पार के  आदिवासी मनसे ल लूटत -लाटत हवे ।  अउ  हा - हा -बक -बक करके मनसे मन के मान मर्दन करे के जोखा मं लगे तको राहय ... चोरी छिपे अफीम गांजा बेचय ...  मतलब बाजार ल अपराध के अड्डा बना दे रहय ये सहरिया मन ... तिहरहु बजार म त पाकिट‌मार तको हबर जाय मेला ठेला कस।

जंगलिहा मन  वनोपज जिनिस धर के आय कोन्हो मन कांख म कुकरी -कुकरा चपके बीड़ी -चोंगी पियत पटकू -पंछा पहिने उघरा आ जय । मंदहा गंजहा ,चोंगिहा मन सोझ्झे लुटा -लुटि के भी  मगन घर  लहुट जाय !


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       एक बेर छोटे बबा हर जोन सातवीं म प्रथम आय रहिन अउ अपन ढेड़सारा के संगत मं अम्बेडकर संग मिलके नेतागिरी करत रहिन - लासा ले बतासा ले कहत बैपारी मन सो  देखा साले कहत भिड़गे .... संग मं भरोस  ननकू तनगू तोरन  फत्ते अउ मनराखन तको रहिन ...बलोदिहा  सोनार दुकान म पलथी मारे  ब इढे सोभित बबा ल गम चलिस त अपन गोटानी धरे आ गय .. अब बरजे बुरजे लगिस  ओकर पाछु दलिप गौटिया आके चुप्प खड़े हो गय ।
      नवा नवा महंती पाए खरतर पढे लिखे नंदू के रुवाप अड़ताफ म फैले रहिस ... समाज सुधार के बुता ओकर जग जाहिर रहिस गुरुघासीदास जयंती के कर्णधार रहिन संगे संग जोर- जुलुम के खिलाफ लडई लड़त रहिन  ओहर जवनहा मन ल सकेल पलारी ,बलौदा, तिल्दा ,आरंग , खरोरा के  बैपारी -महाजन  मन के  शोषण के  विरुद्ध आंदोलन तको चलाय रहिन कि गरीब -गुरबा मनसे मन ल लूटत हवय।  सही दाम देव नइते बाजार बंद करवा दे जाही । "
    त  अंग्रेज सरकार के समे  ले  इलाहाबदिया पंडा ल मलगुजारी मं बइठारे  रहय ओमन के मनसे आके बनेच झगरही मता दिन... गदर मात गे रहिन -
   तोर गाँव के बजार नोहय असनेच करहू त गाँव म खुसरन
नइ देन ... ले दे के तोर भजनहा बबा हर बात संवारिन नइते बात पुलुस दरोगा तक चले जात रहिन ...बात आय -गय होगे । अउ महिनो बजार नइ भरिस ।  

×              ×                   × 
 तीसर महिना  एक  पलारी थाना म पदस्थ खिलारी दरोगा हर घोड़ा साजे दो दौड़हार सिपाही संग  जुनवानी आइस ।अउ पतासाजी करिन ... ओहर इहा देवता सरीख मनखे के मान -गुण अउ बेवहार देख मोका गय । अउ सफा -सफी रिपोर्ट बनाइन । अउ कछु न इ होवय कहिके भरोसा देके अपन संग दौड़हार दू जवान संग वापिस चल दिन ।
ओ साल दोनो गांव के मेड़ो के खेत म धान तको न इ बोवाइस ।
   अउ त अउ अंग्रेज जमाना के इस्कूल म जुनवानी के लरिका मन के नांव तको कटा गय  हमर  बबा बिचारा मन  के पढ़ई -लिखई  छूटगे।  ओ पीढ़ी निरक्षर होगे ! 
   कई साल तक कटा -किटी  अउ इसगा -पारी चलिन ले -दे हालात समान्य होइस ।
   आजादी के बाद हमर ददा (जन्म १९४८ )- कका  मन के बखत  फेर स्कूल म भर्ती होना सुरु होइस ... त ओकरे परतापे ताऊ जी मन वकील अ बनगे  बाबु  ह प्रचार्य  बनगे अउ हमन   इहां तक हबर गेयन। नइते हमुमन खदान  मं पथरा ठठातेन या नांगर जोतत  गाँव म परे  डरे रहितेन।
       जब मय दसवीं म रहेंव त हमर छोटे दादा महंतबबा  के बेटा रयपुर वाले   वकील के  बडे  बेटा  बैंक  मनीज्जर  राजेन्द्र भैया के बिहाव  लंका दुरिहा  राजनांदगांव के डोंगरगांव बुलाक के गांव हैदलकोडो  में होइस। महु  बरतिया गे रहेव  बस मं। ओ गाँव मं जा के जानेन कि जोन हमर भौजी होवत हवय ओहर उही खिलारी दरोगा साहब के नतनीन आय । जोन कभु घोड़ा चढ़के ब्रिटिश जमाना में जाँच पड़ताल करे जुनवानी आय रहिन ...  । का संजोग होथे अउ का  जोड़ी तय  हो जथे ... सब साहेब के किरपा हे। 
        सरलग ...

(टीप -वर्तमान म 65 वर्षीय भैया जी  सेवानिवृत्त  हवे अउ भौजी ह सतलोकी होगे हवय।)

Thursday, July 8, 2021

छत्तीसगढ़ी के सरुप

।।छत्तीसगढ़ी  के सरुप ।।

       भाषा के ऊपर बिचार करब म ये तो डगडग ले चिनहउ हवे कि जुन्ना जनपदीय भाषा जेमा छत्तीसगढ़ी,गोंडी , कोसली, मागधी , मैथिली, अवधि  ,बघेलखंडी   अउ नवा सिरजे "हिन्दी "यानि की १८५७ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जेन ल स्थानीय राज -राजवाड़ा मन के जेमा (छत्तीसगढ़ के वीर नारायण सिंग अउ राजा गुरु बालकदास तको रहिन वीर नरायण सिंग ल १८५७ मं  दोषी करार के तोप से उडा दिन  अउ जन नायक श्रद्धा के पात्र राजा गुरुबालकदास ल सडयंत्र पूर्वक भोजन करते १८६० में हत्या करवा दिए गये  ) कुछेक सभिमानी राजा अउ ओकर सामंत मन सिपचाय रहिन ओमा भारतीय जनपदीय भाषा अउ उर्दू के बड सुघ्घर समन्वय रहिन जेन " ल हिन्दवी कहे जाय उही ल  हिन्दुस्तानी तको कहे जाय " उकर भाषा अउ आन आन जगा के लोगन के संपर्क भाषा के  रुप म सिरजे  "हिन्दी " के मूल उद्गम भाषा पाली अउ प्राकृत आय । अउ उर्दू अरबी- फारसी के तको शब्द मिंझरे हवय।
     छत्तीसगढ़ मं तो जतका जुन्ना शिलालेख हवे उनमन पाली भाषा के ब्राम्ही लिपि म हवय। फेर छत्तीसगढ़िया रचनाकार मन ओ लिपि अउ भाषा के कभु खियाल न इ करिस तेन पाय के सबकुछ छुटतेच गय । लेकिन धियान से उच्चरित ध्वनि ल देखहु त  छत्तीसगढ़ी गोड़ी कोसली ह  पाली अउ प्राकृत के कत्कोन शब्द निमगा ब उरत चले आत हवय।
पाली भाषा राजभाषा के संगे संग  जनभाषा रहिस। जोन राजा बोलय ओला परजा समझय अउ जोन ल परजा बोलय ओला राजा ते पाय के प्राचीन भारत के श्रमण संस्कृति हर विश्व विख्यात रहिन तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला जैसे विश्वविख्यात प्रतिष्ठा न रहिन जिहां हजारों साहित्यिक दार्शनिक  नीतिपरक और राजकीय सामरिक धातु कार्मिक यांत्रिकी  वैद्यकीय  के अध्ययन अध्यापन होवय । नालंदा के ग्रंथागार के जलाय के आगी महिनो न इ बुझाय सके रहिन सोचोव कतेक साहित्यिक पांडुलिपियाँ नष्ट कर दे गिस!
 अउ  त अउ लगभग ६-८ सदी के जतका खडहर ( पुरा अवशेष ) हवय जेमा सिरपुर  राजिम मल्हार तम्माण  डमरु तरीधाट गुंजी  में मिले शिलालेख के भाषा पाली अउ  लिपि  ब्राम्ही हवय । ओमा बहुत भारी ज्ञान विज्ञान के बात हवय ओला सामने लाने के जरुरत हवे।
    हमर साहित्यकार कलाकार मन ल चाही कि अपन जगा मिले जिनिस के मूल तत्व के स्थापना बर मिहनत करय। तब मौलिकता आही। 
     नहीं त अधिकतर छत्तीसगढ़ी साहित्य हर  आन प्रांत के पटन्तर लगथय।
   छत्तीसगढ़ी  हिन्दी अउ पाली के बीच जो संबंध हवे उन हर  खाल्हे लिखाय हवय-
पाली        छत्तीसगढ़ी   हिन्दी 
अग्गि            आगी         आग 
मनख्ख        मनखे          मानव 
दुक्ख             दुख            दु: ख
 सुरज.           सुरुज         सूरज
इस्सर              इसर          ईश्वर 
खन्ध.             खांध.         कंधा 
अमिय.          अमरित.      अमृत 
अक्खर.           आखर.     अक्षर
 
 इत्यादि 

धियान से देखव हमर छत्तीसगढ़ी पाली के संग कतेक सुघ्घर मिलथे  जब शब्द मिलथे त कला संस्कृति  क इसे न इ मिलही ? ओ भुले बिसरे गाथा  वृतांत. इतिहास ल खोजे ल परही।
    असल में विगत २-३ सौ साल से हमन जब से स्कूली  शिक्षा आय हे तब ले हिन्दी भाषी क्षेत्र खासकर   उ प्र ,म प्र  बिहार  अउ सीमावर्ती गैर हिन्दी भाषा के लेखक कवि के रचना ल ही पढ- लिख समझ के उही मं रच -खप गय हन। छत्तीसगढ़ी ल हिन्दी के बोली समझ लिन ते पाय के भी  कभु इहा के जिनिस पाठ्यक्रम म न इ संघरिस  । संगे संग  हमन अपन तीर- तखार के जतनाय जिनिस डहन न सुर ले सकत हन ल शोर -संदेश । फलस्वरूप मूल छत्तीसगढ़ी भाषा अउ संस्कृति डहन ले उदासिन होके न ओकर लेखन कर सकेन न संरक्षण संवर्धन । सिरतो कहे तो  कोनो गंभीरतापूर्वक प्रयास तको  नइ होय पाइन। थोर बहुत होय हवे ओहर छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी जनता म तको बने ढंग ले प्रचारित प्रसारित न इ होय पाइन। अलग छत्तीसगढ़ बने के पहिली बड़ दयनीय दशा रहिन पढ़े -लिखे छत्तीसगढ़ी परिवार जोन शहर म बसिन उकर घर  म तको छत्तीसगढ़ी के उपयोग थिरके  लगिन ।जबकि ओही मन सजोर रहिन । ओमन बौरतिन त ओकर देखा -सीखी बनेच गहदतिन फेर  उकरेच अनुसरन म गाँव म तको पढे लिखे मन अपन अपन घर म छत्तीसगढ़ी के उपयोग करे बर कनुवाय घर लिन ।
  एक हिसाब से देखे जाय त न राज संरक्षण मिलिस न कभु राजकाज  होइस अउ  त अउ पोथी  ,पतरा, किताब  बनिस न छपिस । छिटपुट ह अपवाद आय। 
    रमैन महाभारत वेद पुरान के अतिरिक्त  कत्कोन अउ जिनिस हवय ।  ओकर पढे़ से  जुड़ाव ओकर सिरजे जगा अउ भाषा बोली बर  तो होइस  फेर अपन जगा भाषा बोली के प्रति उदासिनता अउ अनभिज्ञता आय ल धर लिन। जबकि  आपार पाली साहित्य ,सिद्ध साहित्य व संतो की निर्गुण बानी मन के पांडुलिपि‌ हवय अउ  प्रकाशित ग्रंथ पुस्तक तको  हवय। अलेख अवस्था में हजारो लोक मंत्र मन  बैगा, गुनिया, सिद्ध ,साधु -संत मन कना  मुखाग्र कंठस्थ रहय अउ अभी तक ओ चलागन पाठ -पीढा ले दे के रुप मं चले आत हे । उन सब ल न  पढे  के ,न खोजे  अउ समझे के न सख नइये न जोम हे ।ते पाय के हमर समृद्धशाली ऐतिहासिक गौरव के संगे -संग हमर अति प्राचीन छत्तीसगढ़ी भाषा के सही अउ ठोस स्थापना नइ कर सकत हवन।  जबकि छत्तीसगढ़ी  लोक गीत लोककथा अउ जनश्रुति मं हमर अबड़ सुघ्घर संस्कृति कला इतिहास के जानकारी  जतनाय हवय ।फेर उन ल तियाग के औपनिवेशिक रुप से आजादी के बाद से, अब तक  शिक्षा म हिन्दी संस्कृत अउ अंग्रेजी माध्यम होय  के कारण  या कहे छत्तीसगढ़ ह मध्यप्रदेश मे संधरे रहे  से  अध्ययन -अध्यापन म हिन्दी अंग्रेजी संस्कृत  त्रिभाषा फार्मूला  ही रहिस अउ इहां  के मातृ भाषा छत्तीसगढी ल बोली समझ के जाने- अनजाने मे अनदेखई कर दे गिस ।परिणाम सरुप  उत्तर भारतीय संस्कृत निष्ठ भाषा के शिकार होत चले आत हन। हिन्दी के उर्दू और देशज सरुप तको आजकल नंदावत चले जात हे। अमीर खुसरो से ले के  प्रेमचंद  तक जोन हिन्दी रहिस आज तिरियाय हवय। 
   सच कहे त छत्तीसगढ़ मे आज ले भी संस्कृत निष्ठ हिन्दी जोन क्लिष्ट हे तेकर चलन बिल्कुल नइये। सरल -सहज सरुप तीन चार अक्षर के मेल से बने लालित्य पूर्ण भावप्रवण शब्द छत्तीसगढ़ी म मिलथे जोन पाली प्राकृत के विशेषता रहीन ओ ज्यो के त्यो छत्तीसगढ़ी मं देखे जा सकत हे। एक हिसाब से देखे जाय त गांव- गंवई मं तो हिन्दी बोलइ ल "हमेरी" झाड़त हे कहे जाथे अउ अंग्रेजी तो कोनो भुल के तको नइ गोठियाय सकय। काबर कि जीभेच नइ लहुटय अंगरेज जमाना के कत्कोन मूल अंगरेजी शब्द रेडिया, सइकिल ,इसकुल‌ ,मोटर कंडिल‌, बकसा , छत्तीसगढ़ी पुट दे के ज्यों के त्यों बौरात चले आत हे।
    पांच  आखर के शब्द ठीक  बोले  नी जा सके । समरसता ल समर +सता कहे  जाथे । अउ त अउ मोर सरनेम के पंचाक्षरी  भट्टप्रहरी संयुक्ताक्षर के साफ उच्चारन ध्वनि  नइये ओहर भतपहरी सहज उच्चारन  ध्वनि म व्यवहृत हवय। प्रहर ल पहर ही कहे जा सकथे अउ त अउ भगवान मन के नांव -विष्णु ल तको बिसनू कहे जाथे, ब्रम्हा ल बरम्हा ,कार्तिकेय ल कातिक कहे जाथे उवा उवा... 
    
      त हमर सुधि पाठक साहितकार, कलाकार अउ गुनवंता  मन सो गिलौली हवे कि अपन मूल छत्तीसगढ़ी भाषा अउ संस्कृति   के संगे संग ओकर सह भाषा अउ बोली जेमा प्रमुखतः गोड़ी हल्बी भतरा सादरी कुडुख सहित लरिया , खल्टाही ,बैगानी, कलंगा ,भूलिया ,  बिंझवारी मन के  उपर धियान केन्द्रित करके सच्चाई के स्थापना कर में अपन बल -बुद्धि लगावय त छत्तीसगढ़ी सहित छत्तीसगढ़ के तको भला होही अउ फरिल जस तको एकर साधक  मन ल मिलही । शासन- प्रशासन ल‌ तको जुन्नटहा अउ जतनाय जिनिस मन ल खोजवाय- छपवाय के उदिम करना चाही।  एक अलग प्रभाग गठन करके छत्तीसगढ़ी मूल संस्कृति के संरक्षण बर ठोस उपाय करे के जरुरत हवय ।

     ।।जय छत्तीसगढ़ी जय जय छत्तीसगढ़ ।।

     -डाॅ. अनिल कुमार भतपहरी
                सचिव 
     छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग

मंदरस मिंझरे कस मीठ हवे ...



मंदरस मिंझरे कस मीठ हवे
               हमर भाखा छत्तीसगढ़ी 
कोनो कहिस जिमीकांदा संग 
                   मही के अमसुरहा कढ़ी 
जुच्छा कढ़ी  के सेती महुं हर 
                     परोस देथंव  बोरे बासी
कोनो बाप कहिस खेत-खार ल 
                     अउ महतारी गाँव गली
कथा-कहिनी गीत भजन 
                  चोहल हाना हवय आनी बानी
रंगे छत्तीसों  रंग मं जस
                    गीता  कुरान बइबिल  गुरुबानी
           -  डॉ. अनिल भतपहरी 

Tuesday, July 6, 2021

सुरता प्रायमरी स्कूल बुन्देली के

सुरता प्रायमरी स्कूल बुन्देली ‌-

 ।।दउड़ भाड़ी मं अउ फोर माड़ी ल ।।
 
" जहर महुरा झन खा  चले जा बुन्देली" अइसन हाना महानदी  सिरपुर  के ए पार चातर  राज मं   चलय  । ओ पार जंगल राज  महासमुन्द जिला परथे ओकरे आखिर‌ मं चारो मुड़ा कटाकट जंगल के मंझोत मं  बुदेलहीन पाट , गजगिधनी पहाड़  अउ चंदवा डोंगरी के  मझोत  मं 11 पारा वाले जबर गांव  बुन्देली बसे हवय। बेल्डीही नाला ( जोक नदी के सहायक )पार कर तहन उड़ीसा लगथे।   जिहां मोर पिता जी हर मोर जनम साल 1969 मं हाई स्कूल मं बी एड करते साठ पदस्थ होइस। एक हिसाब से कहे त मोर ऊपजन बाढ़न गांव आय बुन्देली मोर गोकुल आय सच कहे  त मोर वृंदावन आय जहां पहली से सातवीं तक पढेव अउ हर साल क्लास मानीटर बनत आएव केवल छटवीं  म मोर से जादा नंबर लाने मोहित ह बनिस ...  फेर बिचारा देवारी के बाद स्कूल न इ आइस ।सुने म आइस कि ओमन अकाल परे ल जीए खाए ईटा बनाय कहु चल दिन )
+.         +.          + 
 बाबु जी के 20 अगस्त 1948 के अपन जनम के 6 माह मं महतारी  पिलाबाई चल बसिन अउ 2 साल मं ददा रामचरण तको सतलोकी हो गिस।ननपन ले दाई -ददा के मया दुलार से वंचित अपन बडे दाई  सतवन्तीन के मयारुक अंचरा के छांह म पले बढे रहिस। निरबंशी  अपन छाती मं पथरा लदक बेटी के ऊमर  वाली ल सउत  बना के लानिस अउ नाती नतुरा कस रामचरण पीला बाई के चिन्हा दुकाल  अउ सुकाल  ल जी जी अंतर पोसे पाले रहिन।
   बचपन ले गुणवंता सुकाल के मास्टरी नौकरी सुन उछाहित तो रसिस फेर कौरु नगर कस जस बगरे बुन्देली नाव सुन के दाई  सतवंतीन अउ कका -बबा मन साफ मना कर दिस ।  .. गाँव में कका -बड़ा  दो भाई वकील  ( मनोहरलाल अउ भुवनलाल  तीसर  भाई बिहारीलाल  विकास अधिकारी  अउ चौथा किसनलाल  भिलाई म नौकरी करत  रहिन ये पाँचवा  जीवनलाल ( सुकाल  ) भतपहरी वंश के पहली शासकीय सेवा म मास्टर बनत रहिस ७५ रुपया मासिक तनखा मं। 
    साफ मना कर दे गिस कि  गौटिया घराना के लरिका नौकरी न इ करय। खेती म ४-५ झन नौकर झुल इया क इसे नौकर बनही?
    फेर बाबु जी भले छोटे कद के मनसे रहिस फेर जोन ठान लय ओ चंदवा पहाड़ ले कम ऊँच न इ रहय....
   पिथौरा से जंघोरा उहा ले जंगल भीतरी  ठाकुरदिया - खपरा खोल जंगल नाहकत सुपर साईकिल के आघु सीट लगे  डंडी मं मोला ब इठारे अउ पाछु केरियल मं  कोरा मं  छोटे भाई सुनील ल धरे  मां  ब इठे राहय ।
  झोला बैग तको बंधाय रहय।...सांय- सांय करत जंगल मं बाबु मंगल भजन गात  सायकिल ओटत २० कि मी जंगल ल पार करत बुन्देली पहुँचय ...  बीच -बीच मय टिड़िंग -टिड़िंग घंटी बजात रहव ... अ इसे लगय कि रुख राई मन मगन किंदरत हे, अउ पहाड़ मन हमन  ल छुए -पोटारे बर दउड़त तीर मं आत हे ...बाबु हर उन राक्षस मन ल बचात सांय -सांय ओटत भागत चले जात हे ... फेर मोला लगय थोरिक रुकन का तीर आन दे छुवन तो दे का कर लिही देख लेबोन ... दाई ददा संग बल गरजत सोचव ।

     मंय तो ननपन ले बाबू संग स्कूल जांव अउ उहा खेलत रहव। चपरासी मन पाए रहय । स्कूल के फूलवारी अउ क्यारी मन ल खेलात रहय ... काबर बाबु के संग घर के चल देव पाछु भुख लागय त मोला घर पहुंचा देवत जब मय ५ सवा पांच साल के होएव तब मोर  नांव अनिल  स्कूल मं १९७४ में  लिखागे अउ  विद्यार्थी बन गेय आजो ले सिख ई पढ ई चलतेच हे हा अब मुन्ना कह इया कोनो न इये   ।ओकर पहिली मुन्ना रहेंव अउ स्कूल स्टाफ के राज दुलारा रहेंव ... मोला देवधर भैया ,घनश्याम भैया करा भैया  मन अबड़ खेलावय अउ स्कूल तीर के होटल मं  भजीया बरा तको खवाय फोकटेच्च मं । चपरासी भैया मन  स्कूल के भाड़ी के ऊपर  मं ब इठार दय त भाड़ी के ऊपर दउड़त खेलव ... मोर द उड़ ई ल देख ओमन अचरुज हो जय ... मोला आजो ले सुरता हवे ।एक बडे टुरा हर ओती ल दौड़त आत रहिस क्रासिंग म जगा न इ दिस त दुनो टकरा के गिर गेन मोर माड़ी फूट गय ... होनी के अनहोनी होगे ... घनश्याम भैया ल बनेच डाट पड़े रहिस ... माड़ी के चिन्हा आजो ले हवे ओ ल जब जब देखथव मोर सुरता आथे अपन स्कूल अउ जम्मो संगवारी मन के ... मोर लइका मन ल माड़ी के चिन्हा देख चिन्हार चिन्हार के पुछथे(ओमन ल दादी बता दे हवय ) हर कइसे मंजा आत रहिस का ? अउ दउड़  भाड़ी मं  फोर डार माड़ी ल  ...७२ वर्षीय मां हर अपन नाती मन के गोठ सुन कठ्ठल के हांस परथे अउ मंय आजो ले अपन उतअइल पन के सुरता कर के झेंप जथंव ।
                    ... सरलग 

बाकी बाद मं 

    डाॅ. अनिल भतपहरी