छत्तीसगढ़ के पर्वानुसार प्रमुख व्यंजन -
तिहार - रोटी/ व्यंजन
हरेली - चीला
पोरा - सोंहारी
तीजा - कुसली /गुजिया
पितर - बरा
देवारी - अइरसा -खिचरी- रोठ
देवठन - फरा -चुकिया
जयंती - तस्मई-चीला
सकरात - तिली- फल्ली लाड़ू
होरी - ठेठरी -खुर्मी
बर -बिहाव - कड़ी ,बुंदी लाड़ू
मरनी पंगत - मालपुआ / लाडू / बरा
नित्य खान पान - दार -भात - चीला ,अंगाकर, खपरा व बेलना रोटी साग -भाजी( ४० प्रकार) बासी( पखाले अउ बोरे ) मिर्चा पताल अमली करौदा सहित बहुत कन चटनी आम नीबू आचार । मांसाहारी (एच्छिक है)
सहायक व्यंजन -
भजिया आलूचाप आलू गुंडा ,गुलगुला ,बटिया ,दूधफरा धुसका ,बोबरा पोपची ,चौसेला ,पिड़ीया , खाजा , खोवा पेडा बालुसाय ,बतासा ,जलेबी सोल काड़ी, पापड़ बरी बिजौरी इत्यादि । मैदा की खस्ता कतरन कार्टुन
और लुप्तप्राय: टोड़वा छाता रोटी मंदरस में डुबाकर या उनके संग ।
यह सब छत्तीसगढी व्यंजन व मिष्ठान्न है।जिन्हे सुविधानुसार व इच्छाजनित किसी भी पर्व में बनाए खाए खिलाए जाते है ।
बेसिक सामाग्री अनाज चांवल गेहूं चना तिल उड़द मुग गुड शक्कर मंदरस दूध लौग लायची नाडियल खोपरा ।
पेय पदार्थ - चाह , पेज ,पसिया दूध, मही , गुडपानी शक्करपानी बेल सरबत ताड़ी सल्फी मंद, हडिया लांदा आदि।
इतनी विविधता के बावजूद यहां कोई भी रोटी व व्यंजन व्यवसायिक रुप से नही बनाए जाते न होटलों रेस्त्रां आदि में बिकते है।
यहा होटल व रेस्त्रां की संस्कृति नही रही है लोग गांव शहरों में रिश्तेदारों के घर भोजन करते है ।
हां नास्ते में जरुर चाय भजिया आलूगुंडा बडा समोसा मिक्चर आदि मिलते है और छोटे छोटे जलपान गृह है उसे ही होटल कहने की परंपरा है।
संस्कृति विभाग के पहल से कही कही शासन द्वारा प्रचरार्थ इन व्यंजनो के स्टाल रेस्त्रा गढ़ कलेवा जैसे दो चार सेंटर खलने लगे है।
टीप -लाज मे रुके बर इहा के मन अबड़ लजाथे जरुरत परे मं सोझे सहर के सड़क बगीचा बस अउ रेल स्टेशन म मच्छर बबदू के बावजूद ससन भर सो जथे ।
छग में अनाज को सड़ा- गलाकर कोई भी व्यंजन नही बनाए जाते न बनाने की संस्कृति है।
डा. अनिल भतपहरी
No comments:
Post a Comment