।।सजीव सृजन ।।
आवरण में दीदार थोड़ा हैं
व्याकरण प्रवाह में रोड़ा हैं
इसलिए समर्थवानों ने तोड़ा हैं
लीक पर चलने वालें भैसा गाड़ा हैं
जो किसी का समान लादा है
वह हांके और हकाले जा रहे हैं
वह नाथे और नथाए जा रहे हैं
विचार और शिल्प उधार का
नकल का कारोबार का
कोई विचार और शिल्प
रहता नहीं सदा
तुम रचते रहे सामयिक
रहे इसी में फिदा
होते रहे सम्मानित
जो समझे उनसे प्रशंसित
ना समझे उनके लिए
अज्ञेय व अपरिचित
सांचे और ढांचे पर खड़ा करना
नही कोई कारीगिरी हैं
सच कहे यो यह
केवल कीमयागिरी हैं
भले यह श्रमसाध्य हैं
सरोकार वाली दुसाध्य हैं
सधा सरोकार हो गये ख़ारिज
काव्य तो नही बस हुआ तवारिख़
रीतिकालीन अलंकृत
स्वर्ण प्रतिमाएँ हैं
निर्जन प्रस्तर प्रखंड
खंडित प्रतिमाएँ हैं
प्रवर्तन या बंध -छंद मुक्त करे
सजीव सृजन अनायस होते हैं
कालजयी इनके आधार पर
पुनश्च नये कयास होते ...
-डाॅ.अनिल भतपहरी 9617777514
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