Saturday, February 27, 2021

हैरत

हैरत न हिकारत न इबादत उनके मकान देखकर।
गर बनाते दिलो मे मकाम तो कुछ कहते समझकर।।
सत श्री सतनाम
 -डा अनिल भतपहरी
🌴🌹🍁🌻🌸🌼💐🌲

Tuesday, February 23, 2021

छत्तीसगढ़ का वैभव -लक्ष्मण देवाला सिरपुर

संदर्भ -नागपंचमी 

"पंचमुखी / सप्तमुखी सर्पफेन छत्र और उनका 
                महत्व "

गुरु घासीदास के ससुराल सिरपुर ‌में  सर्पछत्रपति बुद्ध प्रतिमाएं है।
  जनश्रुति है कि महंत अजोरीदास कबरा महंत की पुत्री सफुरा मंदिर की पुजारन और सहज योग मे निष्णान्त सद्गुणी रुपसी थी। उनका वरण गुरु ने किया। और दोनो ने मिलकर युगान्तरकारी  सतनाम धम्म प्रवर्तन किया।
गुरुघासीदास ने बुद्ध की तरह कठोर तपस्या कर आत्मग्यान अर्जित किए ।तो जनमानस उन्हे बुद्ध की तरह महा सिद्ध महायोगी कह गुरु पद आसिन कर श्रद्धावनत  हो गये। सफूरा भी सफूरामाता के नाम से विख्यात  पुज्यनीय हुई। 
       यहां भंडारपुरी गुरुद्वारा १८३०  में स्थापित सद्गुरु आसन का चित्र और सिरपुर की सुप्रसिद्ध " सर्पफेन सिरो छत्रधारी बुद्ध " का ध्यान मग्न प्रतिमा अवलोकनीय है। 
   ऐसा प्रतीत होता है कि बुद्ध प्रतिमा के बाद भारतीय समाज में उनके अनुकरण करते सारे देवी देवताओ के मूर्तियां बनने लगे व आकंठ मूर्तिपूजा  में  रमने लगे  । इनके साथ -साथ ढोंग ,पाखंड, पूजा कर्मकांड आदि होने लगे ।भव्य और बड़ी बड़ी मंदिर काम कलाओ आदि वैभव  व विलासिता पूर्वक बनने लगे और जनमानस उसी खोने लगे तब कही जाकर पुनश्च इन जगहों से जनमन को शोषण आदि से बचाने पुनश्च  प्रबुद्ध महापुरष के रुप में गुरुघासीदास का अवतरण हुआ। वे जनमानस को मंदिर मूर्ति और  पंडे पुरोहित के मकड़जाल से मुक्त कराकर सहज योग और परस्पर सद्भाव व सात्विक आहार विहार व्यवहार से जीवन में सुख शांति समृद्धि पाने का सहज मार्ग प्रशस्त किए जो सतनाम दर्शन व पंथ या धर्म के रुप मे विख्यात हुए।

दोनो जगहों की दूरी महज १० कि मी है।और इस परिछेत्र में प्राचीन काल से जनजीवन आबाद है।
प्रग्यावान ग्यानवान और महायोग साधक सिद्ध महापुरुष जिसे पालि मे बुद्ध और जन भासा में सिद्ध कहे गये ।जिन्हे सहस्त्रचक्र कमल व अष्टचक्र सिद्ध कह उनके  सर के ऊपर कुंडली जागृत के प्रतीकार्थ सर्प फेन युक्त कर संस्मृत किए गये। इसलिए बुद्ध महावीर और अन्य सिद्ध साधक को प्राचीन शिल्पकार नागफन से युक्त दिखाए।कुछ विचारक व इतिहास विद इसे नागवंशी धोषित करते रहे है। 
    
  

   बाहरहाल   इन दोनो की  और इन सब तथ्यों के संबंध  विचारणीय व अध्ययनीय है।
    इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध महासम्मेलन  १९९३ सिरपुर में आर्य नागार्जुन सुरई - ससाई ने गुरुवंशज दयावन्त साहेब  अनेक बौद्ध भिछुक सतनामी संत महंत व सरदार दीलिप सिंग जी सिख पंचायत के अध्यछ  और सैकड़ो प्रबुद्ध विचारको /हजारो आसपास के सहजयानी सतनामियों की गरिमामय उपस्थिति में गुरुघासीदास को "बोधिसत्व गुरुघासीदास " के नाम से संबोधित करते उन्हे बोधिसत्व कह जन कल्याणकारक " बुद्धमहापुरुष ' धोषित किए।
      सभागार धन्य धन्य कह जय सतनाम जय बुद्ध की हर्ष ध्वनि से गुंजायमान हो उठे।
    सौभाग्यवश उस महासम्मेलन में हम सचिव के रुप में उपस्थित थे।अध्यछ रामलाल बौद्ध नागराज और उपाध्यछ फत्तेलाल बौद्ध  अन्य पदाधिकारियों मे डा उपराम बधेल और चिखली जुनवानी  देवगांव अमसेना तेलासी के लोग रहे। अपनी जड़ व अस्मिता तलाशने हेतु इस तरह के आयोजन और गंभीर विचार विमर्श होते रहना चाहिए।
   क्योकि गुरुघासीदास के गिरौदपुरी निर्वासन  और  भंडारपुरी आगमन के पूर्व हम  लोगो के पूर्वज इस परिछेत्र में सुसम्पन्न व आबाद थे।बल्कि यही लोग गुरु को बसाने में अप्रतिम योगदान दिए ।उनके सतनाम जागरण  को गतिमान करने अपना सर्वस्व न्योछावर किए।‌ यह सब चीजों की जानकारिया न ई पीढ़ी के लोगो और अन्य समुदाय के लोगो को जानना समझना चाहिए।
      ।। सच्चनाम - सतनाम ।।

प्राचीन बुद्ध मंदिर जिसे लछ्मण कहे जाते है का लिंक ये वीडियो  देखे 
https://youtu.be/YKKGKAOXeZE

छत्तीसगढ़ी शिष्ट साहित्य के उद्गाता गुरुघासीदास ‌

"छत्तीसगढ़ी  शिष्ट साहित्य के उद्गाता गुरु घासीदास" 

   डॉ॰ अनिल कुमार भतपहरी
 
 
 
छत्तीसगढ़ में लेखन अन्य प्रान्त के हिन्दी या ब्रज अवधि मैथिली मराठी भाषियों ने यहाँ की लोक जीवन से प्रभावित होकर पहले पहल सृजन आरंभ किए पर व...

 चन्द्रकुमार जैन का आलेख - अहिंसा में सुशासन और सशक्त लोकतंत्र का संगीत
 चन्द्रकुमार जैन का आलेख - 'मुक्तिबोध' की बहुचर्चित कविता 'अँधेरे में' पर एक ख़ास चर्चा
 देवेन्द्र सुथार का आलेख - पुण्य और परिर्वतन का पर्व : मकर संक्रांति
प.पू. बाबा घासीदास 

छत्तीसगढ़ में लेखन अन्य प्रान्त के हिन्दी या ब्रज अवधि मैथिली मराठी भाषियों ने यहाँ की लोक जीवन से प्रभावित होकर पहले पहल सृजन आरंभ किए पर वे छत्तीसगढी नहीं है। छत्तीसगढ वनाच्छादित अंचल रहा है। जहां कोई शिक्षण संस्थान नहीं थे। रायपुर और रतनपुर में केवल पूजा पाठ आदि के लिए संस्कृत पाठशालाओं का निजी संचालन कान्यकुब्ज ब्राह्मणों द्वारा मौखिक रुप से संचालित थे जहां सीमित मात्रा में केवल ब्राह्मण युवकों को शिक्षा दी जाती थी। वे लोग भी कही संस्कृत में काव्य या कोई ग्रंथादि रचे यह ज्ञात नहीं है

। दंतेश्वरी मंदिर में जो शिलालेख है और जिसकी लिपि ब्राम्ही है वह पाली या प्राकृत है जो जन भासा छत्तीसगढ़ी जैसी लगती हैं पर वह छत्तीसगढ़ी नहीं है। क्योंकि बस्तर में गोंडी भतरी बोलियाँ हैं। जिसमें कुछ कुछ शब्द छत्तीसगढ़ी के मिलते हैं।

अमुमन सभी राजा और राजघराने जो आदिवासी थे वे और उनके परिवार प्राय: निरक्षर रहे । फलत: राज दरबार या नगर में छिटपुट लेखन करते जिनकी मातृ भाषा या बोली ब्रज ,अवधि मैथिली बघेलखंडी या मराठी थे। जो जीविकोपार्जन हेतु यहां आकर आश्रय लिये थे। वही लोग देवनागरी लिपि में अपनी अपनी मातृ भाषा में लेखन किया। यह वह दौर रहा जब हिन्दी भाषा के रुप में आकार ले रही थी। यह समय साहित्य के काल क्रम में रीतिकाल का था। जब श्रृंगार और भक्ति का अप्रतिम सृजन चल रहा था। राम- कृष्ण नायक के रुप में महिमामय हो चुके थे उनके मानवीय करण कर उनके लौकिक लोकाचारण से जनमन को अनुरंजित किए जा रहे थे। हर सामंत राजा जमीन्दार के चरित्र को राम कृष्ण के वैभव से जोड़कर उनके मनोहारी वर्णन तक किए जाने लगे । प्रतिभाशाली आसुकवियों को पनाह मिलने लगे ये लोग राग रंग मनोरंजन के गीत गाकर जीविकोपार्जन करने लगे । कवियों कलाकारों को राजदरबार में आश्रय मिलने लगे। इन्ही राज्याश्रित कवियों में दलपत राव खैरागढ, बाबू रेखाराव रतनपुर, और सिमगावासी खाण्डेराव का नाम उल्लेखनीय है। इनकी रचनाओं में वे अपने आश्रय दाता राजाओं के प्रशंसा के साथ- साथ समकालीन छत्तीसगढ़ की छवि परिलक्षित होते हैं।

इसी समय बांधवगढ़ वासी धनी धरमदास जी का वृद्धावस्था में कबीर पंथ के प्रचारार्थ आगमन हुआ। वे कोमलकांत पदावलि प्रेम भक्ति के पद कवित्त रचे जिन पर कबीर की वाणियों के अनुगूंज हैं। उनकी भाषा बघेलखंडी और ब्रज है।

छत्तीसगढ़ में शिक्षा का द्वार लार्ड मैकाले के शिक्षा नीति के चलते १८५० के आसपास स्कूल खुलना आरंभ हुआ। और १९०० तक शहरों कस्बों में पाठ शालाएं धीरे धीरे खुलने लगी इस दरम्यान प्रथम पीढी के लोग साक्षर हुए वही लोग छिटपुट छत्तीसगढ़ी में गीत भजन और धार्मिक कथा कहिनी लेखन आरंभ किए।‌

तब तक बीज स्वरुप जनमानस में गुरु बाबा के वाणियों का अनुगूंज गूंजने लगा वही आगे सतनाम साहित्य जिसे छत्तीसगढ़ी का शिष्ट साहित्य कह सकते हैं, का क्रमशः सृजन आरंभ हुआ।

इस तरह हम पाते हैं कि -

विशुद्ध छत्तीसगढ़ी में नवीन विचार -धारा और दर्शन को जनमानस में प्रसारित करने सर्व प्रथम सूक्तों, अमृतवाणियों ,उपदेशों  ,पंथी मंगल भजनों दृष्टान्त या बोधकथाओं के माध्यम से गुरु घासीदास और उनके पुत्र गुरु अम्मरदास जी ने १७९० के आसपास सतनाम पंथ की स्थापना की। और उनके प्रचारार्थ रामत -रावटी किए। इन्हीं आयोजनों में सत्संग- प्रवचन और पंथी -मंगल भजनों द्वारा सतनाम के गूढ़ंतम सिद्धान्तों को सरलतम ढंग से जनभासा छत्तीसगढ़ी में व्यक्त किए जो शिष्ट साहित्य की कोटि में पणिगणित होने हुए।

सतनाम -पंथ के अभ्युदय के पूर्व छत्तीसगढ़ी में लेखन और सृजन इसलिये भी संभाव्य नहीं हुआ क्योंकि यहाँ शिक्षा और अक्षरग्यान जनमानस में थे ही नहीं। इसलिए अधिकतर लोकगीतों का मौखिक स्वरुप रहा है। और लोग अपनी यादृच्छिक क्षमता के अनुरुप उन्हें कंठ दर कंठ प्रवाहित करते लाए। इनमें प्रमुखतः करमा ददरिया रीलो बार डंडा नृत्य गीत बांसगीत बसदेवा सुआ इत्यादि। इनके साथ- साथ बिहाव गीत गौरागीत जसगीत जैसे आनुष्ठानिक गीत जो लोकगीतों के रुप में रहा। तो अहिमन कैना केवला कथा दसमत कैना लोरिक चंदा सीत बंसत लछ्मनजति भरथरी गोपीचंद आल्हा जैसे पात्रों चरित गायन भी वाचिक परंपरा में रहा। पंडवानी इसी तरह कलान्तर में विकसित हुई।

सतनाम -पंथ का प्रवर्तन गुरु घासीदास ने धर्म-कर्म में व्याप्त अराजकता, अंध विश्वास, ढोंग- पाखंड के विरुद्ध उनमें अपेक्षित सुधार हेतु किया गया। फलस्वरुप अनेक सकारात्मक लोग उनसे जुड़ते गये। पुरातन प्रेमी और रुढिवादियों ने इनका प्रतिकार किया साथ ही अनेक तरह के अवरोध पैदा किए गये। ताकि इससे नवीन सतनाम विचार-धारा का प्रवाह अवरुद्ध हो जाए। परन्तु जो सत्य और लोककल्याणकारी तत्व है वह सारे अवरोध अपनी सर्व ग्राह्यता से हटा लेता है। और ऐसा ही हुआ। सारे अवरुद्ध उनके प्रवाह से उखड़ गये और भारतीय संस्कृति में जातिविहीन नये धर्म का संस्थापना हुआ। समकालीन समय में उनकी अनुगूंज से जो सृजित हुआ वह वाकिये में चमत्कृत करने वाला रहा। फलस्वरुप यह बडी तेजी से लोक जीवन में प्रचारित-प्रसारित हुआ।

परन्तु गुरु घासीदास विरचित शिष्ट साहित्य और सतनाम -दर्शन केवल अनुयायियों तक क्यों सीमित रहे और गैर अनुयाई उनसे क्यों मुखापेक्षी रहे यहां तक कि सतनाम- पंथ के साहित्य को जातीय साहित्य कहे जाने लगे? यह विचारणीय और खारिज करने योग्य है। क्योंकि यह. सुविधाभोगियों और शोषकों द्वारा फैलाए गये भ्रम रहा है। वाकिये में यह जाति -पांति आदि से मुक्त मानव मुक्ति के महाकाव्यात्मक गान है। यह बाते अब प्रज्ञावानों को समझ आने लगी है। इन भावप्रवण रचनाओं के माध्यम से छत्तीसगढ़ी को वैश्विक पटल पर संस्थापित किए जा सकते है। अनेक प्रसिद्ध रचनाकार और समीक्षक एक सुर में कहते है कि छत्तीसगढ़ के महान संत गुरु घासीदास से नि:सृत छत्तीसगढ़ी देव वाणी संस्कृत सम महिमामय हो गई ।

सिरजादे मनखे के हृदय म धाम ।

सतनाम साहित्य मानव हृदय को धाम बनाती है। और उन्हें समानता के धरातल पर खड़ा कर प्रकृति और प्राणियों के प्रति संवेदनशील बनाती है।

ऐसे दिव्य और महिमामय भाव प्रवण छत्तीसगढ़ी में गद्य पद्य रचनाएँ जो बाबाजी के मुख से नि:सृत है ,वह द्रष्टव्य है-

सप्त सतनाम सिद्धान्त -

१ सतनाम ल मानव अउ सतनाम के रद्दा म रेगव

२ पर नारी ल माता बहिन मानव

३ मांस त मास ओकर सहिनाव तको ल झन खाव

४ मंद माखुर चोगी झन पियव

५ मंझनिया नागर झन जोतव

६ मूर्ति पूजा झन करव अउ ओमा बलि झन चढावय

७ गाय अउ भ इसी ल नागर म झन फांदव

उक्त दिव्य सतनाम सिद्धान्त के अनुरुप ही अनगिनत उक्ति व गीत उपदेश अमृतवाणियों का अवतरण हुआ-

१ सत म धरती टिके हे सत खडे हे अगास ,कहे

सत म चंदा सूरुज ह बरत हे दिनरात ,कहे घासीदास।।

२ कटही कुलुप स इता राख ।

ये दे सुकवा उवत हे पहाही रात ।।


 

 
३ मंदिरवा म का करे ज इबोन। अपन घट के देव ल मनइ बोन ।।

४ चलो चलो हंसा अम्मर लोख ज इबोन ।

अम्मर लोख जाइके ये हंसा उबारबोन ।।

५ ये माटी के काया हर न इ आवय कहू काम ।

तय सुमर ले सतनाम तय सुमर ले सतनाम ।।

६ सतनाम एक वृछ हे निरंजन बनगे डार

तीन देव साखा भये पन्ना भये संसार

७ मोरा हीरा गंवागे बन कचरन म

मुड पटक -पटक रोले पथरन म

८ हंसा कायागढ म लगे हे बजार समझके कर ले स उदा ल हो

९ अमरित पावन लगे सुहावन सतनाम मीठ बानी

सतनाम तय जप ले रे मनवा करले सुफल जिनगानी

१० बीच गंगा बहत हे मंझधारा हो मिले बर होही संतो मिल जाहु न ....

इसी तरह अमृतवाणियों का यह गद्यात्मक रुप दर्शनीय है-

१ करिया होय कि गोरिया होय ये पार के होय कि ओ पार के मनखे हर मनखेच आय।

२ झगरा के जर न इ होय ओखी के खोखी होथय।

३ पितर मन ई हर मोला ब इहाय कस लागथे।

४ मंदिर झन बना न संतद्वारा बना तोला बनायेच बर हवे त कुआ तरिया सराय नियाला बना ।दुरगम ल सरल‌ बना।

५ तोर भगवान बहेलिया आय मोर भगवान धट धट म बिराजे सतनाम हर आय।

६ मंदरस के सुवाद ल जान डरे त सब ल जान डरे।

७ एक धूबा मारे तहु तोर बराबर आय।

८ मोर सब हर संत के आय तोर हीरा ह मोर बर कीरा आय

९ अव इय्या ल रोकव नहीं जव इय्या ल टोकव नहीं

१० ये भुइंय्या तोर आय येखर तय मिहनत करके सिंगार कर अन्न धन उपजा अउ सुध्धर सत इमान म अपन जीनगी बिता।

इन अलंकृत व भावप्रवण अमृतवाणियों के साथ साथ अनगिनत उपदेश ,दृष्टान्त व बोधकथाएं हैं।

इस तरह देखें तो भावप्रवण व संपूर्ण व्याकरणिक कोटि से अलंकृत महिमामय वाक्य संरचना है जिस पर अनेक तरह से मुग्धकारी साहित्य सृजन संभाव्य है। और रचे जा रहे हैं।१९२५ मे सतनाम सागर के प्रकाशन कलकत्ता से सतनाम साहित्य का सोता अजस्र प्रवाहमान हो मानव के अंत:करण को आप्लावित करते आ रही है।

अब तक ३५० से अधिक स्वतंत्र पुस्तकें पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित हैं । कई खंड व महाकाव्य हैं उनमें प्रमुख निम्नवत हैं-

१ सतनाम सागर - पं सुखीदास


 
२ गुरुघासीदास नामायण

३ समायण - पं सुकुलदास -मनोहर दास नृसिंह

४ सत्यायण- पं साखाराम बधेल

५ सतनाम- संकीर्तन- सुकालदास भतपहरी गुरुजी

६ सत सागर - प नम्मूराम‌ मनहर

७ सतनाम धर्मग्रंथ - नंकेशरलाल. टंडन

८ सतनाम खंड काव्य - डा मेधनाथ कन्नौजे

९ गुरु उपकार - साधू बुलनदास

१० श्री प्रभात सागर - मंगत रविन्द्र

इसी तरह गद्य में अनेक रचनाएँ है उनमें प्रमुखतः १० रचनाओं की सूची निम्नवत् है

१ सतनाम आन्दोलन और गुरु घासीदास - ले शंकरलाल टोडर

२ सतनाम - दर्शन इंजी टी आर खुन्टे

३ सतनाम दर्शन भाऊराम धृतलहरे

४ सत्य प्रभात - डा आई आर सोनवानी

५ सतनाम के अनुयायी - डा जे आर सोनी

६ गुरुघासीदास संधर्ष समन्वय और सिद्धान्त- डा. हीरालाल शुक्ल

७ गुरु घासीदास की मानवता  - साधु सर्वोत्तम साहेब

८ सत्य दर्शन - घनाराम ढिन्ढे

९ गुरु घासीदास चरित - सुखरु प्रसाद बंजारे

१० सतनामी कौन? -    शंकरलाल टोडर

गद्य पद्य के अतिरिक्त अनेक पंथी मंगल चौका आरती संग्रह और चंपू काव्य हैं। महाकवि द्वय नोहरदास नृसिंह और नम्मूराम मनहर नंकेसर लाल टंडन साधु बुलनदास जी ने सतनाम धर्म संस्कृति से संदर्भित अनेकानेक रचनाएँ समाज को दिए और जनमानस में प्रचार प्रसार किए।

उक्त महत्वपूर्ण ग्रंथों पुस्तकों के साथ इतिहास राजनीति समाज दर्शन एवं साहित्य में गुरु घासीदास के प्रदेय व्यक्तित्व व कृतित्व पर अनेक लेखकों विचारकों के आलेख से संगृहीत पत्र पत्रिकाएँ और स्मारिकाएं उपलब्ध हैं इन सबके आधार पर कई विश्वविद्यालयों में अनेक शोध प्रबंध उपलब्ध हैं ।जिसके प्रकाशन होने पर सतनाम धर्म- संस्कृति के वृहत् स्वरुप का दिग्दर्शन होंगे।

इस तरह देखा जाय तो गुरु घासीदास बाबा और उनके पुत्र द्वय गुरु अम्मरदास व राजा गुरु बालकदास ने १७९०-१८६० तक विशुद्ध छत्तीसगढ़ी में सिद्धान्त उपदेश अमृतवाणी मुक्तक बोध व दृष्टान्त कथाओं को रामत - रावटी में सत्संग प्रवचन पंथी नृत्य गान द्वारा जनमानस में विशिष्ट प्रयोजन खाकर जनकल्याणार्थ प्रस्तुत किए। वह वर्तमान में शिष्ट साहित्य के रुप में प्रतिष्ठापित हुआ। इस तरह गुरु घासीदास को शिष्ट साहित्य के उद्गाता कहे जा सकते हैं। अनेक विद्वान उन्हें छत्तीसगढ़ी का आदि कवि और लोक साहित्य और शिष्ट साहित्य का सेतु कहते हैं। और वे है ही।

जय सतनाम - जय छत्तीसगढ़ जय भारत

--

डॉ- अनिल कुमार भतपहरी



ऊंजियार-सदन,सेन्ट जोसेफ टाउन आदर्श नगर अमलीडीह रायपुर छ

Sunday, February 21, 2021

जय छत्तीसगढ़

।। जय छत्तीसगढ़ ।।

सिव भोले  बबा  हमर  पारबती  दाई ये 

राम हर भांचा हमर  किसन  बड़े भाई ये 

बुध बबा के चरन परे हे कबीर तको संघरे हे  

गुरु घासी के बानी हर चारों खूंट मं बगरे हे 

ते पाय के हांसी -खुसी मं जिनगी ह बितत हे 

मया -पिरित मं हमर दुनियां सब  रिझत हे 

दया -धरम के बसती मया पिरित के ठांव 

सरग ल सुघ्घर लागय संगी छत्तीसगढ़ के गांव ...

ज्ञानी ध्यानी रिसी मुनि के माटी नित नित  करव परनाम 

जनम धरव मंय लहुट लहुट के छत्तीसगढ़ पावन धाम ....

       -डा. अनिल भतपहरी 

टीप - आरुग फूल से सम्मानित  २००७ में  सद्य: प्रकाशित हमारी काव्य संग्रह  " कब होही बिहान"  के अंश ।

Saturday, February 20, 2021

करमा गीत

।।करमा गीत ।।

लड़का -संगी तोर रुप अउ  रंग मोला बड़ा निक लागे ...
लड़की -संगी तोर बोली अउ बचन मोला बड़ा मीठ लागे ...

रुख राई तरिया नंदियां डोंगरी अउ पहाड़ २ 
तोर मया म होके दीवाना किंदरव खारे खार .संगी मोला मीठ लागय 

महुं दरस पाहू कहिके जाथव हाट बजार २
देखे बिना मिलय  नहीं  मन ल करार ... संगी मोला नीक लागय 

दाई ददा कुटुंब मन के पर लेंतेन 
पांव
दाई ददा पंच मन के पर लेतेन पांव 
असों  अक्ती मं  मढ़ा  लेतेन     बिहांव... संगी मोला मीठ लागय
संगी तोर रुप अउ रंग मोला नीक लागय 
संगी तोर बोली अउ बचन मोला बड़ा मीठ लागय ....

Monday, February 15, 2021

रोंगोबती


DrAnil Bhatpahari, profile picture

प्रेम दिवस यानि वेलेन्टाइन डे पर -

।।रोगोंबती ।।

यह अपार लोकप्रिय प्रेम गीत जो लोकगीत सदृश्य हो चूके है "पश्चिमी ओडिशा" की जनपदीय भाषा कोसली में है जो संबलपुरी के नाम से बहुप्रचलित है। 1970 में यह गीत सबसे पहले ऑल इंडिया रेडियो में रिकार्ड हुआ और जल्द ही यह लोगों की जुबान पर चढ़ गया। 1978 में यह रेकॉर्ड के रूप में आम जनता को प्राप्त हुआ और इस गीत ने पॉपुलरटी की जो ऊंचाई छुई, वह बेमिसाल है। इस गाने का प्रभाव ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड और पूर्वी बंगाल में ज्यादा रहा है। यह युगल गीत जितेंद्र हरिपाल (पद्मश्री 2017) और गायिका कृष्णा पटेल की आवाज में है। गीत मित्रभानु गौंटिया ने लिखा था और संगीत दिया था प्रभुदत्त प्रधान ने।

यह गीत की लोकप्रियता के आलम ये है कि यह 
छत्तीसगढ़ और ओडिशा में पिछले 40-45 सालों से लेकर आज तक शायद ही कोई बारात होगी, जिसमें इस गीत की धुन न बजती हो और लोग बिधुन होकर न नाचते हों। बारात के साथ साथ मूर्ति विसर्जन में भी यह खूब बजता है। यह इसलिए भी खास है कि यह अवाम का गीत है। क्या अमीर, क्या गरीब। सबको एक ही भाव मे यह नचाता रहा है। 2007 में इस गाने की धुन गणतंत्र दिवस परेड में ओडिशा की ओर से पेश की गई थी। यह कटक के बाराबती स्टेडियम का चीयर सांग भी है। रोगोंबती चीन और कोरिया में भी पेश किया गया है। हिंदी और तेलुगु फ़िल्म में आ चुका है। छत्तीसगढ़ी में इस नाम से अभी फ़िल्म भी बनी है। इस वर्ल्ड हिट गीत को कोक स्टूडियो ने नए वर्जन में सोना महापात्र की आवाज में बेहद खूबसूरती से पेश किया है। इसे भी एक बार जरूर सुनें। (लिंक कमेंट बॉक्स में)

प्रस्तुत वीडियो पुराना है पर ओरिजिनल साउंडट्रेक में है। रिकार्डिंग का स्तर भी पहले का है पर फीलिंग वही है, मजा वही है जो हम आप सबको इसकी धुन में बैकग्राउंड में बजते ढोल की रिदम सुनकर आता है। तो एक बार सुन ही लिया जाए ... एहे रोगोंबती... ए रोंगोबती... 🎶🎵

Dr Anil bhatpahari

मैसुर में रोंगोबती

रोंगों बती की बात छिड़ी तो बता दे २०१२ में इन्टर स्सेट होम स्टे प्रोग्राम में हम लोग २५०० सदस्य नैनो टीम इंडिया के सदस्य थे।
प्रत्येक राज्य से २२ सदस्य जिसमे १० लडंके १० लड़की २ पु म कार्यक्रम अधिकारी ।
हमे छत्तीसगढ़ टीम प्रभारी का बड़ा दायित्व मिला। साथ में कटघोरा कालेज से बिस्वाल मेडम थी।
सभी राज्य अपनी पारंपरिक वेषभूषा में लोक नृत्य आदि प्रस्तुत करते।
हमलोग पंथी करमा जस कर विशिष्ट पहचान बना लिए थे। और आयोजको के दुलारे हो गये थे।
मैसुर वि वि परिसर के आटोडोरियम में प्रति दिन प्रस्तुतियां होते थे।
एक दिन शहर में शोभायात्रा निकला और समापन महाजना कालेज में हुआ। वहाँ विराट मंच बने थे कर्नाटक सरकार की मंत्रिमंडल और अधिकारी गण अतिविशिष्ट और हजारों छात्र छात्राएं व प्राध्यापक वृन्द थे।
हम लोग की पंथी रंग जमा चुके थे और भक्ति की सोता फूट गये और अनेक लोग झुम उठे थे।
हमारा सम्मान भी हो गया था।
पर जब उडीसा की बारी आई और उनके कार्यक्रम अधिकारी आकर हमसे कहे कि रोंगोबती ग्रुप डांस के लास्ट अंतरा में आप और हम स्टेज में डांस करेन्गे ।मैने कहा ठीक है।
जैसे ही लास्ट अंतरा में उडीसा के महाविद्यालयीन छात्र छात्राओं के साथ भनेश्वर कालेज के प्रो रबिशंकर मिश्रा जी और पलारी छत्तीसगढ़ कालेज के डां अनिल भतपहरी एन्ट्री किए पुरा मैदान के आडियंस एक साथ रोन्गोबती गीत में थिरकने लगे।
आनंद और उत्साह का ऐसा मंजर सच में पहली बार देखा कि प्रेम भरा लोक गीत एंव धुन मे वह कमाल है जो भाषा राज्य और संस्कृति की दीवार को लांध जाते हैं। 
नृत्यांगनाएं उड़ीसा की सुप्रसिद्ध नक्षत्र माला साडी ही पहनी थी जो उक्त वीडियो में नायिका पहनी है।
-डा अनिल भतपहरी

रोंगोबती

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Wednesday, February 10, 2021

विचार ( सेमीनार )

"विचार"

फुर्सत के छण 
छुट्टी के दिन 
महिनों लपटाए
सेमीनार को 
हटाते हुए 
जेहन में 
 विचार कौंधा 
 बडी हसरत से 
जिसे लगाया
पानी सींचे  
खाद और 
दवाई डाल
जतना पाला पोसा 
परिश्रम तब सफल 
हुआ और आपार 
खुशियाँ मिली 
जब उनकी फलियाँ 
रसोई में पककर 
सीधे गले उतरी 
केवल स्वाद ही नही 
इसी जेहन में 
समा गई 
उनकी गुण 
और स्वरुप 
 इलाहाबाद विश्वविद्यालय 
के सेमीनार में
जाना कि इनके बीज 
बादाम सदृश्य हैं।
किसी मित्र को गिफ्ट देना
तो ताजी सेमी 
पैक कराकर दे 
और उन्हें सेहतमंद करे 
महगी मिठाईयां खिलाकर 
उन्हे बिमार न करे
तब से उगाने लगा 
घर की क्यारियोंं गमलों  में 
मनीप्लांट की तरह सेमियां
आज जब वह उजडे 
तो लगा जैसे कोई 
अपने चले गये दूर 
छु छु उनकी पाती फूल 
तोड तोड कर उनके फल 
 मिलते खुशियाँ हर पल 
छत में फैले  झुरमुट के नीचे 
बैठ ग्रीन टी पीते  पढते अखबार  
और लिखते सोशल मीडिया में 
तरह तरह के विचार 
उनके उजडने से 
एक पल ठिठक गये 
मन में उठते विचार 
जैसे चले गये कोई अभिन्न 
करके मन को खिन्न 
जाना तो पडता हैं सभी को 
देकर खुशियाँ बाटकर फलियाँ 
जब अदना सेमीनार स्मृत होते हैं
तब वर्षों आसपास रहते लोग क्यो नहीं
मनुष्य बडा स्वार्थी हैं
भले उसे सब स्मृत रहे
पर द्वेष वश उनकी बुराईयां
ही गिनते हैं
एक दूसरे से धिनाते 
कुत्ते बिल्ली पाल ले 
पर इंसान नही
अच्छाई नजर नही आते 
क्योकि खुद को अच्छा होने 
के आवरण में ढांक कर 
आत्म दर्प में जीते हैं
भले कहे अच्छे -बुरे सभी है
पर कभी अच्छाई
देखे ही नही जाते 
यह अलग बात हैं कि
अक्सर कहे जाते हैं 
कि मर कर देवता बन जाते हैं
मतलब  अच्छा या देवता बनना हैं
तो मरना ही पडेगा 
जीते जी न अच्छा हो 
और देवता होने का तो प्रश्न ही नहीं
भले उजड गये सेमीनार 
पर न उजडे विचार 
यु चलता रहे विचार ....
क्योंकि विचार से 
विकसित होते हैं गुण 
जो जाने बाद भी बचे रह जाते हैं 
जैसे स्वादिष्ट सेमी के बीज 
सम्हाल कर रख लिए हैं 
अगले सीजन के लिए 
वैसे ही विचार सहेज  लिए जाते हैं 
अपने अपने  मिशन के लिए 

डा- अनिल भतपहरी 
  अमलीडीह रायपुर 
११-२ २०१८

Friday, February 5, 2021

सजीव सृजन

।।सजीव सृजन ।।


आवरण में दीदार थोड़ा हैं 
व्याकरण प्रवाह में रोड़ा हैं
इसलिए समर्थवानों ने तोड़ा हैं
लीक पर चलने वालें भैसा गाड़ा हैं
जो किसी का समान लादा है
वह हांके और हकाले जा रहे हैं
वह नाथे और  नथाए जा रहे हैं
विचार और शिल्प उधार का 
नकल का कारोबार का 
कोई विचार और शिल्प 
रहता नहीं सदा 
तुम रचते रहे सामयिक 
रहे इसी में फिदा 
होते रहे सम्मानित 
जो समझे उनसे प्रशंसित 
ना समझे उनके लिए 
अज्ञेय व अपरिचित 
सांचे और ढांचे पर खड़ा करना 
नही कोई कारीगिरी  हैं
सच कहे यो यह
केवल  कीमयागिरी हैं
भले यह श्रमसाध्य हैं  
सरोकार वाली दुसाध्य हैं
सधा सरोकार हो गये ख़ारिज
काव्य तो नही बस हुआ तवारिख़ 
रीतिकालीन अलंकृत 
स्वर्ण प्रतिमाएँ हैं
निर्जन प्रस्तर प्रखंड 
खंडित प्रतिमाएँ हैं
प्रवर्तन या बंध -छंद मुक्त करे  
सजीव सृजन अनायस होते हैं
कालजयी इनके आधार पर 
पुनश्च नये कयास होते ...

     -डाॅ.अनिल भतपहरी 9617777514

Thursday, February 4, 2021

कोंदा भैरा सरकार होगे

आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

पसरा मं बेचावत वोट हर बैपार होगे 
सच निमान बर उजरे  बजार होगे 
जनता बर दु लांघन एक फरहार होगे 
गोहरात गुनत अलकर अजार होगे 
गर कट्टा मन  सेठ-साहुकार  होगे 
इकरे लिगरी मं कोंदा-भैरा सरकार होगे 

 बिंदास कहें -डा.अनिल भतपहरी

भभकौनी


#anilbhaptpahari 
आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

  ।।भभकौनी ।।

अपनेच बर खान के खचवा 
अउ गाड़ के खीला 
काकर भभकौनी मं आके 
ये क्या कर लिया 
लहुहुहान होगे राजपथ 
अउ  लाल‌किला 
जुझे किसान अउ जवान 
एक्के माई के पीला  
काकर चुल्हा मं चुरही 
मीठ गुरहा चीला 
माथा के मति मात  के 
चलिस छुए चेथी ला  

      बिंदास कहे -डाॅ. अनिल भतपहरी

Monday, February 1, 2021

युगल गीत

एक छत्तीसगढ़ी प्रेम गीत पढ़िये ... वक्त मिलेगा तो किसी दिन लाइव प्रस्तुत करेन्गे ।

।।युगल गीत ।।

तोर रुप दरसन घाद निक लागय रानी ओ
 तोर बोली बचन घाद मीठ लागय राजा ग...

आए नहाये बर गांव के नवा तरिया 
देखतेच साठ होगे तोर संग पिरितिया... घाद निक लागय

गांव के गुड़ी मं देखे गावत भजन‌
तब ले मानेव  मय तुहीच ल सजन ...घाद निक लागय 

लुवाही धान अउ ओन्हारी  सकलाही
माघी पुन्नी मं  हमर लगिन धराही ...घाद निक लागय 

तोर गोठ सुन राजा, मन कुलकत हे 
अक्ती मं भांवर किंदरे के सउक करत हे ..घाद निक लागय... 

        -डा. अनिल भतपहरी