पंथ मत मजहब रिलिजन (धर्म नहीं यह होते नहीं ) इत्यादि के नियम विधान मानवीय और अच्छे होते हैं। बल्कि इन्ही के लिए निर्मित / प्रवर्तित होते हैं। उनके अनुयाई उन बातों को जानते हैं पर मानते नहीं न उन पर अमल करते हैं। यदि ऐसा करते तो अनेक मत पंथ आदि प्रवर्तित नहीं होते। केवल एक ही पर्याप्त होते ।
जैसे धर्म सद्गुण है जिसे धार्मिक व्यक्ति अपने अंत: करण में धारण कर व्यवहृत करते हैं। इस हिसाब में चंद मुठ्ठी भर लोग धार्मिक है। बाकि सब कर्मकांडी प्रदर्शनी हैं।
मजेदार बात यह है कि उन्हे अधार्मिक भी नहीं कह सकते ।
गुणी आदमी को ईश्वर रब खुदा गाड न माने उसे नास्तिक जरुर कह सकते हैं। पर वे नास्तिक होते नहीं हैं।
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