खुमान संगीत
रविन्द्र संगीत की तरह खुमान संगीत एक अलग अहसास हैं संगीत प्रेमियों के लिए । बाल्यावस्था में ही पिता श्री (सुप्रसिद्ध रंगकर्मी व सतनाम संकीर्तन कार सुकालदास भतपहरी "गुरुजी" ) के सानिध्य में गीत- संगीत अभिनय आदि सीखने और प्रदर्शन करने का अवसर मिला ।
गर्मी व दशहरा - दीवाली छुट्टी में गृहग्राम जुनवानी आते तो घर के आंगन में खाट पर बैठे पिता श्री बाँसुरी से "का धुन बाजव मय धुनही बसुरिया" वाली गीत का धून छेड़ते तो मैं पास रखे हारमोनियम से संगत करते चिटिक अंजोरी निरमल छंइहा ... बजाने कहता और फिर खुमान साव की अनेक धुन युं ही बिना लय तोड़े गीत बजते जाते ... आसपास के कथा कहानी कहने वाले शोर गूल करते रेशटीप और अंधियारी - अंजोरी खेलते बाल टोलियां और निंदारस में डूबे रोचक वृतांत में उललझने वाले सब मोका जाते और हम दोनो बाप बेटे की जुगलबंदी सुनने सकला जाते ... फिर भजन गीत गाने फरमाइश भी होने लगते ...
आकाशवाणी रायपुर में बुधवार को दोपहर सुर श्रृंगार सुनने स्कूल बंक मारते ... और गणित रसायन वाले सर से डांट सुनते पर जब जब चौरा म गोंदा रसिया, मोर संग चलव रे काबर समाए रे मोर बइरी नयना मं, पान ठेला वाला या मंगनी म मांगे मया न इ मिलय जैसे गीत सुनते मन अल्हादित हो जाया करते और डाट फटकार होम वर्क की दंश से मुक्त भी हो जाते ।
उनके गीत सैकड़ों- हजारों बार विगत ४० वर्षों से सुनते व गुनगुनाते आ रहे पर मन नही अघाते .. .पता नही क्या चीज इनमें भरा हुआ हैं ? फिल्मी गीत इनके समछ हल्के लगते ।
कारी ( एक बार टेकारी आरंग में वही रामचंद देशमुख जी को देखे )व चंदैनी गोंदा (अनेक बार अनेक जगहों पर झुलझुल कर सिगरेट पीते बिधुन हारमोनियम पर उंगुली थिरकाते खुमान साव जी का दर्शन और दुआ सलाम मंच पर जाकर कर आने का भाग्य हमें कई बार मिल चूका है।
...रामचंद खुमान लछ्मन के तिकड़ी ने वह किया कि छत्तीसगढ़ी की बिगड़ी ही बन गई ।ये तीन ही काफी है कही भी कभी भी इनके भरोसा खोभिया के या अड़िया के खड़े होने के लिए हम जैसों के लिए ...
अनेक गीतों में अपनी बेहतरीन संगीत संयोजन से जनमानस को मुग्ध व आनंदित करते छत्तीसगढ़ी संगीत को शिखर तक ले जाने वाले महान संगीतकार खुमान साव जी को ...विनम्र श्रद्धांजलि ! सत सत नमन।
।।वे गये नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के फि़जा में बिखर गये ।।
-डा अनिल भतपहरी
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